जिन क्षेत्रों में श्रमिकों की उपलब्धता है वहां मटर की खेती किसानों के लिए वरदान बन सकती है। मटर कच्ची और दाने दोनों प्रयोग के लिए लगाई जाती है। कच्ची फली तोड़कर किसान कम समय में ही लागत को निकाल सकते हैं और बाकी की फसल को दाने के लिए पकाकर मुनाफा ले सकते हैं। इस तरह की खेती में अच्छी आय के लिए थोड़ी अगेती करना आवश्यक है। समूचे देश में जितनी मटर की खेती होती है उसकी आधी अकेले उत्तर प्रदेश में होती है। मध्य प्रदेश, उड़ीसा एवं बिहार में भी मटर की खेती हाती है।
खेती विभिन्न प्रकार की उपजउू मृदा में हो सकती है लेकिन गंगा के मैदानी भागों की गहरी दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है। अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी में नमी भी रहे और खेत में ढ़ेल नहीं होने चाहिए।
हर दलहनी फसल का बीजोपचार जरूरी है। पहले रासायनिक फफूंदनाशक से एवं बाद में राइजोबियम कल्चर से उपचारित करके बोने से रोग प्रभाव कम होता है और उपज ज्यादा मिलती है। मटर की बुआई मध्य अक्तूबर से नवम्बर तक की जाती है जो खरीफ की फसल की कटाई पर निर्भर करती है। समय पर बुआई के लिए 70-80 किग्रा. बीज/है. पर्याप्त होता है। पछेती बुआई में 90 किग्रा./है. बीज होना चाहिए। सीड ड्रिल से 30 सेंमी. की दूरी पर बुआई करनी चाहिए। बीज की गहराई 5-7 सेंमी. रखनी चाहिये। बौनी किस्म की मटर के लिए बीज दर 100 किलोग्राम/है. उपयुक्त है। उर्वरक – मटर में सामान्यतः 20 किग्रा, नाइट्रोजन एवं 60 किग्रा. फास्फोरस बुआई के समय देना पर्याप्त होता है। सिंचाई- मटर में पहली हल्की सिंचाई फूल आने के समय और दूसरी सिंचाई फलियाँ बनने के समय करनी चाहिए। खतपतवार नियंत्रण – खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, जैसे-बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, सतपती अधिक हों तो 4-5 लीटर स्टाम्प-30 (पैंडीमिथेलिन) 600-800 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से घोलकर बुआई के तुरंत बाद छिड़काव कर देना चाहिए।
जमीन के पास के हिस्से से नये फूटे क्षेत्रों पर इस रोग का प्रकोप होता है। 3 ग्रा. थीरम+1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें खेत का जल निकास ठीक रखें।
तना मक्खी - ये पूरे देश में पाई जाती है। पत्तियों, डंठलों और कोमल तनों में गांठें बनाकर मक्खी उनमें अंडे देती है।
मांहू (एफिड) - कभी-कभी मांहू भी मटर की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इनके बच्चे और वयस्क दोनों ही पौधे का रस चूस लेते हैं। इससे फलियाँ सूख जाती हैं। हल्क पानी के छिडकाव या बेहद हल्की कीटनाशक ही इसको मारने के लिए काफी है।
मटर का अधफंदा (सेमीलूपर) - यह मटर का साधारण कीट है। इसकी गिड़ारें पत्तियाँ खाती है। २% फोरेट से बीज उपचार करें या 1 किग्रा. फोरेट प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की मिट्टी में बुआई के समय मिला दें। आवश्यकता होने पर पहली निकलने की अवस्था में फसल पर 0.03% डामेथोएट 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर घोल कर प्रति हेक्टेयर छिड़कें।
कटीला फली भेदक (एटीपेला) - यह फली भेदक उत्तर भारत में अधिक पाया जाता है।