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जानिए तोरिया यानी लाही की उन्नत प्रजातियां (Improved varieties of Toria (Lahi))

जानिए तोरिया यानी लाही की उन्नत प्रजातियां (Improved varieties of Toria (Lahi))

खरीफ और रबी सीजन के मध्य लगने वाली सरसों कुल की फसल तोरिया यानी लहिया कम समय में अच्छा फायदा दे सकती हैं। अगस्त के अंत में लगने वाली तोरिया देश में तिलहन की कमी के चलते अच्छी कीमत पर बिकेगी और इसकी कटाई के बाद किसान गेहूं की फसल भी ले सकते हैं। बेहद कम समय में लगातार दो फसलों का मिलना किसानों की माली हालत में सुधार ला सकता है।

खेत की करें गहरी जुताई

किसी भी मूसला जड़ यानी जमीन के अंदर तक जाने वाली जड़ों के अच्छे विकास के लिए खेत की गहरी
जुताई आवश्यक है। इसके अलावा मिट्टी के भुरभुरे होने पर बरसात होने की स्थिति में फसल पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। तोरिया चूंकि सरसों से भी पहले लगती है। लिहाजा आखिरी जोत में बुवाई से पूर्व 1.5 प्रतिशत क्यूनॉलफॉस 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से मिला दें ताकि कट्टा आदि कीट अंकुरित पौधों को काटकर फसल को नुकसान न पहुंचा पाएं।

उत्तर प्रदेश के लिए उन्नत किस्में

किसी भी फसल के उत्पादन का सीधा संबंध उसकी समय अवधि से होता है लेकिन वर्तमान दौर में वैज्ञानिक और किसान दोनों कम समय में तैयार होने वाली किस्मों की तरफ आकर्षित होने लगे हैं। कारण और धारणा साफ है कि कम समय में पकने वाली किस्मों में रिस्क फैक्टर भी कम रहता है। कम समय तक रहने वाले रिस्क को किसान नियंत्रित कर सकते हैं। ये भी पढ़े: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण पीटी 303 किस्म अधिकतम 95 दिन में पकती है। इससे 15 से 18 क्विंटल उपज मिलती है। भवानी किस्म अधिकतम 80 दिन लेती है और इससे 10 से 12 क्विंटल उपज मिलती है। टी-9 किस्म की तोरिया 95 दिन में 12 से 15 कुंतल तक उपज मिलती है। उक्त तीनों किस्में समूचे उत्तर प्रदेश में बोने योग्य है। पीअी 30 किस्म तराई क्षेत्र के लिए है और अधिकतम 95 दिन लेकर 14 से 16 कुंतल उपज देती है। मध्य प्रदेश के लिए जवाहर तोरिया 1 अच्छी किस्म है। यह अधिकतम 90 में पकती है। इससे 15 से 18 कुंतल उपज मिलती है। भवानी किस्म से 80 दिन में 10 से 12 एवं टाइप 9 किस्म से 95 दिन में 12 से 15 कुंतल उपज मिलती है। इसके अलावा तोरिया की संगम किस्म 112 दिन में पककर 6-7 ¨क्विंटल उपज प्रति एकड़ देती है। टीएल-15 व टीएच-68 किस्म 85 से 90 दिन में पककर औसतन छह कुंतल प्रति एकड़ तक उपज दे जाती है।

तोरिया की बुवाई का समय

तोरिया को अगस्त के अंतिम सप्ताह से सितंबर के पहले हफ्ते तक बोया जा सकता है। इसकी अगेती सिंचाई नहीं करनी चाहिए। इसकी सिंचाई फूल एवं फली बनने की अवस्था में ही करें। ​बाजाई के 20 से 30 दिन के अंदर निराई का काम कर लेवें। बोने से पहले बीज को दो से ढ़ाई ग्राम किसी प्रभावी फफूंदनाशक दवा से प्रतिकिलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार अवश्य कर लेें।

बीज दर

तोरिया का ​बीज सवा किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से डालना चाहिए। असिंचित अवस्था में इसे दो किलोग्राम तक डाला जा सकता है। लाइन से लाइन की दूरी 30 सेमी एवं बीज को पांच सेण्टीमीटर गहरा डालना चाहिए। बुबाई 50 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 10 किलोग्राम जिंक व 25 किलोग्राम यूरिया से करेें। बुरकाव में पहले पानी के बाद ही बाकी यूरिया डालें।
परंपरागत खेती छोड़ हरी सब्जी की खेती से किसान कर रहा अच्छी कमाई

परंपरागत खेती छोड़ हरी सब्जी की खेती से किसान कर रहा अच्छी कमाई

भारत में किसान परंपरागत खेती की जगह बागवानी की तरफ अपना रुख करने लगे हैं। आशुतोष राय नाम के एक किसान ने भी कुछ ऐसा ही किया है। कहा गया है, कि मार्च माह में उन्होंने बाजार से बीज लाकर तोरई और खीरे की बिजाई की थी। उन्होंने बताया था कि बुवाई करने से पूर्व उन्होंने खेत की बेहतर ढ़ंग से जुताई की गई थी।

 

आशुतोष ने इतने बीघे में तोरई और खीरे की खेती कर रखी है

बिहार के बक्सर जनपद में किसान परंपरागत खेती करने के साथ-साथ आधुनिक विधि से
सब्जी की भी खेती कर रहे हैं। इससे कृषकों को कम लागत में अधिक मुनाफा मिल रहा है। विशेष बात यह है, कि किसान एक ही खेत में विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। इनमें से आशुतोष राय भी एक उत्तम किसान हैं। इन्होने 2 बीघे भूमि में तोरई और खीरे की खेती कर रखी है। आशुतोष ने बताया है, कि उनके यहां विगत 20 साल से सब्जी का उत्पादन किया जा रहा है। हरी सब्जी विक्रय कर वह प्रतिवर्ष मोटी आमदनी कर लेते हैं।

 

आशुतोष खेती में जैविक खाद का ही इस्तेमाल करते हैं

मीड़िया खबरों के अनुसार, किसान आशुतोष राय का कहना है, कि उनके पिता जी और दादा जी पहले पारंपरिक ढ़ंग से खेती किया करते थे। इससे खर्च अधिक और लाभ कम होता था। परंतु, उन्होंने आधुनिक तकनीक से पारंपरिक फसलों के साथ- साथ बागवानी फसलों की भी खेती आरंभ कर दी है। इससे लागत में अत्यधिक राहत मिल रही है। आशुतोष की मानें तो वह अपने सब्जी के खेत में जैविक खाद का ही उपयोग करते हैं। इससे उनके खेत की सब्जियां हाथों- हाथ बाजार में बिक जाती हैं। 

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लगभग 2 महीने में हरी सब्जी की बिक्री शुरू हो गई

आशुतोष का कहना है, कि मार्च माह में उन्होंने बाजार से बीज लाकर तोरई और खीरे की बिजाई की थी। उन्होंने बताया कि बिजाई करने से पूर्व खेत को अच्छे ढ़ंग से जोता गया था। उसके बाद पाटा चलाकर मृदा को एकसार कर दिया गया। साथ ही, 6-6 फीट के फासले पर तरोई की बुवाई की गई। इसके साथ ही बीच-बीच में खीरे की भी बिजाई की गई। इस दौरान आशुतोष वक्त-वक्त पर सिंचाई भी करता रहा। लगभग 2 माह में हरी सब्जी की बिक्री चालू हो गई।

 

पारंपरिक फसलों के मुकाबले हरी सब्जी की खेती में ज्यादा मुनाफा है - आशुतोष

आशुतोष प्रतिदिन 10 रुपये किलो की कीमत से एक क्विंटल तोरई बेच रहे हैं। इससे उन्हें प्रतिदिन 10 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। साथ ही, वह खीरा बेचकर भी अच्छा-खासा मुनाफा कर लेते हैं। आशुतोष के अनुसार तो 2 बीघे में सब्जी की खेती करने पर उनका 20 हजार रुपये का खर्चा हुआ है। साथ ही, रोगों से संरक्षण के लिए आशुतोष को कीटनाशकों का छिड़काव भी करना पड़ा है। इसके अतिरिक्त भी फसलों को व्हाईट फ्लाई रोग से काफी क्षति हुई है। आशुतोष राय ने बताया है, कि पारंपरिक फसलों की तुलना में हरी सब्जी की खेती में काफी ज्यादा मुनाफा है।