अच्छी पैदावार के लिए बढ़िया जल निकासी वाली जमीन होनी चाहिए। खेत की तैयारी गहरी मिट्टी पलटने वाले कल्टीवेटर एवं हैरों आदि से करनी चाहिए। अच्छी उपज के लिए 5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से जरूर डालनी चाहिए। खाद आदि डालने से पहले खेत को कंप्यूटर मांझे से समतल करा लेना चाहिए ताकि बरसाती सीजन में खेत के किसी हिस्से में पानी रुके नहीं और फसल गलने से बच सके।
उन्नत किस्में
अच्छी पैदावार के लिए अच्छे बीज का होना आवश्यक है। हर राज्य की जलवायु के अनुरूप अलग-अलग किसमें होती हैं किसान भाइयों को अपने राज्य और जिले के कृषि विभाग, कृषि विज्ञान केंद्र एवं कृषि विश्वविद्यालय में संपर्क करके अपने क्षेत्र के लिए अच्छी किस्म का चयन करें। अच्छी किस्म का पता आजू बाजू में खेती करने वाले किसान से भी मिल सकता है। सरकारी संस्थानों में बीज की कमी और किसानों की पहुंच ना होने के कारण विश्वसनीय प्राइवेट दुकानदारों से भी अच्छा बीज लिया जा सकता है।
टी- 4,12,13,78, आरटी-351,शेखर, प्रगति, तरुण आदि किस्में विभिन्न क्षेत्रों एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों के लिए अनुमोदित हैं। सभी किस्में 80 से अधिकतम 100 दिन में पक जाती हैं। तेल प्रतिशत 40 से 50 रहता है। उत्पादन 7 से 8 कुंतल प्रति हेक्टेयर मिलता है।
तिल की खेती के लिए बीज दर
एक हेक्टेयर में तिल की खेती करने के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। उपचारित करने के लिए 2 ग्राम जीरा या 1 ग्राम कार्बेंडाजिम दवा में से कोई एक दवा लेकर प्रति किलोग्राम बीज में बुवाई से पूर्व में लनी चाहिए। इससे बीज जनित रोगों से बचाव हो सकता है।
तिल की बिजाई के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के दूसरे पखवाड़े तक की जा सकती है। बिजाई हमेशा लाइनों में करनी चाहिए। यदि मशीन से बिजाई की जाए तो ज्यादा अच्छा रहता है। लाइन से लाइन की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज को ज्यादा गहरा नहीं बोना चाहिए।
तिल की खेती के लिए जरूरी उर्वरक
तिल की खेती के लिए 30 किलोग्राम नत्रजन 20 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम गंधक का प्रयोग करना चाहिए। फसल बिजाई से पूर्व नत्रजन की आधी मात्रा ही गंधक एवं फास्फोरस के साथ मिलाकर डालनी चाहिए। उर्वरक प्रबंधन मिट्टी परीक्षण के आधार पर करें तो ज्यादा लाभ हो सकता है। फसल में फूल बनते समय 2% यूरिया के घोल का छिड़काव बेहद कारगर रहा है। थायो यूरिया का प्रयोग भी इस अवस्था में श्रेष्ठ रहेगा।
तिल की खेती के लिए पहली निराई गुड़ाई 20 दिन के बाद एवं दूसरी निराई गुड़ाई 30 से 35 दिन के बाद कर देनी चाहिए। इस दौरान जहां पौधे ज्यादा नजदीक हो उन्हें हटा देना चाहिए पौधे से पौधे की दूरी 10 से 12 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के एलाक्लोर 50 इसी सवा लीटर मात्रा बुवाई के 3 दिन के अंदर खेत में छिड़क देनी चाहिए। जब पौधों में 50 से 60% फली लग जाएं तब खेत में नमी बनाए रखना आवश्यक है। नमी कम हो तो पानी लगाना चाहिए। पकी फसल की फलियां ऊपर की तरफ रखनी चाहिए। फलिया सूख जाएं तो उन्हें उलट कर ततिल निकालना चाहिए। तिल को सदैव प्लास्टिक के त्रिपाल पर ही झाड़ना चाहिए। कच्चे स्थान पर झाड़ने से तिल की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
तिल की फसल को कीट एवं रोगों से बचाने के लिए डाईमेथोएट ३० इसी एवं क्यूनालफास 25 ईसी की सवा लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से फसल पर छिड़कनी चाहिए। इन रसायनों से ज्यादातर रोग नियंत्रित हो जाते हैं।
तिल लगभग सभी राज्यों में बड़े या छोटे क्षेत्रों में उगाया जाता है। तिल 1600 मीटर (भारत 1200 मीटर) के अक्षांश तक खेती की जाती है। अपने जीवन चक्र के दौरान तिल के पौधे को काफी उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। आम तौर पर इसके जीवन चक्र के दौरान आवश्यक इष्टतम तापमान 25-35 के बीच होता है। यदि गर्म हवाओं के साथ तापमान 40 डिग्री से अधिक है तो तेल की मात्रा कम हो जाती है। अगर तापमान जाता है। खेत में अत्यधिक पानी के प्रति फसल बहुत संवेदनशील होती है। खड़ी फसल में लंबे समय तक पानी खड़े रहने से फसल पूरी तरह प्रभावित हो जाती है।
खेत की तैयारी
खेत की दो बार या मोल्ड बोर्ड हल से तीन बार या देशी हल से पांच बार जुताई करें।जुताई के बीच में ढेलों को तोड़ दें और बीजों के छोटे होने के कारण जल्दी अंकुरण के लिए मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा कर दें।कड़ी कड़ाही वाली मिट्टी के लिए छेनीः सख्त परत वाली मिट्टी को उथली गहराई पर छेनी हल से पहले एक दिशा में 0.5 मीटर के अंतराल पर और फिर तीन साल में एक बार पिछले वाले से लम्बवत् दिशा में छेनी वाले हल से जुताई करे।
ये भी पढ़ें: इस तरह से खेती करके किसान एक ही खेत में दो फसलें उगा सकते हैंसिंचित खेती के लिए, उपलब्धता, पानी के प्रवाह और भूमि की ढलान के आधार पर 10 वर्ग मीटर या 20 वर्ग मीटर आकार की क्यारियां बनाएं। पानी के ठहराव को रोकने के लिए किसी भी अवसाद के बिना क्यारियों को पूरी तरह से समतल करें, जिससे अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।धान की परती भूमि में अधिकतम नमी के साथ एक बार जुताई कर बीजों को तुरंत बो दिया जाता है और एक और जुताई से ढक दिया जाता है।
मिट्टी
तिल को मिट्टी की एक विस्तृत श्रृंखला पर उगाया जा सकता है, हालांकि अच्छी जल निकासी वाली हल्की से मध्यम बनावट वाली मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है। यह पर्याप्त नमी वाली रेतीली दोमट भूमि पर सबसे अच्छा होता है। इष्टतम पीएच रेंज 5.5 से 8.0 है। तिल की बुवाई के लिए अम्लीय या क्षारीय मिट्टी उपयुक्त नहीं होती है।
बीज दर
आवश्यक पौधा स्टैंड प्राप्त करने के लिए 2 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। सीड ड्रील से इसकी बुवाई की जा सकती है।अधिक उपज प्राप्त करने के लिए लाइन बुवाई को अपनाएं।
बोने की विधि
आसान बुवाई और समान वितरण की सुविधा के लिए बीज को या तो रेत या सूखी मिट्टी या अच्छी तरह से छानी हुई गोबर की खाद के साथ 1:20 के अनुपात में मिला ले। सीड ड्रिल या लाइन बुवाई से इसकी बिजाई करें। बीज लगाने के लिए इष्टतम गहराई 2.5 सेमी है। गहरी बिजाई से बचें क्योंकि यह अंकुरण और पौधे के खड़े होने पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
फसल की बुवाई का समय
खरीफ के समय फसल की बुवाई की जाती है। मुख्य रूप से फसल की बुवाई जून और जुलाई के महीने में की जाती है या फसल की बुवाई मानसून के आगमन के साथ की जाती है।
बीज उपचार
बीज जनित रोगों की रोकथाम के लिए थीरम 2 ग्राम/किग्रा+ से उपचारित बीज का प्रयोग करें। कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/किग्रा या ट्राइकोडर्मा विराइड 5 ग्राम/किलोग्राम बीज का भी प्रयोग किया जा सकता है। जहाँ भी बैक्टीरियल लीफ स्पॉट रोग की समस्या है, बीज बोने से पहले एग्रीमाइसिन-100 के 0.025% घोल में 30 मिनट के लिए भिगो दें।
निराई और गुड़ाई
तिल में महत्वपूर्ण फसल खरपतवार प्रतियोगिता अवधि बुवाई के 40 दिनों तक है। फसल पहले 20-25 दिनों के दौरान खरपतवार प्रतिस्पर्धा के प्रति बहुत संवेदनशील होती है। दो बार निराई-गुड़ाई, एक 15-20 के बादबुवाई के 30-35 दिनों के बाद खेत को नदीन मुक्त रखने की आवश्यकता होती है।इंटरकल्चर के लिए, हाथ के कुदाल या बैल चालित ब्लेड का उपयोग करें।
कटाई और मड़ाई
कटाई का सबसे अच्छा समय तब होता है जब पत्तियां पीली होनी शुरू होती हैं। कटाई स्थगित न करें और फसल की अनुमति दें। फसल को थ्रेसर की सहायता से निकला जाता है।
तिल की पंक्तियों एवं पौधों दोनों के मध्य 30 सेमी का फासला काफी जरूरी होता है।
सूखे बालू की मात्रा के चार गुना बीजों को मिलाना चाहिए।
बीज की 3 सेमी गहराई में बिजाई करनी चाहिए एवं मृदा से ढक देनी चाहिए।
तिल की फसल में सिंचाई किस तरह से की जाए
तिल का उत्पादन फसल वर्षा आधारित हालत में उत्पादित की जाती है। परंतु, जब सुविधाएं मुहैय्या हों तब फसल को 15-20 दिनों की समयावधि के अंदर खेत की क्षमता के मुताबिक सिंचित किया जा सकता है। फली पकने से बिल्कुल पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। महत्वपूर्ण चरणों के चलते, सतही सिंचाई 3 सेमी गहरी होनी जरूरी है। जिसका अर्थ है, कि 4-5 पत्तियां, शाखाएं, फूल और फली बनने से पैदावार में 35-52% की बढ़ोत्तरी होगी।
तिल के पौधे का बचाव कैसे करें
पत्ती और पॉड कैटरपिलर की रोकथाम करने के लिए कार्बेरिल 10% प्रतिशत से प्रभावित पत्तियों, टहनियों और धूल को हटा दें।
पत्ती और पॉड कैटरपिलर की घटनाओं का प्रबंधन करने हेतु फली बेधक संक्रमण व फीलोडी घटना 7 वें एवं 20 वें डीएएस पर 5 मिलीलीटर प्रति लीटर स्प्रे का इस्तेमाल करें।
पॉड केटरपिलर की रोकथाम करने के लिए 2% कार्बरी सहित निवारक स्प्रे का इस्तेमाल करें।
तिल की फसल की कटाई कब और कैसे की जाती है
तिल की खेती के लिए कटाई प्रातः काल के दौरान करनी चाहिए।
फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब पत्तियां पीली होकर लटकने लगें। साथ ही, नीचे के कैप्सूल पौधों को खींचकर नींबू की भांति पीले रंग का हो जाए।
जब पत्तियां झड़ जाएं तो जड़ वाले हिस्से को काटकर बंडलों में कर दें। उसके पश्चात 3-4 दिन धूप में फैलाएं व डंडों से फेंटें जिससे कैप्सूल खुल जाएं।