पालड़ी राणावतन की मॉडल नर्सरी से मरु प्रदेश में बढ़ी किसानों की आय, रुका भूमि क्षरण
ग्रामीण सहभागी नर्सरी बनी आदर्श, दो साल में दो गुनी हो गई इनकम
वर्तमान में पंजीकृत कृषि विकास नर्सरी की सुविधाओं को देश के हर इलाके में विस्तार देने के मकसद को नई दिशा मिली है।पालड़ी राणावतन की मॉडल नर्सरी
भाकृअनुप - केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, (ICAR - Central Arid Zone Research Institute) जोधपुर, राजस्थान ने इस दिशा में अनुकरणीय पहल की है। संस्थान की ओर से भोपालगढ़ तहसील के ग्राम पालड़ी में 0.02 हेक्टेयर क्षेत्र में एक मॉडल नर्सरी विकसित की गयी है, इससे न केवल रोजगार के साधन विकसित हुए हैं, बल्कि भूमि का क्षरण (भू-क्षरण) रोकने में भी मदद मिली है।क्यों पड़ी जरूरत
भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर, राजस्थान स्रोत से ज्ञात जानकारी के अनुसार, निवर्तमान रजिस्टर्ड नर्सरी के मान से किसान मित्रों को गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री प्रदान करने संबंधी महज 1/3 मांग पूरी की जा रही है। असंगठित क्षेत्र के मुकाबले संगठित क्षेत्र में इस कमी की पूर्ति के लिए जरूरी, अधिक नर्सरी की स्थापना के लिए यह मॉडल नर्सरी विकसित की गई है।ये भी पढ़ें:मानसून की आहट : किसानों ने की धान की नर्सरी की तैयारी की शुरुआत
मॉडल नर्सरी का यह है मॉडल
भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर, राजस्थान ने इस मॉडल तंत्र में 10 कृषि महिला-पुरुषों को मिलाकर एक मॉडल ग्रुप का गठन किया। इस गठित समूह को संस्थान की ओर से कार्यक्रम के जरिये वाणिज्यिक नर्सरी प्रबंधन पर कौशल प्रशिक्षण देकर दक्षता में संवर्धन किया गया।दी गई यह जानकारी
समूह के चयनित सदस्यों समेत अन्य किसानों को कार्यक्रम में रूटस्टॉक और स्कोन का विकास करने का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इसके अलावा नर्सरी में जरूरी कटिंग, बडिंग और ग्राफ्टिंग तकनीक, कीट और रोग प्रबंधन के बारे में भी गूढ़ जानकारियां कृषि वैज्ञानिकों ने प्रदान कीं।ये भी पढ़ें: कैसे डालें धान की नर्सरी रिकॉर्ड कीपिंग के साथ ही आवश्यक बुनियादी ढांचे, जैसे, बाड़ लगाने, छाया घर, मदर प्लांट, पानी की सुविधा और अन्य इनपुट जैसे नर्सरी उपकरण, बीज, नर्सरी मीडिया, उर्वरक, पॉली बैग भी समूह को प्रदान किए गए।
नर्सरी के माध्यम से हुआ सुधार
प्राप्त आंकड़़ों के मान से राजस्थान में कुल परिचालन भूमि जोत का पैमाना 7.7 मिलियन है। गौरतलब है कि पिछले तीन दशकों के दौरान कृषि संबंधी जानकारियां किसानों तक पहुंचाने के कारण शुद्ध सिंचित क्षेत्र में 140 प्रतिशत की बढ़त हासिल हुई है। इसमें खास बात यह है कि, सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि इसमें कारगर साबित हुई है। इससे नई कृषि वानिकी और बागवानी प्रणालियों को राज्य में विकसित करने में मदद मिली है।इस मामले में सफलता
कृषि वानिकी एवं बागवानी प्रणालियों के विस्तार में सब्जियों के साथ पेड़ों की खेती का विस्तार हुआ है। जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों के बीच क्वालिटी प्लांटिंग मटेरियल (क्यूपीएम/QPM) यानी गुणवत्ता रोपण सामग्री को प्रदान कर उन्हें इस्तेमाल में लाया गया। आपको बता दें, क्यूपीएम यानी गुणवत्ता रोपण सामग्री, कृषि और वानिकी में राजस्व में वृद्धि, प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों संबंधी अनुकूलन क्षमता में सुधार के साथ ही बाजार में गुणवत्ता पूर्ण कच्चा माल संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिए एक प्राथमिक एवं अनिवार्य इकाई है। किचन गार्डन में कई सब्जियों जबकि बाग के कुछ पेड़ों संबंधी सिद्ध तरीकों के लिए गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की मांग देखी गई है। यह भी देखा गया है कि, स्थानीय स्तर पर किसानों या पर्यावरण प्रेमियों को वास्तविक और रोग मुक्त रोपण सामग्री न मिलने के कारण इसे हासिल करने के लिए लंबी दूरी पाटनी पड़ती थी।नर्सरी में हुआ यह कार्य
नर्सरी में मांग आधारित फल, सब्जी और कृषि-वानिकी प्रजाति आधारित बीजों को विकसित करना शुरू किया।ये भी पढ़ें: सामान्य खेती के साथ फलों की खेती से भी कमाएं किसान: अमरूद की खेती के तरीके और फायदे
दो साल में दोगुनी से अधिक हुई आय
विकसित बीजों एवं उनके विकास के बारे में व्यापक जानकारी प्रदान करने का परिणाम यह हुआ कि मात्र 2 साल के अंदर ही समूह सदस्यों की कमाई डबल से भी ज्यादा हो गई। दी गई जानकारी के अनुसार समूह सदस्यों के पास कुल मिलाकर, 870 मानव दिवस का रोजगार था। इसका आधार यह था कि, इसके लिए उन्होंने 77 हजार से अधिक संवर्धित बीज पैदा किए और 2.98 के बी:सी (B:C) अनुपात के साथ कई रोपों को बेचकर 6, 83,750 रुपये अर्जित किए। बताया गया कि समूह में शामिल होने के पहले तक एक महिला सदस्य की वार्षिक आय 20 हजार रुपये तक थी। नर्सरी में शामिल होने के बाद हर साल 120 दिन काम करने से उसे 40 हजार रुपये कमाने में मदद मिली है। इस समय व्यक्तिगत समूह के सदस्य 30 से 40 हजार रुपये कमा रहे हैं। जिनके पास हर साल 100 से 150 दिनों का रोजगार है।ये भी पढ़ें: भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल
दुर्बल खेती
नर्सरी की गतिविधियाँ जनवरी से जून तक दुर्बल खेती के मौसम से मेल खाती हैं। इससे रोजगार सृजन का एक अतिरिक्त लाभ भी सदस्यों को मिला है। अब इससे प्रेरित होकर अन्य साथी किसान, पर्यावरण मित्र एवं घरेलू बागवानी के शौकीन लोग भी इससे जुड़ रहे हैं। इसका कारण यह है कि इसके सदस्यों को आस-पास के ग्रामीण अंचलों के साथ ही शहरों के साथ ही पड़ोसी जिलों तक अपना अंकुर पहुंचाने के लिए प्रशिक्षित करने से भी लाभ हुआ है।ये भी पढ़ें: राजस्थान सरकार देगी निशुल्क बीज : बारह लाख किसान होंगे लाभान्वित सोशल मीडिया और अन्य विस्तार प्लेटफार्म के जरिये नर्सरी में मिले प्रशिक्षण से भी प्रकृति संवर्धन के साथ ही मानव श्रम के उचित मूल्यांकन के संदर्भ में भी मदद मिली है। अब नर्सरी एक ऐसा मॉडल है, जहां जिज्ञासु वर्ग बेरोजगारी, श्रम प्रवास, उन्नत कृषि वानिकी की जानकारी लेने आते हैं। नर्सरी सदस्यों ने गुणवत्ता से पूर्ण 72,917 पौधे बेचकर उचित पारिश्रमिक भी प्राप्त किया है। इससे राजस्थान में लगभग 365 हेक्टेयर क्षेत्र तक के कृषि विस्तार में भी मदद मिली है। यह विस्तार इसलिए सुखद है क्योंकि इससे भूमि क्षरण तटस्थता को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। संयुक्त राष्ट्र में मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर उच्च स्तरीय वार्ता में भारत ने भी यही संकल्पना जाहिर की है।
19-Jul-2022