खेती किसानी के लिए पद्मश्री पुरस्कार पाने वाले भारत भूषण त्यागी सनक पर सवार किसान रहे हैं। वह जब गांव छोड़कर जंगल में मंगल करने खेतों पर बसेरा बनाने पहुंचे तो कई लोगों ने उन्हें सनकी दीवाना ही कहा होगा। गांव में दूसरे लोगों को लेकर आनंद लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों के लिए इस तरह की घटनाएं एक मुद्दा होती हैं। ग्रामीणों को अंदाजा भी नहीं लगा कि कुछ सालों में यह दीवाना अपनी दीवानगी की वजह से देश के शीर्ष पुरस्कार पाने वालों में जगह बना गया। खेती किसानी के लिए उनका समर्पण ही उन्हें इस सम्मान का हकदार बना पाया। खेती को लेकर गहरा चिंतन चौपालों पर चटखारों के बीच नहीं हो सकता। खेती अपने आप में बहुत बड़ा विज्ञान है। इसमें हर पल और हर गूढ़ ज्ञानी के लिए चुनौतियों का अंबार लगा पड़ा है। कोई भी छोटा सा बदलाव खेती की तस्वीर बदल देता है। यह प्रक्रिया हर बार नए परिणाम देने लगे तो प्रयोग धर्मी भी हांफ जाए, आखिर एक ही काम को करने से पहले इतने अच्छे परिणाम मिले लेकिन बाद में उनमें बेहद बदलाव हो गया। आखिर ऐसा हुआ तो क्यों हुआ। इसे कैसे रोका जाए। कुछ इस तरह की जिज्ञासाओं ने ही श्री त्यागी को 135 करोड़ आबादी के बहुसंख्यक किसानों में खास बनाया।
गांव के बाहर खेतों पर घर बनाकर परिवार के साथ प्रकृति की गोद में आनंद लेने वाले इस सख्स का परिवार भी इस रंग में ढ़ल गया। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद स्थित वीटा गांव निवासी भारत भूषण त्यागी का काम अलग तरह का रहा है। वह खेती के आधुनिक तरीकों से जल्द हार मानकर जैविक तरीकों की तरफ मुुड़े और उन्हें जीवन के सभी रंग यहां मिल गए। जैविक खेती को लेकर वह कहते हैं कि किसान यादि कुछ बातों का ध्यान रखें तो खेती घाटे का सौदा है यह बात कहीं सुनाई नहीं देगी। वह कहते हैं कि खेती में उत्पादन, प्रसंस्करण, प्रमाणीकरण एवं बाजार अहम घटक हैं। प्रकृति के साथ के बगैर इन सभी को सार्थक परिणाम तक पहुंचाना आसान नहीं है। किसान उत्पादन तक सिमट जाता है। यही कारण है कि वह आगे के कारकों पर ध्यान नहीं दे पाते और अपनी मेहनत की कमाई को सस्ते में लुटाते रहते हैं। वह कहते हैं कि मिश्रित और सहफसली खेती से वह सालना एक एकड़ से तीन से चार लाख कमाते हैं। श्री त्यागी मल्टीलेयर फॉर्मिंग खेती के मॉडल पर काम करते रहे हैं। वह कहते हैं कि जमीन के साथ आसामान में खाली पड़े आसमान का कृषि में उपयोग करने का उनका सपना था। इसके चलते उन्होंने अपनी खेती में एक ही खेत में पहली लाइन में मकाओ के पौधे, उसकी बगल में केला, उसके साथ गन्ना एवं सबसे नीचे हल्दी की खेती करना शुरू किया। मकाओ को छोडकर तीनों फसल साल में एक बार हार्बेस्ट होती हैं लेकिन एक दशक में मकाओ के पौधे से अच्छी खासी आय हो जाती है और पर्यावरण संरक्षण का काम भी खेती के साथ साथ होता है।
श्री त्यागी बताते हैं कि 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय से विज्ञान वर्ग से बीएससी करने के बाद वह गांवा आ गए और खेती में लग गए। जब आम किसानों की तरह खेती करने लगे तो उन्हें मोटा नुुकसान उठाना पड़ा। इसके बाद उन्होंने खेती को लाभकारी बनाने के लिए अपने ज्ञान और कौशल का प्रयोग शुरू किया। दिल्ली के नजदीक होने और वहीं शिक्षा लेने के कारण उन्होंने अच्छा और हेल्दी फूड चाहने वाले लोगों की नब्ज को पकड़ा और उत्पादन से लेकर विपणन तक जैविक खेती की चेन पर काम शुरू कर दिया। वह तीन दशक से इसी काम में लगे हैं। करीब 12 एकड़ जमीन के मालिक श्री त्यागी के खेत में फल, सब्जी, अनाज, पौधे जैसी 25 तरह की फसलें अपने खेत पर उगाते हैं। इस दिशा में अन्य किसानों को प्रेरित करने के लिए वह ट्रेनिंग भी देते हैं। वह खेती को प्राकृृतिक संतुलन के अनुरूप करने के हिमायती हैं। वह कहते हैं कि खेती के साथ कीट और खरपतवारों का भी सामन्जस्य है। इन्हें कम करने के अनेक परंपरागत तरीके हैं फिर जहरों का प्रयोग कर प्राकृतिक संतुलन क्यों बिगाड़ा जाए। यानी किसी भी खेत में सरसों लगाने से खपतवारों का प्रकोप कम हो जाता है। वह खेत के चारों तरफ बफरजोन बनाने की भी बात करते हैं ताकि मौसम की प्रतिकूलता का कम प्रभाव खेती पर पड़े। वह मेढ़ों पर लेमनग्रास आदि बढ़ने वाली फसलों की बाढ़ बनाने की बात करत हैंं। वह खेती के अपने प्रयोगों को अपने फार्म पर किसानों को दिखते भी हैं और समझाते भी हैं। सीधे अर्थों में जानें तो उनके तरीके से किसी खेत से गेहूं की एक ट्राली भरे न भरे लेकिन किसान की जेब में हर समय नोट जरूर आते रहेंगे। नगदी फसलें, टिम्बर, मौसमी फसलों के समिश्रण से सतत आय का उनका फार्मूला आज के दौर में एक हैक्टेयर जमीन वाले किसानों के लिए भी कारगर प्रतीत होता है।