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राजस्थान के सीताराम सेंगवा बागवानी से कमा रहे हैं लाखों का मुनाफा

राजस्थान के सीताराम सेंगवा बागवानी से कमा रहे हैं लाखों का मुनाफा

पूरा विश्व आज जल के अभाव से प्रभावित है, किसानों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है। राजस्थान के ज्यादातर क्षेत्रों में जल की कमी के बावजूद भी कई किसान फसलों से अच्छी खासी पैदावार प्राप्त कर रहे हैं। इन किसानों में जोधपुर के सीताराम सेंगवा भी सम्मिलित हैं। ४२ वर्षीय सीताराम सेंगवा ने २२ की आयु से खेती शुरू कर एक बड़ी उपलब्धी हासिल की है। कृषि एवं बागवानी में नाम व धन अर्जन के बाद वो संतुष्ट हैं कि उन्होंने सरकारी नौकरी की जगह कृषि को प्राथमिकता दी है। किसान सीताराम सेंगवा खेती के लिए ड्रिपस्प्रिंकलर सिंचाई के माध्यम से बूंद-बूंद जल का उपयोग कर उम्दा किस्म के पौधे तैयार कर रहे हैं। फिलहाल उनके द्वारा नर्सरी में तैयार उम्दा पौधे पुरे देश में लगाये जा रहे हैं। उनकी इस सफलता में भाकृअनुप - केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (ICAR – Central Arid Zone Research Institute) के वैज्ञानिकों का भी सहयोग रहा है। यही कारण है कि आज कृषि में मुनाफा एवं बागवानी का नुस्खा उपयोग कर सीताराम सेंगवा २० लाख वार्षिक आय अर्जित कर रहे हैं।


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सीताराम सेंगवा राजस्थान राज्य के जोधपुर जनपद की भोपालगढ़ तहसील के पालड़ी राणावतन गांव में कृषि कार्य कर रहे हैं। सीताराम सेंगवा ने २५ बीघा खेत के साथ बेहतरीन पौधों की नर्सरी स्थापित की है। वह अपनी पत्नी, बेटों एवं बेटियों के सहयोग से आज बेहतर आजीविका के लिए अच्छा मुनाफा कर पा रहे हैं। एक वक्त वह भी था जब विघालय से शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत उनके सारे मित्र सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गए थे। लेकिन सन २००१ में भी सीताराम ने खेती को ही प्राथमिकता दी थी। आज सीताराम सेंगवा २२ वर्ष की आयु से खेती के सफर में सफलता हासिल कर राज्य सरकार एवं वैज्ञानिकों से विभिन्न प्रकार के सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं।

तरह तरह की किस्म के पौधे हैं सीताराम सेंगवा की नर्सरी में

सीताराम सेंगवा २०१८ से पूर्व केवल पारंपरिक खेती ही करते थे, लेकिन वर्ष २०१८ में काजरी की वैज्ञानिक अर्चना वर्मा के द्वारा बागवानी सम्बंधित प्रशिक्षण लेने के उपरांत नर्सरी का कार्य भी आरम्भ कर दिया था। कृषि के साथ-साथ नर्सरी प्रबंधन में वैज्ञानिक तकनीकों की सहायता से सीताराम सेंगवा ने हजारों उम्दा किस्म के पौधे तैयार किए। आज उनकी नर्सरी में चंदन के २ हजार, शीशम के ३ हजार, बेर के १० हजार, ताइवान पपीते के ५ हजार, सहजन के १० हजार, आंवला के ३ हजार, अमरूद के २५००, अनार के ३ हजार, गोभी के २० हजार, टमाटर के २० हजार, बैंगन के २० हजार, खेजड़ी के ७ हजार, गूगल धूप के १५००, करोंदा के २ हजार, नीम के २ हजार, मालाबार नीम के ५ हजार एवं नींबू के ५ हजार उम्दा किस्म के पौधे बिक्री हेतु उपलब्ध हैं। उन्नत बीजों से उत्पादित ये पौधे ही सीताराम सेंगवा के सफल होने की वजह हैं। यही वजह है कि पिछले वर्ष उन्होंने ७० से ८० हजार पौधे विक्रय किये हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा एवं राजस्थान के जालौर, सीकर,जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, नागौर व बालोतरा के किसान भी बेहतरीन किस्म के पौधे खरीदने के लिए आते रहते हैं। सीताराम सेंगवा केवल उम्दा किस्म के पौधे उत्पादित करने के साथ साथ ही होम डिलीवरी की माध्यम से लेने वाले के पास भी पहुँचाते हैं।


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सीताराम सेंगवा ने स्वयं आत्मनिर्भर बन अन्य किसानों के लिए भी रोजगार का अवसर प्रदान किया

सीताराम सेंगवा कृषि एवं बागवानी के माध्यम से आत्मनिर्भर बन पाए हैं, साथ ही गांव के कई किसानों व महिलों को भी रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में उनका यह सफर बेहद संघर्षमय एवं चुनौतीपूर्ण रहा है। खेती में सीताराम सेंगवा के सराहनीय योगदान के लिए काजरी संस्थान ने उनकी सराहना करते हुए सम्मानित किया है। विभिन्न उपलब्धियां हासिल करने के उपरांत सीताराम को गर्व है कि वह एक सफल किसान हैं। सीताराम कहते हैं कि उनके अधिकतर मित्रगण सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं, लेकिन वे मेरे कार्य की काफी सराहना करते हैं। सीताराम के मित्रों का कहना है कि सीताराम द्वारा खेती करने का निर्णय सही व उत्तम था। साथ ही, सीताराम का भी यही मत है कि नौकरी की अपेक्षा उनके द्वारा कृषि को प्राथमिकता देना बेहतरीन निर्णय था।
स्प्रिंकलर सिस्टम यानी कम पानी में खेती

स्प्रिंकलर सिस्टम यानी कम पानी में खेती

फव्वारे छोटे से बड़े क्षेत्रों को कुशलता से कवरेज प्रदान करते हैं तथा सभी प्रकार की संपत्तियों पर उपयोग के लिए उपयुक्त हैं। यह लगभग सभी सिंचाई वाली मिट्टियों के लिये अनुकूल हैं क्योंकि फव्वारे विस्तृत विसर्जन क्षमता में उपलब्ध हैं। 

कृषि के लिए सिंचाई बहुत आवश्यक होती है बिना सिंचाई के कृषि में एक दाना भी उपजाना संभव नहीं है। जिन क्षेत्रों में भूमिगत जल या नदियों-नहरों की अच्छी व्यवस्था है वहां तो सिंचाई आराम से की जा सकती है, लेकिन बहुत से क्षेत्रों में न तो भूमिगत जल की उपलब्धता है और न ही नदी या नहर की व्यवस्था है। 

ऐसे में सिंचाई अति कठिन कार्य हो जाता है। बहुत कम पानी के प्रयोग से ही सिंचाई करनी होती है। ऐसे क्षेत्रों के लिए छिड़काव सिंचाई प्रणाली यानी स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई प्रणाली बेहद कारगर साबित हो सकती हैं। सिंचाई की इन पद्धतियों से कम पानी में अच्छी उपज ली जा सकती है।

छिड़काव सिंचाई प्रणाली

स्प्रिंकलर सिस्टम 

 छिड़काव सिंचाई, पानी सिंचाई की एक विधि है, जो वर्षा के समान है। पानी पाइप के माध्यम से आमतौर पर पम्पिंग द्वारा सप्लाई किया जाता है। 

वह फिर स्प्रे हेड के माध्यम से हवा और पूरी मिट्टी की सतह पर छिड़का जाता है जिससे पानी भूमि पर गिरने वाले पानी की छोटी बूँदों में बंट जाता है। फव्वारे छोटे से बड़े क्षेत्रों को कुशलता से कवरेज प्रदान करते हैं तथा सभी प्रकार की संपत्तियों पर उपयोग के लिए उपयुक्त हैं। यह लगभग सभी सिंचाई वाली मिट्टियों के लिये अनुकूल हैं। 

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लगभग सभी फसलों के लिए उपयुक्त हैं। जैसे गेहूं, चना आदि के साथ सब्जियों, कपास, सोयाबीन, चाय, कॉफी व अन्य चारा फसलों के लिए। 

ड्रिप सिंचाई प्रणाली

स्प्रिंकलर सिस्टम 

 ड्रिप सिंचाई प्रणाली यानी टपक सिंचाई फसल को बूंदों के माध्यम से सींचती है। इसमें छोटी नलियों के माध्यम से पंप द्वारा पानी पाइपोें तक पहुंचता है। इनमें लगे नाजिल की मदद से पौधों और फसल को बूंद बूंद कर पानी पहुंचता है।

जितने पानी की जरूरत है उतनी मात्रा में और नियत लक्ष्त तक ही पानी पहुंचाने में यह विधि बेहद कारगर है। पानी सीधे पौधे की जड़ों में आपूर्ति करता है। 

पानी और पोषक तत्व उत्सर्जक से, पौधों की जड़ क्षेत्र में से चलते हुए गुरुत्वाकर्षण और केशिका के संयुक्त बलों के माध्यम से मिट्टी में जाते हैं। इस प्रकार, पौधों की नमी और पोषक तत्वों की कमी को तुरंत ही पुन: प्राप्त किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करते हुए कि पौधे में पानी की कमी नहीं होगी। 

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ड्रिप सिंचाई आज की जरूरत है, क्योंकि प्रकृति की ओर से मानव जाति को उपहार के रूप में मिली जल असीमित एवं मुफ्त रूप से उपलब्ध नहीं है। विश्व जल संसाधनो में तेजी से ह्रास हो रहा है। 

ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लाभ

स्प्रिंकलर सिस्टम

पैदावार में 150 प्रतिशत तक वृद्धि। बाढ़ सिंचाई की तुलना में 70 प्रतिशत तक पानी की बचत। अधिक भूमि को इस तरह बचाये गये पानी के साथ सिंचित किया जा सकता है। फसल लगातार,स्वस्थ रूप से बढ़ती है और जल्दी परिपक्व होती है।

शीघ्र परिपक्वता से उच्च और तेजी से निवेश की वापसी प्राप्त् होती है। उर्वरक उपयोग की क्षमता 30 प्रतिशत बढ़ जाती है। उर्वरक, अंतर संवर्धन और श्रम का मूल्य कम हो जाता है। उर्वरक लघु सिंचाई प्रणाली के माध्यम से और रसायन उपचार दिया जा सकता है। बंजर क्षेत्र, नमकीन, रेतीली एवं पहाड़ी भूमि को भी उपजाऊ खेती के अधीन लाया जा सकता है।

90 प्रतिशत तक मिलती है छूट

ड्रिप एवं स्प्रिंकलर ​सिस्टम लगाने पर राज्यों में अलग अलग छूट की व्यवस्था की है। उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान सहित कई राज्यों में इस पर केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से 90 प्रतिशत तक अनुदान की व्यवस्था है। किसान हर जनपद स्थित उद्यान विभाग में पंजीकरण कराकर इस योजना का लाभ ले सकते हैं।

ड्रिप सिंचाई यानी टपक सिंचाई की संपूर्ण जानकारी

ड्रिप सिंचाई यानी टपक सिंचाई की संपूर्ण जानकारी

किसान भाइयों आपको यह जानकर अवश्य आश्चर्य होगा कि हमारे देश में पानी का सिंचाई 85 प्रतिशत हिस्सा खेती में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बावजूद हमारी खेती 65 प्रतिशत भगवान भरोसे रहती है यानी बरसात पर निर्भर करती है। 

कहने का मतलब केवल 35 प्रतिशत खेती को सिंचाई के लिए पानी मिल पाता है। अब तेजी से बढ़ रहे औद्योगीकरण व शहरी करण से खेती के लिए पानी की किल्लत रोज-ब-रोज बढ़ने वाली है। इसलिये सरकार ने जल संरक्षण योजना चला रखी है। 

हमें पानी की ओर से सतर्क हो जाना चाहिये। इसके अलावा जिन किसान भाइयों को नकदी एवं व्यावसायिक फसलें लेनी होतीं हैं उन्हें पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है। 

परम्परागत सिंचाई के साधनों नहरों, नलकूपों, कुएं से सिंचाई करने से 30 से 35 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है। वैज्ञानिकों ने फल, सब्जियों व मसाला वाली उपजों की सिंचाई के लिए ड्रिप का विकल्प खोजा है, इसके अनेक लाभ हैं। आइये ड्रिप इरिगेशन के बारे में विस्तार से जानते हैं।

ड्रिप सिंचाई क्या है? drip irrigation meaning in hindi?

ड्रिप सिंचाई एक ऐसा सिस्टम है जिससे खेतों में पौधों को करीब से उनकी जड़ों तक बूंद-बूंद करके पानी पहुंचाने का काम करता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि कम पानी में अधिक से अधिक फसल को सिंचित करना है। 

ड्रिप इरिगेशन में कुएं से पानी निकालने वाले मोटर पम्प से  हेडर असेम्बली के माध्यम से मेनलाइनव सबमेन को पॉली ट्यूब से जोड़कर खेतों को आवश्यकतानुसार पानी पहुंचाया जाता है, जिसमें पौधों की दूरी के हिसाब से पानी को टपकाने के छिद्र बने होते हैं। उनसे पौधों की सिंचाई की जाती है। 

इसके अलावा खेत में खाद डालने के लिए भी इस सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। हेडर असेम्बली में बने टैंक में पानी में खाद डाल दी जाती है। 

जो पाइपों के सहारे पौधों की जड़ों तक पहुंच जाती है। इससे खेती बहुत अच्छी होती है और किसान भाइयों को इससे अनेक लाभ मिलते हैं।  

ड्रिप सिंचाई के सिस्टम में कौन-कौन से उपकरण होते हैं? 

किसान भाइयों यह ऐसा सिस्टम है कि खेत में फसल के समय पौधों के किनारे-किनारे इसके पाइपों को फैला दिया जाता है और उससे पानी दिया जाता है। 

फसल खत्म होने या गर्मी अधिक होने पर इस सिस्टम को समेट कर छाया में साफ सफाई करके सुरक्षित रख दिया जाता है। आइये जानते हैं कि ड्रिप सिंचाई का चित्र कसे होता है और इसमें कौन-कौन से उपकरण होते हैं।

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ड्रिप सिंचाई का चित्र  


हेडर असेम्बली : हेडर असेम्बली से पानी की गति को नियंत्रित किया जाता है। इसमें बाईपास, नॉन रिटर्न वाल्व, एयर रिलीज शामिल होते हैं।

फिल्टर्स : जैसा नाम से ही पता चलता है कि यह पानी को फिल्टर करता है। इन फिल्टर्स में स्क्रीन फिल्टर, सैंड फिल्टर, सैंड सेपरेटर, सेटलिंग टैंक आदि छोटे-छोटे उपकरण होते हैं। 

पानी में रेत अथवा मिट्टी का फिल्टर करने के लिए हाइड्रोसाइक्लोन फिल्टर का उपयोग किया जाता है। पानी में काई, पौधों के सड़े हुए पत्ते, लकड़ी व महीन कचरे की सफाई के लिए सैंड फिल्टर का प्रयोग किया जाना चाहिये। 

यदि पानी साफ दिख रहा हो तब भी उसके तत्वों के शुद्धिकरण के लिए स्क्रीन फिल्टर का इस्तेमाल किया जाना चाहिये।

खाद व रसायन देने के उपकरण: ड्रिप इरिगेशन द्वारा उर्वरकों व खादों को इस सिस्टम में लगे वेंचूरी और फर्टिलाइजर टैंक से पौधों तक पहुंचाया जाता है। वेंचूरी दाब के अंतर पर चलने वाला उपकरण है। 

खाद व रसायन इसके द्वारा उचित ढंग से दिये जा सकते हैं। इस सिस्टम से खाद व रसायन को घोल कर पानी में इसकी स्पीड के अनुसार डाले जाते हैं। 

इस सिस्टम से एक घंटे में 60 से 70 लीटर की गति से खाद व रसायन दिये जा सकते हैं। फर्टिलाइजर टैंक में घुली हुई खाद को भर कर प्रेशर कंट्रोल करके सिस्टम में डाल दी जाती है, जो पाइपों के माध्यम से पौधों तक पहुंचती है।

मेन लाइन: मेन लाइन पम्प से सबमेन यानी खेत में लगे पाइपों तक पानी पहुंचाने का काम करती है।

सब मेन: सबमेन ही पौधों तक पहुंचाने का एक उपकरण है। मेनलाइन से पानी लेकर सबमेन लिटरल या पॉलीट्यूब तक पानी पहुंचाती है। ये पीवीसी या एचडीपीपीई पाइप की होती है। 

सबमेन को जमीन के अंदर कम से कम डेढ़ से दो फीट की गहराई पर रखते हैं। इसमें पानी की स्पीड और प्रेशर कंट्रोल करने के लिए शुरू में वॉल्व और आखिरी में फ्लश वॉल्व लगाया जाता है।

वाल्व: पानी की स्पीड यानी गति और प्रेशर यानी दबाव को कंट्रोल करने के लिए सबमेन के आगे वॉल्व लगाये जाते हैं। सबमेन के शुरू में एयर रिलीज और वैक्यूम रिलीज लगाये जाने जरूरी होते हैं। इनके न लगाने से पम्प बंद करने के बाद हवा से मिट्टी धूल आदि अंदर भर जाने से ड्रिपर्स के छिद्र बंद हो सकते हैं।

लेटरल अथवा पॉली ट्यूब

सबमेन का पानी पॉलीट्यूब द्वारा पूरे खेत में पहुंचाया जाता है। प्रत्येक पौधे के पास आवश्यकतानुसार पॉलीट्यूब के ऊपर ड्रिपर लगाया जाता है। लेटरल्स एलएलडीपीई से बनाये जाते हैं।

एमीटर्स या ड्रिपर: ड्रिप इरिगेशन का यह प्रमुख उपकरण है। ड्रिपर्स का ऑनलाइन या इनलाइन की प्रति घंटे की स्पीड और संख्या की अधिकतम जरूरत के अनुसार निश्चित किया जाता है। 

ऊबड़-खाबड़ वाली जमीन पर कॉम्पनसेटिंग ड्रिपर्स लगाये जाते हैं। मिनी स्प्रिंकलर या जेट्स ऐसा उपकरण है जिसे एक्सटेंशन ट्यूब की सहायता से पॉलीट्यूब पर लगाया जा सकता है।

ड्रिप इरिगेशन से मिलने वाले लाभ


पहला लाभ यह होता है कि इस सिंचाई से बंजर, ऊसर, ऊबड़-खाबड़ वाली जमीन, क्षारयुक्त, शुष्क खेती वाली, पानी के कम रिसाव वाली और अल्प वर्षा की खारी एवं समुद्र तटीय जमीन पर भी फसल उगाई जा सकती है।

ड्रिप सिंचाई से पेड़-पौधों को रोजाना पर्याप्त पानी मिलता है। फसलों की बढ़ोत्तरी और पैदावार दोनों में काफी बढ़ोत्तरी होती है।

ड्रिप सिंचाई से फल, सब्जी और अन्य फसलों की पैदावार में 20 से 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है।

इस तरह की सिंचाई में एक भी बूंद बरबाद न होने से 30 से 60 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। इससे किसान भाइयों का पैसा बचता है और भूजल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।

फर्टिगेशन में ड्रिप सिंचाई अत्यधिक कारगर है। इस सिंचाई से उर्वरकों व रासायनिकों के पोषक तत्व सीधे पौधों के पास तक पहुंचते हैं। 

इससे खाद व रासायनिक की 40 से 50 प्रतिशत तक बचत होती है। महंगी खादों में यह बचत किसान भाइयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

खरपतवार नियंत्रण में भी यह सिंचाई प्रणाली फायदेमंद रहती है। पौधों की जड़ों में सीधे पानी पहुंचने के कारण आसपास की जमीन सूखी रहती है जिससे खरपतवार के उगने की संभावना नही रहती है।

ड्रिप इरिगेशन प्रणाली से सिंचाई किये जाने से पौधे काफी मजबूत होते है। इनमें कीट व रोग आसानी से नहीं लगते हैं। इससे किसान भाइयों को कीटनाशक का खर्चा कम हो जाता है।

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किस तरह की खेती में अधिक लाभकारी है ड्रिप सिंचाई

ड्रिप इरिगेशन सब्जियों व फल तथा मसाले की खेती के लिए अधिक लाभकारी होती है। इस तरह की सिंचाई उन फसलों में की जाती है जो पौधे दूर-दूर लाइन में लगाये जाते हैं।गेहूं की फसल में यह सिंचाई कारगर नहीं है

कैसे किया जाता है ड्रिप सिंचाई सिस्टम का मेंटेनेंस

ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का रखरखाव यानी मेंटेनेंस बहुत आवश्यक है। इससे यह सिस्टम 10 साल तक चलाया जा सकता है।

रोजाना पम्प को चालू करने के बाद प्रेशर के ठीक होने के पर सैंडफिल्टर, हायड्रोसाइक्लोन को चेक करते रहना चाहिये। समय-समय पर इन फिल्टर्स की साफ सफाई करते रहना चाहिये।

खेतों में पाइप लाइन की जांच पड़ताल करनी चाहिये। मुड़े पाइपों को सीधा करें। टूटे-फूटे पाइपों की मरम्मत करें या बदलें।

पाइपों में जाने वाले पानी का प्रेशर देखें, उसे नियंत्रित करें ताकि पूरे खेत में पानी पहुंच सके। ड्रिपर्स से गिरने वाले पानी को देखें कि पानी आ रहा है या नहीं।

लेटरल यानी इनलाइन के अंतिम छोर पर लगे फ्लश वॉल्व को खोलकर थोड़ी देर तक पानी को गिरायें।

खेत में पानी की सिंचाई हो जाने के बाद लेटरल या पॉली ट्यूब को समेट कर छाया में रख दें।

समय-समय पर हेडर असेम्बली की चेकिंग करके छोटी-मोटी कमियों को दूर करते रहना चाहिये। इससे सिस्टम की मरम्मत में बहुत कम खर्चा आयेगा।

सब्सिडी मिलती है

ड्रिप इरिगेशन सिस्टम थोड़ा महंगा है। छोटे किसानों की क्षमता से बाहर की बात है। देश में आज भी 75 प्रतिशत छोटे किसान हैं। इन्ही छोटे किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने की जरूरत है।

भारत सरकार द्वारा छोटे किसानों की मदद के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना चलाई गयी है। इसके तहत छोटे किसानों को ड्रिप सिंचाई सिस्टम को खरीदने के लिए सब्सिडी दी जाती है। 

जानकार लोगों का कहना है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला किसानों को 60 से 65 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है जबकि सामान्य किसानों 50 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है।  

केन्द्र सरकार की यह योजना पूरे देश में लागू है लेकिन प्रत्येक राज्य अपने-अपने नियम कानून के अनुसार इसे लागू  करते हैं। 

इसलिये किसान भाई अपने-अपने राज्य के संबंधित विभाग के अधिकारियों से सम्पर्क कर पूरी जानकारी लेकर लाभ उठायें।

ड्रिप सिंचाई सिस्टम की लागत

अनुभवी किसानों या खरीदने वाले किसानों से मिली जानकारी के अनुसार यह सिस्टम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 1.25 से लेकर 1.50 लाख रुपये तक में आता है। 

इसमें पाइप की आईएसआई मार्का व क्वालिटी के कारण अंतर आता है। इसमें 50 प्रतिशत तक अनुदान मिल सकता है।

देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए

देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए

नई दिल्ली। - लोकेन्द्र नरवार देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी तमाम योजनाएं संचालित हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाली कैबिनेट में देश के किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किसानों व कृषि के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाई गईं हैं। इन योजनाओं के जरिए फसल उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ किसानों को आर्थिक मदद प्रदान की जा रही है। इसके अलावा देश के किसानों को अपना फसल उत्पादन बेचने के लिए एक अच्छा बाजार प्रदान किया जा रहा है। किसानों के लिए चलाई जा रहीं तमाम कल्याणकारी योजनाओं में समय के साथ कई सुधार भी किए जाते हैं। जिनका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को ही फायदा मिलता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर - ICAR) द्वारा ''आजादी के अमृत महोत्सव'' पर एक पुस्तक का विमोचन किया है। इस पुस्तक में देश के 75000 सफल किसानों की सफलता की कहानियों को संकलित किया गया है, जिनकी आमदनी दोगुनी से अधिक हुई है।


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आइए जानते हैं किसानों के लिए संचालित हैं कौन-कौन सी योजनाएं....

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना ( PM-Kisan Samman Nidhi ) - इस योजना के अंतर्गत किसानों के खाते में सरकार द्वारा रुपए भेजे जाते हैं। ◆ ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई योजना - इस योजना के माध्यम से किसान पानी का बेहतर उपयोग करते हैं। इसमें 'प्रति बूंद अधिक फसल' की पहल से किसानों की लागत कम और उत्पादन ज्यादा की संभावना रहती है। ◆ परम्परागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana (PKVY)) - इस योजना के जरिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाता है। ◆ प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना (पीएम-केएमवाई) - इस योजना में किसानों को वृद्धा पेंशन प्रदान करने का प्रावधन है। ◆ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana - PMFBY) - इस योजना के अंतर्गत किसानों की फसल का बीमा होता है। ◆ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) - इसके अंतर्गत किसानों को सभी रबी की फसलों व सभी खरीफ की फसलों पर सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मूल्य प्रदान किया जाता है। ◆ मृदा स्वास्थ्य कार्ड- (Soil Health Card Scheme) इसके अंतर्गत उर्वरकों का उपयोग को युक्तिसंगत बनाया जाता है। ◆ कृषि वानिकी - 'हर मोड़ पर पेड़' की पहल द्वारा किसानों की अतिरिक्त आय होती है। ◆ राष्ट्रीय बांस मिशन - इसमें गैर-वन सरकारी के साथ-साथ निजी भूमि पर बांस रोपण को बढ़ावा देने, मूल्य संवर्धन, उत्पाद विकास और बाजारों पर जोर देने के लिए काम होता है। ◆ प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण - इस नई नीति के तहत किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कराने का प्रावधान है। ◆ एकीकृत बागवानी विकास मिशन - जैसे मधुमक्खी पालन के तहत परागण के माध्यम से फसलों की उत्पादकता बढ़ाने और आमदनी के अतिरिक्त स्त्रोत के रूप में शहद उत्पादन में वृद्धि होती है। ◆ किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) - इसके अंतर्गत कृषि फसलों के साथ-साथ डेयरी और मत्स्य पालन के लिए किसानों को उत्पादन ऋण मुहैया कराया जाता है। ◆ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana (PMKSY))- इसके तहत फसल की सिंचाई होती है। ◆ ई-एनएएम पहल- यह पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म के लिए होती है। ◆ पर्याप्त संस्थागत कृषि ऋण - इसमें प्रवाह सुनिश्चित करना और ब्याज सबवेंशन का लाभ मिलता है। ◆ कृषि अवसंरचना कोष- इसमें एक लाख करोड़ रुपए के आकार के साथ बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है। ◆ किसानों के हित में 10 हजार एफपीओ का गठन किया गया है। ◆ डिजिटल प्रौद्योगिकी - कृषि मूल्य श्रंखला के सभी चरणों में डिजिटल प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग पर जरूर ध्यान देना चाहिए  
स्प्रिंकल सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए ९० प्रतिशत तक अनुदान दे रही है सरकार

स्प्रिंकल सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए ९० प्रतिशत तक अनुदान दे रही है सरकार

खरीफ फसलों के समय के गुजरने के बाद रबी फसलों की तैयारी शुरू हो जाती है, खरीफ की फसलों की अपेक्षा में रबी फसलों को जल की आवश्यकता कम मात्रा में होती है, 

इसलिए सरकार किसानो को स्प्रिंकल सिंचाई (Irrigation sprinkler यानि सिंचाई छिड़काव या बौछारी सिंचाई या फव्वारा सिंचाई) के लिए प्रोत्साहन दे रही है। स्प्रिंकलर सिंचाई के माध्यम से किसान अपनी फसल में कम जल खर्च करके अधिक पैदावार कर सकते हैं।

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जल के अतिदोहन को रोकने एवं फसलों में बेहतर रूप से सिंचाई करने के लिए सरकार किसानों को स्प्रिंकलर सिंचाई के लिए ९० प्रतिशत तक अनुदान प्रदान कर रही है। 

भारत में आज भी ज्यादातर किसानों के पास स्प्रिंकलर सिंचाई के उपकरण खरीदने के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं है। पी एम कृषि सिंचाई योजना के तहत यह अनुदान देने की घोषणा की गयी है।   

ड्रिप सिंचाई सिस्टम

पी एम कृषि सिंचाई योजना से मिलेंगे यह लाभ

पी एम कृषि सिंचाई योजना से किसानों को सिंचाई सम्बंधित पूरी मदद और सलाह सरकार द्वारा दी जाती है। इस योजना के अंतर्गत ही किसानों को स्प्रिंकलर सिंचाई के लिए अनुदान दिया जा रहा है, जिससे ज्यादा से ज्यादा किसान स्प्रिंकलर सिंचाई के माध्यम से ही अपनी रबी की फसलों की सिंचाई करें। 

सरकार की यह योजना अत्यधिक जल खपत को कम करने के साथ साथ किसानों की पैदावार भी बेहतर करना चाहती है। पी एम कृषि सिंचाई योजना के तहत किसानों को सिंचाई के लिए काफी सहायता मिलती है, ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर इरिगेशन जैसे सिंचाई के माध्यम से रबी की फसलों में बेहतर तरीके से सिंचाई की जा सकेगी।

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स्प्रिंकलर सिंचाई के लिए कितना अनुदान मिलेगा

पी एम कृषि सिंचाई योजना के तहत बिहार कृषि विभाग, उघान निदेशालय ( बिहार हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट ) किसानों को स्प्रिंकलर सिंचाई के लिए ९० प्रतिशत तक का अनुदान प्रदान कर रही है। 

 किसान जनपद के समीप किसी भी उघान विभाग के कार्यालय में जाकर योजना सम्बंधित सहायता ले सकते हैं। स्प्रिंकलर पर सब्सिडी प्राप्त करने के लिए https://www.pmksy.gov.in/ पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।

स्प्रिंकलर सिंचाई कौन सी फसलों के लिए बेहतर है, इसके क्या लाभ हैं

स्प्रिंकलर सिंचाई के माध्यम से चाय, आलू, प्याज, धान, गेंहू और सब्जी की फसलों में सिंचाई की जाती है। स्प्रिंकलर सिंचाई बेहद ही अच्छी और फायेमंद तकनीक है, 

इसकी सहायता से जल की बर्बादी रोकने के साथ साथ कीटनाशक दवाओं का भी फसल में छिड़काव किया जा सकता है। अत्यधिक जल की वजह से फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसमें स्प्रिंकलर सिंचाई बेहद सहायक होती है।

दिवाली और महापर्व छठ पर बिहार सरकार ने दिया अनोखा गिफ्ट, खुल रहे हैं इतने नए कृषि कॉलेज!

दिवाली और महापर्व छठ पर बिहार सरकार ने दिया अनोखा गिफ्ट, खुल रहे हैं इतने नए कृषि कॉलेज!

दिवाली और महापर्व छठ के अवसर पर बिहार सरकार ने बिहार वासियों के लिए बहुत बड़ी सौगात दी है। कृषि के क्षेत्र में हो रहे बदलावों को ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार ने नए कृषि महाविद्यालय खोलने का मन बना लिया है। एक्सपर्ट का मानना है की इस तरह के फैसले से बिहार के कृषि जगत में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत का कहना है की नए कृषि महाविद्यालय के खुलने से कृषि के क्षेत्र में क्रांति आएगी। कुमार सर्वजीत के अनुसार, कृषि महाविद्यालय के खुलने से जमीनी स्तर पर भारी बदलाव देखने को मिलेगा और साथ ही साथ अगले कुछ वर्षों में बिहार राज्य कृषि के क्षेत्र मे अग्रसर होगा। इससे लोगों को कृषि से जुड़ी हुई शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलेगी जिससे किसान सफलतापूर्वक खेती करने में सक्षम हो पाएंगे। बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है जो मुख्य रूप से कृषि उत्पादन के लिए जाना जाता है। बिहार में लगभग 1.5 करोड़ किसान हैं, यदि ये किसान आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके खेती करना नहीं जानते हैं, तो वे प्रगति नहीं कर सकते। बिहार में कृषि अनुसंधान और शिक्षा को प्रोत्साहित किया जा रहा है, क्योंकि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि राज्य में उगाई जाने वाली फसलें उच्च कोटि की और सुरक्षित हों।


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कुमार सर्वजीत ने कहा कि जरूरत के मुताबिक नए कॉलेज खोले जाएंगे और छात्र अपनी जरूरत के हिसाब से बेहतरीन कॉलेज ढूंढ सकेंगे। कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने अपने विभागीय अधिकारियों से चर्चा करते हुए यह निर्देश भी दिया की जल्द से जल्द कृषि महाविद्यालय खोलने हेतु जगह का चयन किया जाए, साथ ही कृषि उन्नति के लिए हर तरह की संभावनाओं को तलाश किया जाए।

ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली का मिलेगा भरपूर लाभ

सरकार पारंपरिक कृषि आधारित शिक्षा के तरीके को बदलना चाहती है ताकि भविष्य में किसान ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली का लाभ उठा सके. सरकार का यह कदम बिहार के विकास मे काफ़ी मदगार साबित होने वाला कदम माना जा रहा है, जिससे आने वाले दिनों मे कृषि के क्षेत्र में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। दूसरी तरफ दक्षिण बिहार में सरकार बागवानी को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से अभियान चलाने की तैयारी कर रही है, जिससे इस क्षेत्र के किसान ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई से लाभान्वित हो सकेंगे।


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दक्षिण बिहार के जिलों में वाटरशेड उन्नत करने पर भी जोर दिया जा रहा है। किसानों की परेशानी दूर करने के लिए डिजिटल कृषि की शुरुआत करने की भी बात हो रही है। इससे कृषि से जुड़ी सभी सुविधाएं डिजिटल युग के माध्यम से किसानों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी। कृषि मंत्री ने तय समय में समस्याओं के समाधान के लिए पुख्ता इंतजाम करने के निर्देश दिए हैं।

इन संकायों में कृषि अध्ययन

उपहार में देश के तहत कृषि अनुसंधान संस्थान बिहार कृषि विश्वविद्यालय, मीठापुर परिसर में कृषि व्यवसाय नियंत्रण महाविद्यालय, बिहार कृषि महाविद्यालय के तहत सबौर, भागलपुर में एक कृषि जैव प्रौद्योगिकी महाविद्यालय और बिहार कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत आरा, भोजपुर में कृषि इंजीनियरिंग कॉलेज एक नजर चल रहा है। इसके अलावा राजेंद्र प्रसाद प्राथमिक कृषि विश्वविद्यालय पूसा के अंतर्गत पंडित दीन दयाल उपाध्याय उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय मोतिहारी संचालित है। आपको हम याद दिला दें कि धनतेरस के मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के सूखा पीड़ित किसानों को एक बड़ा तोहफा दिया है। सीएम नीतीश ने घोषणा की है कि इस साल छठ पूजा से पहले सूखे से प्रभावित हर किसान परिवार के खाते में 3500 रुपये की राशि ट्रांसफर की जाएगी। पहले चरण में सीएम नीतीश ने कहा था कि जिलों को 500 करोड़ रुपये बांटे जा चुके हैं। सूखाग्रस्त फंड देने से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रत्येक जिले के डीएम के साथ आमने-सामने वीडियो कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान सीएम ने जिलाधिकारियों को निर्देश दिए कि छठ पूजा से पहले सभी किसान परिवारों के खातों में 3500 रुपये की राशि ट्रांसफर की जाए। गौरतलब है की सरकार बदलते ही बिहार के कृषि जगत मे भारी बदलाव दिखने को मिल रहा है। आधुनिक रूप से कृषि को बढ़ावा देने के साथ ही बेहतर प्रबंधन के साथ-साथ बिहार के कायाकल्प की तैयारी की जा रही है।
75 फीसद सब्सिडी के साथ मिल रहा ड्रिप स्प्रिंकलर सिस्टम, किसानों को करना होगा बस ये काम

75 फीसद सब्सिडी के साथ मिल रहा ड्रिप स्प्रिंकलर सिस्टम, किसानों को करना होगा बस ये काम

गर्मियों के मौसम में किसानों को सिंचाई में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में राजस्थान सरकार ने किसानों की इस समस्या का हल खोज निकाला है. 

राजस्थान के किसानों को गर्मियों के मौसम में सिंचाई से जुड़ी कोई समस्या ना उठानी पड़े, इसके लिए सरकार ने सूक्ष्म सिंचाई योजना का शुभारम्भ किया है. इस योजना के तहत रजस्थान राज्य के किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर सेट पर 75 फीसद तक की सब्सिडी देने का फैसला किया है. 

भारत के ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां का तापमान धीरे धीरे बढ़ रहा है. गर्मियों की आहट के बीच किसानों के दिमाग में सिंचाई को लेकर चिंता भी पनपने लगी है. क्योंकि गर्मियों के मौसम में किसानों को सिंचाई के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है.

हालांकि कई इलाकों के भूजल स्तर काफी गिर चुका है, जिसके वजह से सिंचाई नहीं हो पाती और फलस्वरूप फसलें भी सूख जाती हैं. जिसे देखते हुए कई राज्य सरकारों ने चिन्तन करना भी शुरू कर दिया है, और सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए तरह तरह के कार्यक्रमों की भी शुरुआत कर दी है.

  • राजस्थान सरकार ने चलाई स्कीम

राजस्था सरकार ने किसानों की परेशानी को देखते हुए एक खास स्कीम चलाई है. जिसमें किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर सेट की क्रीड पर 75 फीसद तक की भारी सब्सिडी देने का ऐलान कर दिया है.

  • लाखों किसानों को होगा फायदा

राजस्थान सरकार की इस स्कीम के तहत राज्य के हर तबके के किसानों को फायदा मिलेगा. इतना ही नहीं सरकार ने अपने नये साल के कृषि बजट मरीं लगभग 4 लाख किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर पर भारी अनुदान देने का फैसला किया है. 

इतना ही नहीं लाखों किसानों को सूक्ष्म सिंचाई मिशन के जरिये लाभान्वित कराया जाएगा. इस स्कीम का लाभ लेने के लिए आवेदान करने वाले एससी एसटी, लघु सीमांत और महिला किसानों को 75 फीसद अनुदान मिलेगा वहीं अन्य वर्ग के किसानों को लगभग 70 फीसद तक की सब्सिडी दी जाएगी.

इन शर्तों का रखना होगा ख्याल

  • इस योजना का लाभ राजस्थान के किसान ही ले सकते हैं.
  • सूक्ष्म सिंचाई योजना का लाभ लेने के लिए आवेदक किसान राजस्थान का स्थाई निवासी होना जरूरी है.
  • किसान के बॉस 0.2 हेक्टेयर और 5 हेक्टेयर खेती के लायक जमीन होनी जरूरी है.
  • अगर किसान के खेत में कुएं, नलकूप, बीजली, डीजल, सोलर पंप जैसे जल स्रोत लगे होने पर ही सूक्ष्म सिंचाई संयंत्र स्थापित किये जाएंगे.

जानिए कैसे करेंगे आवेदन?

  • अगर किसान सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत इसका लाभ लेना चाहता है,न तो सबसे पहले राज किसान साथी पोर्टल पर विजिट करके ऑनलाइन आवेदन करना होगा.
  • किसानों को अपनी पर्सनल डिटेल के साथ साथ बैंक की पासबुक की कॉपी और जमीन की जमाबंदी की कॉपी भी अपलोड करनी होगी.
  • आदार कार्ड, जाति प्रमाण पत्र, बिजली कनेक्शन प्रमाण पत्र, आधार से लिंक हुआ मोबाइल नंबर आदि भी उपलोड करना होगा.
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इस मामले में पहले पायदान पर है राजस्थान

राजस्थान को रेतीली, बंजर और अनुपजाऊ जमीन से पहचाना जाता था. लेकिन समय के साथ साथ स्थितियों में काफी सुधार किया गया, और यहां की बंजर जमीन से भी लोग खूब पैसा कमा रहे हैं. 

वहीं सोलर सिंचाई पंप ने भी राज्य के कृषि क्षेत्र को नये पंख लगा दिए. सोलर पंप की स्थापना में राजस्थान पहले पायदान पर है. वहीं सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत जल संरक्षण का काम भी बेहद आसान हो चुका है. 

रिपोर्ट्स के मुताबिक राजस्थान पूरे देश भर में मात्र के ऐसा राज्य है, जहां सबसे ज्यादा सिंचाई यंत्र स्थापित किये गये हैं. राजस्थान में भले ही पानी का स्तर काफी नीचे क्यों ना हो, लेकिन नई सिंचाई तकनीक की वजह से पानी की बचत के साथ फसल की अच्छी उत्पादकता को बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं.

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने मोटे अनाजों के उत्पादों को किया प्रोत्साहित

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने मोटे अनाजों के उत्पादों को किया प्रोत्साहित

राजस्थान में मोटे अनाजों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। राज्यपाल कलराज मिश्र ने बताया है, कि मोटे अनाज कुटकी, संवा, कंगनी, चेना, कोदो, बाजरा, ज्वार, रागी पारम्परिक रूप से भारतीय भोजन का भाग रहे हैं। राजस्थान राज्य के राज्यपाल कलराज मिश्र ने भारत की बढ़ती जनसंख्या को पोषण युक्त भोजन मुहैय्या कराने के लिए मोटे अनाजों की कृषि को समस्त स्तरों पर बढ़ावा दिए जाने के लिए पहल की जा रही है। उनका कहना है, कि पोषण की प्रचूर मात्रा से युक्त मोटे अनाजों के समयानुसार सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता सुद्रण बनती है। इस वजह से मोटे अनाजों को आम जनता में प्रचलित एवं लोकप्रिय बनाने के खूब प्रयास किए जा रहे हैं। जोबनेर के श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को गुरुवार को राजभवन से डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए मिश्र ने कहा है, कि मोटे अनाज संवा, कंगनी, चेना, कोदो, बाजरा, ज्वार, रागी एवं कुटकी परंपरागत रूप से भारतीय भोजन का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। राजस्थान के अधिकांश इलाकों में फिलहाल भी मोटा अनाज आम लोगों के भोजन का महत्वपूर्ण भाग है।

कृषि शिक्षा को एक नई दिशा देनी की बेहद आवश्यकता है

राज्यपाल ने बताया कि यह दौर विवेकपूर्ण कृषि का है। आपको बतादें कि बदलते समय में रोबोटिक्स, बिग डाटा एनालिटिक्स, रिमोट सेन्सिंग, आईओटी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति का स्वागत किया है। उन्होंने बताया है, कि कृषि विश्वविद्यालयों को स्मार्ट कृषि से संबंधित नई तकनीकों के लिए किसान भाइयों को जागरूक किया जाएगा। मिश्र ने बताया है, कि खराब होते मौसमिक तंत्र, जैव विविधता पर चुनौती एवं सिंचाई के साधनों के अभाव के संबंध में बेहतर सोच रखी है। कृषि शिक्षा को नई दिशा देनी की बेहद आवश्यकता है। ये भी देखें: किसान ड्रोन की सहायता से 15 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि में करेंगे यूरिया का छिड़काव

विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया है

राज्यपाल जी ने प्राकृतिक आपदा बारिश एवं ओलावृष्टि से कृषि पर पड़ रहे दुष्प्रभावों की ओर संकेत करते हुए कृषि विज्ञान केन्द्रों के अंतर्गत जलवायु बदलाव का विस्तृत अध्ययन किए जाने की राय दी गई है। राज्यपाल ने बताया है, कि कृषि पद्धतियों के पुराने एवं नए ज्ञान का बेहतर उपयोग करते हुए किसान भाइयों के लिए प्रभावी पद्धतियां तैयार करने की जरूरत है, जिससे कि कृषि पैदावार में वृद्धि, खाद्य सुरक्षा के लिए खाद्य उत्पादन एवं भंडारण, पर्याप्त पोषण युक्त खाद्य मुहैय्या कराने के वांछित लक्ष्यों को हाँसिल किया जा सके। इस उपलक्ष्य पर 3 विद्यार्थियों को समेकित कृषि स्नातकोत्तर उपाधियां, 985 विद्यार्थियों को कृषि स्नातक उपाधियां, 32 विद्यार्थियों को पीएचडी, 75 को स्नातकोत्तर तथा आठ विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए।

संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मोटा अनाज दिवस के रूप में मनाया है

आपको हम बतादें कि भारत सरकार के निवेदन पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2023 को मोटा अनाज वर्ष की घोषणा की गई है। साथ ही, केंद्र सरकार भी भारत के अंदर मोटे अनाज की किस्मों की खेती को प्रोत्साहन देना चाहती है। इसके लिए वह किसान भाइयों को प्रेरित कर रही है। विगत माह मोटे अनाज की कृषि को बढ़ावा देने के लिए संसद भवन के अंदर बाजरे से निर्मित व्यंजन प्रस्तुत किया गया था। जिसका पीएम मोदी सहित अन्य मंत्रियों एवं सांसदों ने भी स्वाद चखा था।
जानें किस प्रकार किसान भाई पौधों में पोषक तत्वों की कमी का पता लगा सकते हैं

जानें किस प्रकार किसान भाई पौधों में पोषक तत्वों की कमी का पता लगा सकते हैं

पौधों में भी आम इंसान की ही भांति पोषक तत्वों की कमी होती रहती है, जिसको पूरा करने के लिए उन्हें भी बाहरी पोषक तत्वों पर आश्रित रहना पड़ता है। परंतु, समस्या तब होती है, जब हम उनमें किस पोषक तत्व का अभाव है यह समझ ही नहीं पाते हैं। चलिए आज हम आपको यही बताते हैं, कि आप कैसे किसी पौधे में इसकी पहचान कर सकते हैं। एक फलते-फूलते बगीचे अथवा सफल फसल के लिए स्वस्थ पौधे जरूरी हैं। पोषक तत्वों की कमी पौधों की उन्नति एवं वृद्धि को प्रभावित कर सकता है, जिससे बढ़वार रुक जाती है। वहीं, पत्तियां भी पीली पड़ जाती हैं एवं फल अथवा फूल का उत्पादन खराब हो जाता है। हम आपको आज पौधों में किस तत्व की कब कमी हो रही है इसके विषय में जानकारी प्रदान करेंगे। पौधों को अपनी बढ़वार एवं विकास के लिए बहुत सारे आवश्यक पोषक तत्वों की जरूरत होती है। इन पोषक तत्वों को मोटे रूप में दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है। मैक्रोन्यूट्रिएंट्स और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स।

मैक्रोन्यूट्रिएंट्स (Macronutrients)

पौधों को मैक्रोन्युट्रिएंट्स की भरपूर मात्रा में आवश्यकता होती है और इसमें नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), पोटेशियम (K), कैल्शियम (CA), मैग्नीशियम (MG), और सल्फर (S) शम्मिलित हैं।

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सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrients)

सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता कम मात्रा में होती है और इसमें आयरन (Fe), मैंगनीज (Mn), जिंक (Zn), तांबा (Cu), बोरान (B), मोलिब्डेनम (Mo), एवं क्लोरीन (Cl) शम्मिलित हैं।

पोषक तत्वों की कमी के लक्षणों को पहचानना

पोषक तत्वों की कमी सामान्यतः पौधों की पत्तियों, तनों एवं उनकी वृद्धि में उनके लक्षणों के आधार पर दिखाई देती है। बतादें, कि हम आपको कुछ सामान्य लक्षणों के आधार पर यह जानकारी देंगे कि किस प्रकार आप किसी पौधे में किस तत्व की कमी को पहचान पाऐंगे। नाइट्रोजन (N) की कमी: पुरानी पत्तियों का पीला पड़ना (क्लोरोसिस) जो सिरों से शुरू होकर अंदर की तरफ फैलता है, विकास रुक जाता है।

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फास्फोरस (P) की कमी: लाल-बैंगनी रंग के साथ-साथ गहरे हरे पत्ते, पुरानी पत्तियां नीली-हरी अथवा भूरी हो सकती हैं और मुड़ सकती हैं। पोटेशियम (K) की कमी: पत्तियों के किनारों और सिरों का पीला या भूरा होना, तने कमजोर होना। आयरन (Fe) की कमी: नई पत्तियों पर इंटरवेनल क्लोरोसिस (नसों के बीच पीलापन), पत्तियां सफेद अथवा पीली हो सकती हैं। मैग्नीशियम (Mg) की कमी: पुरानी पत्तियों पर इंटरवेनल क्लोरोसिस, पत्तियां लाल-बैंगनी अथवा मुड़ी हुई हो सकती हैं। कैल्शियम (Ca) की कमी: नई पत्तियाँ विकृत हो सकती हैं और सिरे वापस मर सकते हैं, फलों में फूल के सिरे सड़ सकते हैं। सल्फर (एस) की कमी: नई पत्तियों का पीला पड़ना, रुका हुआ विकास और बीज और फलों का उत्पादन कम होना। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी: यह सूक्ष्म पोषक तत्व के आधार पर अलग-अलग होते हैं। उदाहरण के लिए आयरन के अभाव से इंटरवेनल क्लोरोसिस दिखाई देता है। साथ ही, जिंक की कमी से पत्तियां छोटी और विकृत हो जाती हैं। यदि आप इन लक्षणों को किसी भी पौधे में देखते हैं तो आप यह बेहद ही सुगमता से पहचान कर सकते हैं, कि उस पौधे में किस पोषक तत्व की कमी है। एक बार लक्षण का पता चल जाए तो आप उसके मुताबिक उसका उपचार बड़ी सुगमता से खोज सकते हैं।