जल्द ही शुरू होगी चना की बुवाई, जानिए बुवाई से लेकर कटाई तक की जानकारी
देश में खरीफ का सीजन समाप्त होने की ओर है। इसके बाद जल्द ही रबी का सीजन प्रारम्भ होने वाला है, जिसमें रबी की फसलों की बुवाई शुरू कर दी जायेगी। कई राज्यों में मध्य अक्टूबर से रबी की फसलों की बुवाई शुरू कर दी जाती है, तो कई राज्यों में दिसंबर तक जारी रहती है। आज हम आपको ऐसी ही खेती के बारे में बताने जा रहे हैं जिसको भारत में बड़ी मात्रा में किया जाता है और किसान इसकी खेती करना बेहद पसंद भी करते हैं। यह एक दलहनी फसल है जिसे हम चना (chana; bengal gram; chickpea) के नाम से जानते हैं। भारत सरकार लगातार दलहनी फसलों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयासरत है। इसको लेकर सरकार समय-समय पर कई माध्यमों से किसानों को दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ाने को लेकर प्रोत्साहित करती रहती है। चने की खेती एक फायदे की खेती होती है, जिसे करने से किसान ज्यादा रुपये कमा सकते हैं, क्योंकि इसका भाव अन्य फसलों के मुकाबले बेहतर रहता है। चने का उपयोग भारत में अंकुरित फ़ूड से लेकर कई व्यंजनों में किया जाता है। इसकी फसल मुख्यतः मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों में की जाती है। वर्तमान में भारत चना उत्पादन के मामले में दुनिया में प्रथम स्थान रखता है।चने की कौन-कौन सी उन्नत किस्में किसानों को पहुंचा सकती हैं फायदा ?
चने की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्में के साथ उन्नत बीजों का चयन करना बेहद आवश्यक है। चना मुख्यतया तीन प्रकार का होता है, जिसे हम काला चना या देशी चना, काबुली चना और हराचना के नाम से जानते हैं। [caption id="attachment_11162" align="alignnone" width="750"] हराचना, काबुली चना और काला चना या देशी चना[/caption] इन तीन प्रकार के चनों की कई किस्में बाजार में उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए -- काला चना या देशी चना में वैभव, जेजी-74, उज्जैन 21, राधे, जे. जी. 315, जे. जी. 11, जे. जी. 130, बीजी-391, जेएकेआई-9218, विशाल जैसी किस्में बाजार में उपलब्ध हैं।
- काबुली चने में काक-2, श्वेता (आई.सी.सी.व्ही.- 2), जेजीके-2, मेक्सीकन बोल्ड जैसी किस्में बाजार में आसानी से मिल जाती हैं।
- हरे चने में जे.जी.जी.1, हिमा जैसी किस्में बाजार में किसानों को बेहद आसानी से प्राप्त हो जाएंगी।
चने की खेती के लिए मिट्टी का चयन किस प्रकार से करें ?
वैसे तो भारत में चने की खेती हर तरह की मिट्टी में की जाती है। लेकिन इस फसल की खेती के लिए रेतीली और चिकनी मिट्टी, अन्य मिट्टियों की अपेक्षा बेहतर मानी गई है। इन मिट्टियों में चने की पैदावार होने की संभावना अन्य मिट्टियों की अपेक्षा ज्यादा है। चने की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से लेकर 7 के बीच होना चाहिए। साथ ही जल निकासी की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि खेत में पानी भरने पर फसल को सड़ने से बचाया जा सके। अगर किसान बुवाई के पहले मिट्टी का प्रायोगिक परीक्षण करवाते हैं तो बेहतर होगा। इससे खेती में लगने वाली लागत को कम करने में मदद मिल सकती है।चने की बुवाई किस प्रकार से करें ?
चने की बुवाई के पहले खेत को जुताई करके अच्छे से तैयार कर लिया जाता है। उसके बाद सीड ड्रिल की मदद से बीज के साथ उर्वरक मिलाकर चने की बुवाई की जाती है। अगर हम देसी चने की बात करें तो 15 से 18 किलो प्रति एकड़ की दर से चने के बीजों की बुवाई करनी चाहिए। वहीं अगर काबुली चने की बात करें तो बुवाई के लिए बीज की मात्रा 37 किलो प्रति एकड़ तक ठीक रहेगी। इसके अतिरिक्त यदि देसी चने की बुवाई लेट होती है, तो 15 नवंबर के बाद 27 किलो प्रति एकड़ और 15 दिसंबर के आस पास 36 किलो प्रति एकड़ की दर से चने की बुवाई करना चाहिए। बुवाई करते वक़्त 13 किलो यूरिया और 50 किलो सुपर फासफेट प्रति एकड़ की दर से चने के साथ मिक्स कर सकते हैं।ये भी पढ़ें: दलहन की फसलों की लेट वैरायटी की है जरूरत
किस प्रकार से करें चने की फसल की देखभाल ?
चने की फसल में बेहद सावधानी बरतने की जरुरत होती है, क्योंकि इस फसल में जलवायु परिवर्तन का असर बहुत जल्दी होता है। इसके साथ ही इस फसल में कीटों का प्रकोप भी बहुत तेजी के साथ फैलता है, जिससे फसल बहुत जल्दी खराब हो सकती है। इसलिए किसान भाइयों को समय-समय पर चने की फसल की निगरानी करते रहना चाहिए। चने की फसलों में खरपतवार को हटाने के लिए खरपतवार नाशी का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा हरे चारे तथा खरपतवार को हाथों से उखाड़कर समाप्त किया जा सकता है। चने की फसल में कीटों का प्रकोप बहुत जल्दी फैलता है। इसको देखते हुए 1 लीटर पैंडीमैथालीन को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से बुवाई के 3 दिन बाद छिड़काव करें, जिससे फसल में कीटों के प्रकोप की संभावना पहले से ही खत्म हो जाएगी। अगर सिंचाई की बात करें तो चने की फसल में मौसम और जमीन के हिसाब से सिंचाई की आवश्यकता होती है। अगर जमीन बहुत ज्यादा शुष्क है तो इस फसल के लिए 2 सिंचाई पर्याप्त हैं। पहली सिंचाई बुवाई के 45 दिन बाद और दूसरी सिंचाई 75 दिनों बाद की जा सकती है।चने की फसल में पैदावार
चने की फसल 110-120 दिनों में पूरी तरह से तैयार हो जाती है। चने की फसल तैयार होने के साथ ही पौधा सूख जाता है, पत्तियां पीली होकर झड़ने लगती है। जिसके बाद चने को काटकर तेज धूप में 5 दिनों तक सुखाया जाता है। इसके बाद चने की फसल की थ्रेसिंग की जाती है। थ्रेसिंग के बाद किसानों को इसकी खेती में 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार प्राप्त हो सकती है। इसके साथ ही पशु चारा भी प्राप्त होता है, जिसे भूसा कहा जाता है। यह पशुओं के खिलाने के काम आता है।
11-Oct-2022