डेयरी पालन छोटे/सीमांत किसानों और कृषि मजदूरों के लिए सहायक आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। पशुओं से प्राप्त गोबर मिट्टी की उर्वरता और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए एक अच्छा जैविक पदार्थ प्रदान करता है।
गोबर गैस को घरेलू ईंधन के रूप में और कुओं से पानी निकालने के लिए इंजनों को चलाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। अतिरिक्त चारा और कृषि उप-उत्पादों का उपयोग पशुओं को खिलाने के लिए लाभप्रद रूप से किया जाता है।
खेत के कार्यों और परिवहन के लिए लगभग सभी जोत शक्ति बैलों से प्राप्त होती है। चूँकि कृषि अधिकतर मौसमी होती है, इसलिए डेयरी पालन के माध्यम से वर्षभर कई लोगों के लिए रोजगार की संभावना रहती है। इस प्रकार, डेयरी पालन साल भर रोजगार उपलब्ध कराता है।
विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार भारत की 94 करोड़ जनसंख्या में से लगभग 75 प्रतिशत 5.87 लाख गांवों में रहते हैं, जहाँ 145 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि की खेती होती है।
औसत खेत आकार लगभग 1.66 हेक्टेयर है। 70 मिलियन ग्रामीण परिवारों में से 42 प्रतिशत 2 हेक्टेयर तक भूमि जोतते हैं और 37 प्रतिशत परिवार भूमिहीन हैं।
इन भूमिहीन और छोटे किसानों के पास 53 प्रतिशत पशु हैं और वे 51 प्रतिशत दूध का उत्पादन करते हैं। अतः देश के दूध उत्पादन में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
डेयरी पालन एक मुख्य व्यवसाय के रूप में भी अपनाया जा सकता है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों के आस-पास जहाँ दूध की मांग अधिक होती है।
केंद्र और राज्य सरकारें दूध उत्पादन के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान कर रही हैं। पशुपालन और डेयरी के लिए नवें पंचवर्षीय योजना में ₹2,345 करोड़ का प्रावधान किया गया था।
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डेयरी खोलने के लिए कई बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है, ये बातें निम्नलिखित है -
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NABARD (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) डेयरी योजनाओं के लिए ऋण और पुनर्वित्त सुविधा प्रदान करता है। किसान अपने निकटतम वाणिज्यिक या सहकारी बैंक शाखा में आवेदन कर सकते हैं। तकनीकी अधिकारी या बैंक प्रबंधक सहायता करेंगे।
भूमि की लागत को ऋण में शामिल नहीं किया जाता, लेकिन यदि भूमि डेयरी के लिए खरीदी जाती है तो इसकी लागत को कुल परियोजना लागत का 10% तक किसानों की अंश पूंजी के रूप में माना जा सकता है।