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पशुओं के सींग कटवाने क्यों होते हैं जरूरी, जानिए

पशुओं के सींग कटवाने क्यों होते हैं जरूरी, जानिए

ज्यादातर पशुओं में सींग होते हैं। इनकी मदद से पशु प्रारम्भिक तौर पर अपनी सुरक्षा करते हैं। साथ ही पशु सींगों की मदद से अपने शरीर को Balance भी करते हैं। अगर पशुओं के सींगों की बात करें, तो इनसे उन्हें कई प्रकार के फायदे हैं। लेकिन इसके साथ ही सींगों के कारण उन्हें कई प्रकार के नुकसान भी उठाने पड़ते हैं। सींगों की वजह से पशुओं को चोट लगने के कारण उनमें कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं।

पशुओं में सींग न होने से कौन-कौन से लाभ होते हैं

पशुओं में सींग न होने से कई प्रकार के लाभ होते हैं। जैसे: बिना सींग वाले पशुओं के रहने के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही बिना सींग वाले पशु लड़ाई में एक दूसरे को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाते। बिना सींग वाले पशु गुस्सा होने पर या आक्रामक होने पर भी अपने मालिक या किसी व्यक्ति को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाते। साथ ही बिना सींग वाले पशु का इलाज करना सींग वाले पशु की अपेक्षाकृत आसान होता है। सींग वाले पशु कभी कभार आक्रामक हो सकते हैं, जिसके कारण वो खाने वाले बर्तनों को भी तोड़ देते हैं। लेकिन बिना सींग वाले पशुओं के साथ ऐसा नहीं होता है।
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सींग काटकर अलग करने को बोलते हैं डी हार्निंग

अगर हम पशु चिकित्सा की भाषा में बात करें तो पशुओं के सींग को काटकर अलग करने की प्रक्रिया को डी हार्निंग कहा जाता है। इसके साथ ही सींग को जड़ से खत्म करने की प्रक्रिया को निश्कलीकायन या डिसबंडिंग कहा जाता है। बछड़ों में 5 से 10 दिन की उम्र में ही डिसबंडिंग कर दी जाती है। इसके अलावा बड़े पशुओं में डिसबंडिंग अमूमन नहीं की जाती है।

सींग की वजह से पशुओं को हो जाती हैं ये तीन प्रकार की बीमारियां

सींग का कैंसर

सींग का कैंसर होना पशुओं में एक खतरनाक बीमारी है। यह बीमारी समय के साथ-साथ घातक होती जाती है और पशुओं को बुरी तरह से बीमार बना सकती है। यह बीमारी ज्यादातर इंडोनेशिया के सुमात्रा, ईराक और ब्राजील के जानवरों के सींगों में होती है। इस बीमारी में जानवर के सींग की कोशिकाएं अनावश्यक रूप से बढ़ जाती हैं। जिससे सींग नरम पड़ जाता है और एक ओर लटक जाता है। इस बीमारी के कारण पशु बार-बार अपना सिर हिलाता है और सींग को दीवार या खूंटे से रगड़ता है। साथ ही पशु के नाक से खून भी आने लगता है। बाद में सींग गिर जाता है। जिसके कारण वहां पर घाव हो जाता है। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने के पहले ही पशु का चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए।
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सींग का खोल उतरना

सींग का खोल उतरना पशुओं के सींगों में होने वाली दूसरी बीमारी है। इस बीमारी के कारण पशु के सींग पर चढ़ी हुई एक मोटी परत निकल जाती है। जिससे खून बहने लगता है, और देर करने पर वहां एक बड़ा घाव बन सकता है। ऐसी स्थिति में तुरंत ही पशु चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।

सींग का टूटना

पशुओं के आपसी झगड़े के कारण, सींग के कहीं फंसने के कारण या किसी अन्य कारण से कई बार सींग टूट जाते हैं। यह पशुओं के लिए बेहद दर्दनाक अवस्था होती है। ऐसी स्थिति में पशु को तुरंत वेटनरी सर्जन को दिखाना चाहिए एवं पशु का उपचार कराना चाहिए।
यूपी के बरेली में मौजूद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान केंद्र संस्थान ने सरोगेसी तकनीक का सफल परीक्षण किया

यूपी के बरेली में मौजूद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान केंद्र संस्थान ने सरोगेसी तकनीक का सफल परीक्षण किया

उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद में मौजूद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान केंद्र संस्थान के माध्यम से सरोगेसी तकनीक का सफल परीक्षण किया गया है। वैज्ञानिकों ने कहा है, कि सरोगेसी तकनीक के माध्यम से फिलहाल 26 बछड़ों का प्रजनन हो गया है। अब केवल इंसान ही नहीं गायें भी सरोगेसी तकनीक के माध्यम से बछड़े को जन्म देंगी। इसका सफलता पूर्ण परीक्षण उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद में मौजूद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में किया जा चुका है। बताया जा रहा है, कि फिलहाल इंसानों के जैसे ही गायों से भी सरोगेसी तकनीक के माध्यम से बेहतरीन नस्ल के बछड़े प्राप्त किए जाएंगे। संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया है, कि सरोगेसी तकनीक के जरिए वैज्ञानिक अच्छी नस्ल के सांड के वीर्य को एकत्रित कर लेते हैं। उसके बाद में चयन की गई नस्ल के अंडे लेकर के भ्रूण तैयार किया जाता है। उसके बाद में भ्रूण को गाय के अंदर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसके परिणाम स्वरुप गाय अच्छी नस्ल के बछड़े को पैदा करती है। जो गाय काफी अधिक मात्रा में दूध देती है।

सरोगेसी तकनीक का क्या फायदा होता है

सरोगेसी तकनीक का उपयोग करके एक अच्छी दुधारू नस्ल की गाय को जन्म दिया जा सकता है। जिससे दूध की आपूर्ति सुनिश्चित होने के साथ-साथ पशुपालकों एवं किसान भाइयों की आमदनी भी काफी बढ़ेगी। इस तकनीक के माध्यम से गायों के जन्म लेने से पशुपालकों को काफी आर्थिक सहायता प्राप्त होगी। क्योंकि पशुपालकों को अच्छी दूध देने वाली गायों की सहायता से मोटी कमाई हो जाती है। सरोगेसी तकनीक से प्राप्त हुए पशुओं से पशुपालकों को काफी मात्रा में दूध प्राप्त हुआ है।

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सड़क पर निराश्रित पशुओं की भी तादात में होगी कमी

आपको बतादें कि गायों को सड़कों पर छुट्टा छोड़ने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है, कि जब तक वह दूध देती हैं, तब तक उनका पालन पोषण किया जाता है। जब गायें दूध देना बंद कर देती हैं, तो उनको निर्ममता से खुला छोड़ दिया जाता है। आवारा पशुओं की वजह से आए दिन सड़क हादसों के बारे में भी सुनने को मिलता है। किसानों की फसल को भी निराश्रित पशु काफी नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में सरोगेसी तकनीक अच्छी और दुधारू नस्ल की गायों को तैयार करके दूध की मात्रा को बढ़ाएगी। जब पशुपालकों को दूध अधिक मात्रा में मिलेगा तो उनके पास पशुओं को छुट्टा छोड़ने का कोई मूलभूत कारण ही नहीं बचेगा।
सरोगेसी तकनीक का हुआ सफल परीक्षण, अब इस तकनीक की सहायता से गाय देगी बछिया को जन्म

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किसान भाई देश में खेती किसानी के साथ पशुपालन का कार्य भी करते हैं जिससे किसान अपने लिए अतिरिक्त आमदनी जुटा पाते हैं। देश में ज्यादातर किसान दुधारू पशुओं को पालना पसंद करते है ताकि दुग्ध का उत्पादन करके ज्यादा के ज्यादा कमाई की जा सके। इसके अलावा किसान भाई मुर्गी, बतख और सूअर पालन भी करते हैं। इन दिनों देश में जानवरों की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए तेजी से प्रजनन की जरूरत बढ़ी है ताकि जानवरों की बढ़ती हुई मांग को पूरा किया जा सके।

सरोगेसी तकनीक का गायों में सफल परीक्षण

इसी को देखते हुए भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इंसानों के बाद अब
सरोगेसी तकनीक का गायों में सफल परीक्षण किया है। इसकी मदद से अब गायें भी बछिया को जन्म दे सकेंगी। जिससे भविष्य में गायों की संख्या बढ़ेगी और बढ़ती हुई दूध की मांग की आपूर्ति की जा सकेगी। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस तकनीक का सफल परीक्षण किया जा चुका है। इस परीक्षण के दौरान अभी तक 26 बछड़े प्राप्त किया जा चुके हैं। वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस तकनीक के अंतर्गत अच्छी नस्ल के सांड के वीर्य को एकत्र कर लिया जाता है। इसके बाद चुनी हुई नस्ल के अंडे लेकर भ्रूण तैयार किया जाता है, उसके बाद भ्रूण को गाय में प्रत्यारोपित किया जाता है। जिससे गाय एक बेहतर नस्ल के बछिया को जन्म देती है। जिससे भविष्य में ज्यादा मात्रा में दूध प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस सफल प्रयोग के बाद इसे अब धरातल में उतारा जाएगा ताकि किसान भाई इससे ज्यादा से ज़्यादा लाभान्वित हो पाएं। इससे बहुत जल्दी भारत में बढ़ती हुई दूध की मांग की आपूर्ति की जा सकेगी। इसका लाभ सबसे पहले उत्तर प्रदेश के किसान उठा पाएंगे, इसके बाद इस तकनीक को धीरे-धीरे पूरे देश में फैलाया जाएगा।

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इन दिनों केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारें देश में दूध उत्पादन पर तेजी के फोकस कर रही हैं ताकि बाजार में बढ़ी हुई मांग की आपूर्ति की जा सके। इसके लिए बाजार में कई डेयरी कंपनियां आ गई है। जो दुग्ध प्रसंस्करण का काम करती हैं। ऐसी स्थिति में यदि किसान भाई दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में सफल हो पाते है तो निश्चित रूप से यह किसानों के लिए फायदे का सौदा होगा और भविष्य में किसानों की आय तेजी से बढ़ती हुई दिखाई देगी।
अब बीमार पशुओं को लेकर नहीं जाना होगा अस्पताल, घर पर ही होगा इलाज

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केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के पशुपालकों और किसानों को बड़ा तोहफा देते हुए राज्य में 'पशु उपचार पशुपालकों के द्वार' योजना का शुभारंभ किया है। इस योजना के चालू हो जाने से किसानों को बहुत सारी समस्याओं से छुटाकरा मिल जाएगा। अब किसानों को अपने पशुओं का इलाज करवाने के लिए नजदीकी पशु चिकित्सा केंद्र में नहीं जाना होगा। इसकी जगह पर क्षेत्र के पशु चिकित्सक खुद घर आकर पशु का इलाज करेंगे। 'पशु उपचार पशुपालकों के द्वार' योजना का शुभारंभ फिलहाल उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में किया गया है। जहां इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए जिले के पशु चिकित्सकों को 5 मोबाइल वेटरनरी वैन दी गई हैं, साथ ही इन मोबाइल वेटरनरी वैन में पशु इलाज के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं एवं दवाइयां उपलब्ध करवाई गई हैं। यदि किसी किसान का कोई भी पशु बीमार होता है तो पशु चिकित्सक इन्हीं मोबाइल वेटरनरी वैन को लेकर पशुओं का इलाज करने के लिए जाएंगे। किसानों को इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए टोल फ्री नंबर 1962 पर कॉल करना होगा तथा पशु के रोग से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी बतानी होगी। जिसके कुछ ही देर बाद पशु चिकित्सकों की टीम मोबाइल वेटरनरी वैन के साथ किसान के घर पहुंच जाएगी और पशु का सम्पूर्ण इलाज करेगी। ये भी पढ़े: पशुओं में मुँहपका व खुरपका रोग के लक्षण व उपचार योजना की शुरुआत करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने बताया है कि इस योजना में गाय भैंस के अलावा अन्य पालतू जानवरों को भी शामिल किया गया है। इसके साथ ही गाय और भैंस के इलाज के लिए 5 रुपये का पंजीकरण शुल्क देय होगा तथा कुत्ते और बिल्लियों के इलाज के लिए 10 रुपये का पंजीकरण शुल्क देय होगा। इलाज के दौरान चिकित्सकों द्वारा दी गई दवाइयां पूरी तरफ से मुफ़्त होंगी, उनका किसी भी प्रकार का चार्ज किसानों से नहीं वसूला जाएगा। इस प्रकार की योजना की शुरुआत पहले ही आंध्र प्रदेश में हो चुकी है। साल 2022 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने किसानों के घर पर पशुओं के इलाज की व्यवस्था करने की बात कही थी। जिसके तहत राज्य में 175 एंबुलेंस खरीदी गई थीं, जिसमें आंध्र प्रदेश की सरकार ने 143 करोड़ रुपये की भारी भरकम राशि खर्च की थी। इस तरह की योजना का आंध्र प्रदेश में सफल ट्रायल होने के बाद इसे अब उत्तर प्रदेश में भी लागू किया गया है।