गेंदा के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
खेती-किसानी का जब जिक्र आता है। हमें गांव में बसने वाला उस असली किसान का चेहरा सामने नजर आता है। जो ओस-पाला, सर्दी, प्रचण्ड धूप, अखण्ड बरसात की परवाह किये बिना 24 घंटे सातों दिन अपने खून-पसीने से अपने खेतों को सींच कर अपनी फसल तैयार करता है।
उसकी इस त्याग तपस्या का क्या फल मिलता है? शायद ही कोई जानता होगा। किसान का दर्द केवल किसान ही जान सकता है। इस हाड़ तोड़ मेहनत के बदले में किसान को केवल दो जून की रोटी ही नसीब हो पाती है।
इसके अलावा किसान को किसी तरह के काम-काज की जरूरत होती है तो उसे कर्ज ही लेना पड़ता है। एक बार कर्ज के जाल में फंसने वाला किसान पीढ़ियों तक इससे बाहर नहीं निकल पाता है।
किसान की भूमिका
- देश की अर्थव्यवस्था में किसान बहुत बड़ी भूमिका होती है। वह भी भारत जैसे कृषि प्रधान देश में तो किसान अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। रीढ़ पूरे शरीर का भार उठाती है, उसे मजबूत करना चाहिये। क्या भारत में इस रीढ़ (किसान की) की पर्याप्त देखभाल हो रही है, शायद नहीं।
- इसका ताजा उदाहरण हम कोविड-19 यानी कोरोना महामारी का ले सकते हैं। इस महामारी में जब सारे लोग अपनी जान बचाकर अपने-अपने घरों में छिप गये लेकिन किसान के जीवन में और कड़े दिन आ गये।
- कोरोना की परवाह किये बिना अपने खेतों में दोगुनी मेहनत करनी पड़ी ताकि देश के लोगों की जान बचाई जा सके। लेकिन इस दुखियारे किसान की किसी ने भी सुधि नहीं ली।
- कोरोना योद्धाओं में डॉक्टरों, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस कर्मी, सुरक्षा बल के कर्मचारियों, सफाई कर्मियों, मीडिया कर्मियों एवं समाजसेवियों का नाम लिया जाता है और उन्हें कोराना योद्धा की उपाधि देकर उनका गुणगान किया जाता है लेकिन जब सारे कल-कारखाने बंद हो गये थे तब जिस किसान ने देश की अर्थव्यवस्था को संभाले रखा, उस किसान को किसी ने एक बार भी कोरोना योद्धा, अन्नदाता या ग्राम देवता तक कह कर नहीं पुकारा।
किसानों की दशा खुद किसान को ही सुधारनी होगी। इसके लिए अपने पैरों को और मजबूत करना होगा। इस काम के लिए किसान को देश की अर्थव्यवस्था के साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा।
इसके लिए किसान को परम्परागत खेती की जगह आधुनिक व उन्नत खेती तथा आर्थिक स्थिति मजबूत करने में सहायक लीक से हटकर वे फसले लेनी होंगी जो कम समय और कम लागत में अधिक से अधिक आमदनी दे सकतीं हों।
इस तरह की फसलों में गेंदा के फूल की खेती भी उनमें से एक है। तो आइये जानते हैं गेंदा के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी।
गेंदा का फूल का महत्व
भारतीय समाज में गेंदा के फूल का बहुत अधिक महत्व है। भारतीय समाज में होने वाले प्रत्येक सामाजिक व धार्मिक कार्यों में गेंदे के फूल की बहुत अधिक मांग होती है।
प्रत्येक साल में दो बार नवरात्र, दीवाली, दशहरा, बसंत पंचमी, होली, गणेश चतुर्थी, शिवरात्रि सहित अनेक छोटे-मोटे धार्मिक आयोजन होते ही रहते हैं।
इसके अलावा प्रत्येक भारतीय घर में और व्यावासायिक संस्थानों में प्रतिदिन पूजा-अर्चना होती है जिसमें गेंदा के ताजे फूलों का इस्तेमाल किया जाता है।
इसके अलावा सामाजिक कार्यों जन्म दिन की पार्टी हो, शादी, व्याह हो, मुंडन व यज्ञोपवीत कार्यक्रम हो, शादी की सालगिरह हो, व्यवसायिक संस्थानों के स्थापना दिवस हो, नये संस्थान का उदघाटन हो, कोई प्रतियोगिता हो ।
इन सभी कार्यक्रमों मुख्य द्वार, मंडप, स्टेज आदि की साज-सजावट के साथ माल्यार्पण, पुष्पहार व पुष्पार्पण आदि में गेंदे के फूल का इस्तेमाल बहुतायत में किया जाता है।
किस्में और पैदावार के स्थान
गेंदे के फूल के आकार और रंग के आधार पर मुख्य दो किस्में होतीं हैं। एक अफ्रीकी गेंदा होता है और दूसरा फ्रेंच गेंदा होता है। फ्रेंच गेंदे की किस्म का पौधा अफ्रीकी गेंदे के आकार से छोटा होता है। इसके अलावा भारत में पैदा होने वाली गेंदे की किस्में इस प्रकार हैं:-ये भी पढ़े: फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए मिल रहा 40% प्रतिशत अनुदान
- पूसा बसंती गेंदा
- फ्रेंच मैरीगोल्ड
- अफ्रीकन मैरीगोल्ड
- पूसा नारंगी गेंदा
- अलास्का
- एप्रिकॉट
- बरपीस मिराक्ल
- बरपीस हनाइट
- क्रेकर जैक
- क्राउन आफ गोल्ड
- कूपिड़
- डबलून
- गोल्डन ऐज
- गोल्डन क्लाइमेक्स
- गोल्डन जुबली
- गोल्डन मेमोयमम
- गोल्डन येलो
- ओरेंज जुबली
- येलो क्लाइमेक्स
- रिवर साइड
अफ्रीकन गेंदे की हाइब्रिड किस्में: शोबोट, इन्का येलो, इन्का गोल्ड, इन्का ओरेंज, अपोलो, फर्स्ट लेडी, गोल्ड लेडी, ग्रे लेडी, आदि फ्रेन्च गेंदे की हाइब्रिड किस्में: (डबल) बोलेरो, जिप्सी डवार्फ डबल, लेमन ड्राप, बरसीप गोल्ड, बोनिटा, बरसीप रेड एण्ड गोल्ड, हारमनी, रेड वोकेड आदि। (सिंगल) टेट्रा रफल्ड रेड, सन्नी,नॉटी मेरियटा आदि।
गेंदे की खेती के लिए मिट्टी व जलवायु
वैसे तो गेंदा विभिन्न प्रकार की मिट्टी में पैदा किया जा सकता है लेकिन इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।जल जमाव वाली मिट्टी इसके लिए अच्छी नहीं होती है।
तेजाबी व खारी मिट्टी भी इसके लिये अनुकूल नहीं होती है। गेंदे की खेती के लिए शीतोष्ण और सम शीतोष्ण जलवायु सबसे अच्छी होती है। इसके अलावा भारत की प्रत्येक जलवायु में गेंदे की खेती होती है। पाला गेंदे का दुश्मन है। इससे बचाना जरूरी होता है।
खेती की अवधि
गेंदे की खेती बहुत कम समय में होती है। तीन से चार माह में इसकी पूरी खेती होती है। साल भर में गेंदे की खेती तीन बार की जा सकती है।गेंदे की खेती के लिए 15 से 30 डिग्री तापमान सबसे उपयुक्त होता है। 35 डिग्री से अधिक तापमान गेंदे की खेती के लिए नुकसानदायक होता है।
खेत की तैयारी
मिट्टी की जुताई अच्छी तरीके से की जानी चाहिये। जब तक खेत की मिट्टी भुरभुरी न हो जाये तब तक उसकी जुताई की जानी चाहिये। आखिरी जुताई के समय रूड़ी की खास व गोबर की खाद को मिलाया जाना चाहिये।बिजाई का समय
गेंदे की फसल साल में तीन बार ली जाती है। प्रत्येक फसल के लिए बीज बुवाई और पौधरोपाई का अलग-अलग समय निर्धारित होता है। साल में गर्मी की फसल के लिए जनवरी-फरवरी के बीच बीज बुवाई का समय होता है।इसके जब पौध तैयार हो जाती है जिसे फरवरी-मार्च में पौधे की रोपाई की जाती है। इसके बाद वर्षा ऋतु की फसल के लिए मध्य जून में बीजों की बुवाई की जाती है। इससे तैयार पौधों की रोपाई जुलाई मध्य में की जाती है।
इस तरह से सर्दी की फसल के लिए सितम्बर में बीज की बुवाई होती है और मध्य अक्टूबर में पौधों की रोपाई होती है।
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पौधों की रोपाई की मुख्य बातें
अच्छी तरह से तैयार क्यारियों के अच्छे पौधों को छांट कर पोपाई करनी चाहिये। पौधों की रोपाई शाम के समय ही की जानी चाहिये। पौधों की जड़ों को अच्छी तरह से मिट्टी से ढक दिया जाना चाहिये। साथ ही पानी का छिड़काव करना चाहिये।पौधों से पौधों की दूरी
अफ्रीकन नस्ल के पौधे काफी घने और बड़े होते हैं। इसलिये इनकी पौधे से पौधे की दूरी 15 गुणा 10 इंच की रखी जानी चाहिये।फ्रेंच पौधों की दूरी कम भी रखी जा सकती है। इस किस्म के पौधों की पौधों से दूरी 8 गुणा 8 या 8 गुणा 6 इंच रखी जानी चाहिये।सिंचाई
गेंदे की फसल 55 से 60 दिन में तैयार हो जाती है और यह फसल एक महीने तक लगातार देती रहती है। कुल मिलाकर तीन महीने में यह फसल पूर्ण हो जाती है। इसके लिए गर्मियों में सप्ताह में दो बार और सर्दियों में 10 दिन में सिंचाई की जानी चाहिये।पौधों की कटाई छंटाई
गेंदे के पौधों की बढ़वार रोकने के लिए जब पौधा बाढ़ पा आये तो उसकी पिचिंग यानी ऊपर से छंटाई कर देनी चाहिये। ताकि पौधा घना तैयार हो उससे फूल अधिक आयेंगे।उर्वरक प्रबंधन व खरपतवार नियंत्रण
गेंदे की खेती के लिए एक हेक्टेयर में 15 से 20 टन गोबर की खाद, 600 किलोग्राम यूरिया, 1000 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 200 किलोग्राम पोटाश की डाली जानी चाहिये।खाद का प्रयोग खेत को तैयार करते समय किया जाना चाहिये। उस समय गोबर की खाद, फास्फेट और पोटाश तो पूरे का पूरा मिलाना चाहिये लेकिन यूरिया का एक तिहाई हिस्सा मिलाना चाहिये।
आखिरी जुताई से पहले ही यह पूरी खाद मिट्टी में मिलाना चाहिये। बची हुई यूरिया का पानी देने के समय इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
खरपतवार नियंत्रण के लिए मजदूरों से कम से कम दो बार निराई करानी चाहिये। उसके अलावा एनिबेन, प्रोपेक्लोर और डिफेनमिड का इस्तेमाल किया जाना लाभप्रद होता है।
बीमारियां व कीट नियंत्रण
गेंदे के पौधे को रेड स्पाइटर माइट नाम का कीड़ा बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिए मैलाथियान या मेटासिस्टॉक्स का पानी में घोल कर छिड़काव करें।चेपा कीड़ा भी खुद तो नुकसान पहुंचाता ही है और साथ में रोग भी फैलाता है। इसके नियंत्रण के लिए डाईमैथेएट (रोगोर) या मैटासिस्टॉक्स का छिड़काव करें। एक बार में कीट नियंत्रण में न आयें तो दस दिन बाद दोबारा छिड़काव करायें।
आर्द्र गलन नामक गेंदे के पौधों में बीमारी लगती है। इसकी रोकथाम के लिए कैप्टान या बाविस्टिन के घोल का छिड़काव करें। धब्बा व झुलसा रोग से बढ़वार रुक जाती है।
इसके नियंत्रण के लिए डायथेन एम के घोल का छिड़काव प्रत्येक पखवाड़े में करें। पाउडरी मिल्डयू नामक बीमारी से पौध मरने लगता है। इसकी रोकथाम घुलने वाली सल्फैक्स का या कैराथेन 40 ईसी का छिड़काव करायें।