Published on: 01-Aug-2022
सिर्फ बारिश के दिनों में होती है इस जंगली सब्जी की पैदावार
पीलीभीत।
आज हम बात करते हैं, उत्तर प्रदेश के
पीलीभीत और
लखीमपुर के जंगलों में पाए जाने वाली उस जंगली सब्जी की, जिसे पाने के लिए शौकीन अपनी जान भी जोखिम में डाल देते हैं।
जी हां, हम बात कर रहे हैं
बारिश के दिनों में पाए जाने वाली जंगली सब्जी कटरुआ (Katrua) की, जिसकी कीमत शुरुआत में ही करीब 1000 रु प्रति किलोग्राम तक होती है। इस जंगली सब्जी को जंगल से ले जाना प्रतिबंधित है। फिर भी, शौकीन लोग अपनी जान-जोखम में डालकर चोरी-छुपे कटरुआ की सब्जी को जंगल से निकाल ही ले जाते हैं। कटरुआ की सब्जी के लिए शौकीन लोग सालभर बारिश का इंतजार करते हैं।
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कैसे निकाली जाती है जंगली सब्जी कटरुआ ?
पीलीभीत और लखीमपुर के जंगलों में बड़ी संख्या में
सागौन व साल के पेड़ होते हैं। इन्ही
पेड़ों की जड़ों से कटरुआ पैदा होता है। जमीन को खोदकर कटरुआ निकलता है, जिसे पीलीभीत, लखीमपुर व बरेली की मंडियों में बेचा जाता है।
कटरुआ की कीमतों ने मटन को पछाड़ा
स्थानीय स्तर पर मटन की कीमत 600 रु प्रति किलोग्राम है। कटरुआ की कीमतें में लगातार बढ़ते भाव ने मटन की कीमतों को पछाड़ दिया है।
मंडी में कटरुआ 1000 रु प्रति किलोग्राम खरीदा जा रहा है
दूर-दूर तक बढ़ती जा रही है कटरुआ की मांग
यूपी के पीलीभीत और लखीमपुर में पैदा होने वाली जंगली सब्जी कटरुआ की मांग दूर-दूर तक बढ़ती जा रही है। जंगलों में
सागौन के पौधे व साल के पेड़ की जड़ों से जमीन को खोदकर कटरुआ निकालना बहुत ही दुष्कर कार्य है। पीलीभीत रोजगार के मामले में कुछ कमजोर है। इसी कारण यहां के लोग दूर-दराज काम करते हैं। लेकिन कटरुआ की सब्जी के शौकीन होने के चलते वो लोग यहां से कटरुआ जरूर ले जाते हैं। वो लोग अपनी जंगली सब्जी कटरुआ को भुला नहीं पा रहे हैं।
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शाकाहारियों का नॉन-वेज कहा जाता है कटरुआ
जंगल की कटरुआ सब्जी को शाकाहारियों का नॉन-वेज माना जाता है। इसे पकाने के लिए पहले चिकन-मटन की तरह ही धोया जाता है। बाद में अच्छे से तेल-मसाले डालकर पकाया जाता है।
जंगल के कई जानवरों की पसंद है कटरुआ
जंगल में
साल और सागौन के पेड़ों की जड़ो में पैदा होने वाला कटरुआ सब्जी को जंगल के कई जानवर पसंद करते हैं। जानकारों की मानें, तो
हिरन को यह जंगली सब्जी बहुत पसंद है।
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लोकेन्द्र नरवार