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पराली (धान का पुआल) समस्या नही कई समस्या का समाधान है, इसका सदुपयोग करके अधिक से अधिक लाभ उठाए

पराली (धान का पुआल) समस्या नही कई समस्या का समाधान है, इसका सदुपयोग करके अधिक से अधिक लाभ उठाए

Dr SK Singhडॉ एसके सिंह
प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, 
अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, 
समस्तीपुर,बिहार 
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sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in
सरकार एवं मीडिया दोनों जितना पराली न जलाने का आग्रह कर रहा है ।किसान उतना ही पराली जला रहा है।जिसकी मुख्य वजह यह है कि उसे यह पता ही नही है की वह स्वयं का कितना नुकसान कर रहा है।आज से 10 वर्ष पूर्व पराली जलाने की घटनाएं बहुत ही कम थी। पराली जलाने से किसानों को तात्कालिक फायदा जो भी होता हो,उनका दीर्घकालिक नुकसान बहुत होता है। अधिकांश किसान अब धान की कटाई हारवेस्टर से कराने लगे हैं। इससे खेतों में धान का अवशेष बच जाता है। बचे अवशेष को किसान खेतों में ही जला देते हैं। इससे खेत के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंच रहा है। किसान खेतों में बचे फसल अवशेष को खेत में ही जला देते हैं। फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ता है। जिससे मिट़्टी में उपलब्ध जैविक कार्बन जल कर नष्ट हो जाता है। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है और धीरे-धीरे मिट्टी बंजर होती चली जाती है। किसानों को यह जानना अत्यावश्यक है की जिस मिट्टी में जितना अधिक से अधिक सूक्ष्मजीव (माइक्रोब्स)होंगे वह मिट्टी उतनी ही सजीव होगी ,उस मिट्टी से हमे अधिक से अधिक उपज प्राप्त होगी । इसके विपरित जिस मिट्टी में जितने कम सूक्ष्मजीव होंगे वह मिट्टी उतनी ही निर्जीव होगी उस मिट्टी से अच्छी उपज प्राप्त करना उतना ही कठिन होगा। मिट्टी में पाए जाने वाले अधिकांश सूक्ष्मजीव मिट्टी की ऊपरी परत में पाए जाते है।जब पराली जलाते है तो मिट्टी की ऊपरी परत के अत्यधिक गरम हो जाने से ये सूक्ष्म जीव मर जाते है जिससे हमारी मिट्टी धीरे धीरे करके खराब होने लगती है और अंततः बंजर हो जाती है।

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हरियाणा सरकार ने पराली आदि जैसे अवशेषों से पर्यावरण को बचाने की योजना बनाई धान के अवशेष को जलाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की भी कमी हो जाती है। जिसके कारण उत्पादन घटता है और वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ती है। इससे वातावरण प्रदूषित होने से जलवायु परिवर्तन होता है। एक अनुमान के मुताबिक एक टन फसल अवशेष जलने से लगभग 60 किलोग्राम कार्बन मोनोआक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड तथा दो किलोग्राम सल्फर डार्डआक्साइड गैस निकलकर वातावरण में फैलता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। किसान जागरूकता के अभाव में पराली जला रहे है। पराली जलाने से हमारे मित्र कीट भारी संख्या में मारे जाते है। जिसकी वजह से तरह तरह की नई बीमारी एवं कीट हर साल समस्या पैदा कर रहे है जिन्हे प्रबंधित करने के लिए हमें कृषि रसायनों के ऊपर निर्भर होना पड़ता है। मृदा के अंदर के हमारे मित्र सूक्ष्मजीव जो खेती बारी में बहुत ही आवश्यक है ,वे भी जलने की वजह से मारे जाते है,जिससे मृदा की संरचना खराब होती है।फसल अवशेष जो सड़ गल कर मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होते उस लाभ से भी किसान वंचित रह जाते है।उपरोक्त इतने लाभ से किसान वंचित होकर तात्कालिक लाभ के लिए पराली जलाता है,उसे इसके बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। आवश्यकता इस बात की है की किसानों को प्रेरित किया जाय की इस कृषि अवशेष को कार्बनिक पदार्थ में बदला जाय ,डिकंपोजर का प्रयोग करके इसे जल्द से जल्द सड़ने गलने हेतु प्रोत्साहित किया जाय । जागरूकता अभियान चला कर पराली जलाने से होने वाले नुकसान से अवगत कराया जाय की किसान तात्कालिक लाभ के लिए अपने दीर्घकालिक फायदे से वंचित हो रहे है।पर्यावरण का कितना नुकसान होता है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। धान की पुआल का प्रबंधन टिकाऊ कृषि और पर्यावरण संरक्षण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

धान के पुआल के प्रबंधन का महत्व

धान की पुआल जलाने से वातावरण में हानिकारक प्रदूषक फैलते हैं, जिससे धुंध और खराब वायु गुणवत्ता में योगदान होता है।खेतों में पुआल छोड़ने से मृदा क्षरण होता है, जिससे कृषि भूमि का दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। पुआल के सड़ने से जल निकायों में रसायन और पोषक तत्व निकलते हैं, जिससे जल प्रदूषण होता है। धान के भूसे को मिट्टी में शामिल करने से भूमि में आवश्यक पोषक तत्व वापस लौटकर मिट्टी की उर्वरता में सुधार करते है। धान का भूसा कार्बनिक पदार्थ का एक स्रोत है, जो मिट्टी की संरचना और जल-धारण क्षमता को बढ़ाता है।धान के भूसे को पशुओं के लिए एक आवश्यक चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे वैकल्पिक चारे की मांग कम हो जाएगी और किसानों के लिए लागत में कटौती होगी।

धान की पुआल प्रबंधन में चुनौतियाँ

धान की पराली का प्रबंधन कई चुनौतियाँ यह वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देता है। कई किसान अनुचित धान के भूसे प्रबंधन के प्रतिकूल प्रभावों से अनजान हैं। पुआल को मिट्टी में मिलाने के लिए विशेष उपकरण और श्रम की आवश्यकता होती है, जो छोटे पैमाने के किसानों के लिए महंगा हो सकता है।

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धान की पुआल प्रबंधन की विधियाँ

धान अवशेष को पुनः मिट्टी में मिलाना धान के अवशेष की जुताई करके वापस मिट्टी में मिलाने के लिए विशेष जुताई यंत्र की आवश्यकता होती है। लेकिन जुताई करके इन अवशेषों को मिट्टी में मिला देने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है एवं कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता में भारी कमी आती है।

मशरूम की खेती में उपयोग

धान का पुआल मशरूम की खेती के लिए सर्वोत्तम सबस्ट्रेट है । इसका उपयोग करके मशरूम की खेती करके अतरिक्त से प्राप्त किया जा सकता है।

पशु आहार के रूप में उपयोग

धान के भूसे का उपयोग मवेशियों और अन्य पशुओं के लिए पूरक आहार के रूप में किया जा सकता है। जिसकी वजह से चारे की लागत में कमी आती है और पशुओं के लिए पोषण का एक अतिरिक्त स्रोत मिलता है।

ऊर्जा उत्पादन

धान के भूसे का उपयोग बायोमास बिजली संयंत्रों में बिजली पैदा करने के लिए किया जा सकता है। जिसकी वजह से हमे स्वच्छ ऊर्जा मिलती है और जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता को कम हो जाती है।

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पलवार (मल्चिंग)

धान के भूसे का उपयोग मिट्टी को ढकने, नमी बनाए रखने और खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए गीली घास के रूप में किया जा सकता है। जिसकी वजह से जल दक्षता और मिट्टी के तापमान विनियमन में सुधार होता है।

खाद

पोषक तत्वों से भरपूर खाद बनाने के लिए धान के भूसे को अन्य जैविक सामग्रियों के साथ मिलाया जा सकता है। वर्मी कंपोस्ट में इसका उपयोग करके उच्च कोटि की खाद बनाई जा सकती है।कृषि के लिए मूल्यवान जैविक उर्वरक बनाता है।

जैव ईंधन उत्पादन

धान के भूसे को बायोएथेनॉल या बायोगैस जैसे जैव ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता है। जिसकी वजह से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो जाती है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम हो जाता है।

सरकारी नीतियां

कई सरकारों ने धान के भूसे के उचित प्रबंधन को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनाई हैं। इनमें टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहन, पुआल जलाने पर जुर्माना और उपकरण खरीदने के लिए सब्सिडी शामिल है। अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भी पराली जलाने पर कठोर दण्ड का प्राविधान किया है। पराली जलाने की प्रथा को तोड़ने के लिए कृषि विभाग,बिहार सरकार द्वारा अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। कृषि यांत्रिकरण योजना के माध्यम से रीपर कम बाईंडर, हैप्पी सीडर तथा रोटरी मल्चर पर आकर्षक अनुदान की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। इसके अलावे कृषि यंत्र बैंक भी स्थापित किया जा रहा है, जिसमें रियायती दर पर पराली प्रबंधन करने वाले यंत्र उपलब्ध रहेंगे।सभी हार्वेस्टर मालिकों को अपने हार्वेस्टर में जीपीएस लगाने को कहा गया है, साथ ही हार्वेस्टर में एसएमएस का प्रयोग कर ही फसलों की कटाई करेंगे। ऐसा नहीं करने वाले हार्वेस्टर मालिकों को चिन्हित कर विधि सम्मत कार्रवाई की जायेगी। कृषि विभाग द्वारा पराली जलाने वाले किसानों पर कार्रवाई भी की जा रही है, जिसमें किसानों का पंजीकरण पर रोक लगाते हुए कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे सभी प्रकार के अनुदान से वंचित करने का निर्णय लिया गया है । इतने कठोर कदम उठाने के वावजूद बिना भय के किसान पराली जला रहे है जो कत्तई उचित नहीं है।

प्रभावी धान पुआल प्रबंधन के लाभ

धान के भूसे का कुशल प्रबंधन करने से अनेक लाभ है जैसे मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार होता है। मृदा सजीव होती है।पर्यावरण प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी होती है। कृषि उत्पादकता में भारी वृद्धि होती है। पशु के लिए अतरिक्त आधार मिलता है। ऊर्जा उत्पादन और मूल्य वर्धित उत्पादों के माध्यम से आर्थिक लाभ मिलता है। मशरूम उत्पादन के लिए सर्वोत्तम सस्ट्रेट होने की वजह से इसका उपयोग करके मशरूम उत्पादन किया जा सकता है।

निष्कर्ष

धान की पुआल का उचित प्रबंधन टिकाऊ कृषि और पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। मृदा संशोधन, पशु चारा उपयोग, ऊर्जा उत्पादन, मल्चिंग, कम्पोस्टिंग और बायोमास रूपांतरण जैसे विभिन्न तरीकों को अपनाकर, हम कृषि और पर्यावरण के लिए कई लाभ प्राप्त करते हुए धान के भूसे से जुड़ी चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं। सरकारी नीतियां और नियम जिम्मेदार धान के भूसे प्रबंधन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। अंततः, धान की पुआल का कुशल प्रबंधन कृषि की समग्र स्थिरता और पर्यावरण के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। की भलाई में योगदान देता है।
NCRB की रिपोर्ट में देश के किसानों की आत्महत्या के मामलों में इजाफा

NCRB की रिपोर्ट में देश के किसानों की आत्महत्या के मामलों में इजाफा

एनसीआरबी की नई रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की आत्महत्या करने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताजा खबरों के मुताबिक साल 2022 में खेती किसानी से जुड़े लोगों की आत्महत्या से होने वाली मौतों में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। चार दिसंबर को जारी लेटेस्ट अपडेट के मुताबिक राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार बीते वर्ष देश भर से तकरीबन 11,290 आत्महत्या के ऐसे मामले सामने आए हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 2021 से 3.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान 10,281 मौतें दर्ज की गई थीं। 2020 के आंकड़ों की तुलना में 5.7 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 2022 के आंकड़े कहते हैं, कि भारत में प्रति घंटे कम से कम एक किसान ने आत्महत्या कर ली है। साथ ही, 2019 से कृषकों की आत्महत्या से होने वाली मौतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है, जब NCRB डेटा में 10,281 मौतें दर्ज की गईं। खबरों के अनुसार, विगत कुछ वर्ष भारत में कृषि के लिए शानदार नहीं रहे हैं। साल 2022 में जिस साल के लिए एनसीआरबी ने डेटा जारी किया है। बहुत सारे प्रदेशों में सूखे की हालत एवं असामयिक निरंतर वर्षा भी हुई है, जिसकी वजह से खड़ी फसलें तक तबाह हो गईं। वहीं, चारे की कीमतें आसमान छू रही हैं। 

कृषि से जुड़े कितने लोगों ने आत्महत्या की 

रिपोर्ट के मुताबिक, खेती में लगे 11,290 व्यक्तियों में से आत्महत्या करने वालों में 53 फीसद (6,083) खेतिहार मजदूर हैं। विगत कुछ वर्षों में एक औसत कृषि परिवार की अपनी आमदनी के लिए फसल उत्पादन की अपेक्षा खेती से मिलने वाली मजदूरी पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। वर्ष 2022 में आत्महत्या करने वाले 5,207 किसानों में 4,999 पुरुष हैं, वहीं 208 महिलाएं भी शम्मिलित हैं। 

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इन राज्यों में आत्महत्या नहीं हुई है 

आत्महत्या करने वाले 6,083 कृषि श्रमिकों में 5,472 पुरुष एवं 611 महिलाएं शामिल हैं। वहीं, महाराष्ट्र में 4,248, कर्नाटक में 2,392, आंध्र में 917 कृषि आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए हैं। रिपोर्ट की मानें तो उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, चंडीगढ़, वेस्ट बंगाल, ओडिशा, बिहार, लक्षद्वीप पुदुचेरी में कृषि क्षेत्र से संबंधित कोई आत्महत्या दर्ज नहीं की गई है।