भारत में इस वक्त रबी की फसलों की कटाई का काम तेजी से चल रहा है. जिसका काम मार्च तक पूरा कर लिया जाएगा. जिसके बाद खेत खाली हो जाएंगे. ऐसे में किसान चाहें तो तरबूज की खेती करके कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.
तरबूज की खेती की सबसे बड़ी खासियत यही है कि, इसके लिए कम पानी की जरूरत पड़ती है. वहीं भारत में गर्मियों के मौसम में ज्यादा डिमांड होने की वजह से इसके अच्छे खासे दाम मिल जाते हैं.
तरबूज की खेती
अगर आप भी तरबूज की खेती करने का मन बना रहे हैं तो, रबी और खरीफ के सीजन के बीच के सीजन यानि कि जायद के सीजन में उगा सकते हैं. यह सीजन फरवरी से मार्च के बीच का होता है. तरबूज की खेती के लिए उसकी उन्नत किस्मों की बुवाई फायदेमंद होती है. इसके लिए खेती करने का सही तरीका भी आना चाहिए. तो चलिए फिर जानते हैं, तरबूज की खेती से जुड़ी अहम बातें.
इन राज्यों में होती है सबसे ज्यादा खेती
देश में गर्मियों का मौसम शुरू होते ही, तरोताजा कर देने वाले तरबूज की डिमांड बढ़ जाती है. इसलिए इसकी खेती भी काफी ज्यादा बड़े पैमाने में की जाती है. इसकी खेती मुख्य रूप से यूपी, पंजाब, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान में की जाती है. अगर आप किसी अन्य फलों की खेती करते हैं तो उनके मुकाबले तरबूज की खेती करना आसान है.
क्योंकि इसमें कम खाद, कम समय, और कम पानी की जरूरत पड़ती है. तरबूज की खेती के लिए गंगा, यमुना जैसी अन्य नदियों के किनारे खाली जगहों पर की जाती है.
तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
ज्यादा तापमान वाली जलवायु तरबूज की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है. ज्यादा तापमान से फल जल्दी बढ़ते हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक फलों के बीजों को अंकुरित होने के लिए कम से 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है. वहीं तरबूज की खेती के लिए रेतीली और दोमट जमीन अच्छी रहती है. इसके अलावा उसकी मिट्टी का पीएच मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए. अगर जमीन उपजाऊ नहीं है और बंजर है, तो भी इसकी खेती आराम से की जा सकती है.
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तरबूज की उन्नत किस्मों के बारे में
तरबूज की वैसे तो कई तरह की उन्नत किस्में हैं, जो काफी समय और कम लागत में तैयार हो जाती हैं. इसके अलावा वो उत्पादन भी बढ़िया देती हैं. जिनके बारे में आपका भी जान लेना जरूरी है.
इस किस्म के तरबूज का विकास बैंगलौर में किया गया. यह किस्म जल्दी सड़ती नहीं है. तरबूज की यह किस्म प्रति हेक्टेयर 50 से 60 टन तक की उपज देती है.
इस तरह के किस्म के तरबूज का भार 7 से 8 किलो तक होता है. साथ ही इसे काफी दिनों तक रखा भी जा सकता है. प्रति हेल्तेय्र 350 क्विंटल तक इसका उत्पादन किया जा सकता है.
शुगर बेबी किस्म के तरबूज के बीज काफी जल्दी तैयार हो जाते हैं. कम से कम सौ दिनों के बाद यह तोड़ने लायक हो जाते हैं. इसके फलों में बीज काफी कम होते हैं. 200 से 250 क्विंटल की उपज प्रति हेक्टेयर मिल सकती है.
NRCH द्वारा गर्म और शुष्क क्षेत्रों में खेती के लिए यह किस्म सबसे अच्छी होती है. तरबूज की यह किस्म ज्यादा तापमान भी सहन कर सकती है. इसका फल काफी अच्छा और मीठा होता है. इसे दो से ढ़ाई महीने में तैयार किया जा सकता है. 40 से 50 टन की उपज प्रति हेक्टेयर में पाई जा सकती है.
जापान से लायी गयी इस किस्म के फलों का भार 6 से 9 किलो तक होता है. धारीदार और हल्के हरे रंग का छिलका इसकी पहचान है. 200 से 225 क्विंटल तक की उपज प्रति हेक्टर में मिल जाती है. ये भी देखें: ताइवानी तरबूज व खरबूज के फलों से किसान कमा रहे लाखों में मुनाफा
अगर चाहते हैं हाइब्रिड तरबूज की खेती
अगर आप हाइब्रिड तरबूज की खेती करना चाहते हैं तो खेती से पहले खेत की जुताई करनी जरूरी है. इस तरह की खेती के लिए खेत को तैयार करना सबसे ज्यादा जरूरी है. इसके लिए आप मिट्टी पलटने वाले हल का सहारा ले सकते हैं. आपको इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि, कहत में पानी की मात्रा एकदम बराबर हो. यानि कि ना तो ज्यादा और ना ही कम. जिसके बाद आप नदियों की खाली जगह पर क्यारियां बना लें और जमीन में गोबर की खाद मिला दें. अगर रेत ज्यादा है तो ऊपर की स्थ को हटाकर मिट्टी में खाद मिला दें.
जानिए बुवाई का सही तरीका
तरबूज के बीजों की बुवाई अगर मैदानी क्षेत्रों में कर रहे हैं तो समतल भूमि का चयन करें, अगर बुवाई पर्वतीय क्षेत्रों में कर रहे हैं तो उपर की तरफ उठी हुई क्यारियों का चयन करें. इसके लिए दो से ढ़ाई मीटर चौड़ी क्यारी बनाई जाती है. जिसके किनारे डेढ़ सेंटीमीटर गहरे होते हैं. जिनमें बीजों को बोया जाता है. बुवाई की लाइन और आपसी दूरी कितनी हो यह तरबूज की किस्म पर निर्भर करता है.
सही खाद और उर्वरक का करें प्रयोग
तरबूज की खेती के लिए खाद उर्वरकों की मात्रा और उसकी शक्ति पर भी निर्भर करती है. उर्वरा शक्ति जमीन में ज्यादा हो तो उर्वरक और खाद की मात्रा को आप कम कर सकते हैं.
इससे फल का कच्चा और पका होने का अंदाजा लगाया जा सकता है. इसके अलावा फलों को उनकी डंठल से अलग करने के लिए चाक़ू या फिर धारदार चीज का इस्तेमाल किया जा सकता है.