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मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना में लाभांवित होंगे हजारों किसान

मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना में लाभांवित होंगे हजारों किसान

लखनऊ। किसानों को सिंचाई के लिए आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना नाम से एक नई योजना शुरूआत की है। 

इस योजना के तहत वर्ष 2022-23 में प्रदेश हजारों किसान लाभांवित होंगे। लघु सिंचाई विभाग ने इसका प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया है। अब विभाग को इसकी स्वीकृति का इंतजार है। 

इस योजना के लिए बजट में 216 करोड़ प्रस्तावित हुए हैं। लघु सिंचाई के निःशुल्क बोरिंग योजना, मध्यम नहर नलकूप योजना और गहरी योजना को मिलाकर यह नई योजना शुरू की गई है। 

प्रभारी सहायक अभियंता लघु सिंचाई विनय कुमार ने बताया कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु कृषकों के निजी सिंचाई साधनों का निर्माण कराकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। 

जिससे प्रदेश के हर खेत मे सुनिश्चित सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो सके। तथा प्रदेश के कृषक आधिकारिक खाद्यान्न उत्पादन का प्रदेश व देश के आर्थिक विकास में योगदान कर सकें। 

उन्होंने इस योजना के तहत 300 बोरिंग कराने का प्रस्ताव शासन को भेजा है। जिसके तहत 60 बोरिंग अनुसूचित जाति व 220 बोरिंग सामान्य जाति के लोगों के लिए लगाए जाएंगे।

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सामान्य जाति के लघु एवं सीमान्त किसानों हेतु अनुदान

-इन योजना में सामान्य श्रेणी के लघु एवं सीमान्त कृषकों हेतु बोरिंग पर अनुदान की अधिकतम सीमा क्रमशः 5000 रु. तथा 7000 रु. निर्धारित की गई है सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों के लिए जोत सीमा 0.2 हेक्टेयर निर्धारित है। 

सामान्य श्रेणी के कृषकों की बोरिंग पर पम्पसेट स्थापित कराना अनिवार्य नहीं है। परंतु पम्पसेट क्रय कर स्थापित करने पर लघु कृषकों की अधिकतम 4500 रु. व सीमान्त कृषकों हेतु 6000 रु. का अनुदान अनुमन्य है।

अनुसूचित जाति/जनजाति कृषकों हेतु अनुदान

- अनुसूचित जाति/जनजाति के लाभार्थियों हेतु बोरिंग पर अनुदान की अधिकतम सीमा 10000 रुपए निर्धारित है। न्यूनतम जोत सीमा का प्रतिवर्ष तथा पम्पसेट स्थापित करने की बाध्यता नहीं है। 

10000 रुपए की सीमा के अंतर्गत बोरिंग से धनराशि शेष रहने पर रिफ्लेक्स वाल्व, डिलीवरी पाइप, बैंड आदि सामिग्री उपलब्ध करने की अतिरिक्त सुविधा भी उपलब्ध है। पम्पसेट स्थापित करने पर अधिकतम 9000रुपए का अनुदान अनुमान्य है। 

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एच.डी.पी.ई. पाइप हेतु अनुदान

- वर्ष 2012-13 से जल के अपव्यय को रोकने एवं सिंचाई दक्षता में अभिवृद्धि के दृष्टिकोण से कुल लक्ष्य के 25 प्रतिशत लाभार्थियों को 90 एमएम साइज का न्यूनतम 30 मी. से अधिकतम 60 मी. एचडीपीई पाइप स्थापित करने हेतु लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम 3000 रुपए का अनुदान अनुमन्य करने जाने का प्रावधान किया गया है। 22 मई 2016 से 110 एमएम साइज के एचडीपीई पाइप स्थापित करने हेतु भी अनुमान्यता प्रदान कर दी गई है।

पम्पसेट क्रय हेतु अनुदान

- निःशुल्क बोरिंग योजना के अंतर्गत नाबार्ड द्वारा विभिन्न अश्वशक्ति के पम्पसेट के लिए ऋण की सीमा निर्धारित है। जिसके अधीन बैंकों के माध्यम से पम्पसेट हेतु ऋण की सुविधा उपलब्ध है। 

जनपदवार रजिस्टर्ड पम्पसेट डीलरों से नगद पम्पसेट क्रय करने की भी व्यवस्था है। दोनों विकल्पों में से कोई भी प्रक्रिया अपनाकर आईएसआई मार्क (ISI Mark) पम्पसेट क्रय करने का अनुदान अनुमन्य है। 

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कैसे करें आवदेन

- सर्वप्रथम आपको लघु सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा।

यूपी निशुल्क बोरिंग योजना के अंतर्गत लक्ष्यों का निर्धारण

- लक्ष्य की प्राप्ति प्रत्येक वर्ष जनपद वार लक्ष्य शासन स्तर पर उपलब्ध कराए गए धनराशि के माध्यम से किया जाएगा। - ग्राम पंचायत के लक्ष्यों का निर्धारण क्षेत्र पंचायत द्वारा किया जाएगा।

- लक्ष्य से 25% से अधिक की संख्या में लाभार्थी ग्राम पंचायत द्वारा ग्राम जल संसाधन समिति की सहमति से उपरोक्त अनुसार चयनित किए जाएंगे। - चयनित लाभार्थियों की सूची विकास अधिकारी को प्रस्तुत की जाएगी।

लाभार्थियों का चयन

-सभी पात्र लाभार्थियों को चयन उनकी पात्रता के अनुसार किया जाएगा। इस योजना का लाभ उन किसानों को नहीं प्रदान किया जाएगा जो पूर्व में किसी सिंचाई योजना के अंतर्गत लाभवंती हुए हैं। 

इसके अलावा वर्ष 2000 -01 मैं विभाग द्वारा लघु सिंचाई कार्यों का सेंसस करवाया गया है। इस सेंसस के माध्यम से ऐसे कृषकों की सूची तैयार की गई है जिन की भूमि असिंचित है। 

इस सूची में आय कृषकओ पर खास ध्यान दिया जाएगा। ग्राम पंचायत द्वारा एक अंतिम बैठक का आयोजन किया जाएगा जिसमें लाभार्थियों की सूची तैयार की जाएगी। 

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यूपी निःशुल्क बोरिंग योजना की प्राथमिकताएं एवं प्रतिबंध

- बोरिंग के समय इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि जहां बोरिंग की जा रही है वहां खेती है या नहीं। बोरिंग के स्थान पर खेती होना अनिवार्य है। अतिदोहित/क्रिटिकल विकास खंडों में कार्य नहीं किया जाएगा। 

बोरिंग के संबंध में इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि प्रस्तावित पंपसेट से लगभग 3 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि की सिंचाई हो सके। 

वह विकास खंड जो सेमी क्रिटिकल कैटेगरी में है उनमें नाबार्ड द्वारा स्वीकृत सीमा के अंतर्गत ही चयन किया जाएगा। पंपसेट के मध्य दूरी नाबार्ड द्वारा जनपद विशेष के लिए निर्धारित दूरी से कम नहीं होनी चाहिए। 

समग्र ग्राम विकास योजना एवं नक्सल प्रभावित समग्र ग्राम विकास योजना के अंतर्गत चयनित किए गए ग्रामों में सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर बोरिंग का कार्य किया जाएगा। 

उपलब्ध धनराशि से समग्र ग्राम विकास योजना एवं नक्सल प्रभावित समग्र ग्राम विकास योजना के ग्रामों को सर्वप्रथम पूर्ति की जाएगी।

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यूपी निशुल्क बोरिंग योजना के अंतर्गत सामग्री की व्यवस्था

इस योजना के अंतर्गत पीवीसी पाइप का प्रयोग किया जाएगा। एमएस पाइप का उपयोग केवल उन क्षेत्रों में किया जाएगा जहां हाइड्रोजियोलॉजिकल परिस्थितियों के कारण पीवीसी पाइप का प्रयोग नहीं किया जा सकता। 

एसएम पाइप का प्रयोग ऐसे जिलों में चिन्हित क्षेत्रों के संबंधित अधीक्षण अभियंता लघु सिंचाई वृत से अनुमोदन प्राप्त करके किया जाएगा। 

पीवीसी पाइप से होने वाली बोरिंग के लिए पीवीसी पाइप एवं अन्य सामग्री की व्यवस्था कृषकों द्वारा की जाएगी। जिलाधिकारी के अंतर्गत एक समिति का गठन किया जाएगा जिसके माध्यम से अनुदान स्वीकृति करने हेतु पीवीसी पाइप तथा अन्य सामग्री की दरें निर्धारित की जाएगी। 

 ----- लोकेन्द्र नरवार

इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

भारत के बहुत सारे किसानों पर कृषि हेतु भूमि बहुत कम है। उस थोड़ी सी भूमि पर भी वह पहले से चली आ रही खेती को ही करते हैं, जिसे हम पारंपरिक खेती के नाम से जानते हैं। लेकिन इस प्रकार से खेती करके जीवन यापन भी करना एक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। परन्तु आज के समय में किसान स्मार्ट तरीकों की सहायता से 1 एकड़ जमीन से 1 लाख रूपये तक की आय अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में प्रत्येक व्यवसाय में लाभ देखने को मिलता है। कृषि विश्व का सबसे प्राचीन व्यवसाय है, जो कि वर्तमान में भी अपनी अच्छी पहचान और दबदबा रखता है। हालाँकि, कृषि थोड़े समय तक केवल किसानों की खाद्यान आपूर्ति का इकलौता साधन था। लेकिन वर्त्तमान समय में किसानों ने सूझ-बूझ व समझदारी से सफलता प्राप्त कर ली है। आजकल फसल उत्पादन के तरीकों, विधियों एवं तकनीकों में काफी परिवर्तन हुआ है। किसान आज के समय में एक दूसरे के साथ सामंजस्य बनाकर खेती किसानी को नई उचाईयों पर ले जाने का कार्य कर रहे हैं। आश्चर्यचकित होने वाली यह बात है, कि किसी समय पर एक एकड़ भूमि से किसानों द्वारा मात्र आजीविका हेतु आय हो पाती थी, आज वही किसान एक एकड़ भूमि से बेहतर तकनीक एवं अच्छी फसल चयन की वजह से लाखों का मुनाफा कमा सकता है। यदि आप भी कृषि से अच्छा खासा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको भूमि पर एक साथ कई सारी फसलों की खेती करनी होगी। सरकार द्वारा भी किसानों की हर संभव सहायता की जा रही है। किसानों को आर्थिक मदद से लेकर प्रशिक्षण देने तक सरकार उनकी सहायता कर रही है।

वृक्ष उत्पादन

किसान पेड़ की खेती करके अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं। लेकिन उसके लिए किसानों को अपनी एकड़ भूमि की बाडबंदी करनी अत्यंत आवश्यक है। जिससे कि फसल को जंगली जानवरों की वजह से होने वाली हानि का सामना ना करना पड़े। पेड़ की खेती करते समय किसान अच्छी आमदनी देने वाले वृक्ष जैसे महानीम, चन्दन, महोगनी, खजूर, पोपलर, शीशम, सांगवान आदि के पेड़ों का उत्पादन कर सकते हैं। बतादें, कि इन समस्त पेड़ों को बड़ा होने में काफी वर्ष लग जाते हैं। किसान भूमि की मृदा एवं तापमान अनुरूप फलदार वृक्ष का भी उत्पादन कर सकते हैं। फलदार वृक्षों से फल उत्पादन कर अच्छी कमाई की जा सकती है।

पशुपालन

पेड़ लगाने के व खेत की बाडबंदी के उपरांत सर्वप्रथम गाय या भैंस की बेहतर व्यवस्था करें। क्योंकि गाय व भैंस के दूध को बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जाता है। साथ ही, इन पशुओं के गोबर से किसान अपनी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद की व्यवस्था भी कर सकते हैं। किसान चाहें तो पेड़ उत्पादन सहित खेत के सहारे-सहारे पशुओं हेतु चारा उत्पादन भी कर सकते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि बहुत से पशु एक दिन के अंदर 70-80 लीटर तक दूध प्रदान करते हैं। किसान बाजार में दूध को विक्रय कर प्रतिमाह हजारों की आय कर सकते हैं।


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मौसमी सब्जियां

किसान अपनी एक एकड़ भूमि का कुछ भाग मौसमी सब्जियों का मिश्रित उत्पादन कर सकते हैं। यदि किसान चाहें तो वर्षभर मांग में रहने वाली सब्जियां जैसे कि अदरक, फूलगोभी, टमाटर से लेकर मिर्च, धनिया, बैंगन, आलू , पत्तागोभी, पालक, मेथी और बथुआ जैसी पत्तेदार सब्जियों का भी उत्पादन कर सकते हैं। इन सब सब्जियों की बाजार में अच्छी मांग होने की वजह से तीव्रता से बिक जाती हैं। साथ इन सब्जिओं की पैदावार भी किसान बार बार कटाई करके प्राप्त हैं। किसान आधा एकड़ भूमि में पॉलीहाउस के जरिये इन सब्जियों से उत्पादन ले सकते हैं।

अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन

देश में प्रत्येक सीजन में अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन किया जाता है, सर्वाधिक दाल उत्पादन खरीफ सीजन में किया जाता हैं। बाजरा, चावल एवं मक्का का उत्पादन किया जाता है, वहीं रबी सीजन के दौरान सरसों, गेहूं इत्यादि फसलों का उत्पादन किया जाता है। इसी प्रकार से फसल चक्र के अनुसार प्रत्येक सीजन में अनाज, दलहन अथवा तिलहन का उत्पादन किया जाता है। किसान इन तीनों फसलों में से किसी भी एक फसल का उत्पादन करके 4 से 5 माह के अंतर्गत अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं।

सोलर पैनल

आजकल देश में सौर ऊर्जा के उपयोग में वृध्दि देखने को मिल रही है। बतादें, कि बहुत सारी राज्य सरकारें तो किसानों को सोलर पैनल लगाने हेतु धन प्रदान कर रही हैं। सोलर पैनल की वजह से किसानों को बिजली एवं सिंचाई में होने वाले खर्च से बचाया जा सकता है। साथ ही, सौर ऊर्जा से उत्पन्न विघुत के उत्पादन का बाजार में विक्रय कर लाभ अर्जित किया जा सकता है। जो कि प्रति माह किसानों की अतिरिक्त आय का साधन बनेगी। विषेशज्ञों द्वारा किये गए बहुत सारे शोधों में ऐसा पाया गया है, सोलर पैनल के नीचे रिक्त स्थान पर सुगमता से कम खर्च में बेहतर सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है।
जानें सर्दियों में कम खर्च में किस फसल से कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा

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स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने वाले कृषक सर्वप्रथम खेत की मृदा का की जाँच पड़ताल कराएं। यदि किसान स्ट्रॉबेरी का उपादान करना चाहते हैं, तो खेती की मृदा बलुई दोमट होनी अति आवश्यक है। स्ट्रॉबेरी एक ऐसा फल है, जो कि आकर्षक दिखने के साथ-साथ बेहद स्वादिष्ट भी होता है। स्ट्रॉबेरी का स्वाद हल्का खट्टा एवं मधुर होता है। बाजार में स्ट्रॉबेरी की मांग बारह महीने होती है। इसी कारण से इसका उत्पादन करने वाले किसान हमेशा लाभ कमाते हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अधिकाँश रबी सीजन के दौरान किया जाता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि इसके बेहतर उत्पादन के लिए जलवायु और तापमान ठंडा होना अति आवश्यक है। स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अधिकाँश महाराष्ट्र, जम्मू & कश्मीर, उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में किया जाता है। परन्तु वर्तमान में किसान नवीन तकनीकों का उपयोग कर स्ट्रॉबेरी का उत्पादन विभिन्न राज्यों के अलग-अलग क्षेत्रों में कर रहे हैं। आगे हम इस लेख में बात करेंगे कि कैसे किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करें और लाभ अर्जित करें।

अन्य राज्य किस तरह से कर रहे हैं स्ट्रॉबेरी का उत्पादन

बतादें, कि आधुनिक तकनीक के सहयोग आज के वक्त में कुछ भी आसानी से किया जा सकता है। खेती-किसानी के क्षेत्र में भी इसका उपयोग बहुत तीव्रता से किया जा रहा है। तकनीकों की मदद से ही कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों के कृषक फिलहाल ठंडे राज्यों में उत्पादित होने वाली स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर रहे हैं। बतादें, कि इन राज्यों के किसान स्ट्रॉबरी का उत्पादन करने हेतु पॉलीहाउस तकनीक का उपयोग करते हैं। पॉलीहाउस में उत्पादन करने हेतु सर्व प्रथम मृदा को सूक्ष्म करना अति आवश्यक है एवं उसके उपरांत डेढ़ मीटर चौड़ाई व 3 मीटर लंबाई वाली क्यारियां निर्मित की जाती हैं। इन क्यारियों में ही स्ट्रॉबेरी के पौधे रोपे जाते हैं।


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स्ट्रॉबेरी का एक एकड़ में कितना उत्पादन हो सकता है

स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने वाले कृषकों को सर्वप्रथम बेहतर मृदा परख होनी आवश्यक है। यदि किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करना चाहते हैं, तो उसके लिए भूमि की मृदा का बलुई दोमट होना अत्यंत जरुरी है। साथ ही, किसान यदि 1 एकड़ भूमि में तकरीबन 22000 स्ट्रॉबेरी के पौधे उत्पादित कर सकते हैं। हालाँकि, इन पौधों में जल देने के लिए किसानों को ड्रिप सिंचाई (Drip irrigation) की सहायता लेनी होती है। स्ट्रॉबेरी के पौधे तकरीबन 40 से 50 दिनों के अंतराल में ही फल प्रदान करने लगते हैं।

स्ट्रॉबेरी की अच्छी बाजार मांग का क्या राज है

आपको बतादें कि दो कारणों से स्ट्रॅाबेरी के फल की मांग वर्ष के बारह महीने होती है। इसकी पहली वजह इसकी सुंदरता एवं इसका मीठा स्वाद दूसरी वजह इसमें विघमान बहुत से पोषक तत्व जो सेहत के लिए बहुत लाभकारी साबित होते हैं। यदि बात करें इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों की तो इसमें विटामिन के, विटामिन सी, विटामिन ए सहित फास्फोरस, पोटेशियम, केल्सियम, मैग्नीशियम एवं फोलिक ऐसिड पाया जाता है। स्ट्रॉबेरी के सेवन से कील मुंहासों को साफ किया जा सकता है एवं यह आंखों के प्रकाश एवं दांतों हेतु भी लाभकारी है।
पानी की खपत एवं किसानों का खर्च कम करने में मदद करेगी केंद्र की यह योजना

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राजस्थान राज्य में खेती किसानी करने वाले कृषकों के हित में सिंचाई हेतु समुचित रूप से संसाधन उपलब्ध कराने के लिए सिंचाई पाइप लाइन योजना लागू की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत 60% प्रतिशत तक अनुदान, यानी 18,000 रुपये की धनराशि सब्सिडी के तौर पर दी जाती है। भारत के बहुत से क्षेत्रों में जल का स्तर काफी कम देखने को मिल रहा है। विभिन्न खेतिहर क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां भूजल का स्तर बिल्कुल गिर चुका है। राजस्थान राज्य के अधिकाँश क्षेत्रों की परिस्थितियां भी कुछ ऐसी ही हैं। भूमि बिल्कुल बंजर व सूखी पड़ी हुई है। फसलों की सिंचाई हेतु समुचित एवं पर्याप्त मात्रा में साधन उपलब्ध ना होने की स्थिति में ना ही खेती हो पति है और ना ही बेहतर उत्पादन अर्जित हो पाता। केंद्र सरकार ने इस समस्या को ध्यान में रखते हुए इसके उचित समाधान हेतु केंद्र प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जारी की है। राजस्थान राज्य सरकार द्वारा भी राज्य स्तर पर सिंचाई पाइप लाइन अनुदान योजना लागू की है। जिससे ट्यूबवेल की कनेक्टिविटी हेतु सिंचाई पाइप लाइन की खरीद करने पर अनुदान प्रदान किया जा सके। इसकी सहायता से जल की बर्बादी को कम कर फसल की जरुरत के हिसाब से सिंचाई का कार्य पूर्ण किया जा सके।

पानी की अत्यधिक खपत बचेगी

वर्तमान में अधिकाँश क्षेत्रों में सिंचाई हेतु परंपरागत विधियों को उपयोग में लाया जा रहा है। प्राचीन काल में किसान कुएं एवं बोरवेल जैसे साधनों से कृषि हेतु एक मुस्त पानी देते हैं। बहुत बार खेतों में जरुरत से ज्यादा पानी देने की स्थिति में फसल में सड़न-गलन उत्पन्न हो जाती थी जिससे उत्पादकता में काफी गिरावट आ जाती थी। इस समस्या से बचाव के लिए किसान पाइन लाइन का उपयोग कर फसल को आवश्यकतानुसार पानी दे सकते हैं। इससे पानी की बर्बादी रुकने के साथ-साथ 20 से 30 प्रतिशत तक बचत होगी एवं सिंचाई संबंधित कार्यों में भी सुविधा मिलेगी।

पाइप लाइन को खरीदने पर किसको कितना मिलेगा अनुदान

राजस्थान सरकार के माध्यम से चलाई गई सिंचाई पाइप लाइन स्कीम के अंतर्गत पाइन लाइन की खरीद पर अनुदान का फायदा लघु एवं सीमांत किसानों को प्राथमिकता में रखते हुए प्रदान किया जाना है। हालांकि, सामान्य श्रेणी के कृषकों को भी योजना के अंतर्गत शम्मिलित किया गया है।
  • लघु एवं सीमांत किसानों हेतु 60% प्रतिशत तक अनुदान यानी, अधिकतम 18,000 रुपये का अनुदान तय किया गया है।
  • सामान्य वर्ग के किसानों को 50% प्रतिशत अनुदान यानी अधिकतम 15,000 रुपये तक का अनुदान प्रदान किया जाएगा।
  • लाभ लेने लिए क्या शर्तें हैं
  • सिंचाई पाइप लाइन योजना का फायदा लेने हेतु किसानों के समीप स्वयं खेती करने लायक भूमि उपलब्ध होनी बेहद आवश्यक है।
  • किसानों के पास सिंचाई के साधन यानी कि डीजल, ट्रैक्टर कुआं तथा ट्यूबवेल के जरिए चलने वाली पंप सेट भी होनी जरुरी है।
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यदि एक ही कुआं अथवा जल स्रोत होने पर अलग-अलग किसान आवेदन कर लाभ कामाना चाहते हैं, तो सरकार की ओर से विभिन्न मूल्यों पर अनुदान दिया जाएगा।

योजना का लाभ लेने के लिए यहां करें आवेदन

केंद्र अथवा राज्य सरकार द्वारा किसी भी कृषि योजना में आवेदन करने से पूर्व स्वयं के जनपद के समीप कृषि विभाग के कार्यालय में पहुँचकर एक विस्तृत ब्यौरा प्राप्त कर सकते हैं।
इस योजना में आवेदन करने हेतु आधार कार्ड अथवा जनाधार कार्ड, जमाबंदी की नवीन कॉपी होनी आवश्यक है।
किसी भी सीएससी सेंटर अथवा ई-मित्र केंद्र पर पहुँचकर सिंचाई पाइप लाइन योजना में ऑनलाइन तौर पर आवेदन किया जा सकता है।

किसान पाइप लाइन कहाँ से खरीदेंगे

सिंचाई पाइप लाइन योजना के नियमों के अनुसार, आवेदन करने के उपरांत कृषि विभाग समस्त कागजातों का सत्यापन करता है। यदि आप लाभार्थी के रूप में चयनित हुए तो कृषि विभाग में रजिस्टर्ड पाइप लाइन के निर्माता अथवा अधिकृत विक्रेता द्वारा ही सिंचाई की पाइप लाइन खरीदनी पड़ेगी। इस पाइप लाइन को नियुक्त करना होगा, जिसका सत्यापन कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा किया जाएगा। इसके उपरांत ही अनुदान की धनराशि कृषकों के बैंक खातों में स्थानांतरित कर दी जाएगी। इस संदर्भ में आवेदन स्वीकृत होने के उपरांत कृषि पर्यवेक्षक से जानकारी प्राप्त हो जाएगी।
पाइपलाइन की खरीद और वाटर टैंक के निर्माण पर मिल रहा अनुदान, ऐसे करें आवेदन

पाइपलाइन की खरीद और वाटर टैंक के निर्माण पर मिल रहा अनुदान, ऐसे करें आवेदन

राजस्थान के किसानों के लिए सरकार की तरफ से एक और बड़ी खुशखबरी है. बता दें सिंचाई पाइपलाइन और वाटर टैंक निर्माण पर किसानों को भारी अनुदान दिया जा रहा है. गर्मियों के सीजन में किसानों को सबसे ज्यादा फसलों की सिंचाई के लिए पानी की जरूरत पड़ती है. अब ऐसे में उन्हें सिंचाई के लिए पानी की कमी न हो, इसके लिए राजस्थान सरकार ने अच्छी पहल की है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब मौसम में बदलाव होने के साथ साथ तापमान भी बढ़ रहा है. जिसे देखते हुए देश के कई राज्यीं में किसानों ने सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था शुरू कर दी है. खेतों में तालाब बनाए जाने के साथ-साथ सूक्ष्म सिंचाई संयंत्रो की स्थापना की जा रही है. जिससे खपत कम हो और फसलों का उत्पादन ज्यादा हो. राजस्थान सरकार ने किसानों की जरूरतों को देखते हुए वाटर टैंक निर्माण के साथ साथ सिंचाई पाइपलाइन की खरीद पर भारी अनुदान देने का फैसला कर लिया है. बता दें राजस्थान में पानी का संकट बढ़ता जा रहा है. वहीं धूप और गर्मी की वजह से पानी का स्तर और नीचे चला जाता है. जिससे फसलों का अच्छा उत्पादन नहीं हो पाता. ऐसे में वाटर टैंक और सिंचाई पाइपलाइन से इस परेशानी को दूर करने में मदद मिल सकती है. इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि, इन सब में खर्चे का बोझ अकेले किसानों के कंधे पर नहीं आएगा. सिंचाई पाइपलाइन की खरीद पर 60 फीसद एयर वाटर टैंक निर्माण में 90 हजार रुपये का अनुदान सरकार की ओर से दिया जा रहा है.

सिंचाई पाइपलाइन की खरीद पर मिलेगा इतना अनुदान

राजस्थान के किसानों को सिंचाई पाइपलाइन की खरीद पर राज्य की सरकार ने भरी अनुदान देने का फैसला किया है. इस स्कीम की बात करें तो, इसमें छोटे और बड़े किसानों को सिंचाई के लिए पाइपलाइन की कुल लागत पर करीब 18 हजार या फिर 60 फीसद तक की सब्सिडी दी जाएगी. ये भी पढ़ें:
सिंचाई के लिए नलकूप लगवाने के लिए 3 लाख से ज्यादा की सब्सिडी दे रही है ये सरकार किसानों के अन्य वर्ग की बात करें तो, उनकी लागत में करीब 15 हजार रुपये या 50 फीसद सब्सिडी दी जाएगी. ऐसे में अगर आप राजस्थान के किसान हैं, और इस स्कीम का फायदा लेना चाहते हैं. तो खेती के लायक जमीन अपने नाम होनी जरूरी है. इसके अलावा किसानों के पास और क्या कुछ होना जरूरी है यह भी जान लेना चाहिए.
  • किसानों के पास बिजली, डीजल या फिर ट्रैक्टर से चलने वाला पंप सेट होना जरूरी है.
  • किसानों के पास जरूरी कागजों में आधार कार्ड, जमीन के कागज और सिंचाई पाइपलाइन के बिल होने चाहिए.
  • सिंचाई पाइपलाइन की किसानों की खरीद उसी से करनी होगी, जिसका कृषि विभाग में रजिस्ट्रेशन हो.

वाटर टैंक निर्माण में पर मिलगी इतनी सब्सिडी

राजस्थान में खेती करने वाले लगभग हर तबके के किसानों को करीब 100 घन मीटर या फिर 1 लाख लीटर की क्षमता वाले वाटर टैंक के निर्माण करने पर 90 हजार रुपये का अनुदान सरकार देगी. वहीं किसानों को अगर इस योजना का फायदा लेना है तो, उनका नाम कम से कम आधास हेक्टेयर खेती की जमीन होनी जरूरी है. इसके लिए आवर कौन कौन सी चीजों का होना अनिवार्य है, ये जान लेते हैं.
  • आवेदन करने के लिए किसानों को अपना आधार कार्ड एयर जमीन की जमाबन्दी के कागज जमा करवाने होंगे.
  • किसानों के आवेदन करने बाद ही कृषि विभाग वाटर टैंक निर्माण के लिए प्रशासनिक स्वीकृति जारी करेगा.
  • इससे जुड़ी जानकारी किसानों को जिला कृषि विभाग में मोबाइल पर एसएमएस के जरिये दी जाएगी.

जानिए कैसे करें रजिस्ट्रेशन

अगर कोई किसान वाटर टैंक के निर्माण और सिंचाई पाइपलाइन की खरीद करना चाहता है, तो बता दें कि, इससे जुड़े अनुदान की योजनाएं एक दूसरे से अलग अलग हैं. जिनका लाभ पाने के लिए किसानों को किसान साथी पोर्टल रजिस्ट्रेशन करना होगा. जिसके बाद जिला कृषि विभाग रजिस्ट्रेशन का सत्यापन करेगा. अगर सब कुछ ठीक रहा तो, सरकार अनुदान की राशि सीधा किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करेगी.
अब नहीं रिसेगा पानी, प्लास्टिक फार्म पॉन्ड योजना से खेतों में बनेगा तालाब

अब नहीं रिसेगा पानी, प्लास्टिक फार्म पॉन्ड योजना से खेतों में बनेगा तालाब

किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार पुरजोर कोशिश में है। जिसके चलते कई तरह की योजनाओं पर भी काम किया जा रहा है। जिसमें से एक है प्लास्टिक फार्म पॉन्ड योजना। इस योजना के अंतर्गत सरकार अनुदान भी दे रही है। बारिश का पानी इकट्ठा करके खेती के लिए इस्तेमाल करने के हिसाब से राजस्थान सरकार ने एक नई योजना पेश की है। इस योजना का नाम प्लास्टिक फार्म पॉन्ड है। प्लास्टिक फार्म पॉन्ड योजना के तहत किसानों एक लाख से भी ज्यादा का अनुदान राजस्थान सरकार की ओर से दिया जा रहा है। आपको बता दें की पहली बार गंगापुर सिटी एरिया में रेतीली जमीन पर प्लास्टिक लाइन फार्म पॉन्ड को बनाया गया है। इस पॉन्ड में आने वाले दिनों में बारिश के पानी को इकट्ठा करने में मदद मिलेगी। साथ ही, पानी जमीन में नहीं रिस पाएगा। जिसके बाद किसान भाई बारिश के पानी को जल संरक्षण के तौर पर खेती या फिर मछली पालन में इस्तेमाल कर पाएंगे।

दो साल से थी बड़ी चुनौती

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गंगा सिटी का यह सबसे रेतीला इलाका है। जहां फार्म पॉन्ड बनाना कृषि अधिकारियों के लिए करीब दो साल से चुनौती से भरा हुआ था। इसके अलावा इस विभाग के अंतर्गत लगभग दो दर्जन गांव स्थित हैं। जिनकी जमीन रेतीली है। पानी की किल्लत के चलते यहां की फसलों की सिंचाई के लिए किसान को बारिश पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

सरकार की स्कीम पर किसानों को नहीं था इंटरेस्ट

आपको बतादें कि किसानों की इस समस्या को देखते हुए प्रदेश की सरका ने रेतीली जमीन में खेती किसानी करने वाले किसानों के लिए दो साल पहले ही प्लास्टिक फार्म पॉन्ड की स्कीम दी थी। लेकिन इस तरफ किसानों का कोई खास इंटरेस्ट नहीं था, जिसे देखते हुए विभागीय अधिकारीयों ने भी अपने कदम पीछे ले लिए।

नये सहायक कृषि अधिकारी ने किया प्रेरित

प्रदेश के गंगा सिटी इलाके में नये सहायक कृषि अधिकारी ने इस समस्या को चुनौती की तरह लिया और किसानों को सरकार की इस योजना के प्रति प्रेरित किया। जिसके कुछ दिनों के बाद ही उनकी मेहनत रंग लाने लगी और सलेमपुर गांव में किसानों ने फार्म पॉन्ड बनवा दिया। जिसके लिए करीब 20 मीटर की लम्बाई और चौड़ाई के साथ तीन मीटर की गहराई की गयी। ये भी पढ़ें: राजस्थान सरकार देगी निशुल्क बीज : बारह लाख किसान होंगे लाभान्वित

किसान कैसे उठा सकते हैं लाभ?

अगर किसान प्लास्टिक फार्म पॉन्ड योजना का फायदा उठाना चाहते हैं, तो उनके पास करीब 0.3 हेक्टेयर की जमीन और खेत का नक्शा होने के साथ ट्रेस और जन आधार कार्ड बैंक अकाउंट डिटेल सहित मोबाइल नंबर अपडेट होना चाहिए। इसके साथ ही किसानों को विभाग की तरफ से करीब एक लाख या उससे ज्यादा का अनुदान भी दिया जाता है। अगर किसानों ने इसके लिए आवेदन नहीं किया है, तो वह फार्म पॉन्ड योजना का फायदा भी नहीं उठा पाएंगे।

क्या कहते हैं कृषि अधिकारी?

कृषि अधिकारी के मुताबिक प्लास्टिक फार्म पॉन्ड बनाने के लिए सितंबर से अक्टूबर महीने में किसानों से संपर्क करके उन्हें शार्टलिस्ट किया गया है। इसके लिए किसानों को लगातार प्लास्टिक फार्म पॉन्ड बनाने के लिए प्रेरित भी किया जा रहा है। राज्य सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्लास्टिक फार्म पॉन्ड में मछली पालन की परमिशन भी दे रखी है। इससे पहले प्लास्टिक फार्म पॉन्ड में किसान मछली पालन का काम नहीं कर सकते थे। अगर वो ऐसा करते भी थे तो, सख्त कारवाई भी की जाती थी। लेकिन किसानों की इनकम बढ़े इसके लिए राज्य सरकार नया प्रोविजन ला चुकी है।
घर बैठे होगी फसल की सिंचाई, सिर्फ मिस्ड कॉल से शुरू हो जाता है खेत का वाटर पंप

घर बैठे होगी फसल की सिंचाई, सिर्फ मिस्ड कॉल से शुरू हो जाता है खेत का वाटर पंप

भारत ने कृषि के मामले में काफी ज्यादा तरक्की कर ली है। ऐसे में कई इलाकों में कम्पनियां ऐसी हैं, जो ऐसे एग्रीकल्चर पंप का निर्माण करती हैं। जिनको मोबाइल से घर बैठे बैठे ही ऑपरेट किया जा सकता है। नई टेक्नोलोजी के साथ देश भर के किसान खेती कर रहे हैं। जिसके चलते अब खेतों की सिंचाई करना भी किसानों के लिए घर बैठे सिर्फ उनकी उंगलियों का खेल रह गया है। बतादें खेत में फसलों को पानी देने के लिए सिर्फ मिस्ड कॉल से ही शुरू हो जाने वाले पंप का सिस्टम बन चुका है। देश में ऐसे एग्रीकल्चर कई पंप हैं, जिनको अलग-अलग इलाकों की कम्पनियों ने बनाया है। इन पंपों को मोबाइल से आसानी से ऑपरेट किया जाता है।

किसानों से खुद ही बनाया सिस्टम

किसान भाई अब तकनीक के मामले में भी किसी को भी मात दे सकते हैं। ऐसे कई किसान हैं, जिन्होंने खुद ही इस सिस्टम को डेवलप कर डाला है। मिस्ड कॉल पंप जीएसएम पर आधारित एक रिमोट कंट्रोल स्विच होता है। जिसे मोबाइल से ऑपरेट किया जाता है, यानि की आप मोबाइल कॉल से ही उसे ऑन और ऑफ कर सकते हैं। मिस्ड कॉल वाले मोबाइल सिस्टम ने किसानों के लिए एग्रीकल्चर पंप शुरू करके काफी आसानी कर दी है। मोबाइल एनेबल्ड सिस्टम के साथ इस पंप को कितनी देर तक चलाना है, यह भी निर्धारित किया जा सकता है। इससे किसानों को काफी फायदा मिला है। साथ ही समय, बिजली या डीजल और पानी जैसी मूलभूत चीजों की बचत में भी मदद मिली है।

दो किलोमीटर दूर से ऑपरेट होता है सिस्टम

बिहार राज्य में स्थिति कैमूर में किसान ने ऐसे ही पंप के साथ काम किया है। किसान की मानें तो वो दो किलोमीटर दूर अपने घर पर आराम से बैठकर ही सिंचाई के लिए पंप चला देते हैं। उन्हें सिंचाई के लिए कुएं में लगा मोटर चलाने के लिए खेतों तक नहीं जाना पड़ता। जो सबसे बड़ी सहूलियत है।

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किसान की मानें तो, वो इस तकनीक के साथ करीब तीन साल से काम कर रहे हैं। इस दौरान किसी भी तरह की परेशानी नहीं हुई। इसके लिए उन्हें खेत पर जाने के बाद भी उन्हें कुएं तक जाने की जरूरत नहीं होती। वो सिर्फ एक मिस्ट कॉल से मोटर को चला देते हैं, और घर पर आराम करते हैं। जैसे ही खेतों की सिंचाई हो जाती है, वैसे ही वो मिस्ड काल देकर मोटर को बंद कर देते हैं।

कैसे होता है ऑपरेट?

फसलों की सिंचाई के लिए मोबाइल से मिस्ड कॉल वाला वाटर पंप संचालित करने की यह तकनीक किसानों को खूब पसंद आ रही है। नॉर्मल मोबाइल से मोटर पंप को खोला और बंद किया जा सकता है। मोटर के स्टार्टर में मोबाइल वायब्रेट से करीब 6 वोल्ट डीसी रिले को जोड़ा जाता है। टेप रेडियो में लगने वाली 240 वोल्ट एसी रिले को जोड़कर 240 वोल्ट रिले को स्टार्टर से कनेक्ट कर दिया जाता है। मिस्ड कॉल देने पर मोबाइल के वायब्रेशन से 6 वोल्ड डीसी रिले ऑपरेट हो जाता है। जो 240 वोल्ट ईएसआई को 240 वोल्ट रिले मोटर के स्टार्टर को शुरू कर देती है।
इस राज्य में किसानों को वाटर टैंक बनाने के लिए सरकार दे रही 1 लाख रूपये

इस राज्य में किसानों को वाटर टैंक बनाने के लिए सरकार दे रही 1 लाख रूपये

अब कृषकों को सिंचाई संबंधित समस्याओं से मिलेगी निजात। राजस्थान सरकार द्वारा वाटर टैंक निर्माण हेतु लगभग 1 लाख रुपये! राजस्थान राज्य के कृषकों के लिए यह अच्छी खुशखबरी है। सिंचाई समस्याओं से लड़ रहे यहां के किसान भाइयों को फिलहाल इस समस्या से निजात मिलने वाली है। भूजल समस्या देश के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। यहां के विभिन्न राज्य इस समस्या से लड़ रहे हैं। इसका किसान भाइयों की खेती-बाड़ी में भी बेहद दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है। क्योंकि खेती-किसानी में सिंचाई का काफी महत्वपूर्ण स्थान है। परंतु, भूजल संकट के कारण से इसे करना फिलहाल काफी मुश्किल सा हो गया है। इसके लिए किसान भाइयों को काफी धन खर्च करना पड़ता है। ऐसे में बहुत से किसान अधिक खर्च के कारण से अपने खेतों एवं फसलों में सिंचाई करने में असमर्थ होते हैं।

राजस्थान के किसान अब सिंचाई की समस्या से पाएंगे निजात

राजस्थान भूजल चुनोतियाँ को झेलने वाले राज्यों में से एक है। ऐसी स्थिति में यहां के कृषकों को सिंचाई चुनौतियों का सामना करना होता है। इस वजह से राज्य सरकार द्वारा कृषकों को बढ़ावा देने के लिए ताल-तलाई, जलहौज (पानी की टंकी) की स्थापना की जा रही है।

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राजस्थान सरकार किसानों को इस संकट से निजात दिलाने के उद्देश्य से आर्थिक सहायता कर रही है। जिसके लिए राजस्थान सरकार के माध्यम से किसानों को जलहौज मतलब पानी की टंकी के निर्माण हेतु 60 फीसद का अनुदान उपलब्ध किया जा रहा है। जिसके माध्यम से किसान जलहौज की स्थापना करके बारिश के जल का संचयन कर इसको सिंचाई अथवा बाकी आवश्यक कृषि कार्यों में उपयोग कर सकते हैं।

सरकार किसानों को 90 हजार रुपये देकर टंकी निर्माण में करेगी सहयोग

राजस्थान सरकार की आधिकारिक पोर्टल राज किसान साथी पोर्टल के मुताबिक, राज्य के कृषकों को न्यूनतम आकार 100 घनमीटर अथवा 1 लाख लीटर जलभराव क्षमता वाली पानी की टंकी के निर्माण हेतु ज्यादा से ज्यादा 90 हजार रुपये प्रदान किए जाएंगे।

इस किसान भाइयों को मिलेगा योजना का फायदा

प्रदेश के समस्त श्रेणी के कृषकों को इस योजना का फायदा मिल पाएगा। बशर्ते योजना का फायदा लेने वाले किसानों के समीप आधी हेक्टेयर भूमि एवं सिंचाई का स्रोत होना जरुरी है। इसके साथ ही किसानों के समीप जमाबंदी की नकल अवश्य होनी चाहिए। साथ ही, यह भी ध्यान रहे कि जमाबंदी की नकल 6 माह से ज्यादा पुरानी नहीं होनी चाहिए।

किसान भाई इस तरह ले सकते हैं योजना का लाभ

राजस्थान राज्य के जो भी किसान इस योजना से फायदा उठाना चाहते हैं। वो राजकिसान साथी पोर्टल के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं अथवा वो अपने आसपास के ई-मित्र केन्द्र पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।
भूजल स्तर में गिरावट को देखते हुए इस राज्य में 1000 रिचार्जिंग बोरवेल का निर्माण किया जाएगा

भूजल स्तर में गिरावट को देखते हुए इस राज्य में 1000 रिचार्जिंग बोरवेल का निर्माण किया जाएगा

भारत के विभिन्न राज्यों से भूजल स्तर में गिरावट आने की खबर सामने आ रही है। फलस्वरूप फसल की पैदावार पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है। इस समस्या का निराकरण करने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा प्रथम चरण में 1000 रीचार्जिंग बोरवेल की स्थापना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। कृषि क्षेत्र में जल के प्रभावी उपयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिसके तहत विभिन्न राज्यों में ड्रॉप मोर क्रॉप योजना जारी की जा रही है। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि न्यूनतम जल में सिंचाई करके नकदी एवं बागवानी फसलों से काफी अधिक पैदावार मिल रही है। भारत के बहुत सारे क्षेत्रों में भूमिगत जल संकट भी एक बड़ी चुनौती थी। हालाँकि, फिलहाल सूक्ष्म सिंचाई मॉडल द्वारा इन समस्त समस्याओं को दूर कर दिया है। यह सिंचाई पद्धति को उपयोग में लाना किसान भाइयों के लिए और भी सस्ता हो गया है। केंद्र सरकार के माध्यम से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के चलते सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली स्थापित कराने के लिए किसान भाइयों को सब्सिडी का प्रावधान दिया गया है।

हरियाणा सरकार द्वारा दिया जा रहा है अनुदान

इसी कड़ी में अब हरियाणा सरकार ने भी ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति को बढ़ावा देने और रिचार्जिंग बोरवेल मुहैय्या कराने हेतु किसान भाइयों को सब्सिड़ी दी जा रही है। इस संबंध में सरकार का यह कहना है, कि हमारे इस प्रयास से जल संरक्षण एवं इसका संचयन करने में विशेष सहायता मदद प्राप्त होगी। साथ ही, यह घटते भूमिगत जल स्तर के संकट को भी दूर करने में सहायता करेगा।

किसानों को सूक्ष्म सिंचाई हेतु 85% अनुदान का प्रावधान

कृषि क्षेत्र में सिंचाई हेतु सर्वाधिक निर्भरता भूमिगत जल पर ही रहती है। जल की उपलब्धता को निरंतर स्थिर बनाए रखने के लिए जल की अधिक खपत वाली फसलों को हतोत्साहित किया जा रहा है। इसकी अपेक्षा बागवानी फसलों की कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है। साथ ही, सूक्ष्म सिंचाई मॉडल को प्रचलन में लाने के लिए किसानों को रीचार्जिंग बोरवेल पर सब्सिड़ी दी जा रही है। हिसार में आयोजित कृषि विकास मेले में हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कहा है, कि वर्तमान हालात को ध्यान में रखते हुए हमें जल की खपत को कम करने की आवश्यकता है। इसके लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को उपयोग में लाना होगा। क्योंकि यह किसानों के लिए सस्ता और सुविधाजनक होता है। साथ ही, राज्य सरकार सूक्ष्म सिंचाई को उपयोग में लाने के लिए किसान भाइयों को 85% अनुदान भी प्रदान कर रही है। ये भी देखें: सिंचाई की नहीं होगी समस्या, सरकार की इस पहल से किसानों की मुश्किल होगी आसान

1,000 रीचार्जिंग बोरवेल लगाने का लक्ष्य तय किया गया है

भारत में फिलहाल भूजल स्तर में आ रही गिरावट को पुनः ठीक करने के लिए वर्षा जल संचयन को भी प्रोत्साहन मिल रहा है। इसी संबंध में राज्य सरकार रीचार्जिंग बोरवेल के निर्माण की योजना बना रही हैं, जिसके माध्यम से वर्षा के जल को पुनः भूमि के अंदर पहुंचाया जा सके। इस कार्य हेतु किसान भाइयों को 25,000 रुपये खर्च करने पड़ेंगे। इसके अतिरिक्त जो भी खर्चा होगा उसको हरियाणा सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।

इस तरह किसान आवेदन कर सकते हैं

हरियाणा सरकार द्वारा रीचार्जिंग बोरवेल पर आवेदन की प्रक्रिया को ऑनलाइन माध्यम से भी कर दिया गया है। अगर आप भी हरियाणा राज्य के किसान हैं और स्वयं के खेत में जल संचयन हेतु बोरवेल स्थापित कराना चाहते हैं, तब आप सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, हरियाणा की वेबसाइट hid.gov.in पर जाकर आवेदन किया जा सकता है। इसके बारे में विस्तृत रूप से जानकारी प्राप्त करने के लिए स्वयं के जनपद के कृषि विभाग के कार्यालय में भी संपर्क कर फायदा उठा सकते हैं।
यह राज्य सरकार पानी बचाने के लिए दे रही है पैसा, 85 प्रतिशत तक मिल सकती है सब्सिडी

यह राज्य सरकार पानी बचाने के लिए दे रही है पैसा, 85 प्रतिशत तक मिल सकती है सब्सिडी

ग्लोबल वार्मिंग और भूमिगत जल के अत्याधिक दोहन के कारण धरती का भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है, ऐसे में लोगों के साथ ही किसानों के सामने भी भविष्य में बड़ी परेशानी सामने आ सकती है। जहां लोगों के लिए पेयजल एवं किसानों के लिए सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता में कमी आ सकती है। क्योंकि इन दिनों खेती किसानी में पानी का बहुतायत में उपयोग किया जा रहा है। खेती किसानी में अब नए यंत्रों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है जो पानी की बेतहासा बर्बादी करते हैं। खेतों में पानी की सिंचाई करके किसान भाई अच्छी खासा उत्पादन करते हैं जिनसे उन्हें मुनाफा होता है। लेकिन भूमिगत जल के कम होने की समस्या बेहद विकराल रूप ले चुकी है। गिरते हुए भूमिगत जल को देखते हुए अब सरकार ने दूसरी सिंचाई पद्धतियों को अपनाना शुरू कर दिया है जिससे पानी की खपत को कम किया जा सके। इसमें ड्रिप सिंचाई एक बेहतरीन तकनीक है जिससे किसान भाई भारी मात्रा में पानी की बचत कर सकते हैं। इसके साथ ही सूक्ष्म सिंचाई मॉडल ने भी कम होते पानी की चिंता को दूर किया है। इसके लिए सरकार किसानों को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत सूक्ष्म सिंचाई सिस्टम लगवाने के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है। इसी को देखते हुए अब हरियाणा की सरकार भी आगे आई है और हरियाणा की सरकार ने कहा है कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति अपनाने और रिचार्जिंग बोरवेल इंस्टॉल करवाने वाले किसानों को सब्सिडी प्रदान की जाएगी। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इससे क्षय होते भूमिगत जल को रोका जा सकता है साथ ही पानी के संचयन में विशेष मदद मिलने वाली है। इससे भूमिगत जल को तेजी से रिकवर किया जा सकता है।

किसानों को इतनी मिल सकती है सब्सिडी

इन दिनों अगर सिंचाई की बात करें तो भूमि के एक बहुत बड़े हिस्से की सिंचाई भूमिगत जल के द्वारा की जाती है। जिसके कारण भूमिगत जल का लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है। जो पर्यावरण में नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। हालांकि इससे बागवानी फसलों को प्रोत्साहन मिल रहा है लेकिन इससे फायदे होने की जगह नुकसान ज्यादा हैं। इसको देखते हुए अब हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने घोषणा की है कि सूक्ष्म सिंचाई मॉडल अपनाने के लिए अब किसानों को 85% तक की सब्सिडी दी जाएगी। इस मॉडल में किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को अपनाना होगा। ये किसानों के लिए बेहद सस्ता और सुविधाजनक भी है। ये भी देखें: 75 फीसद सब्सिडी के साथ मिल रहा ड्रिप स्प्रिंकलर सिस्टम, किसानों को करना होगा बस ये काम

पहले चरण में इतने लोगों को दी जाएगी सब्सिडी

सरकार ने बताया है कि सूक्ष्म सिंचाई मॉडल के अंतर्गत गिरते भूजल स्तर को वापस रिकवर करने के लिए सरकार रीचार्जिंग बोरवेल लगाने की योजना पर काम कर रही है। जिससे बरसात के पानी का संचयन करके उसे वापस जमीन में पहुंचाया जा सके। सरकार ने बताया है कि रीचार्जिंग बोरवेल लगाने के लिए किसान को मात्र 25 हजार रुपये खर्च करने होंगे। इसके बाद जो भी खर्च आता है वो हरियाणा की सरकार वहन करेगी। पहले चरण में राज्य में सरकार ने 1 हजार रीचार्जिंग बोरवेल लगाने का लक्ष्य रखा है।

सब्सिडी प्राप्त करने के लिए इस प्रकार करें आवेदन

हरियाणा सरकार की ओर से कहा गया है कि अब आवेदन करने के लिए किसान भाइयों को किसी भी प्रकार से परेशान होने की जरूरत नहीं है। इस पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया गया है। इसके लिए इच्छुक किसान भाई हरियाणा सरकार के सिंचाई और जल संसाधन विभाग की वेबसाइट hid.gov.in पर जाकर बेहद आसानी से ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। इसके अलावा किसान भाई अधिक जानकारी के लिए अपने जिले के कृषि विभाग में भी संपर्क कर सकते हैं और इस योजना का लाभ ले सकते हैं।
इस राज्य में सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था हेतु मुहैया कराई गई 463 करोड़ रुपए

इस राज्य में सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था हेतु मुहैया कराई गई 463 करोड़ रुपए

किसानों की दोगुनी आमदनी करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से हर संभव प्रयास कर रही हैं। इसी कड़ी में राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ से किसानों को सुविधा और राहत दिलाने के लिए 463 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी गई है। इसके तहत डिग्गी, फार्म पौण्ड एवं सिंचाई पाइपलाइन आदि कार्य को पूर्ण किया जाएगा। राजस्थान सरकार प्रदेश के किसान भाइयों को मजबूती पहुंचाने हेतु लगातार कोशिशें करते रहते हैं। इसके चलते विगत कुछ माहों से राज्य सरकार प्रदेश में स्वयं की समस्त योजनाओं पर कार्य कर लोगों की सहायता कर रही है। हाल ही, में सरकार द्वारा आम जनता के लिए CNG और PNG के मूल्यों में भी काफी गिरावट देखने को मिली है। सिर्फ इतना ही नहीं राज्य हेतु सरकार नित नए दिन कुछ न कुछ नवीन पहल कर रही है। इसी कड़ी में अब राज्य सरकार द्वारा सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था को और ज्यादा मजबूत करने का फैसला लिया है।

सरकार कितने करोड़ की धनराशि अनुदान स्वरुप किसानों को प्रदान कर रही है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा राज्य में सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था को ज्यादा सुदृढ़ करने के लिए डिग्गी, फार्म पौण्ड और सिंचाई पाइपलाइन आदि कार्यों हेतु 463 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। साथ ही, सरकार की तरफ से अधिकारीयों को यह निर्देश भी दिए गए हैं, कि इस परियोजना पर शीघ्रता से कार्य चालू किया जाना चाहिए। यह भी पढ़ें: सिंचाई की नहीं होगी समस्या, सरकार की इस पहल से किसानों की मुश्किल होगी आसान

लाभन्वित किसानों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी

इसके अतिरिक्त आगामी 2 वर्षों में फार्म पौण्ड निर्माण करने हेतु लगभग 30 हजार किसानों को लाभान्वित करने की संख्या में वृद्धि कर दी जाएगी। इस बार सरकार का यह उद्देश्य रहेगा कि फार्म पौण्ड निर्माण के लिए कृषकों की संख्या तकरीबन 50 हजार तक कर दिया गया है।

सरकार किसको अनुदान मुहैय्या कराएगी

यदि आप भी राजस्थान के रहने वाले हैं, तो आप आसानी से इस सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था का फायदा प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि उपरोक्त में आपको कहा गया है, कि राज्य में किसानों की सहायता करने के लिए सरकार डिग्गी, फार्म पौण्ड एवं सिंचाई पाइपलाइन से संबंधित कार्य हेतु लगभग 463 करोड़ रुपए का खर्चा करने का प्रस्ताव जारी कर दिया गया है। सिर्फ इतना ही नहीं सरकार द्वारा यह भी कहा गया है, कि इस सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था के तहत एससी, एसटी के गैर लघु-सीमांत किसान भाइयों को तकरीबन 10 प्रतिशत से अतिरिक्त अनुदान की सहायता प्रदान की जाएगी। बतादें, कि इस संदर्भ में राजस्थान सरकार के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर भी जानकारी प्रदान की गई है। जिससे कि प्रदेश की इस सुविधा के विषय में प्रत्येक किसान भाई को पता चल सके।
हरियाणा सरकार भूमिगत जल स्तर में गिरावट को लेकर सतर्क, अनुदान भी दिया जा रहा है

हरियाणा सरकार भूमिगत जल स्तर में गिरावट को लेकर सतर्क, अनुदान भी दिया जा रहा है

हरियाणा राज्य में गेहूं के उपरांत सर्वाधिक धान का उत्पादन किया जाता है। परंतु, किसान भाई भी धान की सिंचाई भी ट्यूबवेल के माध्यम से करती है। संपूर्ण भारत में भूमिगत जल का स्तर काफी तीव्रता से नीचे जा रहा है। इससे आने वाले समय में जल संकट मड़रा सकता है। विशेष बात यह है, कि भूमिगत जल का सर्वाधिक दोहन फसलों की सिंचाई में किया जा रहा है। इनमे भी सबसे अधिक भूमिगत जल का उपयोग धान की खेती में किया जाता है। यही कारण है, कि हरियाणा की तरह धान उत्पाद प्रदेश में भूमिगत जल स्तर में तीव्रता से गिरावट देखी जा रही है। हालांकि, इसको लेकर सरकार काफी सतर्कता बरत रही है। आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा में गेहूं के उपरांत सर्वाधिक धान का उत्पादन किया जाता है। परंतु, किसान धान की सिंचाई करने के लिए भी ट्यूबवेल का ही उपयोग करते हैं। इस तरह एक हेक्टेयर में धान का उत्पादन करने पर 50 लाख लीटर जल की खपत हो जाती है। हरियाणा में 33 लाख एकड़ से ज्यादा के क्षेत्रफल में धान की बुवाई की जाती है। ऐसी स्थिति में बाकी राज्यों की भांति हरियाणा में भी भूमिगत जल स्तर बेहद तीव्रता से नीचे गिरता जा रहा है। परंतु, हरियाणा सरकार द्वारा इस संकट से निपटने के लिए एक नया फॉर्मूला समाधान के तौर पर ढूंढ लिया गया है।

हरियाणा सरकार अनुदान बतौर देगी 7 हजार रुपए

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार द्वारा भूमिगत जल स्तर को सुरक्षित करने हेतु ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना जारी की गई है। इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकार धान के स्थान पर अन्य फसलों का उत्पादन करने के लिए किसानों को प्रेरित और प्रोत्साहित कर रही है। इससे भूमिगत जल स्तर को संरक्षित किया जा सके। विशेष बात यह है, कि धान के स्थान पर बाकी फसलों की खेती-किसानी करने वाले कृषकों को सरकार 7 हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से अनुदान भी प्रदान कर रही है। यह भी पढ़ें: भूजल स्तर में गिरावट को देखते हुए इस राज्य में 1000 रिचार्जिंग बोरवेल का निर्माण किया जाएगा दरअसल, हरियाणा सरकार का कहना है, कि धान की खेती में अत्यधिक जल की आवश्यकता होने की वजह से जल का दोहन भी अधिक होता है। इसके स्थान पर मक्का, तिलहन, हरी सब्जी और दाल की खेती कर जल की खपत कम की जा सकती है। क्योंकि इन फसलों की खेती में बेहद न्यूनतम पानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त डीएसआर तकनीक द्वारा धान की खेती करने पर 4000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से अनुदान प्रदान किया जाएगा।

हरियाणा सरकार ड्रिप इरिगेशन पर कितना अनुदान दे रही है

हरियाणा सरकार सतर्कता से जल संरक्षण हेतु विभिन्न प्रकार की योजनाएं चला रही है। सरकार की तरफ से ड्रिप इरिगेशन पर भी 80 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है। इस विधि द्वारा फसलों की सिंचाई करने पर जल की बर्बादी बेहद कम होती है, क्योंकि बुंद-बुंद कर के पानी फसलों की जड़ों तक पहुंचता है। यदि किसान भाई बाकी फसलों का उत्पादन करते हैं, तब वह सरकारी अनुदान का फायदा प्राप्त कर सकते हैं।