अचानक जनवरी में गेंहू के बढ़े भाव को एफसीआई ने किया नियंत्रित
आपको याद दिलादें कि जनवरी माह में आकस्मिक गेंहू के भाव में बढ़ोत्तरी हो गई थी। निश्चित रूप से इसकी वजह से आटा के दाम भी खूब बढ़ गए थे। जो आटा 30 से 35 रुपये किलो में बिकता था, उस आटे का भाव 40 से 45 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से हो गया था। इससे आम जनता काफी प्रभावित हुई थी उनके रसोई का बजट खराब हो गया और उनकी थाली से रोटी तक गायब हो गई थी। ऐसी स्थिति में महंगाई की वजह से केंद्र सरकार भी काफी चिंता में पड़ गई। जिसके उपरांत एफसीआई द्वारा गेहूं की ई-नीलामी आरंभ की गई। इससे महंगाई पर रोकथाम लगाई गई है।
इस वर्ष होगी गेंहू की बेहतरीन पैदावार : केंद्र सरकार
केंद्र सरकार का कहना है, कि गर्मी के बढ़ने का गेहूं की फसल पर कोई प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। फिलहाल, किसान भाइयों को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। केंद्र सरकार के अनुमानुसार, इस वर्ष गेहूं की फसल की बेहतरीन पैदावार हो सकती है। सरकार के अनुसार, 108-110 लाख मैट्रिक टन गेहूं का उत्पादन होने की संभावना है। साथ ही, गेहूं की कीमत एमएसपी से अधिक ही रहने वाली है। साथ ही, आपको बतादें कि मध्य प्रदेश में 25 मार्च से गेहूं की खरीद चालू हो जाएगी। वहीं, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत बाकी राज्यों में 1 अप्रैल से गेहूं की खरीद चालू होनी है। .
गेंहू निर्यात हेतु रूस से दो इंटरनेशनल ट्रेडर्स ने कदम पीछे हटाया
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, कारगिल इंकॉर्पोरेटेड और विटेरा ने रूस से गेहूं का निर्यात प्रतिबंधित करने की घोषणा की है। इन दोनों की विगत सीजन में रूस के कुल खाद्यान्न निर्यात में 14 फीसद की भागीदारी थी। इनके जाने से विश्व के सर्वोच्च गेहूं निर्यातक रूस का ग्लोबल फूड सप्लाई पर नियंत्रण और पकड़ ज्यादा होगी। इनके अतिरिक्त आर्कर-डेनिएल्स मिडलैंड कंपनी भी व रूस भी अपने व्यवसाय को संकीर्ण करने के विषय में विचार-विमर्श कर रही है। लुइस ड्रेयफस भी रूस में अपनी गतिविधियों को कम करने की सोच रही है। जैसा कि हम जानते हैं, गेहूं का नया सीजन चालू हो गया है। रूस गेहूं के नए उत्पादन का निर्यात चालू कर देगा। फिलहाल, इंटरनैशनल ट्रेडर्स के पीछे हटने से रूसी गेहूं निर्यात पर सरकारी और घरेलू कंपनियों का ही वर्चश्व रहेगा। रूस द्वारा और बेहतरीन तरीके से इसका उपयोग जियोपॉलिटिक्स हेतु कर पायेगा। वह मूल्यों को भी प्रभावित करने की हालात में रहेगा। मध्य पूर्व और अफ्रीकी देश रूसी गेहूं की अच्छी खासी मात्रा में खरीदारी करते हैं।
रूस करेगा गेंहू निर्यात को एक औजार के रूप में इस्तेमाल
रूस द्वारा वर्तमान में गेहूं निर्यात करने हेतु सरकार से सरकार व्यापार पर ध्यान दे रहा है। बतादें, कि सरकारी कंपनी OZK पहले ही तुर्की सहित गेहूं बेचने के संदर्भ में बहुत सारे समझौते कर चुकी है। उसने विगत वर्ष यह कहा था, कि वह इंटरनैशनल ट्रेडर्स के हस्तक्षेप से निजात चाहती है और प्रत्यक्ष रूप से देशों को निर्यात करने की दिशा में कार्य कर रही है। रूस गेहूं का शस्त्र स्वरुप उपयोग करते हुए स्वयं की इच्छानुसार चयनित देशों को ही गेंहू निर्यात करेगा। इससे फूड सप्लाई चेन तो प्रभावित होगी ही, विगत वर्ष की भाँति अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के मूल्यों में बेइंतिहान वृद्धि भी हो सकती है।
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रूस ने खाद्य युद्ध को यदि हथियार बनाया तो क्या होगा
रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव से विगत वर्ष विश्वभर में गेहूं एवं आटे के भावों में तीव्रता से बढ़ोत्तरी हुई थी। बहुत सारे देश खाद्य संकट की सीमा पर पहुँच चुके हैं। तो बहुत से स्थानों पर खाद्य पदार्थ काफी महंगे हो चुके हैं। विगत वर्ष भारत में भी गेहूं एवं आटे के मूल्यों में तेजी से इजाफा हुआ था। जिसके उपरांत सरकार द्वारा गेहूं निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था। हालाँकि, भारत अपने आप में एक बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है। परंतु, जो देश खाद्यान्न की आवश्यकताओं के लिए काफी हद तक आयात हेतु आश्रित हैं। उनको काफी खाद्यान संकट से जूझना पड़ेगा। विश्व में एक बार पुनः गेहूं एवं आटे के मूल्यों में तेजी से इजाफा होने की संभावना भी बढ़ गई है।
पुरे विश्व को प्रभावित कर सकता है फूड वॉर
अगर हम सकारात्मक तौर पर इस बात का विश्लेषण करें तो खाद्यान्न को एक हथियार के रूप में उपयोग करना कही तक उचित तो कतई नहीं है। इससे काफी लोग भुखमरी तक के शिकार होने की संभावना होती है। वर्ष 2007 में सर्वप्रथम फूड वॉर की भयावय स्थिति देखने को मिली थी। उस वक्त सूखा, प्राकृतिक आपदा की भांति अन्य कारणों से भी पूरे विश्व में खाद्यान्न की पैदावार कम हुई थी। उस समय रूस, अर्जेंटिना जैसे प्रमुख खाद्यान्न निर्यातक देशों ने घरेलू मांग की आपूर्ति करने हेतु 2008 में कई महीनों तक खाद्यान्न के निर्यात को एक प्रकार से बिल्कुल प्रतिबंधित कर दिया था। जिसके परिणामस्वरूप, विश्व के विभिन्न स्थानों पर राजनीतिक अस्थिरता एवं आर्थिक संकट उत्पन्न हो गए थे। संयोगवश उस समय वैश्विक मंदी ने भी दस्तक दे दी थी। फूड वॉर को भी इसके कारणों में शम्मिलित किया जा सकता है।