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कम्पोस्ट

वर्मीकम्पोस्ट यूनिट से हर माह लाखों कमा रहे चैनल वाले डॉक्टर साब, अब ताना नहीं, मिलती है शाबाशी

वर्मीकम्पोस्ट यूनिट से हर माह लाखों कमा रहे चैनल वाले डॉक्टर साब, अब ताना नहीं, मिलती है शाबाशी

इतना पढ़ लिख कर सब गुड़ गोबर कर दिया, आपने यह बात तो सुनी ही होगी। लेकिन मेरी खेती पर हम बात करेंगे ऐसे विरले किसान की, जिनके लिए गोबर अब कमाई के मामले में, गुड़ जैसी मिठास घोल रहा है।

वर्मीकम्पोस्ट वाले डॉक्टर साब

हम बात कर रहे हैं राजस्थान, जयपुर के नजदीक सुंदरपुरा गांव में रहने वाले डॉ. श्रवण यादव की।
केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) निर्माण में इनकी रुचि देखते हुए, अब लोग इन्हें सम्मान एवं प्रेम से वर्मीकम्पोस्ट वाले डॉक्टर साब भी कहकर बुलाते हैं।

शुरुआत से रुख स्पष्ट

डॉ. श्रवण ने ऑर्गेनिक फार्मिंग संकाय से एमएससी किया है। साल 2012 में उन्हें JRF की स्कॉलरशिप भी मिली। मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लगी लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लगा। मन नहीं लगा तो डॉ. साब ने नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने राह पकड़ी उदयपुर महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी की। यहां वे जैविक खेती (Organic Farming) पर पीएचडी करने लगे। इसके उपरांत साल 2018 में डॉ. श्रवण को उसी यूनिवर्सिटी में सीनियर रिसर्च फ़ेलोशिप का काम मिल गया।


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डॉ. श्रवण के मुताबिक उनका मन शुरुआत से ही खेती-किसानी में लगता था। कृषि से जुड़ी छोटी-छोटी बारीकियां सीखने में उन्हें बहुत सुकून मिलता था। इस रुचि के कारण ही उन्होंने पढ़ाई के लिए कृषि विषय चुना और उस पर गहराई से अध्ययन कर जरूरी जानकारियां जुटाईं।

यूं शुरू किया बिजनेस

नौकरी करने के दौरान डॉ. श्रवण की, उनकी सबसे प्रिय चीज खेती-किसानी से दूरी बढ़ती गई। वे बताते हैं कि, नौकरी के कारण उनको कृषि कार्यों के लिए ज्यादा समय नहीं मिल पाता था। इस बीच वर्ष 2020 में कोरोना की वजह से लॉकडाउन की घोषणा के बाद वह अपने गांव सुंदरपुरा लौट आए। इस दौरान उन्हें खेती-किसानी कार्यों के लिए पर्याप्त वक्त मिला तो उन्होंने 17 बेड के साथ वर्मीकम्पोस्ट की एक छोटी यूनिट से बतौर ट्रायल शुरुआत की।

ताना नहीं अब मिलती है शाबाशी

उच्च शिक्षित होकर खाद बनाने के काम में रुचि लेने के कारण शुरुआत में लोगों ने उन्हें ताने सुनाए। परिवार के सदस्यों ने भी शुरू-शुरू में उनके इस काम में अनमने मन से साथ दिया।


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अब जब वर्मीकम्पोस्ट यूनिट से डॉ. श्रवण का लाभ लगातार बढ़ता जा रहा है, तो ताने अब शाबाशी में तब्दील होते जा रहे हैं। परिजन ने भी वर्मीकम्पोस्ट निर्माण की अहमियत को समझा है और वे खुले दिल से डॉ. श्रवण के काम में हाथ बंटाते हैं।

हर माह इतना मुनाफा

डॉ. श्रवण के मुताबिक, वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद ) उत्पादन तकनीक (Vermicompost Production) से हासिल खाद को अन्य किसानों को बेचकर वे हर माह 2 से 3 लाख रुपये कमा रहे हैं। बढ़ते मुनाफे को देखते हुए डॉ. श्रवण ने यूनिट में वर्मीकम्पोस्ट बेड्स की संख्या भी अधिक कर दी है।

अब इतने वर्मीकम्पोस्ट बेड

डॉक्टर साब की वर्मीकम्पोस्ट यूनिट में अब वर्मी कंपोस्ट बेड की संख्या बढ़कर 1 हजार बेड हो गई है।

दावा सर्वोत्कृष्ट का

कृषि कार्यों के लिए समर्पित डॉ. श्रवण का दावा है कि, संपूर्ण भारत में उनकी वर्मीकम्पोस्ट यूनिट का मुकाबला कोई अन्य यूनिट नहीं कर सकती। उनका कहना है कि राजस्थान, जयपुर के नजदीक सुंदरपुरा गांव में स्थित उनकी वर्मीकम्पोस्ट यूनिट, भारत में प्रति किलो सबसे ज्यादा केंचुए देती है। यह यूनिट एक किलो में 2000 केंचुए देती है, जबकि शेष यूनिट में 400 से 500 केंचुए ही मिल पाते हैं।

कृषि मित्रोें को प्रशिक्षण

खुद की वर्मीकम्पोस्ट यूनिट के संचालन के अलावा डॉ. श्रवण अन्य जिज्ञासु कृषकों को भी वर्मीकंपोस्ट बनाने का जब मुफ्त प्रशिक्षण देते हैं, तो किसान मित्र बड़े चाव से डॉक्टर साब के अनुभवों का श्रवण करते हैं।


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मार्केटिंग का मंत्र

डॉक्टर श्रवण वर्मीकम्पोस्ट के लिए बाजार तलाशने सोशल मीडिया तंत्र का भी बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। डॉ. ऑर्गनिक वर्मीकम्पोस्ट नाम का उनका चैनल किसानों के बीच खासा लोकप्रिय है। इस चैनल पर डॉ. श्रवण वर्मीकम्पोस्ट से जुड़ी जानकारियों को वीडियो के माध्यम से शेयर करते हैं। डॉ. श्रवण से अभी तक 25 हजार से अधिक लोग प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वयं वर्मीकम्पोस्ट यूनिट लगाकर अपने खेत से अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं। डॉ. श्रवण यादव के सोशल मीडिया चैनल देखने के लिए, नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करें : यूट्यूब चैनल (YouTube Channel) - "Dr. Organic Farming जैविक खेती" फेसबुक प्रोफाइल (Facebook Profile) : "Dr Organic (Vermicompst) Farm" लिंक्डइन प्रोफाइल (Linkedin Profile) - Dr. Sharvan Yadav

सरकारी प्रोत्साहन

गौरतलब है कि, वर्मीकम्पोस्ट फार्मिंग (Vermicompost Farming) के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर किसानों को लाभ प्रदान कर रही हैं। रासायनिक कीटनाशक मुक्त फसलों की खेती के लिए सरकारों द्वारा किसानों को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है।


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रासायन मुक्त खेती का मकसद लोगों को गंभीर बीमारियों से बचाना है। इसका लाभ यह भी है कि इस तरह की खेती किसानी पर किसानों को लागत भी कम आती है। भारत में सरकारों द्वारा प्रोत्साहन योजनाओं की मदद से जैविक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है।
कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

किसान फसल की कटाई के बाद अपने खेत को किस तरह से तैयार करता है? खाद और जुताई के ज़रिए, कुछ ऐसी प्रक्रिया है जो किसान अपने खेत के लिए अप्रैल के महीनों में शुरू करता है वह प्रतिक्रियाएं निम्न प्रकार हैं: 

कटाई के बाद अप्रैल (April) महीने में खेत को तैयार करना:

इस महीने में रबी की फसल तैयार होती है वहीं दूसरी तरफ किसान अपनी जायद फसलों की  तैयारी में लगे होते हैं। किसान इस फसलों को तेज तापमान और तेज  चलने वाली हवाओ से अपनी फसलों को  बचाए रखते हैं तथा इसकी अच्छी देखभाल में जुटे रहते हैं। किसान खेत में निराई गुड़ाई के बाद फसलों में सही मात्रा में उर्वरक डालना आवश्यक होता है। निराई गुड़ाई करना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि कई बार सिंचाई करने के बाद खेतों में कुछ जड़े उगना शुरू हो जाती है जो खेतों के लिए अच्छा नही होता है। इसीलिए उन जड़ों को उखाड़ देना चाहिए , ताकि खेतों में फसलों की अच्छे बुवाई हो सके। इस तरह से खेत की तैयारी जरूर करें। 

खेतों की मिट्टी की जांच समय से कराएं:

mitti ki janch 

अप्रैल के महीनों में खेत की मिट्टियों की जांच कराना आवश्यक है जांच करवा कर आपको यह  पता चल जाता है।कि मिट्टियों में क्या खराबी है ?उन खराबी को दूर करने के लिए आपको क्या करना है? इसीलिए खेतों की मिट्टियों की जांच कराना 3 वर्षों में एक बार आवश्यक है आप के खेतों की अच्छी फसल के लिए। खेतों की मिट्टियों में जो पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे :फास्फोरस, सल्फर ,पोटेशियम, नत्रजन ,लोहा, तांबा मैग्नीशियम, जिंक आदि। खेत की मिट्टियों की जांच कराने से आपको इनकी मात्रा का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है, कि इन पोषक तत्व को कितनी मात्रा में और कब मिट्टियों में मिलाना है इसीलिए खेतों की मिट्टी के लिए जांच करना आवश्यक है। इस तरह से खेत की तैयारी करना फायेदमंद रहता है । 

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खेतों के लिए पानी की जांच कराएं

pani ki janch 

फसलो के लिए पानी बहुत ही उपयोगी होता है इस प्रकार पानी की अच्छी गुणवत्ता का होना बहुत ही आवश्यक होता है।अपने खेतों के ट्यूबवेल व नहर से आने वाले पानी की पूर्ण रूप से जांच कराएं और पानी की गुणवत्ता में सुधार  लाए, ताकि फसलों की पैदावार ठीक ढंग से हो सके और किसी प्रकार की कोई हानि ना हो।

अप्रैल(April) के महीने में खाद की बुवाई करना:

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई) 

 गोबर की खाद और कम्पोस्ट खेत के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होते हैं। खेत को अच्छा रखने के लिए इन दो खाद द्वारा खेत की बुवाई की जाती है।मिट्टियों में खाद मिलाने से खेतों में सुधार बना रहता है,जो फसल के उत्पादन में बहुत ही सहायक है।

अप्रैल(April) के महीने में हरी खाद की बुवाई

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से गोबर की खाद का ज्यादा प्रयोग नहीं हो रहा है। काफी कम मात्रा में गोबर की खाद का प्रयोग हुआ है अप्रैल के महीनों में गेहूं की कटाई करने के बाद ,जून में धान और मक्का की बुवाई के बीच लगभग मिलने वाला 50 से 60 दिन खाली खेतों में, कुछ कमजोर हरी खाद बनाने के लिए लोबिया, मूंग, ढैंचा खेतों में लगा दिए जाते हैं। किसान जून में धान की फसल बोने से एक या दो दिन पहले ही, या फिर मक्का बोने से 10-15 दिन के उपरांत मिट्टी की खूब अच्छी तरह से जुताई कर देते हैं इससे खेतों की मिट्टियों की हालत में सुधार रहता है। हरी खाद के उत्पादन  के लिए सनई, ग्वार , ढैंचा  खाद के रूप से बहुत ही उपयुक्त होते हैं फसलों के लिए।  

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली फसलें

april mai boi jane wali fasal 

अप्रैल के महीने में किसान निम्न फसलों की बुवाई करते हैं वह फसलें कुछ इस प्रकार हैं: 

साठी मक्का की बुवाई

साठी मक्का की फसल को आप अप्रैल के महीने में बुवाई कर सकते हैं यह सिर्फ 70 दिनों में पककर एक कुंटल तक पैदा होने वाली फसल है। यह फसल भारी तापमान को सह सकती है और आपको धान की खेती करते  समय खेत भी खाली  मिल जाएंगे। साठी मक्के की खेती करने के लिए आपको 6 किलोग्राम बीज तथा 18 किलोग्राम वैवस्टीन दवाई की ज़रूरत होती है। 

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बेबी कार्न(Baby Corn) की  बुवाई

किसानों के अनुसार बेबी कॉर्न की फसल सिर्फ 60 दिन में तैयार हो जाती है और यह फसल निर्यात के लिए भी उत्तम है। जैसे : बेबी कॉर्न का इस्तेमाल सलाद बनाने, सब्जी बनाने ,अचार बनाने व अन्य सूप बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। किसान बेबी कॉर्न की खेती साल में तीन चार बार कर अच्छे धन की प्राप्ति कर सकते हैं। 

अप्रैल(April) के महीने में मूंगफली की  बुवाई

मूंगफली की फसल की बुवाई किसान अप्रैल के आखिरी सप्ताह में करते हैं। जब गेहूं की कटाई हो जाती है, कटाई के तुरंत बाद किसान मूंगफली बोना शुरू कर देते है। मूंगफली की फसल को उगाने के लिए किसान इस को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना शुरु करते हैं। तथा इस फसल के लिए राइजोवियम जैव खाद का  उपचारित करते हैं। 

अरहर दाल की बुवाई

अरहर दाल की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसकी 120 किस्में अप्रैल के महीने में लगाते हैं। राइजोवियम जैव खाद में 7 किलोग्राम बीज को मिलाया जाता है। और लगभग 1.7 फुट की दूरियों पर लाइन बना बना कर बुवाई शुरू करते हैं। बीजाई  1/3  यूरिया व दो बोरे सिंगल सुपर फास्फेट  किसान फसलों पर डालते हैं , इस प्रकार अरहर की दाल की बुवाई की जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां

April maon boi jane wali sabjiyan अप्रैल में विभिन्न विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई की जाती है जैसे : बंद गोभी ,पत्ता गोभी ,गांठ गोभी, फ्रांसबीन , प्याज  मटर आदि। ये हरी सब्जियां जो अप्रैल के माह में बोई जाती हैं तथा कई पहाड़ी व सर्द क्षेत्रों में यह सभी फसलें अप्रैल के महीने में ही उगाई जाती है।

खेतों की कटाई:

किसान खेतों में फसलों की कटाई करने के लिए ट्रैक्टर तथा हार्वेस्टर और रीपर की सहायता लेते हैं। इन उपकरणों द्वारा कटाई की जाती है , काटी गई फसलों को किसान छोटी-छोटी पुलिया में बांधने का काम करता है। तथा कहीं गर्म स्थान जहां धूप पढ़े जैसे, गर्म जमीन , यह चट्टान इन पुलिया को धूप में सूखने के लिए रख देते है। जिससे फसल अपना प्राकृतिक रंग हासिल कर सके और इन बीजों में 20% नमी की मात्रा पहुंच जाए। 

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खेत की जुताई

किसान खेत जोतने से पहले इसमें उगे पेड़ ,पौधों और पत्तों को काटकर अलग कर देते हैं जिससे उनको साफ और स्वच्छ खेत की प्राप्ति हो जाती है।किसी भारी औजार से खेत की जुताई करना शुरू कर दिया जाता है। जुताई करने से मिट्टी कटती रहती है साथ ही साथ इस प्रक्रिया द्वारा मिट्टी पलटती रहती हैं। इसी तरह लगातार बार-बार जुताई करने से खेत को गराई प्राप्त होती है।मिट्टी फसल उगाने योग्य बन जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां:

अप्रैल के महीनों में आप निम्नलिखित सब्जियों की बुवाई कर ,फसल से धन की अच्छी प्राप्ति कर सकते हैं।अप्रैल के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां कुछ इस प्रकार है जैसे: धनिया, पालक , बैगन ,पत्ता गोभी ,फूल गोभी कद्दू, भिंडी ,टमाटर आदि।अप्रैल के महीनों में इन  सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है।  अप्रैल में शादियों के सीजन में भी इन सब्जियों का काफी इस्तेमाल किया जाता है।इन सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए, किसान अप्रैल के महीने में इन सब्जियों की पैदावार करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे इस आर्टिकल द्वारा कटाई के बाद खेत को किस तरह से तैयार करते हैं , तथा खेत में कौन सी फसल उगाते हैं आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली होगी। यदि आप हमारी दी हुई खेत की तैयारी की जानकारी से संतुष्ट है, तो आप हमारे इस आर्टिकल को सोशल मीडिया तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं.

प्राकृतिक खेती ही सबसे श्रेयस्कर : 'सूरत मॉडल'

प्राकृतिक खेती ही सबसे श्रेयस्कर : 'सूरत मॉडल'

प्राकृतिक खेती का सूरत मॉडल

गुजरात के सूरत में प्राकृतिक खेती के विषय पर एक सम्मलेन का आयोजन हुआ, जिसको विडियो कान्फरेंसिंग के द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संबोधित करते हुए 'सूरत मॉडल' से सीख लेने को कहा. प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा कि "हर पंचायत के 75 किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने में सूरत की सफलता पूरे देश के लिए एक मिसाल बनने जा रही है।" “आजादी के 75 साल के निमित्त, देश ने ऐसे अनेक लक्ष्यों पर काम करना शुरू किया है, जो आने वाले समय में बड़े बदलावों का आधार बनेंगे। अमृतकाल में देश की गति–प्रगति का आधार सबका प्रयास की वो भावना है, जो हमारी इस विकास यात्रा का नेतृत्व कर रही है।" “जब आप प्राकृतिक खेती करते हैं तो आप धरती माता की सेवा करते हैं, मिट्टी की क्वालिटी, उसकी उत्पादकता की रक्षा करते हैं। जब आप प्राकृतिक खेती करते हैं, तो आप प्रकृति और पर्यावरण की सेवा करते हैं। जब आप प्राकृतिक खेती से जुड़ते हैं, तो आपको गौमाता की सेवा का सौभाग्य भी मिलता है।” आखिर प्रधानमंत्री क्यों प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं. सूरत के हर पंचायत से 75 किसानों को इस पद्धति से खेती करने के लिए चुना गया है. वर्तमान में 550 से अधिक पंचायतों के 40 हजार से ज्यादा किसान प्राकृतिक कृषि को अपना चुके हैं.

क्या है प्राकृतिक खेती (Natural Farming) ?

प्राकृतिक खेती प्राचीन परंपरागत खेती है. यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है. इसमें रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है. प्रकृति में पाए जाने वाले तत्वों से ही खेती की जाती है. उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है. कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं. प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है.

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क्यों है प्राकृतिक खेती की आवश्यकता ?

खेती में हानीकारक कीटनाशकों के उपयोग के कारन लगातार हानी देखने को मिल रहा है. वही खेती की लागत भी बढ़ रही है. रासायनिक खेती से जमीन के प्रकृति में बदलाव हो रहा है. रासायनिक खेती के उत्पादन के प्रयोग से नित्य नई बिमारीयों से लोग ग्रसित हो रहे हैं. प्राकृतिक खेती से उपजाये खाने पीने की चीजों में खनिज तत्वों, जैसे जिंक व आयरन की मात्रा अधिक पाई जाती है, जो मानव शारीर के लिए लाभदायक होता है. रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से जहाँ खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो देती हैं वहीं इसका सेवन हानिकारक होता है. मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होती जाती है. भारत खाद्य पदार्थों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है, लेकिन अगर इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाला जायेगा,तो भविष्य में खाद्य सुरक्षा कमजोर हो सकती है.

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भारत की भौगोलिक विविधता के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में मिट्टी और मौसम भी अलग अलग है. इसी के कारण परंपरागत खेती भी भिन्न भिन्न प्रकार से किये जाते हैं. प्रकृति के अनुकूल खेती से हम मिट्टी, पानी, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को संरक्षित कर सकेंगे. इसके प्रचार प्रसार के लिए प्राप्त अनुभवों को किसानों तक ले जाने की आवश्यकता है. इसमे हमारे कृषि वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसकी चर्चा करते हुये कहा कि गंगा नदी की सफाई के लिए चल रहे नमामि गंगे कार्यक्रम के साथ प्राकृतिक खेती को भी जोड़ा गया है. इसके तहत नदी के दोनों किनारे प्राकृतिक खेती के लिए पांच किलोमीटर का गलियारा बनाया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर परंपरागत खेती को बढ़ावा देने के लिए अधिक सक्रियता की आवश्यकता है.
९०० गावों को गोद ले भारत के कृषि विज्ञान केंद्र करेंगे पूसा डीकम्पोज़र व वर्मीकम्पोस्ट को प्रोत्साहित

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देश में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके; Krishi Vigyan Kendra - KVK) द्वारा माइक्रोबियल (सूक्ष्मजीव) आधारित कृषि अपशिष्ट प्रबंधन एवं वर्मीकम्पोस्टिंग (कृमि उर्वरक; केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost)) को प्रदर्शित एवं इसको प्रोत्साहन देने हेतु ९०० गांवों को गोद लिया है। गत एक महीने में स्वछता अभियान के चलते २२ हजार से ज्यादा किसानों के समक्ष कृषि अवशेषों (पराली आदि) के सूक्ष्मजीव आधारित डीकंपोजर एवं कृषि अवशेषों व अन्य जैविक कचरे को कृमि उर्वरक में परिवर्तन से संबंधित तकनीकों को प्रदर्शित किया गया। किसानों के साथ - साथ ३००० स्कूली बच्चों में वर्मी कम्पोस्टिंग (vermicomposting) के सम्बंध में जागरूकता पैदा की गई।

वर्मी कम्पोस्ट क्या होता है ?

मृदा के स्वास्थ्य एवं फसल की पैदावार में सुधार के लिए बेहतर रूप से अपघटन के उपरांत प्रयोग किए जाने पर फसल अवशेष कीमती जैविक पदार्थ हैं। ज्यादातर फसल अवशेषों की प्राकृतिक उर्वरक बनने की प्रक्रिया की दीर्घ अवधि की वजह से किसान इसे जलाकर नष्ट करने का कार्य करते हैं। इसके परिणामस्वरूप एक कीमती संपत्ति की बर्बादी के अतिरिक्त इससे पर्यावरण भी दूषित होता है।

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कंपोस्टिंग तकनीकें “पूसा डीकंपोजर(PUSA Decomposer) जैसे कुशल सूक्ष्मजीवी अपघटक का प्रयोग करके अपघटन प्रक्रिया को तीव्र करती हैं। जिससे कम समय में अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक उर्वरक हासिल होती है। अवशेषों की राख के स्थान पर इससे बने जैविक उर्वरक मिट्टी में कार्बनिक कार्बन एवं अन्य जरूरी पोषक तत्वों को पौधों के लिए प्रदान करवाता है। साथ ही, मिट्टी में सूक्ष्मजीव आधारित गतिविधि को बढ़ावा देता है। फसल के अवशेष एवं अन्य कृषि अपशिष्ट जैसे कि गाय के गोबर एवं रसोई के कचरे आदि के आंशिक रूप से सड़ने के उपरांत इसमें केंचुओं की बेहतर प्रजातियों का उपयोग करके इन्हें कृमि उर्वरक में परिवर्तित किया जा सकता है। कृमि उर्वरक पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की भरपाई करता है, मृदा के गुणकारी सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देता है, एवं मिट्टी के स्वास्थ्य में बेहतरी करता है। साथ ही, इसके अतिरिक्त वर्मी कम्पोस्ट को बाजार में बेचकर भी मुनाफा किया जा सकता है।
इच्छुक किसान इस तारीख से पहले करें आवेदन, मिलेगा 1 लाख रुपए का इनाम

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जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार अलग अलग तरह से किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। केंद्र व राज्य सरकार अलग अलग योजनाओं के तहत किसानों को भिन्न-भिन्न प्रकार की सहूलियत व सब्सिडी देकर जैविक खेती को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है। अलग अलग राज्यों में अलग अलग तरह का प्रोत्साहन किसानों को दिया जा रहा है। इसी कड़ी में राजस्थान सरकार ने बड़े स्तर पर किसानों को जैविक खेती से जोड़ने के लिए तीन किसानों को सर्वश्रेष्ठ अवार्ड देने का ऐलान भी किया गया है।

किस तरीके के किसान होंगे इस योजना के लिए पात्र

राजस्थान कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ गुण राम मटोरिया बताते हैं, कि किसान, जो पांच वर्षों से कृषि उद्यानिकी फसलों में जैविक तरीके से उत्पादन कर रहे हो तथा पिछले दो वर्षों से उनके जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण हो रहा हो। वैसे किसान इस योजना के लिए पात्र होंगे या उनको इस योजना के पात्रता में वरीयता दी जाएगी। इतना ही नहीं है, इसके पात्रता के लिए मटोरिया बताते हैं, कि जिन किसानों के खेत में जैविक खेती के लिए वर्मी कम्पोस्ट इकाई हो या स्वयं के द्वारा तैयार किए गए जैव कीटनाशक, जैव उर्वरक का उपयोग कर फसल उगाते हों। इसके अलावा जो भी किसान जैविक खेती संबंधी कोई नया प्रयोग करता हो या फिर राजकीय संस्थान से प्रमाणित हो वह किसान भी इस अवार्ड के लिए पात्र माने जाएंगे।


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कितने किसानों का होगा चयन

गौरतलब है, कि इस अवॉर्ड के लिए इच्छुक किसान 10 दिसंबर तक आवेदन कर पाएंगे। उनके आवेदन के बाद जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक टीम गठित की जाएगी जो जिले स्तर पर मिलने वाले आवेदन को देख कर एक किसान का चयन करेंगे। अलग अलग जिलों से इस अवॉर्ड के लिए तीन किसानों का चयन किया जाएगा। चयनित किसानों को एक-एक लाख का नकद इनाम भी दिया जाएगा।

जैविक खेती से है कई फायदे

राज्य व केंद्र सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए नए-नए तकनीक ले कर आ रही है, जिससे किसान भी लाभान्वित हो रहे हैं। यह जानकर आश्चर्य होगा कि किसानों के द्वारा लगातार रासायनिक खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम हो जाती है। जिससे किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। रासायनिक खाद के प्रयोग से उगाई गयी सब्जी व फल खाने के बाद लोगों को कई बीमारी से भी गुजरना पड़ रहा है। इसलिए केंद्र व राज्य सरकार किसान व आम लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए जैविक खेती पर काफी जोर दे रही है और इस प्रकार के कई प्रोत्साहन भी किसानों को दे रही है। जिससे किसान का जैविक खेती की तरफ रुझान बढ़ सके।