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हरियाणा राज्य में कृषि सम्बंधित उपकरणों पर मिल रहा ८० % सब्सिडी, समय से करलें आवेदन

हरियाणा राज्य में कृषि सम्बंधित उपकरणों पर मिल रहा ८० % सब्सिडी, समय से करलें आवेदन

आजकल कृषि जगत में कृषि उपकरणों की अहम भूमिका है, आधुनिक कृषि यंत्रों से किसान की मेहनत के साथ साथ उनकी लागत में भी बेहद कमी आयी है। पहले किसान काफी परिश्रम करके फसल को उगाते थे। लेकिन आधुनिक विज्ञान की सहायता से नवीन कृषि उपकरणों की खोज हो रही है, जिससे किसानों के लिए उपयोगी कृषि यंत्रों की उपलब्धता तीव्रता से बढ़ी है। सरकार उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कृषि सम्बंधित उपकरणों पर अनुदान देने की योजना लाती रहती है। इसी सन्दर्भ में फ़िलहाल हरियाणा सरकार किसानों के लिए ८० प्रतिशत तक का अनुदान देने का आह्वान कर चुकी है, जिसमें विभिन्न प्रकार की मशीनें जैसे कि बुवाई, छिड़काव और कटाई से सम्बंधित उपकरण भी शामिल हैं।

हरियाणा सरकार ८० प्रतिशत तक क्यों दे रही है कृषि यंत्रों पर अनुदान ?

किसानों की आर्थिक हालत को देखते हुए सरकार ये भली भांति जानती है कि बहुतायत किसान आधुनिक उपकरणों को खरीदने के लिए सक्षम नहीं है। लेकिन पैदावार में वृद्धि और किसान की लागत में कमी के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों की अत्यंत आवश्यकता है। सरकार किसानों की समस्या को समझते हुए उनके लिए ८० प्रतिशत अनुदान प्रदान करने की इस मुहिम से, किसानों को आर्थिक तंगी से निजात दिलाना चाहती है। साथ ही हरियाणा राज्य को काफी उन्नत राज्य बनाने की राह पर चलना शुरू कर रही है, क्योंकि हरियाणा राज्य में अधिकतर लोग कृषि आश्रित होते हैं, इसलिए कृषि जगत को अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी भी बोला जाता है। किसान की उन्नति से ही राज्य और देश की उन्नती का मार्ग जाता है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=LH7w59jnW-M[/embed]

कौन कौन से कृषि उपकरणों पर मिल रहा है अनुदान ?

हरियाणा राज्य सरकार द्वारा इन कृषि उपकरणों पर मिल रहा है अनुदान जिसमें, रोटावेटर, हे रेक मशीन, मोबाइल श्रेडर, रिप्पर बाइंडर, स्ट्रॉ बेलर, फ़र्टिलाइज़र ब्रॉडकास्टर, ट्रैक्टर ड्राइविंग पाउडर वीडर, लेसर लैंड लेवलर समेत ११ कृषि उपकरण सम्मिलित हैं। हरियाणा सरकार ने राज्य के किसानों के लिए कृषि विभाग के माध्यम से वेबसाइट https://agriharyana.gov.in/ पर जानकारी उपलब्ध कराई है, जहाँ किसान भाई आवेदन कर सकते हैं और इसके लिए कृषि केंद्र की सहायता भी ले सकते हैं।

पूर्व में भी पराली के अवशेष से निजात के लिए उपकरण अनुदान देने के लिए मांगे थे आवेदन

हरियाणा राज्य सरकार ने पराली से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए जरूरी कृषि उपकरणों पर अनुदान देने की घोषणा की और आवेदन करने के लिए बोला था, जिससे पराली के अवशेष को नष्ट किया जा सके और दिल्ली समेत अन्य शहरों को भी प्रदुषण की मार से बचाया जा सके।
रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर 80 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है ये राज्य सरकार, यहां करें आवेदन

रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर 80 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है ये राज्य सरकार, यहां करें आवेदन

रबी का सीजन प्रारंभ हो चुका है। ऐसे में खेतों की जुताई की जा रही है ताकि खेतों को बुवाई के लिए तैयार किया जा सके। बहुत सारे खेतों में अब भी पराली की समस्या बनी हुई है, जिसके कारण खेतों को पुनः तैयार करने में परेशानी आ रही है। खेतों से फसल अवशेषों को निपटाना बड़ा ही चुनौतीपूर्ण काम है, इसमें बहुत ज्यादा समय की बर्बादी होती है। अगर किसान एक बार पराली का प्रबंधन कर भी ले, तो इसके बाद भी खेत से बची-कुची ठूंठ को निकालने में भी किसान को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन यदि आज की आधुनिक खेती की बात करें तो बाजार में ऐसी कई मशीनें मौजूद है जो इस समस्या का समाधान चुटकियों में कर देंगी। इन मशीनों के प्रयोग से अवशेष प्रबंधन के साथ-साथ खेतों की उर्वरा शक्ति में भी बढ़ोत्तरी होगी। ऐसी ही एक मशीन आजकल बाजार में आ रही है जिसे रोटरी हार्वेस्टर मशीन कहा जाता है। यह मशीन फसल के अवशेषों को नष्ट करके खेत में ही फैला देती है। यह मशीन किसानों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। इस मशीन के फायदों को देखते हुए बिहार सरकार ने मशीन की खरीद पर किसानों को 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी देने के लिए कहा है।

क्या है रोटरी हार्वेस्टर मशीन

इस मशीन को रोटरी मल्चर भी कहा जाता है, यह मशीन बेहद आसानी से खेत में बचे हुए अनावश्यक अवशेषों को नष्ट करके खेत में फैला देती है, जिसके कारण खेत में पर्याप्त नमी बरकरार रहती है। इसके साथ ही खेत में फैले हुए अवशेष डीकंपोज होकर खाद में तब्दील हो जाते हैं। अवशेषों के प्रबंधन की बात करें तो यह मशीन खेत में उम्दा प्रदर्शन करती है।

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रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर बिहार सरकार कितनी देती है सब्सिडी

अगर रोटरी हार्वेस्टर मशीन की बात करें तो उस मशीन पर बिहार सरकार किसानों को 75 से 80 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान करती है। यह सब्सिडी बिहार का कृषि विभाग 'कृषि यंत्रीकरण योजना' के अंतर्गत किसानों को उपलब्ध करवाता है। बिहार सरकार के द्वारा जारी आदेश के अनुसार यदि बिहार का सामन्य वर्ग का किसान रोटरी हार्वेस्टर मशीन लेने के लिए आवेदन करता है, तो उसे बिहार सरकार मशीन की खरीद पर 75 प्रतिशत तक की सब्सिडी या अधिकतम 1,10,000 रुपये प्रदान करेगी। इसके साथ ही यदि बिहार का एससी-एसटी, ओबीसी और अन्य वर्ग का किसान रोटरी हार्वेस्टर मशीन खरीदना चाहता है, तो आवेदन करने के बाद सरकार उसे रोटरी मल्चर पर 80 प्रतिशत तक सब्सिडी और रूपये में अधिकतम 1,20,000 रुपये की सब्सिडी प्रदान करेगी।

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रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर सब्सिडी प्राप्त करने के लिए ऐसे करें आवेदन

बिहार सरकार के आदेश के अनुसार रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर सब्सिडी प्राप्त करने के लिए किसान को बिहार का निवासी होना जरूरी है। साथ ही उसके पास कृषि योग्य भूमि भी होनी चाहिए। ऐसे किसान जो रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर सब्सिडी प्राप्त चाहते हैं, वो बिहार कृषि विभाग के पोर्टल https://dbtagriculture.bihar.gov.in/ पर जाकर अपना ऑनलाइन आवेदन भर सकते हैं। किसानों को ऑनलाइन आवेदन भरते समय आधार कार्ड, पैन कार्ड, जमीन के कागजात, पासपोर्ट साइज फोटो, बैंक खाता संख्या और मोबाइल नंबर अपने साथ रखना चाहिए। इनकी डीटेल आवेदन भरते समय किसान से मांगी जाएगी। इसके अलावा यदि किसान कृषि यंत्रों से संबंधित किसी भी प्रकार की अन्य जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो वो कृषि विभाग के हेल्पलाइन नंबर 18003456214 पर भी संपर्क कर सकते हैं।

कृषि में लागत कम करें, मुनाफा खुद बढ़ेगा

कृषि में लागत कम करें, मुनाफा खुद बढ़ेगा

यूपी के किसान इन दिनों एक नए तरीका से काम कर रहे हैं। यह तरीका है नवीनतम तकनीकी का प्रयोग और प्राकृतिक खेती की तरफ झुकाव। अब जीरो बजट की खेती के तौर पर सरकार किसानों को हर संभव मदद कर रही है। किसानों को यह बात समझ में आ गई है, कि जब तक लागत कम नहीं होगा, उनका मुनाफा बढ़ने से रहा। उत्तर प्रदेश लगातार नए प्रयोग कर रहा है, यह प्रयोग खेती के क्षेत्र में भी दिख रहा है। यह किसानों के लिए लाभ का सौदा बनता जा रहा है। परंपरागत किसानी को कई किसानों ने बहुत पीछे छोड़ दिया है। अब वे खेती के नए प्रयोगों से गुजर रहे हैं, वे जीरो बजट खेती की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। इसमें यूपी की योगी सरकार उनकी मदद कर रही है। इन मामलों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद ही देख रहे हैं।


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मक्का, गेहूं, धान से फूल-सब्जी तक

एक दौर था, जब यूपी का किसान मक्का, गेहूं, धान की खेती पर ही पूरी तरह निर्भर था। अचरज की बात है, कि अब इन किसानों ने इन फसलों के साथ ही सब्जियों की भी खेती शुरू कर दी है। आचार्य देवव्रत के जीरो बजट खेती का फार्मूला इन किसानों को अब समझ में आ गया है। यही कारण है, कि अब किसान अपने घर के आगे-पीछे भी फूल-फल की खेती करने से हिचक नहीं रहे हैं।

जोर प्राकृतिक खेती पर

बीते दिनों यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि खेती में अत्याधुनिक तकनीकी का प्रयोग व प्राकृतिक खेती आज की जरूरत है। पुराने ढर्रे पर काम करने से कुछ खास हासिल होने वाला नहीं। अगर कुछ बढ़िया करना है, तो नई तकनीकी को आजमाना पड़ेगा, पूरी दुनिया में खेती के क्षेत्र में नए प्रयोग हो रहे हैं। अगर यूपी इनमें पिछड़ा तो पिछड़ता ही चला जाएगा।

गो आधारित खेती

योगी ने सुझाव दिया कि क्यों न गौ आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाए यह जीरो बजट खेती है। इसके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। उनका मानना था, कि प्राकृतिक खेती में तकनीकी से उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। हां, इसके लिए थोड़ी जागरूकता व सावधानी बरतने की जरूरत है। अगर हम ऐसा कर लेते हैं, तो प्राकृतिक खेती के जरिये कम लागत में अधिक उत्पादकता प्राप्त कर किसान भाई अपनी आमदनी अच्छी-खासी बढ़ा सकते हैं। परंपरागत खेती को परंपरागत तरीके से करने में कोई लाभ नहीं है, अगर परंपरागत खेती को नई तकनीकी के इस्तेमाल के साथ किया जाए तो नतीजे शानदार आएंगे। योगी का कहना था, कि आधुनिक तरीके से खेती करने के साथ किसानों को बाजार की मांग और कृषि जलवायु क्षेत्र की अनुकूलता के आधार पर बागवानी, सब्जी व सह फसली खेती की ओर भी अग्रसर होना होगा। इससे उनकी अधिक से अधिक आमदनी हो सकेगी।

खेती कमाई का बड़ा साधन

आपको बता दें कि यूपी, आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य तो है ही, खेती-किसानी ही यहां की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा जरिया भी है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि देश की सबसे अच्छी उर्वर भूमि और सबसे अच्छा जल संसाधन उत्तर प्रदेश में ही है। यहां की भूमि की उर्वरकता व जल संसाधन की ही देन है, कि देश की कुल कृषि योग्य भूमि का 12 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद देश के खाद्यान्न उत्पादन में अकेले उत्तर प्रदेश का योगदान 20 प्रतिशत का है।


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तीन गुना तक बढ़ सकता है प्रदेश का कृषि उत्पादन

यूपी के मुख्यमंत्री मानते हैं, कि प्रदेश का कृषि उत्पादन अभी और तीन गुणा बढ़ सकता है। इसके लिए हमें बेहतर किस्म के बीज की जरूरत तो पड़ेगी ही इसके साथ ही आधुनिक कृषि उपकरणों की भी जरूरत पड़ेगी। हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि खेती की लागत कम हो और मुनाफा बढ़े। यूपी सरकार इसके लिए व्यापक अभियान चला भी रही है।
अब ड्रोन ने कर दिया किसानों का काम आसान, मिल रही बंपर सब्सिडी

अब ड्रोन ने कर दिया किसानों का काम आसान, मिल रही बंपर सब्सिडी

किसानों के लिए खेती करना आसान बनाने के लिए वैज्ञानिक लगातार प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिक नए-नए तरीके का प्रयोग कर खेती किसानी को बेहद आसान बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे किसानों को काफी सहूलियत मिल रही है। वैज्ञानिकों के द्वारा नए-नए कृषि यंत्र और उपकरणों की खोज लगातार जारी है, जिसका प्रयोग किसान अपनी खेती के लिए कर रहे हैं, और कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसका एक अनोखा उदाहरण ड्रोन है, आपको बतादें कि किस ड्रोन की मदद से किसान आसानी से खेती कर पाएंगे।

क्यों दिया जा रहा है ड्रोन उपयोग को बढ़ावा

ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा देने का मुख्य कारण बताया जाता है, कि किसी किसान की फसल में अचानक बीमारी आ जाने के कारण एक साथ पूरे फसल पर स्प्रे करना असंभव होता था, और उससे किसान को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता था। लेकिन इस ड्रोन तकनीक के माध्यम से किसान अब एक बार में काफी बड़े एरिया में छिड़काव कर सकेंगे और अपनी फसल को बीमारी से बचा सकेंगे। ड्रोन के उपयोग से किसानों को समय की भी बचत होगी और दवा की भी बचत होगी।


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उदाहरण के लिए समझे तो, अगर किसी किसान ने 40 एकड़ भूमि में खेती की है और फसल में कीड़ा लग गया है, तो पहले इससे निजात पाने के लिए छिड़काव में काफी ज्यादा वक्त लगता था। लेकिन अब तकरीबन 1 दिन में ड्रोन की सहायता से सारी फसल पर कीटनाशक का छिड़काव हो पाएगा और किसान अपनी फसल बचा सकेंगे।

किसानों को मिलेगा 4 लाख तक की सब्सिडी

सबसे अहम बात यह है, कि लघु और सीमांत वर्ग के किसान इस ड्रोन को कैसे खरीद पाएंगे। क्योंकि इस ड्रोन की कीमत काफी ज्यादा होगी। जो लघु और सीमांत किसान के लिए आसान नहीं होगा। लघु और सीमांत किसान की इस परेशानी को देखते हुए केंद्र सरकार सामने आई है और किसानों को सब्सिडी देने की बात कही गई है। कृषि मंत्रालय के द्वारा एक ट्वीट आया है, जिसके मुताबिक “ड्रोन ऐप्लिकेशन के माध्यम से सहकारी समिति किसानों ,एफपीओ और ग्रामीण उद्यमियों को कस्टम हाइरिंग सेंटर द्वारा ड्रोन की मूल लागत के ४०% दर या अधिकतम ₹४,००,००० तक की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। [embed]https://twitter.com/AgriGoI/status/1596426264440471552[/embed] यह 40 फीसदी सब्सिडी सामान्य वर्ग के किसानों के लिए ड्रोन खरीदने पर दिया जा रहा है, वहीं, कृषि से स्नातक युवा, एससी/ एसटी और महिला किसान को ड्रोन खरीद पर 50 फीसदी तक का अनुदान मिल सकता है। इतना ही नहीं कृषि प्रशिक्षण संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों को ड्रोन खरीदने पर अधिकतम 100% का अनुदान दिया जा रहा है, जिसको अधिकतम 10 लाख रुपया तक बताया जा रहा है।
13 फसलों के जीएम बीज तैयार करने के लिए रिसर्च हुई शुरू

13 फसलों के जीएम बीज तैयार करने के लिए रिसर्च हुई शुरू

भारत सरकार लगातार देश में उत्पादन बढ़ाने पर विचार कर रही है। इसके लिए सरकार तरह-तरह की परियोजनाएं लाती रहती है, जिससे किसानों को उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सके। इन परियोजनाओं के अंतर्गत सरकार किसानों को सीधे अनुदान देने के अलावा खाद, बीज, दवाई और कृषि उपकरणों पर सब्सिडी प्रदान करती है। इसके साथ ही अब सरकार ने देश भर में गुणवत्तापूर्ण फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए रिसर्च पर जोर देना शुरू कर दिया है। इसके तहत अब भारत के कृषि वैज्ञानिक जेनेटिक मॉडिफाइड यानि जीएम फसलों का विकास कर रहे हैं। फिलहाल, जीएम फसलों को लेकर देश दो धड़ों में बंटा हुआ है। एक धड़ा वो है, जो फसलों में जेनेटिकली मॉडिफिकेशन का विरोध कर रहा है। ऐसे लोग इसे नेचर के खिलाफ बता रहे हैं। वहीं दूसरा धड़ा वो है, जो जीएम फसलों को देश के लिए और लोगों के लिए सही बता रहा है और इस प्रकार की रिसर्च का समर्थन कर रहा है। हालांकि इस विरोध और समर्थन के बीच देश के संस्थानों में जेनेटिक मॉडिफाइड फसलों पर रिसर्च शुरू हो चुका है। अगर यह रिसर्च कामयाब रहती है, तो कुछ दिनों में देश के किसान जेनेटिक मॉडिफाइड फसलों की खेती करते हुए दिखाई देंगे। इन फसलों की खेती से किसानों का उत्पादन बढ़ेगा, साथ ही साथ आने वाले दिनों में किसानों की आय में भी भारी इजाफा हो सकता है।


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इन जेनेटिक मॉडिफाइड फसलों पर रिसर्च हुई है शुरू

मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है, कि देश के कृषि मंत्रालय ने अलग-अलग अनुसंधान केंद्रों को जीएम फसलों पर रिसर्च की जिम्मेदारी दी है। जहां देश के वैज्ञानिक 13 जीएम फसलों पर रिसर्च कर रहे हैं। इन फसलों में चावल, गेहूं, गन्ना, आलू, अरहर, चना और केला जैसी फसलें शामिल हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जीएम फसलों की उपज के बाद भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। फसलों का ज्यादा उत्पादन होने के कारण अनाज के लिए अन्य देशों पर निर्भरता कम होगी। इसके साथ ही कृषि मंत्रालय ने कहा है कि जीएम बीजों की पैदावार से फसल की क्वालिटी सुधरेगी और उत्पादन में बंपर इजाफा होगा। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया है, कि इन फसलों को जेनेटिकली मॉडिफाइड करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिक दिन रात मेहनत कर रहे हैं।

इस फसल के बीज अभी तक हो चुके हैं विकसित

अभी तक सरसों के बीजों को जेनेटिक मॉडिफाइड रूप से विकसित किया जा चुका है। इन विकसित बीजों को धारा मस्टर्ड हाईब्रिड (डीएमएच-11) बीज का नाम दिया गया है, जो सरसों के बीजों की एक हाईब्रिड प्रजाति है। इस प्रजाति को दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स ने विकसित किया है। अनुसंधान केंद्र का दावा है, कि इन बीजों का इस्तेमाल करने से भारत की दूसरे देशों पर खाद्य तेल को लेकर निर्भरता बहुत हद तक कम हो जाएगी। इस साल अक्टूबर में भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने सरसों के जीएम बीजों का परीक्षण करने की अनुमति दी थी। आनुवंशिक रूप से संशोधित इस फसल का देश भर में परीक्षण शुरू हो चुका है। कई जगहों पर इन बीजों की बुवाई भी की गई है। जिसके शानदार परिणाम देखने को मिले हैं। आगामी 2 सालों के दौरान देश भर में जीएम सरसों का उत्पादन शुरू हो जाएगा। फिलहाल देश भर में जीएम कपास का बंपर उत्पादन हो रहा है।
इन व्यवसायों से आप शहरों के दूषित पर्यावरण से दूर गांव में भी कर सकते हैं अच्छी कमाई

इन व्यवसायों से आप शहरों के दूषित पर्यावरण से दूर गांव में भी कर सकते हैं अच्छी कमाई

शहर की भागमभाग के साथ नौकरी और पूरे दिन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर कार्य करना अब ऐसे में जिंदगी में चैन व शांति नहीं मिल पाती है। इस वजह से लोगों का रुझान गांव वापसी की तरफ बढ़ता जा रहा है क्योंकि गाँव की शुद्ध वायु में अजीब सा चैन, सुकून और आमदनी भी होती है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन जीवन में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह केवल कृषकों का ही कार्य नहीं होता है यदि कोई भी व्यक्ति चाहे तो स्वयं के घर पर भी बागवानी कर सकता है। इस प्रकार वह भी अर्बन कृषि की श्रेणी में आता है, हालाँकि देश की बहुत बड़ी जनसंख्या कृषि पर ही आश्रित रहती है। परंतु यदि हम बात करें कृषि उत्पादों की तो इनपर पूर्ण विश्व आश्रित रहता है। भारत में उत्पादित कृषि उत्पाद वर्तमान में विदेशों में निर्यात हो रहे हैं, याद कीजिए कोरोना महामारी का वो दौर जब प्रत्येक व्यवसाय-नौकरी बिल्कुल बंद हो गई थी। उस भयानक घड़ी में सिर्फ खेती व किसानों ने ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था। उस बात को देशवाशियों ने समझा एवं कृषि के महत्त्व को भी जान पाए हैं। इसलिए शहरों की थकानयुक्त जीवन को पीछे छोड़ खेती-किसानी संबंधित किसी ना किसी गतिविधि में शामिल हो गए हैं। यह सब मामला आज तक सुचारु है, बहुत सारे लोग गांव में आकर कृषि एवं कृषि व्यवसाय से जुड़ना चाहते हैं। परंतु यह नहीं समझ पा रहे हैं कि किस व्यवसाय में सर्वाधिक सफलता एवं बेहतरीन आमदनी हो सके। इसलिए आज हम उन कृषि व्यवसायों के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपको ना केवल वर्तमान में बल्कि भविष्य में भी बेहतरीन आमदनी कराएगा।

ऑर्गेनिक फल-सब्जियों का उत्पादन कर कमाएं मुनाफा

भारत की मृदा में उत्पादित फल-सब्जियों की माँग देश ही नहीं विदेशों में भी हो रही है। रसायनों से उत्पादित किए गए फल-सब्जिओं से स्वास्थ्य को काफी हानि पहुंच रही है। इसलिए भारत एवं विश्व की एक बड़ी जनसँख्या जैविक फल व सब्जियों का सेवन करती है। बतादें, कि भविष्य में जैविक फल-सब्जियों की मांग और ज्यादा होगी, इसलिए आप जैविक फल-सब्जियों के उत्पादन के साथ-साथ शहरों में इसका विपणन व्यवसाय कर सकते हैं। इस काम के लिए आपको सरकार से ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन एवं FSSAI से भी एक प्रमाणपत्र लेना होगा। उसके उपरांत यदि आप अपने ऑर्गेनिक फल एवं सब्जियों को विदेश में भी निर्यात कर पाएंगे। खुशी की बात यह है, कि ऑर्गेनिक कृषि हेतु सरकार द्वारा बहुत सारी योजनाओं के माध्यम से परीक्षण, तकनीकी सहायता एवं आर्थिक मदद प्रदान करते हैं।

पशुपालन और डेयरी व्यवसाय से होगा खूब फायदा

स्वास्थ्य के प्रति लोग सजग एवं जागरूक होते जा रहे हैं। बेहतर स्वास्थ्य हेतु प्रोटीन को आहार में शम्मिलित करना अत्यंत आवश्यक है। दूध इसका सबसे बेहतरीन एवं प्राकृतिक स्त्रोत है। देश में दूध-डेयरी का व्यवसाय अच्छा खासा चलता है, साथ ही शहरों में गाय-भैंस के दुग्ध से निर्मित सेहतमंद उत्पादों की बेहद मांग होती है। गांव में सामान्यतः पर्यावरण स्वच्छ एवं शुद्ध रहता है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में पशु व डेयरी का कार्य बेहद ही आसान होता है। पशुपालन के लिए काफी जगह होना बहुत ही जरूरी है, इसलिए आप इच्छानुसार भैंस, बकरी एवं गाय पालन एवं दूध उत्पादन कर सकते हैं। साथ ही, स्वयं की दूध प्रोसेसिंग व डेयरी फार्म भी आरंभ कर सकते हैं, लोग स्वयं आकर आपसे दूध खरीदेंगे। यदि आप अपना ब्रांड बनाकर दूध एवं इससे निर्मित उत्पादों की आपूर्ति कर सकते हैं।

जड़ी बूटियों की खेती से होगा लाभ

कोरोना महामारी के उपरांत लोगों ने आयुर्वेद की तरफ अपना रुझान किया है। लोगों का आयुर्वेदिक दवाइयों के प्रति विश्वास और बढ़ गया है। वर्तमान में लोग बीमारियों में सुबह-शाम दवाईयां लेने की जगह औषधियों एवं जड़ी-बूटियों का उपयोग करने लगे हैं। बहुत सारी बड़ी-बड़ी कंपनियां औषधियों एवं जड़ी-बूटियों से देसी दवाओं के साथ सेहतमंद खाद्य उत्पाद निर्मित कर विक्रय कर रही हैं। भारत की उच्च स्तरीय दवा कपंनियां हिमालया हर्ब्स एवं पतंजली जैसी अन्य भी आयुर्वेद की दिशा में कार्य करती हैं।


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इन कंपनियां द्वारा किसानों के साथ कांट्रेक्ट किया जाता है। खेती पर किये गए व्यय को आपस में विभाजित कर कृषकों से समस्त जड़ी-बूटी अथवा औषधी क्रय करली जाती है। औषधीय कृषि की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि इसमें खर्च नाममात्र के बराबर होता है। किसान चाहें तो ऊसर या बंजर भूमि पर भी औषधियां उत्पादित कर सकते हैं। बीमारियों के सीजन में औषधीय कृषि एवं इसकी प्रोसेसिंग का व्यवसाय भी किसानों को कम लागात में अत्यधिक मुनाफा दिला सकता है।