अरहर की खेती से किसानों को ये किस्में दिलाएंगी शानदार मुनाफा
अरहर की खेती सदैव कृषकों के लिए फायदे का सौदा साबित हुई है। हालांकि, बाजार के उतार-चढ़ाव में अरहर का भाव कम-अधिक होता रहता है।
परंतु, अरहर की खेती करने वाले कृषकों के समक्ष एक चुनौती यह आती है, कि यह फसल काफी लंबे समय में पककर तैयार होती है। किसान दूसरी फसलों की बुवाई नहीं कर पाता है।
परंतु, वैज्ञानिकों ने अरहर की कुछ ऐसी भी किस्में तैयार की हैं, जो न सिर्फ कम समय में पककर तैयार होती हैं। साथ ही, उपज भी काफी अच्छी देती हैं।
इसके अतिरिक्त किसानों को अरहर की खेती में कुछ विशेष सावधानियों की आवश्यकता पड़ती है। बतादें, कि कृषकों को अरहर की रोपाई से पहले उसका बीजोपचार करना पड़ता है।
साथ ही, अरहर की बुवाई जून के माह में की जाती है। चलिए जानते हैं, कम समयावधि में तैयार होने वाली किस्मों की खूबियां व बीचोपचार के बारे में।
किसान भाई इन तीन किस्मों का उत्पादन कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं ?
अरहर की पूसा 992 किस्म
भूरे रंग, मोटा, गोल और चमकदार दाने वाली इस किस्म को वर्ष 2005 में विकसित किया गया था। ये किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले कम दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसको पकने में तकरीबन 140 से 145 दिन का समय लगता है।
दरअसल, यह किस्म प्रति एकड़ भूमि द्वारा 7 क्विंटल उत्पादन प्रदान कर सकती है। जानकारी के लिए बतादें, कि इस किस्म की खेती सर्वाधिक पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान राज्य में की जाती है।
अरहर की पूसा 16 किस्म
पूसा 16 जल्दी तैयार होने वाली बेहतरीन प्रजाति है। अरहर की इस किस्म की समयावधि 120 दिन की होती है। इस फसल में छोटे आकार का पौधा 95 सेमी से 120 सेमी लंबा होता है, इस किस्म का औसत उत्पादन 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है।
अरहर की आईपीए 203 किस्म
अरहर की आईपीए 203 किस्म की विशेषता यह है, कि इस किस्म में बीमारियों का आक्रमण नहीं होता है। साथ ही, इस किस्म की बुवाई करके फसल को बहुत सारे रोगों से संरक्षित किया जा सकता है।
साथ ही, इससे बेहतरीन उपज भी हांसिल कर सकते हैं। इसकी औसत उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है।
इस किस्म की समयावधि 150 दिन की होती है। साथ ही, अन्य किस्मों को तैयार होने में लगभग 220 से 240 दिन लगते हैं।
कृषक इस प्रकार बीज उपचार करें
आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसी भी फसल की खेती से पहले बीज उपचार अत्यंत आवश्यक है। बीज उपचार करने से रोगिक प्रभाव काफी कम पड़ते हैं।
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इसके लिए कार्बेंडाजिम नामक दवा को दो ग्राम प्रति किलो की दर से मिला लें। इसमें पानी मिलाकर बीज को किसी छाया वाली जगह पर चार घंटे के लिए रख दें। इसके बाद इसकी बुवाई करें। ऐसा करने से बीज पर किसी प्रकार का रोग आक्रामण नहीं करता है।
कृषक इस विधि से करें अरहर की खेती
सामान्यतः किसान अरहर की खेती छींटा विधि के माध्यम से करते हैं, जिससे कहीं अधिक तो कहीं कम बीज जाते हैं। इससे कहीं घनी तो कहीं खाली फसल तैयार होती है।
इससे फसलीय उपज में काफी कमी आती है, क्योंकि घना हो जाने से पौधों को समुचित धूप, पानी और खाद नहीं मिल पाता है। इसके लिए किसान को 20 सेंटीमीटर के फासले पर बीज लगाने चाहिए। इससे बीज दर भी काफी कम लगती है।