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राजस्थानः किसान संग मछली और पशु पालकों की भी चांदी, जीरो परसेंट ब्याज पर मिलेगा लोन

राजस्थानः किसान संग मछली और पशु पालकों की भी चांदी, जीरो परसेंट ब्याज पर मिलेगा लोन

इस साल 20 हजार करोड़ का ब्याज मुक्त फसली लोन देगी राजस्थान सरकार, पांच लाख नए किसान जोड़ने की तैयारी

राजस्थान सरकार ने इस साल 5 लाख नए सदस्य किसानों को शून्य प्रतिशत पर फसली ऋण का लाभ देने का निर्णय किया है। यह निर्णय इसलिए अहम है क्योंकि इस ऋण सुविधा का लाभ किसानों के साथ ही मत्स्य एवं पशु पालकों को भी मिलेगा।
सहकारिता विभाग की प्रमुख शासन सचिव श्रेया गुहा ने इस बारे में निर्देश दिए हैं। मत्स्य एवं पशु पालकों को भी जीरो परसेंट ब्याज पर लोन प्रदान करने के लिए विभागों को निर्देश जारी किए गए हैं।


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प्रबंध निदेशकों की बैठक

अपेक्स बैंक में सभी केन्द्रीय सहकारी बैंकों के प्रबंध निदेशकों की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित हुई। सहकारिता विभाग की प्रमुख शासन सचिव श्रेया गुहा ने इस बैठक को संबोधित किया। संबोधन के दौरान उन्होेंने जीरो परसेंट ब्याज पर लोन प्रदान करने के संबंध में निर्देश देकर सहकारी कार्यों की समीक्षा की।

नए सदस्य किसानों को जोड़ने का लक्ष्य

बैठक में गुहा ने कहा कि, मछली और पशु पालकों को भी शून्य प्रतिशत ब्जाज दर पर लोन प्रदान करने से मछली एवं पशु पालन करने वाले लोगों की भी आवश्यक्ताओं की पूर्ति होगी। उन्होंने अधिक से अधिक नए सदस्य किसानों को फसली ऋण से जोड़ने के बारे में भी विभागों को निर्देश दिए। इस साल सरकार के लक्ष्य के अनुसार 5 लाख नए सदस्य किसानों को शून्य फीसदी ब्याज पर फसली ऋण का लाभ प्राप्त हो सकेगा।


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टारगेट बढ़ाया

राजस्थान में इस साल 20 हजार करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त फसली कर्ज बांटने का टारगेट तय किया गया है। पिछले साल की बात करें, तो साल 2021-22 में कृषकों को 18,500 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।

ब्याज मुक्त कर्ज का विस्तार

पहले इस लोन योजना के तहत किसानों को शामिल किया गया था। अब मछली और पशु पालने वालों को भी दायरे में शामिल कर लेने से निश्चित ही ब्याज मुक्त कर्ज योजना का विस्तार हो जाएगा। दी गई जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने पिछले टारगेट के आसपास किसानों को कर्ज प्रदान कर दिया है। सरकारी निर्णय से अब क्रेडिट कार्ड की तरह ब्याज मुक्त लोन में भी मछली और पशु पालन को जोड़ने से ज्यादा वर्ग के जरूरतमंद लोगों को आर्थिक मदद मिल सकेगी।


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व्यवसाय विविधीकरण

ग्राम सेवा सहकारी समितियों की स्वयं की आवश्यकता के साथ ही आस-पास के लोगों की जरूरतों को भी पूरा करने के उद्देश्य से ग्राम सेवा सहकारी समितियों को व्यवसाय के विविधीकरण के लिए भी प्रेरित करने के निर्देश बैठक में दिए गए।

समितियों का गठन

बैठक में सभी बैंकों को यह सुनिश्चित करने निर्देशित किया गया कि, आजीविका से जुड़े स्वयं सहायता समूहों को जरूरत के मुताबिक लोन मिल सके। गुहा ने बताया कि, इस साल 25 करोड़ रुपए का ऋण सहायता समूहों कोे प्रदान किया जाएगा। इस प्रक्रिया के अंतर्गत पंचायत स्तर पर ग्राम सेवा सहकारी समितियों का गठन किया जाएगा। ग्राम सेवा सहकारी समितियों को अपनी आय के लिए केवल फसली ऋण वितरण तक ही सीमित नहीं रहने के लिए भी बैठक में निर्देशित किया गया।


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सहकारी बैंक करें नियमों का पालन - गुहा

सहकारिता विभाग की प्रमुख शासन सचिव श्रेया गुहा ने सहकारी बैंकों को कमर्शियल बैकों की तरह अपडेट रहने के लिए निर्देशित किया। उन्होंने सहकारी बैंकों की स्थिति में सुधार के लिए नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक / NABARD) और आरबीआई (RBI - Reserve Bank of India) के नियमों का सख्त पालन करने निर्देश दिए।

कर्मचारियों की होगी भर्ती

बैठक में अपने संबोधन में गुहा ने कहा कि, बैंकों में कर्मचारियों की भर्ती की जाएगी। इस प्रक्रिया के तहत 500 से अधिक कर्मचारियों की भर्ती के लिए अतिशीघ्र विज्ञप्ति जारी की जाएगी। उन्होंने जुलाई माह तक सभी पैक्स का ऑडिट सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।
ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए स्टार्टअप्स को बढ़ावा देगी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी

ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए स्टार्टअप्स को बढ़ावा देगी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी

चंडीगढ़। ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं और किसानों के लिए चौ. चरन सिंह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (Chaudhary Charan Singh Haryana Agriculture University (CCSHAU) Hisar, Haryana ) स्टार्टअप्स (startups)  को बढ़ावा देने जा रही है। ऐसे किसान जो अपनी फसल के उत्पादन को बदलना चाहते हैं, उनके लिए यह अच्छा विकल्प हो सकता है।

वास्तव में चौ. चरन सिंह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हरियाणा ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है।

एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन सेंटर (एबीक - (Agri-business Incubation Centre -ABIC)) चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (सीसीएसएचएयू) हिसार, हरियाणा में होस्ट किया गया है और नेशनल बैंक ऑफ एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) द्वारा समर्थित है। एबीक कृषि व्यवसाय और उद्यमिता विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी के उत्थान व नवीनीकरण और कौशल विकास का सहारा लेगी। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी इस योजना के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाना चाहती है। यूनिवर्सिटी इस योजना से किसानों और बेरोजगार युवाओं को जोड़कर स्टार्टअप के लिए नई तकनीकी व आर्थिक सहायता उपलब्ध कराएगी।

65 कम्पनियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है पिछले तीन सालों में

हरियाणा की चौ. चरन सिंह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता के अनुसार पिछले तीन सालों में 65 कम्पनियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। इससे बेरोजगार युवाओं और किसानों को स्वरोजगार स्थापित कराने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही इच्छुक उम्मीदवारों को पूर्ण तकनीकी जानकारी प्रदान की जाएगी। अब तक इस योजना के लिए 27 इनक्यूबेटि (incubatee) को 3.15 करोड़ रुपए का अनुदान राशि प्राप्त हो चूका है, जो 250 से अधिक लोगों को स्वरोजगार प्रदान करने जा रहा है।
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सामाजिक संस्था नाबार्ड भी कर रही है सहयोग

एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की इस योजना को सफल बनाने के लिए सामाजिक संस्था नाबार्ड भी भरपूर सहयोग कर रही है। एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन सेंटर (एबीक) को अपनी गतिविधियों को बढाने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए और नाबार्ड ऐसे प्रयास में अपना योगदान देने को तैयार रहती है। पिछले दशकों से लगातार एबीक का प्रदर्शन काफी शानदार रहा है। केन्द्र ने भी विशेष तौर पर इसकी सराहना की है।
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युवाओं के लिए बेहतर विकल्प

इस योजना के अंतर्गत किसानों को स्वरोजगार के साथ-साथ युवाओं को भी शामिल किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजना युवाओं के लिए एक बेहतर विकल्प है। किसानों के उत्पादों की प्रोसेसिंग, मूल्य संवर्धन, पैकेजिंग, ब्रांडिंग और सर्विसिंग तमाम महत्वपूर्ण कार्यों के लिए मार्गदर्शन के साथ वो अपना खुद का एक व्यवसाय खड़ा कर सकते हैं। जो भविष्य के लिए अच्छा अवसर हो सकता है। ------ लोकेन्द्र नरवार
आंध्र प्रदेश ने पंजाब को इस मामले में पीछे छोड़ प्रथम स्थान हासिल किया।

आंध्र प्रदेश ने पंजाब को इस मामले में पीछे छोड़ प्रथम स्थान हासिल किया।

आंध्र प्रदेश आज कृषि के क्षेत्र में अच्छे राज्य की भूमिका अदा कर रहा है। यहां के किसानों को खेती के लिए कर्ज देने में आंध्र प्रदेश सरकार प्रथम स्थान पर आ गयी है। हालाँकि आजकल हर राज्य सरकार अपने अपने राज्यों के किसानों के लिए भांति भाँति की योजनाएं ला रही हैं, जिससे उनके राज्यों के किसान अच्छा मुनाफा और पैदावार हासिल कर सकें। साथ ही कृषि जगत से जड़ी नवीनतम तकनीकों को अपना कर एक आय का बेहतर स्त्रोत बना सकें। आंध्र प्रदेश सरकार राज्य के किसानों की बेहतरी के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। बतादें कि आंध्र प्रदेश के किसानों को आज पहले से अधिक खेती करने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड; NABARD) के दस साल के एक शोध से पता चला है। नाबार्ड के शोध में बताया गया है कि भारत में आंध्र प्रदेश किसानों को खेती के लिए कर्ज देने में प्रथम स्थान पर है। अध्ययन के अनुसार १० वर्षों से ज्यादा वक्त तक सर्वोच्च स्थान पर अड़िग पंजाब द्वितीय फिसलकर दूसरे नंबर पर आ गया है। नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट ने 2011-12 और 2021-22 के मध्य कृषि उद्योग हेतु कर्ज संवितरण के आंकड़ों की जांच पूर्ण की है।

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बैंकों से ऋण की उच्च दर प्राप्त हो सकती है

शोधानुसार, आंध्र प्रदेश सरकार ने किसानों को आर्थिक सहायता देने के लिए विभिन्न योजनाओं के जरिये प्रयास किये हैं। सरकार का यह प्रयास काफी सफल भी रहा है। इसी वजह से आंध्र प्रदेश के किसानों को पंजाब की अपेक्षा में 1 लाख प्रति हेक्टेयर की तुलना में लगभग 129 लाख प्रति हेक्टेयर भूमि मिली है। शोधकर्ताओं ने बताया है कि आंध्र प्रदेश में किसानों को तंबाकू, कपास, हल्दी और मिर्च सहित नकदी-समृद्ध वाणिज्यिक फसलों की अच्छी खेती के अनुरूप बैंकों से कर्ज लिया जाता है। मीडिया के अनुसार, पूर्व वर्ष में सर्वाधिक कर्ज भारत के दक्षिणी भाग से था। बतादें कि २०११ में केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश सहित कर्नाटक राज्य का प्रति एक किसान परिवार बकाया कर्ज की सर्वाधिक औसत राशि वाले परिवार थे। जिसमें हर एक किसान परिवार कर्ज का कुल ७४,१२१ , आंध्र प्रदेश और केरल में क्रमशः 2.45 लाख रुपये और 2.42 लाख रुपये हैं।
जल्द ही इस राज्य के 3.17 लाख किसानों को मिलेगा बिना ब्याज का फसल ऋण

जल्द ही इस राज्य के 3.17 लाख किसानों को मिलेगा बिना ब्याज का फसल ऋण

केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए लगभग सभी राज्य सरकारें अपने स्तर पर प्रयास भी कर रही हैं। जिसके अंतर्गत सरकारें किसानों को खाद बीज से लेकर सौर कृषि सिंचाई पंप तक उपलब्ध करवा रही हैं, ताकि किसान अपनी उत्पादकता को तेजी से बढ़ा सकें। खेती करने के लिए किसानों को सरकारें ऋण भी उपलब्ध करवाती हैं, ताकि किसानों को धन की कमी न पड़े। कई बार तो किसानों की ब्याज भी सरकारें खुद ही वहन करती हैं, ताकि किसानों के ऊपर अतिरिक्त बोझ न पड़े।


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इस कड़ी में राजस्थान सरकार भी अपने किसानों का खास ख्याल रखते हुए उन्हें धन उपलब्ध करवा रही है। ताकि किसानों को पैसों की तंगी का सामना न करना पड़े। राजस्थान की कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कहा है, कि राज्य सरकार राजस्थान के किसानों को लोन देने की योजना में 3.17 लाख अतिरिक्त किसानों को शामिल करने जा रही है। जिसमें किसानों को बिना ब्याज के लोन बांटा जाएगा, साथ ही यह काम मार्च 2023 के पहले पूर्ण कर लिया जाएगा। इसके पहले किसानों को लोन देने की योजना के अंतर्गत इस साल नवम्बर माह तक सरकार ने 26.92 लाख किसानों को लोन बांटा है। इस योजना के अंतर्गत सरकार ने किसानों को अब तक 12 हजार 811 करोड़ रुपये का लोन दिया है। राजस्थान सरकार ने इस योजना में इस साल 1.29 लाख नए किसानों को जोड़ा है। अब इस योजना को आगे बढ़ाते हुए राज्य सरकार सभी किसानों को सहकारी समितियों के साथ जोड़ रही है। जो किसानों को बेहद आसानी से लोन उपलब्ध करवाती हैं।


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किसानों को लोन उपलब्ध करवाने की जानकारी सहकारिता विभाग के अधिकायों ने एक बैठक में दी। यह बैठक जयपुर स्थित अपेक्स बैंक के हॉल में पूर्ण हुई। इस अवसर पर अधिकारियों ने बताया कि राज्य सरकार किसानों को बिना ब्याज का ऋण उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए राज्य सरकार नेशनल बैंक फॉर रूरल एंड एग्रीकल्चर डेवलपमेंट (नाबार्ड) की योजनाओं का उपयोग करेगी। अपेक्स बैंक के हॉल में हुई मीटिंग में अधिकारियों ने बताया कि सरकार लगातार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रयत्न कर रही है। इसको ध्यान में रखते हुए किसानों को एग्री बिजनेस के मॉडल से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। अगर केंद्र सरकार की बात करें तो केंद्र सरकार ने खेती बाड़ी को बढ़ावा देने के लिए एग्री क्लिनिक-एग्री बिजनेस सेंटर योजना की भी शुरुआत की है। इन योजनाओं का लाभ उठाकर किसान भाई कृषि का धंधा या कृषि स्टार्टअप की शुरुआत कर सकते हैं, जिससे किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने में मदद मिल सकती है।


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इसके साथ ही बैठक के दौरान बताया गया कि एग्री क्लिनिक-एग्री बिजनेस सेंटर योजना के अंतर्गत सरकार किसान को 45 दिनों का प्रशिक्षण देती है। यह प्रशिक्षण सरकार की तरफ से कृषि लोन या आर्थिक सहायता मिलने से पहले ही दिया जाता है। जिससे किसान को कई तरह के फायदे होते हैं ओर वह अपने बिजनेस को तेजी से आगे बढ़ा सकता है। पहले जहां किसानों को सहकारी समितियों से सीमित मात्रा में ही लोन मिलता था और उसके लिए किसानों को बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ती थी। लेकिन अब स्थिति परिवर्तित हो रही है। अगर वर्तमान की बात करें तो अब एग्री बिजनेस यानी कृषि से जुड़ा कोई भी व्यवसाय करने के लिए नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) बहुत आसानी से लोन उपलब्ध करवाता है। यह लोन 20-25 लाख रुपये तक हो सकता है, जिसके लिए किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना होता है।


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अगर किसानों को आर्थिक तौर पर सशक्त करने की बात करें, तो केंद्र सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं। जिन योजनाओं के माध्यम से किसानों को सब्सिडी उपलब्ध कारवाई जा रही है ताकि किसानों के ऊपर अतिरिक्त बोझ न पड़ने पाए। यह सब्सिडी ऋण पर लगने वाले ब्याज पर दी जाती है, जो 36 प्रतिशत से 44 प्रतिशत तक हो सकती है। इस सब्सिडी योजना में समान्य वर्ग के किसान को ब्याज पर 36 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है जबकि एससी-एसटी और महिला आवेदकों को ब्याज पर 44 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाती है। केंद्र सरकार की योजना के अनुसार यदि 5 या 5 से अधिक किसान ऋण लेने के लिए एक साथ आवेदन करते हैं, तो उन्हें 1 करोड़ रुपये तक का ऋण दिया जा सकता है, साथ ही केंद्र सरकार किसानों को प्रशिक्षण भी दिलवाती है।
कॉम्पैक्ट या यूटिलिटी (Compact or Utility): कौनसा ट्रैक्टर है आपके लिए सही?

कॉम्पैक्ट या यूटिलिटी (Compact or Utility): कौनसा ट्रैक्टर है आपके लिए सही?

खेती बाड़ी में ट्रैक्टर का बड़ा अहम रोल है। खेती से जुड़े हुए काफी सारे यंत्र ट्रैक्टर से जोड़कर ही चलाए जाते हैं, जिससे किसानों को ज्यादा श्रम नहीं करना पड़ता है। इसके साथ ही, खेती में लगने वाली लागत और भी इससे बच जाती है।

देशभर में कई बड़ी ट्रैक्टर कंपनियां एक से एक बढ़िया मॉडल बना रही है। किसानों के लिए ये वन टाइम इन्वेस्टमेंट है, क्योंकि यह काफी महंगा पड़ता है। ऐसा नहीं है, कि हर साल किसान नए-नए ट्रैक्टर खरीद सकते हैं। इसलिए एक ही बार इससे खरीदते समय कौनसी बातें ध्यान में रखनी ज़रूरी है?

सबसे पहले किसानों को अपने क्षेत्र, जरुरत और बजट के हिसाब से ट्रैक्टर खरीदना चाहिए। ट्रैक्टर को 2 केटेगरी में बांट सकते हैं।

  • कॉम्पैक्ट ट्रैक्टर (Compact Tractor)
  • यूटिलिटी ट्रैक्टर (Utility Tractor)
यह दोनों ही ट्रैक्टर अलग-अलग तरीके से काम करते हैं। अच्छा रहेगा आप ट्रैक्टर खरीदने से पहले इन दोनों के बारे में जान लें।

क्या है यूटिलिटी ट्रैक्टर

यूटिलिटी ट्रैक्टर (Utility Tractor) को आल इन वन ट्रैक्टर कहते हैं। क्योंकि इससे खेती से जुड़ा हर काम किया जा सकता है। अच्छी बात यह है, कि पहाड़ी और बर्फीले इलाकों में भी एक ट्रैक्टर कारगर है। 

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बर्फ जमने पर भी इस ट्रैक्टर की मदद से आसानी से बर्फ को साफ किया जा सकता है। इन ट्रैक्टरों में 40 एचपी से 100 एचपी तक की हॉर्स पावर होती है, जो खेतों की जुताई से लेकर खाद, उर्वरक, अनाज, फल, सब्जी आदि की ढुलाई के साथ-साथ फ्रंट एंड लोडर के तौर पर भी काम करते हैं।

कॉम्पैक्ट ट्रैक्टर क्या है

हमने बहुत बार देखा है, कि कुछ बड़ी कृषि परियोजनाओं के लिए छोटे साइज के ट्रैक्टरों का इस्तेमाल किया जाता है। यह ट्रैक्टर 25 से 60 हॉर्स पावर के होते हैं। यह मूल्य के हिसाब से सस्ते होते हैं। लेकिन सभी काम अच्छे से कर लेते हैं।

यह ट्रैक्टर छोटे किसानों के लिए बेहद सुविधाजनक माने जाते हैं। जाहिर है, कि छोटे किसानों का ज्यादा बजट नहीं होता है। ऐसे में नाबार्ड से लोन लेकर भी कॉम्पैक्ट ट्रैक्टर (Compact Tractor) खरीद सकते हैं और अपनी खेती-किसानी को आधुनिक बना सकते हैं।

दोनों में क्या है अंतर

आमतौर पर कॉम्पैक्ट ट्रैक्टरों को ज्यादा अच्छा माना जाता है। क्योंकि ये ज्यादा अच्छे से सभी काम संभाल सकते हैं। इन ट्रैक्टरों का वजन और बनावट काफी मजबूत होती है। वहीं सब कॉन्पैक्ट वाहनों के मुकाबले कॉम्पैक्ट ट्रैक्टर में ज्यादा अच्छी ग्राउंड क्लीयरेंस भी है। 

कॉम्पैक्ट ट्रैक्टर का मॉडल कम खर्च में अधिक कार्य क्षमता को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है। जो छोटे और संकरीले रास्तों से भी आसानी से निकल जाता है। अगर देखा जाए तो ट्रैक्टर खरीदना पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है। कि आप इसका क्या इस्तेमाल करने वाले हैं। 

अगर आप कमर्शियल तौर पर खेती करना चाहते हैं, तो यूटिलिटी ट्रैक्टर इस्तेमाल करना सही है। सामान्य खेती-बाड़ी के लिए कॉम्पैक्ट ट्रैक्टर लाभकारी रहता है। ऐसे में अपनी जरुरत के हिसाब से ट्रैक्टर लें।

दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

किसानों के लिए तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय ने रिसर्च के बाद एक नया सॉल्यूशन विकसित किया है। इतना ही नहीं इस सॉल्यूशन से फल और सब्जियों को लंबे समय तक फ्रेश रखने में मदद मिलेगी। तमिलनाडू के कोयम्बटूर में तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय जो कि अब सौ साल पुराना हो चुका है। उसके परिसर में नैनो विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग देश में खेती की अच्छी गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने के लिए नैनो सॉल्यूशन पर काम जारी है। बताया जा रहा है कि, इसमें खेती के काफी सारे इनपुट का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसमें उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार और कवक नासी जैसी चीजें शामिल हैं। हालांकि सिर्फ 20 से 30 फीसद ही फसलें इनका इस्तेमाल करती हैं। जिसका बाकी का बचा हुआ हिस्सा मिट्टी के अवशेषों के रूप में रह जाता है। जा फिर जमीन में मिल जाता है।

अनुसंधान के निदेशक ने की स्थापना

अनुसंधान के निदेशक केएस सुब्रमण्यन भारत के सबसे अग्रिणी लोगों में शामिल हैं। सुब्रमण्यन के पास नैनो प्रोद्योगिकी कृषि सहायता के सेक्टर में सालों का अनुभव है। साल 2017 में NABARD ने TNAU में नैनो साइंस और प्रौधोगिकी विभाग में बर्ड प्रोफेसर चेयर को स्थापित किया। साल 2017 से साल 2020 में करीब एक करोड़ रुपये की आर्थिक मदद के साथ सुब्रमण्यम को लगभग तीन सालों के लिए इसकी जिम्मेदारी सौंप दी गयी। इसके आलवा TANU नव प्रदूषण को कम करने के अलावा, फसलों की अच्छी उपज और अच्छे उत्पादन के साथ साथ फलों और सब्जियों को लंबे समय तक तरो ताजा बनाने के लिए नैनी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रिसर्च और विकास किया। जानकारी के लिया बतादें कि, कृषि इनपुट की क्षमता में सुधार करने के लिए नैनो प्रौद्योगिकी सहायता करती है। इसके लिए उत्पादों का इस्तेमाल प्रभावी लागत के साथ सटीक और सही मात्रा और लेवल तक किया जा सकता है।

नैनो उत्पाद सरकारी खजाने में लाएगा बचत

देश में लगभग एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कीमत के उर्वरकों का आयात किया जाता है। साथ ही, नैनो उत्पादन सरकार खजाने में काफी बचत भी करने में मददगार हो सकता है। सुब्रमण्नयम के मुताबिक यूरिया की 5 सौ मिलीलीटर की बोतल युरिया के 50 किलो बैग के बराबर होती है। वहीं, 5 सौ एमएल यूरिया की कीमत लगभग दो सौ से ढ़ाई सौ के बीच में है। जो कि एक एकड़ जमीन के लिए काफी होती है। ये भी पढ़ें: नैनो डीएपी के व्यवसायिक प्रयोग को मंजूरी, जल्द मिलेगा लाभ

नैनो सॉल्यूशन से होगी फलों और सब्जियों की सुरक्षा

नैनो उत्पाद का इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ मिल सकते हैं। देश में हर साल करीब 330 मिलियन टन फलों और सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। जो कि पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर है। लेकिन हर तीन में से एक फल यानि की लगभग 35 फीसद फल और सब्जी खराब हो जाते हैं। TNAU परियोजना के तहत फलों को संरक्षित करने और उन्हें लंबे समय तक ताजा बनाए रखने और कचरे को कम करने के लिए नैनो उत्पादों की एक सीरीज तैयार की गयी है। हालांकि, तमिलनाडू में आम और केले की खेती के लिए इस प्रयोग को किया जा रहा है। इसके पीछे सिर्फ एक ही सोच है, और वो ये है कि, नुकसान का 10 फीसद कम किया जा सकता है। इससे देश के हिस्से बड़ी बचत आ सकती है।

किसानों को हो रहा फायदा

5 हजार से ज्यादा किसानों ने आम और केले की खेती के लिए इस फार्मुलेशन का इस्तेमाल किया है। इससे उन्हें काफी फायदा भी हुआ है। यह किसान कृष्णागिरी, थेनी, डिंडीगुल और कन्याकुमारी जिले के थे। वहीं 80 फीसद किसानों के अनुसार उपज में काफी हद तक बीमारी में कमी हुई है और इससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ है।

बीजों के लिए आ गया नैनो समाधान

नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग प्रसंस्करण की लैब में बीजों की परत चढ़ाई जाती है। जिसमें कपास, मूंग, धान और भिंडी के बीजों में सूक्ष्म नैनो फाइबर लगाया जाता है। जिसमें सभी तरह के पोषण, कीटों से सुरक्षण के साथ साथ विकास भी शामिल है। इसके लिए पहले से ही बीजों को तैयार कर लिया जाता है। जो किसानों के लिए मददगार होते हैं। जिसके बाद उनके उपचार से लेकर कीटनाशकों से जुड़ी टेंशन नहीं लेनी पड़ती।

TNAU में विकसित उत्पादों में से एक नैनो यूरिया

नैनो यूरिया का इस्तेमाल तमिलनाडु के बवानी सागर एरिया में करीब दस एकड़ चावल और मक्के पर किया जा चुका है। जोकि काफी सफल रहता है। साथ ही इसकी उपज में 10 से 15 फीसद तक बढ़ोतरी हुई है। जिसे देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देश के 11 हजार जगहों पर परीक्षण किया। जिसमें से कुल 650 कृषि विज्ञान केन्द्रों के जरिये नैनो यूरिया को बांटा गया। साल 2022 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के पहले नैनो यूरिया लिक्विड सयंत्र का उद्घाटन किया था। जो उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ किसानों की इनकम को बढ़ाने में भी मददगार साबित हुआ था। इसे साइंटिफिक रूप से मान्य और जैव सुरक्षा परीक्षण किया गया। जहां साल 2021 में उर्वरकों को कंट्रोल आदेश के द्वारा देश में पहले नैनो उर्वरक की अधिसूचना में मदद मिली।

नैनो तकनीक को किया सूचीबद्ध

किसानों के लिए सबसे चैलेंजिंग काम फसलों की बिमारियों का पता लगाने के साथ-साथ मिट्टी में नाइट्रोजन और नमी का लेवल नापने और इस बात को सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन किसी तरह का हानिकारक है या नहीं। किसानों द्वारा इन सब चीजों का पता नैनो तकनीक के माध्यम से किया जा रहा है। हाल ही में नैनो उपकरणों को किसानों से जोड़ने का काम किया जा रहा है। इससे किसानों को उनकी फसलों में अगर कोई कमी मिलती है, तो उन्हें मैसेज के जरिये कांटेक्ट किया जा सकता है।

चुनौतियों को समझना भी मुश्किल

नैनो तकनीक में कई तरह की सम्भावनाएं हैं। लेकिन इसका सही इस्तेमाल करने के लिए काफी चुनौतियों को पार करना होगा। इसमें सबसे बड़ी चुनौती की बात की जाए तो, इसके विकास को जारी रखने के लिए आर्थिक चुनौती में मदद की थी। इसके अलावा प्रयोगकर्ता और किसानों से लेकर नीति निर्माताओं और लोगों के बीच प्रयोगशालाओं में क्या हो रहा है, इससे जुड़ी जागरूकता होनी भी जरूरी है। ताकि अनुसंधान और विकास को फायदा मिल सके।
इस राज्य में धान की खेती के लिए 80 फीसद अनुदान पर बीज मुहैय्या करा रही राज्य सरकार

इस राज्य में धान की खेती के लिए 80 फीसद अनुदान पर बीज मुहैय्या करा रही राज्य सरकार

किसानों की उन्नति एवं प्रगति के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है बिहार सरकार की तरफ से किसानों के लिए सहूलियत प्रदान की गई है। राज्य के किसान भाइयों को 50 से 80 प्रतिशत तक के अनुदान पर धान का बीज मुहैय्या कराया जा रहा है। किसान भाइयों को सस्ती दर पर बीज प्राप्त हो जाएगा। धान हो या गेहूं समस्त फसलों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से कवायद की जा रही है। बिहार राज्य के अंतर्गत भी लाखों की तादात में किसान खेती-किसानी से जुड़े हैं। राज्य सरकार का प्रयास कोशिश यही रहता है, कि किसान भाइयों को अनुदानित दर पर बीज प्राप्त हो सके। प्रत्येक किसान अच्छी गुणवत्ता का बीज हांसिल कर सके। अब धान की पैदावार को लेकर बिहार सरकार द्वारा किसानों को बड़ी राहत प्रदान की है। किसानों को बीज अच्छे-खासे अनुदान पर उपलब्ध कराया जा रहा है। राज्य सरकार ने बताया है, कि किसान निर्धारित समय सीमा तक पंजीकरण करवाके धान का बीज प्राप्त कर सकते हैं।

बिहार सरकार 80 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

बिहार सरकार की तरफ से मधेपुरा जनपद में धान की खेती को बढ़ावा देने के लिए बीज पर मोटा अनुदान दिया जा रहा है। बिहार सरकार अच्छी गुणवत्ता के बीज 50 से 80 प्रतिशत अनुदान पर मुहैय्या करा रही है। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है, कि अनुदान पर बीज देने को लेकर कृषकों को जागरूक किया जा रहा है। किसान भाइयों को 3 किस्मों के बीजों पर अनुदान प्रदान किया जाएगा। ये भी पढ़े: इस राज्य सरकार ने की घोषणा, अब धान की खेती करने वालों को मिलेंगे 30 हजार रुपये

पंजीकरण की प्रक्रिया 30 मई तक ही हो पाएगी

कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है, कि अनुदान पर बीज प्राप्त करने के लिए किसानों का पंजीकरण होना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए किसानों को अधिकारिक वेबसाइट पर जाकर पंजीकरण करवाना होगा। पंजीकरण कराने की आखिरी तारीख 30 मई है। इसके उपरांत आवेदन मंजूर नहीं किए जाएंगे। इसके पश्चात विभागीय स्तर से आवेदकों का सत्यापन सुनिश्चित कराया जाएगा। जो किसान असलियत में पात्र हैं, उनको 15 मई से बीज बाटने की प्रक्रिया चालू कर दी जाएगी।

इस तरह अनुदान प्राप्त हो रहा है

कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है, कि मुख्यमंत्री तीव्र बीज उत्थान योजना के अंतर्गत धान के बीज पर 80 प्रतिशत तक अनुदान प्रदान किया जाएगा। वहीं, बीज वितरण योजना के अंतर्गत किसान को 50 फीसद अनुदान मुहैय्या कराया जाएगा। मधेपुरा जनपद में होने वाली सर्वाधिक धान की खेती संकर धान पर 50 फीसद तक अनुदान मिलेगा। बतादें, कि बिहार राज्य धान की खेती के लिए काफी मशूहर है। परंतु, विगत वर्ष बारिश कम होने की वजह से धान के उत्पादन रकबे में 4.32 लाख हेक्टेयर तक गिरावट दर्ज हुई है।
बिहार सरकार कोल्ड स्टोरेज खोलने पर 50% प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

बिहार सरकार कोल्ड स्टोरेज खोलने पर 50% प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

एकीकृत बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत राज्य में कोल्ड स्टोरेज यूनिट की स्थापना हेतु किसानों को अनुदान देने का निर्णय किया गया है। बिहार राज्य में पारंपरिक खेती समेत बागवानी फसलों का भी उत्पादन किया जाता है। बिहार राज्य के किसान सेब, अंगूर, केला, अनार, आम और अमरूद की खेती बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। इससे कृषकों की आय में काफी बढ़ोत्तरी भी हुई है। परंतु, कोल्ड स्टोरेज के अभाव की वजह से किसान उतना ज्यादा लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार द्वारा इस परेशानी को दूर करने के लिए किसानों के फायदे हेतु बड़ा निर्णय लिया है। सरकार के इस निर्णय से प्रदेश में बागवानी फसलों की खेती में अत्यधिक गति आएगी। साथ ही, कृषकों की आमदनी में भी इजाफा हो सकता है।

कोल्ड स्टोरेज से किसानों को काफी फायदा होगा

बिहार सरकार ऐसा मानती है, कि कोल्ड स्टोरेज होने से किसानों की आमदनी बढ़ जाएगी। बाजार में कम भाव होने पर वह अपनी फसल को कोल्ड स्टोरेज में स्टोर कर सकते हैं। जैसे ही भाव में वृद्धि आएगी, वह इसको बाजार में बेच सकते हैं। इससे अच्छा भाव मिलने से किसानों की आमदनी निश्चित रूप से बढ़ेगी। वैसे भी कोल्ड स्टोर के भीतर बहुत दिनों तक खाद्य पदार्थ बेकार नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में किसान भाई हरी सब्जियों एवं फल की तुड़ाई करने के उपरांत कोल्ड स्टोरेज में रखेंगे तो फसलों का खराब होना भी कम हो पाएगा। साथ ही, काफी समय तक वह खराब नहीं होंगे।

बिहार सरकार किसानों को 4000 रुपये अनुदान स्वरूप प्रदान करेगी

बिहार सरकार द्वारा एकीकृत बागवानी मिशन योजना के चलते कोल्ड स्टोरेज यूनिट (टाइप-1) की स्थापना करने के लिए 8000 रुपये की लागत धनराशि तय की गई है। बिहार सरकार की तरफ से इसके लिए किसान भाइयों को 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। ऐसी स्थिति में कृषकों को 4000 रुपये मुफ्त में प्राप्त होंगे। जो किसान भाई इस योजना का फायदा उठाना चाहते हैं, तो वह कृषि विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।

आम उत्पादन के मामले में बिहार कौन-से स्थान पर है

जानकारी के लिए बतादें, कि बिहार में बागवानी की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। आम के उत्पादन के मामले में बिहार पूरे भारत में चौथे स्थान पर आता है। तो उधर लीची की पैदावार के मामले में बिहार का प्रथम स्थान पर है। मुज्फ्फरपुर की शाही लीची पूरी दुनिया में मशहूर है। बतादें, कि इसके स्वाद की कोई टक्कर नहीं है। इसके उपयोग से जूस एवं महंगी- महंगी शराबें तैयार की जाती हैं।