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चने की फसल

चने की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख रोग और इनका प्रबंधन

चने की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख रोग और इनका प्रबंधन

चने की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख रोग।पौधे के जमीन के ऊपर के सभी हिस्सों को ये रोग प्रभावित करता है। पत्ते पर, घाव गोल या लम्बे होते हैं, अनियमित रूप से दबे हुए भूरे रंग के धब्बे होते हैं

चने की फसल के प्रमुख रोग और इनका प्रबंधन

1.एस्कोकाइटा ब्लाइट

पौधे के जमीन के ऊपर के सभी हिस्सों को ये रोग प्रभावित करता है। पत्ते पर, घाव गोल या लम्बे होते हैं, अनियमित रूप से दबे हुए भूरे रंग के धब्बे होते हैं, और एक भूरे लाल किनारे से घिरे होते हैं। इसी तरह के धब्बे तने और फलियों पर दिखाई दे सकते हैं। जब घाव तने को घेर लेते हैं, तो हमले के स्थान के ऊपर का हिस्सा तेजी से मर जाता है। यदि मुख्य तना घाव से भर जाये , तो पूरा पौधा मर जाता है।



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प्रबंधन

खेत में संक्रमित पौधों के अवशेषों को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए। बीजों को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम/किग्रा से उपचारित करें। मैंकोजेब 0.2% का छिड़काव करें। अनाज के साथ फसल चक्र अपनाएं। प्रतिरोधक किस्में जैसे .C235, HC3,HC4 की बुआई करें।



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2. उखेड़ा

लक्षण

यह रोग फसल के विकास के दो चरणों में होता है, अंकुर चरण और फूल चरण। अंकुरों में मुख्य लक्षण आधार से ऊपर की ओर पत्तियों का पीला पड़ना और सूखना, पर्णवृन्तों और रैचियों का गिरना, पौधों का मुरझाना है। वयस्क पौधों के मामले में पत्तियों का गिरना शुरू में पौधे के ऊपरी भाग में देखा जाता है, और जल्द ही पूरे पौधे में देखा जाता है। गहरा भूरा या काला मलिनकिरण क्षेत्र पत्तियों के नीचे तने पर देखा जाता है और उन्नत चरणों में पौधे को पूरी तरह से सूखने का कारण बनता है। गहरा भूरापन स्पष्ट रूप से तने पर काली धारियों और छाल के नीचे जड़ वाले भाग के रूप में देखा जाता है।

प्रबंधन

  • बीज को कार्बेन्डाजिम या थीरम 2 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करें।
  • ट्राइकोडर्मा विरिडे 4 ग्राम/किग्रा +1 ग्राम/किग्रा विटावैक्स के साथ बीज का उपचार करें।
  • स्यूडोनोमास फ्लोरेसेंस @ 10 ग्राम/किलोग्राम बीज। भारी मात्रा में जैविक खाद या हरी खाद का प्रयोग करें।
  • HC 3, HC 5, ICCC 42, H82-2, ICC 12223, ICC 11322, ICC 12408, P 621 और DA1 जैसी प्रतिरोधी किस्मों को उगाएँ।

3. वायरस (virus)

लक्षण

प्रभावित पौधे बौने और झाड़ीदार होते हैं और छोटी गांठें होती हैं। पत्ते पीले, नारंगी या भूरे मलिनकिरण के साथ छोटे होते हैं। तना भूरे रंग का मलिनकिरण भी दिखाता है। पौधे समय से पहले सूख जाते हैं। यदि जीवित रहते हैं, तो बहुत कम छोटी फलियाँ बनती हैं।वायरस चपे द्वारा फैलता है। इस रोग की रोकथाम के लिए सब से पहले चेपे का प्रबंधन करना है इस के लिए मोनोक्रोटोफॉस 200 ml /अकड़ के हिसाब से फसल में छिड़काव करे। संक्रमित पौधों को उखाड़ के निकाल दें और नष्ट करदे।



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4. तना गलन

लक्षण

तना गलन प्रारंभिक अवस्था में अर्थात बुवाई के छह सप्ताह तक आती है। सूखे हुए पौधे जिनकी पत्तियाँ मरने से पहले थोड़ी पीली हो जाती हैं, खेत में बिखरी हुई बीमारी का संकेत है। तना और जड़ का जोड़ मुलायम होकर थोड़ा सिकुड़ जाता है और सड़ने लगता है। संक्रमित भाग भूरे सफेद हो जाते हैं। ये रोग मिट्टी में ज्यादा नमी , कम मिट्टी पीएच के कारण फलता है । मिट्टी की सतह पर कम गली खाद की उपस्थिति और बुवाई के समय और अंकुर अवस्था में नमी अधिक होना रोग के विकास में सहायक होती है।धान के बाद बोने पर रोग का प्रकोप अधिक होता है।

प्रबंधन

  • गर्मियों में गहरी जुताई करें। बुवाई के समय अधिक नमी से बचें। अंकुरों को अत्यधिक नमी से बचाना चाहिए।
  • पिछली फसल के अवशेषों को बुवाई से पहले और कटाई के बाद नष्ट कर दें।
  • भूमि की तैयारी से पहले सभी अविघटित पदार्थ को खेत से हटा देना चाहिए।
  • कार्बेन्डाजिम 1.5 ग्राम और थीरम 1.5 ग्राम प्रति किलो बीज के मिश्रण से बीज का उपचार करें।
चना की फसल अगर रोगों की वजह से सूख रही है, तो करें ये उपाय

चना की फसल अगर रोगों की वजह से सूख रही है, तो करें ये उपाय

चना एक ऐसी फसल है, जो किसानों को काफी फायदा पहुंचाती है। लेकिन अगर इसकी अच्छे से देख-रेख ना की जाए तो इसमें बहुत जल्द रोग लग जाता है। चने की फसल में लगने वाले कुछ रोग हैं उखेड़ा, रतुआ, एस्कोकाइटा ब्लाईट, सूखा जड़ गलन, आद्र जड़ गलन, ग्रे मोल्ड ऐसे में किसान फसल लगाने के बाद हमेशा ही परेशान रहते हैं, कि अपनी चने की फसल को किस तरह से इन लोगों से बचाया जाए। आप कुछ बातें ध्यान में रखते हुए अपनी फसल को इन बीमारियों से बचा सकते हैं।

उखेड़ा:

चने की फसल में यह रोग बहुत ही आसानी से लग जाता है, यह फफूंद से लगने वाला एक तरह का रोग है और चने की फसल को इससे बचाने के कुछ उपाय हैं।
  • किसानों को चाहिए कि वह रोग प्रतिरोधी किस्म जैसे कि 1, एच.सी. 3, एच.सी. 5, एच.के. 1, एच.के. 2, सी.214, उदयरोगप्रतिरोधक किस्में जैसे- एच.सी, अवरोधी, बी.जी. 244, पूसा- 362, जे जी- 315, फूले जी- 5, डब्ल्यू आर - 315, आदि से खेती करें।
  • बीज के उपचार के लिए 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी $ विटावैक्स 1 ग्राम का 5 मिली लीटर पानी में लेप बनाकर प्रति किलोग्राम बीज की दर से प्रयोग करें।
  • जितना ज्यादा हो सके खेती में हरी और ऑर्गेनिक खाद ही डालें।
  • अगर आप के खेत में चने की खेती में बार-बार यह बीमारी हो रही है तो आपको कोशिश करनी चाहिए कि आप तीन-चार साल के लिए खेत में चना गाना बंद कर दें।
  • जब भी आप खेत में चने की बुवाई कर रहे हैं तो थोड़ी सी गहरी बुवाई करें जो लगभग 8 से 10 सेंटीमीटर तक गहरी हो।


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रतुआ रोग

यह रोग चने की पत्तियों में होता है और इस रोग के होने के बाद फसल में पत्तों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं जो धीरे-धीरे पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। इस रोग से फसल को बचाने के लिए आपको निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
  • जितना ज्यादा हो सके फसल को कीटनाशक मुक्त रखें।
  • रोग प्रतिरोधी जैसे कि गौरव आदि ही उगाएं।


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एस्कोकाइटा ब्लाईट

यह रोग चने की खेती के बीजों से ही आरंभ हो जाता है और फसल में फूल आने में अड़चन पैदा करता है। इस रोग से फसल को बचाने के लिए आपको बीजों पर खास ध्यान देने की जरूरत है।
  • रोग प्रतिरोधक किस्में जैसे कि सी-235, एच सी-3 या हिमाचल चना-1 उगायें।
  • केवल प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें।

सूखा जड़ गलन

यह रोग चने की खेती में ज्यादातर गलत बीज या फिर गलत मिट्टी से होता है। इस रोग में फसल में फूल से फली बनने में समस्या आती है। पौधे की पत्तियां और तने भूरे रंग के होकर झड़ने लगते हैं। इस रोग के निदान के लिए आपको कुछ उपाय करने की आवश्यकता है।


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  • अगर बार बार किसी मिट्टी में सूखा जड़ गलन रोग हो रहा है, तो आपको उसमें चने की खेती करना बंद कर देना चाहिए।
  • गेहूं और जौ की खेती के साथ एक फसल चक्र बनाएं इससे चने की खेती में सूखा जड़ गलन रोग कम होने लगता है।
  • खेत में फसल के अवशेष को ना छोड़ें और बहुत ज्यादा गहरी जुताई करें।

मोल्ड

यह रोग भी चने की फसल की जड़ें और पत्तियों को नष्ट कर देता है। इसमें फसल में फूल से फल बन ही नहीं पाता है और आप की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है। इस रोग से बचने के लिए आपको नीचे दिए गए उपाय अपनाने चाहिए।
  • फसल के दो पौधों के बीच में अच्छी खासी दूरी बनाए।
  • चने की खेती के साथ-साथ बीच में अलसी की खेती का फसल चक्र बनाए रखें।
  • फसल की आत्यधिक वनस्पतिक वृद्धि न होने दें।
  • खेत में अत्यधिक पानी न दें।
इन सबके अलावा चने की खेती में एन्थ्रेक्नोज, स्टेमफाइलियम पत्ता धब्बा रोग, फोमा पत्ता ब्लाईट व स्टंट रोग भी देखने को मिलता है और आप बाकी रोग की तरह इन्हें भी सही तरह से फसल चक्र को बरकरार रखते हुए ठीक कर सकते हैं। इसके अलावा हमेशा ही सही तरह से निरीक्षण करने के बाद ही खेती के लिए बीज खरीदें और रोग प्रतिरोधक किस्मों को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
इस राज्य के किसान फसल पर हुए फफूंद संक्रमण से बेहद चिंतित सरकार से मांगी आर्थिक सहायता

इस राज्य के किसान फसल पर हुए फफूंद संक्रमण से बेहद चिंतित सरकार से मांगी आर्थिक सहायता

महाराष्ट्र राज्य में संतरा, मिर्च, पपीता पर रोगिक संक्रमण के बाद वर्तमान में चने की फसल भी संक्रमित हो रही है। चने पर फफूंद संक्रमण की वजह से पौधे बर्बाद होते जा रहे हैं, इस बात से किसान बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं। बतादें, कि इस वर्ष में चने की पैदावार काफी कम हुई है। इसके साथ साथ अन्य फसल भी जैसे कि मिर्च, संतरा और पपीता सहित बहुत सारी फसलों पर फफूंद संक्रमण एवं कीटों का प्रकोप जारी है। उत्पादकों को लाखों की हानि वहन करनी पड़ रही है। महाराष्ट्र राज्य में फसलीय रोगों की वजह से फसलें बेहद गंभीर रूप से नष्ट होती जा रही हैं। किसान सरकार से सहायता की फरियाद कर रहे हैं। ऐसे में महाराष्ट्र के किसानों की चने की फसल भी फफूंद के कारण रोगग्रसित हो गयी है। विशेषज्ञों के अनुसार, कीट एवं फफूंद से फसलों को बचाने हेतु किसानों को बेहतर ढंग से फसल की देखभाल करने की अत्यंत आवश्यकता है।

चने की फसल को बर्बाद कर रहा फफूंद

महाराष्ट्र राज्य में चने की फसल फफूंद की वजह से गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। प्रदेश में चने का उत्पादन फसल बर्बाद होने के कारण घटता जा रहा है। महाराष्ट्र राज्य के नंदुरबार जनपद में चने की फसल का उत्पादन काफी बड़े क्षेत्रफल में उच्च पैमाने पर किया जाता है। फफूंद की वजह से चने के पौधे खराब होना आरंभ हो चुके हैैं। किसान इस बात से बेहद चिंतित हैं, कि यदि चने की फसल इसी प्रकार नष्ट होती रही तो, उनके द्वारा फसल पर किया गया व्यय भी निकाल पाना असंभव सा साबित होगा।


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आखिर किस वजह से यह समस्या उत्पन्न हुई है

महाराष्ट्र के बहुत सारे जनपदों में चने की फसल का उत्पादन किया जाता है। प्रतिवर्ष चने का उत्पादन कर किसान अच्छा खासा मुनाफा कमाते हैं। परंतु चने की फसल में फफूंद संक्रमण की वजह से किसानों को इससे अच्छी आय मिलने की अब कोई संभावना नहीं बची है। फसल रोगिक संक्रमण की वजह से काफी प्रभावित हो गयी है। विशेषज्ञों द्वारा चने की फसल पर फफूंद लगने का यह कारण बताया गया है, कि बेमौसम बरसात एवं आसमान में बादल छाए रहने की वजह से फसल को पर्याप्त मात्रा में धूप नहीं मिल पायी है और धूप न मिलना इस संक्रमण की मुख्य वजह बना है। फफूंद ने चने की फसल को गंभीर रूप से बर्बाद करना आरंभ कर दिया है।

किसानों ने सरकार से की आर्थिक सहायता की गुहार

फसल के गंभीर रूप से प्रभावित होने की वजह से पीड़ित किसान राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार से सहायता हेतु गुहार कर रहे हैं। राज्य के बहुत सारे जनपदों के किसानों ने महाराष्ट्र कृषि विभाग से भी सहायता के लिए मांग की है। किसानों का कहना है, कि फसलों को बर्बाद कर रहे इस रोग से चना की फसल के उत्पादन में निश्चित रूप से घटोत्तरी होगी। फफूंद रोग बेहद तीव्रता से पौधों को बर्बाद करता जा रहा है, यहां तक कि बड़े पौधे भी इस रोग की वजह से नष्ट होते जा रहे हैं। बचे हुए पौधे भी कोई खाश उत्पादन नहीं दे पाएंगे। किसानों ने बहुत बेहतरीन ढंग व मन से चने की फसल का उत्पादन किया था। इसलिए उनको इस वर्ष रबी सीजन में चने की फसल से होने वाली पैदावार से अच्छा खासा मुनाफा मिलने की आशा थी। परंतु परिणाम बिल्कुल विपरीत ही देखने को मिले हैं। किसान केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार से आर्थिक सहायता हेतु गुहार कर रहे हैं।
ठंड के कारण बर्बाद हो रही है, किसानों की फसलें, जाने कौन-कौन सी फसल को है नुकसान

ठंड के कारण बर्बाद हो रही है, किसानों की फसलें, जाने कौन-कौन सी फसल को है नुकसान

इस बार सर्दियों ने पिछले कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड से लोग परेशान हैं। साथ ही, यह फसलों के लिए भी बेहद हानिकारक साबित हो रही हैं। किसान अपनी बर्बाद हो रही फसलों को लेकर बेहद परेशान हैं। किसान इस भारी ठंड में भी दिन-रात जागते हुए अपनी फसलों की निगरानी कर रहे हैं। लेकिन फिर भी पाला फसलों को बर्बाद कर रहा है। उत्तर भारत में ज्यादातर नुकसान आलू की फसल को हुआ है। लेकिन अभी एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। पाले से इस बार फूलों वाली खेती पर भी बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है। मौजूदा समय में हो रही फूलों वाली फसलों को भी नुकसान हो सकता है। किसानों को सावधानी बरतने की जरूरत है।

फूलों वाली फसलों को हो रहा नुकसान

बहुत ज्यादा कोहरा और पाला पड़ने के कारण सभी फसलें ठंड की चपेट में आ रही हैं। लेकिन फूलों वाली फसल में झुलसा रोग हो रहा है, जो पूरी तरह से फूलों वाली फसल को बर्बाद कर रहा है। यह रोक लगने के बाद फसल पूरी तरह से सूख कर बर्बाद हो जाती है। कोहरा और पाला अधिक पड़ने से फसलें अधिक ठंड की चपेट में आ गई हैं। झुलसा रोग फसलों को अधिक चपेट में ले रहा है। झुलसा रोग लगने से फसलें सूख जाती हैं। इससे किसानों को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। सरसों व राई की फसल फूलों वाली फसल होती है। विशेषज्ञों का कहना है, कि इस सीजन में इन फसलों पर माहू कीट और सफेद गेरूई का असर दिख रहा है। इसका असर फूल पर भी पड़ता है और फूल सूख जाता है। इससे सरसों और राई का उत्पादन घट जाता है।

इस रोग की चपेट में आ रही चने की फसल

चने की फसल के लिए कटवा कीट और बुकनी रोग बहुत ही हानिकारक होता है। चने की फसल में यह दोनों ही रोग देखने को मिल रहे हैं। फूल आने के समय फसल सूखने से किसानों का उत्पादन शत प्रतिशत घट जाता है। इस समय यही स्थिति बनी हुई है। किसान अपनी पूरी की पूरी फसल बर्बाद होने के कारण बहुत ज्यादा समस्याओं का सामना कर रहे हैं और आगे चलकर उन्हें आर्थिक मंदी का सामना भी करना पड़ रहा है।


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आलू की फसलों को भी हो रहा नुकसान

आलू के लिए ज्यादा ठंड कभी भी सही नहीं रहती है और इस बार की ठंड के कारण इसका सीधा असर आलू की खेती पर देखा जा रहा है। कृषि एक्सपर्ट का कहना है, कि अगर अगले 15 दिन तक भी ऐसी ही कड़ाके की ठंड पड़ी तो आलू की फसल को और भी ज्यादा नुकसान होने का खतरा है।
सावधान: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में ऐसा मौसम रहने वाला है

सावधान: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में ऐसा मौसम रहने वाला है

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त मौसम पूर्वानुमान के अनुसार, आने वाले दिनों में हल्के से मध्यम बादल छाए रहने के कारण हल्की बारिश की संभावना है। अधिकतम और न्यूनतम तापमान 22.8-25.1 और 8.0-11.8 डिग्री सेल्सियस के बीच है। सापेक्ष आर्द्रता अधिकतम और न्यूनतम सीमा 70-95 और 40-70% के बीच है। हवाओं की दिशा पूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम और हवाओं की गति 6.3-11.9 किमी प्रति घंटा रहने की संभावना है। वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे गेहू, सरसों, सों चना, मटर आदि फसलों में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। कीटनाशी, रोगनाशी एवं खरपतवार नाशी रसायनों के लिए अलग-अलग अथवा उपकरणों को साफ पानी से धोकर ही प्रयोग करें। कीटनाशी, रोगनाशी एवं खरपतवार नाशी रसायनों का छिड़काव हवा के विपरीत दिशा में खड़े होकर छिड़काव या बुरकाव न करें। छिड़काव यथा सम्भव हो तो सायंकाल के समय करें, छिड़काव के बाद खाने-पिने से पूर्व हाथों को साबुन या हैंडवाश से अच्छी तरह से धो लेना चाहिए तथा कपड़ो को धोकर नहा लेना चाहिए।

फसल व बागवानी से जुड़ी जानकारी

  1. गेंहू

वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे गेहू की फसलों में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। बिलम्ब से बोई गई गेहूं की फसल में यदि सकरी व चौड़ी पत्ती वाले, दोनों प्रकार के खरपतवार दिखाई दें। तो इसके नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फुरान 75% डब्लू पी ३३ ग्राम/हेक्टेयर या मैट्री ब्यूजिन 70 %डब्लू पी 250 ग्राम / हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
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  1. सरसों

वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे सरसों की फसल में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दे। आसमान में लगातार बादल छाए रहने के कारण सरसों की फसल में माँहू, चित्रित वग एवं पत्ती सुरंगक कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। अतः इसके रोकथाम हेतु क्लोरपायरीफास 20 % ईसी 1.0 लीटर/हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफॉस 36 % एस.एल. की 500 मिली० /हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
  1. चना

समय से बोई गई चने की फसल में खुटाई का कार्य रोक दें। वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे चने की फसल में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। कटुआ (कटवर्म) कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। इसके रोकथाम हेतु क्लोरपाइरीफोस 50% ईसी + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी 2.0 लीटर/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
  1. आलू

वातावरण में नमी बढ़ने/बादल छाये रहने और तापक्रम गिरने से आलू की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप तेजी से फैलता है। अतः इसके रोकथाम हेतु मैंको मैं जेब या रिडोमिल २.५ ग्राम/लीटर पानी अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइड ३.० ग्राम/लीटर पानी का में घोल बनाकर १२-१५ दिन के अन्तराल पर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें। आलू की फसल में सिचाई का कार्य स्थगित कर दें ।

पशु संबंधित सलाह

वर्तमान मौसम को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे पशुओं को ठंड से बचाने के लिए सुबह-शाम पशुओं के ऊपर झूल डालें। जानवरों को रात के दौरान खुले में न बांधें और रात में खिड़कियों और दरवाजों पर जूट के बोरे के पर्दे लगाएं और दिन के दौरान धूप में पर्दे हटा दें। पशुओं को हरे और सूखे चारे के साथ पर्याप्त मात्रा में अनाज दें। पशुओ को साफ एवं ताजा पानी दिन में ३-४ बार अवश्य पिलायें। पशुओं को साफ-सुथरे स्थान पर रखें।