अधरों से मधुर धुन छेड़ने (बांसुरी), पहनने, बैठने से लेकर जीवन की अंतिम यात्रा तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले साधारण से बांस को उगाकर किसान मित्र तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं।
हम बात कर रहे हैं बैंबू कल्टीवेशन (Bamboo Cultivation), यानी बांस की पैदावार की। जी हां, वही बांस जो मकान को आधार देने, सीढ़ी, टोकरी, चटाई, हैट, फर्नीचर, खिलौने बनाने से लेकर मृत्युशय्या तक के सफर में भारत में खास महत्व रखता है। लिखा-पढ़ी के लिए जरूरी कागज बनाने में भी बांस की उपयोगिता कमतर नहीं है। ऐसे में बांस से उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के बीच बांस की खासी डिमांड है, जो किसान को बांस के बदले अच्छी-खासी कीमत भी देती हैं।
बैंबू फार्मिंग टिप्स (Bamboo Farming Tips) की अगर बात करें, तो आपको जानकर अचरज होगा कि बांस के पेड़ 40 साल तक आय का जरिया प्रदान करते हैं।
ऐसे में भारत के ग्रामीण अंचल में बांस की पैदावार विशाल पैमाने पर की जाती है।
एक बार लगाओ खुद जान जाओ -
बांस की फार्मिंग (Bamboo Farming) किसान के लिए एक ऐसा विकल्प है जिसमें एक बार की लागत पर किसान 30 से 40 सालों तक तगड़ी कमाई कर सकते हैं।
जीवन-मरण के साथ ही शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में अनिवार्य, बांस को लगाकर किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं। भारत की सरकार भी बांस लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करती है।
किसानों की आय बढ़ाने प्रोत्साहन के तहत भारत सरकार ने देश में बांस की खेती (Bamboo Farming) के लिए साल 2006-2007 में राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) शुरू किया है। इस मिशन के अंतर्गत बैंबू फार्मिंग (Bamboo Farming) हेतु आर्थिक सहायता का प्रावधान किया गया है।
कहां लगाएं बांस :
ऐसे किसान जिनके खेत में जगह कम है, तो वे किसान मित्र खेत की मेढ़ पर बांस के पौधे लगा सकते हैं। खेत की मेढ़ पर बांस लगाने से न केवल अन्य फसलों की सुरक्षा होती है, बल्कि भूमि का क्षरण भी रुकता है। आवारा पशुओं से भी फसल की सुरक्षा संभव है। साथ ही मुनाफा भी तय है।
आपने बांस से बने मकान, सीढ़ी, टोकरी, चटाई, फर्नीचर, खिलौनों के साथ ही साज-सज्जा की तमाम चीजें देखी होंगी। पेपर इंडस्ट्री में भी बांस (Bamboo) की अच्छी खासी मांग है। पेपर बनाने वाली कंपनियां और लकड़ी बेचने वाले टाल वाले व्यापारी, किसानों को बांस के बदले तगड़ी कीमत अदा करने तैयार रहते हैं।
कैसे लगाएं बांस ?
मुख्य तौर पर बांस को बीज के जरिये उगाया जा सकता है। कटिंग या राइज़ोम (प्रकंद)(Rhizome) तकनीक भी इसकी पैदावार के लिए अपनाई जाती है। बांस के पौधे आम तौर पर तीन से चार साल के ही भीतर पूरी तरह से परिपक़्व हो जाते हैं। जिसके बाद इसे बेचकर किसान मित्र अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।
सहफसली खेती तकनीक में उपयोगी - सहकर्मी तकनीक से खेती करने में बांस की फसल (Bamboo Farming) सर्वाधिक उपयुक्त है। बांस की कतारों के मध्य अदरक, हल्दी, अलसी और लहसुन जैसी अल्प एवं मध्य कालीन फसलों को उगाकर भी अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है।
30 से 40 लाख की आय
एक अनुमान के मुताबिक, सामान्य स्थितियों में किसान एक एकड़ जमीन पर बांस के डेढ़ सौै से ढ़ाई सौै पौधे लगा सकता है। तीन से चार साल में परिपक़्व होने वाले बांसों से किसान आराम से 40 लाख तक की आमदनी कर सकते हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को जीवंत रखने में सक्षम बांस लगभग 40 सालों तक स्वयं को कायम रख सकता है। ऐसे में किसान बांसों की व्यवस्थित कटिंग के जरिये लगभग 40 सालों तक आवश्यक कमाई कर सकते हैं।
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बांस की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसे रेतीली मिट्टी में उगाना संभव नहीं है। यह बेहद कम मेहनत वाली खेती होती है। इसमें किसान भाइयों को खेत तैयार करके अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी होती है। बांस का पौधा लगाने के लिए 2 फीट व्यास का गड्ढा तैयार करना होता है। उस गड्ढे में किसान भाई आसानी से बांस लगा सकते हैं। बांस लगाने के पहले गड्ढे में गोबर की खाद डाल सकते हैं। यह बांस के विकास के लिए सहायक होगी। बांस रोपाई करने के तीन साल बाद तैयार हो जाता है। जिसके बाद बांस की कटाई की जा सकती है। एक हेक्टेयर में बांस के 1500 पौधे तक लगाए जा सकते हैं।
बांस एक ऐसी फसल है जिसे एक बार लगाने के बाद अगले 40 साल तक इसकी कटाई की जा सकती है। इस खेती में लागत न के बराबर आती है और मेहनत भी ज्यादा नहीं करनी पड़ती। इसकी खेती ठंडी जलवायु में करना संभव नहीं है। इसके लिए उष्ण जलवायु अच्छी मानी गई है। इसके लिए गर्मी के साथ बरसात ज्यादा लाभकारी होती है। ऐसे वातावरण में बांस तेजी से विकास करता है। इसलिए भारत में बांस की सबसे ज्यादा खेती पूर्वोत्तर राज्यों में की जाती है। किसान भाई एक हेक्टेयर खेत में बांस लगाकर हर साल 3 लाख रुपये तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं। इस हिसाब से किसान भाई कम मेहनत और कम लागत में बांस की खेती से अच्छे खासी कमाई कर सकते हैं।
बांस का इस्तेमाल तो मध्य प्राषाण काल से ही होता आ रहा है। पतले पत्थरों के औजार में बांस के बेंत का इस्तेमाल होता था। साथ ही, तीर-कमान भी ज्यादातर बांस से ही निर्मित हुआ करते थे। धीरे-धीरे जैसे वक्त बदला बांस की उपयोगिता भी बढ़ती गई। आवश्यकता के अनुसार बांस से निर्मित वस्तुओं की रुपरेखा बदलती गई। संगीत के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र बांस से ही बने। साथ ही साथ बहुत सारे मांगलिक अवसरों पर बांस का इस्तेमाल हजारों वर्ष पूर्व से होता आ रहा है। बहुत सारे तीज-त्योहारों में भी बांस की समाग्रियों का होना बेहद जरूरी है। परंपरा के मुताबिक, बांस की कोपलों से लेकर हरे एवं सूखे बांस की स्वयं की मान्यता है।
बांस की कोपलें पाचन तंत्र को सशक्त बनाने में काफी सहायता करती हैं।
बांस की कोपला का नियमित तौर पर सेवन करने से हड्डियां सशक्त होती हैं।
बांस का पेड़ पर्यावरण के संरक्षण में जितनी सहायता करता है, उससे बहुत गुना अधिक मनुष्य और अन्य जीवों की बहुत सारी बीमारियों के उपचार में भी सहायता करता है। बांस की टहनियों में अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर एवं विभिन्न मिनरल्स व विटामिन पाए जाते हैं।
विटामिन व मिनल्स भरपूर होने की वजह से इसकी पतली टहनियों का नियमित सेवन करने से इम्यून सिस्टम बेहद मजबूत होता है। जो कि विभिन्न प्रकार के संक्रमण रोगों से लड़ने में सहायता करता है। बांस की खेती करना काफी मुनाफे का सौदा है।