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किसानों के लिए सफेद सोना साबित हो रही कपास की खेती : MSP से डबल हो गए कपास के दाम

किसानों के लिए सफेद सोना साबित हो रही कपास की खेती : MSP से डबल हो गए कपास के दाम

MSP से डबल हो गए कपास के दाम - किसानों के लिए सफेद सोना साबित हो रही कपास की खेती

नई दिल्ली। कपास की खेती करने वाले किसानों की इस साल खूब बल्ले-बल्ले हुई है। बाजार में कपास को अच्छा भाव मिला है। एमएसपी से भी डबल दामों में कपास की बिक्री हुई। 

कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना साबित हुई है। लांग स्टेपल कॉटन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6025 रुपए प्रति क्विंटल है। जबकि बाजार में इसके भाव 12000 से 13000 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है। 

ऐसे में किसानों के लिए इस बार कपास की खेती सफेद सोना बनी हुई है। पिछले साल प्रकृति के कहर से सभी फसल बर्बाद हुईं थीं। उधर कपास को अच्छा भाव भी नहीं मिला। 

जिसके चलते किसानों व बड़े व्यापारियों ने कपास का भंडारण भी कम ही किया गया। जिसके चलते इस बार कपास की फसल ने किसानों को अच्छा मुनाफा दिया है। और उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले सीजन में भी कपास की खेती फायदे का सौदा रहेगी।

कपास के बीज खरीदने लगे किसान

- कपास की खेती करने वाले किसानों ने कपास के बीज खरीदना शुरू कर दिया है। कपास के बीज बिक्री पर 31 मई तक रोक थी, 

अब बाजार में कपास के बीज की बिक्री शुरू हो गई है। अनुमान है कि बारिश होते ही कपास की बुवाई शुरू हो जाएगी। 

ये भी देखें: कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

कपास के पौधों का रखरखाव एवं बचाव

- कपास की खेती में जब पौधों में फूल लगने वाले हो तब खरपतवार पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उस समय कई तरह के खरपतवार उग आते है, जिसमे कई प्रकार की कीट जन्म लेते है | 

यही कीट पौधों में कई तरह के रोग उत्पन्न करते है। इन रोगो से बचाव के लिए ही खरपतवार नियंत्रण पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इसके लिए समय-समय पर कपास के खेत की निराई – गुड़ाई करते रहना चाहिए। 

खेत में बीज लगाने के 25 दिन के बाद से ही निराई-गुड़ाई शुरू कर देनी चाहिए। इससे पौधों के विकास में किसी तरह की रुकावट नहीं आती है, तथा पौधे अच्छे से विकास भी कर पाते है।

कैसे करें कपास की फसल की सिंचाई

- कपास की खेती में बहुत ही कम पानी की जरूरत होती है, यदि फसल बारिश के मौसम में की गयी है तो इसे पहली सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, 

और यदि खेती बारिश के मौसम में नहीं की गयी है तो 45 दिन के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। कपास के पौधे अधिक धूप में अच्छे से विकसित होते है 

इसलिए पहली सिंचाई करने के बाद जरूरत पड़ने पर ही इसकी सिंचाई करनी चाहिए किन्तु पौधों में फूल लगने के वक़्त खेत में नमी की उचित मात्रा बनी रहनी चाहिए जिससे पौधों के फूल झड़े नहीं, किन्तु अधिक पानी भी नहीं देना चाहिए इससे फूलो के ख़राब होने का खतरा हो सकता। ----- लोकेन्द्र नरवार

महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम - दोगुनी होगी किसानों की आमदनी

महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम - दोगुनी होगी किसानों की आमदनी

कपास की खेती से दोगुनी होगी किसानों की आमदनी - महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम

मुम्बई। कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना बन गई है। भले ही केन्द्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए कॉटन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 6380 रु. तय किया है। जबकि महाराष्ट्र में किसानों को कॉटन का भाव 12000 रु. प्रति क्विंटल मिल रहा है। इसीलिए इस साल कपास की बुवाई पर किसान काफी जोर दे रहे हैं। कृषि विभाग भी चाहता है कि किसान ज्यादा से ज्यादा कपास की बुवाई करें, जिससे किसानों को फायदा मिले। और किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए। कृषि विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन और किसानों की भागी से इस बार उत्पादन में वृद्धि होने की उम्मीद जताई जा रही है। महाराष्ट्र के कई गांवों में कपास की एक ही किस्म लगाने और उत्पादन में इजाफा करने का प्लान बनाया गया है।

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कपास का रकबा बढाने के लिए पहल

- 'एक-गांव, एक-पहल' के तहत महाराष्ट्र के 63 गांवों में 6 हजार 225 हेक्टेयर में एक साथ कपास की बुवाई की जाएगी। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। यहां कपास का रकबा साल दर साल बढ़ रहा है। इस अभियान का मकसद तभी पूरा होगा, जब किसानों को फसल का पूरा दाम मिले। ये भी देखें: कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

ये ब्लॉक होंगे अभियान में शामिल

- 'एक गांव-एक किस्म' अभियान के तहत नगर तालुका में 9 गांव शामिल होंगे। इसमें 774 हेक्टेयर में कपास की खेती होगी। पथरडी तालुका में 13 गांवों को शामिल किया गया है। इनमें 1460 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल होगा। शेवगांव तालुका के 8 गांवों में 1 हजार 200 हेक्टेयर एरिया शामिल किया जाएगा। इस पहल के जरिए रकबा तो बढ़ेगा ही साथ में उत्पादन में भी इजाफा होगा. जिससे किसानों की आय बढ़ेगी। ------ लोकेन्द्र नरवार