वर्मीकम्पोस्ट यूनिट से हर माह लाखों कमा रहे चैनल वाले डॉक्टर साब, अब ताना नहीं, मिलती है शाबाशी
इतना पढ़ लिख कर सब गुड़ गोबर कर दिया, आपने यह बात तो सुनी ही होगी। लेकिन मेरी खेती पर हम बात करेंगे ऐसे विरले किसान की, जिनके लिए गोबर अब कमाई के मामले में, गुड़ जैसी मिठास घोल रहा है।वर्मीकम्पोस्ट वाले डॉक्टर साब
हम बात कर रहे हैं राजस्थान, जयपुर के नजदीक सुंदरपुरा गांव में रहने वाले डॉ. श्रवण यादव की। केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) निर्माण में इनकी रुचि देखते हुए, अब लोग इन्हें सम्मान एवं प्रेम से वर्मीकम्पोस्ट वाले डॉक्टर साब भी कहकर बुलाते हैं।शुरुआत से रुख स्पष्ट
डॉ. श्रवण ने ऑर्गेनिक फार्मिंग संकाय से एमएससी किया है। साल 2012 में उन्हें JRF की स्कॉलरशिप भी मिली। मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लगी लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लगा। मन नहीं लगा तो डॉ. साब ने नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने राह पकड़ी उदयपुर महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी की। यहां वे जैविक खेती (Organic Farming) पर पीएचडी करने लगे। इसके उपरांत साल 2018 में डॉ. श्रवण को उसी यूनिवर्सिटी में सीनियर रिसर्च फ़ेलोशिप का काम मिल गया।डॉ. श्रवण के मुताबिक उनका मन शुरुआत से ही खेती-किसानी में लगता था। कृषि से जुड़ी छोटी-छोटी बारीकियां सीखने में उन्हें बहुत सुकून मिलता था। इस रुचि के कारण ही उन्होंने पढ़ाई के लिए कृषि विषय चुना और उस पर गहराई से अध्ययन कर जरूरी जानकारियां जुटाईं।
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यूं शुरू किया बिजनेस
नौकरी करने के दौरान डॉ. श्रवण की, उनकी सबसे प्रिय चीज खेती-किसानी से दूरी बढ़ती गई। वे बताते हैं कि, नौकरी के कारण उनको कृषि कार्यों के लिए ज्यादा समय नहीं मिल पाता था। इस बीच वर्ष 2020 में कोरोना की वजह से लॉकडाउन की घोषणा के बाद वह अपने गांव सुंदरपुरा लौट आए। इस दौरान उन्हें खेती-किसानी कार्यों के लिए पर्याप्त वक्त मिला तो उन्होंने 17 बेड के साथ वर्मीकम्पोस्ट की एक छोटी यूनिट से बतौर ट्रायल शुरुआत की।ताना नहीं अब मिलती है शाबाशी
उच्च शिक्षित होकर खाद बनाने के काम में रुचि लेने के कारण शुरुआत में लोगों ने उन्हें ताने सुनाए। परिवार के सदस्यों ने भी शुरू-शुरू में उनके इस काम में अनमने मन से साथ दिया।अब जब वर्मीकम्पोस्ट यूनिट से डॉ. श्रवण का लाभ लगातार बढ़ता जा रहा है, तो ताने अब शाबाशी में तब्दील होते जा रहे हैं। परिजन ने भी वर्मीकम्पोस्ट निर्माण की अहमियत को समझा है और वे खुले दिल से डॉ. श्रवण के काम में हाथ बंटाते हैं।
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हर माह इतना मुनाफा
डॉ. श्रवण के मुताबिक, वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद ) उत्पादन तकनीक (Vermicompost Production) से हासिल खाद को अन्य किसानों को बेचकर वे हर माह 2 से 3 लाख रुपये कमा रहे हैं। बढ़ते मुनाफे को देखते हुए डॉ. श्रवण ने यूनिट में वर्मीकम्पोस्ट बेड्स की संख्या भी अधिक कर दी है।अब इतने वर्मीकम्पोस्ट बेड
डॉक्टर साब की वर्मीकम्पोस्ट यूनिट में अब वर्मी कंपोस्ट बेड की संख्या बढ़कर 1 हजार बेड हो गई है।दावा सर्वोत्कृष्ट का
कृषि कार्यों के लिए समर्पित डॉ. श्रवण का दावा है कि, संपूर्ण भारत में उनकी वर्मीकम्पोस्ट यूनिट का मुकाबला कोई अन्य यूनिट नहीं कर सकती। उनका कहना है कि राजस्थान, जयपुर के नजदीक सुंदरपुरा गांव में स्थित उनकी वर्मीकम्पोस्ट यूनिट, भारत में प्रति किलो सबसे ज्यादा केंचुए देती है। यह यूनिट एक किलो में 2000 केंचुए देती है, जबकि शेष यूनिट में 400 से 500 केंचुए ही मिल पाते हैं।कृषि मित्रोें को प्रशिक्षण
खुद की वर्मीकम्पोस्ट यूनिट के संचालन के अलावा डॉ. श्रवण अन्य जिज्ञासु कृषकों को भी वर्मीकंपोस्ट बनाने का जब मुफ्त प्रशिक्षण देते हैं, तो किसान मित्र बड़े चाव से डॉक्टर साब के अनुभवों का श्रवण करते हैं।
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मार्केटिंग का मंत्र
डॉक्टर श्रवण वर्मीकम्पोस्ट के लिए बाजार तलाशने सोशल मीडिया तंत्र का भी बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। डॉ. ऑर्गनिक वर्मीकम्पोस्ट नाम का उनका चैनल किसानों के बीच खासा लोकप्रिय है। इस चैनल पर डॉ. श्रवण वर्मीकम्पोस्ट से जुड़ी जानकारियों को वीडियो के माध्यम से शेयर करते हैं। डॉ. श्रवण से अभी तक 25 हजार से अधिक लोग प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वयं वर्मीकम्पोस्ट यूनिट लगाकर अपने खेत से अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं। डॉ. श्रवण यादव के सोशल मीडिया चैनल देखने के लिए, नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करें : यूट्यूब चैनल (YouTube Channel) - "Dr. Organic Farming जैविक खेती" फेसबुक प्रोफाइल (Facebook Profile) : "Dr Organic (Vermicompst) Farm" लिंक्डइन प्रोफाइल (Linkedin Profile) - Dr. Sharvan Yadavसरकारी प्रोत्साहन
गौरतलब है कि, वर्मीकम्पोस्ट फार्मिंग (Vermicompost Farming) के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर किसानों को लाभ प्रदान कर रही हैं। रासायनिक कीटनाशक मुक्त फसलों की खेती के लिए सरकारों द्वारा किसानों को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है।रासायन मुक्त खेती का मकसद लोगों को गंभीर बीमारियों से बचाना है। इसका लाभ यह भी है कि इस तरह की खेती किसानी पर किसानों को लागत भी कम आती है। भारत में सरकारों द्वारा प्रोत्साहन योजनाओं की मदद से जैविक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है।
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25-Jul-2022