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फसल की खेती

अरहर की खेती (Arahar dal farming information in hindi)

अरहर की खेती (Arahar dal farming information in hindi)

दोस्तों आज हम बात करेंगे अरहर की दाल के विषय पर, अरहर की दाल को बहुत से लोग तुअर की दाल भी कहते हैं। अरहर की दाल बहुत खुशबूदार और जल्दी पच जाने वाली दाल कही जाती है। 

अरहर की दाल से जुड़ी सभी आवश्यक बातों को भली प्रकार से जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे:

अरहर की दाल का परिचय:

आहार की दृष्टिकोण से देखे तो अरहर की दाल बहुत ही ज्यादा उपयोगी होती है। क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं जैसे: खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। 

अरहर की दाल को रोगियों को खिलाना लाभदायक होता है। लेकिन जिन लोगों में गैस कब्ज और सांस जैसी समस्या हो उनको अरहर दाल का सेवन थोड़ा कम करना होगा। 

अरहर की दाल शाकाहारी भोजन करने वालो का मुख्य साधन माना जाता है शाकाहारी अरहर दाल का सेवन बहुत ही चाव से करते हैं।

अरहर दाल की फसल के लिए भूमि का चयन:

अरहर की फ़सल के लिए सबसे अच्छी भूमि हल्की दोमट मिट्टी और हल्की प्रचुर स्फुर वाली भूमि सबसे उपयोगी होती है। यह दोनों भूमि अरहर दाल की फसल के लिए सबसे उपयुक्त होती हैं। 

बीज रोपण करने से पहले खेत को अच्छी तरह से दो से तीन बार हल द्वारा जुताई करने के बाद, हैरो चलाकर खेतों की अच्छी तरह से जुताई कर लेना चाहिए। 

अरहर की फ़सल को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना उचित होता है। तथा पाटा चलाकर खेतों को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। अरहर की फसल के लिए काली भूमि जिसका पी.एच .मान करीब 7.0 - 8. 5 सबसे उत्तम माना जाता है।

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अरहर दाल की प्रमुख किस्में:

अरहर दाल की विभिन्न विभिन्न प्रकार की किस्में उगाई जाती है जो निम्न प्रकार है:

  • 2006 के करीब, पूसा 2001 किस्म का विकास हुआ था। या एक खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली किस्म है। इसकी बुवाई में करीब140 से लेकर 145 दिनों का समय लगता है। प्रति एकड़ जमीन में या 8 क्विंटल फ़सल की प्राप्ति होती है।
  • साल 2009 में पूसा 9 किस्म का विकास हुआ था। इस फसल की बुवाई खरीफ रबी दोनों मौसम में की जाती है। या फसल देर से पकती है 240 दिनों का लंबा समय लेती है। प्रति एकड़ के हिसाब से 8 से 10 क्विंटल फसल का उत्पादन होता है।
  • साल 2005 में पूसा 992 का विकास हुआ था। यह दिखने में भूरा मोटा गोल चमकने वाली दाल की किस्म है।140 से लेकर 145 दिनों तक पक जाती है प्रति एकड़ भूमि 6.6 क्विंटल फसल की प्राप्ति होती है। अरहर दाल की इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, पश्चिम तथा उत्तर प्रदेश दिल्ली तथा राजस्थान में होती है।
  • नरेंद्र अरहर 2, दाल की इस किस्म की बुवाई जुलाई मे की जाती हैं। पकने में 240 से 250 दिनों का टाइम लेती है। इस फसल की खेती प्रति एकड़ खेत में 12 से 13 कुंटल होती है। बिहार, उत्तर प्रदेश में इस फसल की खेती की जाती।
  • बहार प्रति एकड़ भूमि में10 से 12 क्विंटल फसलों का उत्पादन होता है। या किस्म पकने में लगभग 250 से 260 दिन का समय लेती है।
  • दाल की और भी किस्म है जैसे, शरद बी आर 265, नरेन्द्र अरहर 1और मालवीय अरहर 13,

आई सी पी एल 88039, आजाद आहार, अमर, पूसा 991 आदि दालों की खेती की प्रमुख है।

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अरहर दाल की फ़सल बुआई का समय:

अरहर दाल की फसल की बुवाई अलग-अलग तरह से की जाती है। जो प्रजातियां जल्दी पकती है उनकी बुवाई जून के पहले पखवाड़े में की जाती है विधि द्वारा। 

दाल की जो फसलें पकने में ज्यादा टाइम लगाती है। उनकी बुवाई जून के दूसरे पखवाड़े में करना आवश्यक होता है। दाल की फसल की बुवाई की प्रतिक्रिया सीडडिरल यह फिर हल के पीछे चोंगा को बांधकर पंक्तियों द्वारा की जाती है।

अरहर दाल की फसल के लिए बीज की मात्रा और बीजोपचार:

जल्दी पकने वाली जातियों की लगभग 20 से 25 किलोग्राम और धीमे पकने वाली जातियों की 15 से 20 किलोग्राम बीज /हेक्टर बोना चाहिए। 

जो फसल चैफली पद्धति से बोई जाती हैं उनमें बीजों की मात्रा 3 से 4 किलो प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। फसल बोने से पहले करीब फफूदनाशक दवा का इस्तेमाल 2 ग्राम थायरम, 1 ग्राम कार्बेन्डेजिम यह फिर वीटावेक्स का इस्तेमाल करे, लगभग 5 ग्राम ट्रयकोडरमा प्रति किलो बीज के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए। 

उपचारित किए हुए बीजों को रायजोबियम कल्चर मे करीब 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करने के बाद खेतों में लगाएं।

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अरहर की फसल की निंदाई-गुडाईः

अरहर की फसल को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए पहली निंदाई लगभग 20 से 25 दिनों के अंदर दे, फूल आने के बाद दूसरी निंदाई शुरू कर दें। खेतों में दो से तीन बार कोल्पा चलाने से अच्छी तरह से निंदाई की प्रक्रिया होती है।

तथा भूमि में अच्छी तरह से वायु संचार बना रहता है। फसल बोने के नींदानाषक पेन्डीमेथीलिन 1.25 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व / हेक्टर का इस्तेमाल करे। नींदानाषक का इस्तेमाल करने के बाद नींदाई करीब 30 से 40 दिन के बाद करना आवश्यक होता है।

अरहर दाल की फसल की सिंचाईः

किसानों के अनुसार यदि सिंचाई की व्यवस्था पहले से ही उपलब्ध है, तो वहां एक सिंचाई फूल आने से पहले करनी चाहिए। 

तथा दूसरे सिंचाई की प्रक्रिया खेतों में फलिया की अवस्था बन जाने के बाद करनी चाहिए। इन सिंचाई द्वारा खेतों में फसल का उत्पादन बहुत अच्छा होता है।

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अरहर की फसल की सुरक्षा के तरीके:

कीटो से फसलों की सुरक्षा करने के लिए क्यूनाल फास या इन्डोसल्फान 35 ई0सी0, 20 एम0एल का इस्तेमाल करें। फ़सल की सुरक्षा के लिए आप क्यूनालफास, मोनोक्रोटोफास आदि को पानी में घोलकर खेतों में छिड़काव कर सकते हैं।

इन प्रतिक्रियाओं को अपनाने से खेत कीटो से पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा या आर्टिकल अरहर पसंद आया होगा। 

हमारे इस आर्टिकल में अरहर से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद हैं। जो आपके बहुत काम आ सकती है। 

यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा खरीफ की मुख्य फसल है लेकिन अब इसे रबी सीजन में भी कई इलाकों में लगाया जाता है। गर्मियों में इसमें रोग भी कम आते हैं और साल भर यह खाद्य सुरक्षा में भी योगदान दे पाता है। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि बाजरे की उन्नत खेती कैसे करें 

बाजरे की आधुनिक, वैज्ञानिक खेती

बाजरा कोस्टल क्राप है और किसी भी कोस्टल क्राप में पोषक तत्व गेहूं जैसी सामान्य फसलों के मुकाबले कहीं ज्यादा होते हैं। बाजरा की हाइब्रिड किस्मों का उत्पादन गेहूं की खेती से ज्यादा लाभकारी हो रहा हैं। कम पानी और उर्वरकों की मदद से इसकी खेती हो जाती है। अन्न के साथ साथ यह पशुओं को हरा और सूखा भरपूर चारा भी दे जाता है। बाजरे के दाने में 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5.0 प्रतिशत वसा, 67.0 प्रतिशत कार्बोहाइडेट्स एवं 2.7 प्रतिशत खनिज लवण होते हैं। इसकी खेती के लिए दोमट एवं जल निकासी वाली मृदा उपयुक्त रहती है। रेगिस्तानी इलाकों में सूखी बुबाई कर पानी लगाने की व्यवस्था करें। एक हैक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 4 से 5 कि.ग्रा. प्रमाणित बीज पर्याप्त रहता है। 

बाजरे की उन्नत किस्में, संकर

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बाजरा की संकर किस्में ज्यादा प्रचलन में हैं। इनमें राजस्थान के लिए आरएचडी 21 एवं 30,उत्तर प्रदेश के लिए पूसा 415,हरियाणा एचएचबी 505,67 पूसा 123,415,605,322, एचएचडी 68, एचएचबी 117 एवं इम्प्रूब्ड, गुजरात के लिए पूसा 23, 605, 415,322, जीबीएच 15, 30,318, नंदी 8, महाराष्ट्र के लिए पूसा 23, एलएलबीएच 104, श्रद्धा, सतूरी, कर्नाटक पूसा 23 एवं आंध्र प्रदेश के लिए आईसीएमबी 115 एवं 221 किस्म उपयुक्त हैं। बाजार में प्राईवेट कंपनियों जिनमें पायोनियर, बायर, महको, आदि की अनेक किस्में किसानों द्वारा लगाई जाती हैं। आरएचबी 177 किस्म जोगिया रोग रोधी तथा शीघ्र पकने वाली है। औसत पैदावार लगभग 10-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सूखे चारे की पैदावार 40-45 क्विंटल है। आरएचबी 173 किस्म 75-80 दिन, आरएचबी 154 बाजरे की किस्म देश के अत्यन्त शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के लिये अधिसूचित है। 70-75 दिन में पकती है। आईसीएमएच 356- यह सिंचित एवं बारानी, उच्च व कम उर्वरा भूमि के लिए उपयुक्त, 75-80 दिन में पकने वाली संकर किस्म हैं। तुलासिता रोग प्रतिरोधी इस किस्म की औसत उपज 20-26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। आईसीएमएच 155 किस्म 80-100 दिन में पककर 18-24 क्विंटल उपज देती है। एचएचबी 67 तुलासिता रोग रोधक है। 80-90 दिन में पककर 15-20 क्विंटल उपज देती है।

 

बीजोपचार

 

 बीज को नमक के 20 प्रतिशत घोल में लगभग पांच मिनट तक डुबो कर गून्दिया या चैंपा से फसल को बचाया जा सकता हैं। हल्के बीज व तैरते हुए कचरे को जला देना चाहिये। तथा शेष बचे बीजों को साफ पानी से धोकर अच्छी प्रकार छाया में सुखाने के बाद बोने के काम में लेना चाहिये। उपरोक्त उपचार के बाद प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थायरम दवा से उपचारित करें। दीमक के रोकथाम हेतु 4 मिलीलीटर क्लोरीपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। 

बुवाई का समय एवं विधि

  bajra kheti 

 बाजरा की मुख्य फसल की बिजाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक होती है वहीं गर्मियों में बाजारा की फसल लगाने के लिए मार्च में बिजाई होती है। बीज को 3 से 5 सेमी गहरा बोयें जिससे अंकुरण सफलतार्पूवक हो सके। कतार से कतार की दूरी 40-45 सेमी तथा पौधे से पौधे की दरी 15 सेमी रखें। 

खाद एवं उर्वरक

बाजरा की बुवाई के 2 से 3 सप्ताह पहले 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए। पर्याप्त वर्षा वाले इलाकों में अधिक उपज के लिए 90 कि.ग्रा. नाइटोजन एवं 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से दें।

 

खरपतवार नियंत्रण

बाजरा की बुवाई के 3-4 सप्ताह तक खेत में निडाई कर खरपतवार निकाल लें। आवश्यकतानुसार दूसरी निराई-गुड़ाई के 15-20 दिन पश्चात् करें। जहां निराई सम्भव न हो तो बाजरा की शुद्ध फसल में खरपतवार नष्ट करने हेतु प्रति हेक्टेयर आधा कि.ग्रा. एट्राजिन सक्रिय तत्व का 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

 

सिंचाई

 

 बाजरा की सिंचित फसल की आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। पौधे में फुटान होते समय, सिट्टे निकलते समय तथा दाना बनते समय भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए।

स्वीट कॉर्न की खेती से किसानों को काफी लाभ होगा, सिर्फ इन बातों का रखें खास ख्याल

स्वीट कॉर्न की खेती से किसानों को काफी लाभ होगा, सिर्फ इन बातों का रखें खास ख्याल

कृषक भाई स्वीट कॉर्न की खेती कर के शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। भारत ही नहीं विदेशों में भी इसे काफी पसंद किया जाता है। चाहें कैसा भी मौसम हो स्वीट कॉर्न का स्वाद सब की जुबां पर रहता है। विशेष तौर पर पहाड़ों की सेर के समय और बारिश के दौरान स्वीट कॉर्न को बड़े ही चाव से खाया जाता है। बतादें, कि स्वीट कॉर्न मक्के की मीठी किस्म है। इसकी फसल के पकने से पूर्व ही दूधिया अवस्था में इसकी कटाई की जाती है। स्वीट कॉर्न भारत के साथ-साथ विदेश में भी बेहद पसंद किया जाता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई इसकी खेती कर बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।

स्वीट कॉर्न की खेती किस तरह होती है

स्वीट कॉर्न की खेती मक्का की खेती की भांति ही होती है। स्वीट कॉर्न की खेती में मक्का की फसल पकने से पूर्व ही तोड़ दी जाती है। इस वजह से किसानों को बेहद शीघ्रता से अच्छी कमाई मिलती है। स्वीट कॉर्न के साथ-साथ फूलों की खेती करके किसान एक ही वक्त में दो गुना ज्यादा धन कमाने के लिए गेंदा, ग्लेडियोलस एवं मसालों की सहफसली खेती भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त आप एक खेत में पालक, मटर, गोभी और धनिया भी उगा सकते हैं।

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स्वीट कॉर्न को अधिक समय तक स्टोर करके ना रखें

स्वीट कॉर्न की फसल कटाई एक बेहद ही आसान प्रक्रिया है। बतादें, कि फसल कटाई के लिए तैयार तब होती गई जब भुट्टों से दूधिया पदार्थ निकलने लगता है। सुबह अथवा शाम में स्वीट कॉर्न की कटाई करें, इससे फसल अधिक समय तक तरोताजा रहेगी। तुड़ाई पूर्ण होने पर इसको मंडियों में बेच दें। स्वीट कॉर्न को ज्यादा दिनों तक स्टोर करके न रखें, क्योंकि इससे इसकी मिठास कम हो जाएगी।

 

किसान इन बातों का विशेष ख्याल रखें

  • जब आप इसकी खेती करते हैं, तो आप मक्का की उन्नत किस्मों को ही चुनें।
  • कीट-रोधी किस्मों को कम समयावधि में पकना चाहिए।
  • खेत की तैयारी के दौरान जल निकासी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें, ताकि फसल में जल भराव न हो।
  • स्वीट कॉर्न वैसे तो संपूर्ण भारत में उगाई जाती है, परंतु उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा पैदावार होती है।
  • स्वीट कॉर्न की बुवाई रबी एवं खरीफ दोनों ही सीजनों में की जा सकती है।

किसान भाई खरीफ सीजन में इस तरह करें मूंग की खेती

किसान भाई खरीफ सीजन में इस तरह करें मूंग की खेती

मूँग एक प्रमुख दलहनी फसल होने की वजह से यह एक उत्तम आय का माध्यम है। साथ ही, मूँग की फसल को पोषण के मामले में काफी ज्यादा अच्छा माना जाता है। 

भारत के अंदर खेती करने के लिये तीन फसल चक्र अपनाये जाते हैं, जिसमें रबी की फसल, खरीफ की फसल और जायद की फसल शम्मिलित हैं। किसान भाइयों ने रबी फसल की कटाई कर ली है एवं खरीफ फसल के लिये खेतों की तैयारी का काम चल रहा है। 

जो भी किसान भाई खरीफ सीजन में अच्छा मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, वे अपने खेतों में पलेवा, बीजों का चुनाव, सिंचाई की व्यस्था और खेतों में बाड़बंदी की तैयारी कर लें। 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निर्देशानुसार यह समय मूंग की खेती करने के लिये काफी ज्यादा अनुकूल है। मूंग एक प्रमुख दलहनी फसल है, जिसकी खेती कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में की जाती है। 

प्रमुख दलहनी फसल होने की वजह मूंग की फसल एक बेहतरीन कमाई का जरिया तो है ही, साथ में पोषण के मामले में मूंग की फसल को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

मूंग की फसल हेतु खेत की तैयारी

अगर किसान इस खरीफ सीजन में मूंग की फसल लगाना चाह रहे हैं, तो वो खेतों में 2-3 बार बारिश होने पर गहरी जुताई का कार्य कर लें। इससे मृदा में छिपे कीड़े निकल जाते हैं और खरपतवार भी खत्म हो जाते हैं। 

गहरी जुताई से फसल की पैदावार बढ़ती है और स्वस्थ फसल लेने में भी सहायता मिलती है। किसान ध्यान रखें, कि गहरी जुताई करने के पश्चात खेत में पाटा चलाकर उसे एकसार कर लें। 

इसके पश्चात खेत में गोबर की खाद और आवश्यक पोषक तत्व भी मिला लें, जिससे बेहतरीन पैदावार प्राप्त हो सके।

मूंग की फसल हेतु बीजों का चयन

जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक किसान खरीफ मूंग की बुवाई कर सकते हैं। बुवाई के लिये किसानों को बेहतरीन गुणवत्ता वाले उपयुक्त बीजों का ही चयन करना चाहिये, इससे मूंग की फसल में कीड़े एवं बीमारियां लगने की संभावना काफी कम रहती है। 

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मूंग की फसल की बुवाई

खेत में मूंग के बीज की बुवाई करने से पहले उनका बीजशोधन अवश्य करना चाहिए। बतादें कि इससे स्वस्थ और रोगमुक्त फसल लेने में विशेष सहायता मिलती है। 

मूंग के बीजों को कतारों में ही बोयें, जिससे निराई-गुड़ाई करने में काफी सुगमता रहे और खरपतवार भी आसानी से निकाले जा सकें।

मूंग की फसल में सिंचाई की व्यवस्था

हालांकि, मूंग की फसल के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 2 से 3 बरसातों में ही फसल को अच्छी खासी नमी मिल जाती है। परंतु, फिर भी फलियां बनने के दौरान खेतों में हल्की सिंचाई कर देनी चहिये। 

शाम के वक्त हल्की सिंचाई करने पर मिट्टी को नमी मिल जाती है। इस बात का खास ख्याल रखें कि फसल पकने के 15 दिन पहले ही सिंचाई का काम बंद कर दें।

मूंग की फसल में कीटनाशक और खरपतवार नियंत्रण

दूसरी फसलों की तरफ मूंग की फसल में भी कीट-रोग लगने की संभावना बनी रहती है। इस वजह से समय-समय पर निराई-गुड़ाई का भी कार्य करते रहें। खेतों में उगे खरपतवारों को उखाड़कर जमीन के अंदर दबा दें। साथ ही, रोगों से भी फसल की निगरानी करते रहें। 

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मूंग की फसल की कटाई-गहाई

खरीफ मूंग की फसल कम समय में पकने वाली फसल है। यह सामान्य तौर पर 65-70 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है। जून-जुलाई के मध्य बोई गई फसल सिंतबर-अक्टूबर के मध्य पककर तैयार हो जाती है। 

मूंग की फलियां हरे रंग से भूरे रंग की होने लग जाऐं तो कटाई-गहाई का कार्य वक्त रहते कर लेना चाहिये।

पोषण और पैसे की गारंटी वाली फसल है मूंग

पोषण और पैसे की गारंटी वाली फसल है मूंग

मूंग खरीफ बोई जाने वाली मुख्य फसल है लेकिन इस मौसम में मोजैक रोग ज्यादा आने के कारण् अब इसकी फसल खरीफ में भी लेना ज्यादा लाभकारी सिद्ध हो रहा है। बेहद कम समय यानी कि 60-70 दिन में इस दलहनी फसल को लेने के दो फायदे हैं। इसकी जड़े खेत में जैविक नाइट्रोजन ​फिक्सेसन का काम करती हैं और नाके बराबर लागत में किसान अपने परिवार के लिए साल भर का पोषक दाल का जुगाड़ कर सकते हैं। मूंग की खेती रबी सीजन के बाद गेहूं काटने के बाद भी ले सकते हैं। फसल मिले तो ठीक नहीं भी मिले तो मूंग की फसल जमीन को खाद के रूप में बेशकीमती पोषक तत्वों का भंडार देने वाली है। तकनीकी ज्ञान के आधार पर अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी इसका अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। रबी सीजन के बाद देश में लाखों हैक्टेयर क्षेत्रफल समूूचे देश में खाली पड़ा रहा जाता है । यदि किसान सामूहिक और सामान्य रूप से भी इसमें मूंग लगाएं तो बेहद लाभकारी परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। मूंग की टाइप 44 किस्म अगस्त के दूसरे हफ्ते में बोकर 65 दिन में काटी जा सकती है। इससे अधिकतम 8 कुंतल प्रति हैक्टेयर की उपज मिलती है। पंत मूूंग 1 की बिजाई 25 जुलार्इ् से 10 अगस्त कर करते हैं। 75 दिन में पक कर 10 कुंतल तक उपज मिलती है। यह पीला मोजेक अवरोधी है। पन्त मूंग दो 25 जुलार्इ् से 10 अगस्त कर बोते हैं। यह 70 दिन में 11 कुंतल तक उपज देती है। पंत मूंग 3 की ​बिजाइ्र 25 जुलार्इ् से 10 अगस्त तक करते हैं। अधिकतम 85 दिन में यह 10 से 15 कुंतल तक उत्पादन देती है। राजस्थान के लिए आर एम जी-62 पकाव अवधि 65-70 दिन, उपज 6-9 कुंतल, राइजक्टोनिया ब्लाइट कोण व फली छेदन कीट के प्रति रोधक ,फलियां एक साथ पकती हैं। आरएमजी-268 अवधि 62-70 उपज 8-9 कुंतल, सूखे के प्रति सहनसील,I रोग एवं कीटो का कम प्रकोप,I फलियां एक साथ पकती हैं। I आरएमजी-344 पकाव 62-72 दिन, उपज 7-9 कुंतल, खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त,I ब्लाइट को सहने की क्षमता। Iएसएमएल-668, 62-70 दिन, उपज 8-9 कुंतल, दोनों सीजन के लिए उपयुक्त, अनेक बिमारियों एवं रोगो के प्रति सहनसील । गंगा-8, 70—72 दिन, उपज 9-10 कुंतल, उचित समय एवं देरी दोनों स्थतियों में बोने योग्य, दोनों सजीनों के लिए उपयुक्त रोग रोधी। जीएम-4, 62-68 दिन, उपज 10-12 कुंतल, फलियां एक साथ पकती हैं। Iदाने हरे रंग के तथा  बड़े आकर के होते हैं। मूंग के -851, 70-80 दिन, उपज 8-10 कुंतल, सिंचित एवं असिंचित क्षत्रों के लिए उपयुक्त, I चमकदार एवं मोटा दाना होता है। नरेन्द्र मूंग 1, पीडीएम 54, पंत मूग 4, मालवीय ज्योति, मालवीय जनप्रिया, मालवीय जागृति, मालवीय जन चेतना, आशा, मेहा, टीएम 9937, मालवीय जनकल्याणी किस्में अधिकतम 70 दिन में तैयार होकर 15 कुंतल तक उत्पादन देती हैं। पूसा विशाल किस्म समूचे देश में लगार्इ् जा सकती है। उपज 12 कुतल एवं अवधि 70 दिन है। पूसा 672 किस्म 65 दिन में तैयार होकर 12 कुंतल तक उपज देती है। मूंग की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है। उत्तर भारत में इसकी खेती गर्मी एवं बरसात के सीजन में तथा दक्षित भारत में रबी सीजन में की जाती है। किस्में अनेक हैं। एचयूएम सीरीज की भी मूग की कई किस्में श्रेष्ठ हैं। किसानों को क्षेत्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र एवं कृषि विभाग में संपर्क कर आगामी फसल के समय को ध्यान में रखते हुए साल में एक बार अपने खेतों में मूंग की खेती अवश्य करनी चाहिए ताकि जमीन की उपज क्षमता बरकरार रहे।

मूंग की खेती के लिए बीज की बुवाई

  buwai 5 मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक करलें। वर्षा देरी से हो तो शीघ्र पकने वाली किस्म की वुबाई 30 जुलाई तक करें। बीज प्रामाणिक लेना चाहिए। कतरों के बीच दूरी 45 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. उचित है । मूंग की खेती के लिए 12 से 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बीज की जरूरत होती है।

मूंग की फसल में खाद एवं उर्वरक

  urwaruk 1 दलहनी फसलों में उर्वरक की बेहद कम जरूरत होती है। मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40  किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है। इसकी पूर्ति क्रमश 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया से करें। 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए तथा बुवाई कर देनी चाहिए। किसी भी दलहनी फसल में अच्छे उत्पादन के लिए कल्चर से बीज उपचार जरूर करें।

मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण

  moong kharaptar फसल की बुवाई के एक या दो दिन पश्चात एवं अंकुरण से पूर्व पेन्डीमेथलिन (स्टोम्प )की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। फसल जब 25 -30 दिन की हो जाये तो ​निराई करें।  इसके बाद भी खरपतवार दिखे तो इमेंजीथाइपर(परसूट) की 750 मिली लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।
केंद्र सरकार की पहल से हर राज्य में किसानों को खरीफ बीज उपलब्ध कराया जाएगा

केंद्र सरकार की पहल से हर राज्य में किसानों को खरीफ बीज उपलब्ध कराया जाएगा

मौसम विभाग द्वारा मई माह में भारत के अंदर अलनीनो प्रभाव की आशंका जताई है। इससे विभिन्न स्थानों पर अत्यधिक बारिश तो कहीं सूखे की स्थिति बन सकती है। किसानों को सतर्क रहना बेहद आवश्यक है। रबी सीजन की फसल कटकर मंडी में पहुंच चुकी है। थोड़ी-बहुत जो फसल बच गई है। उसका कटान निरंतर चालू है। ऐसी स्थिति में किसानों ने हाल ही में खरीफ सीजन को लेकर तैयारियां चालू कर दी हैं। साथ ही, खेतों में बीजों की उपलब्धता एवं बुवाई से जुड़े सभी मामलों को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के स्तर से कवायद की जा रही है। ताकि खेतों में बुवाई से संबंधित किसी प्रकार का संकट न खड़ा हो सके।

देश में अलनीनो का क्या असर हो सकता है

साथ ही, इस वर्ष भारत में अलनीनो का प्रभाव भी देखने को मिल सकता है। प्रशांत महासागर में पेरू के समीप समुद्री तट के गर्म होने की घटना को अल-नीनो कहा जाता है। इसको हम ऐसे समझ सकते हैं, कि समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में जो परिवर्तन देखने को मिलते हैं। उस समुद्री घटना को अल नीनो कहा जाता है। सामान्य परिवर्तन होता है, तो समुद्र के तापमान में 2 से 3 डिग्री तक वृद्धि होती है। वहीं ज्यादा अल नीनो का असर दिखता है, तो तापमान 4-5 डिग्री या इससे और ज्यादा बढ़ सकता है। अल नीनो का प्रभाव विश्व भर में देखने को मिलता है। इससे बहुत सारे स्थानों पर सूखा, लू जैसी परिस्थितियां तो विभिन्न जगहों पर बारिश होने का अनुमान ज्यादा होता है। ये भी पढ़े: जानें इस साल मानसून कैसा रहने वाला है, किसानों के लिए फायदेमंद रहेगा या नुकसानदायक

किसानों को खरीफ बीज मुहैय्या कराया जाएगा

केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है, कि मौसम की वजह से होने वाली प्रतिकूल परिस्थिति को लेकर राज्य सरकार हर स्तर पर तैयार रहें। कम बारिश होने की स्थिति में राज्यों में कृषकों के लिए बीज की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। बतादें, कि राज्यों में बीज की उपलब्धता देखने, सिंचाई का मूल्यांकन करने के लिए कहा गया है। इसी के आधार पर किसानों की सहायता की जा सकेगी।

कृषकों की आय में वृद्धि करने पर बल दिया जाए

खरीफ बुवाई सत्र 2023-24 को लेकर केंद्र सरकार तैयारी कर रही है। इसको लेकर हाल ही में एक सम्मेलन का आयोजन भी किया गया। सम्मेलन में केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि राज्यों को कृषि क्षेत्र में कच्चे माल की लागत में कटौती, उत्पादन और किसानों की इनकम बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन दिया जाए। किसानों को गारंटीशुदा फायदे की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाए।
अरबी की फसल लगाते समय किन बातों का रखें ध्यान; जाने फसल के बारे में संपूर्ण जानकारी

अरबी की फसल लगाते समय किन बातों का रखें ध्यान; जाने फसल के बारे में संपूर्ण जानकारी

अरबी की फसल एक सब्जी के तौर पर उड़ाई जाती हैं और यह एक कंद के रूप में  उगती है. भारत में अरबी की खेती लगभग हर राज्य में की जाती है और गर्मी और बारिश का मौसम इस फसल के लिए उपयुक्त माना जाता है. कहा जाता है कि अरबी में कुछ जहरीले गुण होते हैं इसलिए इसका सेवन कभी भी कच्चा नहीं करना चाहिए क्योंकि यह शरीर के लिए काफी हानिकारक हो सकता है. इसके इन जहरीले गुणों को पानी में डालकर नष्ट किया जा सकता है. अरबी की फसल में काफी औषधीय गुण होते हैं और इसे कई तरह की बीमारियों में आने के लिए सुझाव दिए जाते हैं लेकिन फिर भी बहुत अधिक मात्रा में अरबी का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. इस फसल के पत्ते केले के पत्तों की तरह चौड़े होते हैं और उन्हें सुखाने के बाद उनकी सब्जी या फिर पकोड़े बनाकर खाए जा सकते हैं. इसके अलावा इसकी एक और अद्भुत क्वालिटी है कि इसके फल को सुखाने के बाद उससे आटा भी बनाया जा सकता है. इसे अंतर्भरती फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है जिससे किसान 2 पदों का लाभ इस एक फसल से प्राप्त कर सकते हैं. इस आर्टिकल के माध्यम से अरबी की फसल से जुड़ी हुई सभी जानकारी दी गई है जिन्हें फॉलो करते हुए किसान इसे उगा कर मुनाफा कमा सकते हैं.

अरबी की फसल के लिए मिट्टी, जलवायु और सही तापमान की जानकारी

किसी भी फसल की तरह अरबी की खेती करते समय भी उपजाऊ मिट्टी का होना अनिवार्य है और साथ ही यह एक कंद फसल है इसलिए भूमि में पानी की निकासी अच्छी तरह से होना आवश्यक है. बलुई दोमट मिट्टी इस फसल के लिए एकदम उपयुक्त मानी गई है और इसकी खेती करते समय भूमि का पीएच  5.5 से 7 के मध्य होना चाहिए. उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को अरबी की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है.

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वर्षा ऋतु के समय और गर्मियों में दोनों ही वातावरण में यह फसल उगती है लेकिन एक बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि बहुत ज्यादा गर्मी और बहुत ज्यादा सर्दी इस फसल के लिए हानिकारक हो सकती है.  सर्दियों में जब पाला पड़ने लगता है तो यह फसल के विकास को बाधित कर सकता है. अरबी की फसल लगाते समय ज्यादा से ज्यादा तापमान 35 डिग्री और कम से कम तापमान 20 डिग्री होना अनिवार्य है. इससे अधिक और कम तापमान फसल को नष्ट कर सकता है.

अरबी की कुछ उन्नत किस्में

अरबी की अलग-अलग किस्म आपको बाजार में देखने को मिल जाती हैं जिनमें से कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार से हैं;

सफेद गौरैया

एक बार फसल की रोपाई करने के बाद लगभग 190 दिन के बाद यह किस्म बनकर तैयार हो जाती है. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत है कि इससे निकलने वाला कंद खुजली से मुक्त होता है और साथ ही प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 180 क्विंटल तक फसल की पैदावार इस किस्म के जरिए की जा सकती है.

पंचमुखी

गोरैया किस्म की तरह ही पंचमुखी किस्म भी लगभग 180 से 200 दिन के बीच में पक कर तैयार हो जाती है. इससे निकलने वाला पौधा पांच मुखी कर देता है इसीलिए इसे पंचमुखी फसल का नाम दिया गया है. यह किस्मत अच्छी खासी पैदावार देती है और प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसमें 200 से 250 क्विंटल तक फसल का उत्पादन किया जा सकता है.

मुक्ताकेशी

बाकी किस्म के मुकाबले यह किस्मत जल्दी बन कर तैयार हो जाती है. इसमें पौधे लगभग 160 दिन में बनकर तैयार हो जाते हैं और इस पौधे में पत्तियों का आकार बाकियों के मुकाबले थोड़ा छोटा रहता है. उत्पादन की बात की जाए तो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 200 क्विंटल तक अरबी इस किस्म से उगाई जा सकती है.

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आजाद अरबी 1

इस किस्म की सबसे  बड़ी खासियत है कि यह बाकी किस्म के मुकाबले जल्दी बन कर तैयार हो जाती है.  केवल 4 महीने में ही बनकर तैयार होने वाली इस फसल से प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 280 क्विंटल पैदावार होती है और इसके पौधे सामान्य आकार के बनकर तैयार होते हैं.

नरेंद्र अरबी

देखने में हरे रंग का फल देने वाली यह किस्म लगभग 160 से 170 दिन के बीच में बनकर तैयार हो जाती है और इस किस्म से उगने वाले फल के सभी हिस्से खाने में इस्तेमाल किए जा सकते हैं.  इसमें हाला की पैदावार बाकी कसम के मुकाबले थोड़ी कम रहती है जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 क्विंटल तक मानी गई है. इसके अलावा भी अरबी की कई उन्नत किस्मो को अलग-अलग स्थान और जलवायु के हिसाब से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है, जो कि इस प्रकार है :- पंजाब अरबी 1, ए. एन. डी. सी. 1, 2, 3, सी. 266, लोकल तेलिया, मुक्ता काशी, बिलासपुर अरूम, सफेद गौरिया, नदिया, पल्लवी, पंजाब गौरिया, सहर्षमुखी कदमा, फैजाबादी, काका कंचु, अहिना, सतमुखी, लाधरा और बंसी आदि.

अरबी की फसल के लिए खेत की तैयारी

अरबी की फसल लगाने के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है इसलिए सबसे पहले गहरी जुताई करते हुए खेत में से पुरानी फसल के अवशेष नष्ट कर दिए जाते हैं.  एक बार जुताई करने के बाद खेत को 15  से 17 गाड़ी पुराने गोबर की खाद डालकर खुला छोड़ दिया जाता है. गोबर की खाद की जगह केंचुआ खाद का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. थोड़े समय खेत को खुला छोड़ देने के बाद फिर से जुताई की जाती है ताकि खाद को अच्छी तरह से खेत में मिलाया जा सके. इसके बाद कल्टीवेटर की मदद से दो से तीन बार खेत की तिरछी जोताई की जाती है और आप इसके बाद अगर चाहे तो खेत में केमिकल उर्वरक का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. आखरी जुदाई करते समय आपस में नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस का छिड़काव कर सकते हैं. इसके बाद खेत में पानी डालकर उसे थोड़े समय के लिए छोड़ दिया जाता है और अंत में रोटावेटर की मदद से एक बार फिर से तिरछी जुताई करते हुए मिट्टी को भुरभुरा कर लिया जाता है. भुरभुरी मिट्टी में पानी का जमाव ज्यादा नहीं होता है इसलिए ऐसा करना अनिवार्य है. इसके बाद आप भूमि को समतल करते हुए खेत में फसल उगा सकते हैं.

कैसे करें अरबी के बीजों की रोपाई

प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 15 से 20 क्विंटल बीजों की जरूरत पड़ती है और इन बीजों की रोपाई कंद के तौर पर ही की जाती है. कंद की रोपाई से पहले उन्हें बाविस्टीन या रिडोमिल एम जेड- 72 की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है. ऐसा करने के बाद आप दो तरीकों से बीजों की रोपाई कर सकते हैं, एक तो समतल भूमि में क्यारियां बनाकर और दूसरा खेत में मेड बनाते हुए कंधों की रोपाई की जा सकती है. इस फसल में बीज को लगभग 5 सेंटीमीटर की गहराई में लगाया जाता है. अगर आप  क्यारी बनाते हुए फसल की रोपाई कर रहे हैं तो प्रत्येक क्यारी के बीच में लगभग 2 फीट की दूरी जरूर रखें. इसके अलावा एक बीज के मध्य अभी लगभग डेढ़ फीट की दूरी होना अनिवार्य है.  मेड विधि से रोपाई करते समय यदि खेत में डेढ़ से दो फीट की दूरी बनाते हुए मेड का निर्माण करें. इसके बाद मेल के मध्य में नाली में ही कंद को डालकर उसे एक बार मिट्टी से ढक दें.

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फसल उगाने का सबसे सही समय जून और जुलाई का महीना माना गया है इसके अलावा गर्मियों के मौसम में अगर आप इस फसल की पैदावार चाहते हैं तो आप फरवरी और मार्च के बीच में भी इसकी रोपाई कर सकते हैं.

कैसे करें अरबी की फसल में सिंचाई

अगर आप चाहते हैं कि बारिश के मौसम में पैदावार प्राप्त हो जाए तो आपको पौधों की सिंचाई करने की जरूरत होती.  सबसे पहले पौधों को सप्ताह में दो बार सिंचाई की जाती है.  इसके अलावा अगर आपने अरबी की फसल बारिश के मौसम में लगाई है तो आपको ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ेगी.  बारिश के मौसम में उगाई जाने वाली अरबी की फसल में आप भी इस दिन के अंतर पर सिंचाई कर सकते हैं.  इसके अलावा बारिश के मौसम में बारिश का ध्यान रखते हुए ही सिंचाई करें ताकि जमीन में पानी ना ठहर जाए.

अरबी की फसल में खरपतवार नियंत्रण का तरीका

आप चाहे तो अरबी की फसल में केमिकल उर्वरक का इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर प्राकृतिक विधि से भी खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है. प्राकृतिक तरीके से खरपतवार का नियंत्रण करने के लिएमल्चिंग विधि का इस्तेमाल किया जाता है, इस विधि में कंद रोपाई के बाद खेत में बनी पंक्तियों को छोड़कर शेष स्थान पर सूखी घास या पुलाव बिछाकर मल्चिंग की जाती है. इसके बाद खेत में खरपतवार जन्म नहीं लेते है. रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए कंद रोपाई के तुरंत बाद पेंडामेथालिन की उचित मात्रा पानी में मिलाकर खेत में छिड़क दी जाती है.

अरबी की फसल को प्रभावित करने वाले रोग और उनकी रोकथाम का तरीका

एफिड

एफिड, माहू, और थ्रिप्स या तीनो एक ही प्रजाति के रोग है, जो कीट के रूप में पौधों के नाजुक अंगो और पत्तियों पर आक्रमण कर उनका रस चूस लेते है .इसरो के लगने के बाद पौधे की पत्तियां पीली पड़ने शुरू हो जाती है और उनके विकास में बाधा आ जाती है.  अगर आप इस रोग से पौधों को बचाना चाहते हैं तोक्विनालफॉस या डाइमेथियोट की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर किया जाता है .इसके अलावा प्राकृतिक विधि अपनाना चाहते हैं तो आप 10 दिन के अंतर पर पौधों पर नीम के तेल का छिड़काव कर सकते हैं.

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पत्ती अंगमारी

जैसा कि नाम से ही जानकारी मिल रही है यह रोग पौधे की पत्तियों पर आक्रमण करता है और इस रोग में पौधे की पत्तियों पर फफूंद लगने लगती है. एक बारिश रोग से प्रभावित होने के बाद पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग के गोल और बड़े धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं और सारी पत्तियां धीरे-धीरे नष्ट होकर गिर जाती हैं. साथ ही अगर पौधों में यह रोग हो जाता है तो यह पौधे के विकास को भी प्रभावित करता है और पौधे में कंद छोटे आकार के ही रह जाते हैं. इस रोग से पौधों को बचाने के लिए फेनामिडोंन, मेन्कोजेब या रिडोमिल एम जेड- 72 की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर किया जाता है.

गांठ गलन

गांड जलन रोग मिट्टी से पैदा होने वाला एक रोग है जो सीधे तौर पर पौधे की पत्तियों पर आक्रमण करते हुए उन्हें काले रंग का कर देता है. इसमें सबसे पहले पौधे की पत्तियों पर धब्बे नजर आते हैं और बाद में पत्तियां पीले रंग की होकर पूरी तरह से नष्ट हो जाती है. अगर इस रोग पर समय रहते ध्यान ना दिया जाए तो आपकी पूरी फसल भी बर्बाद हो सकती है. इस रोग से पौधे को बचाने के लिएजिनेब 75 डब्ल्यू पी की या एम 45 की उचित मात्रा पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करते है.

कंद सडन रोग

यह रोग भी पौधे की पत्तियों पर आक्रमण करता है और उसमें फफूंद लगा देता है. यह रोग ज्यादातर नमी के समय में देखने को मिलता है और अगर किसी कारण से फसल में पानी ठहर जाता है तो यह रोग होने की संभावना और ज्यादा बढ़ जाती है. यह रोग एक बार फसल पैदा होने के बाद किसी भी चरण पर पौधे को प्रभावित कर देता है. इस रोग से बचाव के लिए सबसे पहले तो आपको कोशिश करनी है की फसल में जलभराव ना हो और साथ ही आप बोर्डो मिश्रण का छिड़काव फसल पर करते हुए इस रोग से बचाव कर सकते हैं.

अरबी की फसल से होने वाली कमाई

अरबी की सभी केस में लगभग 170 से 180 दिन में बनकर तैयार हो जाती हैं.  एक बार जो पौधे की पत्तियां हल्के पीले रंग की दिखाई देने लगे तो आप कंद की खुदाई करना शुरू कर सकते हैं.  अच्छी तरह से एक कंद को साफ करने के बाद आप इसे घटा कर सकते हैं. फसल में लगी हुई हरी पत्तियों को भी बेचा जा सकता है और प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सामान्यतः 180 से 200 क्विंटल की पैदावार किसान इस फसल को लगाते हुए कर सकते हैं.  बाजार में अरबी का भाव 15 से ₹20 प्रति किलो का होता है तो इस अनुमान से किसान रबी की फसल से लगभग 3 से 4  लाख  की कमाई आसानी से कर सकते हैं.
सनई की खेती से संबंधित कुछ अहम जानकारी

सनई की खेती से संबंधित कुछ अहम जानकारी

भारत में सनई की खेती हरी खाद अथवा पीले फूलों के उद्देश्य से की जाती है। परंतु, जैविक खेती के चलन में हरी खाद की बढ़ती मांग के बीच इसकी व्यावसायिक खेती लाभ का सौदा सिद्ध हो सकती है। भारत के किसान भाई मोटा मुनाफा अर्जित करने हेतु फिलहाल दोहरे उद्देश्य वाली फसलों की खेती पर बल दे रहे हैं। मतलब कि फसल एक ही होगी, परंतु उससे दो तरह की पैदावार ले सकते हैं। सनई भी इसी तरह की फसल में शामिल है। इसके फूलों का इस्तेमाल सब्जी के तौर पर, जूट के लिये और फसल के बाकी हिस्सों से हरी खाद तैयार की जाती है। इस तरह सनई की खेती करके मिट्टी की उर्वरक शक्ति बढ़ा सकते हैं। जिससे कि फसलों का ज्यादा उत्पादन ले सकें। दूसरी तरफ सनई के पीले फूलों की भी बाजार में बेहद मांग रहती है, जिन्हें बेचकर अच्छी आमदनी की जा सकती है।

सनई की खेती मुख्य रूप से इन राज्यों में की जाती है

नवीन फसल लगाने से पूर्व खेतों में हरी खाद के उद्देश्य से सनई की खेती करने की सलाह दी जाती है। दरअसल, भारत के हर कोने में सनई की खेती की जा सकती है। परंतु, राजस्थान, महाराष्ट्र, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के किसान इसे हरी खाद के अतिरिक्त इसे व्यावसायिक फसल के रूप में उगाते हैं।

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सनई की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

सनई की खेती के लिए नमी वाली रेतीली मिट्टी अथवा चिकनी मिट्टी को सबसे उपयुक्त मानते हैं। इसकी खेती के लिये खेत में गहरी जुताई निरंतर मिट्टी को भुरभुरा बनाती हैं। उसके बाद पाटा लगाकर खेतों को ढंक दिया जाता है। खरीफ सीजन की फसलों से पूर्व सनई की बिजाई की जाती है। साथ ही, अप्रैल से जुलाई तक बीजों को खेत में छिड़क दिया जाता है। वर्षा आधारित फसल होने की वजह से सनई की खेती में ज्यादा सिंचाई नहीं करनी होती। सिर्फ फूल बनने के दौरान खेत में नमी रखना आवश्यक होता है।

सनई की कटाई

बीज उत्पादन के लिये सनई की खेती करने पर 150 दिन मतलब कि 5 महीने के पश्चात कटाई की जाती है। साथ ही, हरी खाद के उद्देश्य से सनई की खेती करने पर 45 से 60 दिनों के अंदर इसकी कटाई की जाती है। बतादें, कि पूरी फसल को हरी खाद बनाने के लिये खेत में फैला देते हैं।

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सनई से आमदनी

भारत के अधिकांश हिस्सों में इसकी खेती केवल हरी खाद (Sanai Green Manure), पीले फूलों (Sanai Yellow Flower) अथवा जूट (Sanai Jute) के उद्देश्य से की जाती है। परंतु, जैविक खेती (Organic Farming) के दौर में हरी खाद की बढ़ती डिमांड (Green Manure) के मध्य इसकी व्यावसायिक खेती (Commercial Farming of Sanai) फायदे का सौदा साबित हो सकती है। बाजार में सनई के फूल भी 200 रुपये प्रति किलो के भाव पर बेचे जाते हैं। इस तरह मृदा हेतु आवश्यक खनिज और पोषक तत्वों से भरपूर सनई की खेती करके 10 प्रतिशत लागत में 100 प्रतिशत मुनाफा कमा सकते हैं।
किसान रबी सीजन में इन पांच उन्नत सब्जियों की खेती से शानदार उपज हांसिल कर सकते हैं

किसान रबी सीजन में इन पांच उन्नत सब्जियों की खेती से शानदार उपज हांसिल कर सकते हैं

रबी सीजन की उन्नत पांच सब्जियों की फसल लहसुन, शिमला मिर्च, टमाटर, आलू और मटर कृषकों को कम वक्त और कम लागत में शानदार उत्पादन देंगी। कृषकों के द्वारा सीजन के मुताबिक, विभिन्न प्रकार की विभिन्न फसलों की खेती की जाती है, जिससे कि किसान कम समयावधि में ज्यादा उत्पादन के साथ-साथ  शानदार मुनाफा हांसिल कर सकें। यदि आप भी फसलों से शानदार लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो ऐसे में आपको अपने खेत में सीजन के मुताबिक खेती करनी चाहिए।  बतादें, कि इस समय रबी का सीजन चल रहा है, तो ऐसे में कृषक अपने खेत में रबी सीजन की फसलों को लगा सकते हैं। इसी कड़ी में आज हम भारत के किसानों के लिए रबी सीजन की टॉप पांच उन्नत सब्जियों की फसलों की जानकारी देने वाले हैं। जो कि कम वक्त में बेहतरीन पैदावार देने में सक्षम हैं, जिन रबी सीजन की सब्जियों की हम बात कर रहे हैं, वह लहसुन, शिमला मिर्च, टमाटर, आलू और मटर है।

रबी सीजन में उगाई जाने वाली पांच उन्नत सब्जियों की फसल

शिमला मिर्च की खेती  

शिमला मिर्च की खेती से शानदार उपज पाने के लिए कृषक को पॉलीहाउस अथवा लो टनल विधि का इस्तेमाल करना चाहिए। शिमला मिर्च के उन्नत बीजों से नर्सरी तैयार कर कृषक 20 दिन के उपरांत ही पौधों की रोपाई करना प्रारंभ कर सकते हैं। इसके साथ ही यूरिया की 25 किग्रा. अथवा नाइट्रोजन की 54 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डालें।

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टमाटर की खेती 

किसान भाई टमाटर की भी पॉलीहाउस में सुगमता से रोपाई कर सकते हैं। टमाटर की फसल में कीट-रोग नियंत्रण का विशेष रूप से ध्यान रखें। क्योंकि इसकी फसल में शीघ्रता से रोग लग जाते हैं। शानदार उत्पादन के लिए फसल में 40 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फेट, 60-80 किग्रा पोटाश के साथ जिंक 20-25 किग्रा, 8-12 किग्रा बोरेक्स का उपयोग करें।

आलू की खेती 

आलू के कंदों को बनने के लिए 20 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे ज्यादा होता है। बतादें, कि जैसे-जैसे तापमान में बढ़ोतरी होती है, वैसे-वैसे ही कंदों का निर्माण होना भी कम होने लगता है। इस वजह से सर्दियों के समय में आलू की खेती कृषकों के द्वारा सर्वाधिक की जाती है। ठंडों के माह में इसकी बिजाई, उत्पादन और भंडारण बेहद सुगम होता है। यदि देखा जाए तो आलू की समस्त किस्में 70 से 100 दिनों के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती हैं।

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मटर की खेती   

मटर के बीज को उत्पादित होने के लिए 22 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है। बीज के अंकुरित होने के पश्चात इसके अच्छे विकास फली में शानदार दाने पड़ने हेतु 10 से 15 सेल्सियस के मध्य का तापमान होना चाहिए। मटर की बिजाई करने के लिए 35 से 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की मात्रा में इस्तेमाल करें। इसके अतिरिक्त बिजाई करने से पूर्व कप्तान अथवा थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। ऐसा करने से पैदावार क्षमता में 8 से 10 फीसद तक की बढ़ोतरी होती है।

लहसुन की खेती  

लहसुन एक प्रकार की औषधीय खेती होती है। किसानों को इसकी बिजाई करने के लिए 500-700 किग्रा प्रति हेक्टेयर की बीज पर्याप्त है। इसका शानदार उत्पादन हांसिल करने के लिए कृषकों को लहसुन की बिजाई के वक्त कतार विधि का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही, लहसुन के कंदों का उपचार भी अवश्य करना चाहिए। इसके पश्चात खेत में 15x7.5 सेमी के फासले पर इसकी बिजाई करना आरंभ करें।
मार्च-अप्रैल में उगाई जाने वाली फसलों की उत्तम किस्में व उनका उपचार क्या है?

मार्च-अप्रैल में उगाई जाने वाली फसलों की उत्तम किस्में व उनका उपचार क्या है?

आने वाले दिनों में किसान भाइयों के खेतों में रबी की फसल की कटाई का कार्य शुरू हो जाएगा। कटाई के बाद किसान भाई अगली फसलों की बुवाई कर सकते हैं। 

किसान भाइयों आज हम आपको हम हर माह, महीने के हिसाब से फसलों की बुवाई की जानकारी देंगे। ताकि आप उचित वक्त पर फसल की बुवाई कर शानदार उपज प्राप्त कर सकें। 

इसी कड़ी में आज हम मार्च-अप्रैल माह में बोई जाने वाली फसलों के विषय में जानकारी दे रहे हैं। इसी के साथ उनकी ज्यादा उपज देने वाली प्रजातियों से भी आपको रूबरू कराऐंगे।

1. मूंग की बुवाई 

पूसा बैशाखी मूंग की व मास 338 और टी 9 उर्द की किस्में गेहूं कटने के पश्चात अप्रैल माह में लगा सकते हैं। मूंग 67 दिनों में व मास 90 दिनों में धान रोपाई से पहले पक जाते हैं तथा 3-4 क्विंटल उत्पादन देते हैं। 

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मूंग के 8 कि.ग्रा. बीज को 16 ग्राम वाविस्टीन से उपचारित करने के उपरांत राइजावियम जैव खाद से उपचार करके छाया में सुखा लें। एक फुट दूर बनी नालियों में 1/4 बोरा यूरिया व 1.5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालकर ढक दें। 

उसके बाद बीज को 2 इंच दूरी तथा 2 इंच गहराई पर बोएं। अगर बसंतकालीन गन्ना 3 फुट के फासले पर बोया है तो 2 कतारों के मध्य सह-फसल के रूप में इन फसलों की बिजाई की जा सकती है। इस स्थिति में 1/2 बोरा डी.ए.पी. सह-फसलों के लिए अतिरिक्त डालें।

2. मूंगफली की बुवाई 

मूंगफली की एस जी 84 व एम 722 किस्में सिंचित स्थिति में अप्रैल के अंतिम सप्ताह में गेहूं की कटाई के शीघ्रोपरांत बोई जा सकती हैं। जोकि अगस्त के अंत तक या सितंबर शुरू तक पककर तैयार हो जाती है। 

मूंगफली को बेहतर जल निकास वाली हल्की दोमट मृदा में उगाना चाहिए। 38 किलोग्राम स्वस्थ दाना बीज को 200 ग्राम थीरम से उपचारित करने के बाद राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करें। 

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कतारों में एक फुट और पौधों में 9 इंच के फासले पर बीज 2 इंच से गहरा प्लांटर की सहायता से बुवाई कर सकते हैं। बिजाई पर 1/4 बोरा यूरिया, 1 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट, 1/3 बोरा म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 70 किलोग्राम जिप्सम डालें।

3. साठी मक्का की बुवाई 

साठी मक्का की पंजाब साठी-1 किस्म को पूरे अप्रैल में लगा सकते है। यह किस्म गर्मी सहन कर सकती है तथा 70 दिनों मेंपककर 9 किवंटल पैदावाद देती है। खेत धान की फसल लगाने के लिए समय पर खाली हो जाता है। 

साठी मक्का के 6 कि.ग्रा. बीज को 18 ग्राम वैवस्टीन दवाई से उपचारित कर 1 फुट लाइन में व आधा फुट दूरी पौधों में रखकर प्लांटर से भी बीज सकते है। 

बीजाई पर आधा बोरा यूरिया, 1.7 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट व 1/3 बोरा म्यूरेट आफ पोटास डाले। यदि पिछले वर्ष जिंक नहीं डाला तो 10 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट भी जरूर डालें।

4. बेबी कार्न यानी मक्का की बुवाई 

बेबीकार्न की संकर प्रकाश व कम्पोजिट केसरी किस्मों के 16 किलोग्राम बीज को एक फुट लाइनों में तथा 8 इंच पौधों में दूरी रखकर बोएं। खाद मात्रा साठी मक्का के समान ही है। यह फसल 60 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 

बतादें, कि इस मक्का के पूर्णतय कच्चे भुट्टे बिक जाते हैं, जो कि होटलों में सलाद, सब्जी, अचार, पकौड़े व सूप तैयार करने के काम में आते हैं। इसके अतिरिक्त हमारे देश से इसका निर्यात भी किया जाता है।

5. अरहर के साथ मूंग या उड़द की मिश्रित बुवाई

किसान भाई सिंचित अवस्था में टी-21 तथा यू.पी. ए. एस. 120 किस्में अप्रैल में लग सकती है। 7 कि.ग्रा. बीज को राइजोवियम जैव खाद के साथ उपचारित करके 1.7 फुट दूर कतारों में बोया जाना चाहिए। 

बिजाई पर 1/3 बोरा यूरिया व 2 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालनी चाहिए। अरहर की 2 कतारों के मध्य एक मिश्रित फसल ( मूंग या उड़द) की लाइन भी लगाई जा सकती है, जो 60 से 90 दिन में तैयार हो जाती है।

6. गन्ने की बुवाई 

बोआई का समय : उत्तर भारत में मुख्यतह: फरवरी-मार्च में गन्ने की बसंत कालीन बुवाई की जाती है। गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर – नवम्बर है। बसंत कालीन गन्ना 15 फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए। उत्तर भारत में बुवाई का विलम्बित समय अप्रैल से 16 मई तक है।

7. लोबिया की बुवाई

लोबीया की एफ एस 68 किस्म 67-70 दिनों के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। गेहूं कटने के पश्चात एवं धान, मक्का लगने के बीच फिट हो जाती है तथा 3 क्विंटल तक उपज देती है। 

12 किलोग्राम बीज को 1 फुट दूर कतारों में लगाएं और पौधों में 3-4 इंच का फासला रखें। बीजाई पर 1/3 बोरा यूरिया व 2 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें। 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें।

8. चौलाई की बुवाई

चौलई की फसल अप्रैल माह में लग सकती है, जिसके लिए पूसा किर्ति व पूसा किरण 500-600 किग्रा. पैदावार देती है। 700 ग्राम बीज को कतारों में 6 इंच और पौधों में एक इंच की दूरी पर आधी इंच से गहरा न लगाऐं। बुवाई पर 10 टन कम्पोस्ट, आधा बोरा यूरिया और 2.7 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट डालें।

9. कपास : दीमक से बचाव के लिए करें बीजों का उपचार

गेहूं के खेत खाली होते ही कपास की तैयारी प्रारंभ कर कर सकते हैं। कपास की किस्मों में ए ए एच 1, एच डी 107, एच 777, एच एस 45, एच एस 6 हरियाणा में तथा संकर एल एम एच 144, एफ 1861, एफ 1378 एफ 846, एल एच 1776, देशी एल डी 694 व 327 पंजाब में लगा सकते है। 

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बीज मात्रा (रोएं रहित) संकर किस्में 1.7 कि.ग्रा. तथा देशी किस्में 3 से 7 कि.ग्रा. को 7 ग्राम ऐमीसान, 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन, 1 ग्राम सक्सीनिक तेजाब को 10 लीटर पानी के घोल में 2 घंटे रखें। 

उसके बाद दीमक से संरक्षण के लिए 10 मि.ली. पानी में 10 मि.ली. क्लोरीपाईरीफास मिलाकर बीज पर छिडक दें तथा 30-40 मिनट छाया में सुखाकर बीज दें। यदि इलाके में जड़ गलन की दिक्कत है, तो उसके बाद में 2 ग्राम वाविस्टीन प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से सूखा बीज उपचार भी कर लें। 

कपास को खाद - बीज ड्रिल या प्लांटर की मदद से 2 फुट कतारों में व 1 फुट पौधों में दूरी रखकर 2 इंच तक गहरा बोएं।

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली फसलें और कृषि कार्यों की जानकारी

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली फसलें और कृषि कार्यों की जानकारी

अप्रैल के महीने तक तकरीबन समस्त रबी फसलें कट जाती हैं। किसान भी अपनी फसलों का प्रबंधन करके मंडी पहुंचाने लगते हैं। अब जायद सीजन की फसलों की बुवाई की जानी हैं। 

ये फसलें फायदे के साथ-साथ मृदा की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ा देती हैं। अप्रैल माह में उगाई जाने वाली ये फसलें आपको अच्छा खासा मुनाफा प्रदान कर सकती हैं। किसानों को कम समयांतराल में ही मिलेगी बंपर उपज।

रबी फसलों की कटाई और खरीफ सीजन से पूर्व कुछ ही माह बीच में खाली बच जाते हैं, जिसको जायद सीजन भी कहा जाता है। इस दौरान विभिन्न दलहनी और तिलहनी फसलें बोई जाती हैं, जो धान मक्का की खेती से पहले ही पककर तैयार हो जाती हैं। 

जायद सीजन में विशेष सब्जी फसलों की भी बुवाई की जाती हैं। इसके अतिरिक्त बहुत सारे लोग मृदा की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए जायद सीजन में ढेंचा, लोबिया और मूंग की खेती भी करते हैं। इससे मृदा में नाइट्रोजन का स्तर काफी बढ़ जाता है।

खेत की तैयारी

रबी फसलों की कटाई के बाद सर्व प्रथम खेत में गहरी जुताई लगाएं और खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें। जायद सीजन की फसलों की बुवाई करने से पहले मृदा की अवश्य जांच करवा लें। 

इससे सही मात्रा में खाद-उर्वरक का इस्तेमाल करने की राहत मिल जाएगी और अनावश्यक खर्चों से राहत मिलेगी। हर फसल सीजन के पश्चात मृदा की जांच करवाने से इसकी कमियों का भी जाँच पहचान हो जाती है, जिन्हें वक्त रहते ठीक किया जा सकता है।

साठी मक्का और बेबी कॉर्न के लिए उपयुक्त समय

यह समय साठी मक्का और बेबी कॉर्न की खेती के लिए अनुकूल है। दोनों ही फसलें 60 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। फिर कटाई के पश्चात सहजता से धान की बिजाई का काम भी किया जा सकता है।

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इन दिनों बेबी कॉर्न भी काफी चलन में है। ये मक्का कच्चा ही बिक जाता है। होटलों में बेबी कॉर्न की सलाद, सब्जी, अचार, पकौड़े व सूप आदि काफी प्रसिद्ध हैं।

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली सब्जी की फसलें

अप्रैल माह में किसान सब्जी फसलों की खेती भी कर सकते हैं। यह समय तोरई, बैंगन, लौकी, भिंडी और करेला की खेती के लिए बेहद अनुकूल है। 

मौसम की मार से जायद सीजन की फसलों को सुरक्षित रखने के लिए किसान पॉलीहाउस, ग्रीन हाउस अथवा लो टनल की व्यवस्था कर लें। इन संरक्षित ढांचों की स्थापना के लिए राज्य सरकारें किसान भाइयों को अनुदान भी मुहैया करवाती हैं।

दलहन में कौन-सी फसल के लिए सही समय और सलाह

अप्रैल का महीना उड़द की खेती के लिए बेहद अनुकूल माना जाता है। हालांकि, जलभराव वाले क्षेत्रों में इसकी बुवाई करने से बचना चाहिए। उड़द की खेती के लिए प्रति एकड़ 6-8 किलो बीजदर का उपयोग करें। इसकी खेत में बुवाई से पहले-पहले बीज को थीरम या ट्राइकोडर्मा से उपचारित अवश्य कर लें।

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किसान भाई दलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अरहर की फसल ले सकते हैं। किसान उचित जल निकासी वाली मृदा में कतारों में अरहर की बुवाई करते हैं। ये फसल 60 से 90 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। आप चाहें तो अरहर की लघु समयावधि वाली किस्मों की बुवाई भी कर सकते हैं।

सोयाबीन की फसल के लिए सही समय

सोयाबीन की फसल घरेलू उपयोग में आने वाली एक मुख्य फसल है। अप्रैल माह में बोई गई सोयाबीन की फसल में बीमारियां लगने की संभावना काफी कम रहती है। ये फसल वातावरण में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करती है। 

पानी रुकने वाले क्षेत्रों में सोयाबीन की बुवाई करने से बचना चाहिए। किसान भाइयों को शानदार और बेहतरीन उपज पाने के लिए बुवाई से पहले खेत की 3 गहरी जुताईयां करने की सलाह दी जाती है।

गेंहू कटते ही करदें मूंगफली की बुवाई

अप्रैल के आखिरी सप्ताह तक मतलब कि गेहूं की कटाई के शीघ्रोपरान्त मूंगफली की फसल की बुवाई की जा सकती है। ये फसल अगस्त-सितंबर तक पककर तैयार हो जाएगी। 

परंतु, जलनिकासी वाले क्षेत्रों में ही मूंगफली की बुवाई करनी चाहिए। दरअसल, शानदार उत्पादन के लिए हल्की दोमट मिट्टी में बीजोपचार के पश्चात ही मूंगफली के दानों की बिजाई करें।

किसान ढेंचा की खेती भी कर सकते है

खरीफ सीजन की धान-मक्का की बिजाई से पूर्व किसान भाई ढेंचा यानी हरी खाद की फसल ले सकते हैं। इससे खाद-उर्वरकों पर खर्च होने वाली धनराशि सुगमता से बच जाएगी। 

ढेंचा की फसल 45 दिन के अंतर्गत लगभग 5 से 6 सिंचाईयों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद धान की खेती करने पर उत्पादन की क्वालिटी और उपज शानदार मिलती है।