Ad

फसल

आलूबुखारा की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

आलूबुखारा की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

आलूबुखारा एक महत्वपूर्ण समशीतोष्ण ड्रूप फल है, जो आड़ू के बाद आता है। यह प्रुनस प्रजाति से संबंधित होता है और आड़ू, नेक्टरीन व बादाम से घनिष्ठ रूप से जुड़ा होता है। इसके परिपक्व फलों पर कभी-कभी धूसर-सफेद परत पाई जाती है, जिसे "वैक्स ब्लूम" कहा जाता है। सूखे आलूबुखारा को प्रून के नाम से जाना जाता है। यह मुख्य रूप से निम्न पहाड़ी और उप-पहाड़ी क्षेत्रों में अच्छी तरह उगाया जाता है।आलूबुखारा के फल विभिन्न खनिज, विटामिन, शर्करा और कार्बनिक अम्लों के उत्कृष्ट स्रोत होते हैं। इनमें प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट की उचित मात्रा भी होती है। उच्च शर्करा युक्त...
अखरोट की खेती कैसे करें? उन्नत किस्में, उत्पादन और लाभ

अखरोट की खेती कैसे करें? उन्नत किस्में, उत्पादन और लाभ

अखरोट उत्तरी गोलार्ध के शीतोष्ण क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फल फसल है। हिमालयी क्षेत्र में इसके वाणिज्यिक उत्पादन की संभावनाएं बहुत अधिक हैं।भारत में अखरोट की खेती का कुल क्षेत्रफल 1,09,000 हेक्टेयर है, और कुल उत्पादन 3,00,000 मीट्रिक टन है।जम्मू और कश्मीर राज्य इस मामले में अग्रणी है, जहां पर अखरोट का कुल क्षेत्रफल 85,620 हेक्टेयर और उत्पादन 2,75,450 मीट्रिक टन है।अखरोट का पेड़ एक बार लगने के बाद कई दशकों तक फल देता है, जिससे यह दीर्घकालिक निवेश के रूप में देखा जाता है।70-80 वर्षों तक इसके फल प्राप्त किए जा सकते हैं, और यह...
DBW 187 (करण वंदना): गेहूं की अधिक उपज और गुणवत्ता वाली उन्नत किस्म

DBW 187 (करण वंदना): गेहूं की अधिक उपज और गुणवत्ता वाली उन्नत किस्म

भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित गेहूं की किस्म DBW 187 को देश के उत्तर-पश्चिमी उगाही क्षेत्र के चयनित क्षेत्रों में अत्यधिक और समय से बोवाई वाली परिस्थितियों के लिए विशेष रूप से अनुकूल है।इस लेख में इस किस्म की विशेषताएं, उत्पादन और बुवाई के क्षेत्र से जुडी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।DBW 187 किस्म की विशेषताएंयह DBW 187 किस्म पूरी उगाही क्षेत्र में स्थायित्व के साथ देखी गई है और अधिक पोषक तत्वों और उन्नत प्रबंधन के उपयोग से बेहतर परिणाम प्राप्त हुए हैं।यह किस्म धीमे पकने के बावजूद ग्रीष्मकालीन परिस्थितियों में भी अन्य किस्मों की तुलना में...
DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म: अधिक उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म

DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म: अधिक उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म

गेहूं दुनिया की लगभग 2.5 अरब आबादी के लिए उगाए जाने वाले महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थों में से एक है।गेहूं की फसल की खेती मुख्य रूप से तीन व्यापक सांस्कृतिक स्थितियों के तहत की जाती है, अर्थात् समय पर बुआई सिंचित, देर से बोया गया सिंचित और समय पर बोया गया प्रतिबंधित सिंचाई आदि।मैदानी क्षेत्रों के लिए DBW 371 किस्म को विकसित किया गया हैं, इसकी विशेषताएँ इस लेख में आपको देखने को मिलेंगे।DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म की विशेषताएँDBW 371 (करण वृंदा) किस्म गेहूं की अधिक उपज देनी वाली किस्मों में से एक हैं। इस किस्म को भारतीय...
शरीफा (सीताफल) की खेती में करें महारत हासिल: जानें कैसे पाएं 3X मुनाफा

शरीफा (सीताफल) की खेती में करें महारत हासिल: जानें कैसे पाएं 3X मुनाफा

सीताफल को शुष्क क्षेत्र का व्यंजन कहा जाता है क्योंकि यह बहुत मीठा और नाजुक होता है। यह जंगली रूप में भी भारत में पाया जा सकता है।जबकि सीताफल भारत का मूल निवासी पेड़ नहीं है, अंग्रेजी में इसको कस्टर्ड एप्पल के नाम से जाना जाता है, यह देश के कई हिस्सों में उगता है, खासकर महाराष्ट्र और गुजरात में, जो देश में सबसे बड़े सीताफल उत्पादक हैं।इसे बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी उगाए जाते हैं जो वर्षा आधारित हैं। इसमें बेहतरीन पोषण लाभों के अलावा महत्वपूर्ण चिकित्सीय लाभ भी हैं। चिकित्सीय फॉर्मूलेशन में कच्चे...
राजमा की खेती कैसे करें: सम्पूर्ण मार्गदर्शन, जलवायु, मिट्टी, और उर्वरक प्रबंधन

राजमा की खेती कैसे करें: सम्पूर्ण मार्गदर्शन, जलवायु, मिट्टी, और उर्वरक प्रबंधन

राजमा की खेती एक प्रमुख दलहनी फसल के रूप में की जाती हैं। भारत में राजमा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती हैं।दलहनी फसलें जैसे की चना और मटर की तुलना में राजमा की उपज क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है। भारत में राजमा की खेती महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में अधिक की जाती हैं।उत्तरी भारत के मदनी भोगों में रबी के मौसम के दौरान इसकी बुवाई का रकबा बढ़ रहा हैं। परंपरागत रूप से राजमा की खेती ख़रीफ़ के दौरान पहाड़ियों पर की जाती हैं।हालाँकि बेहतर प्रबंधन के कारण मैदानी क्षेत्रों में रबी में...