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गौशाला

Cow-based Farming: भारत में गौ आधारित खेती और उससे लाभ के ये हैं साक्षात प्रमाण

Cow-based Farming: भारत में गौ आधारित खेती और उससे लाभ के ये हैं साक्षात प्रमाण

दूध की नदियां बहाने वाला देश और सोने की चिड़िया उपनामों से विख्यात, भारत देश के अंग्रेजों के राज में इंडिया कंट्री बनने के बाद, देश में सनातन शिक्षा विधि, स्वास्थ्य रक्षा, कृषि तरीकों एवं सांस्कृतिक विरासत का व्यापक पतन हुआ है।

आलम यह है कि, कालगणना (कैलेंडर), ऋतु चक्र जैसे विज्ञान से दुनिया को परिचित कराने वाले देश में, आज गौ आधारित प्राकृतिक कृषि को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करना पड़ रहा है।

घर-घर गौपालन करने वाले भारत में सरकार को सार्वजनिक गौशाला बनाना पड़ रही हैं। पुरातन इतिहास में एक नहीं बल्कि ऐसे कई प्रमाण हैं कि कृषि प्रधान भारत में गौ आधारित कृषि को विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया था। जैविक तरीकों की आधुनिक खेती में अब गौवंश के महत्व को स्वीकारते हुए, गौमूत्र एवं गाय के गोबर का प्रचुरता से उपयोग किया जा रहा है।

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सरकारें भी गौपालन के लिए नागरिक एवं कृषकों को प्रेरित कर रही हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने तो किसान एवं पंचायत समितियों से गौमूत्र एवं गाय का गोबर खरीदने तक की योजना को प्रदेश मे लागू कर दिया है।

क्यों पूजनीय है गौमाता

गौमाता के नाम से सम्मानित गाय को भारत में पूजनीय माना जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास मानकर गौमाता की पूजा अर्चना की जाती है। प्रमुख त्यौहारों खासकर दीपावली के दिन एवं अन्नकूुट पर गाय का विशिष्ट श्रृंगार कर पूजन करने का भारत में विधान है।

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हिंदू पूजन विधियों में गौमय (गोबर) तथा गोमूत्र को भारतीय पवित्र और बहुगुणी मानते हैं। गाय के गोबर से बने कंडों का हवन में उपयोग किया जाता है। वातावरण शुद्धि में इसके कारगर होने के अनेक प्रमाण हैं। अब तक अपठित सिंधु-सरस्वती सभ्यता में गौवंश संबंधी लाभों के अनेक प्रमाण मिले हैं। सिंधु-सरस्वती घाटी एवं वैदिक सभ्यता में गौ आधारित किसानी से स्पष्ट है कि भारत में गौ आधारित कृषि कितनी महत्वपूर्ण रही है। सिंधु-सरस्वती सभ्यता से जुड़े अब तक प्राप्त प्रमाणों के अनुसार इस सभ्यता काल में मानव बस्तियों के साथ खेत, अनाज की प्रजातियों आदि के बारे में कृषकों ने काफी तरक्की कर ली थी। सिंधु-सरस्वती सभ्यता से जुड़ी अब तक प्राप्त हुई मुद्राओं में बैल के चित्र अंकित हैं। इससे इस कालखंड में गाय-बैल के महत्व को समझा जा सकता है।

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खेत, जानवर, गाड़ी/ गाड़ी चालक, यव (बार्ली), चलनी, बीज आदि संबंधी चित्र भी इस दौर की कृषि पद्धति की कहानी बयान करते हैं। सिंधु-सरस्वती सभ्यता के अब तक प्राप्त प्रमाणों में अनाज का संग्रह करने के लिये कोठार (भंडार) की भी पुष्टि हुई है। संस्कृत लिपि में प्रयोग में लाए जाने वाले लाङ्गल, सीर, फाल, सीता, परशु, सूर्प, कृषक, कृषीवल, वृषभ, गौ शब्द अपना इतिहास स्वयं बयान करने के लिए पर्याप्त हैं।

 वैदिक संस्कृत और आधुनिक फारसी में भी बहुत से साम्य हैं। फारसी में उच्चारित गो शब्द का मूल अर्थ गाय से ही है। मतलब गाय भारत में पनपी कई संस्कृतियों का अविभाज्य अंग रही है। गाय के गोबर का खेत में खाद, मकान की लिपाई-पुताई में उपयोग भारत में विधि नहीं बल्कि परंपरा का हिस्सा है। रसोई में चूल्हे को सुलगाने से लेकर पूजन हवन तक गाय के गोबर के कंडों की अपनी उपयोगिता है। गाय की उपयोगिता इस बात से भी प्रमाणित होती है कि पुरातन कृषि मेें गौपालक को दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी का पौष्टिक आहार प्राप्त होता था वहीं खेती कार्य के लिए तगड़े बैल भी गाय से प्राप्त होते थे।

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खेत में हल जोतने, अनाज ढोने, गाड़ी खींचने के लिये बैलों का उपयोग पुराने समय से भारत में होता रहा है। खेत की सिंचाई के लिए रहट चलाने में भी बैलों की तैनाती रहती थी।

कभी चलता था 24 बैलों वाला हल गौवंश से मिली इंसान, शहर को पहचान कामधेनु करे इतनी कामनाओं की पूर्ति

24 बैलों वाला हल

कई हॉर्स पॉवर वाले आज के प्रचलित आधुनिक ट्रैक्टर का काम पुराने समय में बैल करते थे। पुरातन ग्रंथों में दो, छह, आठ, बारह, यहां तक कि, 24 बैलों वाले भारी भरकम हलों का भी उल्लेख है।

गाय के नाम अनेक

आपको अचरज होगा कि अनेक शब्दों, नामों का आधार गाय से संबंधित है। गोपाल, गोवर्धन, गौशाला, गोत्र, गोष्ठ, गौव्रज, गोवर्धन, गौधूलि वेला, गौमुख, गौग्रास, गौरस, गोचर, गोरखनाथ (शब्द अभी और शेष हैं) जैसे प्रतिष्ठित शब्दों की अपनी विशिष्ट पहचान है। उपरोक्त वर्णित शब्दों से उसकी प्रकृति की पहचान सुनिश्चित की जा सकती है। जैसे गौधूली बेला से सूर्यास्त के समय का भान होता है, इसी तरह गाय के बछड़े को वसु कहा जाता है। इससे ही भगवान श्रीकृष्ण के पिता का नाम वसुदेव रखा गया। हिंदुओं के प्रमुख त्यौहार दीपावली के कुछ दिन पहले वसुबारस मनाकर गौवंश का पूजन कर पशुधन के प्रति कृतज्ञता जताई जाती है।

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ऋग्वेद काल में भी रथों में बैल जोतने का जिक्र है। मतलब गाय कृषक, कृषि के साथ ही ग्राम वासियों का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तरीके से सहयोगी रही है। गाय और बैल पुरातन काल से भारतीय जनजीवन का आधार रहे हैं। गाय की इन बहुआयामी उपयोगिताओं के कारण ही गौमाता को ‘कामधेनु’ भी कहा जाता है। मानव की इतनी सारी कामनाएं पूरी करने वाली बहुउपयोगी ‘कामधेनु’ (इच्छा पूर्ति करने वाली गाय) वर्तमान मशीनी युग (कलयुग) में और अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है।

गबरबंद

प्राचीन भारत में पानी रोकने के लिए मिट्टी पत्थर से बनाए जाने वाले गबरबन्द को बनाने में गोबर, मिट्टी, घासफूस का उपयोग किया जाता था। महाभारत में गायों की गिनती से संबंधित घोषयात्रा, गोग्रहण का भी उल्लेख है।

गौ अधारित खेती एवं फसल चक्र

भगवान श्रीकृष्ण के पिता का नाम जहां गौवंश पर आधारित वसुदेव है, वहीं उनके भाई बलराम को ‘हलधर’ भी कहा जाता है। हल बलराम का अस्त्र नहीं, बल्कि कृषि कार्य में उपयोगी था। इससे उस कालखंड की खेती-किसानी के तरीकों का भी बोध होता है।

चक्र का महत्व समझिये

प्राचीन भारत में बैल गाड़ियों में प्रयुक्त होने पहिये, कुएं से पानी खींचने के लिये रहट में लगने वाला चक्र, कोल्हू के बैल की चक्राकार परिक्रमा के अपने-अपने महत्व हैं। मतलब कृषि की सुरक्षा में भी चक्र महत्वपूर्ण है। खेती के महत्वपूर्ण चक्र को काल या ऋतु चक्र कहा जाता है। 

 भारत के पूर्वज किसानों ने साल में मौसम के बदलाव के आधार पर फसल चक्र का तक निर्धारण कर लिया था। ऋतुचक्र के मुताबिक ही किसान रवि और खरीफ की फसल का निर्धारण करते आए हैं। बीज बोने, क्यारी बनाने आदि में गौवंश का उल्लेखनीय उपयोग होता आया है। गौ एवं पशु पालन के लिए भी ऋतु चक्र में पूर्वजों ने बहुमूल्य व्यवस्थाएं की थीं। फसल चक्र का खेती, कृषि पैदावार के साथ ही गौ एवं अन्य पशु पालन से पुराना बेजोड़ नाता रहा है।

गौ अधारित खेती

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में गौपालन, गोकुल और बृंदाबन से जुड़ी बातें गौपालन के महत्व को रेखांकित करती हैं। पुरातन व्यवस्था में पालतू गायों का दूध, दही, मक्खन जहां अर्थव्यवस्था की धुरी था वहीं खेती में भी गाय की भूमिका अतुलनीय रही है। मानव उदर पोषण हेतु अनाज की पूर्ति के लिए गौ एवं पशु-पालन के साथ खेती किसानी के मिश्रित प्रबंधन का भारत में इतिहास बहुत पुराना है। गाय-बैलों के पालन का प्रबंध, खाद बनाने में गौमूत्र एवं गोबर का उपयोग, बीजारोपण, सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण आदि के लिए भारतवासी पुरातनकाल से गौवंश का बखूबी उपयोग करते आए हैं।

गौशालाओं से होगी अच्छी कमाई, हरियाणा सरकार ने योजना बनाई

गौशालाओं से होगी अच्छी कमाई, हरियाणा सरकार ने योजना बनाई

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने जनपद फतेहाबाद में स्थित स्वामी सदानंद प्रणामी गौ सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट(Swami Sadanand Parnami Charitable Trust) के वार्षिक उत्सव में संबोधन के उपरांत "अपना घर" में रहने वाले दीनहीन बेसहारा लोगों से उनका दुःख दर्द एवं हाल चाल जाना। साथ ही गौ नस्ल की बेहतरी के वैज्ञानिक तरीकों को प्रचलन में लाने का आग्रह किया।

उपमुख्यमंत्री ने कहा कि गौशालाओं में गौवंश के संरक्षण एवं उसके मूत्र व गोबर से उत्पाद निर्मित करने की अत्यंत आवश्यकता है, जिससे गौशालाएं किसी पर निर्भर न रहें। इसी सन्दर्भ में उपमुख्यमंत्री द्वारा लाडवा की गौशाला का जिक्र करते हुए कहा है, कि वहां गोबर एवं मूत्र के प्रयोग से विभिन्न प्रकार के उत्पाद निर्मित किये जा रहे हैं, जो गौशालाओं की आय का स्त्रोत बन रहे हैं। इसी के मध्य चौटाला ने कहा कि गाय के गोबर से पेंट भी बनाया जा सकता है, जिसका पिंजौरा की एक गौशाला उत्तम उदाहरण है।

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हरियाणा राज्य के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने बताया कि समस्त सरकारी संस्थानों में गाय के गोबर से निर्मित पेंट का इस्तेमाल हो, इसके लिए वह हर संभव कोशिश करेंगे। उनकी इस पहल से और भी गौशालाओं को प्रोत्साहन मिलेगा, साथ साथ इसी तरह से गौशालाओं में बायोगैस प्लांट स्थापित कर रसोई गैस बनाई जा सकती है जो आय का प्रमुख स्त्रोत भी बन सकता है, बायोगैस प्लांट स्थापित करने के लिए हरियाणा सरकार सहयोग करेगी।

चौटाला ने की सोलर प्लांट लगवाने की घोषणा

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने जनपद फतेहाबाद में स्तिथ स्वामी सदानंद प्रणामी गौ सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के वार्षिक उत्सव में संबोधन के उपरांत "अपना घर" में रहने वाले दीनहीन बेसहारा लोगों से उनका दुःख दर्द एवं हाल चाल जाना। आश्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आये दुष्यंत चौटाला ने रक्तदान शिविर में खुद रक्तदान किया एवं गौसेवा के साथ ही फतेहाबाद के स्वामी सदानंद गौ सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट आश्रम में स्वयं कोष से सोलर प्लांट लगवाने का एलान किया। गौवंश को अच्छे तरीके से रखने के लिए राज्य सरकार सम्पूर्ण प्रयास करेगी।

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दीनहीन लोगों की सहायता कर सराहनीय कार्य किया जा रहा है।

वार्षिक उत्सव के दौरान हरियाणा उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा है, कि संस्थान स्थापित करना बेहद सरल है जबकि, संस्थान को बेहतर तरीके से निरंतर चलाना बेहद कठिन है। श्रीकृष्ण प्रणामी आश्रम गौशाला के साथ-साथ ''अपना घर'' के माध्यम से दीनहीन व असहाय प्राणियों की सेवा की जा रही है। उन्होंने कहा कि गौ संरक्षण हेतु गौशाला निर्माण व वैज्ञानिक तरीकों से गायों की नस्ल बेहतरी के साथ दुग्ध उत्पादन में वृद्धि की अत्यंत आवश्यकता है। दुष्यंत चौटाला ने बताया, कि लगभग 40 वर्ष पूर्व गीर नस्ल के गौवंश को भारत से ही ब्राजिल ले जाया गया था। गीर नस्ल जो अब ब्राजील में ७० से ७२ लीटर तक रोजाना दूध देती हैं, एवं उन लोगों के आय का मुख्य स्त्रोत भी बनी है।

राजस्थान सरकार गाय पालने पर देगी 90 प्रतिशत अनुदान

राजस्थान सरकार गाय पालने पर देगी 90 प्रतिशत अनुदान

राजस्थान की गेहलोत सरकार ने गाय के गोबर को 2 रुपये प्रति किलो की कीमत से खरीदने का ऐलान की है। राज्य सरकार गौ पालन और गौ संरक्षण के लिए पूर्व से भी कामधेनु योजना को चलाया जा रहा है, जिसके लिए सरकार डेयरी चालकों को 90 फीसद तक का अनुदान प्रदान करती है। भारत में जहां एक तरफ गाय गौ मूत्र एवं गौ गोबर को लेकर आप विभिन्न प्रकार की समाचार को सुनते ही आए हैं। परंतु, आज हम आपको इस लेख जिस समाचार को बताने जा रहे हैं, वह आपके लाभ की बात है। दरअसल फिलहाल राजस्थान सरकार गाय के गोबर को 2 रुपये/किलो की कीमत से खरीदेगी। राज्य के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने यह जानकारी पुरानी पेंशन योजना की शुरुआत करने की चल रही मीटिंग के चलते प्रदान की। राजस्थान सरकार ने यह ऐलान किसानों को आर्थिक एवं सामाजिक तौर पर सबल बनाने एवं गाय के गोबर को बेहतर ढंग से प्रयोग में लाने की दिशा में एक नया बताया है।

ये योजनाऐं गौ पालन के लिए चल रही हैं

राजस्थान सरकार गाय पालने के लिए तथा उनका संरक्षण करने हेतु 90 प्रतिशत तक की अनुदान योजना को भी चला रही है। राज्य सरकार के मुताबिक, इससे राज्य में दुग्ध की पैदावार की मात्रा तो बढ़ेगी। इसके साथ ही गौ वंशों के संरक्षण के लिए लोगों को प्रोत्साहित भी किया जा सकेगा। सरकार इस योजना के जरिए ज्यादा दूध देने वाली गायों की प्रजनन दर को बढ़ाएगी। साथ ही, इनकी खरीद पर नियमावली के मुताबिक किसानों को 90 फीसद तक का अनुदान भी प्रदान करेगी। सरकार की इस योजना का फायदा सिर्फ डेयरी धारकों के लिए ही है। क्योंकि, यह अनुदान योजना 25 गायों के पालन पर दी जाती है, जिसके लिए प्रदेश सरकार भिन्न-भिन्न तरीकों के जरिए से लागत का 90 प्रतिशत तक की अनुदान के रूप में प्रदान करेगी।

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गोबर 2 रुपए किलो के हिसाब

राजस्थान सरकार ने गौ संरक्षण के साथ-साथ गाय के गोबर को 2 रुपये प्रति किलो की कीमत से खरीदेगी। राज्य सरकार इससे पूर्व में भी गायों के संरक्षण एवं लोगों के द्वारा इसके पालन के लिए विभिन्न योजनाओं को संचालित कर रही है। इन योजनाओं में कामधेनु योजना, कामधेनु पशु बीमा योजना और गाय योजना इत्यादि हैं। राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किसानों को इस दिशा में और भी ज्यादा प्रोत्साहित करने के लिए गाय के गोबर को 2 रुपये प्रति किलो की कीमत से खरीदने का ऐलान किया है।

कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा 192 मीट्रिक टन गाय का गोबर

कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा 192 मीट्रिक टन गाय का गोबर

गोवंश पालकों के लिए खुशखबरी - कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा १९२ मीट्रिक टन गाय का गोबर

नई दिल्ली। गोवंश पालकों के लिए खुशखबरी है। अब गोवंश का गोबर बेकार नहीं जाएगा। सात समुंदर पार भी गोवंश के गोबर को अब तवज्जो मिलेगी। अब पशुपालकों को गाय के गोबर की उपयोगिता समझनी पड़ेगी। पहली बार देश से 192 मीट्रिक टन गोवंश का गोबर कुवैत में खेती के लिए जाएगा। गोबर को पैक करके कंटेनर के जरिए 15 जून से भेजना शुरू किया जाएगा। सांगानेर स्थित श्री पिंजरापोल गौशाला के सनराइज ऑर्गेनिक पार्क (
sunrise organic park) में इसकी सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।

कुवैत में जैविक खेती मिशन की शुरुआत होने जा रही है।

भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ (Organic Farmer Producer Association of India- OFPAI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि जैविक खेती उत्पादन गो सरंक्षण अभियान का ही नतीजा है। जिसकी शुरुआत हो चुकी है। पहली खेप में 15 जून को कनकपुरा रेलवे स्टेशन से कंटेनर रवाना होंगे। श्री गुप्ता ने बताया कि कुवैत के कृषि विशेषज्ञों के अध्ययन के बाद फसलों के लिए गाय का गोबर बेहद उपयोगी माना गया है। इससे न केवल फसल उत्पादन में बढ़ोतरी होती है, बल्कि जैविक उत्पादों में स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर देखने को मिलता है। सनराइज एग्रीलैंड डवलेपमेंट को यह जिम्मेदारी मिलना देश के लिए गर्व की बात है।

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राज्य सरकारों की भी करनी चाहिए पहल

- गाय के गोबर को उपयोग में लेने के लिए राज्य सरकारों को भी पहल करनी चाहिए। जिससे खेती-किसानी और आम नागरिकों को फायदा होगा। साथ ही स्वास्थ्यवर्धक फसलों का उत्पादन होगा। प्राचीन युग से पौधों व फसल उत्पादन में खाद का महत्वपूर्ण उपयोग होता हैं। गोबर के एंटीडियोएक्टिव एवं एंटीथर्मल गुण होने के साथ-साथ 16 प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व भी पाए जाते हैं। गोबर इसमें बहुत महत्वपूर्ण है। सभी राज्य सरकारों को इसका फायदा लेना चाहिए।

गाय के गोबर का उपयोग

- प्रोडक्ट विवरण पारंपरिक भारतीय घरों में गाय के गोबर के केक का उपयोग यज्ञ, समारोह, अनुष्ठान आदि के लिए किया जाता है। इसका उपयोग हवा को शुद्ध करने के लिए किया जाता है क्योंकि इसे घी के साथ जलते समय ऑक्सीजन मुक्त करने के लिए कहा जाता है। गाय के गोबर को उर्वरक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। ये भी पढ़े : सीखें वर्मी कंपोस्ट खाद बनाना 1- बायोगैस, गोबर गैस : गैस और बिजली संकट के दौर में गांवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन चल पड़ा है। पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्रोत हैं, किंतु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। जब तक गौवंश है, अब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी। एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवनदान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है। 2- गोबर की खाद : गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में किया जाता है। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है। गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। ये भी पढ़े : सीखें नादेप विधि से खाद बनाना 3- गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 4- कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 5- प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। 6- गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल में मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है। 7- गोबर के कंडे या उपले : वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है। कंडे पर रोटी और बाटी को सेंका जा सकता है। 8- गोबर का पाउडर के रूप में खजूर की फसल में इस्तेमाल करने से फल के आकार में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है।

भारत मे 30% गोबर से बनते हैं उपले

- भारत में 30% गोबर से उपले बनते हैं। जो अधिकांश ग्रामीण अंचल में तैयार किए जाते हैं। इन उपलों को आग जलाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। जबकि ब्रिटेन में हर वर्ष 16 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाता है। वहीं चीन में डेढ़ करोड़ परिवारों को घरेलू ऊर्जा के लिए गोबर गैस की आपूर्ति की जाती है। अमेरिका, नेपाल, फिलीपींस तथा दक्षिणी कोरिया ने भारत से जैविक खाद मंगवाना शुरू कर दिया है। -------- लोकेन्द्र नरवार
इस राज्य में बनने जा रहीं है नंदीशालाएं, किसानों को मिलेगी राहत

इस राज्य में बनने जा रहीं है नंदीशालाएं, किसानों को मिलेगी राहत

किसानों की फसल को खुले पशुओं से बचाने के लिए राजस्थान सरकार बना रही नंदीशालाएं

जयपुर। खुले में घूम रहे गोवंश किसानों की फसल को बर्बाद कर रहे हैं। कई राज्यों में किसान खुले में घूम रहे गोवंश की समस्या से जूझ रहे हैं। राजस्थान सरकार ने किसानों के हित में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इसके तहत ग्राम स्तर, पंचायत स्तर और जिला स्तर पर नंदीशालाएं (
गौशाला) बनाई जाएंगी। जिससे किसानों की फसल को खुले में घूमने वाले पशुओं के नुकसान से बचाया जा सके। इसके लिए सरकार प्रत्येक किसान को नंदीशालाएं बनाने के लिए 48 हजार रुपये देने जा रही है।

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२० बीघा की जगह अब १० बीघा खेत की जरुरत

राजस्थान सरकार ने नंदीशालाएं बनाने के लिए किसानों को बड़ी राहत दी है। इसके तहत अब किसान को २० बीघा की जगह १० बीघा खेत में ही नंदीशालाएं खोलने के निर्देश दिए गए हैं। इन नंदीशालाओं का संचालन ग्राम स्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा।

अपाहिज व अंधे गोवंश के भरण पोषण को अतिरिक्त अनुदान

जो किसान अपनी नंदीशाला में अपाहिज व अंधे गोवंश की सेवा करेंगे, सरकार ने उनके लिए अतिरिक्त अनुदान देने की व्यवस्था बनाई है। अतिरिक्त संसाधनों की व्यवस्था एवं अतिरिक्त अनुदान देने के प्रस्ताव को स्वीकृति के लिए वित्त विभाग को भेजा गया है।

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किसानों को तारबंदी की मिली है छूट

नंदीशालाओं के संचालन के बाद भी यदि निराश्रित और खुले में घूम रहे गोवंश से फसल को नुकसान हो रहा है, तो किसान स्वंय ही अपने खेत की तारबंदी कर सकते हैं। जिन किसानों के पास १.५ हेक्टेयर भूमि है, तो उन किसानों को तारबंदी के लिए सरकार आर्थिक मदद देगी। अधिक भूमि वाले किसान अपने ही खर्चे पर तारबंदी कर सकते हैं। ------ लोकेन्द्र नरवार
छत्तीसगढ़ की राह चला कर्नाटक, गौमूत्र व गाय का गोबर बेच किसान होंगे मालामाल!

छत्तीसगढ़ की राह चला कर्नाटक, गौमूत्र व गाय का गोबर बेच किसान होंगे मालामाल!

एक सैकड़ा गौशाला बनाने का लक्ष्य, पशु पालन राज्य मंत्री ने जाहिर किए विचार

योजना प्रारंभिक दौर में, सीएम से करेंगे चर्चाः चव्हाण

गौपालन को बढ़ावा देने एवं किसानों को अतिरिक्त आय का जरिया प्रदान करने के लिए कर्नाटक सरकार ने गौवंश पालकों से
गौमूत्र या गोमूत्र (गाय का मूत्र) (Cow Urine) एवं गाय का गोबर (Cow Dung) खरीदने का निर्णय लिया है। आपको ज्ञात हो छत्तीसगढ़ सरकार भी किसानों से गौमूत्र खरीदकर उन्हें लाभ प्रदान कर रही है।

अतिरिक्त आय प्रदान करना लक्ष्य

कर्नाटक राज्य पशुपालन विभाग किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए प्रयासरत है। किसानों की आय मेें वृद्धि हो, इसके लिए कृषि आय से जुड़े आय के तमाम विकल्पों के लिए सरकार प्रोत्साहन एवं मदद प्रदान कर रही है। प्रदेश के गौपालक किसानों को गाय के दूध के अलावा भी अतिरिक्त आय मिल सके, इसके लिए किसानों से गोमूत्र और गोबर खरीदने की योजना कर्नाटक राज्य सरकार ने बनाई है।


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गौशालाओं की मदद

राज्य सरकार ने किसानों से गौमूत्र एवं गोबर खरीदने के लिए विशिष्ट योजना बनाई है। इस प्लान के तहत योजना की शुरुआत में प्रस्तावित गौशालाओं की मदद से किसानों से गौमूत्र एवं गाय के गोबर की खरीद की जाएगी। कर्नाटक सरकार इस समय कुछ निजी गौशालाओं का वित्त पोषण करती है। इसके अलावा राज्य सरकार ने इस अभिनव योजना के लिए आगामी दिनों में प्रदेश में गौशालाओं (Cow Shed) के विस्तार की योजना बनाई है। इसके तहत प्रदेश में 100 गौशाला (Cow Shed) बनाने का सरकार का लक्ष्य है।


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शुरू हो चुका है कार्य

लक्ष्य निर्धारित गौशालाओं को बनाने के लिए विभाग ने जिलों में भूमि चिह्नित की है। योजना के अनुसार चराई के लिए पृथक गौशाला बनाने का निर्णय लिया गया है।

गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग

किसानों से क्रय किए गए गोबर और गोमूत्र से राज्य में कई तरह के उपयोगी उपोत्पाद बनाए जाएंगे। आमजन को भी गोबर-गौमूत्र निर्मित जीवन रक्षक इन उत्पादों के उपयोग के लिए मेलों, प्रदर्शनियों के जरिये जागरूक किया जाएगा। सरकार का मानना है कि, कृषि आधारित इस अभिनव पहल से प्रदेश में रोजगार के नए अवसर कृषि से इतर दूसरे लोगों को भी मिल सकेंगे।


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छत्तीसगढ़ सरकार ने किया प्रेरित

आपको बता दें, छत्तीसगढ़ में सरकार ने इस दिशा में पहल शुरू की थी। छत्तीसगढ़ में गौधन न्याय योजना के तहत, गोबर और गौमूत्र की खरीद कर सरकार किसानों को लाभ के अवसर प्रदान कर रही है। इस योजना के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के गौपालकों से चार रुपए प्रति लीटर की दर से गोमूत्र खरीदने का निर्णय लिया है। इस पहल के अलावा छत्तीसगढ़ राज्य में पहले से ही राज्य सरकार द्वारा पशुपालकों से दो रुपए प्रति किलो की दर से गाय का गोबर (Cow Dung) खरीदा जा रहा है। प्रदेश सरकार की इस पहल से न केवल पशु पालकों का गौपालन के प्रति रुझान बढ़ा है, बल्कि, गौपालन से पशु पालकों की कमाई में अतिरिक्त इजाफा भी देखने को मिला है।


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पशुपालन राज्य मंत्री प्रभु चव्हाण के हवाले से जारी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, निजी मठ और संगठन राज्य में गौशाला का संचालन कर गौसेवा करते हैं। इन संगठनों द्वारा गोमूत्र और गाय के गोबर से बायो-गैस, दीया, शैंपू, कीटनाशक, औषधि जैसे कई जीवनोपयोगी उत्पाद बनाए जाते हैं। पशुपालन राज्य मंत्री ने इस दिशा में हाथ बंटाने की बात कही।

छग मॉडल से लेंगे प्रेरणा

उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लागू की गई योजना का अध्ययन कर उससे सीख लेने की बात कही। प्रभु चव्हाण ने बताया कि, कर्नाटक में गौमूत्र एवं गाय के गोबर से जुड़ी योजना को लागू करने के पहले छत्तीसगढ़ के अनुभवों का अध्ययन किया जाएगा। मंत्री के अनुसार उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र राज्य में किए जा रहे जैव ईंधन (Bio Fuel) के प्रयोग भी काफी प्रभावकारी हैें। उन्होंने महाराष्ट्र के किन्नरी मठ में गोबर औऱ गौमूत्र से बनाए जाने वाले 35 उत्पादों से मिलने वाले लाभों का भी जिक्र मीडिया से एक चर्चा में किया। प्रभु चव्हाण ने योजना को फिलहाल शुरुआती चरण में होना बताकर, इसके विस्तार के लिए जल्द ही मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से चर्चा करने की बात कही।
गायों को छुट्टा छोड़ने वालों पर कसा जायेगा शिकंजा

गायों को छुट्टा छोड़ने वालों पर कसा जायेगा शिकंजा

आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा को लेकर सरकार का कड़ा कदम

मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) श्याम बहादुर सिंह ने रविवार को कहा कि सरकार ने
गौशालाएं (नंदीशालाएं) बनायी हैं, परन्तु कई परिवार फिर भी अपने मवेशियों को इन गौशालाओं में ले जाने की जगह सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के शाहजहांपुर जनपद में गायों को खुला छोड़े जाने के मामलों पर प्रतिबंध लगाने हेतु प्रशासन ने प्रत्येक गांव एवं प्रत्येक घर में मवेशियों की संख्या की सूची बनाना प्रारम्भ कर दिया है। प्रशासनिक अधिकारी ने कहा है, कि इस प्रयास से मवेशियों की संख्या की जानकारी में मदद मिलेगी एवं यह भी ज्ञात होगा कि किसने कितनी गायों को दूध न देने की वजह से खुला छोड़ दिया है। जिन्होंने छोड़ा है उनसे इसका कारण पूछा जायेगा।


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उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जनपद में ५६ गौशालाएं हैं जिनमें १२,६६९ गायें हैं, चार गौशालाएं और स्थापित की जाएँगी। सीडीओ ने कहा कि उन्होंने सरकारी कर्मचारियों को निर्देशित किया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों के ग्रामीणों से बात करें एवं उन्हें अपने मवेशियों को दूध न देने पर खुला छोड़ने से मना करें। सीडीओ ने बताया कि प्रत्येक गांव के हर घर में गायों की संख्या की जानकारी के लिए एक सर्वेक्षण चलाया गया है। इस दौरान ग्रामीणों से पूछा जाएगा कि दूध न देने की स्थिति में कितने लोगों ने अपने मवेशियों को खुला छोड़ दिया है। मवेशियों को खुला छोड़ने के कारण कई सारे सड़क हादसे हो जाते हैं।

आवारा पशुओं ने किसानों को फसल के विकल्प चुनने के लिए किया विवश

जनपदों में पशु तस्करों एवं गोहत्या में संदिग्ध लोगों के विरुद्ध सख्त कारवाई हेतु कदम उठाये जा रहे हैं। इसी बीच कई किसानों ने छुट्टा मवेशियों की समस्या पर अपनी पीड़ा जाहिर की है। मिर्जापुर थाना क्षेत्र के काकर कठा गांव निवासी किसान सर्वेश कुमार कश्यप ने बताया, ‘मेरे पास छह एकड़ भूमि है एवं मेरे परिवार में आठ सदस्य हैं। महिलाएं दिन में गृहकार्य करके फसलों की देखरेख करती हैं एवं पुरुष रात्रि को आवारा पशुओं से फसल की देखरेख करते हैं। आवारा पशुओं के झुंड को फसल से दूर करने हेतु पटाखे आदि का प्रयोग करते हैं। छुट्टा पशुओं के द्वारा फसल में होने वाले नुकसान के भय से अधिकतर किसानों को फसलों के विकल्प अपनाने के लिए विवश कर दिया है।


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आवारा पशु इन फसलों को शीघ्रता से नष्ट कर देते हैं

अल्लाहगंज क्षेत्र के मनिहार गांव के एक सीमांत किसान भगत कुमार शर्मा ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व तक वह बड़ी मात्रा में चने एवं अरहर की खेती करते थे, लेकिन आवारा पशुओं इन फसलों को आसानी से नष्ट कर देते हैं। उन्होंने बताया, अधिकतर किसान अब सिर्फ धान, गेहूं एवं गन्ना को विकल्प के रूप में चुन रहे हैं। बतादें कि मीरानपुर कटरा विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक राजेश यादव ने कहा कि वह स्वयं के गांव शिवरा से शाहजहांपुर शहर तक, प्रतिदिन ३५ किलोमीटर की यात्रा के दौरान आवारा पशुओं की वजह से होने वाली सड़क दुर्घटनाएं देखते हैं। इसी सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि कुछ दिन पूर्व दो बैलों की आपस में भिड़ंत होने के कारण मेरी गाड़ी उनसे सड़क पर टकरा गयी, जिससे उनके साथ और भी दो लोग चोटिल हो गए। आवारा पशु प्रतिदिन २ से ४ सड़क दुर्घटनाओं की वजह बन रहे हैं।
मथुरा में बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) बनाने जा रहा है अडानी ग्रुप, साथ ही, गोबर से बनेगी CNG

मथुरा में बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) बनाने जा रहा है अडानी ग्रुप, साथ ही, गोबर से बनेगी CNG

उत्तर प्रदेश के मथुरा में आने वाले बरसाने की श्रीमाता गौशाला से प्रति दिन 35 से 40 टन गोबर निर्मित होता है। इसलिए अडानी कंपनी द्वारा 200 करोड़ के खर्च से गोबर गैस प्लांट (Gobar Gas Plant) स्थापित कर रही है, जिसमें बायोगैस CNG सहित उर्वरक भी निर्मित किया जाएगा। 

जब भी गाय पालन एवं गौ सेवा की बात सामने आती है, तब मस्तिष्क में मथुरा-वृंदावन की एक छवि का दर्शन होता है। यहां पौराणिक काल से ही गाय पालन का विशेष महत्व है। पूर्ण विश्व ब्रज क्षेत्र को दूध हब के रूप में जानता है। 

परंतु, अब इसकी पहचान बायोगैस हब के रूप में की जाती है। हालाँकि, मथुरा में बहुत पहले से रिफाइनरी उपस्थित है। परंतु, फिलहाल निजी कंपनियां भी मथुरा के अंदर बायोगैस सीएनजी एवं खाद निर्मित करने हेतु निवेश किया जा रहा है।

भारत की बड़ी कंपनियों में शम्मिलित अडानी ग्रुप की टोटल एनर्जी बायोमास लिमिटेड द्वारा अब बरसाना स्थित रमेश बाबा की श्रीमाता गौशाला में बायोगैस प्लांट लगाने की योजना पर कार्य चल रहा है। 

आपको बतादें कि 200 करोड़ के खर्च से स्थापित होने वाला यह बायोगैस प्लांट सीएनजी सहित तरल उर्वरक नहीं निर्मित करेगा। जिसके लिए श्री माता गौशाला से प्राप्त होने वाले गोबर का उपयोग किया जाएगा। इस प्लांट हेतु किसानों एवं पशुपालकों से भी गोबर खरीदने की योजना है।

अडानी ग्रुप निर्मित करेगा सीएनजी (CNG) एवं गोबर

भारत की बड़ी गौशालाओं में शम्मिलित बरसाना की श्री माता गौशाला के अंदर गौ सेवा सहित आमदनी का सृजन भी होगा। खबरों के मुताबिक, तो अड़ानी टोटल गैस लिमिटेड द्वारा रमेश बाबा की श्री माता गौशाला से मिलकर समझौता हुआ है, जिसके अंतर्गत गौशाला की भूमि पर ही बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) स्थापित किया जाना है। 

इस 13 एकड़ में विस्तृत प्लांट 40 टन गोबर की क्षमता रखता है, जिससे कि 750 से 800 किलो तक सीएनजी की पैदावार उठायी जा सकती है। साथ ही, प्लांट से प्राप्त होने वाला तरल खाद भी किसानों को मुहैय्या कराया जाएगा। 

इस समझौते के अंतर्गत गौशाला के अंदर निर्मित किया जा रहा है। अडानी ग्रुप का बायोगैस प्लांट 20 वर्ष हेतु गौशाला की भूमि का उपयोग करेगा। जिसके बदले में गौशाला को किराया एवं गोबर के बदले भुगतान भी प्रदान किया जाना है।

केवल इतना ही नहीं, यहां निर्मित होने वाला बायोगैस CNG विक्रय कर जो आय होनी है। जिसका एक भाग गौशाला में गो सेवा पर भी व्यय होगा।

इन प्रसिद्ध डेयरियों ने भी बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) की स्थापना की है

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था जो कि कभी कृषि एवं पशुपालन पर आश्रित रहती थी। वह अब गोबर से आय के मॉडल को तीव्रता से अपना रही है। वर्तमान में बहुत से किसान-पशुपालक बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) स्थापित करके तरल खाद सहित व्यक्तिगत जरूरतों को पूर्ण करने हेतु बायोगैस का निर्माण कर रही हैं। 

इससे बहुत सारे घरों का चूल्हा चलता है। गोबर के मॉडल में तीव्रता से आने वाली वृद्धि से मुनाफा देखने को मिल रहा है। इसलिए वर्तमान में बहुत सारी कंपनियों द्वारा इस मॉडल पर निवेश किया जा रहा है। 

अडानी समूह से पूर्व अमूल कंपनी द्वारा भी गुजरात में भी ऐसा ही बायोगैस प्लांट स्थापित किया गया है। हरियाणा की वीटा डेरी द्वारा भी नारनौल में इसी तरह के प्लांट पर कार्य किया जा रहा है। 

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देश की कई बड़ी कंपनियां गोबर से करोड़ों की कमाई करने की तैयारी कर रही हैं. इसी गोबर से रसोई गैस और वाहनों में इस्तेमाल होने वाली सीएनजी गैस बनाई जा रही है. साथ ही,फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर भी बनाए जा रहे हैं.

बायोगैस पूर्व से ही निर्मित की जा रही है

किसान तक की रिपोर्ट के अनुसार, मथुरा के बरसाना स्थित रमेश बाबा की श्री माता गौशाला में पूर्व से ही एक बायोगैस प्लांट स्थापित किया गया है। जिससे प्रत्येक दिन 25 टन गोबर से बायोगैस निर्मित की जाती है। 

इस गैस के माध्यम से ही गौशाला रौशन रहती है। बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) से निकलने वाली गैस द्वारा 100 केवी का विद्युत जनित्र संचालित होता है। गौशाला के विभिन्न कार्यों हेतु विघुत आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है।

नीति आयोग का मास्टर प्लान, गौशालाओं की होगी मदद, आवारा पशुओं से मिलेगा छुटकारा

नीति आयोग का मास्टर प्लान, गौशालाओं की होगी मदद, आवारा पशुओं से मिलेगा छुटकारा

देश में गौशालाओं को बनाने के लिए लोगों को हर तरह से जागरूक किया जा रहा है. बढ़ती जागरूकता को देखते हुए, नीति आयोग ने गौशालाओं की मदद के लिए मास्टर प्लान बना लिया है. बताया जा रहा है कि, इसका सीधा फायदा हमारे किसान भाइयों के साथ साथ खेती बाड़ी को भी होगा. जिससे स्वभाविक रूप से आवारा पशुओं से लोगों को छुटकारा मिल सकेगा. साथ ही उनसे होने वाली दिक्कतें भी कादी हद तक दूर हो जाएंगी. जब से देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, तभी से पूरे देश में गौशालाओं की स्थापना को लेकर काफी जागरूकता बढ़ गयी है. ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक आवारा पशुओं के साथ साथ आवारा गायों में भी लोगों को खूब परेशान कर दिया है. जहां एक तरफ इनकी वजह से खेत खलियानों में दिक्कते बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ चाहे गांव हो या शहर, हर जगह गौशालाओं का भी निर्माण किया जा रहा है. जिसे देखते हुए नीति आयोग ने एक ओस मास्टर प्लान तैयार किया है, जिससे वो एक तीर से एक नहीं बल्कि दो-दो निशाने लगाएगी. इस मास्टर प्लान के तहत देशभर में बनी गौशालाओं की स्थिति और सूरत तो सुधरेगी ही, साथ ही वो न्य बिजनेस भी कर आसानी से पाएंगी.
  • गौशालाओं को वित्तीय मदद देने की सिफारिश

नीति आयोग के सदस्य पड़ पर कार्यरत रमेश चंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गयी. जिसमें गौशालाओं को वित्तीय मदद देने की सिफारिश की गयी है. इसके अलावा उन्हें नये बिजनेस का भी आइडिया दिया गया है. जिसके तहत गाय का गोबर और गोमूत्र से बनी चीजों की मार्केटिंग कर सकें. हालांकि इन सभी चीजों का इस्तेमाल कृषि सेक्टर में खूब किया जाता है.
  • ऑनलाइन होगा गौशालाओं का रजिस्ट्रेशन

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक समिति का एक और प्रस्ताव भी है. जिसमें सभी गौशालाओं के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की बात कही गयी. इसके लिए एक पोर्टल भी बनाया जाना चहिये. इस पोर्टल को नीति आयोग के दर्पण पोर्टल की तरह बनाने का सुझाव दिया गया है. जो पशु कल्याण बोर्ड सहायता हासिल करने के लायक बनाया जाएगा. यह भी पढ़ें: गौशालाओं से होगी अच्छी कमाई, हरियाणा सरकार ने योजना बनाई
  • आवारा पशु नहीं बनेंगे परेशानी का सबब

इतना ही नहीं समिति ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की है. जिसके मुताबिक गौशालाओं को आर्थिक मदद देने की बात कही गयी है. जिससे लोगों को आवारा पशुओं की वजह से होने वाली परेशानियों का समाधान मिल सकेगा. समिति का कहना है कि, गौशालाओं को जो भी मदद दी जाएगी, उसको गायों की कुल संख्या से जोड़ना चाहिए. इसके अलावा आवारा और बिमारी से बचाई गयी गायों की स्थिति में सुधार किया जा सके.
  • रियायती ब्याज पर मिल सकता है फाइनेंस

समिति के मुताबिक गौशालाएं आर्थिक रूप से सक्षम बनें. इसके लिए उन्हें वित्तीय मदद मिलनी चाहिए. जिससे उन्हें अपना बिजनेस चलाने और क्यादा मुनाफा कमाने में मिलने वाले अंतर के बराबर आर्थिक मदद को विअबले गैप फंडिंग के रूप में दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही गौशालाएं जो भी पूंजी निवेश करें, उसके लिए और वर्किंग कैपिटल के लिए रियायती ड्रोन पर फाइनेंस किया जाना चाहिए.

ये बिजनेस कर सकती हैं गौशालाएं

  • गौशालाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए, उनकी पूंजीगत तरीके से मदद की जानी चाहिए.
  • पूंजीगत तरीके से हुई मदद से गौशालाएं गोबर और गोमूत्र से बने उत्पादकों की मार्केटिंग आसानी से कर सकेंगी.
  • गोबर और गोमूत्र से बने उत्पादकों का इस्तेमाल जैविक कृषि को आगे बढ़ाने में काफी हद तक कारगार हो सकता है.
  • नीति आयोग के मास्टर प्लान से गौशालाओं को गोबर और गोमूत्र से बनी चीजों के प्रोडक्शन और पैकेजिंग के साथ साथ मार्केटिंग और वितरण करने में मदद मिल सकती है.
  • अगर प्राइवेट सेक्टर मरीं निवेश किया जाएगा तो, जैविक उर्वरक का ज्यादा और भारी पैमाने पर उत्पादन हो सकेगा.
प्रोडक्शन एंड प्रमोशन ऑफ ऑर्गेनिक एंड बायो फर्टिलाइजर्स विथ स्पेशल फोकस ऑन इंप्रूविंग इकोनॉमिक वायबिलिटी ऑफ गौशाला की रिपोर्ट में समिति की ओर से ये सभी सुझाव दिए गये हैं.