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जट्रोफा पौधे का उत्पादन कर के किसान अपनी बंजर भूमि मे भी खेती कर सकते हैं

जट्रोफा पौधे का उत्पादन कर के किसान अपनी बंजर भूमि मे भी खेती कर सकते हैं

भारत में जैव ईंधन का विकास मुख्य रूप से जेट्रोफा पौधे के बीजों की खेती और प्रसंस्करण के आसपास केंद्रित है। जो तेल में बहुत समृद्ध हैं, 27 से 40% तक और 34.4% औसत इसके चालक ऐतिहासिक, कार्यात्मक, आर्थिक, पर्यावरण, नैतिक और राजनीतिक हैं। जेट्रोफा करकास (Jatropha curcas) मेक्सिको और मध्य अमेरिका का मूल पौधा है। यह औषधीय उपयोगों के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में दुनिया भर में फैला हुआ है। सुदूर ग्रामीण और वन समुदायों की डीजल ईंधन आवश्यकताओं के लिए बायोडीजल के रूप में कई दशकों से भारत में जेट्रोफा तेल का उपयोग किया जाता रहा है। जेट्रोफा तेल का उपयोग सीधे निष्कर्षण के बाद (अर्थात बिना शोधन के) डीजल जनरेटर और इंजनों में किया जा सकता है। सरकार वर्तमान में एक इथेनॉल-सम्मिश्रण(ethanol blending) कार्यक्रम लागू कर रही है और बायोडीजल के लिए जनादेश के रूप में पहल पर विचार कर रही है। इन रणनीतियों के कारण, बढ़ती जनसंख्या, और परिवहन क्षेत्र से बढ़ती ऊर्जा की मांग, जैव ईंधन (Biofuels) को भारत में एक महत्वपूर्ण बाजार का आश्वासन दिया जा सकता है।


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जेट्रोफा में स्थानीय स्तर पर आर्थिक लाभ प्रदान करने की क्षमता है, क्योंकि उपयुक्त प्रबंधन के तहत इसमें शुष्क सीमांत बंजर भूमि में बढ़ने की क्षमता है। जिससे ग्रामीणों और किसानों को आय सृजन के लिए बंजर भूमि का लाभ उठाने की अनुमति मिलती है। साथ ही, जेट्रोफा तेल उत्पादन में वृद्धि भारत को व्यापक आर्थिक या राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक लाभ पहुँचाती है। क्योंकि यह डीजल उत्पादन के लिए देश के जीवाश्म ईंधन आयात बिल को कम करता है। ईंधन के लिए भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के खर्च को कम करना जिससे भारत अपने बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ा सके। जिसे औद्योगिक आदानों और उत्पादन के लिए पूंजीगत व्यय पर बेहतर तरीके से खर्च किया जा सकता है।

जेट्रोफा तेल कार्बन-तटस्थ है, बड़े पैमाने पर उत्पादन से देश के कार्बन उत्सर्जन में सुधार होगा।

भारत में जेट्रोफा प्रोत्साहन वर्ष 2018 तक ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भारत के लक्ष्य का एक हिस्सा है। जेट्रोफा करकास के बीज से जेट्रोफा तेल का उत्पादन किया जाता है, एक पौधा जो पूरे भारत में बंजर भूमि में उग सकता है और तेल को एक उत्कृष्ट माना जाता है।


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जैव-डीजल के स्रोत

भारत अपनी बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए कोयले और पेट्रोलियम पर अपनी निर्भरता कम करने का इच्छुक है और जेट्रोफा की खेती को प्रोत्साहित करना इसकी ऊर्जा नीति का एक महत्वपूर्ण घटक है। हालांकि, हाल के दिनों में जिस तरह से इसे बढ़ावा दिया गया है, जैव-ईंधन नीति आलोचनात्मक समीक्षा के दायरे में आ गई है। जेट्रोफा की खेती के लिए बंजर भूमि के बड़े भूखंडों का चयन किया गया है और यह भारत के ग्रामीण गरीबों को बहुत जरूरी रोजगार प्रदान करेगा। कारोबारी जेट्रोफा की खेती को एक अच्छे कारोबारी अवसर के रूप में देख रहे हैं।
जानें जेट्रोफा से क्या-क्या बनता है और इसकी खेती कैसे करें

जानें जेट्रोफा से क्या-क्या बनता है और इसकी खेती कैसे करें

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि जेट्रोफा की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही इसकी खेती हेतु आपको ऐेसे खेत की आवश्यकता पड़ेगी। जहां पानी की निकासी अच्छी हो। यह पौधा शुष्क इलाकों में ज्यादा होता है। आज तक आपने किसानों को आम पारंपरिक फसलों की खेती करते हुए देखा होगा। वहीं, थोड़े बहुत किसानों को सब्जी की खेती करते हुए देखा होगा। परंतु, फिलहाल आपको किसान डीजल की खेती करते नजर आऐंगे। सामान्यतः इस पौधे का नाम जेट्रोफा है। परंतु, सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे डीजल का पौधा कहा जाता है। दरअसल, इस पौधे के बीजों से बायोडीजल निकाला जाता है। किसानों को इसको इसका समुचित भाव मिलता है।

जेट्रोफा की खेती किस प्रकार की जाती है

जेट्रोफा की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही, जेट्रोफा की खेती के लिए आपको ऐेसे खेत की आवश्यकता पड़ेगी जहां पानी की समुचित निकासी की व्यवस्था हो। ये पौधा शुष्क इलाकों में ज्यादा होता है। मतलब कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान के इलाकों और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सो में इसकी खेती बेहतरीन ढ़ंग से होती है। जेट्रोफा के पौधे को सीधे तौर पर खेत में नहीं लगाया जाता है। सबसे पहले इसकी नर्सरी तैयार की जाती है। उसके बाद इसके पौधों को खेत में रोपा जाता है। इसकी खेती के साथ सबसे विशेष बात यह होती है, कि एक बार इसे खेत में लगा दिया जाए तो यह तीन से चार सालों तक फसल प्रदान करती है।

जेट्रोफा के बीजों से किस प्रकार डीजल बनता है

जेट्रोफा के पौधों से डीजल के बनने की प्रक्रिया बेहद सघन है। दरअसल, सबसे पहले जेट्रोफा के पौधे के बीजों को फलों से अलग करना पड़ता है। इसके उपरांत बीजों को काफी बेहद ढ़ंग से साफ किया जाता है। उसके बाद इन्हें एक मशीन के अंदर डाला जाता है। जहां से कि इसका तेल निकलता है। यह प्रक्रिया बिल्कुल उसी तरह की होती है, जैसे कि सरसों से तेल निकालने की प्रक्रिया होती है। ये भी पढ़े: महंगी तार फैंसिंग नहीं, कम लागत पर जानवर से ऐसे बचाएं फसल, कमाई करें डबल

जेट्रोफा की मांग में बढ़ोत्तरी

डीजल-पेट्रोल के बढ़ते दामों की वजह से भारत सहित संपूर्ण विश्व में इसकी मांग बढ़ी है। भारत सरकार भी इसकी खेती में किसानों की सहायता कर रही है। इसलिए, यदि भारतीय किसान इसकी बड़े स्तर पर खेती करते हैं, तो यह उन्हें पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक मुनाफा देगी। आज के दौर में किसानों को लीक से हटकर फसलों का उत्पादन करना काफी मुनाफा दिला सकता है। किसानों को जेट्रोफा जैसी फसल भी उगानी चाहिए। किसानों को बाजार में मांग और आपूर्ति के अनुसार फसलों का उत्पादन करना चाहिए।