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वर्टिकल यानी लंबवत खेती से कम जगह और कम समय में पैदावार ली जा सकती है

वर्टिकल यानी लंबवत खेती से कम जगह और कम समय में पैदावार ली जा सकती है

वर्टिकल फार्मिंग के लिए किसानों को केवल अपनी समझ और बुद्धिमता लगाने की आवश्यकता है। वर्टिकल फार्मिंग को लंबवत खेती भी कहा जाता है। यह एक आधुनिक और नवीन विधि है। जिसके अंतर्गत उच्च ऊंचाई अथवा अन्य लंबवत तरीके से उत्पादन किया जाता है। दरअसल, वर्टिकल खेती में फसलों को सेंसरी प्रोजेक्शन की तकनीकों का इस्तेमाल करके बड़े पैमाने पर विकसित किया जाता है। जैसे कि रिपोर्ट लाइटिंग, हीड्रोपोनिक्स और कंट्रोलड पर्यावरण।

वर्टिकल फार्मिंग (Vertical farming) से उत्पादन अच्छा होता है

यह प्रणाली बेहतरीन कार्य क्षमता, समस्याओं का कम होना, वक्त और स्थान की बचत, प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल में गिरावट और पर्यावरणीय फायदों के साथ कृषि पैदावार को प्रोत्साहन देने की क्षमता प्रदान करती है।
वर्टिकल फार्मिंग (Vertical farming) में फसलों को जरूरी ऊर्जा, पानी, प्रकाश और पोषक तत्वों के लिए उचित वातावरण में रखा जाता है। बेहतर ढंग से विकास के लिए विशेष तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि LED लाइटिंग वाले उपकरण, ऊर्जा को एकत्र करने की तकनीक, फ्री सीडलिंग उत्पादन एवं स्वच्छ जल की उचित व्यवस्था। वर्टिकल फार्मिंग करने से बहुत सारे लाभ होते हैं।

लंबवत खेती कई सकारात्मक संभावनाएं प्रदान करती है

वर्टिकल फार्मिंग प्रणाली बेहद संभावनाएं प्रदान करती है। जैसे कि चुनौतियों को कम करना, वितरण और संचार को बेहतर करने में मदद करना। वाणिज्यिक एवं शहरी क्षेत्रों में खेती की नवीन संभावित जगहों को इस्तेमाल में लाने लायक बनाती है। साथ ही, पौधों की उन्नति और उत्पादन में भी काफी सुधार लाती है। इसके अलावा, इस प्रणाली में खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन को स्थिर बनाए रखने की संभावना भी रहती है। यह भी पढ़ें: इन तकनीकों से उत्पादन कर किसान कमा रहे हैं मोटा मुनाफा

वर्टिकल यानी लंबवत खेती के प्रमुख लाभ

  • तकरीबन तीन से पांच गुना ज्यादा उत्पादन
  • कम समय में ज्यादा उत्पादन
  • कम जगह पर ज्यादा उत्पादन
  • पेशेवर संचालन और नियंत्रण
  • वर्षभर उत्पादन
  • पेशेवर संवर्धन एवं नकदी प्रवाह
  • बारिश, मौसम एवं भूमिगत समस्याओं से छुटकारा
  • पर्यावरणीय संतुलन को नियंत्रित रखना
  • वर्टिकल फार्मिंग यानी लंबवत खेती का महत्त्व

वित्तीय व्यवहार्यता

वर्टिकल फार्मिंग में लगने वाली प्रारंभिक पूंजी लागत सामान्यतः ज्यादा होती है। परंतु, संपूर्ण फसल उत्पादन की परिकल्पना जरूरत के मुताबिक सही ढंग से की जाए तो यह प्रक्रिया पूर्णतः लाभ प्रदान करने वाली बन जाती है। पूरे वर्ष या किसी विशिष्ट अवधि के दौरान एक विशेष फसल को ऊर्ध्वाधर खेती के माध्यम से उगाने, उसकी कटाई करने तथा उत्पादन करने से वित्तीय तौर पर व्यवहार्यता हो सकती है। यह भी पढ़ें: फसलों की होगी अच्छी कटाई, बस ध्यान रखनी होंगी ये बातें

ज्यादा जल कुशल

पारंपरिक कृषि पद्धतियों के जरिए से उत्पादित की जाने वाली फसलों की तुलना में वर्टिकल फार्मिंग (Vertical farming) विधि के जरिए से उगाई जाने वाली समस्त फसलें आमतौर पर 95% प्रतिशत से ज्यादा जल कुशल होती हैं।

जल की बचत

वर्टिकल फार्मिंग (Vertical farming) से किसान काफी हद तक जल की खपत को कम कर सकते हैं। क्योंकि वर्टिकल फार्मिंग (Vertical farming) के अंतर्गत उपयोग होने वाली तकनीकों के माध्यम से कम जल उपयोग से अच्छी-खासी पैदावार ली जा सकती है।

बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य व सेहत

बतादें, कि ज्यादातर फसलें "कीटनाशकों के उपयोग के बिना" उगाई जाती हैं। जो कि "समय के साथ-साथ बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य की दिशा में सकारात्मक योगदान" प्रदान करता है। इसी वजह से उपभोक्ता शून्य-कीटनाशक उत्पादन की आशा कर सकते हैं, जो घर के लिये स्वस्थ, ताज़ा और टिकाऊ भी है।

रोजगार के अवसर

आखिर में इस बात पर बल देना काफी आवश्यक है, कि संरक्षित खेती के अंदर हमारे देश के कृषि छात्रों के लिये नए रोज़गार, कौशल सेट एवं आर्थिक अवसर उत्पन्न करने की क्षमता है। जो सीखने की अवस्था के अनुरूप होने के साथ तीव्रता से आगे बढ़ने में सक्षम है।
किसान मिर्च की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं

किसान मिर्च की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं

मिर्च खाने के लिए काफी अच्छी होती है। कैप्साइसिन रसायन मिर्च को काफी तीखा बनाता है, इसलिए यह ज्यादातर मसालों में इस्तेमाल किया जाता है। मिर्च को सॉस, अचार एवं दवाई बनाने में भी उपयोग किया जाता है। मिर्च में विटामिन ए, सी, फास्फोरस एवं कैल्शियम काफी हैं। मिर्च एक नगदी उत्पाद है, इसे किसी भी जलवायु में उगाया जा सकता है। मिर्च की उन्नत खेती करके कृषक काफी अच्छा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। मिर्च की खेती करने के लिए बेहतर जल निकासी वाली दोमट अथवा बलुई मृदा चाहिए, जिसमें ज्यादा कार्बनिक पदार्थ होते हैं। लवण और क्षार युक्त भूमि इसके लिए ठीक नहीं है। खेत की तीन-चार बार जुताई करके तैयार करना चाहिए। 1.25 से 1.50 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर खेती की आवश्यकता होती है।

मिर्च के पौधे की बिजाई

बतादें, कि प्रति क्यारी 50 ग्राम फोरेट एवं सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। बीज को 2 ग्राम एग्रोसन जीएन, थीरम अथवा कैप्टान रसायन प्रति किलो ग्राम उपचारित करें। बीज को पंक्तियों में एक इंच के फासला पर बोकर मृदा एवं खाद से ढक दें। ऊपर पुआल अथवा खरपतवार से ढक देना चाहिए। बीज जमने के पश्चात खरपतवार को बाहर निकाल दें। मिर्च का पौधे की 25 से 35 दिन में बिजाई की जा सकती है। मिर्च को हमेशा रात को ही रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के दौरान कतार और पौधों में 45 सेमी का फासला होना चाहिए। 85 से 95 दिन में हरी मिर्च फल देने लायक हो जाती है। सूखी मिर्च के फल की तुड़ाई 140-150 दिन पर रंग लाल होने पर करनी चाहिए।

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खेत में उर्वरक और खाद की मात्रा

200 कुंतल गोबर अथवा कंपोस्ट, 100 कुंतल नाइट्रोजन, 50 कुंतल फास्फोरस और 60 कुंतल पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है। रोपाई से पूर्व कंपोस्ट में फास्फोरस की संपूर्ण मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा दी जानी चाहिए। उसके पश्चात दो बार में शेष मात्रा दी जानी चाहिए। अगर कम वर्षा हो तो 10 से 15 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फसल की फूल और फल बनने के दौरान सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई नहीं होने पर फल और फूल काफी छोटे हो जाते हैं। खेत को खरपतवार रहित रखना चाहिए, जिससे कि बेहतरीन उत्पादन हो सके।