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फसल

DBW 187 (करण वंदना): गेहूं की अधिक उपज और गुणवत्ता वाली उन्नत किस्म

DBW 187 (करण वंदना): गेहूं की अधिक उपज और गुणवत्ता वाली उन्नत किस्म

भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित गेहूं की किस्म DBW 187 को देश के उत्तर-पश्चिमी उगाही क्षेत्र के चयनित क्षेत्रों में अत्यधिक और समय से बोवाई वाली परिस्थितियों के लिए विशेष रूप से अनुकूल है।इस लेख में इस किस्म की विशेषताएं, उत्पादन और बुवाई के क्षेत्र से जुडी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।DBW 187 किस्म की विशेषताएंयह DBW 187 किस्म पूरी उगाही क्षेत्र में स्थायित्व के साथ देखी गई है और अधिक पोषक तत्वों और उन्नत प्रबंधन के उपयोग से बेहतर परिणाम प्राप्त हुए हैं।यह किस्म धीमे पकने के बावजूद ग्रीष्मकालीन परिस्थितियों में भी अन्य किस्मों की तुलना में...
DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म: अधिक उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म

DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म: अधिक उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म

गेहूं दुनिया की लगभग 2.5 अरब आबादी के लिए उगाए जाने वाले महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थों में से एक है।गेहूं की फसल की खेती मुख्य रूप से तीन व्यापक सांस्कृतिक स्थितियों के तहत की जाती है, अर्थात् समय पर बुआई सिंचित, देर से बोया गया सिंचित और समय पर बोया गया प्रतिबंधित सिंचाई आदि।मैदानी क्षेत्रों के लिए DBW 371 किस्म को विकसित किया गया हैं, इसकी विशेषताएँ इस लेख में आपको देखने को मिलेंगे।DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म की विशेषताएँDBW 371 (करण वृंदा) किस्म गेहूं की अधिक उपज देनी वाली किस्मों में से एक हैं। इस किस्म को भारतीय...
शरीफा (सीताफल) की खेती में करें महारत हासिल: जानें कैसे पाएं 3X मुनाफा

शरीफा (सीताफल) की खेती में करें महारत हासिल: जानें कैसे पाएं 3X मुनाफा

सीताफल को शुष्क क्षेत्र का व्यंजन कहा जाता है क्योंकि यह बहुत मीठा और नाजुक होता है। यह जंगली रूप में भी भारत में पाया जा सकता है।जबकि सीताफल भारत का मूल निवासी पेड़ नहीं है, अंग्रेजी में इसको कस्टर्ड एप्पल के नाम से जाना जाता है, यह देश के कई हिस्सों में उगता है, खासकर महाराष्ट्र और गुजरात में, जो देश में सबसे बड़े सीताफल उत्पादक हैं।इसे बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी उगाए जाते हैं जो वर्षा आधारित हैं। इसमें बेहतरीन पोषण लाभों के अलावा महत्वपूर्ण चिकित्सीय लाभ भी हैं। चिकित्सीय फॉर्मूलेशन में कच्चे...
करी पत्ता की खेती: मसाला और औषधीय गुणों से भरपूर फसल से कमाएं अच्छा मुनाफा

करी पत्ता की खेती: मसाला और औषधीय गुणों से भरपूर फसल से कमाएं अच्छा मुनाफा

करी पत्ते भारत की हर रसोई में इस्तेमाल किया जाने वाला मसाला हैं। इसकी मसाला और औषधीय दोनों फसलों के रूप में खेती की जाती है। इसके पत्ते का इस्तेमाल कई चीजों में किया जाता हैं।इसमें औषधीय गुण होने के कारण बाजार में इसकी मांग बहुत बढ़ रही हैं इसका पाउडर बनाकर भी बेचा जाता हैं। इसका इतना अधिक दाम होने से किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकता हैं।करी पत्ता के औषधीय गुणकरी पत्ता का इस्तेमाल मसाला ही नहीं बल्कि इसके औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके कुछ मुख्य औषधीय गुण निम्नलिखित हैं:करी पत्ता...
कैक्टस की खेती कैसे करें: सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक आदर्श समाधान

कैक्टस की खेती कैसे करें: सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक आदर्श समाधान

आज के समय में जलवायु परिवर्तन टिकाऊ फसल उत्पादन के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन गया है।लंबे समय तक सूखा और मरुस्थलीकरण भारतीय गर्म शुष्क क्षेत्र के सामने आने वाली समस्याओं में से एक हैं। जहां ग्रामीण गरीब और छोटे किसान सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।उच्च तापमान और ख़राब मिट्टी के कारण उनकी फसलों को ऐसी कठोर आपदाओं (जैसे सूखा) का सामना करने की आवश्यकता होती है।इन सभी समस्याओं के चलते कैक्टस (Cactus) की फसलें दुनिया भर में बढ़ती रुचि प्राप्त कर रही हैं।विशेष रूप से कैक्टस नाशपाती या कांटेदार नाशपाती (ओपंटिया फिकस-इंडिका (एल)) की डिमांड...
कम बारिश में भी उगाएं कैर: जानें सूखा-सहनशील कैर की खेती के राज

कम बारिश में भी उगाएं कैर: जानें सूखा-सहनशील कैर की खेती के राज

कैर (कैपेरिस डेसीडुआ (फोर्स्क) एक बहुउद्देशीय, बारहमासी, लकड़ीदार झाड़ी या छोटा पेड़ हैं, ये गर्म और शुष्क क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उगता हुआ पाया जाता है।राजस्थान में इसे आमतौर पर कैर या केर कहा जाता है। जबकि हरियाणा में इसे टींट या डेला के नाम से जाना जाता है। जबकि अंग्रेजी में इसे केपर बेरी के नाम से जाना जाता है।यह प्रजाति शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके कच्चे फल कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और खनिजों से भरपूर होते हैं।कैर की खेती के लिए जलवायुकैर अत्यधिक...
राजमा की खेती कैसे करें: सम्पूर्ण मार्गदर्शन, जलवायु, मिट्टी, और उर्वरक प्रबंधन

राजमा की खेती कैसे करें: सम्पूर्ण मार्गदर्शन, जलवायु, मिट्टी, और उर्वरक प्रबंधन

राजमा की खेती एक प्रमुख दलहनी फसल के रूप में की जाती हैं। भारत में राजमा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती हैं।दलहनी फसलें जैसे की चना और मटर की तुलना में राजमा की उपज क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है। भारत में राजमा की खेती महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में अधिक की जाती हैं।उत्तरी भारत के मदनी भोगों में रबी के मौसम के दौरान इसकी बुवाई का रकबा बढ़ रहा हैं। परंपरागत रूप से राजमा की खेती ख़रीफ़ के दौरान पहाड़ियों पर की जाती हैं।हालाँकि बेहतर प्रबंधन के कारण मैदानी क्षेत्रों में रबी में...
लौंग की खेती कैसे करें: जलवायु, मिट्टी, रोपण और तुड़ाई की सम्पूर्ण जानकारी

लौंग की खेती कैसे करें: जलवायु, मिट्टी, रोपण और तुड़ाई की सम्पूर्ण जानकारी

लौंग का इस्तेमाल मसाले के रूप में किया जाता हैं। लौंग एक सुगंधित मसाला होने के कारण रसोई में खाना पकाने, आयुर्वेदिक औषधि और खुशबूदार पदार्थ तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं।लौंग को अंग्रेजी में Clove के नाम से जाना जाता हैं और इसका वैज्ञानिक नाम Syzygium aromaticum हैं। भारत में इसकी खेती कई स्थानों पर की जाती हैं।इसकी खेती से किसान अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं। आज के इस लेख में हम आपको इसके उत्पादन से संबंधी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।लौंग की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का चुनाव लौंग की खेती के लिए सामान्य जलवायु...
कलौंजी की खेती: उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, और उन्नत प्रबंधन तकनीकें

कलौंजी की खेती: उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, और उन्नत प्रबंधन तकनीकें

कलौंजी (निगेला सैटिवा एल.) रामुनकुलेसिया परिवार से संबंधित एक वार्षिक जड़ी-बूटी वाला पौधा है।इस महत्वपूर्ण बीज मसाला फसल की उत्पत्ति भूमध्यसागरीय क्षेत्र से पश्चिम एशिया से होते हुए उत्तर भारत तक होती है।कलौंजी की खेती पूरे दक्षिण यूरोप, सीरिया, मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, पाकिस्तान में व्यापक रूप से की जाती है।भारत में इसकी व्यावसायिक खेती पंजाब, झारखण्ड, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु और बिहार में की जाती हैं।भारत में कलौंजी की खेती ज्यादातर पारंपरिक तरीके से की जाती है। इस लेख में हम आपको कलौंजी की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।कलौंजी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु...
गुड़मार की खेती कैसे करें: उपज, उत्पादन और औषधीय लाभ

गुड़मार की खेती कैसे करें: उपज, उत्पादन और औषधीय लाभ

गुड़मार, एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसे "जिमनिमा सिल्वेस्ट्रे" के रूप में भी जाना जाता है।इसके जड़ और पत्ते औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और विशेषकर इसका उपयोग मधुमेह जैसे रोगों के उपचार में किया जाता है।गुड़मार एक बहुवर्षीय बेल है, जिसकी शाखाओं पर हल्के रोयें होते हैं।अगस्त और सितंबर में इसके छोटे-छोटे पीले फूल गुच्छों में खिलते हैं।इसके फल कठोर होते हैं और बीजों में रूई लगी होती है, जो परिपक्व होने पर उड़ सकते हैं।गुड़मार की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टीगुड़मार की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु उपयुक्त होती है। इसका उत्पादन...