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Cow Urine

छत्तीसगढ़ की राह चला कर्नाटक, गौमूत्र व गाय का गोबर बेच किसान होंगे मालामाल!

छत्तीसगढ़ की राह चला कर्नाटक, गौमूत्र व गाय का गोबर बेच किसान होंगे मालामाल!

एक सैकड़ा गौशाला बनाने का लक्ष्य, पशु पालन राज्य मंत्री ने जाहिर किए विचार

योजना प्रारंभिक दौर में, सीएम से करेंगे चर्चाः चव्हाण

गौपालन को बढ़ावा देने एवं किसानों को अतिरिक्त आय का जरिया प्रदान करने के लिए कर्नाटक सरकार ने गौवंश पालकों से
गौमूत्र या गोमूत्र (गाय का मूत्र) (Cow Urine) एवं गाय का गोबर (Cow Dung) खरीदने का निर्णय लिया है। आपको ज्ञात हो छत्तीसगढ़ सरकार भी किसानों से गौमूत्र खरीदकर उन्हें लाभ प्रदान कर रही है।

अतिरिक्त आय प्रदान करना लक्ष्य

कर्नाटक राज्य पशुपालन विभाग किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए प्रयासरत है। किसानों की आय मेें वृद्धि हो, इसके लिए कृषि आय से जुड़े आय के तमाम विकल्पों के लिए सरकार प्रोत्साहन एवं मदद प्रदान कर रही है। प्रदेश के गौपालक किसानों को गाय के दूध के अलावा भी अतिरिक्त आय मिल सके, इसके लिए किसानों से गोमूत्र और गोबर खरीदने की योजना कर्नाटक राज्य सरकार ने बनाई है।


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गौशालाओं की मदद

राज्य सरकार ने किसानों से गौमूत्र एवं गोबर खरीदने के लिए विशिष्ट योजना बनाई है। इस प्लान के तहत योजना की शुरुआत में प्रस्तावित गौशालाओं की मदद से किसानों से गौमूत्र एवं गाय के गोबर की खरीद की जाएगी। कर्नाटक सरकार इस समय कुछ निजी गौशालाओं का वित्त पोषण करती है। इसके अलावा राज्य सरकार ने इस अभिनव योजना के लिए आगामी दिनों में प्रदेश में गौशालाओं (Cow Shed) के विस्तार की योजना बनाई है। इसके तहत प्रदेश में 100 गौशाला (Cow Shed) बनाने का सरकार का लक्ष्य है।


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शुरू हो चुका है कार्य

लक्ष्य निर्धारित गौशालाओं को बनाने के लिए विभाग ने जिलों में भूमि चिह्नित की है। योजना के अनुसार चराई के लिए पृथक गौशाला बनाने का निर्णय लिया गया है।

गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग

किसानों से क्रय किए गए गोबर और गोमूत्र से राज्य में कई तरह के उपयोगी उपोत्पाद बनाए जाएंगे। आमजन को भी गोबर-गौमूत्र निर्मित जीवन रक्षक इन उत्पादों के उपयोग के लिए मेलों, प्रदर्शनियों के जरिये जागरूक किया जाएगा। सरकार का मानना है कि, कृषि आधारित इस अभिनव पहल से प्रदेश में रोजगार के नए अवसर कृषि से इतर दूसरे लोगों को भी मिल सकेंगे।


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छत्तीसगढ़ सरकार ने किया प्रेरित

आपको बता दें, छत्तीसगढ़ में सरकार ने इस दिशा में पहल शुरू की थी। छत्तीसगढ़ में गौधन न्याय योजना के तहत, गोबर और गौमूत्र की खरीद कर सरकार किसानों को लाभ के अवसर प्रदान कर रही है। इस योजना के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के गौपालकों से चार रुपए प्रति लीटर की दर से गोमूत्र खरीदने का निर्णय लिया है। इस पहल के अलावा छत्तीसगढ़ राज्य में पहले से ही राज्य सरकार द्वारा पशुपालकों से दो रुपए प्रति किलो की दर से गाय का गोबर (Cow Dung) खरीदा जा रहा है। प्रदेश सरकार की इस पहल से न केवल पशु पालकों का गौपालन के प्रति रुझान बढ़ा है, बल्कि, गौपालन से पशु पालकों की कमाई में अतिरिक्त इजाफा भी देखने को मिला है।


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पशुपालन राज्य मंत्री प्रभु चव्हाण के हवाले से जारी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, निजी मठ और संगठन राज्य में गौशाला का संचालन कर गौसेवा करते हैं। इन संगठनों द्वारा गोमूत्र और गाय के गोबर से बायो-गैस, दीया, शैंपू, कीटनाशक, औषधि जैसे कई जीवनोपयोगी उत्पाद बनाए जाते हैं। पशुपालन राज्य मंत्री ने इस दिशा में हाथ बंटाने की बात कही।

छग मॉडल से लेंगे प्रेरणा

उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लागू की गई योजना का अध्ययन कर उससे सीख लेने की बात कही। प्रभु चव्हाण ने बताया कि, कर्नाटक में गौमूत्र एवं गाय के गोबर से जुड़ी योजना को लागू करने के पहले छत्तीसगढ़ के अनुभवों का अध्ययन किया जाएगा। मंत्री के अनुसार उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र राज्य में किए जा रहे जैव ईंधन (Bio Fuel) के प्रयोग भी काफी प्रभावकारी हैें। उन्होंने महाराष्ट्र के किन्नरी मठ में गोबर औऱ गौमूत्र से बनाए जाने वाले 35 उत्पादों से मिलने वाले लाभों का भी जिक्र मीडिया से एक चर्चा में किया। प्रभु चव्हाण ने योजना को फिलहाल शुरुआती चरण में होना बताकर, इसके विस्तार के लिए जल्द ही मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से चर्चा करने की बात कही।
गोमूत्र की गंध और स्वाद आपकी पसंद का होगा, क्योंकि अब मनचाहे फ्लेवर में गोमूत्र उपलब्ध

गोमूत्र की गंध और स्वाद आपकी पसंद का होगा, क्योंकि अब मनचाहे फ्लेवर में गोमूत्र उपलब्ध

यह फ्लेवर्ड गोमूत्र वर्तमान में 6 प्रकार के भिन्न भिन्न स्वाद में मौजूद है। इन फ्लेवर्स में स्ट्रॉबेरी, पान, मैंगो, ऑरेंज, पाइनएप्पल और मिक्स फ्लेवर है। इसके एक लीटर की कीमत 200 रुपये के लगभग है। गोमूत्र विगत कुछ सालों से ज्यादा चर्चा में है। दरअसल, इसका उपयोग औषधीय के तौर पर आयुर्वेद में सदियों से किया जाता रहा है। आयुर्वेद की द्रष्टि से देखें तो बहुत सारी गंभीर बीमारियों में भी इसके सेवन से फायदा होता है। भारत सहित संपूर्ण विश्व में ऐसे लाखों लोग हैं, जो इसका उपभोग करते हैं। परंतु, कुछ लोग इसके स्वाद और इसकी बदबू के कारण चाह कर भी इसका सेवन नहीं कर पाते हैं।

गोमूत्र ऑरेंज, आम और पाइनएप्पल फ्लेवर्स में उपलब्ध है

फिलहाल, ऐसे ही लोगों की सुविधा के लिए वैज्ञानिकों द्वारा फ्लेवर्ड
गोमूत्र तैयार किया गया है। इसका अर्थ यह है, कि फिलहाल गोमूत्र आपको अलग-अलग प्रकार के स्वाद में मिल पाऐगा। यदि आपको आम पसंद है तो गोमूत्र आम फ्लेवर में मिल जाएगा। यदि आपको संतरा पसंद है तो गोमूत्र ऑरेंज फ्लेवर में मिल पाऐगा। वहीं, यदि आप पाइनएप्पल के शौकीन हैं, तो आपको गोमूत्र इस स्वाद में भी मिल जाएगा। मतलब कि फिलहाल आप खट्टा, मीठा व नमकीन जैसा स्वाद और सुगंध में चाहेंगे गोमूत्र आपको उसी तरह का मिल जाएगा।

फ्लेवर्ड गोमूत्र को किसने तैयार किया है

गोमूत्र के विभिन्न फ्लेवर्स की यह बड़ी खोज आईआईटी मुंबई से पीएचडी कर चुके डॉक्टर राकेश चंद्र अग्रवाल ने की है। उन्होंने इस फ्लेवर्ड गोमूत्र को नाम संजीवनी रस रखा है। इस खोज के उपरांत गोमूत्र विभिन्न फ्लेवर्स में पूरे भारत में उपलब्ध है। भिन्न-भिन्न प्रयोग शालाओं में इसको तैयार करने के लिए लोगों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। डॉ. राकेश इसको लेकर दीर्घ काल से शोध कर रहे थे और अंततः उन्हें सफलता मिल ही गई। डॉ. राकेश का कहना है, कि गोमूत्र में विभिन्न प्रकार के एंजाइम्स और न्यूट्रिएंट्स होते हैं। जो हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार के गंभीर रोगों से ग्रसित होने से बचाते हैं। इसलिए उन्होंने यह निर्णय लिया है, कि फिलहाल वह फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार कर इसको घर-घर तक उपलब्ध करा देंगे।

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फ्लेवर्ड गोमूत्र का नाम संजीवनी रस रखा है

मीडिया की खबरों के अनुसार, आपको बतादें कि यह फ्लेवर्ड गोमूत्र वर्तमान में 6 प्रकार के अलग-अलग स्वाद में मौजूद है। इन फ्लेवर्स में पाइनएप्पल, स्ट्रॉबेरी, पान, मैंगो, ऑरेंज और मिक्स फ्लेवर है। इसको तैयार करने के लिए फूड ग्रेड कलर एवं एसेंस का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में यह कोटा की 6 गोशालाओं में बनाया जा रहा है। लेकिन, आहिस्ते आहिस्ते इसको बड़े पैमाने पर तैयार करने की भी योजना है। यदि आप भी इस प्रकार का फ्लेवर्ड गोमूत्र चाहते हैं, तो आपको एक लीटर के लिए न्यूनतम 200 रुपये खर्च करने पड़ेंगे।
किसान शिवकुमार अपनी खेती में खाद के रूप में गोबर और गोमूत्र का इस्तेमाल करते हैं

किसान शिवकुमार अपनी खेती में खाद के रूप में गोबर और गोमूत्र का इस्तेमाल करते हैं

किसान शिवकुमार ने अपने गांव में 5 बीघे जमीन पर लौकी और तोरई की खेती कर रखी है. उनका कहना है कि वे काफी सालों से सब्जी की खेती कर रहे हैं और खाद के रूप में सिर्फ गोबर और गोमूत्र का ही उपयोग करते हैं। ज्यादातर किसानों का मानना है, कि रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने पर ही वह ज्यादा उत्पादन ले सकते हैं। परंतु, इस तरह की कोई बात नहीं है। यदि किसान भाई जैविक ढ़ंग से खेती करते हैं, तब भी वह बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें उर्वरक के तौर पर गोबर और वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करना पड़ेगा। अब ऐसे भी विश्व आहिस्ते-आहिस्ते ऑर्गेनिक खेती की ओर बढ़ रहा है। जैविक विधि से पैदा किए गए फल और सब्जियों का भाव भी काफी ज्यादा होता है। विशेष बात यह है, कि जैविक विधि से खेती करने के लिए सरकार किसानों को अपने स्तर से प्रोत्साहित भी करती है। जानकारी के लिए बतादें, कि भारत में बहुत सारे किसान हैं, जो जैविक तरीके से सब्जियों की खेती कर बेहतरीन आमदनी कर रहे हैं।

 

किसान शिवकुमार कहाँ के रहने वाले हैं

भारत के ऐसे ही किसानों में से एक शिवकुमार हैं। यह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में मौजूद स्याना तहसील के निवासी हैं। शिवकुमार अपने गांव गिनौरा नंगली में विगत कई वर्षों से जैविक विधि से सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। वह लौकी एवं तोरई की फसल पैदा कर रहे हैं। विशेष बात यह है, कि शिवकुमार अपने खेत में खाद स्वरूप गाय के गोबर एवं गोमूत्र का उपयोग करते हैं। यह सब्जी विक्रय करने समेत गांव के लोगों को निः शुल्क हरी-हरी सब्जियां भी देते हैं।

 

किसान शिवकुमार ने इतने बीघे भूमि पर खेती कर रखी है

किसान शिवकुमार ने खुद के गांव में स्वयं की 5 बीघे भूमि पर लौकी और तोरई की खेती कर रखी है। उनका मानना है, कि वह काफी वर्षों से सब्जी की खेती कर रहे हैं और खाद के तौर पर केवल गोबर अथवा गोमूत्र का इस्तेमाल ही करते हैं। वह अपनी फसलों के ऊपर कभी भी कीटनाशकों एवं रासायनिक खादों का छिड़काव नहीं करते हैं। इसके चलते इनकी सब्जियां शीघ्रता से क्षतिग्रस्त नहीं होती हैं। साथ ही, स्वाद भी काफी उत्तम होता है। 

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गोबर का उर्वरक स्वरूप उपयोग बढ़ाऐगा पैदावार

शिवकुमार के अनुसार, गाय के मूत्र एवं गोबर का उर्वरक के तौर पर उपयोग करने पर उत्पादन बढ़ जाता है। साथ ही, ऑर्गेनिक सब्जियों की बाजार में भी काफी ज्यादा मांग होती है। यदि किसान भाई जैविक विधि से सब्जी की खेती करते हैं, तो उनको कम खर्चा में ज्यादा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने बताया है, कि तोरई और लौकी की बुवाई करने से पूर्व खेत में गड्डा खोद कर के गोबर और गोमूत्र से खाद निर्मित की जाती है। इसके बाद बीजों की बुवाई होती है। शिवकुमार ने कहा है, कि बीज अंकुरित हो जाने के पश्चात दो से तीन दिन के समयांतराल पर गोमूत्र से सिंचाई की जाती है। इससे पौधों पर कीटों का आक्रमण नहीं होता है। साथ ही, बेहतरीन उत्पादन भी प्राप्त होता है।