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bajre ki fasal

ओडिशा में आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बनी बाजरे की खेती

ओडिशा में आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बनी बाजरे की खेती

भुवनेश्वर। ओडिशा में बाजरे की खेती (Bajre ki Kheti) धीरे-धीरे आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बन रही है। मिलेट मिशन (Odisha Millets Mission) के तहत बाजरे की खेती को फिर से बड़े पैमाने पर पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रहीं हैं। इससे राज्य के आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार की संभावना दिखाई दे रहीं हैं।
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सरकार राज्य के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। इसके जरिए ही इन परिवारों को आर्थिक मजबूती देने की कोशिश है।

कम बारिश में अच्छी उपज देती है बाजरे की फसल

- बाजरे की फसल कम बारिश में भी अच्छी उपज देती है। इसीलिए उम्मीद जताई जा रही है कि यहां के आदिवासी परिवारों की बाजरे की खेती सबसे अधिक लाभकारी करेगी। यही कारण है कि ओडिशा के तीसरे बड़े आबादी वाले मयूरभंज जिले में महिला किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
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राज्य के 19 जिलों में बाजरे की खेती को किया जा रहा है पुनर्जीवित

- ओडिशा राज्य के 19 जिलों में बाजरा की खेती को पुनर्जीवित करने की योजना बनाई गई है। इसमें 52000 हेक्टेयर से अधिक का रकबा शामिल किया गया है। साथ ही 1.2 लाख किसानों को बाजरे की खेती से जोड़ा जा रहा है।
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महिला किसानों की भागीदारी है प्रसंशनीय

- ओडिशा में बाजरे की खेती को लेकर आदिवासियों में जबरदस्त उत्साह है। इनमें खासतौर पर महिला किसानों की भागीदारी प्रसंशनीय है। कई जगह अकेले महिलाएं ही पूरी तरह बाजरे की खेती कर रहीं हैं। वहीं कई स्थानों पर महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों संग धान की खेती में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहीं हैं। महिलाएं अपनी उपज को अच्छे भाव में बाजार में बेच रहीं हैं।

मिशन मिलेट्स के तहत खेती को मिल रहा है बढ़ावा

- राज्य में मिशन मिलेट्स के तहत बाजरे की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें सरकार भी किसानों की मदद कर रही है। किसान बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर बाजरे की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इस कार्यक्रम का शुभारंभ साल 2017 में हुआ था। इन दिनों रागी, फोक्सटेल, बरनार्ड, ज्वार, कोदो व मोती जैसी विभिन्न किस्मों की खेती की जा रही है। यही बाजरे की खेती आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बन रहा है। ----- लोकेन्द्र नरवार
देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए है इस फसल की खेती जरूरी विदेश मंत्री ने कहा

देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए है इस फसल की खेती जरूरी विदेश मंत्री ने कहा

वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया गया है। केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की मानें तो संयुक्त राष्ट्र ने यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर लिया है। हाल ही में केंद्रीय कृषि और कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और विदेश मंत्री डॉक्टर सुब्रह्मण्यम जयशंकर की अध्यक्षता में अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के प्रीलॉन्च के उत्सव को मनाया गया। इसमें मिलेट के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के बारे में बात की गई है।


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विदेश मंत्री के अनुसार मिलेट (MILLET) की खेती करने से ना सिर्फ देश आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि इससे वैश्विक खाद्य समस्या का जोखिम भी कम होगा। इसके अलावा अगर किसानों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो ये किसानों को आत्मनिर्भर बनाएगा और विकेंद्रीकरण उत्पादन में भी इससे फायदा होगा।

क्या है मिलेट और क्यों बढ़ रही है वैश्विक बाजार में मांग

मिलेट (MILLETS) को जिस नाम से हम जानते हैं, वह है बाजरा। जी हां छोटे छोटे दाने वाला यह अनाज आजकल बहुत लोकप्रिय हो रहा है। ऐसे में सोचने वाली बात है, कि मिलेट के अचानक से लोकप्रिय होने का कारण क्या है। कोविड-19 के दौरान वैश्विक खाद संकट एक बार फिर से सामने आ गया था, और ऐसे में बाजरा एक ऐसा अनाज है, जो कम पानी और विषम परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है। इसके अलावा कोविड-19 से लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर भी काफी सजग हो गए हैं, और बाजरे को हमेशा से ही स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है। इसीलिए जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उस को ध्यान में रखते हुए कुछ इस तरह की ही खेती की ओर हमें ध्यान देना चाहिए ताकि हम देश और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा के बारे में पहल कर सकें।


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क्या है मिलेट के पोषक तत्व

मिलेट में पाए जाने वाले पोषक तत्व के बारे में बात की जाए तो लिस्ट काफी लंबी है, इसमें आपको भरपूर मात्रा में फाइबर, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम, विटामिन बी-6 और केराटिन भी पाया जाता है।

क्या गुण बनाते हैं मिलेट को खास

पहले से ही मिलेट को कई अलग-अलग तरह के नामों से जाना जाता है, इसे ‘भविष्य की फसल’ या फिर ‘चमत्कारी अनाज’ भी कहा गया है। उसका कारण है कि मिलेट में पोषक तत्व तो होते ही हैं साथ ही विषम परिस्थितियों और कम लागत में भी उससे उत्पादन होने के कारण इसे खास माना गया है। अगर किसी किसान के पास सिंचाई आदि की सुविधाएं नहीं है, तब भी वह मिलेट की खेती कर सकता है।

पर्यावरण के लिए भी है चमत्कारी

जैसा कि बताया जा चुका है, कि मिलेट की खेती में पानी तो कम लगता ही है साथ ही इसकी खेती में कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है। जो सुरक्षित वातावरण बनाए रखने के लिए लाभकारी है। यही कारण है कि भारत में बहुत से राज्य एक से अधिक मिलेट की नस्लों का उत्पादन करते हैं।

इससे जुड़े स्टार्टअप को दी जा रही है आर्थिक सहायता

इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए जो भी स्टार्टअप काम कर रहे हैं, उनको सरकार की तरफ से सहायता भी दी जा रही है। आंकड़ों की मानें तो लगभग 500 से ज्यादा स्टार्टअप इसके उत्पादन के लिए काम कर रहे हैं, जिनमें से 250 स्टार्टअप को भारतीय मिलेट अनुसंधान की तरफ से चयनित किया गया है। उसमें से 70 के करीब स्टार्टअप्स को 6 करोड़ से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट दिया जा चुका है।


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पिछले काफी सालों से यह अनाज लोगों की थाली से गायब रहा था और इसका असर आजकल लोगों के स्वास्थ्य पर सीधे तौर पर देखा जा सकता है। अब धीरे ही सही लेकिन लोगों का ध्यान इसकी ओर फिर से आकर्षित हो रहा है।