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दलहन की कटाई: मसूर चना [Dalhan ki katai: Masoor, Chana]

दलहन की कटाई: मसूर चना [Dalhan ki katai: Masoor, Chana]

दलहन

दलहन वनस्पतियों की दुनिया में दलहन प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत माना जाता है। dalhan द्वारा ही हम  प्रोटीन को सही ढंग से प्राप्त कर पाते हैं। दलहन का अर्थ दाल होता है। 

dalhan fasal में कई तरह की दाल की खेती होती है: जैसे राजमा, उड़द की दाल, मूंग की दाल, मसूर की दाल, मटर की दाल, चने की दाल, अरहर की दाल, कुलथी आदि। 

दलहन की बढ़ती उपयोगिता को देखते हुए इसके दामों में भी काफी इजाफा हो रहे हैं। दलहन के भाव आज भारतीय बाजारों में आसमान छू रहे हैं। इस लेख में आप दलहन क्या है? और इनके खेती के बारे में जानेगे। 

दाल में मौजूद प्रोटीन:

कई तरह के दलहन [dalhan fasal] दालों में लगभग 50% प्रोटीन मौजूद होते हैं तथा 20% कार्बोहाइड्रेट और करीबन 48% फाइबर की मात्रा मौजूद होती है इसमें सोडियम सिर्फ एक पर्सेंट होता है। 

इसमें कोलेस्ट्रोल ना के बराबर पाया जाता है। वेजिटेरियन के साथ नॉनवेजिटेरियन को भी दाल खाना काफी पसंद होता है।

दाल हमारी पाचन क्रिया में भी आसानी से पच जाती है ,तथा पकाने में भी आसान होती है, डॉक्टर के अनुसार दाल कहीं तरह से हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है।

दलहन क्या है? 

आइये जानते है आखिर दलहन क्या है। दोस्तों यह प्रोटीन युक्त पदार्थ है दाल पूर्व  रूप से खरीफ की फसल है। हर तरह की दालों को लेगयूमिनेसी कुल की फसल कहा जाता है।   

दालों  की जड़ों में आपको राइजोबियम नामक जीवाणु मिलेंगे। जिसका मुख्य कार्य वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलना होता है तथा मृदा की उर्वरता को बढ़ाता है।

मसूर की दाल कौन सी फसल होती है:

मसूर की दाल यानी (lentil )यह रबी के मौसम में उगाने वाली दलहनी फसल है। मसूर दालों के क्षेत्र में मुख्य स्थान रखती है। यह मध्य प्रदेश के असिंचित क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसल है।

मसूर दाल की खेती का समय:

मसूर दलहन [dalhan - masoor dal ki kheti] मसूर दाल की खेती करने का महीना अक्टूबर से दिसंबर के बीच का होता है।जब इस फसल की बुआई होती है रबी के मौसम में, इस फसल की खेती के लिए दो मिट्टियों का उपयोग किया जाता है:

  • दोमट मिट्टी
  • लाल लेटराइट मिट्टी

खेती करने के लिए लाल मिट्टी बहुत ही ज्यादा लाभदायक होती है, उसी प्रकार लाल लेटराइट मिट्टी द्वारा आप अच्छी तरह से खेती कर सकते हैं।

मसूर दाल का उत्पादन करने वाला प्रथम राज्य :

मसूर dalhan को उत्पाद करने वाला सबसे प्रथम क्षेत्र मध्य प्रदेश को माना गया है।आंकड़ों के अनुसार लगभग 39. 56% तथा 5.85 लाख हेक्टेयर में इस दाल की बुवाई की जाती है। 

जिसके अंतर्गत यह प्रथम स्थान पर आता है। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश व बिहार दूसरी श्रेणी में आता है। जो लगभग 34.360% तथा 12.40% का उत्पादन करता है। 

मसूर dalhan fasal का उत्पादन उत्तर प्रदेश में 36.65% और (3.80लाख टन) होता है। मध्यप्रदेश में करीब 28. 82% मसूर दाल का उत्पादन करते हैं। 

चना:

Chana चना एक दलहनी फसल है।चना देश की सबसे महत्वपूर्ण कही जाने वाली दलहनी फसल है। इसकी बढ़ती उपयोगिता को देखते हुए इसे दलहनो का राजा भी कहा जाता है। चने में बहुत तरह के प्रोटीन मौजूद होते हैं। इसमें प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, जैसे तत्व मौजूद होते हैं।

चने की खेती का समय

चने की खेती को अक्टूबर के महीने में बोया जाता है। इसकी खेती अक्टूबर के शुरू महीने में करनी चाहिए , जहां पर सिंचाई की संभावना अच्छी हो, उन क्षेत्रों में इसको 30 अक्टूबर से बोना शुरू कर दिया जाता है। अच्छी फसल पाने के लिए इसकी इकाइयों को अधिक बढ़ाना चाहिए।

चना कौन सी फसल है

चना रबी की dalhan fasal  है। इसको उगाने के लिए आपको गर्म वातावरण की जरूरत पड़ती है। रबी की प्रमुख dalhan फसलों में से चना भी एक प्रमुख फसल है।

चने की फसल सिंचाई

किसानों द्वारा हासिल की गई जानकारी के अनुसार चने की फसल बुवाई करने के बाद 40 से 60 दिनों के बाद इसकी सिंचाई करनी चाहिए। फसल में पौधे के फूल आने से पूर्व यह सिंचाई की जाती है। दूसरी सिंचाई किसान पत्तियों में दाना आने के समय करते हैं।

चने की फसल में डाली जाने वाली खाद;

  • किसान चने की फसल के लिए डीएपी खाद का इस्तेमाल करते हैं जो खेती के लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी साबित होती है।
  • इस खाद का प्रयोग चने की फसल लगाने से पहले किया जाता है।खाद को फसल उगाने से पहले खेत में छिड़का जाता है। 
  • डीएपी खाद से फसल को सही मात्रा में नाइट्रोजन प्राप्त होता है।
  • खाद के द्वारा फसल को नाइट्रोजन तथा फास्फोरस की प्राप्ति होती है।
  • इसके उपयोग के बाद यूरिया की भी कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। dalhan fasal को कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है क्युकी ये वातवरण की  नाइट्रोजन को धरती में 

चने की अधिक पैदावार के लिए क्या करना होता है:

Chane ki kheti चने की अधिक पैदावार के लिए किसान 3 वर्षों में एक बार ग्रीष्मकालीन की अच्छी तरह से गहरी जुताई करते हैं जिससे फसल की पैदावार ज्यादा हो। 

किसान प्यूपा को नष्ट करने का कार्य करते हैं। अधिक पैदावार की प्राप्ति के लिए पोषक तत्व की मात्रा में मिट्टी परीक्षण किया जाता है। जब खेत में फूल आते हैं तो किसान T आकार की खुटिया लगाता है।

फूल निकलते ही सारी खुटिया को निकाल दिया जाता है। अच्छी खेती के लिए  फेरोमेन ट्रैप्स इस्तेमाल करें।जब फसल की ऊंचाई 15 से 20 सेंटीमीटर तक पहुंच जाए, तो आप खेत की कुटाई करना शुरू कर दें, शाखाएं निकलने व फली आने पर खेत की अच्छे से सिंचाई करें। 

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निष्कर्ष

dalhan की कटाई मसूर ,चना से जुड़ी सभी सभी प्रकार की जानकारिया जो आपके लिए फायदेमंद होगी। हमने अपनी इस पोस्ट के जरिए दी है, यदि आपको हमारी पोस्ट के जरिए दी गई जानकारी पसंद आई हो, तो आप ज्यादा से ज्यादा हमारे इस आर्टिकल को सोशल मीडिया पर शेयर करें।

दलहन बचाएगा सबकी जान

दलहन बचाएगा सबकी जान

दलहनी फसलें किसान और आम इन्सान सभी की जिंदगी बचा सकती है। हर घर में पांव पसार रही बीमरियां बेहद कम हो सकती हैं बशर्ते भोजन की हर थाली में हर दिन दाल शामिल हो। यह तभी संभव है जबकि इनकी कीमतें नींचे आएं। किसान की फसल के समय उन्हें भी ​उचित मूल्य मिले। दलहनी फसलें केमिकल फर्टिलाइजर नहीं चाहतीं। इसी लिए दलहन में प्रोटीन आदि तत्वों के अलावा आर्गेनिक कंटेंट ज्यादा होता है। सरकारों की उपेक्षित नीतियों के चलते फसल के समय किसानों को दालहनी फसलों की समर्थन मूल्य के सापेक्ष आधी कीमतें भी नहीं मिलतीं इधर बिचौलिए और भरसारिए मोटा माल पैदा करते हैं। दलहन में पानी भी कम लगता है। अहम बात यह है कि इसमें किसान की कल्टीवेशन कास्ट यानी कि लागत भी बेहद कम आती है। इसके बाद भी किसान इसे कम लगाते हैं तो उसके कई कारण हैं और इनके लिए सरकारें ही जिम्मेवार हैं। दहलहन के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता और आयायत देश है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विश्व दलहन दिवस पर पिछले दिनों दलहन उत्पादन में टात्मनिर्भरता की ओर बढ़ने वाली सोच को सार्व​जनिक किया लेकिन वह इस दिशा में क्या कदम उठाएंगे यह देखेने वाली बात है। 

दलहन की नई फसल कब आती है

चना, मटर, अरहर एवं मशूर दलहनी फसलें अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती है एवं मार्च-अप्रैल तक हार्वेस्ट हो जाती हैं। 

दलहन की फसल मिट्टी को उपजाऊ कैसे बनाती हैं

दलहन की फसलों यानी उर्द, मूंग, मशूर, चना, अरहर, ढेंचा आदि की जड़ों में प्राकृतिक गांठे होती हैं। पौधा अपनी विकास के लिए वायुमंडल से नाइट्रोजन का अवशोषण करता है। यह नाइट्रोजन पौधे की जड़ों की गानों में इकट्ठा होती है। फसल पक जाने पर उसे काट लिया जाता है और जड़ों में संकलित नाइट्रोजन जमीन के अंदर ही सुरक्षित रह जाती है जो कि अगली फसल के काम आती है। 

देश में दलहन की स्थिति

 

 देश ने 2018-19 के फसल वर्ष (जुलाई-जून) के दौरान 2.34 करोड़ टन दलहन का उत्पादन हुआ । यह 2.6 से 2.7 करोड़ टन की घरेलू मांग से कम है । इस अंतर की भरपाई आयात से की गई। हालांकि, चालू साल में सरकार 2.63 करोड़ टन दलहन उत्पादन का लक्ष्य लेकर चल रही है।

आवारा पशु बने सरदर्द

 

 दलहन के लिए आवारा और जंगली पशु सबसे बड़ी दिक्कत है। जिन इलाकों में पानी की बेहद कमी है वहां दलहन का क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है। बड़े क्षेत्र में किसी फसल को लगने से किसानों का आवारा पशुओं आदि का नुकसान भी कम हो जाता है।

किसानों को मिलेगा चार हजार रुपए प्रति एकड़ का अनुदान, लगायें ये फसल

किसानों को मिलेगा चार हजार रुपए प्रति एकड़ का अनुदान, लगायें ये फसल

दलहन व तिलहन फसल लगाने पर अनुदान

देश में
दलहन एवं तिलहन फसलों का उत्पादन कम एवं माँग अधिक है. यही कारण है कि किसानों को इन फसलों के अच्छे मूल्य मिल जाते हैं. वहीँ दलहन या तिलहन की खेती में धान की अपेक्षा पानी भी कम लगता है। यही कारण है कि अलग-अलग राज्य सरकारें किसानों को धान की फसल छोड़ दलहन एवं तिलहन फसल लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। केंद्र सरकार भी किसानों को दलहन और तिलहन की खेती करने के लिय प्रोत्साहित करती है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है की भारत खाद्य पदार्थों जैसे, धान, गेहूं आदि में तो आत्मनिर्भर है, पर दलहन और तिलहन में आत्मनिर्भर नहीं हो सका है। आज भी देश में बाहर से दलहन का आयात करना पड़ता है। स्वाभाविक है की राज्य सरकारें दलहन और तिलहन की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करती है। इसी नीति के तहत हरियाणा सरकार ने दलहन और तिलहन फसलों पर अनुदान देने का निर्णय लिया है.

ये भी पढ़ें: दलहन की फसलों की लेट वैरायटी की है जरूरत दलहन फसलों जैसे मूँग एवं अरहर और तिलहन फसलों जैसे अरंडी व मूँगफली की फसल लगाने पर किसानों को प्रोत्साहित करने के लिये अनुदान का प्रावधान किया है. हरियाणा सरकार के अनुदान के फैसले के पीछे बड़ा उद्देश्य यह भी है की इससे किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सके. इस योजना का दोहरा लाभ किसानों को होगा. क्योकि एक तो दलहन और तिलहन फसलों की कीमत भी किसानों को अधिक प्राप्त होगा और साथ ही साथ अनुदान की राशि भी सहायक हो सकेगा. सरकार ने इन फसलों को उगाने वाले किसानों को अनुदान के रूप में प्रति एकड़ चार हजार रुपए देने का निर्णय लिया है।

सात ज़िले के किसानों को मिलेगा योजना का लाभ :

हरियाणा सरकार की ओर से झज्जर सहित दक्षिण हरियाणा के सात जिलों का चयन इस अनुदान योजना के लिये किया गया है. इन सात जिलों में झज्जर भिवानी, चरखी दादरी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, हिसार व नूंह शामिल है. हरियाणा सरकार नें इन सात जिलों के दलहन और तिलहन की खेती करने वाले किसानों के लिए विशेष योजना की शुरुआत की है। इस योजना को अपनाने वाले किसानों को चार हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से वित्तीय सहायता दी जाएगी।

कितना अनुदान मिलेगा किसानों को ?

हरियाणा सरकार द्वारा फसल विविधीकरण के अंतर्गत दलहन व तिलहन की फसलों को बढ़ावा देने के लिए इस नई योजना की शुरुआत की गयी है। योजना के तहत दलहन व तिलहन की फसल उगाने वाले किसानों को 4,000 रुपये प्रति एकड़ वित्तीय सहायता प्रदान की जायेगी. यह योजना दक्षिण हरियाणा के 7 जिलों: झज्जर, भिवानी, चरखी दादरी, महेन्द्रगढ, रेवाड़ी, हिसार तथा नूंह में खरीफ मौसम 2022 के लिये लागू की जायेगी.

ये भी पढ़ें: तिलहनी फसलों से होगी अच्छी आय हरियाणा सरकार नें प्रदेश में खरीफ मौसम 2022 के दौरान एक लाख एकड़ में दलहनी व तिलहनी फसलों को बढ़ावा देने का लक्ष्य तय किया है. सरकार नें इस योजना के तहत दलहनी फसलें मूँग व अरहर को 70,000 एकड़ क्षेत्र में और तिलहन फसल अरण्ड व मूँगफली को 30,000 एकड़ में बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा है.

किसान यहाँ करें आवेदन

चयनित सातों ज़िलों के किसानों को योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा. इसके लिए किसानों को मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल जाकर सबसे पहले पंजीकरण कराना होगा. वित्तीय सहायता फसल के सत्यापन के उपरान्त किसानों के खातों में स्थानान्तरण की जाएगी.  
सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

किसानों को परंपरागत खेती में लगातार नुकसान होता आ रहा है, जिसके कारण जहाँ किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है, वहीं किसान खेती से विमुख भी होते जा रहे हैं. इसको लेकर सरकार भी चिंतित है. लगातार खेती में नुकसान के कारण किसानों का खेती से मोहभंग होना स्वभाविक है, इसी के कारण सरकार आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. सरकार की तरफ से किसानों को खेती में सहफसली तकनीक (multiple cropping or multicropping or intercropping) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से जमीन की उत्पादकता बढ़ती है, साथ ही एकल फसली व्यवस्था या मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) तकनीक की खेती के मुकाबले मुनाफा भी दोगुना हो जाता है.


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सहफसली खेती के फायदे

परंपरागत खेती में किसान खरीफ और रवि के मौसम में एक ही फसल लगा पाते हैं. किसानों को एक फसल की ही कीमत मिलती है. जो मुनाफा होता है, उसी में उनकी मेहनत और कृषि लागत भी होता है. जबकि, सहफसली तकनीक में किसान मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लगाते हैं. स्वाभाविक है, उन्हें जब दो या अधिक फसल एक ही मौसम में मिलेगा, तो आमदनी भी ज्यादा होगी. किसानों के लिए सहफसली खेती काफी फायदेमंद होता है. कृषि वैज्ञानिक लंबी अवधि के पौधे के साथ ही छोटी अवधि के पौधों को लगाने का प्रयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं. किसानों को सहफसली खेती करनी चाहिए, ऐसा करने से मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलों का भी मुनाफा मिलता है, जिससे आमदनी दुगुनी हो सकती है.


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धान की फसल के साथ लगाएं कौन सा पौधा

सहफसली तकनीक के बारे में कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव सलाह देते हैं, कि धान की खेती करने वाले किसानों को खेत के मेड़ पर नेपियर घास उगाना चाहिए. इसके अलावा उसके बगल में कोलस पौधों को लगाना चाहिए. नेपियर घास पशुपालकों के लिए पशु आहार के रूप में दिया जाता है, जिससे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है और उसका लाभ पशुपालकों को मिलता है, वहीं घास की अच्छी कीमत भी प्राप्त की जा सकती है. बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत मिलती है.


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गन्ना, मक्की, अरहर और सूरजमुखी के साथ लगाएं ये फसल

पंजाब हरियाणा और उत्तर भारत समेत कई राज्यों में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इसका कारण लगातार खेती में नुकसान बताया जाता है. इसका कारण यह भी है की फसल विविधीकरण नहीं अपनाने के कारण जमीन की उत्पादकता भी घटती है और साथ हीं भूजल स्तर भी नीचे गिर जाता है. ऐसे में किसानों के सामने सहफसली खेती एक बढ़िया विकल्प बन सकता है. इस विषय पर दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि सितंबर से गन्ने की बुवाई की शुरुआत हो जाएगी. गन्ना एक लंबी अवधि वाला फसल है. इसके हर पौधों के बीच में खाली जगह होता है. ऐसे में किसान पौधों के बीच में लहसुन, हल्दी, अदरक और मेथी जैसे फसलों को लगा सकते हैं. इन सबके अलावा मक्का के फसल के साथ दलहन और तिलहन की फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. सूरजमुखी और अरहर की खेती के साथ भी सहफसली तकनीक को अपनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक सह्फसली खेती के साथ-साथ इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ की भी सलाह देते हैं. इसके तहत खेतों के बगल में मुर्गी पालन, मछली पालन आदि का भी उत्पादन और व्यवसाय किया जा सकता है, ऐसा करने से कम जगह में खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
इस राज्य सरकार ने दलहन-तिलहन खरीद के लिए पंजीयन सीमा में की 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी

इस राज्य सरकार ने दलहन-तिलहन खरीद के लिए पंजीयन सीमा में की 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी

इन दिनों रबी का सीजन चल रहा है, खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही हैं और जल्द ही इनकी हार्वेस्टिंग शुरू हो जाएगी। इसको देखते हुए भारत के कई राज्यों की सरकारों ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। लगभग सभी राज्यों में रबी सीजन में उत्पादित होने वाली फसलों के पंजीयन शुरू कर दिए गए हैं, ताकि किसानों की फसलों को बेहद आसानी से खरीदा जा सके तथा उनके बैंक खातों में फसलों का भुगतान शीघ्र अतिशीघ्र किया जा सके। इसी कड़ी में राजस्थान सरकार ने अपने राज्य में रबी फसलों का पंजीयन शुरू कर दिया है। इसके लिए सरकार ने हर जिले में पंजीयन केंद्र बनाए हैं, जहां किसान आसानी से जाकर अपनी फसल का पंजीयन करवा सकते हैं। इस बार राजस्थान सरकार का अनुमान है, कि पिछली बार की अपेक्षा दलहन और तिलहन का बम्पर उत्पादन होने वाला है। इसको देखते हुए राजस्थान सरकार ने दलहन और तिलहन के लिए खरीदी केंद्रों में पंजीयन सीमा बढ़ाने की स्वीकृति दी है। पूरे राज्य में दलहन और तिलहन की खरीदी में केंद्रों में 10 प्रतिशत पंजीयन की बढ़ोत्तरी की गई है। इसकी जानकारी राजस्थान सरकार के सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना ने मीडिया को दी है। सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना ने बताया कि राजस्थान सरकार ने मूंग के 368 खरीद केन्द्रों पर, मूंगफली के 270 खरीद केन्द्रों पर, उड़द के 166 खरीद केन्द्रों पर तथा सोयाबीन के 83 खरीद केन्द्रों पर पंजीयन सीमा को बढ़ा दिया है। ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान बेहद आसानी से अपना पंजीयन करवा पाएं। सहकारिता मंत्री ने बताया कि सरकार के इस कदम से राज्य में 41 हजार 271 अतिरिक्त किसानों को लाभ मिलेगा।

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बकौल सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना, पंजीयन सीमा बढ़ाने से मूंग के 10 हजार 775 किसान, मूंगफली के 15 हजार 856 किसान, उडद के 2 हजार 158 किसान एवं सोयाबीन के 12 हजार 482 किसान और लाभान्वित हो सकेंगे। अगर अभी तक के रिकार्ड की बात करें तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपनी फसलें बेचने के लिए किसानों ने बंपर पंजीयन करवाए हैं। मूंग की फसल के लिए अब तक 67 हजार 409 किसान पंजीयन करवा चुके हैं। जबकि मूंगफली के लिए अभी तक 22 हजार 638 किसानों ने पंजीयन कराया है। राज्य में अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी की बात की जाए, तो इस साल अब तक मूंग की 50 हजार 389 मीट्रिक टन खरीदी की जा चुकी है। जिसे 26 हजार 583 किसानों से खरीदा गया है। साथ ही 638 मीट्रिक टन मूंगफली खरीदी जा चुकी है। खरीद के बाद अब तक 7 हजार 698 किसानों को उनके बैंक खातों में फसल का सीधा भुगतान किया जा चुका है। बाकी जिन किसानों की राशि बची है, उसका भुगतान जल्द से जल्द कर दिया जाएगा। सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना ने बताया है, कि इस साल सरकार ने 3.03 लाख मीट्रिक टन मूंग, 62 हजार 508 मीट्रिक टन उड़द, 4.66 लाख मीट्रिक टन मूंगफली तथा 3.62 लाख मीट्रिक टन सोयाबीन खरीदने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने बताया कि, राजस्थान सरकार ने प्रारंभ में खरीदी लक्ष्य का 90 प्रतिशत पंजीयन कराने का ही फैसला किया था। लेकिन अब सरकार ने अपना निर्णय बदलते हुए इसमें 10 फीसदी का इजाफा कर दिया है। ताकि लक्ष्य का 100 प्रतिशत खरीदी की जा सके। सरकार के इस निर्णय से उन किसानों को बड़ा लाभ होने वाला है, जो अपनी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य में बेचने के लिए पंजीयन नहीं करवा पा रहे थे।
विश्व दलहन दिवस, जानें दालों से जुड़ी खास बातें

विश्व दलहन दिवस, जानें दालों से जुड़ी खास बातें

हर साल आज के दिन यानि की 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस मनाया जाता है. इस खास दिन को मनाने के पीछे दालों के पोषण और पर्यावरण से जुड़े लाभ छुपे हुए हैं. पर्यावरण और पोषण से जुड़े फायदों के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस को मनाया जाता है. जैसा की हम सब जानते हैं कि, दालों को फलियां भी कहा जाता है. पूरे विश्व में मिलने वाले दाल एक मात्र ऐसा खाद्य पदार्थ है, जिसका उत्पादन लगभग हर देश में किया जाता है. साल 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पूरे विश्व में दालों को लेकर जागरूकता फैलाने का फैसला लिया और इसकी पहुंच बढ़ाने के लिए आज का खास दिन दालों पर समर्पित कर दिया.

क्या है थीम?

कृषि और पर्यावरण के लिए दालें काफी फायदेमंद होती हैं. साल 2023 में इस बार विश्व दलहन दिवस की थीम ‘एक सतत भविष्य के लिए दलहन’ के रूप में चुनी गयी है. इस साल इस खास दिन का जश्न मानाने के लिए मिट्टी की उत्पादकता में सुधार करने और कृषि प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ाने के अलावा पानी के कमी वाली जगहों में रहा रहे किसानों को अच्छी लाइफ देने के लिए दालों के योगदान के बारे में बताया जा रहा है. ये भी देखें:
देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास करेगी सरकार, देश भर में बांटेगी मिनी किट

इस दिन से जुड़ा इतिहास, विश्व दलहन दिवस क्यों मनाया जाता है

  • साल 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दालों के दामों को मान्यता दी.
  • साल 2016 में अंतराष्ट्रीय दलहन वर्ष के रूप में अपनाया गया.
  • एफएओ ने दालों की पौष्टिकता और पर्यावरण से जुड़े लाभों के बारे में सार्वजिनक रूप से जागरूकता बढ़ाई.
  • बुर्किना फासो और लैंडलॉक देश ने विशव दलहन दिवस को मनाना जारी रखने का प्रस्ताव रखा.
  • साल 2019 में संयुक्त महासभा ने 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस के रूप में समर्पित किया.

दालों से जुड़ा महत्व

  • दाल को प्रोटीन और जरूरी तत्वों से भरपूर अच्छा स्रोत माना जाता है.
  • दाल में कम फैट और ज्यादा फाइबर होता है.
  • कोलेस्ट्रोल कम करने और ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में दाल मददगार है.
  • मोटापे से निपटने में भी दाल मददगार होती है.
  • डायबिटीज और दिल की बिमारी से बचने में भी दाल मददगार हो सकती है.
दालें किसानों की आय के लिए महत्वपूर्ण संसाधन है. जिसे वह बेच भी सकता है और खा भी सकता है. दालों की खेती करना बेहद आसान है. इन्हें फलने और फूलने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. इसके अलावा अगर कोई आपदा आ जाए तो किसान इससे बेहतर तरीके से निपट सकते हैं.