एकीकृत कृषि प्रणाली के तहत खेती करने से कितना लाभ मिलेगा ?

खेती-किसानी का तरीका आज के समय में काफी बदल गया है। आधुनिक दौर में कृषि करने के तरीके अब बदल चुके हैं। वर्तमान में किसान नए-नए तरीकों और तकनीकों का उपयोग कर कृषि से मोटा मुनाफा हाँसिल कर रहे हैं। इसी तरह का एक तरीका है, समेकित कृषि प्रणाली, जिसके माध्यम से किसान सीमित संसाधनों एवं कम लागत के साथ अधिक आय कर सकते हैं। भारत में किसानी इस समय नए दौर से गुजर रही है। इस जमाने में किसान भी कृषि के नए तौर तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जहां एक तरफ कुछ किसान खेती छोड़ शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं, तो उधर कुछ किसान नवीन तकनीक अथवा तरीके को अपना कर मोटा मुनाफा हांसिल कर रहे हैं। ऐसा ही एक तरीका है समेकित कृषि प्रणाली जिसके माध्यम से एक किसान फसल उत्पादन के साथ-साथ बाकी सह कारोबार भी कर सकता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है, कि किसान सीमित संसाधनों एवं कम लागत के साथ अधिक कमाई के नए साधन खड़े कर सकता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि यह किसानों की आमदनी दोगुना करने का एक सशक्त जरिया है।

समेकित कृषि प्रणाली क्या होती है

समेकित कृषि प्रणाली खेती किसानी की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसान फसल पैदावार के साथ-साथ बाकी सह व्यवसाय भी कर सकता है। समेकित कृषि प्रणाली तहत कृषि के कम से कम दो घटक और उससे ज्यादा घटकों का समायोजन इस तरह करते हैं, कि एक के समायोजन से दूसरे की लागत में काफी कमी आती है। इसके साथ-साथ उत्पादकता में काफी इजाफा होता है। स्वरोजगार का सृजन होता है और जीवन स्तर में भी काफी सुधार होता है।

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कृषि को पशुधन के साथ एकीकृत करें

एक उदाहरण के रूप में देखते हैं, कि किसान सीमित भूमि पर कृषि को पशुधन के साथ एकीकृत कर सकते हैं। जैसे कि मुर्गीपालन और मछली पालन को एक ही स्थान पर किया जा सकता है। इसके साथ ही आप उसी जमीन पर खेती भी कर सकते हैं, ताकि साल भर रोजगार पैदा हो सके और अतिरिक्त आय भी प्राप्त हो सके। उदाहरण के लिए मुर्गीपालन के दौरान निकलने वाले वेस्ट (मलमूत्र) का इस्तेमाल आप खाद के रूप में भी कर सकते हैं। मछली पालन में तालाब के बचे हुए पानी का इस्तेमाल कृषि एवं फसलों की पैदावार के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार से आप मुर्गीपालन, मछली पालन के साथ-साथ खेती और खाद उत्पादन से भी आमदनी कर सकते हैं।


 

समेकित कृषि प्रणाली के क्या-क्या फायदे हैं

समेकित कृषि प्रणाली की वजह से प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक उत्पादन इसके साथ ही उत्पादन लागत में कमी के साथ अधिक फायदा होता। सन्तुलित पोषण आहार की उपलब्धता होना है। फसल अवशेषों का पुनः चक्रणं होना। वर्ष भर लगातार आय सृजन, स्वरोजगार के अवसर में बढ़ोतरी, पर्यावरण सुरक्षा आदि जैसे लाभ हो सकते हैं।