बेहद उपयोगी है केंचुआ
प्रकृति ने हर जीव को हमारे लिए उपयोगी बनाया है। इन्हीं जीवों में से एक कैंचुआ हमारी खेती के लिए वरदान साबित होता था लेकिन कीटनाशकों के प्रयोग के चलते यह अब जमीन में नजर नहीं आते। अब इन्हें 300 से 500 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खरीदना पड़ता है।
तब कहीं जाकर हम कैंचुए से गोबर और फसल अवशेषों की खाद बना पाते हैं। केंचुए खेत में पढ़े हुए पेड़-पौधों के अवशेष, अन्न के दाने एवं कार्बनिक पदार्थों को खा कर छोटी-छोटी गोलियों के रूप में परिवर्तित कर देते हैं जो पौधों के लिए देशी खाद का काम करती हैं।
केंचुए जिस खेत में प्रचुर मात्रा में मौजूद हों वहां जुताई का काम भी वह कर देते हैं। मृदा में हवा एवं पानी का इसके अलावा केंचुए खेत में ट्रैक्टर से भी अच्छी जुताई कर देते हैं जो पौधों को बिना नुकसान पहुँचाए अन्य विधियों से सम्भव नहीं हो पाती।
केंचुए खुद के जीवन के संचालन के लिए अधिकतम 10 प्रतिशत सामग्री का ही उपभोग करते हैं। बाकी खाए हुए पदार्थ का 90 फीसदी हिस्सा बेहतरीन खाद के रूप में जमीन को वापस दे देते हैं।
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केंचुआ खाद का पीएच 6.8 होता है। इसमें कुल नाइट्रोजन 0.50-10 प्रतिशत, फास्फोरस 0.15-0.56, पोटेशियम 0.06-0.30,कैल्शियम 2.0-4.0,सोडियम 0.02,मैग्नेशियम 0.46 प्रतिशत,आयरन 7563 पीपीएम,जिंक 278 पीपीएम, मैगनीज 475 पीपीएम,कॉपर 27 पीपीएम, बोरोन 34 पीपीएम,एन्यूमिनियम 7012 पीपीएम तत्व मौजूद होते हैं।
उक्त् मात्रा खाद बनाने के लिए उपयोग में लाई गई वस्तु के हिसाब से घट बढ़ सकती है। वर्मीकम्पोस्ट में गोबर के खाद (FYM) की अपेक्षा 5 गुना नाइट्रोजन, 8 गुना फास्फोरस, 11 गुना पोटाश और 3 गुना मैग्निशियम तथा अनेक सूक्ष्म तत्व मौजूद होते हैं।
खेती के लिए वरदान
विशेषज्ञों के अनुसार केंचुए 2 से 250 टन मिट्टी प्रतिवर्ष उलट-पलट देते हैं जिसके फलस्वरूप भूमि की 1 से 5 मि.मी. सतह प्रतिवर्ष बढ़ जाती है।
इनके रहने से भूमि में जैविक क्रियाशीलता, ह्यूमस निर्माण तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण जैसी क्रियाएं तेज रहती हैं। जल धारण क्षमता के अलावा ग्लोवल वार्मिंग की समस्या को कम करने में भी इनकी कियाओं का योगदान है। यह जमीन के ताप को कम करने का काम भी करते हैं।
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केंचुए सूखी मिट्टी या सूखे व ताजे कचरे को खाना पसन्द नहीं करते अतः केंचुआ खाद निर्माण के दौरान कचरे में नमीं की मात्रा 30 से 40 प्रतिशत और कचरे का अर्द्ध-सड़ा होना अत्यन्त आवश्यक है।
जमीन का काला सोना है वर्मी कम्पोस्ट
हम कितने भी आधुनिक हो जाएं लेकिन कुछ परंपराएं आज भी हमें प्रकृति और पर्यावरण से जोड़ती हैं। इन्हीं में से एक है विवाह के समय घूरा पूजने की परंपरा। सच में घरों से निकलने वाले कूडे़ को डालने वाले स्थान को घूरा कहा जाता है।
इसे भी तकरीबन हर हिन्दू जीवन में एक बार विवाह के समय जरूर पूजता है। इस घूरे से मिलने वाली खाद से ही कृषि भूमि को कार्बनिक खाद के रूप में प्रांणवायु मिलती थी।
अब चीजें बदल रही हैं इसीलिए नए तरीके की केंचुआ खाद प्रचलन में आई है। सामान्य खाद के मुकाबले यह कही ज्यादा ताकतवर है। इसे बनाने की वैज्ञानिक विधि है।
कैसे बनाएं कैंचुए की खाद
इसके लिए ईंटों की पक्की क्यारी बनानी होती है। इसकी लम्बाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर एवं ऊँचाई 30 से 50 सेण्टीमीटर रखते हैं। तेज धूप व वर्षा से बचाने और केंचुओं के तीव्र प्रजनन के aलिए अंधेरा रखने हेतु छप्पर और चारों ओर टटिटयों से हरे नेट से ढकना अत्यन्त आवश्यक है।
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क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ घास,सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव करते हैं। इन पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले ढ़ेर बनाकर 15 से 20 दिन तक सड़ने देते हैं।
सड़ने के लिए रखे गये कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण में पानी छिड़क कर ढेऱ को छोड़ दिया जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूप में आ जाता है। इसके बाद क्यारी में केंचुऐं छोड़ दिए जाते हैं और पानी छिड़क कर प्रत्येक क्यारी को गीली बोरियो से ढक देते है। एक टन कचरे से 0.6 से 0.7 टन केंचुआ खाद प्राप्त हो जाती है।