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अनाज

मोटा अनाज हो सकता है आपके पशुओं के लिए घातक

मोटा अनाज हो सकता है आपके पशुओं के लिए घातक

हम सभी जानते हैं, कि यह साल विश्व में इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM) के रूप में मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार सभी तरह के मोटे अनाज के उत्पादन और उसकी खपत के लिए जनता को प्रोत्साहित कर रही है। एक्सपर्ट्स का मानना है, कि मोटे अनाज का सेवन करना आपके लिए स्वास्थ्यवर्धक होता है। यह न सिर्फ आपको स्वास्थ्य को अच्छा बनाकर रखता है, बल्कि यह हमारी प्रतिरक्षा (Immunity) बढ़ाने के लिए भी बेहद जरूरी है। अगर आप नियमित रूप से मोटे अनाज का सेवन करते हैं, तो यह आपके प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) को स्ट्रांग करता है। आपको बहुत तरह के रोगों से दूर रखता है। मोटा अनाज इंसानों के अलावा पशुओं के लिए भी काफी लाभकारी माना गया है। लेकिन हमें यह भी जानने की जरूरत है, कि मोटा अनाज कभी-कभी पशुओं के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है और आज हम इसी के बारे में बात करेंगे। 

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पशुओं को किस तरह से खिलाया जाए बाजरा

अगर आप अपने पशुओं के आहार में बाजरे को मिलाना चाहते हैं, तो आप इसका दलिया बनाकर उसे अच्छी तरह से पका कर तैयार कर सकते हैं। उसके बाद आप इसे अपने पशुओं को खिला सकते हैं। साथ ही, आप पशुओं के चारे में बाजरे का आटा मिलाकर भी उन्हें खिला सकते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी लेकिन पशुओं को भी थोड़े बहुत नमक की जरूरत होती है। इसलिए अगर जरूरत पड़े तो आप इस आटे में चुटकी भर नमक भी मिलाकर पशुओं को दे सकते हैं। रोजाना बात की जाए तो आप 1 से 2 किलो बाजरा अपने पशुओं को खिला सकते हैं। बाजरे का आटा खिलाने का सबसे बड़ा फायदा यह है, कि यह आपके पशुओं को वजन बढ़ाने में मदद करता है। 

पशुओं को बाजरा खिलाने के क्या है फायदे

पशुओं को बहुत पहले से बाजरा या फिर बाजरे का आटा खिलाया जाता रहा है। अगर आप के पशु को लिवर से जुड़ी हुई किसी तरह की समस्या है, तो आप उसे बेझिझक बाजरा खिला सकते हैं यह उसके लिए काफी लाभदायक होगा। बाजरा पशुओं के पाचन तंत्र को मजबूत करता है। बहुत से मामलों में ऐसा होता है, कि बच्चा पैदा करने के बाद पशु बीमार रहने लगता है। ऐसे मामले में आप उसे बाजरा खिला सकते हैं। यह न सिर्फ उसे बीमारियों से दूर रखेगा बल्कि यह पशुओं में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में भी बहुत ज्यादा सहायक है। आप छोटे पशुओं जैसे कि बछड़े आदि को भी बाजरे के आटे की छोटी-छोटी लोई बनाकर खिला सकते हैं। यह उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है। 

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बाजरा खिलाने से कुछ नुकसान भी हो सकते हैं

हमने मोटे अनाज जैसे कि बाजरे आदि का पशुओं के आहार में फायदा तो देख लिया है। लेकिन कई बार इसके बहुत से नुकसान भी देखे जाते हैं। अगर आप लंबे समय तक अपने पशुओं को बाजरे का आटा या फिर बाजरे का दलिया खिलाते रहते हैं। तो उन में आयरन की कमी हो सकती है। इससे पशु की बॉडी पर गांठें उभरने लगती हैं। इसके अलावा अगर आप जरूरत से ज्यादा बाजरा पशुओं को खिला रहे हैं, तो उनमें अफारे की समस्या देखने को मिल सकती है। पशु चिकित्सक और एक्सपर्ट का कहना है, कि कभी भी किसी जानवर को बिना डॉक्टर की सलाह के बाजरा नहीं खिलाया जाना चाहिए। अगर आप इसे खिला भी रहे हैं, तो इसकी मात्रा हमेशा सीमित रखें।

IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

दुनिया को समझ आया बाजरा की वज्र शक्ति का माजरा, 2023 क्यों है IYoM

पोषक अनाज को भोजन में फिर सम्मान मिले - तोमर भारत की अगुवाई में मनेगा IYoM-2023 पाक महोत्सव में मध्य प्रदेश ने मारी बाजी वो कहते हैं न कि, जब तक योग विदेश जाकर योगा की पहचान न हासिल कर ले, भारत इंडिया के तौर पर न पुकारा जाने लगे, तब तक देश में बेशकीमती चीजों की कद्र नहीं होती। कमोबेश कुछ ऐसी ही कहानी है देसी अनाज बाजरा की।

IYoM 2023

गरीब का भोजन बताकर भारतीयों द्वारा लगभग त्याज्य दिये गए इस पोषक अनाज की महत्ता विश्व स्तर पर साबित होने के बाद अब इस अनाज
बाजरा (Pearl Millet) के सम्मान में वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM) के रूप में राष्ट्रों ने समर्पित किया है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
मिलेट्स (MILLETS) मतलब बाजरा के मामले में भारत की स्थिति, लौट के बुद्धू घर को आए वाली कही जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। पीआईबी (PIB) की जानकारी के अनुसार केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जुलाई मासांत में आयोजित किया गया पाक महोत्सव भारत की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 लक्ष्य की दिशा में सकारात्मक कदम है। पोषक-अनाज पाक महोत्सव में कुकरी शो के जरिए मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा, अथवा मोटे अनाज पर आधारित एवं मिश्रित व्यंजनों की विविधता एवं उनकी खासियत से लोग परिचित हुए। आपको बता दें, मिलेट (MILLET) शब्द का ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज संबंधी कुछ संदर्भों में भी उपयोग किया जाता है। ऐसे में मिलेट के तहत बाजरा, जुवार, कोदू, कुटकी जैसी फसलें भी शामिल हो जाती हैं। पीआईबी द्वारा जारी की गई सूचना के अनुसार महोत्सव में शामिल केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मिलेट्स (MILLETS) की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

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अपने संबोधन में मंत्री तोमर ने कहा है कि, “पोषक-अनाज को हमारे भोजन की थाली में फिर से सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए।” उन्होंने जानकारी में बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। यह आयोजन भारत की अगु़वाई में होगा। इस गौरवशाली जिम्मेदारी के तहत पोषक अनाज को बढ़ावा देने के लिए पीएम ने मंत्रियों के समूह को जिम्मा सौंपा है। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने दिल्ली हाट में पोषक-अनाज पाक महोत्सव में (IYoM)- 2023 की भूमिका एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि, अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रमों के आयोजन की विस्तृत रूपरेखा तैयार की गई है।

बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की वज्र शक्ति का राज

ऐसा क्या खास है मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा या मोटे अनाज में कि, इसके सम्मान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरा एक साल समर्पित कर दिया गया। तो इसका जवाब है मिलेट्स की वज्र शक्ति। यह वह शक्ति है जो इस अनाज के जमीन पर फलने फूलने से लेकर मानव एवं प्राकृतिक स्वास्थ्य की रक्षा शक्ति तक में निहित है। जी हां, कम से कम पानी की खपत, कम कार्बन फुटप्रिंट वाली बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की उपज सूखे की स्थिति में भी संभव है। मूल तौर पर यह जलवायु अनुकूल फसलें हैं।

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शाकाहार की ओर उन्मुख पीढ़ी के बीच शाकाहारी खाद्य पदार्थों की मांग में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हो रही है। ऐसे में मिलेट पॉवरफुल सुपर फूड की हैसियत अख्तियार करता जा रहा है। खास बात यह है कि, मिलेट्स (MILLETS) संतुलित आहार के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा में भी असीम योगदान देता है। मिलेट (MILLET) या फिर बाजरा या मोटा अनाज बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन और खनिजों जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भंडार है।

त्याज्य नहीं महत्वपूर्ण हैं मिलेट्स - तोमर

आईसीएआर-आईआईएमआर, आईएचएम (पूसा) और आईएफसीए के सहयोग से आयोजित मिलेट पाक महोत्सव के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि, “मिलेट गरीबों का भोजन है, यह कहकर इसे त्याज्य नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे भारत द्वारा पूरे विश्व में विस्तृत किए गए योग और आयुर्वेद के महत्व की तरह प्रचारित एवं प्रसारित किया जाना चाहिए।” “भारत मिलेट की फसलों और उनके उत्पादों का अग्रणी उत्पादक और उपभोक्ता राष्ट्र है। मिलेट के सेवन और इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता प्रसार के लिए मैं इस प्रकार के अन्य अनेक आयोजनों की अपेक्षा करता हूं।”

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मिलेट और खाद्य सुरक्षा जागरूकता

मिलेट और खाद्य सुरक्षा संबंधी जागरूकता के लिए होटल प्रबंधन केटरिंग तथा पोषाहार संस्थान, पूसा के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। मुख्य अतिथि तोमर ने मिलेट्स आधारित विभिन्न व्यंजनों का स्टालों पर निरीक्षण कर टीम से चर्चा की। महोत्सव में बतौर प्रतिभागी शामिल टीमों को कार्यक्रम में पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित किया गया।

मध्य प्रदेश ने मारी बाजी

मिलेट से बने सर्वश्रेष्ठ पाक व्यंजन की प्रतियोगिता में 26 टीमों में से पांच टीमों को श्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर चुना गया था। इनमें से आईएचएम इंदौर, चितकारा विश्वविद्यालय और आईसीआई नोएडा ने प्रथम तीन क्रम पर स्थान बनाया जबकि आईएचएम भोपाल और आईएचएम मुंबई की टीम ने भी अंतिम दौर में सहभागिता की।

इनकी रही उपस्थिति

कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री कैलाश चौधरी, कृषि सचिव मनोज आहूजा, अतिरिक्त सचिव लिखी, ICAR के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र और IIMR, हैदराबाद की निदेशक रत्नावती सहित अन्य अधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे। इस दौरान उपस्थित गणमान्य नागरिकों की सुपर फूड से जुड़ी जिज्ञासाओं का भी समाधान किया गया। महोत्सव के माध्यम से मिलेट से बनने वाले भोजन के स्वास्थ्य एवं औषधीय महत्व संबंधी गुणों के बारे में लोगों को जागरूक कर इनके उपयोग के लिए प्रेरित किया गया। दिल्ली हाट में इस महोत्सव के दौरान पोषण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गईं। इस विशिष्ट कार्यक्रम में अनेक स्टार्टअप ने भी अपनी प्रस्तुतियां दीं। 'छोटे पैमाने के उद्योगों व उद्यमियों के लिए व्यावसायिक संभावनाएं' विषय पर आधारित चर्चा से भी मिलेट संबंधी जानकारी का प्रसार हुआ। अंतर राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत नुक्कड़ नाटक तथा प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं जैसे कार्यक्रमों के तहत कृषि मंत्रालय ने मिलेट के गुणों का प्रसार करने की व्यापक रूपरेखा बनाई है। वसुधैव कुटुंबकम जैसे ध्येय वाक्य के धनी भारत में विदेशी अंधानुकरण के कारण शिक्षा, संस्कृति, कृषि कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 जैसी पहल भारत की पारंपरिक किसानी के मूल से जुड़ने की अच्छी कोशिश कही जा सकती है।
अब भारतीय सेना भी बाजरा से बने खाद्य पदार्थों का सेवन किया करेगी

अब भारतीय सेना भी बाजरा से बने खाद्य पदार्थों का सेवन किया करेगी

बाजरा यानी मोटे अनाज में प्रोटीन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में विघमान होते हैं। वहीं, फाइटोकेमिकल्स का यह एक बेहतरीन स्रोत भी होता है। ऐसी स्थिति में इसका सेवन करने से सैनिक स्वस्थ और सेहतमंद होंगे। बतादें कि अब भारतीय सेना ने मोटे अनाज को अपने खानपान की सूची में शम्मिलित कर लिया है। अब से भारतीय सेना के जवान मोटे अनाज का सेवन करेंगे। भारतीय सेना द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित करने के उपरांत अपने भोजन में मोटे अनाज को स्थान देने का निर्णय लिया है। विशेष बात यह है, कि बॉर्डर पर सुरक्षा हेतु कार्यरत जवान भी बाजरे से निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन करेंगे। मोटे अनाज का सेवन करने से जवानों को प्रचूर मात्रा में पौष्टिक तत्व मिलेंगे एवं पूर्व के तुलनात्मक उनका स्वास्थ्य आधिक अच्छा रहेगा। खबरों के अनुसार, भारतीय सेना के जवान बाजरे के आटे से निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन करेंगे। तकरीबन 50 साल पहले सेना द्वारा मोटे अनाज को बंद कर दिया था। इसके स्थान पर गेहूं के आटे का इस्तेमाल किया जा रहा था। सेना की तरफ से आए एक बयान में बताया गया है, कि फिलहाल सैनिकों के लिए राशन में गेहूं एवं चावल के अतिरिक्त मोटे अनाज का भी इस्तेमाल किया जाएगा। मुख्य बात यह है, कि राशन में समकुल अनाज का 25 फीसद मोटा अनाज ही रहेगा। साथ ही, मोटे अनाज खरीद में रागी, ज्वार और बाजरा को प्राथमिकता प्रदान की जाएगी।

मोटे अनाज के सेवन से सैनिकों का मनोबल और ताकत बढ़ेगी

केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारें अपने अपने स्तर से मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए मिलेट्स कार्यक्रम का आयोजन कर रही हैं। इसके पीछे एक मुख्य वजह यह है, कि आज के दौर में परंपरागत और पौष्टिक आहार बिल्कुल विलुप्त होते जा रहे हैं। इनको खानपान में एक नवीन स्थान देने के लिए कई सारी पहल की जा रही है। भारतीय सेना में भी इसका इस्तेमाल होना शुरू हो गया है। क्योंकि इसके अंदर प्रोटीन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में विघमान होते हैं। साथ ही, फाइटोकेमिकल्स का यह एक उत्तम स्रोत भी होता है। यदि सेना के जवान इससे निर्मित भोजन का सेवन करेंगे तो सैनिक स्वस्थ रहेंगे। भारतीय सेना ने बताया है, कि "मोटे अनाज हमारे देश का पारंपरिक भोजन है। यह हमारे देश के भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल है। ऐसे में इसके सेवन से जवानों के अंदर रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाएगी। इससे जवान बीमार भी कम पड़ेंगे। साथ ही सैनिकों का मनोबल भी बढ़ेगा। बयान में ये भी कहा गया है, कि आने वाले दिनों में मोटा अनाज धीरे- धीरे दैनिक भोजन बन जाएगा।" ये भी पढ़े: किसान मोर्चा की खास तैयारी, म‍िलेट्स या मोटे अनाज को बढ़ावा देने का कदम

मोटे अनाज से निर्मित खाद्य पदार्थों को कैंटीन में भी रखा जाएगा

भारतीय सेना ने जवानों से आग्रह किया है, कि वह घरेलू खाद्यान पदार्थों में भी मोटे अनाज से निर्मित भोजन का इस्तेमाल जरूर करें। इसी कड़ी में सेना की कैंटीनों में मोटा अनाज रखने का आदेश भी दिया गया है। साथ ही, सेना के रसोइयों को भी मोटे अनाज के उपयोग से स्वादिष्ट व्यंजन बनाने हेतु विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जबकि, नॉदर्न बॉडर पर कार्यररत सैनिकों हेतु मोटे अनाज से निर्मित खाद्य पदार्थों एवं स्नैक्स पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। जिसके लिए सीएसडी कैंटीन के जरिये से मोटे अनाज द्वारा निर्मित खाद्य पदार्थों को प्रस्तुत किया जा रहा है।

मोटे अनाजों के उत्पादन से होगी पानी की बचत

बतादें, कि भारत सरकार के कहने के अनुसार संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2023 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है। बतादें कि पीएम मोदी विगत कई वर्षों से कहते आ रहे हैं कि किसानों की आय दोगुनी करेंगे। इसीलिए केंद्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहन दे रही है। इसके लिए केंद्र सरकार ने ‘श्री अन्न’ नामक एक योजना भी जारी करदी है। सरकार का कहना है, कि मोटे अनाज की खेती के जरिए काफी हद तक पानी की बचत होगी। इसकी वजह मोटे अनाज की खेती में सिंचाई की बहुत कम आवश्यता है। तो वहीं लोगों को पौष्टिक आहार भी खाने के लिए मिल पाएगा।
बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

हाल ही में राजस्थान के जयपुर में FICCI और कॉर्टेवा एग्रीसाइंस द्वारा राजस्थान सरकार के लिए मिलेट रोडमैप कार्यक्रम आयोजित किया। जिसका प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति का भारतभर में प्रदर्शन करना है। फिक्की द्वारा कोर्टेवा एग्रीसाइंस के साथ साझेदारी में 19 मई 2023, शुक्रवार के दिन जयपुर में मिलेट कॉन्क्लेव - 'लीवरेजिंग राजस्थान मिलेट हेरिटेज' का आयोजन हुआ। दरअसल, इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति को प्रदर्शित करना है। विभिन्न हितधारकों के मध्य एक सार्थक संवाद को प्रोत्साहन देना है। जिससे कि राजस्थान को बाजरा हेतु एक प्रमुख केंद्र के तौर पर स्थापित करने के लिए एक भविष्य का रोडमैप तैयार किया जा सके। इसी संबंध में टास्क फोर्स के अध्यक्ष के तौर पर कॉर्टेवा एग्रीसाइंस बाजरा क्षेत्र की उन्नति व प्रगति में तेजी लाने हेतु राजस्थान सरकार द्वारा बाजरा रोडमैप कवायद का नेतृत्व किया जाएगा।

इन संस्थानों एवं समूहों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया

कॉन्क्लेव में कृषि व्यवसाय आतिथ्य एवं पर्यटन, नीति निर्माताओं, प्रसिद्ध शोध संस्थानों के प्रगतिशील किसानों, प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। पैनलिस्टों ने बाजरा मूल्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण समस्याओं का निराकरण करने एवं एक प्रभावशाली हिस्सेदारी को उत्प्रेरित करने के लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने पर विचार-विमर्श किया। चर्चा में उन फायदों और संभावनाओं की व्यापक समझ उत्पन्न करने पर भी चर्चा की गई। जो कि बाजरा टिकाऊ पर्यटन और स्थानीय समुदायों की आजीविका दोनों को प्रदान कर सकता है। ये भी देखें: IYoM: भारत की पहल पर सुपर फूड बनकर खेत-बाजार-थाली में लौटा बाजरा-ज्वार

श्रेया गुहा ने मिलेट्स के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त किए

श्रेया गुहा, प्रधान सचिव, राजस्थान सरकार का कहना है, कि राजस्थान को प्रत्येक क्षेत्र में बाजरे की अपनी विविध रेंज के साथ, एक पाक गंतव्य के तौर पर प्रचारित किया जाना चाहिए। पर्यटन उद्योग में बाजरा का फायदा उठाने का बेहतरीन अवसर है। इस दौरान आगे उन्होंने कहा, "स्टार्टअप और उद्यमियों के लिए बाजरा का उपयोग करके विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लक्षित करके नवीन व्यंजनों और उत्पादों को विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। बाजरा दीर्घकाल से राजस्थान के पारंपरिक आहार का एक अभिन्न भाग रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं राजस्थान 'बाजरा' का प्रमुख उत्पादक राज्य है। बाजरा को पानी और जमीन सहित कम संसाधनों की जरूरत पड़ती है। जिससे वह भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद उत्पाद बन जाता है। जितेंद्र जोशी, चेयरमैन, फिक्की टास्क फोर्स ऑन मिलेट्स एंड डायरेक्टर सीड्स, कोर्टेवा एग्रीसाइंस - साउथ एशिया द्वारा इस आयोजन पर टिप्पणी करते हुए कहा गया है, कि "राजस्थान, भारत के बाजरा उत्पादन में सबसे बड़ा योगदानकर्ता के रूप में, अंतरराष्ट्रीय वर्ष में बाजरा की पहल की सफलता की चाबी रखता है। आज के मिलेट कॉन्क्लेव ने राजस्थान की बाजरा मूल्य श्रृंखला को आगे बढ़ाने के रोडमैप पर बातचीत करने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए एक मंच के तौर पर कार्य किया है। यह व्यापक दृष्टिकोण राज्य के बाजरा उद्योग हेतु न सिर्फ स्थानीय बल्कि भारतभर में बड़े अच्छे अवसर उत्पन्न करेगा। इसके लिए बाजरा सबसे अच्छा माना गया है।

वर्षा पर निर्भर इलाकों के लिए कैसी जलवायु होनी चाहिए

दरअसल, लचीली फसल, किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी और संपूर्ण भारत के लिए पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराते हुए टिकाऊ कृषि का समर्थन करना। इसके अतिरिक्त बाजरा कृषि व्यवसायों हेतु नवीन आर्थिक संभावनाओं के दरवाजे खोलता है। कोर्टेवा इस वजह हेतु गहराई से प्रतिबद्ध है और हमारे व्यापक शोध के जरिए से राजस्थान में जमीनी कोशिशों के साथ, हम किसानों के लिए मूल्य जोड़ना सुचारू रखते हैं। उनकी सफलता के लिए अपने समर्पण पर अड़िग रहेंगे। ये भी देखें: भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र बाजरा मूल्य श्रृंखला में कॉर्टेवा की कोशिशों में संकर बाजरा बीजों की पेशकश शम्मिलित है, जो उनके वर्तमानित तनाव प्रतिरोध को बढ़ाते हैं। साथ ही, 15-20% अधिक पैदावार प्रदान करते हैं। साथ ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करते हैं एवं अंततः किसान उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाते हैं। जयपुर में कोर्टेवा का इंडिया रिसर्च सेंटर बरसाती बाजरा, ग्रीष्म बाजरा और सरसों के प्रजनन कार्यक्रम आयोजित करता है। "प्रवक्ता" जैसे भागीदार कार्यक्रम के साथ कोर्टेवा का उद्देश्य किसानों को सभी फसल प्रबंधन रणनीतियों, नए संकरों में प्रशिक्षित और शिक्षित करने के लिए प्रेरित करना है। उनको एक सुनहरे भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले बाकी किसान भाइयों को प्रशिक्षित करने में सहयोग करने हेतु राजदूत के रूप में शक्तिशाली बनाना है। इसके अतिरिक्त राज्य भर में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय बाजरा महोत्सव का उद्देश्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं को बाजरा के पारिस्थितिक फायदे एवं पोषण मूल्य पर बल देना है। कंपनी बाजरा किसानों को प्रौद्योगिकी-संचालित निराकरणों के इस्तेमाल के विषय में शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना बरकरार रखे हुए हैं, जो उन्हें पैदावार, उत्पादकता और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ाने में सशक्त बनाता है।

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस कृषि क्षेत्र में क्या भूमिका अदा करती है

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस (NYSE: CTVA) एक सार्वजनिक तौर पर व्यवसाय करने वाली, वैश्विक प्योर-प्ले कृषि कंपनी है, जो विश्व की सर्वाधिक कृषि चुनौतियों के लिए फायदेमंद तौर पर समाधान प्रदान करने हेतु उद्योग-अग्रणी नवाचार, उच्च-स्पर्श ग्राहक जुड़ाव एवं परिचालन निष्पादन को जोड़ती है। Corteva अपने संतुलित और विश्व स्तर पर बीज, फसल संरक्षण, डिजिटल उत्पादों और सेवाओं के विविध मिश्रण समेत अपनी अद्वितीय वितरण रणनीति के जरिए से लाभप्रद बाजार वरीयता पैदा करता है। कृषि जगत में कुछ सर्वाधिक मान्यता प्राप्त ब्रांडों एवं विकास को गति देने के लिए बेहतर ढ़ंग से स्थापित एक प्रौद्योगिकी पाइपलाइन सहित कंपनी पूरे खाद्य प्रणाली में हितधारकों के साथ कार्य करते हुए किसानों के लिए उत्पादकता को ज्यादा से ज्यादा करने के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि, यह उत्पादन करने वालों के जीवन को बेहतर करने के अपने वादे को पूर्ण करती है। साथ ही, जो उपभोग करते हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए उन्नति एवं विकास सुनिश्चित करते हैं। इससे संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए आप www.corteva.com पर भी विजिट कर सकते हैं।
तुर्की में अनाज संकट दूर करने के लिए यूक्रेन ने भेजी गेहूं की खेप

तुर्की में अनाज संकट दूर करने के लिए यूक्रेन ने भेजी गेहूं की खेप

नई दिल्ली। इन दिनों तुर्की (Turkey) में अनाज का भीषण संकट है। संकट के इस दौर में युक्रेन (Ukraine) ने गेहूं की एक बड़ी खेप भेजकर तुर्की की मदद की है। बता दें कि बीते माह भारत ने तुर्की को गेहूं की बड़ी खेप भेजी थी, लेकिन तुर्की ने भारत के गेहूं को सड़ा हुआ गेहूं बताकर उसे वापिस लौटा दिया था। हालांकि एक सप्ताह बाद ही तुर्की फिर से भारत से गेहूं की मांग करने लगा। भारत ने भी तुर्की को गेहूं भेजने का आश्वासन दिया। मगर इस बीच युक्रेन ने तुर्की को गेहूं की बड़ी खेप भेज दी है। तुर्की के रक्षा मंत्रालय के अनुसार यूक्रेनी बंदरगाह से अनाज कार्गो के साथ पहली शिपमेंट में तुर्की पहुंच चुका है।



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स्पूतनिक न्यूज एजेंसी के हवाले से दी गई खबर में राष्ट्रपति के प्रवक्ता, इब्राहिम कालिन ने कहा कि यूक्रेन से गेहूं की बड़ी खेप तुर्की आ चुकी है। उन्होंने बताया कि काला सागर के माध्यम से अनाज का निर्यात आने वाले दिनों में शुरू होगा। शीघ्र ही समुद्री अनाज परिवहन शुरू की जाएगी। जो आगामी वैश्विक खाद्य संकट में महत्वपूर्ण होगी।

यूक्रेनी संकट को कूटनीतिक रूप से हल करने का प्रयास करेगा तुर्की

- तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब इरदुगान के मुताबिक वह यूक्रेनी संकट को कूटनीतिक रूप से हल करने का प्रयास करेंगे। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में शांति बनाने के लिए राजनीतिक प्रयास किया जाएगा। शीघ्र ही इसका अच्छा समाचार मिलने की उम्मीद है। इसके लिए दोनों देशों के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से बातचीत चल रही है।

अनाज संकट बनेगा रूस और यूक्रेन युद्ध थामने में मददगार

- वैश्विक स्तर पर कई देशों में अनाज का भीषण संकट है। उधर रूस और यूक्रेन युद्ध अभी तक जारी है। अनाज संकट वाले देश इन दोनों देशों में शांति बनाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। लेकिन देखना यह है कि क्या वाकई अनाज संकट ही रूस और यूक्रेन युद्ध को थामने में कारगर साबित होगा।



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यूरोप की ब्रेडबास्केट माना जाता है यूक्रेन

- यूक्रेन गेहूं, मक्का और सूरजमुखी का बड़ा उत्पादक देश है। यूक्रेन में दुनिया का 10 फीसदी गेहूं, 12-17 फीसदी मक्का व 50 फीसदी सूरजमुखी का उत्पादन होता है। यही कारण है कि यूक्रेन को यूरोप का ब्रेडबास्केट के रूप में माना जाता है। रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते मानवीय आपदा की कगार पर हैं लोग - रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते ब्रिटेन जैसे कई देशों में रोजमर्या कई वस्तुओं की कीमत बढ़ गईं हैं। दुनियाभर में 47 मिलियन लोग मानवीय आपदा पर खड़े हैं। जिसका बड़ा कारण रूस और यूक्रेन युद्ध ही है। पश्चिम ने आरोप लगाया है कि रूस की कार्यवाइयों के कारण ही ऐसे हालात पैदा हुए हैं।
गेहूं और चावल की पैदावार में बेहतरीन इजाफा, आठ वर्ष में सब्जियों का इतना उत्पादन बढ़ा है

गेहूं और चावल की पैदावार में बेहतरीन इजाफा, आठ वर्ष में सब्जियों का इतना उत्पादन बढ़ा है

मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन के आंकड़ों के अनुरूप, भारत में चावल एवं गेहूं की पैदावार में बंपर इजाफा दर्ज किया गया है। 2014-15 के 4.2% के तुलनात्मक चावल और गेहूं की पैदावार 2021-22 में बढ़कर 5.8% पर पहुंच चुकी है। भारत में आम जनता के लिए सुखद समाचार है। किसान भाइयों के परिश्रम की बदौलत भारत ने खाद्य पैदावार में बढ़ोतरी दर्ज की है। पिछले 8 वर्ष के आकड़ों पर गौर फरमाएं तो गेहूं एवं चावल की पैदावार में बंपर बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, जो कि किसान के साथ- साथ सरकार के लिए भी एक अच्छा संकेत और हर्ष की बात है। विशेष बात यह है, कि सरकार द्वारा बाकी फसलों की खेती पर ध्यान केंद्रित किए जाने के उपरांत चावल और गेहूं की पैदावार में वृद्धि दर्ज की गई है।

आजादी के 75 सालों बाद भी तिलहन व दलहन पर आत्मनिर्भर नहीं भारत

व्यावसायिक मानकीकृत के अनुसार, भारत गेंहू और चावल का निर्यात करता है। विशेष रूप से भारत बासमती चावल का सर्वाधिक निर्यातक देश है। ऐसी स्थिति में सरकार चावल एवं गेंहू को लेकर बेधड़क रहती है। हालाँकि, स्वतंत्रता के 75 वर्षों के उपरांत भी भारत तिलहन एवं दाल के संबंध में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। मांग की आपूर्ति करने के लिए सरकार को विदेशों से दाल एवं तिलहन का आयात करने पर मजबूर रहती है। इसी वजह से दाल एवं खाद्य तेलों का भाव सदैव अधिक रहता है। इसकी वजह से सरकार पर भी हमेशा दबाव बना रहता है।

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ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार वक्त - वक्त पर किसानों को गेंहू - चावल से ज्यादा तिलहन एवं दलहन की पैदावार हेतु प्रोत्साहित करती रहती है। जिसके परिणामस्वरूप भारत को चावल और गेंहू की भांति तिलहन एवं दलहन के उत्पादन के मामले में भी आत्मनिर्भर किया जा सके।

बागवानी के उत्पादन में भी 1.5 फीसद का इजाफा

मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में गेहूं एवं चावल की पैदावार में बंपर इजाफा दर्ज किया गया है। साल 2014-15 के 4.2% के तुलनात्मक चावल और गेहूं की पैदावार 2021-22 में बढ़कर 5.8% पर पहुंच चुकी है। इसी प्रकार फलों और सब्जियों की पैदावार में भी 1.5 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। फिलहाल, भारत में कुल खाद्य उत्पादन में फल एवं सब्जियों की भागीदारी बढ़कर 28.1% पर पहुंच चुकी है।

एक माह के अंतर्गत 11 रुपये अरहर दाल की कीमत बढ़ी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान में दाल की कीमतें बिल्कुल बेलाम हो गई हैं। विगत एक माह के अंतर्गत कीमतों में 5 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। दिल्ली राज्य में अरहर दाल 126 रुपये किलो हो गया है। जबकि, एक माह पूर्व इसकी कीमत 120 रुपये थी। सबसे अधिक अरहर दाल जयपुर में महंगा हुआ है। यहां पर आमजन को एक किलो दाल खरीदने के लिए 130 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। साथ ही, एक माह पूर्व यह दाल 119 रुपये किलो बेची जा रही थी। मतलब कि एक माह के अंतर्गत अरहर दाल 11 रुपये महंगी हो चुकी है।
व्यापारियों ने बताया अनाज के ई ट्रेडिंग को गलत, सरकार के फैसले पर जताया विरोध

व्यापारियों ने बताया अनाज के ई ट्रेडिंग को गलत, सरकार के फैसले पर जताया विरोध

अनाज की ई-ट्रेडिंग (e-trading) को लेकर व्यापारियों के भीतर भारी गुस्सा है। इसको लेकर हरियाणा में बहुत सारे अनाज व्यापारी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि व्यापारियों को जबदस्ती परेशान करने के लिए सरकार ने ये आदेश जारी किया है, जो बिलकुल गलत है। व्यापारियों ने बताया कि इस धंधे में बहुत सारी समस्याएं हैं और मुनाफा दिनों दिन कम होता जा रहा है। ऐसे में सरकार व्यापारियों की सहायता न करके उनको तंग करने के लिए नए नए फरमान लेकर आ रही है, जो व्यापारियों के साथ-साथ किसानों के लिए भी अच्छा नहीं है। व्यापारियों ने बताया कि ई ट्रेडिंग के पहले, सरकार को किसानों के अनाज की खुली में बोली सुनिश्चित करनी चाहिए। जब खुली बोली के दामों से किसान संतुष्ट न हो तब ही फसल की ई ट्रेडिंग की स्वीकृति देनी चाहिए। इसके साथ ही व्यापारियों ने कहा कि सरकार को मंडी गेट पास (mandi gate-pass) बनवाने में भी छूट देना चाहिए और फसल की खरीद पर आढ़तियों को मिलने वाली पूरी 2.5 प्रतिशत आढ़त भी सुनिश्चित करनी चाहिए।

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ई मंडी के माध्यम से गांवों में होगी फसलों की खरीद इनके अलावा भी व्यापारियों की सरकार से अन्य शिकायतें हैं। व्यापारियों ने बताया कि पहले धान पर मार्केट फीस व एचआरडीएफ दोनों मिलाकर मात्र 1 प्रतिशत लगता था, लेकिन अब सरकार की तरफ से इसको बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है। इसे फिर से घटाकर 1 प्रतिशत किया जाना चाहिए। इसके साथ ही तुली हुई फसलों का उठान भी समय से नहीं होता जो कि गलत हैगेहूं और धान का उठान सरकार को निर्धारित 72 घंटे के समय से पहले ही करवाना चाहिए, क्योंकि अगर उठान में देरी होती है तो उसमें किसी भी प्रकार की हानि हो सकती है। कई बार तो अनाज खुले में पड़ा रहता है और बरसात के कारण भीग जाता है। इसके साथ ही सरकार को तय समय 72 घंटे के भीतर ही किसानों का भुगतान कर देना चाहिए, जो सरकार फिलहाल नहीं करती है। एक व्यापारी ने बताया कि सरकार गेहूं और धान की खरीदी में आढ़तियों का कमीशन और पल्लेदारों की पल्लेदारी देने में एक साल तक समय लगा देती है जो सरासर गलत है। क्योंकि जब कभी सरकार को व्यापारियों से पैसे मिलने होते हैं तो देरी के एवज में सरकार व्यापारियों के ऊपर पैनल्टी लगाती है और कभी कभार तो ब्याज भी लेती है। लेकिन यदि सरकार व्यापारियों, किसानों और मजदूरों के भुगतान में देरी करती है तो किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति नहीं करती। ये सरासर गलत है।

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व्यापारियों ने ई ट्रेडिंग को बेहद कमजोर व्यवस्था बताते हुए कहा कि, यह बेहद चिंता का विषय है कि सरकार इसकी खामियों पर ध्यान नहीं दे रही है। ई-ट्रेडिंग के माध्यम से किसान की फसल की बिक्री होने पर, फसल का भुगतान किस प्रकार से किया जाएगा यह सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है। क्योंकि सरकार किसानों से फसल ख़रीदने पर कई महीनों तक भुगतान नहीं करती। जबकि इसके लिए उन्होंने कानून बना रखा है कि सरकार फसल खरीदने के 72 घंटे के भीतर भुगतान कर देगी। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। इसके साथ ई-ट्रेडिंग के माध्यम से फसल की बिक्री होने पर फसल का उठाव कैसे किया जाएगा, इसको लेकर भी सरकार ने कोई ठोस रूप रेखा तैयार नहीं की है। व्यापारियों ने फसलों की ई ट्रेडिंग को किसानों को बर्बाद करने की साजिश बताया है। उन्होंने कहा कि अगर फसलों का व्यापार ई ट्रेडिंग के माध्यम से होने लगा तो फसलों के सारे व्यापार पर नियंत्रण देश के अमीर उद्योगपतियों का हो जाएगा। उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार यही चाहती है कि देश में उपलब्ध अनाज पर बड़े उद्योग घरानों का कब्जा हो जाए। जिससे ये बड़े उद्योगपति अनाज के दामों का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रख पाएं। ये जब चाहेंगे तब बाजार में अनाज की सप्प्लाई बढ़ाकर या कम करके अनाज के भावों को ऊपर नीचे कर सकते हैं। अनाज खरीदी में एकाधिकार आ जाने से ये किसानों को उनका अनाज कम दामों में बेंचने पर भी मजबूर कर सकते हैं।

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व्यापारियों ने कहा कि यदि अनाज का कंट्रोल उद्योगपतियों के हाथ में आ गया तो आटा, बेसन, दालों जैसी मूलभूत चीजों के दाम आसमान छूने लगेंगे। ये चीजें फिलहाल इतने ज्यादा ऊंचे दामों पर नहीं बिकती हैं क्योंकि इन चीजों को अभी ज्यादातर बाजार में खुला ही बेचा जाता है। व्यापारियों ने कहा कि सरकार किसानों को बर्बाद करने की कई साजिशें रचती रहती है, इसके तहत सरकार किसानों के लिए कई काले कानून लेकर आई थी, जिसे भारी विरोध के बाद वापस लेना पड़ा। ई-ट्रेडिंग के नाम पर आढ़तियों और किसानों को तंग किया जा रहा है। यदि किसान अपनी फसल पहले की तरह में मंडी में आढ़तियों को बेचेंगे तो किसानों को फसल के दाम ज्यादा मिल सकते हैं, क्योंकि मंडी में  किसानों के अनाज की खुली बोली कई आढ़तियों के बीच लगाई जाती है, जहां कम्पटीशन बना रहता है और वहां पर किसान अपनी फसल को ऊंचे दामों में बेंचकर ज्यादा मुनाफा कमा सकता है।
इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

भारत के बहुत सारे किसानों पर कृषि हेतु भूमि बहुत कम है। उस थोड़ी सी भूमि पर भी वह पहले से चली आ रही खेती को ही करते हैं, जिसे हम पारंपरिक खेती के नाम से जानते हैं। लेकिन इस प्रकार से खेती करके जीवन यापन भी करना एक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। परन्तु आज के समय में किसान स्मार्ट तरीकों की सहायता से 1 एकड़ जमीन से 1 लाख रूपये तक की आय अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में प्रत्येक व्यवसाय में लाभ देखने को मिलता है। कृषि विश्व का सबसे प्राचीन व्यवसाय है, जो कि वर्तमान में भी अपनी अच्छी पहचान और दबदबा रखता है। हालाँकि, कृषि थोड़े समय तक केवल किसानों की खाद्यान आपूर्ति का इकलौता साधन था। लेकिन वर्त्तमान समय में किसानों ने सूझ-बूझ व समझदारी से सफलता प्राप्त कर ली है। आजकल फसल उत्पादन के तरीकों, विधियों एवं तकनीकों में काफी परिवर्तन हुआ है। किसान आज के समय में एक दूसरे के साथ सामंजस्य बनाकर खेती किसानी को नई उचाईयों पर ले जाने का कार्य कर रहे हैं। आश्चर्यचकित होने वाली यह बात है, कि किसी समय पर एक एकड़ भूमि से किसानों द्वारा मात्र आजीविका हेतु आय हो पाती थी, आज वही किसान एक एकड़ भूमि से बेहतर तकनीक एवं अच्छी फसल चयन की वजह से लाखों का मुनाफा कमा सकता है। यदि आप भी कृषि से अच्छा खासा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको भूमि पर एक साथ कई सारी फसलों की खेती करनी होगी। सरकार द्वारा भी किसानों की हर संभव सहायता की जा रही है। किसानों को आर्थिक मदद से लेकर प्रशिक्षण देने तक सरकार उनकी सहायता कर रही है।

वृक्ष उत्पादन

किसान पेड़ की खेती करके अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं। लेकिन उसके लिए किसानों को अपनी एकड़ भूमि की बाडबंदी करनी अत्यंत आवश्यक है। जिससे कि फसल को जंगली जानवरों की वजह से होने वाली हानि का सामना ना करना पड़े। पेड़ की खेती करते समय किसान अच्छी आमदनी देने वाले वृक्ष जैसे महानीम, चन्दन, महोगनी, खजूर, पोपलर, शीशम, सांगवान आदि के पेड़ों का उत्पादन कर सकते हैं। बतादें, कि इन समस्त पेड़ों को बड़ा होने में काफी वर्ष लग जाते हैं। किसान भूमि की मृदा एवं तापमान अनुरूप फलदार वृक्ष का भी उत्पादन कर सकते हैं। फलदार वृक्षों से फल उत्पादन कर अच्छी कमाई की जा सकती है।

पशुपालन

पेड़ लगाने के व खेत की बाडबंदी के उपरांत सर्वप्रथम गाय या भैंस की बेहतर व्यवस्था करें। क्योंकि गाय व भैंस के दूध को बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जाता है। साथ ही, इन पशुओं के गोबर से किसान अपनी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद की व्यवस्था भी कर सकते हैं। किसान चाहें तो पेड़ उत्पादन सहित खेत के सहारे-सहारे पशुओं हेतु चारा उत्पादन भी कर सकते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि बहुत से पशु एक दिन के अंदर 70-80 लीटर तक दूध प्रदान करते हैं। किसान बाजार में दूध को विक्रय कर प्रतिमाह हजारों की आय कर सकते हैं।


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मौसमी सब्जियां

किसान अपनी एक एकड़ भूमि का कुछ भाग मौसमी सब्जियों का मिश्रित उत्पादन कर सकते हैं। यदि किसान चाहें तो वर्षभर मांग में रहने वाली सब्जियां जैसे कि अदरक, फूलगोभी, टमाटर से लेकर मिर्च, धनिया, बैंगन, आलू , पत्तागोभी, पालक, मेथी और बथुआ जैसी पत्तेदार सब्जियों का भी उत्पादन कर सकते हैं। इन सब सब्जियों की बाजार में अच्छी मांग होने की वजह से तीव्रता से बिक जाती हैं। साथ इन सब्जिओं की पैदावार भी किसान बार बार कटाई करके प्राप्त हैं। किसान आधा एकड़ भूमि में पॉलीहाउस के जरिये इन सब्जियों से उत्पादन ले सकते हैं।

अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन

देश में प्रत्येक सीजन में अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन किया जाता है, सर्वाधिक दाल उत्पादन खरीफ सीजन में किया जाता हैं। बाजरा, चावल एवं मक्का का उत्पादन किया जाता है, वहीं रबी सीजन के दौरान सरसों, गेहूं इत्यादि फसलों का उत्पादन किया जाता है। इसी प्रकार से फसल चक्र के अनुसार प्रत्येक सीजन में अनाज, दलहन अथवा तिलहन का उत्पादन किया जाता है। किसान इन तीनों फसलों में से किसी भी एक फसल का उत्पादन करके 4 से 5 माह के अंतर्गत अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं।

सोलर पैनल

आजकल देश में सौर ऊर्जा के उपयोग में वृध्दि देखने को मिल रही है। बतादें, कि बहुत सारी राज्य सरकारें तो किसानों को सोलर पैनल लगाने हेतु धन प्रदान कर रही हैं। सोलर पैनल की वजह से किसानों को बिजली एवं सिंचाई में होने वाले खर्च से बचाया जा सकता है। साथ ही, सौर ऊर्जा से उत्पन्न विघुत के उत्पादन का बाजार में विक्रय कर लाभ अर्जित किया जा सकता है। जो कि प्रति माह किसानों की अतिरिक्त आय का साधन बनेगी। विषेशज्ञों द्वारा किये गए बहुत सारे शोधों में ऐसा पाया गया है, सोलर पैनल के नीचे रिक्त स्थान पर सुगमता से कम खर्च में बेहतर सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने गेंहू के भावों को नियंत्रण करने के लिए जारी की यह योजना

केंद्र सरकार ने गेंहू के भावों को नियंत्रण करने के लिए जारी की यह योजना

आटे के भावों में बढ़ोत्तरी होने की वजह से केंद्र सरकार बेहद चिंतित है। हाल ही में जारी की गई ओएमएसएस नीति केंद्र सरकार द्वारा आटे की कीमतों के नियंत्रण हेतु लाई गई है। इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार लाखों टन गेहूं बाजार मेें लेकर आएगी, भारत में बढ़ते अनाज के भाव को नियंत्रित करने हेतु केंद्र सरकार बेहतर निर्णय ले रही है। बीते कुछ महीनों में देश के अंदर गेहूं के मूल्यों मेें काफी वृद्धि देखने को मिली है। जिसकी वजह से आटे का भाव भी स्वाभाविक रूप से बढ़ा है। बतादें, कि आटे के भाव में वृद्धि के कारण रोटी महंगी हो गयी है, जिससे आम लोगों के घर का बजट बिगड़ना शुरू हो गया है। हालाँकि, केंद्र सरकार इनके बजट को संतुलित करने के लिए पहल कर रही है। केंद्र सरकार का प्रयास है, कि आटे की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण किया जा सके। इस विषय में उच्च स्तर पर कार्य आरंभ हो चुका है।

आटे के भाव कैसे कम करेगी सरकार

मीडिया की खबरों के मुताबिक, केंद्रीय खाद्य मंत्रालय द्वारा गेहूं का भाव को लेकर साल 2023 हेतु एक खुली बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) नीति जारी की है। आपको बतादें, कि इस योजना के तहत केंद्र सरकार थोक विक्रेताओं को एफसीआई द्वारा 15 से 20 लाख टन अनाज जारी किया जायेगा। केंद्र सरकार गेहूं का अच्छा खासा भंडारण रखती है। इसी वजह से अनाज की समस्या उत्पन्न नहीं होगी, साथ ही इस वर्ष गेहूं की बुवाई भी बहुत ज्यादा हो रही है। देश में गेहूं की फसल का क्षेत्रफल तीव्रता से बढ़ रहा है।

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आटे की कीमतों में वृद्धि का कारण क्या है

यदि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों को देखें तब हम पायेंगे कि बीते वर्ष इसी गेहूं का औसत खुदरा भाव 28.53 रुपये प्रति किलोग्राम था। दूसरी तरफ इसी समय में 27 दिसंबर 2022 को गेहूं का खुदरा भाव 32.25 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है। गेहूं के भाव में वृद्धि तो आटे के भाव को भी इसने काफी प्रभावित किया है। बतादें कि आटे का भाव एक वर्ष पूर्व 31.74 रुपये प्रति किलोग्राम था। लेकिन इस वर्ष इसमें बढ़ोत्तरी होकर 37.25 रुपये प्रति किलोग्राम कीमत हो गई है। बतादें, कि केंद्र सरकार की ओएमएसएस नीति अत्यंत आवश्यक तो है, ही साथ ही बेहद महत्वपूर्ण भी है। भारत में अनाज संकट की परिस्थिति दिखने एवं सरकारी उपक्रम, भारतीय खाद्य निगम (FCI) को स्वीकृति प्रदान करती है, कि थोक उपभोक्ताओं एवं निजी व्यापारियों को खुले बाजार में पूर्व-निर्धारित मूल्यों पर गेहूं एवं चावल आदि खाद्यान उत्पाद विक्रय कर दिए जाएंगे। इसकी सहायता से बाजार में उत्पन्न हो रहे, खाद्यान संकट को खत्म किया जाता है।

आखिर क्यों आयी गेंहू के उत्पादन में कमी

केंद्र सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक, पिछले वर्ष गेहूं की पैदावार में घटोत्तरी सामने आयी थी। इसकी मुख्य वजह यूक्रेन-रूस युद्ध एवं इसके अतिरिक्त लू का प्रभाव भी गेहूं के उत्पादन पर देखने को मिला है। लू की वजह से गेहूं की फसल को काफी हानि का सामना करना पड़ा है। अगर हम केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देखें तो 15 दिसंबर तक केंद्र के पास लगभग 180 लाख टन गेहूं एवं 111 लाख टन चावल का भंडारण था। बतादें कि आपूर्ति में कमी आने की वजह से फसल साल 2021-22 (जुलाई-जून) में गेहूं की पैदावार में घटोत्तरी होकर 10 करोड़ 68.4 लाख टन तक बचना है। एक वर्ष पूर्व यह वर्ष 10 करोड़ 95.9 लाख टन था। आगामी गेहूं खरीद अप्रैल 2023 से आरंभ होगी।

यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

साल 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार मिलेट्स के क्षेत्रफल को बढ़ाएगी। प्रदेश सरकार इस रकबे को 11 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 25 लाख तक करेगी। राज्य सरकार ने अपने स्तर से तैयारियों का शुभारंभ क्र दिया है। आने वाले साल 2023 को दुनिया मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाएगी। मिलेट्स वर्ष मनाए जाने की पहल एवं इसकी शुरुआत में भारत सरकार की अहम भूमिका रही है। भारत में मिलेट्स का उत्पादन अन्य सभी देशों से अधिक होता है। देश का मोटा अनाज पूरी दुनिया में अपना एक विशेष स्थान रखता है। इसी वजह से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी मोटे अनाज को उत्सव के तौर पर मनाकर देश की प्रसिद्ध को दुनियाभर में फैलाना चाहते हैं। कुछ ही दिन पहले मोदी जी ने दिल्ली में आयोजित हुए एक कार्यक्रम में मोटे अनाज का बना हुआ खाना खाया था। भारत के विभिन्न राज्यों में मोटा अनाज का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। मिलेट्स इयर आने की वजह से उत्तर प्रदेश राज्य में मोटे अनाज के उत्पादन का क्षेत्रफल बाद गया है।

उत्तर प्रदेश राज्य कितने हैक्टेयर में करेगा मोटे अनाज का उत्पादन

खबरों के मुताबिक, प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने मिलेट्स इयर के संबंध में राज्य के कृषि विभाग के अधिकारीयों को बुलाकर इस विषय पर बैठक की है। इस बैठक में जिस मुख्य विषय पर चर्चा की गयी वह यह था, कि वर्तमान में 11 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज का उत्पादन हो रहा है। इसको साल 2023 में 25 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाए। हालाँकि लक्ष्य थोड़ा ज्यादा बड़ा है, विभाग के अधिकारी पहले से ही इस बात के लिए तैयारी में जुट जाएँ।


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उत्तर प्रदेश सरकार ने कितना लक्ष्य तय किया है

राज्य सरकार द्वारा अधीनस्थों को आगामी वर्ष में मोटे अनाज का क्षेत्रफल दोगुने से ज्यादा वृद्धि का आदेश दिया है। बतादें, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटे अनाज से संबंधित पहल को बेहद ही गहनता पूर्वक लिया गया है। साथ ही, इस विषय के लिए उत्तर प्रदेश सरकार भी काफी गंभीरता दिखा रही है। उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्रफल का इलाका 86 फीसद हैं। बतादें, कि इस रकबे में दलहन, तिलहन, धान, गेहूं का उत्पादन किया जाता जाती है।

कहाँ से खरीदेगी सरकार बीज

कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देेश दिया गया है, कि कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के अधिकारियों से संपर्क साधें। राज्य में बुआई हेतु मोटे अनाज के बीज की बेहतरीन व्यवस्था की जाए। सबसे पहली बार 18 जनपदों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बाजरा खरीदा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में कितना किया जायेगा अनाज का उत्पादन

उत्तर प्रदेश के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में मोटे अनाज की मुख्य फसलें जिनका अच्छा उत्पादन भी होता है, वह ज्वार एवं बाजरा हैं। महाराष्ट्र राजस्थान, उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर बाजरा का उत्पादन किया जाता है। क्षेत्रफलानुसार बात की जाए तो उत्तर प्रदेश 9 .04 लाख हेक्टेयर, महाराष्ट्र में 6.88, राजस्थान में 43.48 लाख हेक्टेयर में बाजरे का उत्पादन किया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य की पैदावार प्रति हेक्टेयर 2156 किलो ग्राम है। राजस्थान का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 1049 किलोग्राम एवं महाराष्ट्र की पैदावार की बात करें तो 955 किलो ग्राम है।

ज्वार के उत्पादन का क्षेत्रफल कितना बढ़ा है

राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में ज्वार का अच्छा खासा उत्पादन होता है। क्षेत्रफल के तौर पर कर्नाटक प्रति हेक्टेयर प्रति क्विंटल पैदावार के मामले में अव्वल स्थान है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ज्वार की पैदावार बढ़ाने के लिए काफी जोर दे रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 में 1.71 लाख हेक्टेयर उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन वर्ष 2023 में इसको 1.71 लाख हैक्टेयर से बढ़ाकर 2.24 लाख हेक्टेयर तक पहुँचा दिया है। इसी प्रकार सावां व कोदो का रकबा भी पहले से दोगुना कर दिया गया है।
गेहलोत सरकार लाखों का अनुदान देकर अनाज प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करेगी

गेहलोत सरकार लाखों का अनुदान देकर अनाज प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करेगी

राजस्थान मिलेट प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत राज्य की 100 मिलेट प्रोसेसिंग इकाइयों को कुल खर्च का 50% फीसद वहीं बाकी समस्त इकाईयों को 25% फीसद सब्सिडी उपलब्ध कराने की योजना है। आवेदन करने की प्रक्रिया भी बेहद सुगम है। वर्ष 2023 में सारा विश्व अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में मनाया जाना है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य मोटे अनाजों की पैदावार को बढ़ाके इसको लोगों के भोजन में स्थापित करना है। इस उद्देश्य के चलते मिलेट (Millet) की फूड प्रोसेसिंग (Food Processing) को प्रोत्साहित किया जा रहा है। केंद्र सरकार सहित राज्य सरकारों द्वारा भी मिलेट के स्टार्ट अप, व्यवसाय एवं प्रोसेसिंग इकाइयों को प्रोत्साहन प्रदान कर रही हैं। इन इकाईयों के अंतर्गत मोटे अनाजों से विभिन्न खाद्य उत्पाद निर्मित किये जाते हैं। बहुत सारे लोगों के लिए सीधे मोटे अनाजों का उपभोग करना सुगम नहीं होता है। परंतु, मिलेट्स द्वारा निर्मित स्नैक्स को आहार में लेना काफी सुलभ होता है। यह मिलेट्स के उपभोग में वृद्धि करने का सर्वाधिक कारगर उपाय होता है। इसी वजह से मिलेट की प्रोसेसिंग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी क्रम के बीच में राजस्थान सरकार के जरिए राजस्थान मिलेट प्रोत्साहन योजना भी जारी की गई है, जिसके अंतर्गत 25 से 50% फीसद अनुदान का प्रावधान होता है।

मिलेट प्रसंस्करण हेतु अनुदान प्रदान किया जाएगा

राजस्थान मिलेट्स प्रोत्साहन मिशन के अंतर्गत राज्य में 100 प्रसंस्करण इकाईयों को खर्च का 50% प्रतिशत सब्सिडी मतलब अधिकतम धनराशि 40 लाख रुपये उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, बाकी बची प्रोसेसिंग इकाइयों को कुल खर्च पर 25% प्रतिशत सब्सिडी मतलब कि 50 लाख रुपये प्राप्त होंगे। अगर आप भी मिलेट्स के उत्पाद निर्मित करते हैं अथवा इसकी प्रोसेसिंग इकाई को स्थापित करने की सोच रहे हैं। तो आपको rajkisan.rajasthan.gov.in पर जाकर आवेदन करना होगा।

मिलेट प्रोत्साहन योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है

राजस्थान सरकार की मिलेट प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत प्रदेश में बाजरा, ज्वार जैसे अन्य दूसरे छोटे अनाजों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने एवं प्रसंस्करण के माध्यम से राज्य को मिलेट हब के रूप में विकसित करने की तैयारी है। इस योजना के अंतर्गत 100 करोड़ रुपये के खर्च से आगामी वर्षों में 15 लाख कृषकों को लाभ पहुँचाने की तैयारी है। इसमें से अनुमानित 10 लाख लघु और सीमांत किसानों को 25 करोड़ रुपये की लागत से उन्नत किस्मों के बीजों की निशुल्क मिनी किट एवं 2 लाख कृषकों को 20 करोड़ के खर्च से सूक्ष्म पोषक तत्व एवं कीटनाशकों की किट छूट पर उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इसी योजना के अंतर्गत प्रथम 100 प्रोसेसिंग यूनिट हेतु 40 करोड़ रुपये की सब्सिडी का प्रवाधान है।
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जीरा और ईसबगोल हेतु भी करोड़ों की सब्सिडी देगी सरकार

राजस्थान सरकार के नवीन निर्देशों के अनुसार, राजस्थान खाद्य प्रसंस्करण मिशन के अंतर्गत जोधपुर संभाग में जीरो एवं ईसबगोल के निर्यात आधारित 100 प्रोसेसिंग इकाईयों को कुल लागत पर 50% फीसद सब्सिड़ी मतलब कि अधिकतम 2 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता का प्रावाधान है। इसके अतिरिक्त, , झालावाड़ में संतरे की, जयपुर में टमाटर और आंवले की, कोटा, वारां, प्रतापगढ़ और चित्तौडगढ़ में लहसुन की बाड़मेर और जालोर में अनार की अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली और सवाई माधोपुर में सरसों की प्रसंस्करण इकाई के निर्माण हेतु भी 50% प्रतिशत अनुदान अथवा अधिकतम 2 करोड़ रुपये की सब्सिड़ी देने की योजना है।
श्री अन्न का सबसे बड़ा उत्पादक देश है भारत, सरकार द्वारा उत्पादन बढ़ाने के लिए किए जा रहे हैं कई प्रयास

श्री अन्न का सबसे बड़ा उत्पादक देश है भारत, सरकार द्वारा उत्पादन बढ़ाने के लिए किए जा रहे हैं कई प्रयास

विश्व भर में साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर मनाया जा रहा है। यह प्रस्ताव भारत द्वारा ही संयुक्त राष्ट्र संघ में दिया गया था। जिस पर 72 देशों ने अपना समर्थन दिया है। धीरे-धीरे पूरी दुनिया में मोटे अनाज जिसे श्री अन्न भी कहा जा रहा है। इसके महत्व के बारे में समझ बन रही है। मोटा अनाज वही अनाज है जो हमारे बड़े बुजुर्ग बहुत पहले से हमें इस्तेमाल करने के बारे में खाते आए हैं और इसे बहुत से रोगों का निवारण करने वाला अनाज माना गया है। ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, कोदो, कुटकी, सांवा, चीना, झंगोरा, कुट्टू, चौलाई और ब्राउन टॉप कुछ मोटे अनाज के उदाहरण हैं। यह अनाज ना सिर्फ सेहत के लिए लाभदायक होता है। बल्कि यह किसी भी तरह की जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। इसकी सबसे खास बात यह है, कि अगर कोई जमीन ज्यादा उपजाऊ नहीं है उस पर भी इस अनाज को उगाना संभव है। लोगों के बीच में मोटे अनाज की डिमांड होने के कारण आजकल बाजार में भी इसके काफी अच्छे दाम किसानों को मिल रहे हैं। किसान बहुत कम लागत के साथ अनाज का उत्पादन कर सकते हैं और अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। जैसा कि पहले से ही बताया जा चुका है, कि भारत में मोटे अनाज का चलन काफी समय से है। इसलिए किसान पहले से इसे उगाते हैं। सरकार द्वारा अनाज के उत्पादन के साथ-साथ मिलेट स्टार्टअप को भी बढ़-चढ़कर बढ़ावा दिया जा रहा है। नए केंद्रीय बजट में भी मोटे अनाज के प्रति लोगों की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए कई तरह के ऐलान किए हैं और सरकार ने श्री अन्न योजना चालू करने का प्लान बनाया है।

भारत में मिलेट उत्पादन में किस स्थान पर है?

फूड एवं एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा साझा किए गए आंकड़ों से पता चलता है, कि साल 2020 के दौरान विश्व भर में करीब 30.464 मिलियन मीट्रिक टन मोटे अनाज का उत्पादन हुआ है। जिसमें अकेले भारत की कुल भागीदारी 12.49 मीट्रिक टन की है। सरल शब्दों में हम लगभग विश्व भर का 41% मोटा अनाज उगा रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए सरकारी आंकड़ों से पता चलता है, कि देश में कुल 170 लाख तन प्रोडक्शन हुआ है, जो एशिया का 20% है। मिलेट उत्पादन करने में हमारे देश के कुछ राज्य जैसे राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश अव्वल हैं.
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इस तरह से हम यह कह सकते हैं, कि भारत श्रीअन्न का सबसे बड़ा उत्पादक व दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। भारतीय मिलेट्स अनुसंधान संस्थान हैदराबाद को भारत में मिलेट उत्पादन को बढ़ाने के लिए विकसित किया जा रहा है।

कौन से देश हैं मिलेट के निर्यातक

विश्व भर में सबसे ज्यादा मोटा अनाज अफ़्रीका में उगाया जाता है। लेकिन इसका उत्पादन सबसे ज्यादा भारत में होता है। निर्यात की बात की जाए तो अफ्रीका मिनट का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और भारत दूसरे नंबर पर आता है। यहां से यूएई, नेपाल, सऊदी अरब, लीबिया, ओमान, मिस्र, ट्यूनीशिया, यमन, ब्रिटेन और अमेरिका में ज्वार, बाजरा, रागी, कनेरा और कुटू को निर्यात किया जा रहा है।