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तुलसी की खेती : अच्छी आय और आवारा पशुओं से मुक्ति

तुलसी की खेती : अच्छी आय और आवारा पशुओं से मुक्ति

तुलसी तकरीबन हर घर में पूजी जाती है। इसके गुणों से भी लोग परिचित हैं लेकिन बढ़ते रोग और आयुर्वेदिक दवाओं में इसके उपयोग ने इसकी महत्ता और बढ़ा दी है। धार्मिक नगरों के निकट तो तुलसी की लकड़ी की मंठी माला बनाने का काम हजारों लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा है। तुलसी के औषधीय गुण बगैर रसायन वाली खेती में ज्यादा आते हैं। इसकी लागत बेहद कम आती है और छुट्टा पशु भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा पाते।

   

 तुलसी करीब पांच-सात प्रकार की होती है। आम तौरपर लोग रामा एवं श्यामा तुलसी के विषय में ही जानते हैं। इसकी खेती के लिए या तो किसान उन किसानों को बीज लें जो लम्बे समय से इसकी खेती कर रहे हैं या फिर उत्तर प्रदेश के लखनउू में स्थित सगंधीय पौध संस्थान से ​बीज लें। इसके अलावा हर राज्य में कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से तथा निकट के ​कृषि विज्ञान केन्द्र व जिला उद्यान कार्यालय के माध्यम से भी उचित सलाह एवं बीज मिल सकता है।

   

 अप्रैल मई में इसकी पोघ डाली जाती है जो 10 से 15 दिन में तैयार हो जाती है। तुलसी की खेती के लिए किसी भी तरह का रासायानिक खाद प्रयोग में न लाएं। गोबर की सड़ी खाद आदि का ही प्रयोग करेंगे तो औषधीय गुण भरपूर होंगे। तुलसी की खेती के लिए एक हैक्टेयर जमीन के लिए दो से चार किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। तुलसी की पौध को भी बैड बनाकर डालें। 

मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद एवं ट्राईकोडर्मा या कार्बनजिम जैसे किसी फफूंदनाशक को मिला लें। पौध रोपने के तत्तकाल बाद खेत में पानी लगाएं। जरूरत के अनुरूप् सिंचाई करते रहें। फूल आने से पूर्व एकबार तुडाई कर दें ताकि शाखाएं ज्यादा बनें एवं बीज, पत्ते और डंडी तीनों की उपज में इजाफा हो। तुलसी का बीज यानी मंजरी 30 से 40 हजार रुपए कुंतल तक बिकत है। इसके अलावा पत्ते थोक में भी 15 से 20 रुपए किलो बिकते हैं। यह बात अलग है कि किसानों से पत्तेे खरीदने वाले बिचौलिए इन्हें 50 से 70 रुपए प्रति किलोग्राम तक कंपनियों की मांग के अनुरूप बेचते हैं।

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

दोस्तों, आज हम बात करेंगे जड़ी बूटियों के विषय में ऐसी जड़ी बूटियां जो ग्रीष्मकालीन में उगाई जाती है और इन जड़ी बूटियों से हम विभिन्न विभिन्न प्रकार से लाभ उठा सकते हैं। यह जड़ी बूटियों को हम अपने घर पर उगा सकते हैं, यह जड़ी बूटियां कौन-कौन सी हैं जिन्हें आप घर पर उगा सकते हैं, इसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां

पेड़ पौधे मानव जीवन के लिए एक वरदान है कुदरत का यह वरदान मानव जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार से यह पेड़-पौधे जड़ी बूटियां मानव शरीर और मानव जीवन काल को बेहतर बनाते हैं। पेड़ पौधे मानवी जीवन का एक महत्वपूर्ण चक्र है। विभिन्न प्रकार की ग्रीष्म कालीन जड़ी बूटियां  रोग निवारण करने के लिए इन जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। इन जड़ी-बूटियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर होती है अतः या जड़ी बूटियां मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां, औषधि पौधे न केवल रोगों से निवारण अपितु विभिन्न प्रकार से आय का साधन भी बनाए रखते हैं। औषधीय पौधे शरीर को निरोग बनाए रखते हैं। विभिन्न प्रकार की औषधि जैसे तुलसी पीपल, और, बरगद तथा नीम आदि की पूजा-अर्चना भी की जाती है। 

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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां :

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां जिनको आप घर पर उगा सकते हैं, घर पर इनको कुछ आसान तरीकों से उगाया जा सकता है। यह जड़ी बूटियां और इनको उगाने के तरीके निम्न प्रकार हैं: 

नीम

नीम का पौधा गर्म जलवायु में सबसे अच्छा पनपता है नीम का पेड़ बहुत ही शुष्क होता है। आप घर पर नीम के पौधे को आसानी से गमले में उगा सकते हैं। इसको आपको लगभग 35 डिग्री के तापमान पर उगाना होता है। नीम के पौधे को आप घर पर आसानी से उगा सकते हैं। आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती, नीम के पेड़ से गिरे हुए फल को  आपको अच्छे से धोकर उनके बीच की गुणवत्ता  तथा खाद मिट्टी में मिला कर पौधों को रोपड़ करना होता है। नीम के अंकुरित लगभग 1 से 3 सप्ताह का टाइम ले सकते हैं। बगीचों में बड़े छेद कर युवा नीम के पौधों को रोपण किया जाता है और पेड़ अपनी लंबाई प्राप्त कर ले तो उन छिद्रों को बंद कर दिया जाता है। नीम चर्म रोग, पीलिया, कैंसर आदि जैसे रोगों का निवारण करता है।

तुलसी

तुलसी के पौधे को घर पर उगाने के लिए आपको घर के किसी भी हिस्से या फिर गमले में बीज को मिट्टी में कम से कम 1 से 4 इंच लगभग गहराई में तुलसी के बीज को रोपण करना होता है। घर पर तुलसी के पौधा उगाने के लिए बस आपको अपनी उंगलियों से मिट्टी में इनको छिड़क देना होता है क्योंकि तुलसी के बीज बहुत ही छोटे होते हैं। जब तक बीच पूरी तरह से अंकुरित ना हो जाए आपको मिट्टी में नमी बनाए रखना है। यह लगभग 1 से 2 सप्ताह के बीच उगना शुरू हो जाते हैं। आपको तुलसी के पौधे में ज्यादा पानी नहीं देना है क्योंकि इस वजह से पौधे सड़ सकते हैं तथा उन्हें फंगस भी लग सकते हैं। घर पर तुलसी के पौधा लगाने से पहले आपको 70% मिट्टी तथा 30 प्रतिशत रेत का इस्तेमाल करना होता है। तुलसी की पत्तियां खांसी, सर्दी, जुखाम, लीवर की बीमारी मलेरिया, सास से संबंधित बीमारी, दांत रोग इत्यादि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है।

बेल

बेल का पौधा आप आसानी से गमले या फिर किसी जमीन पर उगा सकते हैं। इन बेल के बीजों का रोपण करते समय अच्छी खाद और मिट्टी के साथ पानी की मात्रा को नियमित रूप से देना होता है। बेल के पौधे विभिन्न प्रकार की बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं। जैसे: लीवर की चोट, यदि आपको वजन घटाना हो या फिर बहुत जादा दस्त हो, आंतों में विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी, कब्ज की समस्या तथा चिकित्सा में बेल की पत्तियों और छालों और जड़ों का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की औषधि का निर्माण किया जाता है। 

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आंवला

घर पर  किसी भी गमले या जमीन पर आप आंवले के पौधे को आसानी से लगा सकते हैं। आंवले के पेड़ के लिए आपको मिट्टी का गहरा और फैलाव दार गमला लेना चाहिए। इससे पौधों को फैलने में अच्छी जगह मिलती है। गमले या फिर घर के किसी भी जमीन के हिस्से में पॉटिंग मिलाकर आंवले के बीजों का रोपण करें। आंवले में विभिन्न प्रकार का औषधि गुण मौजूद होता है आंवले में  विटामिन की मात्रा पाई जाती है। इससे विभिन्न प्रकार के रोगों का निवारण होता है जैसे: खांसी, सांस की समस्या, रक्त पित्त, दमा, छाती रोग, मूत्र निकास रोग, हृदय रोग, क्षय रोग आदि रोगों में आंवला सहायक होता है।

घृत कुमारी

घृतकुमारी  जिसको हम एलोवेरा के नाम से पुकारते हैं। एलोवेरा के पौधे को आप किसी भी गमले या फिर जमीन पर आसानी से उगा सकते हैं। यह बहुत ही तेजी से उगने वाला पौधा है जो घर के किसी भी हिस्से में उग सकता है। एलोवेरा के पौधे आपको ज्यादातर भारत के हर घर में नजर आए होंगे, क्योंकि इसके एक नहीं बल्कि अनेक फायदे हैं। एलोवेरा में मौजूद पोषक तत्व त्वचा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं। त्वचा के विभिन्न प्रकार के काले धब्बे दाने, कील मुहांसों आदि समस्याओं से बचने के लिए आप एलोवेरा का उपयोग कर सकते हैं। यह अन्य समस्याओं जैसे  जलन, डैंड्रफ, खरोच, घायल स्थानों, दाद खाज खुजली, सोरायसिस, सेबोरिया, घाव इत्यादि के लिए बहुत सहायक है।

अदरक

अदरक के पौधों को घर पर या फिर गमले में उगाने के लिए आपको सबसे पहले अदरक के प्रकंद का चुनाव करना होता है, प्रकंद के उच्च कोटि को चुने करें। घर पर अदरक के पौधे लगाने के लिए आप बाजार से इनकी बीज भी ले सकते हैं। गमले में 14 से 12 इंच तक मिट्टी को भर ले, तथा खाद और कंपोस्ट दोनों को मिलाएं। गमले में  अदरक के टुकड़े को डाले, गमले का जल निकास नियमित रूप से बनाए रखें। 

अदरक एक ग्रीष्मकालीन पौधा है इसीलिए इसको अच्छे तापमान की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। यह लगभग 75 से लेकर 85 के तापमान में उगती  है। अदरक भिन्न प्रकार के रोगों का निवारण करता है, सर्दियों के मौसम में खांसी, जुखाम, खराश गले का दर्द आदि से बचने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। अदरक से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, पुरानी बीमारियों का निवारण करने के लिए अदरक बहुत ही सहायक होती है। 

दोस्तों हम यह उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां पसंद आया होगा। हमारे आर्टिकल में घर पर उगाई जाने वाली  जड़ी बूटियों की पूर्ण जानकारी दी गई है। जो आपके बहुत काम आ सकती है यदि आप हमारी जानकारी से संतुष्ट है। तो हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर  शेयर करें। 

धन्यवाद।

तुलसी के पौधों का मानव जीवन में है विशेष महत्व

तुलसी के पौधों का मानव जीवन में है विशेष महत्व

नई दिल्ली। तुलसी का पौधा स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक होता है। आयुर्वेद में तुलसी को औषधीय पौधा माना गया है। हिन्दू धर्म मे तुलसी का अत्यधिक महत्व माना जाता है। यह धार्मिक पौधा होने कारण घर-घर पूजा जाता है। कोई तुलसी को धर्म और आस्था से जोड़ कर देखता है, तो कोई सेहत के लाभ उठाने के लिए तुलसी का प्रयोग करता है। यही वजह है कि तुलसी का पौधा लगभग हर हिन्दू के घर में पाया जाता है। 

तुलसी के पौधे को हरा-भरा रखने के उपाय

धर्म और आस्था के साथ-साथ सेहत के लिए लाभकारी तुलसी के पौधों का प्रसाद में भी काफी महत्व है। देशी नुस्खे में सर्दी-जुकाम दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों को चाय में डालकर पीने से आराम मिलता है। घर पर तुलसी के पौधा उगाने के लिए बस आपको अपनी उंगलियों से मिट्टी में इनको छिड़क देना होता है क्योंकि तुलसी के बीज बहुत ही छोटे होते हैं।

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लेकिन लोगों का मानना है कि इतने उपयोगी पौधे को हरा-भरा रखना उतना ही कठिन है। तमाम लोगों का कहना है कि तुलसी का पौधा लू-गर्मी लगने के कारण सूख जाता है। तो कुछ लोगों ने बताया कि अधिक सर्दी में ओस का शिकार होने से तुलसी का पौधा सूख जाता है। 

तुलसी के पौधे को हरा-भरा रखने के ये मुख्य उपाय हैं

1 - तुलसी के पौधे को 20 सेंटीमीटर गहराई की मिट्टी लगाएं। जिससे मॉइश्चर मिट्टी मिले। 2 - बारिश के मौसम में तुलसी के पौधे में ज्यादा पानी भरा रहना नुकसानदायक है। इसलिए पौधे के नीचे सीमित पानी ही रहना चाहिए। 3 - हर महीने 2 चम्मच नीम की पत्तियों को सुखाकर उसका पाउडर तुलसी के पौधे में डालना चाहिए। इससे पौधा सूखेगा नहीं। 4 - पौधे की मिट्टी को समय-समय पर खुरपी से खोदकर इधर-उधर करते रहें। 5 - तुलसी के पौधे के लिए ऑक्सीजन की कमी नहीं रहनी चाहिए। 

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तुलसी के पौधे के साथ जुड़ी है धर्म और आस्था

  • तुलसी के पौधे से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है, इसलिए अगर आप पौधे की पूजा करते हैं तो जरूर करें, मगर कोशिश करें कि रोज तुलसी के पौधे से पत्तियों को ना तोड़ें।
  • यदि आप दिया या अगरबती जलाते हैं तो पौधे से इन चीजों को दूर रखने की कोशिश करें। दरअसल धुएं और तेल से भी तुलसी को नुकसान पहुंचता है।
अगर आप ऊपर बताई हुई टिप्स को फॉलो करते हैं। तो महीने भर में ही आपको अपने सूखे हुए तुलसी के पौधे में नई पत्तियां आती दिखेंगी।

 ----- लोकेन्द्र नरवार

तुलसी की खेती करने के फायदे

तुलसी की खेती करने के फायदे

दोस्तों आज हम बात करेंगे तुलसी की खेती की। जिस प्रकार विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे दाल, गन्ना, गेहूं, जौ, बाजरा आदि पारंपरिक फसलें  मानी जाती है, उसी प्रकार औषधि के रूप में तुलसी की खेती की जाती है। तुलसी की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें। 

तुलसी की खेती:

वैसे तो किसान गेहूं, गन्ना, धान आदि की फसल की खेती करते हैं और यह खेती वे लम्बे समय से करते आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में किसान इन खेतीयों को पारंपरिक तौर पर करते हैं। परंतु प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार, हरदोई के एक किसान ने इन परंपराओं से हटकर, तुलसी की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाया है, तुलसी की फसल की खेती से काफी मुनाफा कमाया है। जिले के इस किसान ने पारंपरिक फसलों की बुवाई से हटकर अलग कार्य कर दिखाया है, जिसके लिए लोग उसकी काफी प्रशंसा करते हैं। ऐसे में आप इस किसान के नाम को जानने के लिए जरूर इच्छुक होंगे। हरदोई के इस किसान का नाम अभिमन्यु है, ये हरदोई के नीर गांव में निवास करते हैं। अभिमन्यु तुलसी की खेती लगभग 1 हेक्टेयर की भूमि पर कर रहे हैं, जहां उन्हें अन्य फसलों से ज्यादा मुनाफा मिल रहा है। ये खेती कर 90 से 100 दिनों के भीतर अच्छी कमाई कर लेते हैं।

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तुलसी के तेल की बढ़ती मांग:

मार्केट दुकानों आदि जगहों पर तुलसी के तेल की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं। क्योंकि तुलसी स्वास्थ्य तथा औषधी कई प्रकार से काम में  लिया जाता है तथा विभिन्न विभिन्न प्रकार की औषधि बनाने के लिए तुलसी के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं दूसरी ओर यदि हम बात करें, त्वचा को आकर्षित व कुदरती निखार देने की, तो भी तुलसी के तेल का ही चुनाव किया जाता है। ऐसी स्थिति में मार्केट तथा अन्य स्थानों पर तुलसी की मांग तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में किसान तुलसी की खेती कर अच्छी कमाई की प्राप्ति कर सकते हैं। 

तुलसी के तेल की कीमत:

तुलसी के तेल की कीमत लगभग 1800 से  2000 प्रति लीटर है। करोना जैसी भयानक महामारी के समय लोग ज्यादा से ज्यादा तुलसी के तेल का इस्तेमाल कर रहे थे। तुलसी के तेल का इस्तेमाल देखते हुए इसकी कीमत दिन प्रतिदिन और बढ़ती गई। बाजार और मार्केट में अभी भी इनकी कीमत उच्च कोटि पर है। 

तुलसी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चयन:

किसानों के अनुसार कम उपजाऊ वाली जमीनों पर तुलसी की खेती बहुत ज्यादा मात्रा में होती है। जिन भूमियों में जल निकास की व्यवस्था सही ढंग से की गई हो उन भूमि पर उत्पादन ज्यादा होता है। बलुई दोमट मिट्टी तुलसी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

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उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु तुलसी की खेती के लिए उपयोगी है। 

तुलसी की खेती करने के लिए भूमि को तैयार करना:

तुलसी की खेती करने से पहले भूमि को हल या किसी अन्य उपकरण द्वारा अच्छे से जुताई कर लेना चाहिए। एक अच्छी गहरी जुताई प्राप्त करने के बाद ही बीज रोपण का कार्य शुरू करना चाहिए। सभी प्रकार की भूमि तुलसी की खेती करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। 

तुलसी के पौधों की बुवाई तथा रोपाई करने के तरीके:

तुलसी के बीज सीधे खेतों में नहीं लगाए जाते हैं, इससे फसल पर बुरा असर पड़ता है। तुलसी की फसल की बुवाई करने से पहले, कुछ दिनों तक इन्हें नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने के बाद ही खेतों में इसकी रोपाई का कार्य करना चाहिए। सीधे बीज को खेतों में लगाना फसल को खराब कर सकता है। किसान तुलसी की खेती करने से पहले तुलसी के बीजों को नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने की सलाह देते हैं।

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तुलसी के पौधे को तैयार करने के तरीके:

तुलसी के पौधों को बोने से पहले किसान खरपतवार को पूरे खेत से भली प्रकार से साफ करते हैं। उसके बाद लगभग 18 से 20 सेंटीमीटर गहरी जुताई करते हैं। तुलसी की खेती के लिए लगभग 15 टन सड़ी हुई गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी के पौधे के लिए क्यारियों की दुरी : पौधे से पौधे की दूरी ३० -४० सेंटीमीटर व लाइन से लाइन की दूरी ३८ -४६ सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खाद के रूप में 20 किलोग्राम फास्फोरस और पोटाश का भी इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के 15 से 20 दिन के बाद खेतों में नत्राजन डालना फसल के लिए उपयोगी होता है। तुलसी के पौधे छह ,सात हफ्तों में रोपाई के लिए पूरी तरह से तैयार हो।

 

तुलसी के पौधों की रोपाई का उचित समय

तुलसी के पौधों की रोपाई का सही समय दोपहर के बाद का होता है। तुलसी के पौधों की रोपाई सदैव सूखे मौसम में करना फसल के लिए उपयोगी होता है। रोपाई करने के बाद जल्द ही सिंचाई की व्यवस्था बनाए रखना चाहिए। मौसम बारिश का लगे तब आप रोपाई का कार्य शुरू कर दे। इससे फसल की अच्छी सिंचाई हो जाती है। 

 दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा या आर्टिकल तुलसी की खेती करने के फायदे पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में  तुलसी की फसल जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी मौजूद है। जो आप के बहुत काम आ सकती हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ तथा अन्य सोशल प्लेटफॉर्म पर शेयर करें।

बैंकिंग से कृषि स्टार्टअप की राह चला बिहार का यह किसान : एक सफल केस स्टडी

बैंकिंग से कृषि स्टार्टअप की राह चला बिहार का यह किसान : एक सफल केस स्टडी

कठिन मेहनत से हासिल बैंकिंग की नौकरी छोड़, कृषि में स्टार्टअप की राह पर चला बिहार का यह किसान

आजादी के बाद भारत की आर्थिक वृद्धि और जीडीपी में कृषि का योगदान निरंतर कम होता जा रहा है। हालांकि,
हरित क्रांति की सफलता के बाद एक समय आयात पर निर्भर रहने वाली भारतीय कृषि इतनी सफल तो हो पायी, कि देश के लोगों की मांग पूरी करने के अलावा कुछ स्तर पर निर्यात में भी हिस्सेदारी बंटा पाई। 2011 की जनगणना के अनुसार, 78 मिलियन प्रवासी मजदूर कृषि क्षेत्रों में सक्रिय रहने के अलावा, अतिरिक्त आय के लिए प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी काम करते हैं और इसी वजह से कृषि से होने वाली उत्पादकता में निरंतर कमी देखने को मिली है। बिहार के औरंगाबाद जिले के बरौली गांव में रहने वाले एक किसान की कहानी कुछ ऐसे ही शुरू हुई थी, जब उन्होंने कृषि और किसानी में सफल हुए कई विदेशी और भारतीय किसानों की केस स्टडी (case study) के बारे में पढ़ा। मैनेजमेंट प्रोफेशनल के रूप में काम करते हुए ही 2011 में बिहार के अभिषेक कुमार ने अच्छी सैलरी देने वाली जॉब को छोड़ने का निर्णय लिया और आज अभिषेक कुमार के खेतों में तुलसी (Tulsi), हल्दी (Turmeric), गिलोय (giloy) तथा मोरिंगा (Drumstick) और गेंदा (मेरीगोल्ड, Marygold) जैसी, आयुर्वेदिक औषधियों में इस्तेमाल होने वाले पौधों की खेती की जाती है। अभिषेक को परिवारिक जमीन के रूप में 20 एकड़ का क्षेत्र मिला था, जिनमें से 15 एकड़ के क्षेत्र में वह इसी तरह कम समय में तैयार होने वाली आयुर्वेदिक औषधियों का उत्पादन कर बड़ी मार्केटिंग कंपनियों से जुड़ते हुए अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।


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अभिषेक ने बताया कि धान, गेहूं और मक्का से होने वाली बचत इन फसलों की तुलना में आधी भी नहीं होती है, लेकिन वैज्ञानिकों के द्वारा सुझाई गई आधुनिक विधियों और कृषि विभाग के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का सही तरीके से पालन कर, इंटरनेट की मदद से कई सफल किसानों तक पहुंच बनाकर, बेहतर कृषि उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले कुछ ऐसे गुण सीखे, जो आज अभिषेक को अच्छा मुनाफा दे रहे हैं। बिहार में एक प्रॉफिटेबल कृषि मॉडल बनाने की सोच को लेकर काम कर रहे अभिषेक, खेत से होने वाली उत्पादकता पर ज्यादा ध्यान देते हैं। खुद अभिषेक ही बताते हैं कि एक कृषि परिवार से संबंध रखने के बावजूद भी खेती में कम आमदनी होने की वजह से, अपने परिवार को सहायता प्रदान करने और खुद का गुजारा करने के लिए वह पुणे में एक बैंक में कंसलटेंट के रूप में काम करने लगे थे। अभिषेक ने बताया कि जब उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड और चपरासी जैसे पदों पर काम करते वाले लोगों को देखा और उनसे मुलाकात हुई, तो पता चला कि इन लोगों के गांव में बहुत ज्यादा जमीन खाली पड़ी है और खेती में मुनाफा ना होने की वजह से ही वह अपने परिवार को गांव में छोड़कर शहरों में मुश्किल भरी जिंदगी जी रहे हैं। इन्हीं घटनाओं से प्रेरणा लेते हुए अभिषेक ने अपनी नौकरी को छोड़ वापस गांव में ही रहते हुए कृषि में इनोवेशन (Innovation) करने की सोच के साथ एक नई शुरुआत करने की सोची। आज अभिषेक को उनके गांव में ही नहीं बल्कि पूरे जिले में एक अलग पहचान मिल चुकी है और बिहार के कई बड़े एनजीओ (NGOs) तथा किसान भाई समय-समय पर उनसे जाकर मिलते हैं और अभिषेक के कृषि मॉडल की तरह ही अपने खेत की जमीन की उर्वरता और उत्पादन बढ़ाने के लिए राय लेते है।


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जब अभिषेक ने अपनी खेती की शुरुआत की तभी उन्होंने मन बना लिया था कि वह केवल किताबी ज्ञान को किसानों को बताने की बजाय पहले उसे अपने खेत में अपना कर देखेंगे और यदि अच्छा मुनाफा होगा तभी दूसरे किसान भाइयों को भी नई तकनीकों को सलाह देंगे, उन्हीं प्रयोगों का अभिषेक को इतना फायदा हुआ कि वर्तमान में वह लगभग 95 से अधिक कृषि उत्पादन संगठनों (Farmers producer organisation) से जुड़े हुए है और इन संगठनों से जुड़े हुए लगभग 2 लाख से अधिक किसान भाइयों को साल 2011 से मार्केटिंग और खेती से जुड़ी समस्त जानकारियां उपलब्ध करवा रहे है। किसी भी शहरी परिवेश से वापस ग्रामीण क्षेत्र में आकर कृषि कार्यों की शुरुआत करने में अनेक प्रकार की समस्याएं होती है और ऐसी ही समस्या अभिषेक के सामने भी बिहार में एक अच्छा मुनाफा कमाने वाले किसान बनने की राह में अड़चन पैदा कर रही थी। हालांकि जब अभिषेक शहर से अपनी नौकरी छोड़ वापस गांव में आए, तो उन्हें कई लोगों के द्वारा विरोध झेलना पड़ा और उनके परिवार के सदस्यों के द्वारा इस विचार को पूरी तरीके से गलत ठहरा दिया गया, लेकिन जब अभिषेक ने अपने पिता को आधुनिक और समोच्च तरीके से होने वाली वैज्ञानिक विधियों की मदद से खेती करने की बात बताई, तो उनके परिवार ने भी हामी भरदी। वैज्ञानिक विधि का पालन करते हुए अभिषेक ने सबसे पहले अपने खेत में मिट्टी की जांच करवाई, जिससे उन्हें उनके खेत में पाई जाने वाली मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों के बारे में पता चला, कौन से पोषक तत्वों की कितनी मात्रा खेत में पहले से उपलब्ध है और किन पोषक तत्वों की खेत की मिट्टी में कमी है।


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अभिषेक ने अपने किसानी करियर में पहली शुरुआत सामान्य खेती से ही की थी, लेकिन जब उन्होंने बागवानी कृषि को अपनाया तो उनके द्वारा किए गए सभी प्रयास सफल हुए और पहली साल में ही 6 लाख रुपए से अधिक की कमाई हुई। अभिषेक बताते हैं कि 2011 से ही वह रोज सुबह एक घंटे साइबर कैफे में जाकर इंटरनेट और यूट्यूब की मदद से विदेशी और पूशा के वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई नई विधियों को अपने खेत में आजमाकर देखते थे। जरबेरा की फसल का उत्पादन करने वाले वह बिहार के पहले व्यक्ति थे। इसके लिए उन्होंने बेंगलुरु और पुणे में काम कर रही कृषि से जुड़ी कई बड़ी साइंटिफिक लाइब्रेरी में जाकर रिसर्च करने वाले लोगों से बात कर उच्च गुणवत्ता वाले बीजों (High yield variety seeds) को उगाया तो पहले ही उत्पादन के बाद अच्छा मुनाफा दिखाई दिया। आज उनके खेतों में एक चौथाई से ज्यादा हिस्सों पर इसी प्रकार के औषधियों में इस्तेमाल होने वाले पौधे उगाए जाते है। अभिषेक बताते हैं कि औषधीय पौधों (Medicine Plants) को एक बार लगाने के बाद कुछ समय तक बिना निराई गुड़ाई के भी रखा जा सकता है और उत्पादन में होने वाली लागत को कम किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे प्लांट्स के पौधे और पत्तियां अधिक बारिश और तेज धूप तथा भयंकर ठंड में भी वृद्धि दर को बरकरार रख सकते हैं, जिससे उर्वरकों पर होने वाली लागत कम आती है। औषधीय पौधों में एक बार पानी देने के बाद वे आसानी से 20 से 25 दिन तक बिना पानी के रह सकते है। अभिषेक ने बताया कि मेडिसिन पौधों का सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि इनमें आवारा पशु और जानवरों से होने वाले नुकसान पूरी तरीके से कम किए जा सकते है, क्योंकि नीलगाय जो कि बिहार के खेतों में सबसे ज्यादा क्रॉप डेमेज (Crop damage) करती है, वह इन पौधों को बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचाती।


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अफ्रीका और आसाम में काम कर रही चाय के बागान से जुड़ी कंपनियों के अनुसंधानकर्ताओं की मदद से अभिषेक ने बिहार में रहते हुए ही 'ग्रीन टी' का उत्पादन भी शुरू किया है। ग्रीन टी बनाने के लिए तुलसी, लेमन घास (Lemongrass) और मोरिंगा के पौधों की पत्तियों की आवश्यकता होती है, जिन्हें बारीक तरीके से काटकर एक सोलर ड्रायर विधि की मदद से अभिषेक के द्वारा ही स्थापित गांव की ही एक विपणन इकाई में मशीन की मदद से तैयार किया जाता है और कई बड़ी भारतीय और इंटरनेशनल मार्केटिंग कंपनियों को बेचा जाता है। बैंक में काम करने वाले एक कर्मचारी से लेकर खेती में सफलता प्राप्त करने वाले अभिषेक कई किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बनने के बाद अब कृषि के क्षेत्र में एक नई स्टार्टअप की योजना बना रहे है, हालांकि पिछले कुछ समय से बेंगलुरु से संचालित हो रही एक एग्रीटेक स्टार्टअप (Agritech startup) के साथ वह पहले से ही बिजनेस डेवलपर के रूप में जुड़े हुए हैं।


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अभिषेक प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (PACs) में होने वाली विपणन की विधियों में भी कुछ सुधार की उम्मीद करते है, क्योंकि वह मानते है कि मंडियों में होने वाले बिचौलिए की जॉब को पूरी तरीके से खत्म कर देना ही किसानों के लिए फायदेमंद रहेगा। स्टार्टअप की राय पर अभिषेक का मानना है कि वह किसानों और कृषि उत्पादन संगठन (FPOs) के मध्य कम शुल्क पर काम करने वाले एक माध्यम के रूप में भूमिका निभाने वाली स्टार्टअप की शुरुआत करना चाहते है और उनकी कोशिश है कि किसानों को उगाई गई उपज की सरकार के द्वारा तय किए गए मिनिमम सपोर्ट प्राइस (Minimum Support Price -MSP) से कुछ ज्यादा ही राशि मिले। अपनी इस स्टार्टअप यात्रा के दौरान अभिषेक एम.एस.स्वामीनाथन समिति के द्वारा दिए गए सुझावों को मध्य नजर रखते हुए अपने स्तर पर भारतीय कृषि में कुछ बदलाव करने की सोच भी रखते है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर से अभिषेक को 2014 में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके अलावा भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के द्वारा दिया जाने वाला भारतीय कृषि रत्न पुरस्कार जीतने वाले अभिषेक प्राकृतिक खेती को ज्यादा प्राथमिकता देते है और हमेशा घर पर तैयार की हुई प्राकृतिक गोबर खाद से ही अधिक उत्पादन प्राप्त करने की कोशिश करते है। अभिषेक का मानना है कि भारतीय किसान जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग ( Zero budget natural farming) और समोच्च कृषि (Sustainable development) जुताई विधियों की मदद से आने वाले समय में उत्पादन बढ़ाने के साथ ही विदेशी मार्केट में भी अपनी पकड़ बना पाएंगे। आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा बिहार के अवॉर्ड विजेता किसान अभिषेक की कृषि क्षेत्र में प्राप्त सफलताओं और उनके नए विचारों से जुड़ी यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आने वाले समय में आप भी ऐसी ही भविष्यकारी नीतियों को अपनाकर एक सफल किसान बनने की राह पर जरूर अपना लक्ष्य प्राप्त करेंगे।