पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन
वर्तमान समय में हमारे देश में चावल की कई प्रकार की किस्में बोई जाती हैं। इन किस्मों में कुछ किस्में किसानों के लिए लाभदायक, कुछ किस्में किसानों के लिए कम लाभदायक और वहीं दूसरी ओर बात की जाए तो कुछ किस्मों से किसानों को नुकसान भी होता है।
इसी सब को देखते हुए कृषि विभाग द्वारा चावल की एक नई किस्म पूसा 1692 बनाई गई है जो कि पूसा 1509 और पूसा 1121 के बीच की किस्म है।
धान एक खरीफ की फसल है क्योंकि हम जानते हैं कि खरीफ की फसल बोने का समय नजदीक आ रहा है, ऐसे में किसानों की सबसे ज्यादा नजर बासमती की नई किस्मों में है जो उन्हें अधिक से अधिक लाभ दे सके। जिन किसानों को कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन करना होता है यह फसल उन किसानों के लिए विकसित की गई है।
इस किस्म को पूसा ने जून 2020 में विकसित किया है। आंकड़ों के मुताबिक किसान की आय फसल के दाम बढ़ने से नहीं बल्कि फसल की पैदावार बढ़ने से बढ़ती है।
इसी सब को देखते हुए पूसा ने धान की यह किस्म पूसा 1692 विकसित की है जिस की पैदावार पूसा की अन्य किस्मों से अधिक बताई जा रही है। ऐसे में यह किस्म किसानों के लिए बहुत अधिक लाभदायक साबित हो सकती है।
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पूसा बासमती 1692 की खासियत :
पूसा ने इस किस्म की खासियत के बारे में बताया है कि यह किस्म बहुत ही कम समय में तैयार होने वाली किस्म है। इस किस्म की फसल लगभग 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
ऐसे में किसान गेहूं बोने के पहले खेत में दूसरी प्रकार की सब्जियां उगाकर और अधिक लाभ पा सकते हैं। इस किस्म की खास बात यह है कि यह पूसा 1509 की तुलना में प्रति एकड़ 5 क्विंटल ज्यादा पैदावार देती है।
इस किस्म का चावल ज्यादा टूटता नहीं है जिससे 50% चावल खड़ा निकलता है। यह किस में किसानों को 1 एकड़ में 27 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है।
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पूसा 1692 के उत्पादन क्षेत्र :
देश में इस किस्म की धान का उत्पादन केवल कुछ स्थानों में ही सीमित है जिनमें दिल्ली हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश हैं। क्योंकि वैज्ञानिकों के मुताबिक यहां की जलवायु इस किस्म के लिए उपयुक्त मानी जा रही है।
हमारा देश बासमती चावल का सबसे ज्यादा उत्पाद ही नहीं बल्कि इसका निर्यात भी सबसे ज्यादा करता है दुनिया के करीब डेढ़ सौ देशों में भारत के यहां से बासमती सप्लाई होता है।
भारत सालाना करीब 30 हजार करोड़ रुपए के चावल का निर्यात करता है। खास बात यह है कि बासमती चावल की इस किस्म को बोने का टैग अभी कुछ ही राज्यों को मिला है जिनमें हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश,दिल्ली के बाहरी क्षेत्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं।
बासमती चावल की यह किस्म कम अवधि में ज्यादा उपज देने वाली किस्म है जिससे आईसीएआर नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। इसे बोने से लेकर कटने तक में 115 से 120 दिन का समय लगता है।
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पूसा 1692 की पैदावार :
इस किस्म की पैदावार अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग होती है। जैसे मोदीपुरम में पैदावार 74 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बताई जा रही है। इसके अलावा पीबी1692 की औसत पैदावार 52.6 क्विंटल बताई जा रही है।
पूसा की नई किस्में 3 वर्षों के परीक्षण के दौरान पूसा की अन्य किस्मों की अपेक्षा 18% ज्यादा औसत पैदावार दी है। दिल्ली राज्य में पूसा 1692 ने 6.79% हरियाणा में 21% जबकि उत्तर प्रदेश में 7.5 प्रतिशत ज्यादा पैदावार दी है। जो कि अन्य किस्मों के अपेक्षा काफी अधिक है।
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पीबी 1692 के प्रमुख गुण :
इस किस्म के बालियों की औसत लंबाई 27 सेंटीमीटर होती है जो पूरी तरह से फैली होती है। इसके 1000 बीजों का भार लगभग 29 ग्राम होता है। इस किस्म की रोग प्रतिरोधी क्षमता अन्य किस्मों की अपेक्षा काफी अधिक है।
इसकी रोग प्रतिरोधी क्षमता पूसा 1121 की भांति काम करती है लेकिन गर्दन तोड़ बीमारी में यह पूसा 1121 से अधिक सहनशील है। इस किस्म के चावल लगभग 9 मिलीमीटर लंबी और 2 मिलीमीटर चौड़े होते हैं। जबकि पकने के बाद चावल की लंबाई 75 मिली मीटर तक हो जाती है इस प्रकार के चावल की खुशबू काफी अच्छी होती है।
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कम समय की किस्म होने के कारण इस की कटाई जल्दी हो जाती है जिससे खेत में दूसरी फसल बोने का पर्याप्त समय मिल जाता है। इन दूसरी फसलों के माध्यम से किसान और अधिक रुपए कमा सकता है।