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Integrated organic farming

एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान

एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान

जैविक खेती मतलब निर्णय फायदे भरा, ऑर्गेनिक खेती का बढ़ रहा चलन दिन प्रतिदिन डिजिटल होती लाइफ के बीच कृषि में तकनीक एवं रसायन आधारित उपयोग के नुकसान के बाद, किसानों को जैविक खेती (Jaivik Kheti/Organic Farming) के फायदों के बारे में जागरूक कर, इसके उपयोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है। यूरिया जैसे रासायनिक विकल्पों के बजाए केंचुआ (Earthworm) एवं सूक्ष्म जीव (microbe) आधारित जैविक खादों के उपयोग के लिए किसान भी प्रेरित हुए हैं। ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती (Organic Farming/Jaivik Kheti) क्या है, इसे कैसे करते हैं, कौन सा तरीका जैविक खेती के लिए कारगर है। इससे जुड़े लाभ के बारे में जानते हैं मेरी खेती के साथ

जैविक खेती क्या है

जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है जैव आधारित कृषि पद्धति को ही ऑर्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) के नाम से जाना जाता है।

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सूक्ष्म जीवों पर आधारित इस कृषि व्यवस्था में जैविक माध्यम से की जाने वाली प्राकृतिक व्यवस्था की युक्ति अपनाई जाती है। जिस तरह प्रकृति छोटे-छोटे जीव जंतुओं की मदद से बीजारोपण, पौध संरक्षण, भूमि उर्वरता का काम लेती है उसी महत्व को पहचान कर ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) का खाका बुना गया है। सोचिये आधुनिक कृषि तरीकों में जिस मट्ठर भूमि को उर्वर बनाने के लिए कई हॉर्स पॉवर वाले ट्रैक्टरों की दरकार होती है, उस भूमि को लिजलिजा केंचुआ (Earthworm) समूह कैसे रेंगकर बगैर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए शांत तरीके से अंकुरण के लायक बना देता है।

जैविक खेती में इनका प्रयोग वर्जित

कृषि की जैविक खेती आधारित विधि में संश्लेषित उर्वरक (synthetic fertilizers) एवं संश्लेषित कीटनाशक (synthetic insecticide) का प्रयोग वर्जित है। जरूरत होने पर इनका नाममात्र मात्रा में प्रयोग किया जाता है। भूमि की उर्वरा शक्ति के संतुलन के लिए जैविक खेती में फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट जैसी युक्तियों को अपनाया जाता है।

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वैश्विक स्तर पर जैविक उत्पादों का बाजार इन दिनों काफी तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। अजैविक खेती के भूमि और जनस्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल असर के कारण कृषक अब स्वयं भी “जैविक खेती” (Organic farming) के तरीके को अपना रहे हैं। जैविक खेती के राष्ट्रीय केंद्र, राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र (National Centre for Organic and Natural Farming - NCONF) की देखरेख में भारतीय “जैविक खेती” का विकास हो रहा है। इस विधि के विकास में एकीकृत जैविक खेती खासी मददगार है।

एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming)

अंतर्राष्ट्रीय जैविक नियंत्रण संगठन (The International Organization for Biological and Integrated Control) या आईओबीसी (IOBC), यूएनआई 11233-2009 (UNI 11233: 2009) यूरोपीय मानक ने एकीकृत खेती को एक कृषि प्रणाली माना है। किसानी की यह वह प्रणाली है जिसमें उच्च गुणवत्ता से पूर्ण जैविक भोजन, चारा, फाइबर आदि का उत्पादन होता है। इसके साथ ही मिट्टी, पानी, वायु आदि प्राकृतिक विकल्पों के उपयोग से इस प्रणाली में नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन भी संभव है।

एकीकृत जैविक खेती प्रणाली

आईओएफएस (IOFS) यानी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग सिस्टम (Integrated Organic Farming System/IOFS/आईओएफएस) को हिंदी में एकीकृत जैविक खेती प्रणाली के तौर पर पहचाना जाता है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने एकीकृत जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस/IOFS) भारतीय कृषि परिप्रेक्ष्य में विकसित की है ।

एकीकृत जैविक खेती आज की अनिवार्यता

कृषि के समग्र दृष्टिकोण वाली एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) से भूमि की उत्पादकता में स्थायी रूप से वृद्धि होती है। धरती के प्रत्येक जीव के मंगल की कामना करने वाले भारत देश के लिए एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) का विकल्प नया नहीं है, हालांकि इंडिया में तब्दील होते फार्मर्स ने कम समय में ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में कुछ समय के लिए इस बेशकीमती पुस्तैनी रीति की किसानी को बिसरा जरूर दिया।

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प्रकति प्रदत्त गौधन से अलंकृत भारत में गाय के गोबर एवं गौमूत्र एवं भैंस, बकरी, भेड़ के गोबर, लेंड़ी, लीद आधारित किसानी का यह पुराना तरीका सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध चलन के कारण स्मृतियों में कैद होकर रह गया।

एकीकृत जैविक खेती क्या है

एकीकृत जैविक खेती का अर्थ खेत में उपलब्ध खेती किसानी के विकल्पों का पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना सर्वोत्तम उपयोग कर उपभोग की वस्तुएं निर्मित करने से है। इसमें पशुधन जैसे गाय-भैंस, भेड़-बकरी, फसल का आपसी समन्यवय एक दूसरे के लिए खाद, चारा, पानी का प्रबंध करने में मददगार होता हैं। एक तरह से यह प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का प्रकृति के विस्तार में सहयोगी किसानी का तरीका है। मतलब पशुधन से जहां जैविक खाद आदि का प्रबंध होता है, वहीं खेत से मानव एवं पशुओं के लिए अनिवार्य पोषक खाद्य पदार्थों की प्राप्ति होती है।

पैदावार के साथ बढ़ी मुसीबतें

कृषि भूमि पर रसायनिक पदार्थों के धड़ल्ले से हुए उपयोग के कारण अनाज का उत्पादन ज्यादा जरूर हुआ लेकिन इसके बुरे परिणाम के रूप में मिट्टी और इंसान की सेहत भी प्रभावित हुई।

कृत्रिम खेती के नुकसान

मौसमी चक्र के विपरीत कम समय में फसल की पैदावार से लेकर उसके भंडारण में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक पदार्थों के कारण जल, जंगल, जमीन के साथ मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने के वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं। रासायनिक खादों के अमानक उपयोग से जहां भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही है, वहीं रासायनिक खाद की उपज से निर्मित खाद्य पदार्थों के सेवन से शारीरिक विन्यास क्रम पर भी बुरा असर देखा गया है।

जैविक खेती का विकल्प

सिंथेटिक खाद के निर्माण एवं उसके उपयोग के कारण पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे कुप्रभावों के मद्देनजर, जैविक खेती को अपनाना सख्त अनिवार्य हो गया है।

बाजार में अच्छी है मांग

इंटरनेशनल मार्केट में जैविक उत्पाद की डिमांड एवं दाम भी इस प्रणाली की खेती के पक्षधर है। देश के किसान बड़ी संख्या में एकीकृत जैविक खेती का तरीका अपना रहे हैं। खास तौर पर देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में इस विधि से किसानी की जा रही है।

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एकीकृत जैविक खेती के लाभ

एकीकृत जैविक खेती से मृदा का अच्छा स्वास्थ्य बरकरार रहता है एवं इसकी उर्वरता में वृद्धि होती जाती है। सब्जियों और फलों संबंधी बीमारियों को कम करने में भी इससे मदद मिलती है।

इस प्रणाली की खेती से उच्च गुणवत्ता के जैविक उत्पादों का निर्माण संभव है।

मिट्टी की उर्वरता और खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमि बढ़ाने के अवसर भी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग में निहित हैं। फसल पैदावार के दौरान कीट एवं रोग प्रबंधन में जैविक खेती के जैविक उपचार तरीकों के प्रयोग के कारण कीटनाशकों का चलन कम होगा। अंत में कहा जा सकता है कि, एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा, खुशहाल होगा किसान, स्वस्थ होगा इंसान।

इस राज्य में किसानों को जैविक खेती के लिए मिलेगा अनुदान, किसान शीघ्र आवेदन करें

इस राज्य में किसानों को जैविक खेती के लिए मिलेगा अनुदान, किसान शीघ्र आवेदन करें

आजकल किसानों की दिलचस्पी जैविक खेती की तरफ बढ़ती जा रही है। इस वजह से राजस्थान सरकार की ओर से जैविक खेती करने के लिए किसानों को अच्छा-खासा अनुदान मुहैय्या कराया जा रहा है। किसान भाई इसका फायदा उठा सकते हैं। मृदा की घटती उर्वरकता के चलते देश की खेती में फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जाता है। सामान्य रूप से लोग रसायनिक उर्वरकों का उपयोग करते हैं। बाजार में इन उर्वरकों की सुगमता से उपलब्धता एक प्रमुख वजह है। इसका छिड़काव करने में भी काफी समस्या नहीं होती है। साथ ही, जैविक खेती में आर्गेनिक फर्टिलाइजर तैयार करना काफी बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। परंतु, जैविक खाद का मृदा और लोगों की सेहत के हिसाब से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह मृदा और शरीर दोनों के टॉक्सिंस निकालने का कार्य करता है। जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए अब एक प्रदेश ने बड़ी पहल की है।

राजस्थान सरकार की तरफ से जैविक खेती पर अनुदान दिया जा रहा है

कृषकों को जैविक खेती को लेकर जागरूक किया जा रहा है। किसानों का रुख भी जैविक खेती की दिशा में बढ़ रहा है। राजस्थान सरकार भी किसानों को अनुदान प्रदान कर रही है। फिलहाल, राजस्थान सरकार ने इसको लेकर एक अहम पहल की है। राज्य सरकार की तरफ से कृषकों को जैविक खेती पर अनुदान देने का फैसला लिया गया है। ये भी पढ़े: जैविक खेती कर के किसान अपनी जमीन को स्वस्थ रख सकते है और कमा सकते हैं कम लागत में ज्यादा मुनाफा

राजस्थान सरकार कृषकों को कितना अनुदान प्रदान करेगी

राजस्थान सरकार किसानों को जैविक खेती करने पर 50 प्रतिशत तक अनुदान प्रदान किया जा रहा है। बागवानी फसलों में जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए समकुल खर्च का 50 प्रतिशत या अधिकतम 10000 रुपये प्रति हेक्टेयर ही किसान को प्रदान किए जाएंगे। यह धनराशि प्रति हेक्टेयर प्रति लाभार्थी अधिकतम 4 हेक्टेयर क्षेत्र तक तीन वर्षाे में 40 प्रतिशत, 30 प्रतिशत, 30 प्रतिशत के अनुपात के तौर पर दिया जाएगा। अगर किसान जैविक उत्पाद का प्रमाणीकरण कराना चाहता है, तो 50 हेक्टेयर क्लस्टर हेतु 5 लाख रुपये प्रदान किए जाएंगे। इसको भी 3 वर्षों में विभाजित किया गया है। पहले साल में 1.50 लाख रुपये, दूसरे में 1.50 लाख रुपये और तीसरे साल में 2 लाख रुपये का अनुदान दिया जाएगा।

योजना का फायदा लेने के लिए यह बेहद जरुरी है

किसान के पास स्वयं की न्यूनतम 1 एकड़ भूमि होनी अत्यंत आवश्यक है। इसके अतिरिक्त पशुधन, पानी और कार्बनिक पद्धार्थ में मौजूद होने चाहिए। निरंतर 3 साल तक चुने हुए खेत में जैविक विधि से फसल उत्पादन करना चाहता हो। जैविक खेती प्रमाणीकरण हेतु प्रमाणीकरण संस्था से जुड़ने की रूचि भी होनी चाहिए। समस्त फसलों का उत्पादन जैविक ढ़ंग से ही किया जाए। इसमें प्राथमिकता जैविक खेती कार्यक्रम से जुड़े कृषकों को ही दी जाएगी।

राज्य के इन जनपदों के किसान अनुदान का फायदा उठा सकते हैं

राजस्थान के विभिन्न जनपदों के किसान योजना का फायदा उठा सकते हैं। नागौर, पाली, सिरोही, सवाई माधोपुर, टोंक, उदयपुर, बारां, करौली, अजमेर, अलवर, बांसवाडा, बाडमेर, भीलवाड़ा, बूंदी, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, श्रीगंगानगर, जयपुर, जैसलमेर, जालौर, झालावाड़, झुंझुंनू, जोधपुर और कोटा इन्हीं जनपदों में शामिल हैं। ये भी पढ़े: पर्वतीय क्षेत्रों पर रहने वाले किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने सुझाई विदेशी सब्जी उत्पादन की नई तकनीक, बेहतर मुनाफा कमाने के लिए जरूर जानें

किसान भाई यहां आवेदन कर सकते हैं

राज्य के कृषकों को अनुदान प्राप्त करने के लिए आवेदन करना बेहद आवश्यक है। किसानों को इसके लिए अपने नजदीकी ई-मित्र केंद्र पर जाना होगा। अगर किसान चाहे तो अपने आपको ई-मित्र खाते से आवेदन कर सकते हैं। जैविक खेती के लिए किसी भी प्रकार के शुल्क की व्यवस्था नहीं की गई है। इसके लिए दस्तावेजों के तौर पर किसान का शपथ पत्र, जमाबंदी की कॉपी, एड्रेस प्रूफ की कॉपी, बैंक पासबुक की कॉपी जैसे दस्तावेज होने जरूरी हैं। किसानों को अनुदान आरटीजीएस के जरिए से भेजी जाएगी।