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ज्वार की खेती से पाएं दाना और चारा

ज्वार की खेती से पाएं दाना और चारा

ज्वार को ज्यादा तादाद में किसान चारे के लिए उगाते हैं लेकिन कई इलाकों में इसकी खेती दाने के लिए भी की जाती है। ज्वार की खेती के लिए 6 से 8.30 पीएच वाली मिट्टी उपयुक्त रहती है। 

उचित जल निकासी, बेहतर जल धारण क्षमता वाली उपजाऊ मिट्टी में इसकी खेती श्रेष्ठ रहती है। देसी किस्में कमजोर जमीन में भी हो जाती है। 

ज्वार ऐसी फसल है जो कम पानी में भी हो जाती है तथा दो-चार दिन अगर पानी भरा भी रहे तब भी यह बची रहती है। ज्वार की खेती उत्तर भारत में खरीफ सीजन में एवं दक्षिण भारत में रबी सीजन में की जाती है। इसलिए ज्वार की मांग साल भर बनी रहती है।

खेत की तैयारी

ज्वार की खेती के लिए खेत को कल्टीवेटर एवं
हैरो दोनों से जुड़ना चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। अच्छी फसल के लिए कंपोस्ट खाद का प्रयोग जरूर करना चाहिए। 

यदि खेत साल में कुछ महीने के लिए खाली रहता हो तो हरी खाद के लिए ढेंचा लगा देना चाहिए। ढैंचा की 60 दिन की फसल को दो ढाई फीट की अवस्था पर खेत में हैरों चलाकर जोत देना चाहिए। यदि सिंचाई के लिए पानी संभव हो तो खेत में पानी लगा देना चाहिए ताकि ढेंचा जल्दी से गल जाए।

ज्वार की उन्नत किस्में

मध्यप्रदेश के लिए ज्वार की संकर किस्म सी एस एच 5, 9, 14 एवं 18 उपयुक्त हैं। पुन्ह बीज से जमने वाली ओपी किस्मों में जवाहर ज्वार 741, जवाहर ज्वार 938, एसपीवी 1022, जवाहर ज्वार 1041 एवं एएसआर-1 जैसी अनेक किस्में बाजार में उपलब्ध रहती हैं। 

उत्तर प्रदेश के लिए सीएचएस 16, 14, 9, सीएसवी 13 एवं 15, वर्षा, मऊ t1 एवं मऊ टी2 किस्म उपयुक्त हैं। शंकर किस्मों से दाना 38 कुंटल एवं चारा 140 क्विंटल तक प्राप्त हो जाता है।

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कम उपजाऊ जमीन के लिए किस्में

यूं तो ज्वार की संकर किस्में बेहद अच्छा उत्पादन देने वाली बाजार में मौजूद हैं लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों और कमजोर जमीन में देसी किस्में अच्छा उत्पादन दे जाती हैं। 

इनमें उज्जैन की उज्जैन है लव कुश, विदिशा, आंवला आदि किस्मों से दाने की उपज 12 से 16 कुंटल एवं चारे की उपज 30 से 40 कुंटल तक मिल जाती है।

उर्वरक प्रबंधन

बुवाई के समय 50 किलोग्राम नाइट्रोजन 80 किलोग्राम फास्फोरस एवं 30 किलोग्राम पोटाश संस्तुत की जाती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा ही जुताई के समय डालनी चाहिए बाकी उर्वरक पूरे डाल देने चाहिए।

ज्वार की खेती में बीजोपचार और इसमें लगने वाले कीट व रोगों की रोकथाम से जुड़ी जानकारी

ज्वार की खेती में बीजोपचार और इसमें लगने वाले कीट व रोगों की रोकथाम से जुड़ी जानकारी

रबी की फसलों की कटाई प्रबंधन का कार्य कर किसान भाई अब गर्मियों में अपने पशुओं के चारे के लिए ज्वार की बुवाई की तैयारी में हैं। 

अब ऐसे में आपकी जानकारी के लिए बतादें कि बेहतर फसल उत्पादन के लिए सही बीज मात्रा के साथ सही दूरी पर बुआई करना बहुत जरूरी होता है। 

बीज की मात्रा उसके आकार, अंकुरण प्रतिशत, बुवाई का तरीका और समय, बुआई के समय जमीन पर मौजूद नमी की मात्रा पर निर्भर करती है। 

बतादें, कि एक हेक्टेयर भूमि पर ज्वार की बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन, हरे चारे के रूप में बुवाई के लिए 20 से 30 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता पड़ती है। 

ज्वार के बीजों की बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित करके बोना चाहिए। बीजोपचार के लिए कार्बण्डाजिम (बॉविस्टीन) 2 ग्राम और एप्रोन 35 एस डी 6 ग्राम कवकनाशक दवाई प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार करने से फसल पर लगने वाले रोगों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 

इसके अलावा बीज को जैविक खाद एजोस्पाइरीलम व पी एस बी से भी उपचारित करने से 15 से 20 फीसद अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।

इस प्रकार ज्वार के बीजों की बुवाई करने से मिलेगी अच्छी उपज ?

ज्वार के बीजों की बुवाई ड्रिल और छिड़काव दोनों तरीकों से की जाती है। बुआई के लिए कतार के कतार का फासला 45 सेंटीमीटर रखें और बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर तक गहरा बोयें। 

अगर बीज ज्यादा गहराई पर बोया गया हो, तो बीज का जमाव सही तरीके से नहीं होता है। क्योंकि, जमीन की उपरी परत सूखने पर काफी सख्त हो जाती है। कतार में बुआई देशी हल के पीछे कुडो में या सीडड्रिल के जरिए की जा सकती है।

सीडड्रिल (Seed drill) के माध्यम से बुवाई करना सबसे अच्छा रहता है, क्योंकि इससे बीज समान दूरी पर एवं समान गहराई पर पड़ता है। ज्वार का बीज बुआई के 5 से 6 दिन उपरांत अंकुरित हो जाता है। 

छिड़काव विधि से रोपाई के समय पहले से एकसार तैयार खेत में इसके बीजों को छिड़क कर रोटावेटर की मदद से खेत की हल्की जुताई कर लें। जुताई हलों के पीछे हल्का पाटा लगाकर करें। इससे ज्वार के बीज मृदा में अन्दर ही दब जाते हैं। जिससे बीजों का अंकुरण भी काफी अच्छे से होता है।  

ज्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें ?

यदि ज्वार की खेती हरे चारे के तोर पर की गई है, तो इसके पौधों को खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता नहीं पड़ती। हालाँकि, अच्छी उपज पाने के लिए इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए। 

ज्वार की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही ढ़ंग से किया जाता है। रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के तुरंत बाद एट्राजिन की उचित मात्रा का स्प्रे कर देना चाहिए। 

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वहीं, प्राकृतिक ढ़ंग से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन पश्चात एक बार पौधों की गुड़ाई कर देनी चाहिए। 

ज्वार की कटाई कब की जाती है ?

ज्वार की फसल बुवाई के पश्चात 90 से 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई के उपरांत फसल से इसके पके हुए भुट्टे को काटकर दाने के लिए अलग निकाल लिया जाता है। ज्वार की खेती से औसत उत्पादन आठ से 10 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाता है। 

ज्वार की उन्नत किस्में और वैज्ञानिक विधि से उन्नत खेती से अच्छी फसल में 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ दाने की उपज हो सकती है। बतादें, कि दाना निकाल लेने के उपरांत करीब 100 से 150 क्विंटल प्रति एकड़ सूखा पौैष्टिक चारा भी उत्पादित होता है। 

ज्वार के दानों का बाजार भाव ढाई हजार रूपए प्रति क्विंटल तक होता है। इससे किसान भाई को ज्वार की फसल से 60 हजार रूपये तक की आमदनी प्रति एकड़ खेत से हो सकती है। साथ ही, पशुओं के लिए चारे की बेहतरीन व्यवस्था भी हो जाती है। 

ज्वार की फसल को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोग और कीट व रोकथाम 

ज्वार की फसल में कई तरह के कीट और रोग होने की संभावना रहती है। समय रहते अगर ध्यान नहीं दिया गया तो इनके प्रकोप से फसलों की पैदावार औसत से कम हो सकती है। ज्वार की फसल में होने वाले प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं।

तना छेदक मक्खी : इन मक्खियों का आकार घरेलू मक्खियों की अपेक्षा में काफी बड़ा होता है। यह पत्तियों के नीचे अंडा देती हैं। इन अंडों में से निकलने वाली इल्लियां तनों में छेद करके उसे अंदर से खाकर खोखला बना देती हैं। 

इससे पौधे सूखने लगते हैं। इससे बचने के लिए बुवाई से पूर्व प्रति एकड़ भूमि में 4 से 6 किलोग्राम फोरेट 10% प्रतिशत कीट नाशक का उपयोग करें।

ज्वार का भूरा फफूंद : इसे ग्रे मोल्ड भी कहा जाता है। यह रोग ज्वार की संकर किस्मों और शीघ्र पकने वाली किस्मों में ज्यादा पाया जाता है। इस रोग के प्रारम्भ में बालियों पर सफेद रंग की फफूंद नजर आने लगती है। इससे बचाव के लिए प्रति एकड़ भूमि में 800 ग्राम मैन्कोजेब का छिड़काव करें।

सूत्रकृमि : इससे ग्रसित पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। इसके साथ ही जड़ में गांठें बनने लगती हैं और पौधों का विकास बाधित हो जाता है। 

रोग बढ़ने पर पौधे सूखने लगते हैं। इस रोग से बचाव के लिए गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करें। प्रति किलोग्राम बीज को 120 ग्राम कार्बोसल्फान 25% प्रतिशत से उपचारित करें।

ज्वार का माइट : यह पत्तियों की निचली सतह पर जाल बनाते हैं और पत्तियों का रस चूस कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे ग्रसित पत्तियां लाल रंग की हो कर सूखने लगती हैं। इससे बचने के लिए प्रति एकड़ जमीन में 400 मिलीग्राम डाइमेथोएट 30 ई.सी. का स्प्रे करें।

भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत दुनिया में मोटे अनाजों (Coarse Grains) का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए भारत इस चीज के लिए तेजी से प्रयासरत है कि दुनिया भर में मोटे अनाजों की स्वीकार्यता बढ़े। 

इसको लेकर भारत ने साल 2018 को मिलेट्स ईयर के तौर पर मनाया था और साथ ही अब साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023) के तौर पर मनाएगा। इसका सुझाव भी संयुक्त राष्ट्र (United Nations) संघ को भारत सरकार ने ही दिया है, जिस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने सहमति जताई है।

इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें देश के भीतर मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने देश में तीन नए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये हैं, जो देश में मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होंगे, साथ ही ये उत्कृष्टता केंद्र देश में मोटे अनाजों के प्रति लोगों को जागरूक भी करेंगे।

  • इन तीन उत्कृष्टता केंद्रों में से पहला केंद्र बाजरा (Pearl Millet) के लिए  चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (Chaudhary Charan Singh Haryana Agricultural University, Hisar) में स्थापित किया गया है। यह केंद्र पूरी तरह से बाजरे की खेती के लिए, उसके उत्पादन के लिए तथा उसके प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है, इसके साथ ही यह केंद्र लोगों के बीच बाजरे के फायदों को लेकर जागरूक करने का प्रयास भी करेगा।
  • इसी कड़ी में सरकार ने दूसरा उत्कृष्टता केंद्र भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (Indian Institute of Millets Research (IIMR)) में स्थापित किया है। यह केंद्र ज्वार (Jowar) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। यह केंद्र देश भर में ज्वार की खेती के प्रति लोगों को जागरूक करेगा, साथ ही लोगों के बीच ज्वार से होने वाले फायदों को लेकर जागरूकता फैलाएगा।
  • इनके साथ ही तीसरा उत्कृष्टता केंद्र कृषि विज्ञान विश्विद्यालय, बेंगलुरु (University of Agricultural Sciences, GKVK, Bangalore) में स्थापित किया गया है। यह उत्कृष्टता केंद्र छोटे मिलेट्स जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि के उत्पादन और प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है।
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मोटे अनाजों में मुख्य तौर पर ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर बाजरा और अन्य कुटकी जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि आते हैं, इन सभी को मिलाकर भारत में मोटा अनाज या मिलेट्स (Millets) कहते हैं। 

इन अनाजों को ज्यादातर पोषक अनाज भी कहा जाता है क्योंकि इन अनाजों में चावल और गेहूं की तुलना में 3.5 गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। मोटे अनाजों में पोषक तत्वों का भंडार होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद फायदेमंद होते हैं। 

मिलेटस में मुख्य तौर पर बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिजों के साथ विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

इन अनाजों का सेवन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होता है, इनका सेवन करने वाले लोगों को कब्ज और अपच की परेशानी होने की संभावना न के बराबर होती है। 

ये अनाज बेहद चमत्कारिक हैं क्योंकि ये अनाज विपरीत परिस्तिथियों में भी आसानी से उग सकते हैं, इनके उत्पादन के लिए पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है। 

साथ ही प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन का भी इन अनाजों पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए इनका उत्पादन भी ज्यादा होता है और इन अनाजों का उत्पादन करने से प्रकृति को भी ज्यादा नुकसान नहीं होता। 

आज के युग में जब पानी लगातार काम होता जा रहा है और भूमिगत जल नीचे की ओर जा रहा है ऐसे में मोटे अनाजों का उत्पादन एक बेहतर विकल्प हो सकता है क्योंकि इनके उत्पादन में चावल और गेहूं जितना पानी इस्तेमाल नहीं होता। 

यह अनाज कम पानी में भी उगाये जा सकते हैं जो पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल हैं। मोटे अनाजों का उपयोग मानव अपने खाने के साथ-साथ जानवरों के खाने के लिए भी कर सकता है, इन अनाजों का उपयोग भोजन के साथ-साथ, पशुओं के लिए और पक्षियों के चारे के रूप में भी किया जाता है। ये अनाज हाई पौष्टिक मूल्यों वाले होते हैं जो कुपोषण से लड़ने में सहायक होते हैं।

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मोटे अनाजों का उत्पादन देश में कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यहां की जलवायु मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए अनुकूल है और इन राज्यों में मिलेट्स को आसानी से उगाया जा सकता है, 

इसके साथ ही इन राज्यों के लोग अब भी मोटे अनाजों के प्रति लगाव रखते हैं और अपनी दिनचर्या में इन अनाजों को स्थान देते हैं। इसके अलावा इन अनाजों का एक बहुत बड़ा उद्देश्य पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करना है। मोटे अनाजों के पेड़ों का उपयोग कई राज्यों में पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, 

इनके पेड़ों को मशीन से काटकर पशुओं को खिलाया जाता है, इस मामले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश टॉप पर हैं, जहां मोटे अनाजों का इस उद्देश्य की आपूर्ति के लिए बहुतायत में उत्पादन किया जाता है। 

मोटे अनाजों के कई गुणों को देखते हुए सरकार लगतार इसके उत्पादन में वृद्धि करने का प्रयास कर रही है। जहां साल 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई थी, 

वहीं इस साल देश में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई है। अगर वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो देश में हर साल 50 मिलियन टन से ज्यादा मिलेट्स का उत्पादन किया जाता है।

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इन मोटे अनाजों में मक्के और बाजरे का शेयर सबसे ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा किसान मोटे अनाजों की खेती की तरफ आकर्षित हों इसके लिए सरकार ने लगभग हर साल मोटे अनाजों के सरकारी समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की है। इन अनाजों को सरकार अब अच्छे खासे समर्थन मूल्य के साथ खरीदती है। 

जिससे किसानों को भी इस खेती में लाभ होता है। बीते कुछ सालों में इन अनाजों के प्रचलन का ग्राफ तेजी से गिरा है। आजादी के पहले देश में ज्यादातर लोग मोटे अनाजों का ही उपयोग करते थे, लेकिन अब लोगों के खाना खाने का तरीका बदल रहा है, 

जिसके कारण लोगों की जीवनशैली प्रभावित हो रही है और लोगों को मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां तेजी से घेर रही हैं। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए लोगों को अपनी थाली में मोटे अनाजों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयासरत है। 

मोटे अनाजों के फायदों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें 'सुपरफूड' बताया है। अब पीएम मोदी दुनिया भर में इन अनाजों के प्रचार के लिए ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं। 

"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें । 

पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हुए शंघाई सहयोग संगठन की बैठक को सम्बोधित करते हुए मोटे अनाजों को 'सुपरफूड' बताया था। 

उन्होंने अपने सम्बोधन में इन अनाजों से होने वाले फायदों के बारे में भी बताया था। पीएम मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न नेताओं के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट्स फूड फेस्टिवल के आयोजन की वकालत की थी। 

उन्होंने बताया था की इन अनाजों के उत्पादन के लिए कितनी कम मेहनत और पानी की जरुरत होती है। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार लगातार मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए और प्रचारित करने के लिए प्रयासरत है।

यह राज्य सरकार किसानों से 2970 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से हजारों टन ज्वार खरीदेगी

यह राज्य सरकार किसानों से 2970 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से हजारों टन ज्वार खरीदेगी

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने ज्वार की खरीद के लिए सरकारी एजेंसी मार्कफेड को आदेश भी दे दिया है। मुख्यमंत्री के आदेश देने के बाद मार्कफेड ज्वार की खरीद की तैयारियों में जुट गई है। तेलंगाना राज्य में ज्वार की खेती करने वाले किसानों के लिए अच्छी खबर है। प्रदेश के ज्वार किसानों को अपनी फसल को बेचने के लिए इधर उधर चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। तेलंगाना सरकार की तरफ से यह घोषणा की गई है, कि सरकार प्रदेश के कृषकों से 2970 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से ज्वार की खरीद करेगी। साथ ही, इस खबर से ज्वार की खेती करने वाले कृषकों के मध्य खुशी की लहर है। किसानों का कहना है, कि सरकार के इस फैसले से उन्हें बेहद लाभ होगा। फिलहाल, ज्वार की धनराशि से धान की खेती बेहतर ढ़ंग से कर सकेंगे। वह इन रुपयों से धान की खेती में समयानुसार खाद डाल सकेंगे।

तेलंगाना सरकार मोटे अनाज को प्रोत्साहन दे रही है

किसान तक के अनुसार, तेलंगाना राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की सरकार प्रदेश में मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहन देना चाहती है। यही कारण है, कि उसने इस प्रकार का फैसला लिया है, जिससे कि किसान धीरे- धीरे मोटे अनाज की खेती की तरफ बढ़ सकें। दरअसल, तेलंगाना सरकार मोटे अनाज के रकबे को बढ़ाने के उद्देश्य से कृषकों को निःशुल्क बीज भी वितरित किए जा रहे हैं। वर्तमान में ज्वार की खरीद किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। राज्य में इस बार ज्वार की संपूर्ण उपज को सरकार द्वारा खरीदा जाएगा।

तेलंगाना सरकार राज्य के किसानों से कितने हजार टन ज्वार खरीदेगी

विशेष बात यह है, कि राज्य सरकार द्वारा ज्वार की खरीद चालू करने के लिए सरकारी एजेंसी (मार्कफेड ) को आदेश भी दे दिया है। आदेश मिलते ही सरकारी एजेंसी ज्वार की खरीद की तैयारियों में जुट गई हैं। इस बार तेलंगाना सरकार की तरफ से कृषकों से 65500 टन ज्वार की खरीद करने का लक्ष्य तय किया गया है। इसके लिए सरकार द्वारा मार्कफेड को बैंक गारंटी दिया जाएगा। सरकार मार्कफेड को 220 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी प्रदान करेगी। जिससे कि ज्वार की खरीद में किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो सके।

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किसानों ने काफी बड़े पैमाने पर ज्वार का उत्पादन किया है

तेलंगाना राज्य में किसान बड़े पैमाने पर मोटे अनाज की खेती किया करते है। इस बार राज्य में लगभग एक लाख किसानों द्वारा 51395 हेक्टेयर में ज्वार की खेती की गई है। विकराबाद, गडवल, असिफाबाद, निरमल, कामारेड्डी, अदिलाबाद और नारायणपेट जनपद में किसानों ने सबसे ज्यादा ज्वार की खेती की है। ऐसे में सरकार के इस फैसले से लगभग एक लाख किसानों को सीधा लाभ होगा। उनके खाते में 2970 रुपये प्रति क्विंटल की दर धनराशि पहुंचाई जाएगी।

सर्वाधिक ज्वार का उत्पादन किस राज्य में होता है

जानकारी के लिए बतादें, कि विगत वर्ष तेलंगाना में रबी सीजन के दौरान 35,600 हेक्टेयर में ज्वार का उत्पादन किया था। परंतु, इस बार कृषकों ने मिलेट मिशन के अंतर्गत बड़े रकबे में ज्वार की बुवाई की है। रबी फसल सीजन 2021-22 में तेलंगाना के किसानों ने 48 लाख टन ज्वार की पैदावार की थी। ऐसी स्थिति में भारत में आंध्र प्रदेश के अंदर सर्वाधिक ज्वार का उत्पादन किया जाता है।
खाद्य एवं चारे के रूप में उपयोग की जाने वाली ज्वार की फसल की संपूर्ण जानकारी 

खाद्य एवं चारे के रूप में उपयोग की जाने वाली ज्वार की फसल की संपूर्ण जानकारी 

ज्वार को अंग्रेजी भाषा में सोरघम कहा जाता है। मूलतः भारत में इसकी खेती खाद्य और पशुओं के लिए चारा के तौर पर की जाती है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) के सस्य विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ .गजेन्द्र सिंह तोमर द्वारा अपने एक लेख में लिखा गया है, कि ज्वार की खेती भारत के अंदर तीसरे स्थान पर है। अनाज और चारे के लिए की जाने वाली ज्वार की खेती उत्तरी भारत के अंदर खरीफ के मौसम में एवं दक्षिणी भारत में रबी के मौसम में की जाती है। ज्वार को अंग्रेजी में सोरघम कहा जाता है। मूलतः भारत में इसकी खेती खाद्य एवं जानवरों के लिए चारे के तौर पर की जाती है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) के सस्य विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ .गजेन्द्र सिंह तोमर के अनुसार ज्वार की खेती का भारत में तीसरा स्थान है। अनाज व चारे के लिए की उगाए जाने वाली ज्वार की खेती उत्तरी भारत में खरीफ के मौसम में और दक्षिणी भारत में रबी के मौसम में की जाती है। ज्वार की प्रोटीन में लाइसीन अमीनो अम्ल की मात्रा 1.4 से 2.4 फीसद तक पाई जाती है, जो कि पौष्टिकता की दृष्टि से बेहद कम है। इसके दाने में ल्यूसीन अमीनो अम्ल की ज्यादा उपलब्धता होने की वजह ज्वार खाने वाले लोगों में पैलाग्रा नामक रोग का संक्रमण हो सकता है। इसकी फसल ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में सबसे बेहतर होती है। ज्वार की अच्छी कीमतों को ध्यान में रखते हुए यदि कुछ किसान मिलकर अपने आस-पास लगे हुए खेतों में इस फसल को उत्पादित कर ज्यादा फायदा ले सकते हैं। क्योंकि इसके दाने एवं कड़वी दोनों ही अच्छे भाव पर बेचे जा सकते हैं।

ज्वार की खेती करने के लिए भूमि को किस प्रकार तैयार करें

डॉ. गजेन्द्र सिंह के अनुसार, ज्वार की फसल कम बारिश में भी अच्छा उत्पादन दे सकती है। कुछ वक्त के लिए जल-भराव रहने पर भी सहन कर लेती है। विगत फसल के कट जाने के उपरांत मृदा पलटने वाले हल से खेत में 15-20 सेमी. गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके उपरांत 4-5 बार देशी हल चलाकर मृदा को भुरभुरा कर लेना चाहिए। बुवाई से पहले पाटा चलाकर खेत को एकसार कर लेना चाहिए। मालवा व निमाड़ में ट्रैक्टर द्वारा चलने वाले कल्टीवेटर और बखर से जुताई करके भूमि को सही ढंग से भुरभुरी बनाते हैं। ग्वालियर संभाग में देशी हल अथवा ट्रेक्टर द्वारा चलने वाले कल्टीवेटर से भूमि को भुरभुरी बनाकर पाटा से खेत को एकसार कर बुवाई करते हैं।

जमीन के अनुरूप ज्वार की उपयुक्त प्रजातियां कुछ इस प्रकार हैं

ज्वार की फसल समस्त प्रकार की भारी एवं हल्की मिट्टियां, लाल व पीली दोमट एवं यहां तक कि रेतीली मृदाओं में भी उगाई जाती है। परंतु, इसके लिए समुचित जल निकास वाली भारी मिट्टियां (मटियार दोमट) सबसे अच्छी होती हैं। असिंचित अवस्था में ज्यादा जल धारण क्षमता वाली मृदाओं में ज्वार की उपज ज्यादा होती है। मध्य प्रदेश में भारी जमीन से लेकर पथरीले जमीन पर इसका उत्पादन किया जाता है। छत्तीसगढ़ की भाटा-भर्री भूमिओं में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। ज्वार की फसल 6.0 से 8.5 पी. एच. वाली मृदाओं में सफलतापूर्वक उत्पादित की जा सकती है। ज्वार से बेहतरीन पैदावार के लिए उन्नतशील प्रजातियों का शुद्ध बीज ही बोना चाहिए। किस्म का चुनाव बोआई का वक्त एवं क्षेत्र अनुकूलता के आधार पर होना चाहिए। साथ ही, बीज प्रमाणित संस्थाओं का ही बिजाई के लिए उपयोग करें अथवा उन्नत प्रजातियों का खुद का बनाया हुआ बीज उपयोग करें। ज्वार में दो तरह की किस्मों के बीज मौजूद हैं-संकर एंव उन्नत किस्में। संकर किस्म की बिजाई के लिए हर साल नवीन प्रमाणित बीज ही उपयोग में लाना चाहिए। उन्नत प्रजातियों का बीज हर साल  बदलना नहीं पड़ता है। यह भी पढ़ें: ज्वार की खेती से पाएं दाना और चारा

ज्वार की संकर प्रजातियां निम्नलिखित हैं

मध्यप्रदेश के लिए ज्वार की समर्थित संकर प्रजातियां सीएसएच-14, सीएसएच-18, सीएसएच5, सीएसएच9 है। इनके अतिरिक्त जिनका बीज प्रति वर्ष नया नहीं बदलना पड़ता है। वो है एसपीवी 1022, एएसआर-1, जवाहर ज्वार 741, जवाहर ज्वार 938 और जवाहर ज्वार 1041 इनके बीजों के लिए ज्वार अनुसंधान परियोजना, कृषि महाविद्यालय इंदौर से संपर्क साध सकते हैं। ढाई एकड़ के खेत में बिजाई के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। उत्तर प्रदेश में सीएसबी-13, वषा, मऊ टी-1, मऊ टी-2, सीएसएच-16, सीएसएच-14, सीएमएच-9, सीएसबी-15 का उत्पादन किया जाता है।

ज्वार की कम समय में पकने वाली प्रजातियां

अगर ज्वार की देशी प्रजातियों के आकार की बात की जाए तो इसके पौधे ऊंचाई वाले, लंबे और गोल भुट्टों वाले होते थे। इनमें दाने एकदम सटे हुए लगते थे।  पीला आंवला, लवकुश, विदिशा 60-1, ज्वार की उज्जैन 3, उज्जैन 6 प्रमुख प्रचलित प्रजातियां थीं। इनका उत्पादन 12 से 16 क्विंटल दाना एवं 30 से 40 क्विंटल कड़वी (पशु चारा) प्रति एकड़ तक प्राप्त हो जाता था। इनका दाना मीठा और स्वादिष्ट होता था। बतादें कि यह प्रजातियां कम पानी और अपेक्षाकृत हल्की भूमि में उत्पादित हो जाने की वजह से आदिवासी क्षेत्रों की मुख्य फसल थी। यह उनके जीवन यापन का मुख्य जरिया था। साथ ही, इससे उनके मवेशियों को चारा भी प्राप्त हो जाता था। इनके झुके हुए ठोस भुटटों पर पक्षियों हेतु बैठने का स्थान न होने की वजह हानि कम होती थी। पैदावार को ध्यान में रखते हुए ज्वार में बुवाई का समय काफी महत्वपूर्ण है। ज्वार की फसल को मानसून आने के एक हफ्ते पूर्व सूखे में बुवाई करने से उत्पादन में 22.7 प्रतिशत वृद्धि देखी गई है।