Ad

एकीकृत कृषि प्रणाली

जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ

जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ

खेती किसानी में इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली के चलन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें किसानों को परंपरागत किसानी के अलावा खेती से जुड़ी आय के अन्य विकल्पों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। मछली पालन भी इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) का ही एक हिस्सा है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना

इस प्रोत्साहन की कड़ी में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana)(PMMSY) भी, किसान की आय में वृद्धि करने वाली योजनाओं में से एक योजना है। इस योजना का लाभ लेकर किसान मछली पालन की शुरुआत कर अपनी कृषि आय में इजाफा कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना क्या है, किस तरह किसान इस योजना का लाभ हासिल कर सकता है, इस बारे में जानिये मेरी खेती के साथ। केंद्र और राज्य सरकार की प्राथमिकता देश के किसानों की आय में वृद्धि करने की है। 

खेती, मछली एवं पशु पालन के अलावा जैविक खाद आदि के लिए सरकार की ओर से कृषक मित्रों को उपकरण, सलाह, बैंक ऋण आदि की मदद प्रदान की जाती है। किसानों की आय को बढ़ाने में मछली पालन (Fish Farming) भी अहम रोल निभा सकता है। ऐसे में आय के इस विकल्प को भी किसान अपनाएं, इसलिए सरकारों ने मछली पालन मेें किसान की मदद के लिए तमाम योजनाएं बनाई हैं।

प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के शुभारम्भ अवसर पर प्रधानमंत्री का सम्बोधन

कम लागत में तगड़ा मुनाफा पक्का

मछली पालन व्यवसाय में स्थितियां अनुकूल रहने पर कम लागत में तगड़ा मुनाफा पक्का रहता है। किसान अपने खेतों में मिनी तालाब बनाकर मछली पालन के जरिए कमाई का अतिरिक्त जरिया बना सकते हैं। मछली पालन के इच्छुक किसानों की मदद के लिए पीएम मत्स्य संपदा योजना बनाई गई है। इस योजना का लाभ लेकर किसान मछली पालन के जरिए अपनी निश्चित आय सुनिश्चित कर सकते हैं।

PMMSY के लाभ ही लाभ

पीएमएमएसवाय (PMMSY) यानी प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में किसानों के लिए फायदे ही फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा ये है कि, इसमें पात्र किसानों को योजना में सब्सिडी प्रदान की जाती है। सब्सिडी मिलने से योजना से जुड़ने वाले पर धन की उपलब्धता का बोझ कम हो जाता है। खास तौर पर अनुसूचित जाति से जुड़े हितग्राही को अधिक सब्सिडी प्रदान की जाती है। इस वर्ग के महिला और पुरुष किसान हितग्राही को PMMSY के तहत 60 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की जाती है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से जुड़ने वाले अन्य वर्ग के किसानों के लिए 40 फीसदी सब्सिडी का प्रबंध किया गया है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना लोन, वो भी प्रशिक्षण के साथ

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालन की शुरुआत करने वाले किसानों को सब्सिडी के लाभ के साथ ही मत्स्य पालन के बारे में प्रशिक्षित भी किया जाता है। अनुभवी प्रशिक्षक योजना के हितग्राहियों को पालन योग्य मुफाकारी मछली की प्रजाति, मत्स्य पालन के तरीकों, बाजार की उपलब्धता आदि के बारे में प्रशिक्षित करते हैं।

कैसे जुड़ें PMMSY योजना से

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत लाभ लेने के इच्छुक किसान मित्र पीएम किसान योजना की अधिकृत वेबसाइटपर आवेदन कर सकते हैं। और अधिक जानकारी के लिए, भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट को देखें : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मात्स्यिकी विभाग  मत्स्य पालन विभाग (Department of Fisheries) - PMMSY पीएम मत्स्य संपदा योजना के साथ किसान नाबार्ड से भी मदद जुटा सकता है। मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए लागू पीएम मत्स्य संपदा योजना के अलावा, किसान हितग्राही को मछली पालन का व्यवसाय शुरू करने के लिए सस्ती दरों पर बैंक से लोन दिलाने में भी मदद की जाती है।

आधुनिक तकनीक से बढ़ा मुनाफा

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से जुड़े झारखंड के कई किसानों की आय में उल्लेखनीय रूप से सुधार हुआ है। राज्य के कई किसान इस योजना के तहत बॉयोफ्लॉक (Biofloc) और आरएएस (Recirculating aquaculture systems (RAS)) जैसी आधुनिक तकनीक अपनाकर मछली पालन से भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं। राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (NATIONAL FISHERIES DEVELOPMENT BOARD), भारत सरकार द्वारा जारी लेख "जलकृषि का आधुनिक प्रचलन : बायोफ्लॉक मत्स्य कृषि" की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिये, यहां क्लिक करें - बायोफ्लॉक मत्स्य कृषि 

पीएम मत्स्य संपदा योजना में किसानों को रंगीन मछली पालन के लिए भी अनुदान की मदद प्रदान की जाती है। साथ ही नाबार्ड भी टैंक या तालाब निर्माण के लिए 60 फीसदी अनुदान प्रदान करता है।

ऐसे सुनिश्चित करें मुनाफा

खेत में मछली पालन का जो कारगर तरीका इस समय प्रचलित है वह है तालाब या टैंक में मछली पालन। इन तरीकों की मदद से किसान मुख्य फसल के साथ ही मत्स्य पालन से भी कृषि आय में इजाफा कर सकते हैं। मत्स्य पालन विशेषज्ञों के मान से 20 लाख की लागत से तैयार तालाब या टैंक से किसान बेहतरीन कमाई कर सकते हैं।

ये भी पढ़ें: केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!

विशेषज्ञों के अनुसार मछली पालन में अधिक कमाई के लिए किसानों को फीड आधारित मछली पालन की विधि को अपनाना चाहिए। इस तरीके से मछलियों की अच्छी बढ़त के साथ ही वजन भी बढ़िया होता है। यदि मछली की ग्रोथ और वजन बढ़िया हो तो किसान की तगड़ी कमाई भी निश्चित है। प्रचलित मान से किसान को एक लाख रुपए के मछली के बीज पर पांच से छह गुना ज्यादा लाभ मिल सकता है। किसान बाजार में अच्छी मांग वाली मछलियों का पालन कर भी अपनी नियमित कमाई में यथेष्ठ वृद्धि कर सकते हैं। किसानों को पंगास या मोनोसेक्स तिलापिया प्रजाति की मछलियों का पालन करने की सलाह मत्स्य पालन के विशेषज्ञों ने दी है।

केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!

केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!

एकीकृत कृषि प्रणाली (इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम)

जिस तरह मौजूदा दौर के क्रिकेट मेें ऑलराउंड प्रदर्शन अनिवार्य हो गया है, ठीक उसी तरह खेती-किसानी-बागवानी में भी मौजूद विकल्पों के नियंत्रित एवं समुचित उपयोग एवं दोहन का भी चलन इन दिनों देखा जा रहा है। 

क्रिकेट के हरफनमौला प्रदर्शन की तरह, खेती किसानी में भी अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) का चलन जरूरी हो गया है। 

क्या कारण है कि प्रत्येक किसान उतना नहीं कमा पाता, जितना आधुनिक तकनीक एवं जानकारियों के समन्वय से कृषि करने वाले किसान कमा रहे हैं। 

सफल किसानों में से किसी ने जैविक कृषि को आधार बनाया है, तो किसी ने पारंपरिक एवं आधुनिक किसानी के सम्मिश्रण के साथ अन्य किसान मित्रों के समक्ष सफलता के आदर्श स्थापित किए हैं। 

ऐसी ही युक्ति है इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी 'एकीकृत कृषि प्रणाली'। यह कैसी प्रणाली है और कैसे काम करती है, जानिये। 

कुछ हट कर काम किसानी करने वालों की फेहरिस्त में शामिल हैं, बिहार के बेगूसराय में रहने वाले 48 वर्षीय प्रगतिशील किसान जय शंकर कुमार भी। 

पहले अपने खेत पर काम कर सामान्य कमाई करने वाले केमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएट जय शंकर की सालाना कमाई में अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) से किसानी करने के कारण आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है।

साधारण किसानी करते थे पहले

सफलता की नई इबारत लिखने वाले जय शंकर सफल होने के पहले तक पारंपरिक तरीके से पारंपरिक फसलों की पैदावार करते थे। 

इन फसलों के तहत वे मक्का, गेहूं, चावल और मोटे अनाज आदि की फसलें ही अपने खेत पर उगाते थे। इन फसलों से हासिल कम मुनाफे ने उन्हें परिवार के भरण-पोषण के लिए बेहतर मुनाफे के विकल्प की तलाश के लिए प्रेरित किया।

ये भी पढ़ें: भारत सरकार द्वारा लागू की गई किसानों के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं

ऐसे मिली सफलता की राह

खेती से मुनाफा बढ़ाने की चाहत में जय शंकर ने कई प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रमों में सहभागिता की। इस दौरान उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), बेगूसराय के वैज्ञानिकों से अपनी आजीविका में सुधार करने के लिए सतत संपर्क साधे रखा।

पता चली नई युक्ति

कृषि सलाह आधारित कई सेमिनार अटैंड करने के बाद जय शंकर को इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) के बारे में पता चला।

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम क्या है ?

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत कृषि प्रणाली खेती की एक ऐसी पद्वति है, जिसके तहत किसान अपने खेत से सम्बंधित उपलब्ध सभी संसाधनों का इस्तेमाल करके कृषि से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करता है। 

कृषि की इस विधि से छोटे व मझोले किसानों को अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ कृषि से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। 

वहीं दूसरी ओर फसल उत्पादन और अवशेषों की रीसाइकलिंग (recycling) के द्वारा टिकाऊ फसल उत्पादन में मदद मिलती है। इस विधि के तहत मुख्य फसलों के साथ दूसरे खेती आधारित छोटे उद्योग, पशुपालन, मछली पालन एवं बागवानी जैसे कार्यों को किया जाता है।

ये भी पढ़ें: गो-पालकों के लिए अच्छी खबर, देसी गाय खरीदने पर इस राज्य में मिलेंगे 25000 रुपए

पकड़ ली राह

जय शंकर को किसानी का यह फंडा इतना बढ़िया लगा कि, उन्होंने इसके बाद इस विधि से खेती करने की राह पकड़ ली। एकीकृत प्रणाली के तहत उन्होंने मुख्य फसल उगाने के साथ, बागवानी, पशु, पक्षी एवं मत्स्य पालन, वर्मीकम्पोस्ट बनाने पर एक साथ काम शुरू कर दिया। उन्हें केवीके ने भी तकनीकी रूप से बहुत सहायता प्रदान की।

ये भी पढ़ें: बकरी बैंक योजना ग्रामीण महिलाओं के लिये वरदान

मोती का उत्पादन (Pearl Farming)

खेत पर लगभग 0.5 हेक्टेयर क्षेत्र में मछली पालने के लिये बनाए गए तालाब के ताजे पानी में, वे मोती की भी खेती कर रहे हैं।

वर्मीकम्पोस्ट के लिए मदद

जय शंकर की वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन में रुचि और समर्पण के कारण कृषि विभाग, बिहार सरकार ने उन्हें 25 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है। वे अब हर साल 3000 मीट्रिक टन से ज्यादा वर्मीकम्पोस्ट उत्पादित कर रहे हैं।

ये भी पढ़ें: आप खेती में स्टार्टअप शुरू करना चाहते है, तो सरकार आपकी करेगी मदद

बागवानी में भी आजमाए हाथ

बागवानी विभाग ने भी जय शंकर की लगन को देखकर पॉली हाउस और बेमौसमी सब्जियों की खेती के अलावा बाजार में जल्द आपूर्ति हेतु पौधे लगाने के लिए जरूरी मदद प्रदान की। 

केवीके, बेगूसराय से भी उनको तकनीकी रूप से जरूरी मदद मिली। केवीके वैज्ञानिकों ने एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल में उन्हें सुधार और अपडेशन के लिए समय-समय पर जरूरी सुझाव देकर सुधार करवाए।

कमाई में हुई वृद्धि

एक समय तक जय शंकर की पारिवारिक आय तकरीबन 27000 रुपये प्रति माह या 3.24 लाख रु प्रति वर्ष थी। अब एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती करने के कारण यह अब कई गुना बढ़ गयी है। 

मोती की खेती, मत्स्य पालन, वर्मीकम्पोस्ट, बागवानी और पक्षियों के पालन-विक्रय के समन्वय से अब उनकी यही आय प्रति माह 1 लाख रुपये या प्रति वर्ष 12 लाख से अधिक हो गई है।

ये भी पढ़ें: भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी 

खेत में मोती की चमक बिखेरने वाले जय शंकर अब दूसरों की तरक्की की राह में भी उजाला कर रहे हैं। वे अब बेगूसराय जिले के केवीके से जुड़े ग्रामीण युवाओं की मेंटर ट्रेनर के रूप में मदद करते हैं। 

साधारण नजर आने वाला उनका खेत अब 'रोल मॉडल' के रूप में कृषि मित्रों की राह प्रशस्त कर रहा है। उनका मानना है, दूसरे किसान भी उनकी तरह अपनी कृषि कमाई में इजाफा कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उनको, उनकी तरह समर्पण, लगन, सब्र एवं मेहनत भी करनी होगी।

Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज

Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज

जीरो बजट खेती की दीवानी क्यों हुई दुनिया? नुकसान के बाद दुनिया लाभ देख हैरान ! नीति आयोग ने किया गुणगान

भूमण्डलीय ऊष्मीकरण या आम भाषा में ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) से हासिल नतीजों के कारण पर्यावरण संरक्षण (Environmental protection), संतुलन व संवर्धन के प्रति संवेदनशील हुई दुनिया में नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए देश नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी प्राकृतिक खेती का रुख कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती क्या है? इसमें क्या करना पड़ता है? क्या प्राकृतिक खेती बहुत महंगी है? जानिये इन सवालों के जवाब।

खेत और किसान की जरूरत

इसके लिए यह समझना होगा कि, किसी खेत या किसान के लिए सबसे अधिक जरूरी चीज क्या है? उत्तर है खुराक और स्वास्थ्य देखभाल।मतलब, यदि किसी खेत के लिए जरूरी खुराक यानी उसके पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री का प्रबंध प्राकृतिक तरीके से किया जाए, तो उसे ही प्राकृतिक खेती (Natural Farming) कहते हैं।

प्राकृतिक खेती क्या है?

प्राकृतिक खेती, प्रकृति के द्वारा स्वयं के विस्तार के लिए किए जाने वाले प्रबंधों का मानवीय अध्ययन है। इसमें कृषि विज्ञान ने किसानी में उन तरीकों कोे अपनाना श्रेष्यकर समझा है, जिसे प्रकृति खुद अपने संवर्धन के लिए करती है। प्राकृतिक खेती में किसी रासायनिक पदार्धों के अमानक प्रयोग के बजाए, प्रकृति आधारित संवर्धन के तरीके अपनाए जाते हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली, प्राकृतिक खेती का वह तरीका है, जिसकी मदद से प्रकृति के साथ, प्राकृतिक तरीके से खेती किसानी कर किसान कृषि आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है।


ये भी पढ़ें: केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!
प्राकृतिक संसाधनों के प्रति देशों की सभ्यता का प्रमाण तय करने वाले नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन अलार्म, के कारण देशों और उनसे जुड़े किसानों को कृषि के तरीकों में बदलाव करना होगा। COP26 summit, Glasgow, में भारत ने 2070 तक, अपने नेट ज़ीरो एमिशन को शून्य करने का वादा किया है। इसी प्रयास के तहत भारत में केंद्र एवं राज्य सरकार, इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रही हैं। प्राकृतिक खेती में सिंचाई, सलाह, संसाधन के प्रबंध के लिए किसानों को प्रोत्साहन योजनाओं के जरिए लाभान्वित किया जा रहा है।


ये भी पढ़ें: प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अब यूपी में होगा बोर्ड का गठन

प्राकृतिक खेती के लाभ

प्राकृतिक खेती के लाभों की यदि बात करें, तो इसमें घरेलू संसाधनों से आवश्यक पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री तैयार की जा सकती है। किसान इस प्रकृति के साथ वाली किसानी की विधि से कृषि उत्पादन लागत में भारी कटौती कर कृषि उपज से होने वाली साधारण आय को अच्छी-खासी रिटर्न में तब्दील कर सकते हैं। प्राकृतिक खेती से खेत में उर्वरक और अन्य रसायनों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

प्राकृतिक खेती की जरूरत

एफएओ 2017, खाद्य और कृषि का भविष्य – रुझान और चुनौतियां शीर्षक आधारित रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग (NITI Aayog) ने मानवीय जीवन क्रम से जुड़े कुछ अनुमान, पूर्वानुमान प्रस्तुत किए हैं। नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक लगभग 10 अरब तक हो जाने का पूर्वानुमान है। मामूली आर्थिक विकास की स्थिति में, इससे कृषि मांग में वर्ष 2013 की मांग की तुलना में 50% तक की वृद्धि होगी। नीति आयोग ने खाद्य उत्पादन विस्तार और आर्थिक विकास से प्राकृतिक पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई है। बीते कुछ सालों में वन आच्छादन और जैव विविधता में आई उल्लेखनीय कमी पर भी आयोग चिंतित है। रिपोर्ट के अनुसार, उच्च इनपुट, संसाधन प्रधान खेती रीति के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, पानी की कमी, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस का उच्च स्तरीय उत्सर्जन होने से पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है। वर्तमान में बेमौसम पड़ रही तेज गर्मी, सूखा, बाढ़, आंधी-तूफान जैसी व्याथियों के समाधान के लिए कृषि-पारिस्थितिकी, कृषि-वानिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और संरक्षण कृषि जैसे ‘समग्र’ दृष्टिकोणों पर देश, सरकार एवं किसानों को मिलकर काम करना होगा। खेती किसानी की दिशा में अब एक समन्वित परिवर्तनकारी प्रक्रिया को अपनाने की जरूरत है।

भविष्य की पीढ़ियों का ख्याल

हमें स्वयं के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों का भी यदि ख्याल रखना है, धरती पर यदि भविष्य की पीढ़ी के लिए जीवन की गुंजाइश शेष छोड़ना है तो इसके लिए प्राकृतिक खेती ही सर्वश्रेष्ठ विचार होगा।


ये भी पढ़ें: देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था
यह वह विधि है, जिसमें कृषि-पारिस्थितिकी के उपयोग के परिणामस्वरूप भावी पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बगैर, बेहतर पैदावार हासिल होती है। एफएओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए तमाम सहयोगी योजनाएं जारी की हैं।

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लाभों को 9 भागों में रखा जा सकता है :

1. उपज में सुधार 2. रासायनिक आदान अनुप्रयोग उन्मूलन 3. उत्पादन की कम लागत से आय में वृद्धि 4. बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चितिकरण 5. पानी की कम खपत 6. पर्यावरण संरक्षण 7. मृदा स्वास्थ्य संरक्षण एवं बहाली 8. पशुधन स्थिरता 9.रोजगार सृजन

नो केमिकल फार्मिंग

प्राकृतिक खेती को रासायनमुक्त खेती ( No Chemical Farming) भी कहा जाता है। इसमें केवल प्राकृतिक आदानों का उपयोग किया जाता है। कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र पर आधारित, यह एक विविध कृषि प्रणाली है। इसमें फसलों, पेड़ों और पशुधन एकीकृत रूप से कृषि कार्य में प्रयुक्त होते हैं। इस समन्वित एकीकरण से कार्यात्मक जैव विविधता के सर्वोत्तम उपयोग में किसान को मदद मिलती है।


ये भी पढ़ें: प्राकृतिक खेती ही सबसे श्रेयस्कर : ‘सूरत मॉडल’

प्रकृति आधारित विधि

अपने उद्भव से मौजूद प्रकृति संवर्धन की वह विधि है जिसे मानव ने बाद में पहचान कर अपनी सुविधा के हिसाब से प्राकृतिक खेती का नाम दिया। कृषि की इस प्राचीन पद्धति में भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जाता है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग वर्जित है। जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में अपनाया जाता है। एक तरह से चींटी, चीटे, केंचुए जैसे जीव इस खेती की सफलता का मुख्य आधार होते हैं। जिस तरह प्रकृति बगैर मशीन, फावड़े के अपना संवर्धन करती है ठीक उसी युक्ति का प्रयोग प्राकृतिक खेती में किया जाता है।

ये चार सिद्धांत प्राकृतिक खेती के आधार

प्राकृतिक कृषि के सीधे-साधे चार सिद्धांत हैं, जो किसी को भी आसानी से समझ में आ सकते हैं। ये चार सिद्धांत हैं:
  • हल का उपयोग नहीं, खेत पर जुताई-निंदाई नहीं, बिलकुल प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की तरह की जाने वाली इस खेती में जुताई, निराई की जरूरत नहीं होती।
  • किसी तरह का कोई रासायनिक उर्वरक या फिर पहले से तैयार की हुई खाद का उपयोग नहीं
  • हल या शाक को नुकसान पहुंचाने वाले किसी औजार द्वारा कोई निंदाई, गुड़ाई नहीं
  • रसायनों पर तो किसी तरह की कोई निर्भरता बिलकुल नहीं।

जीरो बजट खेती (Zero Budget Farming)

अब जिस खेती में निराई गुड़ाई की जरूरत न हो, तो उसे जीरो बजट की खेती ही कहा जा सकता है। प्राकृतिक खेती को ही जीरो बजट खेती भी कहा जाता है। प्राकृतिक खेती में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों को लाभकारी बनाने के तरीके निहित हैं। किसी बाहरी कृत्रिम तरीके से निर्मित रासायनिक उत्पाद का उपयोग प्राकृतिक खेती में वर्जित है। जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती में गाय के गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग कर भूमि की उर्वरता बढ़ाई जाती है। शून्य उत्पादन लागत की प्राकृतिक खेती पद्धति के लिए अलग से कोई इनपुट खरीदना जरूरी नहीं है। जापानियों द्वारा प्रकाश में लाई गई इस विधि की खेती में पारंपरिक तरीकों के विपरीत केवल 10 प्रतिशत पानी की दरकार होती है।
एकीकृत कृषि प्रणाली के तहत खेती करने से कितना लाभ मिलेगा ?

एकीकृत कृषि प्रणाली के तहत खेती करने से कितना लाभ मिलेगा ?

खेती-किसानी का तरीका आज के समय में काफी बदल गया है। आधुनिक दौर में कृषि करने के तरीके अब बदल चुके हैं। वर्तमान में किसान नए-नए तरीकों और तकनीकों का उपयोग कर कृषि से मोटा मुनाफा हाँसिल कर रहे हैं। इसी तरह का एक तरीका है, समेकित कृषि प्रणाली, जिसके माध्यम से किसान सीमित संसाधनों एवं कम लागत के साथ अधिक आय कर सकते हैं। भारत में किसानी इस समय नए दौर से गुजर रही है। इस जमाने में किसान भी कृषि के नए तौर तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जहां एक तरफ कुछ किसान खेती छोड़ शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं, तो उधर कुछ किसान नवीन तकनीक अथवा तरीके को अपना कर मोटा मुनाफा हांसिल कर रहे हैं। ऐसा ही एक तरीका है समेकित कृषि प्रणाली जिसके माध्यम से एक किसान फसल उत्पादन के साथ-साथ बाकी सह कारोबार भी कर सकता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है, कि किसान सीमित संसाधनों एवं कम लागत के साथ अधिक कमाई के नए साधन खड़े कर सकता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि यह किसानों की आमदनी दोगुना करने का एक सशक्त जरिया है।

समेकित कृषि प्रणाली क्या होती है

समेकित कृषि प्रणाली खेती किसानी की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसान फसल पैदावार के साथ-साथ बाकी सह व्यवसाय भी कर सकता है। समेकित कृषि प्रणाली तहत कृषि के कम से कम दो घटक और उससे ज्यादा घटकों का समायोजन इस तरह करते हैं, कि एक के समायोजन से दूसरे की लागत में काफी कमी आती है। इसके साथ-साथ उत्पादकता में काफी इजाफा होता है। स्वरोजगार का सृजन होता है और जीवन स्तर में भी काफी सुधार होता है।

ये भी पढ़ें:
एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट


कृषि को पशुधन के साथ एकीकृत करें

एक उदाहरण के रूप में देखते हैं, कि किसान सीमित भूमि पर कृषि को पशुधन के साथ एकीकृत कर सकते हैं। जैसे कि मुर्गीपालन और मछली पालन को एक ही स्थान पर किया जा सकता है। इसके साथ ही आप उसी जमीन पर खेती भी कर सकते हैं, ताकि साल भर रोजगार पैदा हो सके और अतिरिक्त आय भी प्राप्त हो सके। उदाहरण के लिए मुर्गीपालन के दौरान निकलने वाले वेस्ट (मलमूत्र) का इस्तेमाल आप खाद के रूप में भी कर सकते हैं। मछली पालन में तालाब के बचे हुए पानी का इस्तेमाल कृषि एवं फसलों की पैदावार के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार से आप मुर्गीपालन, मछली पालन के साथ-साथ खेती और खाद उत्पादन से भी आमदनी कर सकते हैं।


 

समेकित कृषि प्रणाली के क्या-क्या फायदे हैं

समेकित कृषि प्रणाली की वजह से प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक उत्पादन इसके साथ ही उत्पादन लागत में कमी के साथ अधिक फायदा होता। सन्तुलित पोषण आहार की उपलब्धता होना है। फसल अवशेषों का पुनः चक्रणं होना। वर्ष भर लगातार आय सृजन, स्वरोजगार के अवसर में बढ़ोतरी, पर्यावरण सुरक्षा आदि जैसे लाभ हो सकते हैं।