सोयाबीन भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसलों में से एक है, जिसे देशभर में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। यह न केवल प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है, बल्कि इससे तेल, सोया सॉस, दूध जैसे कई उत्पाद भी बनाए जाते हैं।
इसकी खेती के लिए सही मौसम, अनुकूल जलवायु और उपयुक्त मिट्टी जरूरी होती है। आमतौर पर इसकी बुवाई जून में की जाती है और कटाई सितंबर से अक्टूबर के बीच होती है।
अच्छी उपज पाने के लिए बीज का सही चुनाव, समय पर खाद और सिंचाई, रोग नियंत्रण और वैज्ञानिक तरीकों से रोपाई करना आवश्यक होता है। प्राकृतिक कीटनाशकों का प्रयोग करके फसल को सुरक्षित भी रखा जा सकता है।
सरकार द्वारा दी जा रही तकनीकी मदद और योजनाओं से किसान अब उन्नत तकनीकों के माध्यम से सोयाबीन की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। उच्च उपज देने वाली किस्में इस दिशा में सबसे अहम भूमिका निभाती हैं।
इस किस्म को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश ने विकसित किया है। यह कम समय में तैयार हो जाती है और मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
यह किस्म महाराष्ट्र, एमपी, राजस्थान, गुजरात और यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में उगाई जाती है। इसे केवल 1-2 सिंचाई की जरूरत होती है और यह 90-95 दिनों में तैयार हो जाती है। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है और उपज 25 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
इसे जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया है। यह बदलते मौसम और पानी की कमी को सहने में सक्षम है।
इस किस्म की खास बात यह है कि यह कई प्रमुख बीमारियों जैसे चारकोल रॉट, फली झुलसा आदि से अच्छी तरह लड़ने में सक्षम है। औसत उपज 28 क्विंटल/हेक्टेयर है।
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बांसवाड़ा, कोटा, बूंदी, उदयपुर आदि जिलों के लिए – प्रताप सोया (RAUS 5), PK 472, JS 93-05, इंदिरा सोया 9, JS 335, अहिल्या सीरीज की किस्में, परभणी सोना, प्रतिष्ठा, शक्ति आदि उपयुक्त मानी गई हैं।
विदर्भ और मराठवाड़ा के लिए – अहिल्या 1, JS 335, JS 93-05, MACS 58, परभणी सोना, मोनेटा, प्रसाद, फुले कल्याणी आदि किस्में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा अनुशंसित हैं।
सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें ताकि पुराने फसल अवशेष खत्म हो जाएं। इसके बाद प्रति हेक्टेयर 20-25 गाड़ी सड़ी हुई गोबर खाद मिलाएं और दो-तीन बार तिरछी जुताई करें। फिर पानी लगाकर पलेवा करें और मिट्टी सूखने पर अंतिम जुताई कर खेत समतल करें।
यदि रासायनिक खाद प्रयोग करना हो तो प्रति हेक्टेयर 40 किलो पोटाश, 60 किलो फास्फोरस, 20 किलो गंधक और 20 किलो नाइट्रोजन डालें।
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बीज की मात्रा आकार पर निर्भर करती है – छोटे बीज के लिए 70 किग्रा, मध्यम के लिए 80 किग्रा और बड़े बीज के लिए 100 किग्रा प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बुवाई मशीन से करें और पंक्तियों की दूरी 30 सेमी व गहराई 2-3 सेमी रखें।