मायानंद विश्वास परवल की खेती से कुछ ही समय में मालामाल हो गए
मायानंद विश्वास एक ऐसे किसान हैं, जो परवल की खेती से कुछ ही दिनों में मालामाल हो गए हैं। वे पूर्णिया जनपद स्थित कस्बा प्रखंड के बनेली सिंधिया के रहने वाले हैं। वह अपने गांव में 8 तरह के परवल की खेती कर रहे हैं। वह साल 2013 से परवल की खेती कर कर रहे हैं। उनका कहना है, कि परवल की एक बार खेती करने पर आप इससे 9 महीने तक सब्जी तोड़ सकते हैं। बतादें, कि इसकी खेती में लाखों रुपये का मुनाफा है।
मायानंद ने कृषि विघालय से जानकारी लेकर परवल की खेती शुरू कर दी
किसान मायानंद विश्वास की मानें तो इंसान की भांति सब्जियों में भी मेल- फीमेल जाति होती है। यही कारण है, कि वे विगत 10 साल से मेल-फीमेल दोनों कंपोजिशन मिलाकर परवल की खेती कर रहे हैं। विशेष बात यह है, कि उन्होंने परवल की खेती शुरूआत करने से पहले भागलपुर के सबौर कृषि विद्यालय से इसके विषय में संपूर्ण जानकारी ली थी। इसके उपरांत गांव आकर परवल की खेती चालू कर दी।
किसान मायानंद विश्वास लाखों रुपये की कमाई करते हैं
वर्तमान में उन्होंने लगभग एक एकड़ में परवल की खेती कर रखी है। इसमें परवल की 8 किस्म है। किसान मायानंद विश्वास की मानें तो वह 9 माह में परवल की खेती से 8 लाख रुपये का मुनाफा अर्जित कर लेते हैं। उनका कहना है, कि बहुत सारे किसान परवल की खेती नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें संपूर्ण जानकारी नहीं होती है। बहुत सारे किसानों को इसकी खेती से घाटा भी उठाना पड़ जाता है। इसलिए किसानों को अपने खेत में मेल और फीमेल परवल के दोनों पौधे रोपने होंगे। उनका कहना है, कि परवल के खेत में रिक्त पड़े स्थानों पर वे दूसरी फसल भी लगाते हैं। उनका यह कहना है, कि वह सालभर में खर्चा काटकर 8 लाख रुपये का मुनाफा अर्जित कर लेते हैं। वर्तमान में किसान मायानंद विश्वास के खेत में राजेंद्र 2, स्वर्ण अलौकित, राजेंद्र 1, स्वर्ण रेखा, डंडारी, बंगाल ज्योति एवं दूदयारी प्रजाति का परवल लगा हुआ है।
इस लेख में हम झारखंड के एक ऐसे किसान के विषय में चर्चा करेंगे, जिनकी तकदीर मशरूम की खेती से बदल चुकी है। वह अब मशरूम उत्पादन से महीने में हजारों रुपये की आमदनी कर रहे हैं। मशरूम की खेती करने वाले इस किसान का नाम देवाशीष कुमार है। वह पूर्वी सिंहभूम जनपद मौजूद जमशेदपुर के मूल निवासी हैं। उन्होंने डेढ़ कट्ठे भूमि पर मशरूम की खेती कर रखी है, जिससे उनको प्रति महीने 50 से 60 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। मुख्य बात यह है, कि देवाशीष कुमार ने अपने इस व्यवसाय की शुरुआत केवल 1 हजार रुपये की धनराशि से की थी।
जैसा कि उपरोक्त में बताया गया है, कि देवाशीष कुमार एबीए पास हैं। बतादें, कि साल 2015 से पूर्व वह एचडीएफसी बैंक में नौकरी किया करते थे। इसी दौरान उनका बिहार राज्य के समस्तीपुर मौजूद राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय में जाना हुआ। जहां पर उनको मशरूम की खेती के विषय में जानकारी मिली है। इसके पश्चात उन्होंने मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण लिया। उसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी एवं घर आकर एक हजार रुपए की पूंजी लगाकर मशरुम की खेती चालू कर दी है। हालांकि, आरंभ में घर वालों ने उनके इस निर्णय का कड़ा विरोध किया, परंतु वह अपने काम में बिना रुके लगे रहे।
किसान देवाशीष मशरुम उत्पादन का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं
देवाशीष कुमार का गांव में काफी बड़ा घर है। वह घर के ही चार कमरों में मशरुम की खेती कर रहे हैं। उनको पहली बार में ही सफलता हाथ लग गई। मशरूम की पैदावार भी अच्छी हुई बाजार में भाव भी अच्छा मिल गया, जिससे उन्हें काफी मोटी आमदनी भी हुई। इसके उपरांत देवाशीष कुमार ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज उन्होंने अपनी खेती में 2 महिलाओं को स्थाई तौर पर रोजगार भी दे रखा है। खास बात यह है, कि देवाशीष मशरूम उत्पादन के साथ-साथ नए लोगों को मशरुम उत्पादन का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
देवाशीष इन किस्मों के मशरूम की खेती कर रहे हैं
देवाशीष ने बताया है, कि चारों कमरों का क्षेत्रफल तकरीबन डेढ़ कट्ठे जमीन के समतुल्य होता है। साथ ही, गर्मी के मौसम में कमरे का तापमान कम करने के लिए भूमि पर तीन इंच बालू को बिछा देते हैं। बाद में उसके ऊपर समय-समय पर पानी का छिड़काव करते रहते हैं। इससे कमरे का तापमान एक संतुलित मात्रा में रहता है। देवाशीष प्रमुख रुप से मिल्की मशरूम, ऑएस्टर, पैडी स्ट्रॉ एवं क्लाऊड मशरुम की खेती करते हैं। साथ ही, मशरुम पाउडर भी निर्मित करते हैं। वेंडर्स आकर उनसे सारा मशरुम खरीद लेते हैं। सर्दियों के दौरान चार के स्थान पर छह कमरों में मशरुम की खेती करते हैं।
दरअसल, हम किसान राजू कुमार चौधरी के संबंध में चर्चा कर रहे हैं। वह मुजफ्फरपुर जिला स्थित बोचहां प्रखंड के निवासी हैं। वह अपने गांव चखेलाल में कुंदरू की खेती करते हैं। इससे उनको वर्ष भर में 25 लाख रुपये की कमाई हो जाती है। मुख्य बात यह है, कि राजू कुमार चौधरी केवल 1 एकड़ में कुंदरू की खेती करते हैं। उनकी मानें, तो पारंपरिक फसलों की तुलना में कुंदरू की खेती में कई गुना ज्यादा मुनाफा है।
किसान राजू की मानें तो कुंदरू एक ऐसी सब्जी है, जिसकी खेती करने पर काफी मोटी कमाई होती है। कुंदरू की फसल वर्ष भर में 10 महीने उत्पादन देती है। इसका अर्थ यह हुआ है, कि आप कुंदरू के बाग से 10 महीने तक सब्जी तोड़ सकते हैं। राजू कुमार चौधरी का कहना है, कि दिसंबर से जनवरी के मध्य कुंदरू की पैदावार नहीं होती है। इसके पश्चात 10 महीने आप इससे कुंदरू का उत्पादन हांसिल कर सकते हैं।
कुंदरू की सब्जी स्वाद में भी उत्तम होती है
किसान राजू के अनुसार, कुंदरू एक प्रकार की नगदी फसल है। इसकी खेती में लागत भी काफी कम है। मुख्य बात यह है, कि राजू ने कुंदरू की एन-7 किस्म की खेती कर रखी है। इस बीज को उन्होंने बंगाल से आयात किया था। एन-7 किस्म की विशेषता यह है, कि आम कुंदरू की तुलना में इसकी पैदावार ज्यादा होती है। साथ ही, खाने में इसका स्वाद में भी काफी उत्तम होता है।
किसान एक कट्ठे जमीन में कुंदरू की खेती से कितना कमा सकते हैं
दरअसल, किसान भाई यदि एक कट्ठे भूमि के हिस्से में भी कुंदरू की खेती करते हैं, तो बेहतरीन कमाई कर सकते हैं। एक कट्ठे भूमि में कुंदरू की खेती करने पर आप हर चौथे दिन एक क्विटल तक कुंदरू की पैदावार उठा सकते हैं। इस हिसाब से किसान वर्ष में 70 से 80 क्विटल कुंदरू का उत्पादन उठा सकते हैं, जिससे 1.50 लाख रुपये की आमदनी होगी। साथ ही, राजू ने बताया है, कि वह एक एकड़ में कुंदरू की खेती कर वार्षिक 20 से 25 लाख रुपए की आमदनी कर लेता है।
इजराइल में बागवानी हेतु विभिन्न प्रोजेक्ट जारी किए जा रहे हैं
इजराइल में फल, फूल और सब्जियों की आधुनिक खेती के लिए बहुत सारे प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं। कृषि के क्षेत्र में मदद करने के लिए भारत एवं इजराइल के बीच बहुत सारे समझौते भी हुए हैं। इन समझौतों में संरक्षित खेती पर विशेष तौर पर ध्यान दिया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजराइल से भारत के किसानों ने जो संरक्षित खेती के तौर तरीके सीखे हैं, उनकी वजह से किसी भी सीजन में कोई भी फल खाने को मिल जाता है। इस टेक्निक की सहायता से वातावरण को नियंत्रित किया जाता है। साथ ही, एक बेहतरीन खेती भी की जाती है।
वातावरण फसल के अनुरूप निर्मित किया जाता है
इसके अंतर्गत कीट अवरोधी नेट हाउस, ग्रीन हाउस, प्लास्टिक लो-हाई टनल एवं ड्रिप इरीगेशन आता है। बाहर का मौसम भले ही कैसा भी हो, परंतु इस तकनीक के माध्यम से फल, फूल और सब्जियों के मुताबिक वातावरण निर्मित कर दिया जाता है। इसके चलते किसान भाई बहुत सी फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। साथ ही, उन्हें बेहतरीन कीमतों में बेच रहे हैं। किसानों को बहुत सारी फसलों के दाम तो दोगुने भी मिल जाते हैं। जानकारों के मुताबिक, तो इस खेती को विश्व की सभी प्रकार की जलवायु जैसे शीतोष्ण, सम शीतोष्ण कटिबंधीय, उष्णकटिबंधीय इत्यादि में अपनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त संरक्षित खेती के चलते जमीन की उत्पादकता में भी काफी बढ़ोतरी होती है।