मात्र 70 दिन में उगे यह रंग-बिरंगी उन्नत शिमला मिर्च (Capsicum)
किसान वर्ग के लिए बात है, न तीखी न फीकी, ऐसी चीज की, जिसका रंग ऐसा की व्यंजन को रंगदार बना दे। जी हां, बात है, लाल-पीली-हरी रंग-बिरंगी शिमला मिर्च (Capsicum) की, जिसके जायके का तड़का भारतीय रसोई से लेकर दुनिया भर की तमाम रेसिपी में शुमार है। कृषक वर्ग शिमला मिर्च (Capsicum) की खेती कर महज ढ़ाई महीने मेें तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं। जानिये ऐसी ही उमदा किस्म की कैप्सिकम (Capsicum) यानी शिमला मिर्च की प्रजातियों के बारे में आज, जिनसे न केवल मिलेगा स्वादिष्ट स्वाद, बल्कि उगाने वाले को होगी तगड़ी आय। कैप्सिकम वैराइटी (Capsicum Variety), यानी शिमला मिर्च की शीर्ष किस्मों मेें ऐसी प्रजातियां शामिल हैं, जो महज ढ़ाई माह के भीतर ही किसान को मुनाफा दे सकती हैं। मतलब 78 से 80 दिन में किसान रंग-बिरंगी शिमला मिर्च को बेचकर हरे नोट गिन सकता है।भारत में कैप्सिकम पैदावार की संभावनाएं :
भारत के अधिकतर उत्तरी राज्यों हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, झारखंड, उत्तर प्रदेश के साथ ही कर्नाटक के आसपास के प्रदेशों में कैप्सिकम यानी कि शिमला मिर्च की पैदावार का प्रचलन ज्यादा है।
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कम समय और अच्छा बाजार :
फास्ट-फूड कल्चर (Fast Food Culture) जैसे चाइनीज व्यंजनों के साथ ही देसी तड़के में उपयोग की जाने वाली शिमला मिर्च की भारत समेत विदेशी बाजारों में खासी मांग है। ऐसे में महज 2 से 3 महीने में आय का विकल्प, शिमला मिर्च की खेती कृषक मित्रों के लिए अच्छी आय का जरिया बन सकती है।शिमला मिर्च की प्रमुख किस्में और पैदावार की जानकारी :
भारत में शिमला मिर्च की उन्नत किस्मों (variety of Capsicum in India) की बात करें तो इसमे इंद्रा, कैलिफोर्निया वंडर, येलो वंडर आदि किस्म की शिमला मिर्चों के नाम शामिल हैं। इन मिर्चों की खासियत क्या है और इन्हें कैसे उगाया जाता है जानते हैं गूढ़ राज को।इंद्रा शिमला मिर्च (Indra Capsicum)
इंद्रा शिमला मिर्च मध्यम लंबी और तेजी से पनपने वाले झाड़ीदार पौधों में से एक किस्म की प्रजाति है। पहचान की बात करें तो इसके गहरे हरे पत्ते मिर्च के फल को आधार प्रदान करते हैं। इस प्रजाति की शिमला मिर्च गहरी हरी, मोटे आवरण के साथ ही चमकदार होती हैं।इंद्रा शिमला मिर्च के लिए मुफीद सीजन :
खरीफ सीजन में इंद्रा शिमला मिर्च की अच्छी पैदावार हीती है। मूल तौर पर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात के साथ ही राजस्थान, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश एवं कलकत्ता, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल समेत हरियाणा, उत्तराखंड, ओडिशा, पंजाब इंद्रा शिमला मिर्च (Indra Capsicum) का तगड़ा पैदावार क्षेत्र है।इंद्रा शिमला मिर्च के लिए बुवाई और मिट्टी :
बोवनी की बात करें तो बुवाई के महज 70 से 80 दिनों के भीतर इंद्रा शिमला मिर्च की प्रजाति परिपक़्व हो जाती है, जिसे तोड़कर किसान अच्छा मुनाफा कमाते हैं।
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भारत शिमला मिर्च (Bharat Capsicum)
भारत शिमला मिर्च की प्रजाति के पौधे तेजी से पनपते हैं। यह गहरे हरे रंग के होते हैं। भारत शिमला मिर्च की प्रजाति की पैदावार के लिए सूखी एवं लाल दोमट मिट्टी अनिवार्य है। जून से दिसम्बर यानी सात महीनों तक का मौसम इसकी पैदावार के लिए अनुकूल माना गया है। इसे बोने के लगभग 90 से 100 दिनों यानी तीन माह से कुछ अधिक दिनों के बाद भारत शिमला मिर्च की तुड़ाई किसान कर सकते हैं।कैलिफोर्निया वंडर शिमला मिर्च (California wonder Capsicum)
कैलिफोर्निया वंडर शिमला मिर्च (California wonder Capsicum) भारत में पैदावार की जाने वाली उन्नत किस्मों में से एक है। कैलिफोर्निया वंडर शिमला मिर्च का पौधा मध्यम ऊंचाई का होता है। हरे रंग के फल इसकी पहचान हैं। इसे बोने के करीब 75 दिनों उपरांत इसके पौधों से मिर्च के फल तोड़े जा सकते हैं। प्रति एकड़ जमीन के मान से तकरीबन 72 से 80 क्विंटल शिमला मिर्च पैदा होने की संभावना है।येलो वंडर शिमला मिर्च (Yellow Wonder Capsicum) -
चटख पीले रंग की येलो वंडर शिमला मिर्च (Yellow Wonder Capsicum) के पौधों की बात करें तो चौड़े पत्तों वाले इन प्लांट्स की ऊंचाई मध्यम आकर की होती है। बीजारोपण के करीब 70 दिनों उपरांत येलो वंडर शिमला मिर्च (Yellow Wonder Capsicum) की पैदावार तैयार हो जाती है। कृषि वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार अनुकूल परिस्थितियों में प्रति एकड़ भूमि पर लगभग 48 से 56 क्विंटल येलो वंडर शिमला मिर्च (Yellow Wonder Capsicum) की पैदावार संभव है।पूसा दीप्ती शिमला मिर्च (Pusa Deepti Capsicum)
पूसा दीप्ती शिमला मिर्च (Pusa Deepti Capsicum) हाइब्रिड प्रजाति की शिमला मिर्च है। इसका पौधा भी मध्यम आकार का झाड़ीनुमा होता है। पूसा दीप्ति कैप्सिकम (Pusa Deepti Capsicum) के फलों का रंग शुरुआत में हल्का हरा होता है, जो फल के पकने के उपरांत गहरे लाल रंग में तब्दील हो जाता है। बीजारोपण के महज ढ़ाई माह, यानी कि मात्र 70 से 75 दिनों के उपरांत इसके फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
16-Jul-2022