जानें कपास की खेती में होने वाले रोग और उनके नियंत्रण के बारे में
जीवाणु अंगमारी झुलसा रोग
इस रोग के लक्षण जब पौधे उगते है तभी दिखाई देने लग जाते है। प्रथम चरण में उगते ही पौधे मर जाते है। बड़े पौधों में नीचे से ऊपर की तरफ पहले पौधे के पत्ते सूखते है और अंत में पौधा मर कर गिर जाता है।
नियंत्रण
इस रोग के नियंत्रण के लिए फसल में बेनोमील और कार्बनडाज़ियम 500 mg को प्रति लीटर पानी में मिला कर ड्रेंचिंग करें।
अंगमारी या उखेड़ा रोग
यह रोग आमतौर पर 35 से 45 उम्र के पौधों में दिखाई देता है. इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्ते पीले हो जाते हैं और अचण से पौधा एक दिन के अंदर ही मर जाता है।
नियंत्रण
इस रोग को नियंत्रण करने के लिए कार्बनडाज़ियम या थिराम नामक फफूंदनाशक को पौधों की जड़ो में डालें। नीम की खली के इस्तेमाल से भी इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
पत्ता मरोड़ रोग
उत्तरी भारत में विषाणु पत्ता मरोड़ रोग कपास का एक महत्वपूर्ण रोग है. यह कॉटन लीफ कर्ल वायरस के कारण होता है। यह विषाणु रोगी पौधों से स्वस्थ पौधों तक सफेद मक्खी के व्यस्कों द्वारा फैलता है।
नियंत्रण
इस रोग का नियंत्रण करने के लिए सफेद मक्खी को ख़त्म करना जरूरी होता है क्योंकि ये रोग सफेद मक्खी के व्यस्कों द्वारा फैलाया जाता हैं। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए थियामेथोक्सम नामक कीटनाशक का छिड़काव किया जा सकता है।
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