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पौधों की रोपाई

सूखाग्रस्त भूमि में भी किया उत्पादन, कमा रहा है लाखों का मुनाफा

सूखाग्रस्त भूमि में भी किया उत्पादन, कमा रहा है लाखों का मुनाफा

महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जनपद निवासी किसान ने बड़ा कमाल किया है, क्योंकि उन्होंने सूखे खेत में भी सीताफल की खेती सफल तरीके से कर लाखों कमाएँ हैं। किसान १२ लाख रुपए का मुनाफा केवल आधा एकड़ भूमि से अर्जित कर लेता है। महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जनपद में पैठण तालुका कुछ क्षेत्रों के किसान पूर्व के कई दिनों से गीला सूखा तो कभी सूखे की मार से ग्रसित हो रहे थे, इस कारण से कृषकों को सिर्फ निराशा और हताशा हासिल हो रही थी। परंतु औरंगाबाद जनपद में धनगॉंव निवासी किसान संजय कांसे ने कठोर परिश्रम एवं द्रढ़ निश्चय से आधा एकड़ भूमि में सीताफल की खेती कर लाखों रूपये कमाए हैं और अब तक करीब उनके बगीचे में लगभग ११ टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है।
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धनगांव निवासी संजय कांसे जी एक छोटे किसान हैं। पूर्व पारंपरिक फसल उगाने वाले संजय कांसे ने रचनात्मक सोच व कठोर परिश्रम से वर्ष २०१६ में उन्होंने अपने आधा एकड़ भूमि में सीताफल का उत्पादन किया। इसके साथ ही, अन्य क्षेत्रों में मोसंबी का रोपण किया गया है, जिसमें संजय कांसे ने सोलह बाई सोलह फुट पर ६०० पौधों की रोपाई की। उन्होंने इस दौरान सूखाग्रस्त जैसे संकटों का भी सामना किया। लेकिन उन्होंने इससे निपटने हेतु उचित मार्ग विकसित किया और बाग की साही योजना के अनुरूप भली भांति देख भाल की। अब उनकी अड़िग मेहनत और द्रण निश्चय के परिणामस्वरूप एक पेड़ करीब ३५ से ४० किलो फल प्रदान कर रहा है।
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संजय कांसे को फल का क्या भाव मिल रहा है

महाराष्ट्र का किसान संजय कांसे तीन वर्ष से अच्छी खासी पैदावार उठा रहा है। इस वर्ष उन्होंने आधा एकड़ भूमि में सीताफल की फसल उत्पादित की है, जो कि करीब 20 टन हुई है। पंद्रह दिन पूर्व संजय कांसे के पहले और दूसरे फल की छटाई हुई है। इसमें उन्हें ११० रुपये प्रति किलो के हिसाब से भाव प्राप्त हुआ है। संजय कांसे वार्षिक १२ लाख का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। अभी तक करीब ११ टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है। साथ ही अन्य फलों का भी उत्पादन करीब ९ से १० टन तक होगा।

कितना आया लागत खर्च

बतादें कि कटाई के चौथे दिन संजय कांसे के खेत में सीताफल बिलकुल तैयार हो चुके थे। सीताफल करीब ५०० से ७०० ग्राम का रहता है। किसान ने इसकी खेती हेतु करीब ८० से ९० रुपये व्यय किये हैं। मिलीबग रोग के अतिरिक्त अन्य किसी कीटों का प्रकोप सीताफल पर नहीं होता है, यह इसकी मुख्य विशेषता है। लेकिन इस वर्ष जब अत्यधिक बारिश के कारण फलीय स्थिरता बेहद डगमगा गयी, परंतु कृषि के क्षेत्र में अच्छी जानकारी रखने वाले लोगों से जानकारी प्राप्त कर संजय कांसे ने सफलतापूर्वक खेती की।
धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की लगभग एक तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। भारत में अनेक प्रकार की फसलें बोई जाती हैं। प्रत्येक फसल के बोने व काटने का समय अलग अलग होता है। 

इसी प्रकार धान की भी फसल है जो एक प्रकार की खरीफ की फसल है। यह हमारे देश को लोगों का एक प्रमुख खाद्यान्न है। इसके अलावा मक्का के बाद जो फसल सबसे ज्यादा बोई जाती है वो धान है। 

अगर इसकी खेती में पर्याप्त सावधानी बरती जाए तो इससे किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। धान की खेती की संपूर्ण जानकारी ।

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अच्छे बीज का चयन करना। कई बार किसान महंगे बीज खरीदने के बावजूद भी अच्छी फसल नहीं उगा पता। इसका मुख्य कारण है उसके द्वारा एक स्वस्थ बीज का चयन ना कर पाना। 

इसके कारण चुना गया बीज महंगा नहीं बल्कि वहां की जलवायु के अनुरूप होना चाहिए। हम जानते हैं कि धान की खेती हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में की जाती है। विभिन्न हिस्सों की। 

जलवायु भी भिन्न भिन्न होती है इसके लिए किसानों को वहां की जलवायु के हिसाब से उन्नत बीजों का चयन करना चाहिए।

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बुवाई का समय :-

धान की फसल एक प्रकार की खरीफ की फसल है जो मुख्य रूप से बरसात शुरू होने के पहले बोई जाती है। यह फसल मई की शुरुआत में बोई जाती है, ताकि मानसून आते ही किसान धान की रोपाई शुरू कर दें। 

धान की फसल में मुख्य रुप से ध्यान रखने योग्य बात बीज का शोधन है इसमें किसान कई महंगे बीजों को खरीद कर फसल में अच्छी लागत नहीं पा पाते। इसके लिए किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीच के साथ बीजों का उपचार भी करना चाहिए।

बीजोपचार :-

आज की खेती में मुख्य बात बीजों का चयन करना है एवं बीजों का शोधन है। किसानों को बीजों के शोधन के प्रति जागरूक होना चाहिए ऐसा करने से धान की फसल को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है धान की 1 हेक्टेयर की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में सिर्फ 25-30 खर्च करने होते हैं। 

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बीज उपचार करने के लिए हमें एक घोल तैयार करना होता है। इस घोल को तैयार करने के लिए एक बर्तन में 10 लीटर पानी लेते हैं और उसमें लगभग 1.5 किलो नमक मिलाते हैं अब इस पानी ने एक आलू या फिर एक अंडा डालते हैं 

अगर आलू घील पर तैरने लगे तो समझ जाओ कि हमारा होल तैयार हो गया है और अगर आलू या अंडा घोल पर नहीं तैरता है तो पानी में उस समय तक नमक मिलाते रहें जब तक कि आलू घोल तैरने ना लगे। 

अब इस घोल में धीरे-धीरे करके धान के बीज डालते हैं जो भी इस घोल के ऊपर तैरने लगते हैं बेबीज कम गुणवत्ता के होते हैं उन्हें निकाल कर बाहर फेंक देना चाहिए और जो भी बोल में डूब जाते हैं वह बीज बुवाई के योग्य होते हैं। 

इस गोल के माध्यम से हम धान के बीजों का शोधन तीन से चार बार तक कर सकते हैं। बीजों का शोधन करने के बाद प्राप्त बीजों को तीन से चार बार पानी में अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।

क्षेत्र के हिसाब से धान की उन्नत किस्मों का चुनाव :-

हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु पाई जाती है ऐसे में धान की अच्छी फसल पाने के लिए क्षेत्र के हिसाब से बीजों का चयन भी एक प्रमुख कार्य है इसके लिए उस क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से बीजों का चयन किया जाता है।

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बीज की बुवाई/पौधों की रोपाई :-

बीजों की बुवाई के लिए सबसे पहले जमीन को बीजों की बुवाई के योग्य बनाया जाता है। इसके लिए किसान एक नर्सरी तैयार करें और मुख्य खेत में रोपाई करें। 

सबसे पहले किसान पौधों को नर्सरी में तैयार करें इसके बाद उसे जड़ से उखाड़ कर खेत में ले जाकर उसकी रोपाई करें रोपाई में पौधों की बीच की दूरी का ध्यान रखना चाहिए। एक जगह पर एक से दो पौधों की ही रोपाई की जाए।

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जिस खेत में पानी ना भरता हो उस खेत में धान की रोपाई श्रीविधि से करें। इस विधि में खेत में पानी ना भरने दें इसमें खेत की समय-समय पर सिंचाई करते रहें इस विधि में सिंचाई करने के लिए गेहूं के जैसे ही सिंचाई करें। और धान का प्रबंधन सभी धान की तरह करें।