Ad

अरंडी

अरंडी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

अरंडी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

किसान भाइयों, अरंडी एक औषधीय वानस्पतिक तेल का उत्पादन करने वाली खरीफ की मुख्य व्यावसायिक फसल है। कम लागत में होने वाली अरंडी के तेल का व्यावसायिक महत्व होने के कारण इसको नकदी फसल भी कहा जा सकता है। किसान भाइयों अरंडी की फसल का आपको दोहरा लाभ मिल सकता है। इसकी फसल से पहले आप तेल निकाल कर बेच सकते हैं। उसके बाद बची हुई खली से खाद बना सकते हैं। इस तरह से आप अरंडी के खेती करके दोहरा लाभ कमा सकते हैं। आइये जानते हैं कि अरंडी की खेती कैसे की जाती है।

भूमि व जलवायु

अरंडी की फसल के लिए दोमट व बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है लेकिन इसकी फसल पीएच मान 5 से 6 वाली सभी प्रकार की मृदाओं में उगाई जा सकती है। अरंडी की फसल ऊसर व क्षारीय मृदा में नहीं की जा सकती। इसकी खेती के लिए खेत में जलनिकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये अन्यथा फसल खराब हो सकती है।
अरंडी की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में भी की जा सकती है। इसकी फसल के लिए 20 से 30 सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती है। अरंडी के पौधे की बढ़वार और बीज पकने के समय उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। अरंडी की खेती के लिए अधिक वर्षा यानी अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इसकी जड़ें गहरी होतीं हैं और ये सूखा सहन करने में सक्षम होतीं हैं। पाला अरंडी की खेती के लिए नुकसानदायक होता है। इससे बचाना चाहिये।

ये भी पढ़ें:
घर पर मिट्टी के परीक्षण के चार आसान तरीके

खेत की तैयारी कैसे करें

अरंडी के पौधे की जड़ें काफी गहराई तक जातीं हैं , इसलिये इसकी फसल के लिए गहरी जुताई करनी आवश्यक होती है। जो किसान भाई अरंडी की अच्छी फसल लेना चाहते हैं वे पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। उसके बाद दो तीन जुताई कल्टीवेटर या हैरों से करें तथा पाटा लगाकर खेत को समतल बना लें। किसान भाइयों सबसे बेहतर तो यही होगा कि खेत में उपयुक्त नमी की अवस्था में जुताई करें। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जायेगी और खरपतवार भी नष्ट हो जायेगा। इस तरह खेत को तैयार करके एक सप्ताह तक खुला छोड़ देना चाहिये। जिससे पूर्व फसल के कीट व रोग धूप में नष्ट हो सकते हैं ।

अरंडी की मुख्य उन्नत किस्में

अरंडी की मुख्य उन्नत किस्मों मे जीसीएच-4,5, 6, 7 व डीसीएच-32, 177 व 519, ज्योति, हरिता, क्रांति किरण, टीएमवी-6, अरुणा, काल्पी आदि हैं। Aranki ki plant

कब और कैसे करें बुआई

अरंडी की फसल की बुआई अधिकांशत: जुलाई और अगस्त में की जानी चाहिये। किसान भाई अरंडी की फसल की खास बात यह है कि मानसून आने पर खरीफ की सभी फसलों की खेती का काम निपटाने के बाद अरंडी की खेती आराम से कर सकते हैं। अरंडी की बुआई हल के पीछे हाथ से बीज गिराकर की जा सकती है तथा सीड ड्रिल से भी बुआई की जा सकती है। सिंचाई वाले क्षेत्रोंं अरंडी की फसल की बुआई करते समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि लाइन से लाइन की दूरी एक मीटर या सवा मीटर रखें और पौधे से पौधे की दूरी आधा मीटर रखें तो आपकी फसल अच्छी होगी। असिंचित फसल के लिए लाइन और पौधों की दूरी कम रखनी चाहिये। इस तरह की खेती के लिए लाइन से लाइन की दूरी आधा मीटर या उससे थोड़ी ज्यादा होनी चाहिये और पौधों से पौधों की दूरी भी लगभग इतनी ही रखनी चाहिये।

कितना बीज चाहिये

किसान भाइयों अरंडी की फसल के लिए बीज की मात्रा , बीज क आकार और बुआई के तरीके और भूमि के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है। फिर भी औसतन अरंडी की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। छिटकवां बुआई में बीज अधिक लगता है यदि इसे हाथ से एक-एक बीज को बोया जाता है तो प्रतिहेक्टेयर 8 किलोग्राम के लगभग बीज लगेगा। किसान भाइयों को चाहिये कि अरंडी की अच्छी फसल लेने के लिए उन्नत किस्म का प्रमाणित बीज लेना चाहिये। यदि बीज उपचारित नहीं है तो उसे उपचारित अवश्य कर लें ताकि कीट एवं रोगों की संभावना नहीं रहती है। भूमिगत कीटों और रोगों से बचाने के लिए बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रतिकिलोग्राम पानी से घोल बनाकर बीजों को बुआई से पहले  भिगो कर उपचारित करें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

किसान भाइयों खाद और उर्वरक काफी महंगी आती हैं इसलिये किसी भी तरह की खेती के लिए आप अपनी भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य करवा लें और उसके अनुसार आपको खाद और उर्वरक प्रबंधन की अच्छी जानकारी मिल सकेगी। इससे आपका पैसा व समय दोनों ही बचेगा। खेती की लागत कम आयेगी। इसी तरह अरंडी की खेती के लिए जब आप खाद व उर्वरकों का प्रबंधन करें तो मिट्टी की जांच के बाद बताई गयी खाद व उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें। अरंडी की खेती के लिए उर्वरक का अच्छी तरह से प्रबंधन करना होता है। अच्छे खाद व उर्वरक प्रबंधन से अरंडी के दानों में तेल का प्रतिशत काफी बढ़ जाता है। इसलिये इस खेती में किसान भाइयों को कम से कम तीन बार खाद व उवर्रक देना होता है। अरंडी चूंकि एक तिलहन फसल है, इसका उत्पादन बढ़ाने व बीजों में तेल की मात्रा अधिक बढ़ाने के लिए बुआई से पहले 20 किलोगाम सल्फर को 200 से 250 किलोग्राम जिप्सम मिलाकर प्रति हेक्टेयर डालना चाहिये। इसके बाद अरंडी की सिंचित  खेती के लिए 80 किलो ग्राम नाइट्रोजन और 40 किलो फास्फोरस  प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिये तथा असिंचित खेती के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20 किलोग्राम फास्फोरस का इस्तेमाल किया जाना चाहिये। इसमें से खेत की तैयारी करते समय आधा नाइट्रोजन और आधा किलो फास्फोरस का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना चाहिये। शेष आधा भाग 30 से 35  दिन के बाद वर्षा के समय खड़ी फसल पर डालना चाहिये। Arandi ki kheti

सिंचाई प्रबंधन

अरंडी खरीफ की फसल है, उस समय वर्षा का समय होता है। वर्षा के समय में बुआई के डेढ़ से दो महीने तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इस अवधि में पानी देने से जड़ें कमजोर हो जाती है, जो सीधा फसल पर असर डालती है। क्योंकि अरंडी की जड़ें गहराई में जाती हैं जहां से वह नमी प्राप्त कर लेतीं हैं। जब अरंडी के पौधों की जड़ें अच्छी तरह से विकसित हो जायें और जमीन पर अच्छी तरह से पकड़ बना लें और जब खेती की नमी आवश्यकता से कम होने लगे तब पहला पानी देना चाहिये। इसके बाद प्रत्येक 15 दिन में वर्षा न होने पर पानी देना चाहिये। यदि सिंचाई के लिए टपक पद्धति हो तो उससे इसकी सिंचाई करना उत्तम होगा।

खरपतवार प्रबंधन

अरंडी की फसल में खरपतवार का प्रबंधन शुरुआत में ही करना चाहिये। जब तक पौधे आधे मीटर के न हो जायें तब तक समय-समय पर खरपतवार को हटाना चाहिये तथा गुड़ाई भी करते रहना चाहिये। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए एक किलोग्राम पेंडीमेथालिन को 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन छिड़काव करने से भी खरपतवार का नियंत्रण होता  है। लेकिन 40 दिन बाद एक बार अवश्य ही निराई गुड़ाई करवानी चाहिये।

कीट-रोग एवं उपचार

अरंडी की फसल में कई प्रकार के रोग एवं कीट लगते हैं। उनका समय पर उपचार करने से फसल को बचाया जा सकता है। आईये जानते हैं कि कौन से कीट या रोग का किस प्रकार से उपचार किया जाता है:- 1. जैसिड कीट: अरंडी की फसल में जैसिड कीट लगता है। इसका पता लगने पर किसान भाइयों को मोनोक्रोटोफाँस 36 एस एल को एक लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव कर देना चाहिये। इससे फसल का बचाव हो जाता है। 2. सेमीलूपर कीट: इसकीट का प्रकोप सर्दियों में अक्टूबर-नवम्बर के बीच होता है। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए 1 लीटर क्यूनालफॉस 25 ईसी , लगभग 800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रतिहेक्टेयर में फसल पर छिड़काव करने से कीट पर नियंत्रण हो जाता है। 3. बिहार हेयरी केटरपिलर: यह कीट भी सेमीलूपर की तरह सर्दियों में लगता है और इसके नियंत्रण के लिए क्यूनालफॉस का घोल बनाकर खड़ी फसल पर छिड़काव करना चाहिये। 4. उखटा रोग: उखटा रोग से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडि 10 ग्राम प्रतिकिलोग्राम बीज का बीजोपचार करना चाहिये तथा 2.5 ट्राइकोडर्मा को नम गोबर की खाद के साथ बुवाई से पूर्व खेत में डालना अच्छा होता है।

पाले सें बचाव इस तरह करें

अरंडी की फसल के लिए पाला सबसे अधिक हानिकारक है। किसान भाइयों को पाला से फसल को बचाने के लिए भी इंतजाम करना चाहिये। जब भी पाला पड़ने की संभावना दिखाई दे तभी किसान भाइयों को एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रतिहेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करा चाहिये। यदि पाला पड़ जाये और फसल उसकी चपेट में आ जाये तो 10 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से यूरिया के साथ छिड़काव करें। फसल को बचाया जा सकता है।

कब और कैसे करें कटाई

अरंडी की फसल को पूरा पकने का इंतजार नहीं करना चाहिये। जब पत्ते व उनके डंठल पीले या भूरे दिखने लगें तभी कटाई कर लेनी चाहिये क्योंकि फसल के पकने पर दाने चिटक कर गिर जाते हैं। इसलिये पहले ही इनकी कटाई करना लाभदायक रहेगा। अरंडी की फसल में पहली तुड़ाई 100 दिनों के आसपास की जानी चाहिये। इसके बाद हर माह आवश्यकतानुसार तुड़ाई करना सही रहता है।

ये भी पढ़ें:
फसल की कटाई के आधुनिक यन्त्र

पैदावार

अरंडी की फसल सिंचित क्षेत्र में अच्छे प्रबंधन के साथ की जाये तो प्रतिहेक्टेयर इसकी पैदावार 30 से 35 क्विंटल तक हो सकती है जबकि  असिंचित क्षेत्र में 15 से 23 क्विंटल तक प्रतिहेक्टेयर पैदावार मिल सकती है।
हरियाणा फसल विविधीकरण योजना के लिए लक्ष्य निर्धारित

हरियाणा फसल विविधीकरण योजना के लिए लक्ष्य निर्धारित

भूजल स्तर में गिरावट का निदान

धान छोड़ने वाले किसान का सम्मान

फसल विविधता के लिए लक्ष्य निर्धारित

हरियाणा प्रदेश सरकार ने राज्य में क्रॉप डायवर्सिफिकेशन (Crop Diversification) यानी फसल विविधीकरण के लिए हरियाणा फसल विविधीकरण योजना (मेरा पानी मेरी विरासत - Mera Pani Meri Virasat) शुरू की है। हरियाणा क्रॉप डायवर्सिफिकेशन स्कीम (Haryana Crop Diversification Scheme) अर्थात हरियाणा फसल विविधीकरण योजना के तहत, धान की पारंपरिक फसल छोड़ने वाले किसानों को सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाएगा।
हरियाणा फसल विविधीकरण योजना के सरकारी दस्तावेज (अंग्रेजी में) पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
इस स्कीम के तहत धान जैसी पारंपरिक फसल त्यागने का निर्णय लेने वाले किसानों को प्रति एकड़ 7 हजार रुपये की राशि बतौर प्रोत्साहन प्रदान की जाती है। राज्य सरकार मक्का उगाने वाले किसानों को 2400 रुपये प्रति एकड़ और दलहन (मूंग, उड़द, अरहर) की पैदावार करने वाले कृषकों को 3600 रुपये प्रति एकड़ के मान से अनुदान राशि प्रदान करती है।


ये भी पढ़ें: हरियाणा के 10 जिलों के किसानों को दाल-मक्का के लिए प्रति एकड़ मिलेंगे 3600 रुपये
आपको बता दें हरियाणा सरकार की ओर से फसल विविधीकरण स्कीम (Haryana Crop Diversification Scheme) के तहत यह प्रोत्साहन राशि किसान को सिर्फ 5 एकड़ की कृषि भूमि के लिए ही प्रदान की जाती है। राज्य सरकार द्वारा साल 2022 के लिए निर्धारित लक्ष्य के अनुसार प्रदेश की 50 हज़ार एकड़ कृषि भूम पर योजना का लाभ प्रदान किया जाएगा।

स्कीम का कारण

हरियाणा प्रदेश में किसानों द्वारा एक सी फसल उगाने के कारण खेतों की पैदावार क्षमता प्रभावित हो रही है। एक जैसे रसायनों एवं कीटनाशकों के सालों से हो रहे प्रयोग के कारण कृषि भूमि की उर्वरता भी खतरे में है। साथ ही राज्य में भूजल स्तर में भी गिरावट देखी जा रही है।


ये भी पढ़ें: देश में कीटनाशकों के सुरक्षित और उचित इस्तेमाल की सिफारिशों के साथ चार दिवसीय राष्ट्रीय कृषि रसायन सम्मेलन का समापन
इन सभी समस्याओं के मूलभूत उपचार फसल विविधीकरण के तरीके को अपनाते हुए सरकार ने हरियाणा फसल विविधीकरण स्कीम को बतौर प्रोत्साहन राज्य में लागू किया है।

फसल बदलने प्रोत्साहन

फसल विविधीकरण स्कीम में सालों से चली आ रही एक सी फसल उगाने की परंपरा के बजाए किसानों को बदल-बदल कर कृषि भूमि, पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य उपयोगी फसल उगाने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस योजना के जरिए प्रदेश में धान की खेती के बजाए दूसरी खेती फसल अपनाने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है।

अनुदान का प्रबंध

अन्य फसलों जैसे कपास, मक्का, दलहन, ज्वार, अरंडी, मूंगफली, सब्जी एवं फल आदि की किसानी करने वाले किसानों को अनुदान राशि भी प्रदेश में प्रदान की जा रही है।

योजना का उद्देश्य

हरियाणा प्रदेश सरकार ने हरियाणा फसल विविधीकरण योजना को लागू करने का निर्णय, राज्य में भूजल की बढ़ती परेशानी के निदान के लिए लिया है। धान की खेती में बहुत मात्रा में पानी की जरूरत होती है। मूल तौर पर धान की किसानी की वजह से प्रदेश के भूजल स्तर में चिंतनीय गिरावट देखी गई है।


ये भी पढ़ें: धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल
इस समस्या के प्राकृतिक समाधान के तहत प्रदेश में फसल विविधीकरण के लक्ष्य को निर्धारित किया गया है। क्रॉप डायवर्सिफिकेशन स्कीम से प्रदेश में अन्य फसलों की खेती तरीकों में भी वृद्धि होगी। इससे भूजल गिरावट की समस्या का भी समाधान हो सकेगा

चावल पीता है पानी

कृषि अनुसंधान के अनुसार 1 किलोग्राम चावल की पैदावार के लिए औसतन 300 लीटर पानी लगता है। इस खपत को नियंत्रित करने के लिए हरियाणा सरकार ने फसल विविधीकरण के लक्ष्य पर काम करना शुरू किया है, ताकि घट रहे भूजलस्तर की समस्या का समय रहते प्राकृतिक तरीके से समाधान किया जा सके।

अंतिम तारीख 31 अगस्त

हरियाणा फसल विविधीकरण योजना 2022 के तहत योजना संबंधी आवेदन जमा करने की प्रदेश सरकार ने अंतिम समय सीमा 31 अगस्त 2022 तय की है। इसके लिए आवेदक को आधार कार्ड क्रमांक से संबद्ध बैंक खाता संबंधी जानकारी आवेदन पत्र में दर्शानी होगी। योजना के पात्र हितग्राही आवेदक को राज्य सरकार की ओर से दी जाने वाली प्रोत्साहन धन राशि उसके बैंक खाते में जमा की जाएगी।

कृषि यंत्र अनुदान

हरियाणा फसल विविधीकरण योजना (Haryana Crop Diversification Scheme) के जरिये सरकार द्वारा किसानों को कृषि यंत्र खरीदने के लिए अनुदान भी प्रदान किया जाएगा।

योजना इनके लिए है

हरियाणा फसल विविधीकरण योजना का लाभ प्रदेश के निवासी को ही प्रदान किया जाएगा। योजना के अनुसार कृषक को पिछले वर्ष की तुलना में धान के रकबे के कम से कम 50% हिस्से में दूसरी फसलों की पैदावार करना होगी।


ये भी पढ़ें: ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का
इसके अलावा बैंक खाता, आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, कृषि योग्य भूमि संबंधी दस्तावेज, पहचान पत्र, मोबाइल नंबर, बैंक खाता विवरण,

पासपोर्ट साइज फोटो भी आवेदक को योजना के लिए दर्शाना होगी।

हरियाणा फसल विविधीकरण योजना के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन कराने के लिए कृषक मित्र, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा की आधिकारिक वेबसाइट पर पंजीकरण करा सकते हैं।