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बांस

इस तकनीकी से खेती करने वाले किसानों को हरियाणा सरकार देगी 90% सब्सिडी

इस तकनीकी से खेती करने वाले किसानों को हरियाणा सरकार देगी 90% सब्सिडी

बांस और जालियों के सहारे सब्जियां उगाने वाले किसानों को होगा फायदा

चंडीगढ़। हरियाणा राज्य सरकार ने बांस और जालियों के सहारे सब्जियां उगाने वाले किसानों के लिए बड़ी राहत देने का एलान किया है। बांस और जालियों के सहारे सब्जियों की खेती करने पर राज्य सरकार 90% सब्सिडी देगी। इस नई तकनीकी का इस्तेमाल करने पर सरकार ने किसानों को आर्थिक अनुदान देने का ऑफर दिया है। सब्जियों की खेती में बॉस और स्टैकिंग विधि का इस्तेमाल करने पर सब्सिडी का लाभ दिया जाएगा। इस विधि से किसानों की खेती में लागत कम होगी, और सरकार से अनुदान मिलने के बाद मुनाफा भी काफी अच्छा रहेगा।

क्या है यह नई तकनीकी ''स्टैकिंग''

- इस तकनीकी को छोटे खेतों में प्रयोग किया जाता है। जिनमें सब्जियां उगाई जाती हैं। या विधि में बांस या लोहे के डंडे, रस्सी या तार के सहारे बाड़ बनाई जाती है। शुरुआत में सब्जियों की अच्छी बढ़वार के लिए बेल और लताओं के बांस, रस्सी अथवा तार के जाल का सहारा दिया जाता है। कुछ दिन बाद सब्जियों की बेल व लताएं खुद ही इनसे लिपट जाती हैं। इस तकनीकी में सब्जियां जमीन को नहीं छू पातीं। कीट-रोगों से सुरक्षित रहने के साथ-साथ सब्जियों में जलन-सड़न नहीं होती है।

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कैसे और किन किसानों को मिलेगी सब्सिडी?

- हरियाणा राज्य सरकार ने किसानों को स्टैकिंग तकनीकी से सब्जियों उगाने वाले किसानों को 50% से 90% तक सब्सिडी देने की बात कही है। इस योजना में एक किसान के पास 2.5 एकड़ भूमि होनी चाहिए। और वह किसान स्टैकिंग तकनीकी से खेती करे। तब सब्सिडी का लाभ मिलेगा।

स्टैकिंग तकनीकी पर कितना होगा खर्च?

- एक एकड़ खेत में लोहे की स्टैकिंग लगाने में करीब 1 लाख 40 हजार रुपए की लागत आती है। इसमें सरकार द्वारा 75 हजार से लेकर 1 लाख 25 हजार तक सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान है।

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कैसे व कहां करें आवेदन?

- सबसे पहले किसानों को अपनी जमीन का पंजीकरण 'मेरी फसल मेरा ब्यौरा' पोर्टल पर करवाना होगा। बांस स्टैकिंग व लोहे की स्टैकिंग पर सब्सिडी योजना का लाभ लेने के लिये हरियाणा कृषि विभाग के बागवानी पोर्टल http://hortharyanaschemes.in/ पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। किसान चाहें तो अपने जिले के कृषि और बागवानी कार्यालय में जाकर अधिक जानकारी ले सकते हैं।

इन दस्तावेजों की होगी जरूरत:

- हरियाणा के किसानों को स्टैकिंग विधि पर सब्सिडी लेने के लिए आवदेन फार्म के साथ इन दस्तावेजों की जरूरत होगी। 1- निवास प्रमाण पत्र 2- आधार कार्ड 3- जमीन के कागजात 4- बैंक खाते की पासबुक 5- दो पासपोर्ट साइज फोटो 6- किसान का मोबाइल नम्बर नोट: यह सूचना सिर्फ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है। merikheti.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले सही जांच कर लें। ------ लोकेन्द्र नरवार
बांस की खेती लगे एक बार : मुनाफा कमायें बारम्बार

बांस की खेती लगे एक बार : मुनाफा कमायें बारम्बार

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बांस (बाँस, Baans, Bamboo) की खेती बड़े पैमाने पर की जाने लगी है. यह एक ऐसी खेती है, जिसे एक बार लगाने के बाद किसान सालों साल लाभ कमा सकते हैं. किसानों की आय को बढ़ाने के लिए सरकार ने भी बांस की खेती (Bans ki kheti) को प्रोत्साहित करने की कई योजनाएं बनाई है. भारत सरकार ने देश में बांस की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए २००६ में राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) शुरू किया था.

मेड़ पर बांस के पौधे लगाएं

किसान के पास खेती के लिए जगह की कमी हो तब भी बांस लगा सकते हैं. उन्हें मुख्य फसल के मेड़ पर भी लगाया जा सकता है. खेत के किनारे किनारे बांस का फसल लगाने से कई लाभ भी है. एक तो इससे मुख्य फसल को कोई नुकसान नहीं होता, वहीं खेत की आवारा पशुओं से सुरक्षा भी होती है. इसके साथ ही किसानों को अधिक मुनाफा भी प्राप्त होता है.

बांस की उपयोगिता

बांस की लकड़ियों के प्रोडक्ट बनाने वाले समूह और कंपनियां, बांस खरीदने के लिए किसानों को अच्छी खासी रकम देती है, क्यूंकि बांस की उपयोगिता कई क्षेत्रों में है. बांस से बल्ली, टोकरी, चटाई, फर्नीचर, खिलौना और सजावट के सामान तैयार किए जाते हैं. कागज बनाने में भी बड़ी मात्रा में बांस का उपयोग होता है. सहफसली तकनीक (Multiple cropping) से भी बांस की खेती कर सकते हैं. बाँस के पौधे बहुत तेजी से बढ़ते हैं, ३ से ४ साल के अंदर बांस पूरी तरह तैयार हो जाता है. तैयार बांस की कटाई कर इसे बाजार में बेचा जा सकता है. यहां बता दें कि सहफसली खेती के लिए बांस सबसे उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि बांस के हर पौधों के बीच जगह होती है. इन पेड़ों के बीच में अदरक, हल्दी, अलसी, लहसुन जैसे फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है.


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बांस की खेती किसानों को दे अच्छा मुनाफा

बांस को पंक्तियों में दूरी के अनुपात अनुसार, प्रति एकड़ बांस के १५० से २५० पौधे लगाए जा सकते हैं. चूँकि बाँस के पौधे तेजी से बढ़ते हैं, यहां तक की बाँस की कुछ प्रजातियाँ तो दिन में ३ फ़ीट से भी अधिक बढ़ती हैं, ३-४ साल बाद बांस की कटाई करने पर चार लाख तक का मुनाफा आसानी से कमाया जा सकता है. बाँस का पेड़ आमतौर पर ७-१० साल तक और कुछ प्रजातियां १५ साल तक जिंदा रहती हैं. चूँकि, कटाई के बाद भी बांस के जड़ फैलाव से नयी परोह उत्पन्न हो जाती है, वह भी बिना किसी रोपण के, तो ऐसे में एक बार बांस की फसल लगाकर किसान सालों साल तक इससे अच्छी कमाई कर सकते हैं.

बांस की खेती के लिए सरकारी अनुदान और सहायता

राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) के तहत अगर बांस की खेती (bans ki kheti) में ज्यादा खर्चा हो रहा है, तो केंद्र और राज्य सरकार किसानों को आर्थिक राहत प्रदान करेंगी। बांस की खेती के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि की बात करें तो इसमें ५० प्रतिशत खर्च किसानों द्वारा और ५० प्रतिशत लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी।

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बांस की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें किसानों के लिए बांस की खेती मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। लेकिन बांस की खेती में धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि बांस की खेती रबी, खरीफ या जायद सीजन की खेती नहीं होती। इसको फलने-फूलने के लिए लगभग ३-४ साल का समय लग जाता है। हालांकि पहली फसल के कटते ही किसान को अच्छी आमदनी मिल जाती हैं। किसान चाहें तो बांस की खेती के साथ कोई दूसरी फसल भी लगा सकते हैं। बांस की खेती के साथ दूसरी फसलों की एकीकृत खेती करने से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहेगी, साथ ही, दूसरी फसलों से किसानों को समय पर अतिरिक्त आय भी मिल जाएगी।

बांस की उन्नत किस्मे

बांस की खेती करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि बांस की उन्नत किस्मों का चुनाव किया जाए. भारत में बांस की कुल 136 किस्में पाई जाती है। जिसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रजातियां बम्बूसा ऑरनदिनेसी, बम्बूसा पॉलीमोरफा, किमोनोबेम्बूसा फलकेटा, डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्स, डेंड्रोकैलेमस हैमिलटन, मेलोकाना बेक्किफेरा, ऑकलेन्ड्रा ट्रावनकोरिका, ऑक्सीटिनेनथेरा एबीसिनिका, फाइलोंस्तेकिस बेम्बूसांइडिस, थाइरसोस्टेकिस ऑलीवेरी आदि है। इनकी खेती भारत के अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, जम्मू कश्मीर, अंडमान निकोबार द्वीप समूह आदि राज्यों में की जा रही है।  

जानिये खेत में कैसे और कहां लगाएं बांस ताकि हो भरपूर कमाई

जानिये खेत में कैसे और कहां लगाएं बांस ताकि हो भरपूर कमाई

अधरों से मधुर धुन छेड़ने (बांसुरी), पहनने, बैठने से लेकर जीवन की अंतिम यात्रा तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले साधारण से बांस को उगाकर किसान मित्र तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं। हम बात कर रहे हैं बैंबू कल्टीवेशन (Bamboo Cultivation), यानी बांस की पैदावार की। जी हां, वही बांस जो मकान को आधार देने, सीढ़ी, टोकरी, चटाई, हैट, फर्नीचर, खिलौने बनाने से लेकर मृत्युशय्या तक के सफर में भारत में खास महत्व रखता है। लिखा-पढ़ी के लिए जरूरी कागज बनाने में भी बांस की उपयोगिता कमतर नहीं है। ऐसे में बांस से उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के बीच बांस की खासी डिमांड है, जो किसान को बांस के बदले अच्छी-खासी कीमत भी देती हैं। बैंबू फार्मिंग टिप्स (Bamboo Farming Tips) की अगर बात करें, तो आपको जानकर अचरज होगा कि बांस के पेड़ 40 साल तक आय का जरिया प्रदान करते हैं। ऐसे में भारत के ग्रामीण अंचल में बांस की पैदावार विशाल पैमाने पर की जाती है।

एक बार लगाओ खुद जान जाओ -

बांस की फार्मिंग (Bamboo Farming) किसान के लिए एक ऐसा विकल्प है जिसमें एक बार की लागत पर किसान 30 से 40 सालों तक तगड़ी कमाई कर सकते हैं। जीवन-मरण के साथ ही शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में अनिवार्य, बांस को लगाकर किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं। भारत की सरकार भी बांस लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करती है। किसानों की आय बढ़ाने प्रोत्साहन के तहत भारत सरकार ने देश में बांस की खेती (Bamboo Farming) के लिए साल 2006-2007 में  राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) शुरू किया है। इस मिशन के अंतर्गत बैंबू फार्मिंग (Bamboo Farming) हेतु आर्थिक सहायता का प्रावधान किया गया है।

कहां लगाएं बांस :

ऐसे किसान जिनके खेत में जगह कम है, तो वे किसान मित्र खेत की मेढ़ पर बांस के पौधे लगा सकते हैं। खेत की मेढ़ पर बांस लगाने से न केवल अन्य फसलों की सुरक्षा होती है, बल्कि भूमि का क्षरण भी रुकता है। आवारा पशुओं से भी फसल की सुरक्षा संभव है। साथ ही मुनाफा भी तय है।

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बांस की उपयोगिता

आपने बांस से बने मकान, सीढ़ी, टोकरी, चटाई, फर्नीचर, खिलौनों के साथ ही साज-सज्जा की तमाम चीजें देखी होंगी। पेपर इंडस्ट्री में भी बांस (Bamboo) की अच्छी खासी मांग है। पेपर बनाने वाली कंपनियां और लकड़ी बेचने वाले टाल वाले व्यापारी, किसानों को बांस के बदले तगड़ी कीमत अदा करने तैयार रहते हैं।

कैसे लगाएं बांस ?

मुख्य तौर पर बांस को बीज के जरिये उगाया जा सकता है। कटिंग या राइज़ोम (प्रकंद)(Rhizome) तकनीक भी इसकी पैदावार के लिए अपनाई जाती है। बांस के पौधे आम तौर पर तीन से चार साल के ही भीतर पूरी तरह से परिपक़्व हो जाते हैं। जिसके बाद इसे बेचकर किसान मित्र अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। सहफसली खेती तकनीक में उपयोगी - सहकर्मी तकनीक से खेती करने में बांस की फसल (Bamboo Farming) सर्वाधिक उपयुक्त है। बांस की कतारों के मध्य अदरक, हल्दी, अलसी और लहसुन जैसी अल्प एवं मध्य कालीन फसलों को उगाकर भी अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है।

30 से 40 लाख की आय

एक अनुमान के मुताबिक, सामान्य स्थितियों में किसान एक एकड़ जमीन पर बांस के डेढ़ सौै से ढ़ाई सौै पौधे लगा सकता है। तीन से चार साल में परिपक़्व होने वाले बांसों से किसान आराम से 40 लाख तक की आमदनी कर सकते हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को जीवंत रखने में सक्षम बांस लगभग 40 सालों तक स्वयं को कायम रख सकता है। ऐसे में किसान बांसों की व्यवस्थित कटिंग के जरिये लगभग 40 सालों तक आवश्यक कमाई कर सकते हैं।
देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए

देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए

नई दिल्ली। - लोकेन्द्र नरवार देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी तमाम योजनाएं संचालित हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाली कैबिनेट में देश के किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किसानों व कृषि के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाई गईं हैं। इन योजनाओं के जरिए फसल उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ किसानों को आर्थिक मदद प्रदान की जा रही है। इसके अलावा देश के किसानों को अपना फसल उत्पादन बेचने के लिए एक अच्छा बाजार प्रदान किया जा रहा है। किसानों के लिए चलाई जा रहीं तमाम कल्याणकारी योजनाओं में समय के साथ कई सुधार भी किए जाते हैं। जिनका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को ही फायदा मिलता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर - ICAR) द्वारा ''आजादी के अमृत महोत्सव'' पर एक पुस्तक का विमोचन किया है। इस पुस्तक में देश के 75000 सफल किसानों की सफलता की कहानियों को संकलित किया गया है, जिनकी आमदनी दोगुनी से अधिक हुई है।


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आइए जानते हैं किसानों के लिए संचालित हैं कौन-कौन सी योजनाएं....

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना ( PM-Kisan Samman Nidhi ) - इस योजना के अंतर्गत किसानों के खाते में सरकार द्वारा रुपए भेजे जाते हैं। ◆ ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई योजना - इस योजना के माध्यम से किसान पानी का बेहतर उपयोग करते हैं। इसमें 'प्रति बूंद अधिक फसल' की पहल से किसानों की लागत कम और उत्पादन ज्यादा की संभावना रहती है। ◆ परम्परागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana (PKVY)) - इस योजना के जरिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाता है। ◆ प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना (पीएम-केएमवाई) - इस योजना में किसानों को वृद्धा पेंशन प्रदान करने का प्रावधन है। ◆ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana - PMFBY) - इस योजना के अंतर्गत किसानों की फसल का बीमा होता है। ◆ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) - इसके अंतर्गत किसानों को सभी रबी की फसलों व सभी खरीफ की फसलों पर सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मूल्य प्रदान किया जाता है। ◆ मृदा स्वास्थ्य कार्ड- (Soil Health Card Scheme) इसके अंतर्गत उर्वरकों का उपयोग को युक्तिसंगत बनाया जाता है। ◆ कृषि वानिकी - 'हर मोड़ पर पेड़' की पहल द्वारा किसानों की अतिरिक्त आय होती है। ◆ राष्ट्रीय बांस मिशन - इसमें गैर-वन सरकारी के साथ-साथ निजी भूमि पर बांस रोपण को बढ़ावा देने, मूल्य संवर्धन, उत्पाद विकास और बाजारों पर जोर देने के लिए काम होता है। ◆ प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण - इस नई नीति के तहत किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कराने का प्रावधान है। ◆ एकीकृत बागवानी विकास मिशन - जैसे मधुमक्खी पालन के तहत परागण के माध्यम से फसलों की उत्पादकता बढ़ाने और आमदनी के अतिरिक्त स्त्रोत के रूप में शहद उत्पादन में वृद्धि होती है। ◆ किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) - इसके अंतर्गत कृषि फसलों के साथ-साथ डेयरी और मत्स्य पालन के लिए किसानों को उत्पादन ऋण मुहैया कराया जाता है। ◆ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana (PMKSY))- इसके तहत फसल की सिंचाई होती है। ◆ ई-एनएएम पहल- यह पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म के लिए होती है। ◆ पर्याप्त संस्थागत कृषि ऋण - इसमें प्रवाह सुनिश्चित करना और ब्याज सबवेंशन का लाभ मिलता है। ◆ कृषि अवसंरचना कोष- इसमें एक लाख करोड़ रुपए के आकार के साथ बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है। ◆ किसानों के हित में 10 हजार एफपीओ का गठन किया गया है। ◆ डिजिटल प्रौद्योगिकी - कृषि मूल्य श्रंखला के सभी चरणों में डिजिटल प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग पर जरूर ध्यान देना चाहिए  
महंगी तार फैंसिंग नहीं, कम लागत पर जानवर से ऐसे बचाएं फसल, कमाई करें डबल

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नीलगाय, हिरन फटकेंगे नहीं पास फसल सुरक्षा के साथ सेफ एक्स्ट्रा इनकम जानिए मॉडर्न बिजूका संग कई फलदार तरीके

चीज अगर कीमती हो तो फिर उसकी सुरक्षा भी सर्वोपरि है। जीवन की सभी सुख सुविधाओं के उद्भव केंद्रबिंदु अनाज, फल, फसल जैसे बेशकीमती प्राकृतिक उपहार की रक्षा, उससे भी ज्यादा अहम होनी चाहिए। 

भारत में खेती किसानी की रक्षा के मामले में स्थिति जरा उलट है। देश मे खेतों की नीलगाय, हिरन, जंगली शूकर, आवारा मवेशियों से सुरक्षा के लिए इन दिनों कंटीले तारों की फेंसिंग का चलन देखा जा रहा है। 

यह तरीका बाप-दादाओं के जमाने से चली आ रही खेत की सुरक्षा युक्ति के मुकाबले जरा महंगा है। तार की बाउंड्री के अलावा और किस तरह फसल की जानवरों से रक्षा की जा सकती है, 

किस तरीके की सुरक्षा के क्या अल्प एवं दीर्घ कालिक लाभ हैं, कंटीले तार की फेंसिंग के क्या लाभ, हानि खतरे हैं, जानिये मेरीखेती के साथ।

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तार फेंसिंग लाभ, हानि, खतरे

शुरुआत करते हैं खेत के चारों ओर कटीले तारों को लगाने के मौजूदा प्रचलित तरीके से। इस तरीके से खेत की सुरक्षा में तारों की फेंसिंग के लिए सीमेंट के पिलर आदि से लेकर तारों की क्वालिटी के आधार पर सुरक्षा की लागत तय होती है। पिलर के लिए गड्ढे खोदने पर भी मजदूरी आदि पर व्यय करना पड़ता है।

तार चोरी का खतरा

तार फेंसिंग की एक टेंशन ये भी है कि, इस तरह की खेत की सुरक्षा में महंगी क्वालिटी के तारों के चोरी होने का डर रहता है। भारत में खेत से तारों के चोरी होने के कई मामले आए दिन प्रकाश में आते रहते हैं। 

कटीले तारों के मौसमी प्रभाव से खराब होने का भी खतरा रहता है। कटीले तारों से खेतों की सुरक्षा कई बार किसानों के लिए फायदे के बजाए नुकसान का सौदा साबित हुई है। 

नीलगाय जैसे बलशाली एवं कुलाचें मारने में माहिर हिरणों के झुंड के सामने, तार फेंसिंग भी फेल हो जाती है। बलशाली नीलगाय के झुंड जहां तार फेंसिंग को धराशाई कर फसल चौपट कर देते हैं, 

वहीं हिरन झुंड छलांग मार खेत की फसल चट कर खेत से पलक झपकते ओझल हो जाते हैं। तार की फेंसिंग में फंसने या फिर इसमें चूकवश प्रवाहित करंट की चपेट में आने से जन एवं पशुधन की हानि के कारण मामले थाना, कोर्ट, कचहरी से लेकर जेल की सैर तक जाते देखे गए हैं।

प्राकृतिक विकल्प श्रेष्ठ विचार

हालांकि प्राकृतिक तरीका एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है, लेकिन इसमें नुकसान के बजाए फायदे ही फायदे हैं। इस तरीके से खेत की बाड़, बागड़ या फेंसिंग के लिए तार जैसे कृत्रिम विकल्पों के बजाए प्रकृति प्रदत्त पौधों आधारित विकल्पों से खेत और फसल की सुरक्षा का प्रबंध किया जाता है। 

कुछ पेड़, पौधे हैं जिन्हें खेत की सीमा पर लगाकर अतिरिक्त कृषि आमदनी से भरपूर बाड़ सुरक्षा तैयार की जा सकती है। इसमें किसी एक पेड़, पौधे, वृक्ष या फिर इनके मिश्रित प्रयोग से वर्ष भर के लिए मिश्रित कृषि जनित आय का भी कुशल प्रबंध किया जा सकता है। 

तो शुरुआत करते हैं बिसरा दिए गए उन ठेठ देसी तरीकों से, जिनमें आधुनिक तकनीक का तड़का लगाकर और भी ज्यादा श्रेष्ठ नतीजे हासिल किए जा सकते हैं।

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मॉडर्न बिजूका (Scarecrow)

घर की छत पर बुरी नजर से बचाने टंगी काली मटकी या लटके पुराने जूते की ही तरह खेती किसानी की सुरक्षा का पीढ़ी दर पीढ़ी आजमाया जाने वाला खास टोटका है, बिजूका। 

भारत का शायद ही ऐसा कोई खेत हो जहां बिजूका के हिस्से जमीन न छोड़ी जाती हो। मवेशी से फसल सुरक्षा के लिए इस युक्ति में खेत के चारों ओर सुरक्षा दायरा बनाने के बजाए महज बांस और मिट्टी की मटकी और पुराने कपड़ों से इंसान की मौजूदगी के लिए बिजूका जैसे भ्रम का ताना-बाना बुना जाता है। 

ऐसी प्रयोगजनित मान्यता है कि हवा में बिजूका की मटकी अपने आप हिलती-डुलती है और कपड़े लहराते हैं, तो जानवरों को खेत में इंसान के होने का आभास होता है और वे दूसरे खेत की राह पकड़ लेते हैं। 

घासपूस और कपड़ों का बनाया गया पुतला जिसे बिजूका कहा जाता है, दिन रात बगैर थके, मुस्कुराते हुए किसान के गाढ़े पसीेने की कमाई की रक्षा में रत रहता है। 

हालांकि बिजूका को अब तकनीक की सुलभता के कारण आधुनिक स्वरूप भी दिया जा सकता है। अब बिजूका को बाजार में सस्ती कीमत पर मिलने वाले एफएम या मैमोरी की सहायता से चलने वाले लाउड स्पीकर के जरिए मॉडर्न बनाया जा सकता है। 

लाउड स्पीकर के जरिए ऐसे जानवरों की रिकॉर्डेड आवाज जिनसे फसल को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर डरते हैं, पैदा कर भ्रम में इंसान की मौजूदगी का और गहरा एवं असरकारक प्रभाव निर्मित किया जा सकता है। 

आप भी आजमा के देखिये। बस इसके लिए आपको जानवरों की डरावनी आवाज वाली ऑडियो लाइब्रेरी का जुगाड़ करना होगा।

नीलगाय समस्या का हर्बल इलाज

प्रकृति प्रदत्त संसाधनों से, बगैर कृत्रिम रासायनिक पदार्थों की मदद लिए प्राकृतिक तरीके से तैयार हर्बल घोल नीलगाय को भगाने का कारगर उपाय बताया जाता है। 

कृषि वैज्ञानिकों ने खेत से नीलगायों के झुंड को दूर रखने घरेलू और परंपरागत हर्बल नुस्ख़ों पर प्रकाश डाला है। काफी कम लागत में तैयार हर्बल घोल खेत में उपलब्ध संसाधनों से ही अल्प समय में रेडी हो जाता है। 

गोमूत्र, मट्ठा और लालमिर्च के अलावा नीलगाय के मल, गधे की लीद इत्यादि के मिश्रण से तैयार हर्बल घोल की गंध से नीलगाय और दूसरे जानवर दूर रहते हैं। 

इस हर्बल घोल का खेत की परिधि के आसपास छिड़काव करने से जानवरों से खेत की सुरक्षा संभव है। इस तरीके से कम से कम 20 दिन तक खेत की नीलगायों के झुंड से सुरक्षा होने के अपने-अपने दावे हैं। 

रामदाने की खुशबू से भी नीलगाय दूर रहती है। कृषि विज्ञान केंंद्र या कृषि समस्या समाधान संबंधी कॉल सेंटर से भी हर्बल घोल बनाने की विधि के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है। 

खेत की मेढ़ के किनारे या आसपास करौंदा, जेट्रोफा, तुलसी, खस आदि लगाकर भी नीलगाय से फसल सुरक्षा की जा सकती है।

बांस का जंजाल

बांस के पौधे, खेत की मेढ़ किनारे नियोजित तरीके से कतार में रोपकर, खेत की जानवरों से सुरक्षा का अच्छा खाका तैयार किया जा सकता है। 

किसी भी तरह की मिट्टी पर विकसित होने मेें सक्षम बांस, हर हाल में भविष्य के लिए मुनाफे भरा निर्णय है। बांस के पौधे सामान्यतः तीन से चार साल में परिपक़्व हो जाते हैं। इससे किसान मित्र कृषि आय का अतिरिक्त जरिया भुना सकते हैं।

खेत की मेढ़ पर बैंबू कल्टीवेशन (Bamboo Cultivation), यानी बांस की पैदावार कर किसान को 40 सालों तक कमाई सुनिश्चित है। 

किसानों की आय में वृद्धि करने भारत सरकार ने बांस की खेती के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) की शुरुआत की है। 

इसमें किसानों के लिए आर्थिक सहायता का प्रावधान किया गया है। बांस के फायदों और सुनिश्चित लाभ के बारे में विस्तार से जानने के लिए शीर्षक को क्लिक करें: जानिये खेत में कैसे और कहां लगाएं बांस ताकि हो भरपूर कमाई

बेर से फेंसिंग

हरी, पीली, लाल, नारंगी, रंग-बिरंगी, खट्टी-मीठी बेर के पौधों को खेत की सीमा पर चारों ओर नियोजित कतार में लगाकर खेत की प्राकृतिक रूप से सुरक्षा की जा सकती है। 

आम तौर पर जंगली समझा जाने वाला यह फलदार पौधा, ज्यादा देखभाल के अभाव में भी अपना विस्तार करने में सक्षम है। बारिश में यह खास तौर पर तेजी से बढ़ता है। 

नर्सरी में तैयार उच्च किस्म के बेर के पौधे कम समय में कृषि आय प्रदान करने में सक्षम होते हैं। नर्सरी में तैयार पौधों पर अपने आप पनपने वाले पेड़ों की तुलना में अधिक मात्रा में बेर के फलों की पैदावार होती है। 

इनके कंटीले तनों के कारण खेत की भरपूर सुरक्षा होती है, क्योंकि जानवरों को इसमें प्रवेश करने में दिक्कत होती है। मार्च अप्रेल में कच्चे फल बेचकर किसान जहां मौसमी कमाई कर सकता है, वहीं सूखे बेर के लिए चूरन, बोरकुट, गटागट जैसे उत्पादों के लिए निर्माताओं के बीच तगड़ी डिमांड रहती है।

करौंदा के पेड़

करौंदा भी बेर की ही तरह कंटीले पौधों की एक फलदार प्रजाति है। मौसमी फल का यह पौधा भी कृ़षि आय में वृद्धि के साथ ही खेत की सुरक्षा में कारगर प्रबंध हो सकता है। 

खेत की मेढ़ के पास नियोजित तरीके से करौंदा की बागड़ से जहां खेत की सुरक्षा हो सकती है, वहीं मौसम में फल से एक्स्ट्रा फार्म इनकम भी सुनिश्चित हो जाती है। 

कांटा युक्त करौंदा का पौधा, झाडिय़ों के स्वरूप में अपना विस्तार करता है। गर्म जलवायु तथा सूखा माहौल सहने में सक्षम करौंदा विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहता है। 

खास तौर पर किसी भी तरह की मिट्टी में करौंदा ग्रोथ करने लगता है। विदेशी प्रजातियों की बात करें तो लागत और संसाधन की उपलब्धता के आधार पर जैपनीज़ होली, जहरीली बेल के अलावा गैर जहरीली इंगलिश आइवी बेल, अमेरिकन होली, फर्न्स, क्‍लीमेंटिस, सीडर्स ट्री लगाकर भी खेत की सुरक्षा का प्रबंध किया जा सकता है। 

हालांकि इन पौधों से अतिरिक्त कमाई के अवसर कम हैं, लेकिन पर्यावरण सुरक्षा की सौ फीसदी गारंटी जरूर है।

हरा सोना उगाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार दे रही है 50% सब्सिडी

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आजकल बांस का इस्तेमाल फर्नीचर, चटाइयां, टोकरियां, बर्तन, सजावटी सामान, जाल, मकान और खिलौने जैसे तमाम प्रोडक्ट बनाने में किया जा रहा है। बांस एक कमर्शियल क्रॉप है और इसे प्लास्टिक की जगह आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। यही कारण है कि इसे इको फ्रैंडली माना गया है। भारत के साथ-साथ बाकी देशों में भी बांस से बने हुए प्रोडक्ट की बहुत ज्यादा मांग बढ़ रही है। इसी डिमांड को देखते हुए बहुत से राज्यों में बांस आधारित छोटे छोटे और बड़े उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं और सरकार द्वारा बांस की खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। केंद्र सरकार की बात करें तो उनके द्वारा भी नेशनल बैंबू मिशन चलाया गया है। इसी कदम की और एक नई पहल छत्तीसगढ़ सरकार ने भी की है और यह सरकार बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए 50% तक सब्सिडी दे रही है। अगर आप भी छत्तीसगढ़ के किसान हैं तो आप सिर्फ आधे खर्चे में बांस की खेती कर सकते हैं और बाकी आधा खर्चा पूरी तरह से सरकार द्वारा उठाया जाएगा।

बांस की खेती के लिए सब्सिडी

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना चलाई जा रही है, जिसके तहत राज्य में बांस की खेती का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। अगर कोई भी किसान इस स्कीम के तहत आवेदन देता है तो उसे सरकार की तरफ से 50% तक सब्सिडी दी जाएगी। शर्त यह है, कि आपको टिशू कल्चर से बांस की खेती करनी होगी, जिसमें उद्यानिकी, वन विभाग और कृषि विभाग मिलकर किसानों की मदद करेंगे। टिशू कल्चर से बांस की खेती करने वाले किसानों को इस योजना के तहत पैसा तीन किस्तों में दिया जाएगा। पहले साल में पहली किस्त 11,500 रुपये की, दूसरे साल में 7,000 रुपये और तीसरे साल में भी 7,000 रुपये का अनुदान दिया जाता है। इस तरह एक एकड़ खेती की इकाई लागत पर 50 प्रतिशत सब्सिडी की दर से अनुमानित 25,500 रुपये का अनुदान किसानों को मिल जाता है। किसान चाहें तो मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना का लाभ लेकर अधिकतम 5 एकड़ जमीन पर बांस की खेती कर सकते हैं।

फसल के लिए पौधा खरीदने और बेचने का क्या है प्रबंध?

बांस की फसल को लेकर किसान ज्यादा जागरुक नहीं है। यह नकदी फसल है, जिसमें खर्चा ज्यादा आता है और आपको मुनाफा लंबे समय बाद मिलना शुरू होता है। यही कारण है, कि बहुत से किसान इस फसल का उत्पादन करने से कतराते हैं। साथ ही, किसानों को यह जानकारी भी नहीं होती है कि आप अच्छी किस्म का बांस का पौधा कहां से खरीद सकते हैं। एक बार आप की उपज तैयार होने पर किस बाजार में जाकर आप उसको कहाँ बेच सकते हैं।
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अगर आपके मन में भी इन्हीं सभी समस्याओं को लेकर चिंता है। तो आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना के तहत किसानों को बांस की खेती के लिए एकदम निशुल्क पौधे उपलब्ध करवाए जाएंगे। जिसकी रोपाई, सिंचाई और फेंसिंग अपने खर्च पर करनी होगी। बांस की रोपाई के 3 साल बाद अनुदान की राशि जीवित पौधों के हिसाब से कैल्कुलेट करके किसान को दे दी जाएगी। इसके अलावा, खेती से जुड़े बाकी कामों में उद्यानिकी, वन विभाग और कृषि विभाग भी किसानों का सहयोग करेंगे।

कैसे कर सकते हैं आवेदन

छत्तीसगढ़ वन विभाग के ऑफिशल पोर्टल पर जाकर आप इसके लिए आवेदन दे सकते हैं। http://www.cgforest.com/ अगर आप इस खेती के लिए सब्सिडी का लाभ उठाना चाहते हैं। तो वन विभाग के कार्यालय में जाकर आपको एक आवेदन फॉर्म जमा करना होगा। जिसमें आपको अपनी, आधार, कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, बैंक पासबुक की कॉपी, खेत का खसरा-खतौनी, रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर जैसी डिटेल्स देना अनिवार्य है।
बांस की खेती करके कमाएं बम्पर मुनाफा, 40 साल तक मिलती है फसल

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भारत एक ऐसा देश है जहां पर ज्यादातर लोगों की आजीविका कृषि पर निर्भर है। इसलिए देश भर में बड़े स्तर पर खेती की जाती है। ज्यादातर लोग परंपरागत खेती करते हैं, जिससे किसानों को कोई खास लाभ नहीं होता। इसलिए सरकार समय-समय पर किसानों को बागवानी खेती के लिए प्रोत्साहित करती रहती है। ताकि किसानों को इस खेती बाड़ी के काम में पर्याप्त लाभ हो सके। पिछले कुछ सालों से सरकार ने देश के किसानों को बांस की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया है। बांस के गुणों को देखते हुए सरकार ने इसे हरा सोना कहा है। इसकी खेती के लिए कई राज्य सरकारें अपने स्तर पर सब्सिडी प्रदान करती हैं। इसके बावजूद देश में बांस की खेती करने वाले किसानों की तादाद बेहद कम है, जबकि देश के बाजार में इसकी जबरदस्त डिमांड है। बांस का उपयोग कई तरह के कामों में किया जाता है। इसका उपयोग खेती-किसानी और कंस्ट्रक्शन के काम में किया जाता है। इसके अलावा बांस से हैंडीक्राफ्ट के आइटम्स बनाए जाते हैं। भारत के बाजार में बांस से बने हुए खिलौनों, चटाइयां, फर्नीचर, सजावटी सामान, टोकरियां, बरतन और पानी की बोतल की मांग हमेशा रहती है। इसके अलावा परंपरगत घरों को बनाने में भी बांस का उपयोग किया जाता है। इनके अलावा कई प्रकार की चीजों को बनाने में बांस का उपयोग किया जाता है। इस हिसाब से बांस की भारत में जबरदस्त मांग रहती है। जिसकी पूर्ति किसान भाई कर सकते हैं और बांस की खेती से ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं।

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बांस की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसे रेतीली मिट्टी में उगाना संभव नहीं है। यह बेहद कम मेहनत वाली खेती होती है। इसमें किसान भाइयों को खेत तैयार करके अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी होती है। बांस का पौधा लगाने के लिए 2 फीट व्यास का गड्ढा तैयार करना होता है। उस गड्ढे में किसान भाई आसानी से बांस लगा सकते हैं। बांस लगाने के पहले गड्ढे में गोबर की खाद डाल सकते हैं। यह बांस के विकास के लिए सहायक होगी। बांस रोपाई करने के तीन साल बाद तैयार हो जाता है। जिसके बाद बांस की कटाई की जा सकती है। एक हेक्टेयर में बांस के 1500 पौधे तक लगाए जा सकते हैं। बांस एक ऐसी फसल है जिसे एक बार लगाने के बाद अगले 40 साल तक इसकी कटाई की जा सकती है। इस खेती में लागत न के बराबर आती है और मेहनत भी ज्यादा नहीं करनी पड़ती। इसकी खेती ठंडी जलवायु में करना संभव नहीं है। इसके लिए उष्ण जलवायु अच्छी मानी गई है। इसके लिए गर्मी के साथ बरसात ज्यादा लाभकारी होती है। ऐसे वातावरण में बांस तेजी से विकास करता है। इसलिए भारत में बांस की सबसे ज्यादा खेती पूर्वोत्तर राज्यों में की जाती है। किसान भाई एक हेक्टेयर खेत में बांस लगाकर हर साल 3 लाख रुपये तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं। इस हिसाब से किसान भाई कम मेहनत और कम लागत में बांस की खेती से अच्छे खासी कमाई कर सकते हैं।
बांस की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी

बांस की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी

दुनिया में आए दिन कोई न कोई खास दिन मनाया जाता है। ऐसी स्थिति में 18 सितंबर को संपूर्ण विश्व में बांस दिवस मनाया जाएगा। अध्यात्मिक, मांगलिक, साहित्यिक और जिविकोपार्जन के लिए बांस का काफी बड़ा महत्व है। बांस को गरीबों की लकड़ी अथवा गरीबों का हरा सोना भी कहा जाता है। आज पूरे भारत में बांस से निर्मित बस्तुओँ की उपयोगिता व्यापार के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। बांस से संबंधित फायदों एवं इसके प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए संपूर्ण विश्व में 18 सितंबर को वर्ल्ड बैंबू डे अथवा विश्व बांस दिवस मनाया जाता है। बांस केवल जीविकोपार्जन के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावारण के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। यह ग्लोबल वार्मिंग को काफी कम करता है। साथ ही, सूर्य के बढ़ते ताप को कम कर अच्छी बारिश करवाने में भी सहायता करता है। किसानों को यह तो मालूम है, ही कि बांस का इस्तेमाल कागज निर्मित करने में भी किया जाता है।

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बांस के पेड़ का महत्व

बांस का इस्तेमाल तो मध्य प्राषाण काल से ही होता आ रहा है। पतले पत्थरों के औजार में बांस के बेंत का इस्तेमाल होता था। साथ ही, तीर-कमान भी ज्यादातर बांस से ही निर्मित हुआ करते थे। धीरे-धीरे जैसे वक्त बदला बांस की उपयोगिता भी बढ़ती गई। आवश्यकता के अनुसार बांस से निर्मित वस्तुओं की रुपरेखा बदलती गई। संगीत के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र बांस से ही बने। साथ ही साथ बहुत सारे मांगलिक अवसरों पर बांस का इस्तेमाल हजारों वर्ष पूर्व से होता आ रहा है। बहुत सारे तीज-त्योहारों में भी बांस की समाग्रियों का होना बेहद जरूरी है। परंपरा के मुताबिक, बांस की कोपलों से लेकर हरे एवं सूखे बांस की स्वयं की मान्यता है।

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बांस के अंदर विघमान औषधीय गुण

  • बांस की कोपलें पाचन तंत्र को सशक्त बनाने में काफी सहायता करती हैं।
  • बांस की कोपला का नियमित तौर पर सेवन करने से हड्डियां सशक्त होती हैं।
  • बांस का पेड़ पर्यावरण के संरक्षण में जितनी सहायता करता है, उससे बहुत गुना अधिक मनुष्य और अन्य जीवों की बहुत सारी बीमारियों के उपचार में भी सहायता करता है। बांस की टहनियों में अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर एवं विभिन्न मिनरल्स व विटामिन पाए जाते हैं।
  • विटामिन व मिनल्स भरपूर होने की वजह से इसकी पतली टहनियों का नियमित सेवन करने से इम्यून सिस्टम बेहद मजबूत होता है। जो कि विभिन्न प्रकार के संक्रमण रोगों से लड़ने में सहायता करता है। बांस की खेती करना काफी मुनाफे का सौदा है।
जानिए बांस को किसानों का एटीएम क्यों कहा जाता है ?

जानिए बांस को किसानों का एटीएम क्यों कहा जाता है ?

बांस ने सिद्ध किया है, कि यह किसी भी हालत में अपना विकास करने में सक्षम है। क्योंकि यह अपनी जलवायु विविधता के मुताबिक परिवर्तन लाने की क्षमता की  वजह संजीवनी पौधा है। बतादें, कि चाहे बाढ़ हो अथवा सुखाड़, रेगिस्तान अथवा पहाड़ी इलाका हो, बांस बड़ी सहजता से उग जाता है। यह उपजाऊ अथवा बंजर भूमि में भी सहजता से उग सकता है। बांस किसानों के घर के आंगन से लेकर लड़ाई के मैदान में दुश्मनों के विरुद्ध लठ बजाने जैसे बहुतसे से कामों में सहारा देने वाला एक टिकाऊ बहुमुखी प्राकृतिक पौधा है। यह जीवन में भी शादी के मंडप से मृत्यु की शैय्या तक साथ देने की वजह से काफी उपयोगी होता है। बांस की मांग दिन-प्रतिदिन निरंतर बढ़ती जा रही है। इसलिए, इसे 'ग्रीन गोल्ड' कहा जाता है। इसको किसानों के लिए एक वास्तविक एटीएम के तौर पर जाना जाता है।

जानिए हरा सोना यानी कि बांस की उपयोगिता के बारे में 

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि बांस एक बहुउपयोगी पौधा है। इस वजह से ही इसे ग्रीन गोल्ड कहा जाता है। बांस का इस्तेमाल भवन निर्माण से लेकर खानपान एवं कुटीर उद्योग में बहुतायत से किया जाता है। अगरबत्ती उद्योग, पैकिंग उद्योग, कागज उद्योग एवं बिजली उत्पन्न करने आदि में भी उपयोग किया जाता है। सामान्य तौर पर शहरों-क़स्बों अथवा गांवों में सीमेंटेड घर बनाते वक्त, इसके इस्तेमाल पर आपकी नजर पड़ी होगी। परंतु, सजावटी, रसोई और घरेलू वस्तु बनाने में भी ये बेहद काम आता है। इसका उपयोग वाद्य-यंत्र एवं आयुर्वेदिक दवा के तौर पर होता है। इससे शानदार गुणवत्ता की चेचरी एवं मैट तैयार किए जाते जाते हैं। बतादें कि प्राकृतिक आपदाओं जैसे कि भूकंप, तूफान और बाढ़ वाले क्षेत्रों में बांस से निर्मित घर ज्यादा सुरक्षित माने जाते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, मृदा-क्षरण को रोकने में भी, बांस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बतादें, कि बाढ़ वाले क्षेत्रों में जहां अन्य फसलों को हानि होती है, वहां बांस सुरक्षित रहता है। 

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बांस को किसानों का एटीएम कहा जाता है 

बांस को किसानों का ATM कहा जाता है। इसका इस्तेमाल कई सारी चीजों में होने की वजह से बांस को बेचने में कोई दिक्कत नहीं रहती है। खरीदार अथवा  व्यापारी स्वयं, खेतों से बांस काटकर ले जाते हैं। ना बाजार का कोई झंझट, ना दाम की कोई चिकचिक। इसके साथ ही अन्य दूसरी फसलों में जहां हर समय नजर रखनी पड़ती है। उसमें मानव-श्रम काफी अधिक लगता है। इसके साथ ही बांस का बगीचा, एक बार लगा देने पर इसमें अधिक मानव-श्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसके साथ ही 5 वर्ष उपरांत से लेकर, 30 साल तक इससे नियमित तौर पर आमदनी होती रहती है। बतादें, कि अपने इन्हीं खास गुणों की वजह से बांस को किसानों का ATM कहा जाता है। 

बांस की शानदार किस्में इस प्रकार हैं  

राष्ट्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान केंद्र झांसी के मुताबिक भारत में सामान्यतः बांस की 23 वंश की 58 किस्में पाई जाती हैं। यह प्रजातियां पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में हैं। भारत में सेंट एक्टस वंश 45 प्रतिशत, बॉम्बुसा बॉम्बे;13 प्रतिशत एवं डेंड्रोकैलामस मिल्टनी 7 फीसद पाई जाती है। बांस के बीज चावल की भांति होते हैं। बांस की टिश्यू कल्चर के माध्यम से तैयार पौध से रोपाई की जाती है।

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बांस की खेती से कम लागत में लाखों का मुनाफा 

प्रत्येक चार वर्ष उपरांत बांस के बगीचे तैयार हो जाते हैं। तब आप बांस की कटाई कर सकते हैं। चार वर्ष पर एक एकड़ से 15 से 20 लाख आमदनी ले सकते हैं अथवा मेड़ पर लगाकर प्रति वर्ष 20 हजार तक की आमदनी ले सकते हैं। बांस 30 वर्ष के जीवनकाल तक चलता रहता है। इस प्रकार बांस की बागवानी लगाकर आप बाढ़ वाले क्षेत्रों में भी अच्छी एवं निश्चित आमदनी कमा सकते हैं। ये हर समय बिक्री को तैयार रहने वाला पौधा है, जिस वजह से इसे ग्रीन गोल्ड भी कहा जाता है। भारत में इसकी खेती को प्रोत्साहन देने के लिए नेशनल बैंबू मिशन चलाया जा रहा है। वर्तमान में नेशनल बैंबू मिशन के अंतर्गत सरकार अनुदान भी प्रदान कर रही है। आप इसके सहभागी बन कर फायदा प्राप्त कर सकते हैं।