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नैचुरल फार्मिंग

Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज

Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज

जीरो बजट खेती की दीवानी क्यों हुई दुनिया? नुकसान के बाद दुनिया लाभ देख हैरान ! नीति आयोग ने किया गुणगान

भूमण्डलीय ऊष्मीकरण या आम भाषा में ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) से हासिल नतीजों के कारण पर्यावरण संरक्षण (Environmental protection), संतुलन व संवर्धन के प्रति संवेदनशील हुई दुनिया में नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए देश नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी प्राकृतिक खेती का रुख कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती क्या है? इसमें क्या करना पड़ता है? क्या प्राकृतिक खेती बहुत महंगी है? जानिये इन सवालों के जवाब।

खेत और किसान की जरूरत

इसके लिए यह समझना होगा कि, किसी खेत या किसान के लिए सबसे अधिक जरूरी चीज क्या है? उत्तर है खुराक और स्वास्थ्य देखभाल।मतलब, यदि किसी खेत के लिए जरूरी खुराक यानी उसके पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री का प्रबंध प्राकृतिक तरीके से किया जाए, तो उसे ही प्राकृतिक खेती (Natural Farming) कहते हैं।

प्राकृतिक खेती क्या है?

प्राकृतिक खेती, प्रकृति के द्वारा स्वयं के विस्तार के लिए किए जाने वाले प्रबंधों का मानवीय अध्ययन है। इसमें कृषि विज्ञान ने किसानी में उन तरीकों कोे अपनाना श्रेष्यकर समझा है, जिसे प्रकृति खुद अपने संवर्धन के लिए करती है। प्राकृतिक खेती में किसी रासायनिक पदार्धों के अमानक प्रयोग के बजाए, प्रकृति आधारित संवर्धन के तरीके अपनाए जाते हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली, प्राकृतिक खेती का वह तरीका है, जिसकी मदद से प्रकृति के साथ, प्राकृतिक तरीके से खेती किसानी कर किसान कृषि आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है।


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प्राकृतिक संसाधनों के प्रति देशों की सभ्यता का प्रमाण तय करने वाले नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन अलार्म, के कारण देशों और उनसे जुड़े किसानों को कृषि के तरीकों में बदलाव करना होगा। COP26 summit, Glasgow, में भारत ने 2070 तक, अपने नेट ज़ीरो एमिशन को शून्य करने का वादा किया है। इसी प्रयास के तहत भारत में केंद्र एवं राज्य सरकार, इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रही हैं। प्राकृतिक खेती में सिंचाई, सलाह, संसाधन के प्रबंध के लिए किसानों को प्रोत्साहन योजनाओं के जरिए लाभान्वित किया जा रहा है।


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प्राकृतिक खेती के लाभ

प्राकृतिक खेती के लाभों की यदि बात करें, तो इसमें घरेलू संसाधनों से आवश्यक पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री तैयार की जा सकती है। किसान इस प्रकृति के साथ वाली किसानी की विधि से कृषि उत्पादन लागत में भारी कटौती कर कृषि उपज से होने वाली साधारण आय को अच्छी-खासी रिटर्न में तब्दील कर सकते हैं। प्राकृतिक खेती से खेत में उर्वरक और अन्य रसायनों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

प्राकृतिक खेती की जरूरत

एफएओ 2017, खाद्य और कृषि का भविष्य – रुझान और चुनौतियां शीर्षक आधारित रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग (NITI Aayog) ने मानवीय जीवन क्रम से जुड़े कुछ अनुमान, पूर्वानुमान प्रस्तुत किए हैं। नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक लगभग 10 अरब तक हो जाने का पूर्वानुमान है। मामूली आर्थिक विकास की स्थिति में, इससे कृषि मांग में वर्ष 2013 की मांग की तुलना में 50% तक की वृद्धि होगी। नीति आयोग ने खाद्य उत्पादन विस्तार और आर्थिक विकास से प्राकृतिक पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई है। बीते कुछ सालों में वन आच्छादन और जैव विविधता में आई उल्लेखनीय कमी पर भी आयोग चिंतित है। रिपोर्ट के अनुसार, उच्च इनपुट, संसाधन प्रधान खेती रीति के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, पानी की कमी, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस का उच्च स्तरीय उत्सर्जन होने से पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है। वर्तमान में बेमौसम पड़ रही तेज गर्मी, सूखा, बाढ़, आंधी-तूफान जैसी व्याथियों के समाधान के लिए कृषि-पारिस्थितिकी, कृषि-वानिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और संरक्षण कृषि जैसे ‘समग्र’ दृष्टिकोणों पर देश, सरकार एवं किसानों को मिलकर काम करना होगा। खेती किसानी की दिशा में अब एक समन्वित परिवर्तनकारी प्रक्रिया को अपनाने की जरूरत है।

भविष्य की पीढ़ियों का ख्याल

हमें स्वयं के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों का भी यदि ख्याल रखना है, धरती पर यदि भविष्य की पीढ़ी के लिए जीवन की गुंजाइश शेष छोड़ना है तो इसके लिए प्राकृतिक खेती ही सर्वश्रेष्ठ विचार होगा।


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यह वह विधि है, जिसमें कृषि-पारिस्थितिकी के उपयोग के परिणामस्वरूप भावी पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बगैर, बेहतर पैदावार हासिल होती है। एफएओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए तमाम सहयोगी योजनाएं जारी की हैं।

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लाभों को 9 भागों में रखा जा सकता है :

1. उपज में सुधार 2. रासायनिक आदान अनुप्रयोग उन्मूलन 3. उत्पादन की कम लागत से आय में वृद्धि 4. बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चितिकरण 5. पानी की कम खपत 6. पर्यावरण संरक्षण 7. मृदा स्वास्थ्य संरक्षण एवं बहाली 8. पशुधन स्थिरता 9.रोजगार सृजन

नो केमिकल फार्मिंग

प्राकृतिक खेती को रासायनमुक्त खेती ( No Chemical Farming) भी कहा जाता है। इसमें केवल प्राकृतिक आदानों का उपयोग किया जाता है। कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र पर आधारित, यह एक विविध कृषि प्रणाली है। इसमें फसलों, पेड़ों और पशुधन एकीकृत रूप से कृषि कार्य में प्रयुक्त होते हैं। इस समन्वित एकीकरण से कार्यात्मक जैव विविधता के सर्वोत्तम उपयोग में किसान को मदद मिलती है।


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प्रकृति आधारित विधि

अपने उद्भव से मौजूद प्रकृति संवर्धन की वह विधि है जिसे मानव ने बाद में पहचान कर अपनी सुविधा के हिसाब से प्राकृतिक खेती का नाम दिया। कृषि की इस प्राचीन पद्धति में भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जाता है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग वर्जित है। जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में अपनाया जाता है। एक तरह से चींटी, चीटे, केंचुए जैसे जीव इस खेती की सफलता का मुख्य आधार होते हैं। जिस तरह प्रकृति बगैर मशीन, फावड़े के अपना संवर्धन करती है ठीक उसी युक्ति का प्रयोग प्राकृतिक खेती में किया जाता है।

ये चार सिद्धांत प्राकृतिक खेती के आधार

प्राकृतिक कृषि के सीधे-साधे चार सिद्धांत हैं, जो किसी को भी आसानी से समझ में आ सकते हैं। ये चार सिद्धांत हैं:
  • हल का उपयोग नहीं, खेत पर जुताई-निंदाई नहीं, बिलकुल प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की तरह की जाने वाली इस खेती में जुताई, निराई की जरूरत नहीं होती।
  • किसी तरह का कोई रासायनिक उर्वरक या फिर पहले से तैयार की हुई खाद का उपयोग नहीं
  • हल या शाक को नुकसान पहुंचाने वाले किसी औजार द्वारा कोई निंदाई, गुड़ाई नहीं
  • रसायनों पर तो किसी तरह की कोई निर्भरता बिलकुल नहीं।

जीरो बजट खेती (Zero Budget Farming)

अब जिस खेती में निराई गुड़ाई की जरूरत न हो, तो उसे जीरो बजट की खेती ही कहा जा सकता है। प्राकृतिक खेती को ही जीरो बजट खेती भी कहा जाता है। प्राकृतिक खेती में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों को लाभकारी बनाने के तरीके निहित हैं। किसी बाहरी कृत्रिम तरीके से निर्मित रासायनिक उत्पाद का उपयोग प्राकृतिक खेती में वर्जित है। जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती में गाय के गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग कर भूमि की उर्वरता बढ़ाई जाती है। शून्य उत्पादन लागत की प्राकृतिक खेती पद्धति के लिए अलग से कोई इनपुट खरीदना जरूरी नहीं है। जापानियों द्वारा प्रकाश में लाई गई इस विधि की खेती में पारंपरिक तरीकों के विपरीत केवल 10 प्रतिशत पानी की दरकार होती है।
Natural Farming: प्राकृतिक खेती के लिए ये है मोदी सरकार का प्लान

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ग्राम प्रधानों के लिए आयोजित होंगे सत्र 15 लाख किसान को मिलेगी खास ट्रेनिंग 20 लाख नेशनल फील्ड स्कूल खोले जाएंगे

हरित क्रांति के लिए अपनाए गए रासायनिक खेती के उपायों से पर्यावरण पर पड़ रहे कुप्रभाव को रोकने के लिए भारत सरकार ने नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी  
प्राकृतिक खेती की दिशा में कदम बढ़ाया है। परंपरागत खेती करने वाले भारत के किसानों के बीच हरित क्रांति मिशन के तहत गेहूं और धान की अधिक से अधिक पैदावार हासिल करने की होड़ के कारण भारतीय कृषि के पारंपरिक मूल्यों की भी जमकर अनदेखी हुई। नतीजतन, भारत के किसान बाजरा, ज्वार, कोदू, कुटकी, मोटे चावल जैसी फसलों के प्रति उदासीन होते गए।

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पिछले कई दशकों से भारत के किसानों का रुझान धान और गेहूं की फसलों पर केंद्रित होने से खेतों की उर्वरता भी प्रभावित हुई है। खेत में सालों से लगातार एक ही तरह के रसायनों के प्रयोग के कारण मृदा शक्ति में कमी आई है। धान की फसल के कारण कई प्रदेशों के भूजल स्तर में भी गिरावट दर्ज की गई है।

केंद्रीय मंत्री आशान्वित

भारत के केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने प्राकृतिक कृषि (Natural Farming) की मदद से भारतीय कृषि जगत को नई ऊंचाइयां मिलने के साथ ही मृदा संरक्षण में भी मदद प्राप्त होने की आशा व्यक्त की है। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय कृषि जगत के विकास के लिए कृत संकल्पित हैं। पीएम मोदी ने किसानों को हमेशा प्रेरित किया है। कृषि मंत्री तोमर ने किसानों से कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति को अमल में लाकर परंपरागत प्राकृतिक खेती से होने वाले लाभों को प्राप्त करने की अपील की है। उन्होंने बताया कि, कृषि एवं कृषक हित में सरकार ने प्राकृतिक खेती के लिए एक अभियान शुरू किया है, इससे जुड़कर किसान भारतीय कृषि को नई पहचान दे सकते हैं।

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कृषि मंत्री तोमर के मुताबिक, आजादी का अमृत महोत्सव मनाते समय कृषि क्षेत्र के विकास के लिए सरकार की योजनाओं की चर्चा होना स्वाभाविक एवं जरूरी है। भारत विश्व का एक मात्र ऐसा देश है जहां की लगभग तीन चौथाई आबादी कृषि और इससे संबद्ध व्यवस्था से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ी हुई है। भारत की अर्थव्यवस्था में भी कृषि का अति महत्वपूर्ण योगदान है। कृषि से खाद्यान्न और कच्ची सामग्री के साथ ही भारत के बड़े बेरोजगार वर्ग को रोजगार भी मिलता है। केंद्रीय कृषि मंत्री के मुताबिक, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते आठ साल में किसान एवं किसानी हित से जुड़ी अहम समस्याओं पर गंभीर चिंतन कर उनके समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। कृषि मंत्री के अनुसार प्रत्येक बजट में अब एग्रीकल्चर सेक्टर के विकास के लिए पर्याप्त राशि का आवंटन किया जा रहा है। उन्होंने कृषि से जुड़ी कई लाभकारी योजनाओं का भी जिक्र किया। कृषि मंत्री तोमर ने उम्मीद जताई है कि, हरियाणा, गुजरात आंध्रप्रदेश और हिमाचल सहित कुछ राज्यों के किसानों की ही तरह अन्य राज्यों, जिलों एवं ग्रामों के अधिक से अधिक किसान भी अब प्राकृतिक खेती का विकल्प अपनाएंगे। प्राकृतिक तरीके से खेती करने के लाभों के बारे में किसानों को सरकारी स्तर पर जागरूक किया जा रहा है।

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प्राकृतिक खेती के लाभ

केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि, प्राकृतिक खेती किसानी का सुगम तरीका है। अल्प लागत की यह किसानी तरकीब किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित हुई है। मृदा संरक्षण में भी प्राकृतिक खेती की उपयोगिता सर्वविदित है। गौरतलब है कि, पिछले साल गुजरात में आयोजित एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के किसानों से भारत की धरा को रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के छिड़काव से मुक्त कराने के लिए किसानों से सहयोग की अपील की थी।

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गंभीर हैं पीएम

प्रधानमंत्री केमिकल और फर्टिलाइजर आधारित आधुनिक किसानी से मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभावों से चिंतित नजर आते हैं। पीएम मोदी का मानना है कि, प्राकृतिक खेती से देश के उन 80 प्रतिशत किसानों को भी लाभ मिल सकेगा, जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है। पीएम हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली केमिकल और फर्टिलाइजर आधारित किसानी विधि पर चिंता जता चुके हैं। इस पद्धति से मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ रहे हानिकारक प्रभावों के कारण उन्होंने खेती के अन्य विकल्पों पर गंभीरता से योजना बनाने कृषि वैज्ञानिकों, सलाहकारों को निर्देशित किया है।

प्राकृतिक खेती का बढ़ता दायरा

केंद्र सरकार के प्रयासों से परंपरागत कृषि विकास योजना की उपयोजना के तहत चार लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को प्राकृतिक खेती के दायरे में शामिल कर लिया गया है।

जापान से जुड़ी अवधारणा

पेड़, पौधों का विकास वैसे तो प्राकृ़तिक रूप से सतत एवं दीर्घकालीन प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो धरती के विकास के साथ सतत जारी है। हालांकि इन प्राकृतिक तरीकों को पहचान कर जापान के किसान दार्शनिक मासानोबू फुकुओका (Masanobu Fukuoka)ने प्राकृतिक खेती की अवधारणा विकसित की है। उन्होंने साल 1975 में अपने शोध ग्रंथ में प्राकृतिक खेती के तरीकों पर विस्तार से प्रकाश डाला था। पद्मश्री से सुशोभित विदर्भ क्षेत्र में अमरावती के किसान सुभाष पालेकर ने 1990 के दशक में अपने खेत पर प्राकृतिक खेती का प्रयोग किया था। इस दौर में भयावह सूखे का सामना करने वाले विदर्भ क्षेत्र में पालेकर को प्राकृतिक खेती से कई लाभकारी परिणाम भी मिले थे।

पानी की बचत ही बचत

प्राकृतिक खेती का सबसे ज्यादा लाभ पानी की बचत का होगा। फसल की सिंचाई के लिए पानी की कमी का सामना करने वाले किसानों के लिए प्राकृतिक खेती एक तरह से फायदे का सौदा है। नैचुरल फार्मिंग विधि में खेत पर पौधों को पानी की नहीं बल्कि नमी की जरूरत होती है। इस प्रणाली से किसानी करने वाले किसान को पहली दफा इस रीति से किसानी करने पर प्रथम वर्ष 50 फीसदी तक पानी की बचत हो जाती है। अध्ययन के मुताबिक इस बचत में साल दर साल वृद्धि होती जाती है। पहले साल हुई 50 प्रतिशत पानी की बचत बढ़कर तीसरे साल के दौरान 70 फीसदी तक दर्ज की गई है। इतना ही नहीं बल्कि प्राकृतिक खेती की मदद से किसान एक साल में तीन फसलें भी खेत पर उगा सकता है।

सरकारी प्रोत्साहन योजनाएं

एनडीए गवर्नमेंट ने भारतीय कृषि व्यवस्था में सुधार के लिए व्यापक कदम उठाए हैं। किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए भी सरकार कई सुविधाएं जारी कर रही है।

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किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना और न्यूनतम समर्थन मूल्य वृद्धि आदि वह निर्णय हैं जिससे सरकार कृषि एवं कृषक हित को साधने प्रयासरत है।

इतना लक्ष्य निर्धारित

केंद्र सरकार ने भारत में कुल 75,000 हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक विधि की खेती के दायरे में लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

लक्ष्य साधने जतन

किसानों हेतु प्राकृतिक विधि से खेती करने के लिए सरकार ने व्यापक योजना बनाई है। इसके तहत देश के 15 लाख किसानों को नैचुरल फार्मिंग के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण के लिए देश में 20 लाख नेशनल फील्ड स्कूल खोलने की दिशा में द्रुत गति से कार्य जारी है।

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नैचुरल फार्मिंग अपनाने के लिए देश के 30 हजार ग्राम प्रधानों के लिए 750 प्रशिक्षण सत्रों के आयोजन का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों से अपील की है कि, वे प्राकृतिक खेती (Natural Farming) मिशन में सहयोग प्रदान कर भारतीय कृषि जगत को नई ऊंचाई और आयाम प्रदान करें।
मुख्यमंत्री योगी ने दी प्राकृतिक खेती बोर्ड के गठन को हरी झंडी - यूपी कैबिनेट बैठक में अहम फैसला

मुख्यमंत्री योगी ने दी प्राकृतिक खेती बोर्ड के गठन को हरी झंडी - यूपी कैबिनेट बैठक में अहम फैसला

लोकेन्द्र नरवार लखनऊ। प्रदेश की योगी सरकार ने कैबिनेट की बैठक में अहम फैसला लिया है। प्रदेश में प्राकृतिक खेती बोर्ड का गठन किया जायेगा। सूबे में इस योजना पर अब तेजी से काम होगा। बोर्ड के अध्यक्ष स्वंय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ होंगे। प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप साही ने जानकारी देते हुए बताया कि सरकार लगातार प्राकृतिक खेती यानी नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) को बढ़ावा देने के लिए किसानों को जागरूक कर रही है। तरह-तरह की योजनाएं लागू कर किसानों को प्राकृतिक खेती करने को प्रोत्साहित कर रही है। अब प्रदेश में प्राकृतिक खेती बोर्ड का गठन किया जा रहा है, जिससे निश्चित तौर पर सूबे में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलेगा।


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मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाले बोर्ड में शामिल होंगे दो किसान

- उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक खेती बोर्ड का गठन किया जा रहा है। यूपी कैबिनेट बैठक में लिए गए अहम फैसले में बोर्ड की अध्यक्षता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करेंगे। इनके अलावा प्राकृतिक खेती बोर्ड के उपाध्यक्ष कृषि मंत्री व प्रदेश के वित्त, कृषि विपणन, उद्यान, खाद्य प्रसंस्करण, पशुपालन एवं दुग्ध विकास, सूक्ष्म एवं लघु उद्योग, पंचायतीराज एवं ग्रामीण विकास, सहकारिता विभाग के मंत्री इस बोर्ड के सदस्य होंगे। इन सभी विभागों के मुख्य सचिव भी बोर्ड के सदस्य होंगे। इसके अलावा राज्य के दो किसानों को भी बोर्ड की सदस्यता सूची में शामिल करने का प्रस्ताव पास हुआ है।

जिला स्तर पर भी होगा बोर्ड का गठन

- यूपी कैबिनेट में हुए अहम फैसले में यह भी प्रस्ताव पारित किया गया है कि प्राकृतिक खेती बोर्ड का जिला स्तर पर भी गठन किया जाएगा। प्राकृतिक खेती बोर्ड के कार्यों को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करने के लिए जिला स्तर पर बोर्ड का गठन किया जाना सुनिश्चित हुआ है। जिला स्तर पर बोर्ड के अध्यक्ष जिलाधिकारी और बोर्ड के सचिव कृषि उपनिदेशक होंगे। सम्बंधित अन्य विभागों के अधिकारी इसके सदस्य होंगे। ----- लोकेन्द्र नरवार
उतर प्रदेश में किसानों को गुरुकुल में दिया जायेगा प्राकृतिक खेती को बेहतर तरीके से करने का प्रशिक्षण

उतर प्रदेश में किसानों को गुरुकुल में दिया जायेगा प्राकृतिक खेती को बेहतर तरीके से करने का प्रशिक्षण

उत्तर प्रदेश में किसानों को  प्राकृतिक खेती यानी नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) करने की बेहतरीन कलाएं सिखाई जायेंगी, जिसमें वैज्ञानिक एवं प्रगतिशील किसान भी बेहतरीन ढंग से दिशा निर्देशन के साथ गुरुकुल की ओर चलेंगे। भारत में पर्यावरण अनुकूल ​प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार भी आगे है। राज्य सरकार रबी सीजन के दौरान एक लाख हेक्टेयर भूमि में गौ सम्बंधित खेती करने का संकल्प किया है, जिसको पूर्ण करने हेतु गुरुकुल के माध्यम से किसानों को प्राकृतिक खेती करने का ज्ञान दिया जायेगा।

गुरुकुल में होगा प्राकृतिक खेती करने का प्रशिक्षण

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा गौ सम्बंधित खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक खेती बोर्ड का गठन भी हो चुका है। इस सन्दर्भ में आगे बढ़ते हुए अब किसानों को गुरुकुलों की सहायता द्वारा ट्रेनिंग देने का भी संकल्प नक्की हुआ है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने एक सम्बोधन के दौरान कहा है कि किसान प्राकृतिक खेती के जरिये कम खर्च करके अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी बेहतर सलाह एवं जानकारी देने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा सहायता मिलेगी, जिससे किसान अत्यधिक लागत लगाने की समस्या से छुटकारा पा सके, साथ ही आय को दोगुनी कर सके।


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उत्तर प्रदेश के एक लाख हेक्टेयर भूमि में होगी प्राकृतिक खेती

रबी सीजन के दौरान उत्तर प्रदेश में गौ सम्बंधित १ लाख हेक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती करने का संकल्प किया गया है। प्राकृतिक खेती को अच्छे तरीके व तकनीक से जानने के लिए कुछ समय पहले यूपी के कृषि मंत्री, कृषि से सम्बंधित समस्त बड़े जिम्मेदार अधिकारियों एवं प्रगतिशील किसानों द्वारा हरियाणा के कुरुक्षेत्र जनपद का भ्रमण किया गया। फिलहाल उत्तर प्रदेश राज्य में मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग (Mission on Natural Farming) के चलते किसानों को एकत्रित किया जा रहा है।

गौ आधारित प्राकृतिक खेती के लिए सरकार द्वारा क्या व्यवस्था की गयी है ?

उत्तर प्रदेश राज्य में गौ आधारित खेती करने के लिए २३ जनपदों के ३९ ब्लाकों में २३,५१० हेक्टेयर में ४७० ​क्लस्टर स्थापित किए जायेंगे। इसी सन्दर्भ में उत्त्तर प्रदेश के ४ कृषि विश्वविद्यालयों को भी लैब निर्माण करने हेतु आदेश के साथ साथ प्राकृतिक खेती करने का प्रमाण पत्र भी जारी किया गया। 89 कृषि विज्ञान केंद्रों के सहयोग से यह कृषि विश्वविद्यालय सर्टिफिकेशन एवं प्राकृतिक खेती से सम्बंधित उत्पादों के विपणन में भी सहायता करेंगे। साथ ही समस्त मंडियों में भी प्राकृतिक उत्पादों को विशेष स्थान दिया जायेगा। राज्य सरकार द्वारा बुंदेलखंड की भूमि पर प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहित करने की भी पहल शुरू की गयी है। बुंदेलखंड में १२००० हेक्टेयर में खेती के लिए 235 क्लस्टर स्थापित होंगे जिसमें ७ जनपदों के ४७ ब्लॉक में सम्मिलित हैं। प्राकृतिक खेती के लिए सरकार सब्सिडी भी प्रदान करेगी।