कहीं आप की गेहूं की फसल भी इस रोग से प्रभावित तो नहीं हो रही, लक्षणों पर जरूर दें ध्यान
उत्तर भारत में पिछले कुछ दिनों से बारिश हो रही है। इस बार इसको गेहूं की फसल के लिए अच्छा माना जाता है। लेकिन अगर बारिश ज्यादा होती है, तो यह कभी-कभी गेहूं की फसल में रतुआ रोग का कारण भी बन जाती है। इस बीमारी से फसल की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और कभी-कभी पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।रतुआ रोग का सबसे बड़ा कारण है नमी
गेहूं की फसल में यह बीमारी ज्यादातर इसी मौसम में देखने को मिलती हैं। रतुआ रोग में पत्तियां पीली, भूरी या फिर काले रंग के धब्बों से भर जाती हैं। पत्तों पर छोटे-छोटे धब्बे बन जाते हैं। जिसमें आपको पीला चूर्ण देखने को मिलता है। हाथ लगाते ही पता पूरी तरह से पीला होकर जुड़ जाता है।पत्तियां पीली पड़ने का कारण केवल रतुआ रोग नहीं
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है, कि रतुआ रोग गेहूं की फसल को प्रभावित करता है और उसकी पत्तियां पीली कर देता है। लेकिन जरूरी नहीं कि हमेशा पत्तियां पीली होने का कारण यही रोग हो। बहुत बार किसानों को लगता है, कि उनकी फसल में किसी ना किसी तरह का रोग हो गया है। इसलिए फसल की पत्तियों पर असर हो रहा है। बहुत बार गेहूं की फसल की पत्तियां पोषण की कमी के कारण भी रंग बदलने लगती हैं।ये भी देखें: गेहूं की फसल में पत्तियों का पीलापन कर रहा है किसानों को परेशान; जाने क्या है वजहआप इस बात का पता इस तरह से लगा सकते हैं, कि अगर आपकी गेहूं की फसल में रतुआ रोग है और आप उसकी पत्तियों को हाथ लगाते हैं। तो आपके हाथों पर एक चिपचिपा पदार्थ लग जाता है। जबकि पोषण की कमी के कारण पत्तियों में हुए बदलाव में ऐसा कुछ नहीं देखने को मिलता है।
मार्च आने तक सभी लक्षणों पर ध्यान दें और करें बचाव
कृषि विशेषज्ञों का मानना है, कि अगर आपकी गेहूं की फसल में पोषण की कमी है या फिर उसमें रतुआ रोग है। तो दिसंबर से मार्च के बीच में आपको यह लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इन महीनों में उत्तर भारत में तापमान 10 डिग्री से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। जो इस रोग के लिए एकदम सही माना गया है। हरियाणा की बात की जाए तो यहां पर अंबाला और यमुनानगर दोनों ही जिलों में इस रोग के काफी ज्यादा मामले सामने आए हैं।ये भी देखें: तेज बारिश और ओलों ने गेहूं की पूरी फसल को यहां कर दिया है बर्बाद, किसान कर रहे हैं मुआवजे की मांगआप कुछ तरीके अपनाकर इन दोनों ही चीजों से अपनी फसल का बचाव कर सकते हैं। बचाव के लिए प्रोपकोनाजोल 200 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। अगर आपको लग रहा है, कि आप की फसल में बीमारी ज्यादा है तो आप एक बार फिर से छिड़काव कर सकते हैं। इसके अलावा किसानों को यह सलामी दी जा रही है, कि वह फसल को उगाने के लिए उत्तम क्वालिटी के बीज इस्तेमाल करें। ताकि फसल रोग से प्रभावित ना हो।
05-Feb-2023