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जानिए कैसे करें उड़द की खेती

जानिए कैसे करें उड़द की खेती

उड़द की खेती भारत में लगभग सभी राज्यों में होती है. ये मनुष्यों के लिए तो फायदेमंद है ही साथ ही खेत की सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है. हमारे देश में दालों की भारी कमी है. इस वजह से भी ये कभी महंगी और ज्यादा मांग वाली दाल है. 

भारत सरकार ने 2019-20 के दौरान 4 लाख टन के कुल उड़द आयात की अनुमति दी थी। यह दर्शाता है की दाल की मांग की पूर्ती हम अपने उत्पादन से नहीं कर पाते हैं इसके लिए हमें दाल के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है. 

पिछले वित्त वर्ष में भारत सरकार ने 4 लाख टन के आयात की अनुमति दी थी. 2019 - 20 में उद्योग के सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में, उड़द केवल म्यांमार में उपलब्ध है। 

म्यांमार में उड़द का हाजिर मूल्य लगभग 810 डॉलर प्रति क्विंटल है। भारत को बारिश की शुरुआत में देरी के कारण उड़द के आयात का सहारा लेना पड़ा, जिसके बाद फसल की अवधि के दौरान अधिक और निरंतर वर्षा के कारण उत्पादन में गिरावट आई। 

 उड़द या किसी भी दलहन वाली फसल के उत्पादन से किसानों को फायदा ही है. बशर्ते की आपकी जमीन उस फसल को पकड़ने वाली हो. कई बार देखा गया है की सब कुछ ठीक होते हुए भी उड़द की फसल नहीं हो पाती है. 

उसके पीछे का कारण कोई भी हो सकता है जैसे मिटटी में पोषण तत्वों की कमी, पानी का सही न होना. इसके लिए हमें अपने खेत की मिटटी और पानी का समय समय पर टेस्ट करना चाहिए. 

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खेत की तैयारी:

उड़द के लिए खेत की तैयारी करते समय पहली जुताई हैंरों से कर देना चाहिए उसके बाद कल्टीवेटर से 3 जोत लगा के पाटा लगा देना चाइए जिससे की खेत समतल हो जाये. 

उड़द की फसल के लिए खेत का चुनाव करते समय ध्यान रखें की खेत में पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए. जिससे की बारिश में या पानी देते समय अगर पानी ज्यादा हो जाये तो उसे निकला जा सके.

मिटटी:

वैसे उड़द की फसल के लिए दोमट और रेतीली जमीन ज्यादा सही रहती हैं लेकिन इसकी फसल को काली मिटटी में भी उगाया जा सकता है. 

हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसमे पानी का निकास अच्छा हो उड़द के लिये अधिक उपयुक्त होती है। पी.एच. मान 6- 8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिये उपजाऊ होती है। अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नही है।

उड़द की उन्नत किस्में या उड़द के प्रकार :

उड़द की निम्नलिखित किस्में हैं जो की ज्यादातर बोई जाती है. टी-9 , पंत यू-19 , पंत यू - 30 , जे वाई पी और यू जी -218 आदि प्रमुख प्रजातियां हैं. 

बीज की दर या उड़द की बीज दर:

बुवाई के लिए उड़द के बीज की सही दर 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है अगर बीज किसी अच्छी संस्था या कंपनी ने तैयार किया है तो. और अगर बीज आपके घर का है या पुराना बीज है तो इसकी थोड़ी मात्रा बढ़ा के बोना चाहिए.

खेत में अगर किसी वजह से नमी कम हो, तो 2-3 किलोग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर बढ़ाई जा सकती है जिससे की अपने खेत में पौधों की कमी न रहे. जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएँ तो ज्यादा पास वाले पौधों को एक निश्चित दूरी के हिसाब से रोपाई कर दें.

बुवाई का समय:

फ़रवरी या मार्च में भी उड़द की फसल को लगाया जाता है तथा इस तरह से इस फसल को बारिश शुरू होने से पहले काट लिया जाता है. 

खरीफ मौसम में उड़द की बुवाई का सही समय जुलाई के पहले हफ्ते से ले कर 15-20 अगस्त तक है. हालांकि अगस्त महीने के अंत तक भी इस की बुवाई की जा सकती है. 

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उड़द में खरपतवार नियंत्रण:

बुवाई के 25 से 30 दिन बाद तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकसान पहुँचातें हैं यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं तो 20-25 दिन बाद एक निराई कर देना चाहिए और अगर खरपतवार नहीं भी है तो भी इसमें समय-समय पर निराई गुड़ाई होती रहनी चाहिए। 

जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहॉं पर बुवाई से एक दो दिन पश्चात पेन्डीमेथलीन की 0.75 किग्रा0 सक्रिय मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना सही रहता है। कोशिश करें की खरपतवार को निराई से ही निकलवायें तो ज्यादा सही रहेगा.

तापमान और उसका असर:

उड़द की फसल पर मौसम का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. इसको 40 डिग्री तक का तापमान झेलने की क्षमता होती है. इसको कम से कम 20+ तापमान पर बोया जाना चाहिए.

उड़द की खेती से कमाई:

उड़द की खेती से आमदनी तो अच्छी होती ही है और इसके साथ-साथ खेत को भी अच्छा खाद मिलता है. इसकी पत्तियों से हरा खाद खेत को मिलता है.

Urad dal ki kheti: इसी फरवरी में बो दें उड़द

Urad dal ki kheti: इसी फरवरी में बो दें उड़द

उड़द की दाल को सर्वोत्तम माना गया है। कारण है, इसमें सबसे ज्यादा प्रोटीन का होना। आपके शरीर में जितना प्रोटीन, वसा, कैल्शियम होगा, बुद्धि उतनी ही तेज चलेगी, उतने ही आप निरोगी रहेंगे। यही वजह है कि उड़द की दाल को प्रायः हर भारतीय एक माह में दो बार जरूर खाता है या खाने का प्रयास करता है।

हजारों साल से हो रही है खेती

उड़द दाल की खेती भारत में हजारों साल पहले से हो रही है। यह माना जाता है कि उड़द दाल भारतीय उपमहाद्वीप की ही खोज है। इस दाल को बाद के वक्त में पाकिस्तान, चीन, इंडोनेशिया, श्रीलंका जैसे देशों ने अपना लिया। उड़द की दाल भारत में उपनिषद काल से इस्तेमाल की जा रही है। माना जाता है कि इसके इस्तेमाल से पेट संबंधित बीमारी, मानसिक अवसाद आदि दूर होते हैं।

फायदेमंद है उड़द की खेती

urad ki kheti ये भी पढ़े: दलहनी फसलों में लगने वाले रोग—निदान उड़द की खेती फायदेमंद होती है। इसका बाजार में बढ़िया रेट मिल जाता है। इसकी खेती के लिए मौसम का अनुकूल होना पहली शर्त है। यह माना जाता है कि जब शीतकाल की विदाई हो रही हो और गर्मी आने वाली हो, तब का मौसम इसकी खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल होता है। उस लिहाज से देखें तो पूरे फरवरी माह में आप उड़द की खेती कर सकते हैं। शर्त यह है कि बहुत ठंड या बहुत गर्मी नहीं होनी चाहिए।

70 से 90 दिनों में फसल तैयार

उड़द की फसल को तैयार होने में बहुत वक्त नहीं लगता। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि अगर फरवरी के मध्य में उड़द की खेती की जाए कि फसल मई के मध्य में आराम से काटी जा सकती है। कुल मिलाकर 80 से 90 दिनों में उड़द की फसल तैयार हो जाती है। हां, इसके लिए जरूरी है कि बारिश न हो। अगर फसल लगाने के पंद्रह रोज पहले हल्की बारिश हो गई तो वह बढ़िया साबित होती है। लेकिन, अगर फसल के बीच में या फिर कटने के टाइम में बारिश हो जाए तो फसल के खराब होने की आशंका रहती है।

आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा होती है खेती

urad dal ki kheti इसलिए, उड़द की खेती पूरी तरह मौसम के मिजाज पर निर्भर है और यही कारण है कि जहां मौसम ठीक रहता है, वहीं उड़द की खेती भी होती है। इस लिहाज से भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में उड़द की खेती सबसे ज्यादा होती है। शेष राज्यों में या तो खेती नहीं होती है या फिर बहुत की कम। उपरोक्त तीनों बड़े राज्यों का मौसम राष्ट्रीय स्तर पर आज भी काफी अनुकूल है। ये भी पढ़े: भारत सरकार ने खरीफ फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

जमीन का चयन

उड़द की खेती के लिए बहुत जरूरी है जमीन का शानदार होना। यह जमीन हल्की रेतीला, दोमट अथवा मध्यम प्रकार की भूमि हो सकती है जिसमें पानी ठहरे नहीं। अगर पानी ठहर गया तो फिर उड़द की खेती नहीं हो पाएगी। तो यह बहुत जरूरी है कि आप जहां भी उड़द की खेती करना चाहें, उस जमीन पर पानी का निकास बढ़िया हो।

समतल जमीन है जरूरी

जमीन के चयन के बाद यह जरूरी होता है कि वहां तीन से चार बार हल या ट्रैक्टर चला कर खेत को समतल कर लिया जाए। उबड़-खाबड़ या ढलाऊं जमीन पर इसकी फसल कामयाब नहीं होती है। बेहतर यह होता है कि आप तब पौधों की बोनी करें, जब वर्षा न हुई हो। इससे पैदावार बढ़ने की संभावना होती है।

खेती का तरीका

कृषि वाज्ञानिकों के अनुसार, उड़द की अधिकांश फसलें प्रकाशकाल में ही बढ़िया होती हैं। यानी, इन्हें पर्याप्त रौशनी मिलती रहनी चाहिए। मोटे तौर पर 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान इनके लिए सबसे बढ़िया होता है। इसमें रोज पानी देने का झंझट नहीं रहता। हां, खर-पतवार तेजी से हटाते रहना चाहिए और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव जरूर करते रहना चाहिए। उड़द की फसल में कीड़े बहुत तेजी के साथ लगते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि फसल के आधा फीट के होते ही कीटनाशकों का छिड़काव शुरू कर दिया जाए।

फायदा

उड़द में प्रोटीन, कैल्शियम, वसा, रेशा, लवण, कार्बोहाइड्रेट और कैलोरीफिल अलग-अलग अनुपात में होते हैं। आप संयमित तरीके से इस दाल का सेवन करें तो ताजिंदगी स्वस्थ रहेंगे। ये भी पढ़े: खरीफ विपणन सीजन 2020-21 के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का क्रियान्वयन

उड़द के प्रकार

urad dal ke prakar टी-9 (75 दिनों में तैयार हो जाता है) पंत यू 30 (70 दिनों में तैयार हो जाता है) खरगोन (85 दिनों में तैयार हो जाता है) पीडीयू-1 (75 दिनों में तैयार हो जाता है) जवाहर (70 दिनों में तैयार हो जाता है) टीपीयू-4 (70 दिनों में तैयार हो जाता है)

कैसे करें बुआई

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि उड़द का बीज एक एकड़ में 6 से 8 किलो के बीच ही बोना चाहिए। बुआई के पहले बीज को 3 ग्राम थायरम अथवा 2.5 ग्राम डायथेन एम-45 प्रति किलो के आधार पर उपचारित करना चाहिए। हां, दो पौधों के बीच में 10 सेंटीमीटर की दूरी जरूर होनी चाहिए। दो क्यारियों के बीच में 30 सेंटीमीटर की दूरी आवश्यक है। बीज को कम से कम 5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। हां, बीज को कम से कम 5 सेंटीमीटर की गहराई में ही बोना चाहिए। ये भी पढ़े: कृषि एवं पर्यावरण विषय पर वैज्ञानिक संवाद

निदाई-गुड़ाई

urad dal ki fasal उड़द की फसल को ज्यादा केयर करने की जरूरत होती है। यह बहुत जरूरी है कि आप उसकी निदाई-गुड़ाई समय पर करते रहें। बड़ा उत्पादन चाहें तो आपको यह काम रोज करना पड़ेगा। अत्याधुनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी है। अन्यथा ये कीट आपकी फसल को बर्बाद कर देंगे। माना जाता है कि कीटनाशक वासालिन को 250 लीटर पानी में 800 एमएल डाल कर छिड़काव करना चाहिए।

अकेले बोना ज्यादा बेहतर

माना जाता है कि उड़द को अगर अकेला बोया जाए तो 20 किलो बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सबसे उचित मानक है। ऐसे ही, अगर आप उड़द के साथ कोई अन्य बोते हैं तो प्रति हेक्टेयर 8 से 10 किलोग्राम उडद का बीच बेहतर होता है।

उड़द के अन्य फायदे

urad dal ke fayde उड़द दाल के अनेक फायदे हैं। आयुर्वेद में इसका जम कर इस्तेमाल होता है। अगर आपको सिरदर्द है तो उड़द दाल आपको राहत दे सकता है। आपको बस 50 ग्राम उड़द दाल में 100 मिलीलीट दूध डालना है और घी पकाना है। उसे आप खाएं। आपकी तकलीफ दूर हो जाएगी। इसके साथ ही, बालों में होने वाली रूसी से भी आपको उड़द दाल छुटकारा दिलाती है। आप उड़द का भस्म बना कर अर्कदूध तथा सरसों मिलाकर एक प्रकार का लेप बना लें। इसके सिर में लगाएं। एक तो आपकी रूसी दूर हो जाएगी, दूसरे अगर आप गंजे हो रहे हैं तो हेयर फाल ठीक हो जाएगा। कुल मिलाकर, अगर आप फरवरी में वैज्ञानिक विधि से उड़द की खेती को लेकर गंभीर हैं तो वक्त न गंवाएं। पहले जमीन समतल कर लें, तीन-चार बार हल-बैल या ट्रैक्टर चला कर उसके घास-फूस अलग कर लें, फिर 5 सेंटीमीटर की गहराई में बीज रोपित करें और लगातार क्यारियों की साफ-सफाई करते रहें। 70 से 90 दिनों के बीच आपकी फसल तैयार हो जाएगी। आप इस फसल का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं।
उड़द की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी (Urad Dal Farming in Hindi)

उड़द की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी (Urad Dal Farming in Hindi)

उड़द की खेती के लिए नम एवं गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। वृद्धि के लिये 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। 700-900 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रो मे उड़द को सफलता पूर्वक उगाया जाता है। 

फूल अवस्था पर अधिक वर्षा होना हानिकारक है। पकने की अवस्था पर वर्षा होने पर दाना खराब हो जाता है। उड़द की खरीफ एवं ग्रीष्म कालीन खेती की जा सकती है।

भूमि का चुनाव एवं तैयारी 

उड़द की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि मे होती है। हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसमे पानी का निकास अच्छा हो उड़द के लिये अधिक उपयुक्त होती है। 

पी.एच. मान 7-8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिये उपजाऊ होती है। उड़द की खेती के लिए अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नही होती है। खेती की तैयारी के लिए खेती की पहले हल से गहरी जुताई कर ले फिर 2 - 3 बार हैरो से खेती की जुताई कर के खेत को समतल बना ले | 

वर्षा आरम्भ होने के पहले बुवाई करने से पौधो की बढ़वार अच्छी होती है। उड़द के बीज खेत में तैयार की पंक्ति में लगाए जाते है| पंक्ति में रोपाई के लिए मशीन का इस्तेमाल किया जाता है | 

खेत में तैयार की गई पंक्तियों के मध्य 10 से 15 CM दूरी होती है, तथा बीजो को 4 से 5 CM की दूरी पर लगाया जाता है | खरीफ के मौसम में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसके बीजो की रोपाई जून के महीने में की जानी चाहिए | 

जायद के मौसम में अच्छी पैदावार के लिए बीजो को मार्च और अप्रैल माह के मध्य में लगाया जाता है | 

उड़द की किस्मे 

उर्द-19, पंत उर्द-30, पी.डी.एम.-1 (वसंत ऋतु), यू.जी. 218, पी.एस.-1, नरेन्द्र उर्द-1, डब्ल्यू.बी.यू.-108, डी.पी.यू. 88-31, आई.पी.यू.-94-1 (उत्तरा), आई.सी.पी.यू. 94-1 (उत्तरा), एल.बी.जी.-17, एल.बी.जी. 402, कृषणा, एच. 30 एवं यू.एस.-131, एस.डी.टी 3

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बीज की मात्रा एवं बीजउपचार 

उड़द का बीज6-8 किलो प्रति एकड़ की दर से बोना चाहिये। बुबाई के पूर्व बीज को 3 ग्राम थायरम या 2.5 ग्राम डायथेन एम-45 प्रति किलो बीज के मान से उपचारित करे। 

जैविक बीजोपचार के लिये ट्राइकोडर्मा फफूँद नाशक 5 से 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपयोग किया जाता है।

बुवाई का समय एवं तरीका 

मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्ताह मे पर्याप्त वर्षा होने पर बुबाई करे । बोनी नाली या तिफन से करे, कतारों की दूरी 30 सेमी. तथा पौधो से पौधो की दूरी 10 सेमी. रखे तथा बीज 4-6 सेमी. की गहराई पर बोये।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा  

नाइट्रोजन 8-12 किलोग्राम व सल्फर 20-24 किलोग्राम पोटाश 10 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से दे। सम्पूर्ण खाद की मात्रा बुबाई की समय कतारों  मे बीज के ठीक नीचे डालना चाहिये। 

दलहनी फसलो मे गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम आदि का उपयोग करना चाहिये। विशेषतः गंधक की कमी वाले क्षेत्र मे 8 किलो ग्राम गंधक प्रति एकड़ गंधक युक्त उर्वरको के माध्यम से दे।

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सिंचाई

वैसे तो उड़द की फसल को सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकी ये एक खरीफ की फसल है | फूल एवं दाना भरने के समय खेत मे नमी न हो तो एक सिंचाई करनी चाहिए।

फसल में खरपतवार नियंत्रण  

खरपतवार फसल को अनुमान से कही अधिक क्षति पहुँचाते है। अतः विपुल उत्पादन के लिए समय पर निदाई-गुड़ाई कुल्पा व डोरा आदि चलाते हुये अन्य आधुनिक नींदानाशक का समुचित उपयोग करना चाहिये। 

खरपतवारनाशी वासालिन 800 मिली. से 1000 मिली. प्रति एकड़ 250 लीटर पानी मे घोल बनाकर जमीन बखरने के पूर्व नमी युक्त खेत मे छिड़कने से अच्छे परिणाम मिलते है।

उड़द की फसल के प्रमुख रोग और रोग का नियंत्रण 

जड़ सड़न एवं पत्ती झुलसा

यह बीमारी राइजोक्टोनिया सोलेनाई फफूंद से होते हैं। इसका प्रकोप फली वाली अवस्था में सबसे अधिक होता है। प्रारम्भिक अवस्था में रोगजनक सड़न, बीजोंकुर झुलसन एवं जड़ सड़न के लक्षण प्रकट करता है। 

रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाती है एवं उन पर अनियमित आकार के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। कुछ समय बाद ये छोटे-छोटे धब्बे आपस में मिल जाते हैं और पत्तियों पर बड़े क्षेत्र में दिखते हैं। 

पत्तियां समय से पूर्व गिरने लगती हैं। आधारीय एवं जल वाला भाग काला पड़ जाता है एवं रोगी भाग आसानी से छिल जाता है। रोगी पौधे मुरझाकर सूखने लगते हैं। इन पौधों की जड़ को फाड़कर देखने पर आंतरिक भाग में लालिमा दिखाई देती है।

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जीवाणु पत्ती झुलसा

 यह बीमारी जेन्थोमोनासा फेसिओलाई नामक जीवाणु से पैदा होती है। रोग के लक्षण पत्तियों की ऊपरी सतह पर भूरे रंग के सूखे हुए उभरे धब्बों के रूप में प्रकट होते है। रोग बढ़ने पर बहुत सारे छोटे-छोटे उभरे हुए धब्बे आपस में मिल जाते हैं। 

पत्तियां पीली पड़कर समय से पूर्व ही गिर जाती हैं। पत्तियों की निचली सतह लाल रंग की हो जाती है। रोग के लक्षण तना एवं पत्तियों पर भी दिखाई देते हैं।

पीला चित्तेरी रोग

इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में चित्तकवरे धब्बे के रूप में पत्तियों पर दिखाई पड़ते हैं। बाद में धब्बे बड़े होकर पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं। जिससे पत्तियों के साथ-साथ पूरा पौधा भी पीला पड़ जाता है।

यदि यह रोग आरम्भिक अवस्था में लग जाता है तो उपज में शतप्रतिशत हानि संभव है। यह रोग विषाणु द्वारा मृदा, बीज तथा संस्पर्श द्वारा संचालित नहीं होता है। जबकि सफेद मक्खी जो चूसक कीट है के द्वारा फैलता है।

पर्ण व्याकुंचन रोग या झुर्रीदार पत्ती रोग 

यह भी विषाणु रोग है। इस रोग के लक्षण बोने के चार सप्ताह बाद प्रकट होते हैं। तथा पौधे की तीसरी पत्ती पर दिखाई पड़ते हैं। पत्तियाँ सामान्य से अधिक वृद्धि तथा झुर्रियां या मड़ोरपन लिये हुये तथा खुरदरी हो जाती है। 

रोगी पौधे में पुष्पक्रम गुच्छे की तरह दिखाई देता है। फसल पकने के समय तक भी इस रोग में पौधे हरे ही रहते हैं। साथ ही पीला चित्तेरी रोग का संक्रमण हो जाता है।

मौजेक मौटल रोग

इस रोग को कुर्बरता के नाम से भी जाना जाता है तथा इसका प्रकोप मूंग की अपेक्षा उर्द पर अधिक होता है। इस रोग द्वारा पैदावार में भारी हानि होती है। प्रारम्भिक लक्षण हल्के हरे धब्बे के रूप में पत्तियों पर शुरू होते हैं बाद में पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं तथा फफोले युक्त हो जाती हैं। यह विषाणु बीज द्वारा संचारित होता है।

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रोगों का नियंत्रण

पीला चित्तेरी रोग में सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु मेटासिस्टाक्स (आक्सीडेमाटान मेथाइल) 0.1 प्रतिषत या डाइमेथोएट 0.2 प्रतिशत प्रति हेक्टयर (210मिली/लीटर पानी) तथा सल्फेक्स 3ग्रा./ली. का छिड़काव 500-600 लीटर पानी में घोलकर 3-4 छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करके रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है।

झुर्रीदार पत्ती रोग, मौजेक मोटल, पर्ण कुंचन आदि रोगों के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोपिरिड 5 ग्रा./कि.ग्रा. की दर से बीजोपचार तथा बुबाई के 15 दिन के उपरांत 0.25 मि.मी./ली. से इन रोगों के रोग वाहक कीटों पर नियंत्रण किया जा सकता है।

सरकोस्पोरा पत्र बुंदकी रोग, रूक्ष रोग, मेक्रोफोमिना ब्लाइट या चारकोल विगलन आदि के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम या बेनलेट कवकनाशी (2 मि.ली./लीटर पानी) अथवा मेन्कोजेब 0.30 प्रतिशत का छिड़काव रोगों के लक्षण दिखते ही 15 दिन के अंतराल पर करें।

चूर्णी कवक रोग के लिये गंधक 3 कि.ग्रा. (पाउडर)/हेक्ट. की दर से भुरकाव करें।बीज को ट्राइकोडर्मा विरिडी, 5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।जीवाणु पर्ण बुंदकी रोग के बचाव हेेतु 500 पी.पी.एम. स्ट्रेप्टोमाइसीन सल्फेट से बीज का उपचार करना चाहिये। स्ट्रेप्टोमाइसीन 100 पी.पी.एम. का छिड़काव रोग नियंत्रण के लिये प्रभावी रहता है।

फसल की कटाई

उड़द के पौधे बीज रोपाई के तक़रीबन 80 से 90 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | जब पौधों की पत्तियां पीले रंग की और फलियों का रंग काला दिखाई देने लगे उस दौरान इसके पौधों को जड़ के पास से काट लिया जाता है |

इसके पौधों को खेत में ही एकत्रित कर सुखा लिया जाता है | इसके बाद सूखी हुई फलियों को थ्रेसर के माध्यम से निकाल लिया जाता है | उड़द के पौधे एक  एकड़ के खेत में तक़रीबन 6 क्विंटल का उत्पादन दे देते है |

किसान ग्रीष्मकालीन उड़द की इन उन्नत किस्मों से तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं

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भारत एक कृषि प्रधान देश होने की वजह से विश्व के कई देशों की खाद्यान सुरक्षा को सुनिश्चित करने में अपनी अहम भूमिका निभाता है। 

भारत में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। आज हम बात करने वाले हैं इन्ही में से एक उड़द की फसल के विषय में। उड़द की खेती को यदि भौगोलिक दृष्टिकोण से देखें तो यह मुख्यतः हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के सिंचित इलाकों में की जाती है। 

उड़द एक कम समयावधि की फसल है, जिसको पकने में 60 से 65 दिनों का वक्त लगता है। गर्मी का मौसम उड़द की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

उड़द एक दलहनी फसल है, जिसकी भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और हरियाणा के सिंचित इलाकों में खेती की जाती है। 

उड़द एक अल्प कालीन फसल है, जिसको पकने में 60 से 65 दिनों का समयांतराल होता है। बतादें, कि उड़द के एक दानें में 60% प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 24% प्रतिशत प्रोटीन और 1.3% प्रतिशत वसा पाया जाता है। 

गर्मी का मौसम उड़द की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। यदि आप भी गर्मी के मौसम में उड़द की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो हमारा यह लेख आपके लिए ही है। 

आज हम आपके लिए ग्रीष्मकालीन उड़द की कुछ उन्नत प्रजातियों की जानकारी लेकर आए हैं, जिनकी गर्मी में खेती कर आप काफी मोटा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं।

ग्रीष्मकालीन उड़द की उन्नत किस्में कौनसी हैं ?

भारत में ग्रीष्मकालीन उड़द की उन्नत किस्में उपस्थित हैं, जिनमें पीडीयू 1 (बसंत बहार), आईपीयू 94-1 (उत्तरा), पंत उड़द 19, पंत उड़द 30, पंत उड़द 31, पंत उड़द 35, एलयू 391, मैश 479 (केयूजी 479), मुकुंदरा उड़द-2, नरेंद्र उड़द-1, शेखर 1, शेखर 2, आजाद उड़द 1, कोटा उड़द 3, कोटा उड़द 4, इंदिरा उड़द प्रथम और यूएच-04-06 शामिल है। अगर आप इस प्रजाति की उड़द की खेती करते हैं, तो यह पकने में लगभग 65 से 80 दिनों का वक्त खींच लेती है।

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उड़द के बीज उपचार की प्रक्रिया क्या है ?

गर्मियों के दिनों में आपको उड़द की बुवाई करने से बीजों को 2 ग्राम थायरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण से प्रति किलोग्राम उपचारित करना चाहिए। 

इसके पश्चात उड़द के बीजों को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस की 7 ग्राम लेकर प्रति किलोग्राम बीज को शोधित करना चाहिए। आपको बुवाई से तकरीबन 2 से 3 दिन पूर्व बीज उपचार करना चाहिए। 

इसके बाद आपको 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर से 10 किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिए। उपचारित बीज को 8 से 10 घंटे तक छाया में रखने के उपरांत ही बिजाई करनी चाहिए। 

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फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना लक्ष्य

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने
मूंग, अरहर और उड़द की उपज की समर्थन मूल्य पर खरीद करने की घोषणा की है। खरीद प्रक्रिया क्या होगी, किस दिन से खरीद चालू होगी, किसान को इसके लिए क्या करना होगा, सभी सवालों के जानिए जवाब मेरीखेती पर। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में कृषकों के मध्य फसल विविधता (Crop Diversification) को बढ़ाना देने के लिए यह फैसला किया है। इसके तहत छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था में बदलाव किया है।

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अधिक मूल्य दिया जाएगा -

सरकार के निर्णय के अनुसार अब दलहन पैदा करने वाले किसानों को दाल का न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक दिया जाएगा। ऐसा करने से प्रदेश में अधिक से अधिक किसान दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे।

दलहनी फसलों को प्रोत्साहन -

छत्तीसगढ़ प्रदेश राज्य सरकार ने छग में दलहनी फसलों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए मूंग, अरहर, उड़द की उपज के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा की है।

फसल विविधीकरण (Crop Diversification) -

मूंग, अरहर, उड़द जैसी पारंपरिक दलहनी फसलों को समर्थन मूल्य प्रदान करने का राज्य सरकार का मकसद फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना भी है।

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फसल विविधीकरण के लिए राज्य सरकार ने मूंग, उड़द और अरहर को एमएसपी की दरों पर खरीदने की घोषणा की है।

इतनी मंडियों में खरीद -

ताजा सरकारी निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ प्रदेश की 25 मंडियों में अब न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर दाल की खरीदारी की जाएगी। मंडिंयों का चयन करते समय इस बात का ख्याल रखा गया है कि, अधिक से अधिक किसान प्रदेश सरकार की योजना से लाभान्वित हों। मंडियां नजदीक होने से दलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों को मौके पर लाभ मिलेगा और उनकी कमाई बढ़ेगी।

खरीफ खरीद वर्ष 2022-23 -

राज्य सरकार के फैसले के तहत अब छत्तीसगढ़ प्रदेश में मौजूदा खरीफ फसल (Kharif Crops) खरीद वर्ष 2022-23 में अरहर, मूंग और उड़द की खरीद एमएसपी पर की जाएगी। सरकारी सोसायटी को हरा मूंग बेचने वाले किसानों को प्रति क्विंटल 7755 रुपए मिलेंगे। राज्य सरकार द्वारा संचालित नोडल एजेंसी छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विवणन संघ (मार्कफेड) द्वारा राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दाल की खरीदारी की जाएगी।

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दलहनी फसलों का रकबा बढ़ाना लक्ष्य -

छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने राज्य में दलहन फसलों का रकबा बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कृषि विभाग को किसानों को दलहन की पैदावार करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के किसानों को दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने हेतु दाल को एमएसपी के दायरे में लाने की सरकारी मंशा की जानकारी दी।

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मीडिया को उन्होंने बताया कि, 2022-23 के खरीफ फसल प्लान के अनुसार दलहनी फसलों का रकबा बढ़ा है। उन्होेंने दलहनी फसलों के रकबे में 22 फीसदी की बढ़ोतरी होने की जानकारी दी।

उत्पादन का लक्ष्य बढ़ा -

राज्य सरकार ने इस साल प्रदेश में दो लाख टन से अधिक (232,000) दाल उत्पादन का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य पिछले खरीफ सीजन के संशोधित अनुमान से लगभग 67.51 फीसदी अधिक है।

पिछली खरीद के आंकड़े -

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने खरीफ सीजन 2021-22 में राज्य के दलहन उत्पादक किसानों से 139,040 टन दाल की खरीद की थी। पिछले साल के 501 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की तुलना में इस बार 520 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दाल उत्पादन का लक्ष्य प्रदेश में रखा गया है।

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अहम होंगी ये तारीख -

प्रवक्ता सूत्र आधारित मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने इस साल एमएसपी पर दाल की खरीद के लिए सभी संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, मार्कफेड रीजनल ऑफिस और मंडी बोर्ड को विस्तृत दिशा-निर्देश दिए हैं। किसानों के लिए एमएसपी पर उड़द, मूंग और अरहर बेचने की तारीख जारी कर दी गई है। इसके मुताबिक किसान 17 अक्टूबर 2022 से लेकर 16 दिसंबर 2022 तक उड़द और मूंग की उपज एमएसपी पर बेच पाएंगे। अरहर की खरीद 13 मार्च 2023 से लेकर 12 मई 2023 तक की जाएगी।
आसान है दलहनी फसल उड़द की खेती करना, यह मौसम है सबसे अच्छा

आसान है दलहनी फसल उड़द की खेती करना, यह मौसम है सबसे अच्छा

उड़द की खेती दलहनी फसल एक रूप में देश के कई हिस्सों में की जाती है. जिसमें यूपी, एमपी, बिहार, राजस्थान, हरियाणा जैसे राज्य शामिल हैं. उड़द की फसल अल्प अवधि की फसल होती है. जो दो से ढ़ाई महीने में पककर तैयार हो जाती है. उड़द के दानों में 60 फीसद कर्बोहाईड्रेट, 25 फीसद प्रोटीन और करीब 1.3 फीसद फैट होता है. अगर किसान उड़द की खेती करना चाहते हैं, तो पहले इससे जुड़ी जानकारी के बारे में जान लेना जरूरी है. विश्व स्तर पर उड़द की खेती उत्पादन सबसे ज्यादा भारत में होता है. पिछले कई दशकों में उड़द की खेती जायद सीजन में की जा रही है. दलहनी फसल उड़द स्वास्थ्य के लिए बेहद अच्छी होने के साथ साथ जमीन के लिए भी पोषक तत्वों से भरपूर होती है. इसके अलावा उड़द की फसल को हरी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

उड़द की खेती के लिए कैसी हो जलवायु?

उड़द की खेती के लिए हलके नम और गर्म मौसम की जरूरत होती है. हालांकि की उड़द की फसल की ज्यादातर किस्में काफी संवेदी होती हैं. इसकी फसल को बढ़ने के लिए लगभग 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है. लेकिन इअकी फसल 35 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान भी आसानी से सह सकती है. उड़द को आसानी से उगाने के लिए बारिश वाली जगहें भी उपयुक्त होती हैं. खासकर वहां जहां पर 600 से 700 मिमी बारिश हो. ज्यादा जल भराव वाली जगहों पर इसकी खेती नहीं की जा सकती. फसल में जब फूल हों या वो पकने की अवस्था में हो, तो बारिश इस फसल को बर्बाद कर सकती है.

कैसे करें भूमि का चयन?

उड़द की खेती कई तरह की जमीन में की जा सकती है. जिसमें से हल्की रेतेली, दोमट या फिर मीडियम तरह की जमीन जिसमें, पानी का निकास अच्छी तरह से हो, ऐसी जमीन उपयुक्त रहती है. उड़द की उपजाऊ जमीन के लिए उसका पी एच मां 7 से 8 के बीच का होना चाहिए. बारिश के शुरू होने से पहले ही इसके पौधे की अच्छी ग्रोथ हो जाती है. खेत समतल हो और पानी का निकास अच्छा हो, इसका ध्यान भी देना बेहद जरूरी है.

उड़द की उन्नत किस्मों के बारे में

  • टी-9 उड़द की किस्म को पकने में करीब 70 से 75 दिनों का समय लगता है. इसकी औसत पैदावार की बात करें तो 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसकी पैदावार होती है. इसका बीज मीडियम छोटा, हल्का काला और मीडियम ऊंचाई वाला पौधा होता है.
  • पंत यू-30 उड़द की किस्म को पकने में 70 दिनों का समय लगता है. वहीं इसकी पैदावार 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसके दाने काले और मीडियम आकार के होते हैं. जो पीला मौजेक क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है.
  • खरगोन-3 उड़द की किस्म को पकने में 85 से 90 दिनों का समय लगता है. इसकी औसत पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसका दाना बड़ा और हल्का काला होता है. इसका पौधा फैलने वाला होता है.
  • पी डी यू-1 उड़द की किस्म को पकने में 70 से 80 दिनों का समय लगता है. इसकी औसत पैदावार 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसका दाना काला बड़ा और जायद के सीजन के लिए बेहतर होता है.
  • जवाहर उड़द-2 किस्म की उड़द की फसल को पकने में 70 दिनों का समय लगता है. इसकी पैदावार 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसके बीज मीडियम छोटे चमकीले काले, तनी पर फलियां आस पास के गुच्छों में लगती है.
  • जवाहर उड़द-3 उड़द की किस्म को पकने में 70 से 75 दिनों का समय लगता है. इसके पैदावार अन्य की तुलना में कम यानि की 4 से 4.80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसके बीज मीडियम छोटे और इसका पौधा कम फैलने वाला होता है.
  • टी पी यू-4 उड़द की किस्म 70 से 75 दिनों में पककर तैयार होती है. इसकी पैदावार भी 4 से 4.80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसका पौधा मीडियम ऊंचाई वाला सीधा होता है.

फसल में कैसी हो खाद और उर्वरक?

उड़द की फसल दलहनी फसल होती है. जिसे ज्यादा नत्रजन की जरूरत नहीं होती. पौधों की शुरूआती अवस्था में जब तक जड़ों में नत्रजन एकत्र करने वाले जीवाणु काम करते रहते हैं, तब तक के लिए 15 से 20 किलो नत्रजन 40 से 50 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीजों की बुवाई के कते समय मिट्टी में मिला दें. पूरी खाद की मात्रा बुवाई के समय कतारों में बीज के नीचे डालें. ये भी पढ़े: Urad dal ki kheti: इसी फरवरी में बो दें उड़द

कितनी हो बीज की मात्रा?

उड़द के बीज को प्रति एकड़ के हिसाब से 6 से 8 किलो की मात्रा में बोना चाहिए. बुवाई के पहले बीज के तीन ग्राम थायरम या ढ़ाई ग्राम डायथेन एम-45 से उपचारित कर लें. इसके अलावा बीजोपचार के लिए ट्राइकोडर्मा फफूंद नाशक को तकरीबन 5 से 6 ग्राम प्रति किलो की दर से इस्तेमाल किया जा सकता है.

क्या है बुवाई का सही तरीका?

बारिश के मौसमे के आने  पर या जून के आखिरी हफ्ते में भरपूर बारिश होने पर उड़द के बीजों की बुवाई करें. इसकी बुवाई तिफन या फिर नाली में कर सकते हैं. जहां कतारों की दूरी करीब 30 सेंटी मीटर और एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 10 सेंटी मीटर की होनी चाहिए. बीज को 4 से 6 सेंटी मीटर की गहराई पर बोएं. गर्मियों के सीजन में इसकी बुवाई फरवरी के आखिरी तक या अप्रैल के पहले हफ्ते में कर लेनी चाहिए.

कैसे करें सिंचाई?

उड़द की खेती में आमतौर पर बारिश के मौसम में सिचाई करने की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन इसकी फली बनते वक्त अगर खेत में भरपूर नमी नहीं है तो एक सिंचाई जरुर कर देनी चाहिए. जायद के सीजन में उड़द की खेती के लिए तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है. जिसके लिए पलेवा करने के बाद बीजों की बुवाई की जाती है. जहां दो से तीन सिंचाई 15 से 20 दिनों के अंतर में करनी चाहिए. फसल में जब फूल बनें तो खेत में पर्याप्त नमी हो इसका ध्यान जरुर रखें.

कैसे करें रोग की रोकथाम?

  • उड़द में लगने वाला समान्य रोग पीला मोजेक विषाणु रोग है. जो वायरस से फैलता है. इसका असर 4 से 5 हफ्ते के बाद नजर आता है. इस रोग में पत्तियों का रंग पीला और धब्बेदार हो जाता है. जिसके बाद पत्तियां सूख जाती हैं. इसका उपचार करके इस पर नियंत्रण किया जा सकता है.
  • पत्ती मोडन रोग में पत्तियां शिराओं से ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं और नीचे से अंदर की तरफ मुड़ जाती हैं. जिसकी वजह से पत्तियों की ग्रोथ रुक जाती है और पौधे मर जाते हैं. यह एक विषाणु जनित बीमारी है. इससे बचने के लिए थ्रीप्स के लिए एसीफेट 75 फीसद एस पी या 2 मीली डाईमैथोएट प्रति लीटर के हिसाब से स्प्रे बुवाई करते समय ही कर देना चाहिए.
  • फसल को पत्ती धब्बा रोग से बचाने के लिए कार्बेन्डाजिम 1 किलो एक हजार लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
  • फसक को सेफ मक्खी रोग से बचाने के डायमेथोएट 30 ई सी 2 मिली लीटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
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कैसे करें रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल?

  • जब भी कीटनाशी घोल तैयार करें तो उसमें चिपचिपा पदार्थ जरूर मिलाएं. ताकि बारिश का पानी कीटनाशक पत्तियों पर पड़कर घुलकर ना बहे.
  • धूल कीटनाशकों का छिड़काव हमेशा सुबह ही करें.
  • किसी की भी सलाह पर दो या उससे ज्यादा कीटनाशकों को ना मिलाएं. मौसम के हिसाब से ही हमेशा कीटनाशकों का इस्तेमाल करें.
  • जब भी कीटनाशक का घोल तैयार करें तो उसके लिए किसी मग्घे का इस्तेमाल करें. फिर स्प्रे टंकी में पानी से मिलाएं. ध्यान रखें कि, कीटनाशक को कभी भी डायरेक्ट टंकी में ना मिलाएं.
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कैसे करें निदाई और गुड़ाई?

खरपतवार फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. अच्छे उत्पादन के लिए समय समय पर फसल की निदाई और गुड़ाई करनी चाहिए. इसके लिए कुल्पा और डोरा का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके आलवा फसलों में आधुनिक कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए.

कैसे करें उड़द की कटाई?

उड़द की फसल लगभग 85 से 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. उड़द की फसल की कटाई के लिए हंसिया का इस्तेमाल करें. कटाई का काम कम से कम 70 से 80 फीसद फलियों के पक जाने पर करें. खलियान में ले जाने के लिए फसलों का बंडल बना लेंगे तो काम आसान हो जाएगा. उड़द की अच्छी पैदावार के लिए आपको हमारी बताई हुई खास बातों को ध्यान में रखते हुए खेती करनी चाहिए. जिससे आपको फायदा भी हो सके और अच्छी इनकम भी हो सके.
दालों की कीमतों में उछाल को रोकने के लिए सरकार ने उठाया कदम

दालों की कीमतों में उछाल को रोकने के लिए सरकार ने उठाया कदम

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि त्योहारों को देखते हुए बाजार में दाल के भावों में विगत दो हफ्तों से बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। चना की दाल का खुदरा मूल्य 60 रुपये से बढ़कर 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुका है। वहीं, उड़द की दाल 100 रुपये प्रति किलो को पार कर चुकी है। साथ ही, इसी प्रकार तुअर दाल 150 रुपये से 160 रुपये प्रति किलो पर बेची जा रही है। दाल के मूल्यों को नियंत्रित करने के लिए सरकार की तरफ से बड़ा कदम उठाया गया है। त्योहारी सीजन में बाजार में दाल के मूल्यों में विगत दो सप्ताह से बढ़ोतरी दर्ज की जा रहा है। चना की दाल का खुदरा भाव 60 रुपये से बढ़कर 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। उड़द की दाल 100 रुपये प्रति किलो को पार कर गई है। साथ ही, इसी प्रकार तुअर दाल 150 रुपये से 160 रुपये प्रति किलो पर बेची जा रही है। मांग में उछाल आने की वजह से आने वाले दिनों में दालों के भावों में बढ़ोतरी की संभावना है। इसकी वजह से केंद्र सरकार ने आयातकों के लिए उड़द तथा तूर दाल की स्टॉक लिमिट को बढ़ा दिया है। बतादें, कि बाजार में दाल की सप्लाई में बढ़ोतरी होगी, जिसके परिणाम में कीमतों को काबू करने में सहायता मिलेगी।


 

दाल की भंडारण सीमा को लेकर नए निर्देश

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसमें आयातकों, छोटे-बड़े खुदरा विक्रेताओं एवं मिल स्वामियों के लिए दाल की भंडारण सीमा को लेकर नवीन निर्देश जारी किए गए हैं। नोटिफिकेशन में बताया गया है, कि सरकार ने तूर दाल और उड़द दाल के थोक विक्रेताओं को दालों का भंडारण पूर्व के 50 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 200 मीट्रिक टन करने की मंजूरी दी है। सरकार ने उस समय सीमा को भी दोगुना कर दिया है, जिसके लिए आयातक क्लीयरेंस के पश्चात अपने भंडार को 60 दिनों तक रख सकते हैं।

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स्टॉक धारण क्षमता में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं हुआ

नोटिफिकेशन के मुताबिक, छोटे खुदरा विक्रेताओं के लिए स्टॉक धारण क्षमता में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। बतादें, कि छोटे खुदरा विक्रेताओं के लिए भंडारण सीमा 5 मीट्रिक टन है। वहीं, बड़ी चेन के खुदरा विक्रेता 50 मीट्रिक टन से वृद्धि कर 200 मीट्रिक टन प्रति डिपो तक का भंडार रख सकते हैं।साथ ही, यह भी बताया गया है, कि मिलर्स विगत तीन माहों के उत्पादन अथवा वार्षिक स्थापित पूंजी का 25% प्रतिशत जो भी ज्यादा हो, भंडार कर सकते हैं। वहीं इसे पहले महज 10% तक सीमित किया गया था।


 

दाल मिल एसोसिएशन के मुताबिक निर्णय से आपूर्ति में बढ़ोतरी होगी

आंकड़ों के मुताबिक, ऑल-इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल का कहना है, कि केंद्र सरकार की तरफ से दी गई इस छूट से उद्योग को बाजार में तूर और उड़द दालों की सप्लाई बढ़ाने में सहायता मिलेगी। उन्होंने बताया है, कि उद्योग जगत ने अधिकारियों के साथ अपनी विगत बैठक में इसकी सिफारिश की थी। बाजार में दाल की पर्याप्त मात्रा की उपलब्धता बढ़ने से मांग को पूर्ण किया जा सकेगा। साथ ही, कीमतों को काबू करने में भी काफी सहयोग मिलेगा।

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बाजार में 60 रुपये से 90 रुपये पहुँचा चना दाल का भाव

उधर, चना की दाल की कीमत विगत 15 दिनों के चलते 60 रुपये प्रतिकिलो से 85-90 रुपये प्रति किलो पहुंच चुकी है। महंगी चना दाल से सहूलियत देने के लिए सरकार सहकारी समितियों नेफेड एवं एनसीसीएफ के माध्यम से बाजार भाव से लगभग 30 रुपये सस्ती चना दाल विक्रय कर रही है। विगत 6 नवंबर को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने नेफेड की 100 वैन जारी की हैं। इसके माध्यम से 60 रुपये प्रति किलो मूल्य पर चना दाल, 25 रुपये प्रति किलो में प्याज एवं 27.50 रुपये प्रति किलो में आटे को विक्रय किया जा रहा है।